साहित्य अकादमी पुरस्कार को ठुकराने वाले लेखकों के पक्ष-विपक्ष में अपने-अपने तरीके से लोग व्याख्या कर रहे हैं और पुरस्कार को ठुकराने के पीछे छुपी उनकी अपनी स्ट्रैटिजिक महात्वाकांक्षाओं- आकांक्षाओं का ब्यौरा दर ब्यौरा सामने रख रहे हैं।
इस सबके पीछे गत दिनों दादरी में घटी गौमांस खाने पर हत्या किये जाने की घटना को आधार बनाया गया है। राजनैतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक जगत के ये वरिष्ठ लोग आहत हैं या आहत होने का दिखावा कर रहे हैं, यह धीमे धीमे सबके सामने आता जा रहा है।
ऐसे में कोई यदि ये कहे कि ”जिस उत्तर प्रदेश में ये घटना घटी, उस प्रदेश में नेता नहीं दलाल रहते हैं, उस प्रदेश के धर्मगुरू गाय के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे हैं, उत्तर प्रदेश में मसला गाय का नहीं 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव का है,” तो आप क्या कहेंगे?
यही ना कि ये फरिश्ता कहां से आ टपका जो इस सोचविहीन समाज में ऐसी बातें कर रहा है। हो सकता है कि आप ये भी कहें कि इस व्यक्ति को या तो कोई खौफ नहीं है या इसे लालच नहीं है उस जमात में बैठने का जो साहित्य जगत को भी राजनीति का अखाड़ा बनाने पर आमादा रहती है।
जी हां! ये हैं मशहूर शायर मुनव्वर राणा, जिन्होंने सहारनपुर के मुशायरे में भाग लेने से पहले मीडिया के सामने अपने जज़्बात साझा करते हुए यह सब कहा। मुनव्वर राणा व अनवर जलालपुरी सहारनपुर के मेला ”गुघाल” के अवसर पर आयोजित होने वाले मुशायरे में शामिल होने पहुंचे थे।
मुनव्वर राणा साहब की लाजवाब शख्सियत के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है। और कल तो उन्होंने सरेमीडिया उक्त बात कहकर न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति की ज़मींदोज़ हो चुकी साख को लानत मलानत भेजी बल्कि उस साहित्यिक जमात के विचारों को भी ललकारा जो आजकल देश की सेक्यूलर छवि को लेकर बड़े चिंतित हैं। ये वही साहित्यिक जमात है जो आयातित सेक्यूलरिज्म के नाम पर अनर्गल लिखने और बोलने को सच्ची साहित्यिक साधना कहती है, बिना ये सोचे कि हमारे देश का समाजवाद दुनिया के किसी और देश में नहीं, उन देशों में भी नहीं जहां के समाजवाद को ये के साहित्यिक वरिष्ठजन इसे ढो रहे हैं। ये वही जमात है जो कला या साहित्य साधना के नाम पर चरित्रों के कोने- कोने को भ्रष्ट करती है। ये वही जमात है जिसके लिए शराब और बीफ साहित्यिक गोष्ठियों का मेन मेन्यू होता है। ये कैसा समाजवाद है इनका, मुनव्वर साहब ने इन साहिबानों के समाजवाद पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि गाय को जो बेचे या मारे, वह सबसे बड़ा गुनहगार है। बीफ मुद्दे पर दो पक्षों द्वारा की जा रही राजनीति महज 2017 के चुनावों तक है। जब दादरी का पीड़ित परिवार राज्य और केंद्र सरकारों के प्रयास व स्वयं अपने गांव वालों की दिलेरी से मुतमईन है तो फिर आजम खान जैसे नेता या कोई आदित्यनाथ जैसे धर्मगुरू द्वारा इस प्रकरण में बयानबाजी के आखिर क्या मायने हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नगर विकास मंत्री आजम खान द्वारा उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की ओर से प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को सम्मानित किए जाने के सवाल पर मुनव्वर राणा ने कहा कि जो उर्दू की आत्मा को नहीं जान सके वे ही पुरस्कार समिति के अध्यक्ष बने हुए हैं। आखिर ये कैसा मजाक है उर्दू के साथ।
अनवर जलालपुरी के संग प्रेस वार्ता कर रहे मुनव्वर राणा साहब ने उर्दू अकादमी के चेयरमैन बनाने की प्रक्रिया और नीयत दोनों पर सवाल उठाए कि नाकाबिल लोग अगर राजनैतिक रसूख के बल पर चेयरमैन बनेंगे तो अकादमी और उर्दू जबान दोनों का गर्त में जाना निश्चित है। उनका ये कहना कि कोई शायर है और मुसलमान है सिर्फ इसी के बूते उर्दू अकादमी का चेयरमैन नहीं बनाया जा सकता। उसमें नेताओं की चौखट चूमने से ज्यादा भाषा के सम्मान का गुण होना चाहिए।
उर्दू अकादमी का चेयरमैन बनाने के पीछे मुसलमान होना कोई वजह नहीं होनी चाहिए इसी तरह उर्दू की बेहतरी के लिए उर्दू अकादमी की जरूरत नहीं, अकादमी बना देने से उर्दू का भला होने वाला नहीं है क्योंकि अकादमी को लेकर प्रदेश सरकार की मंशा अच्छी नहीं है। सरकार और सरकार के मंत्रीगणों ने उर्दू अकादमी को अय्याशी का अड्डा बना रखा है।
मुनव्वर राणा का ये कहना कि जिस दिन प्रदेश के मुसलमान सपा सरकार में शामिल मुस्लिम नेताओं के पीछे चलना छोड़ देंगे तथा लाल बत्ती वालों का गिरेबां पकड़ लेंगे, उसी दिन प्रदेश के मुस्लिमों के हालत सुधर जाएंगे।
ये वो झकझोरते सवाल हैं जो मुनव्वर राणा साहब ने उर्दू के भविष्य, साहित्य की छीछीलेदर करती समाजवादी जमात और गाय को लेकर हो रही राजनीति पर दागे व स्वयं मुसलमानों की भटकी हुई दिशा व दशा पर उठाए।
निश्चित ही भूखों मरती गायों की ओर कभी मुड़कर न देखने वाले, गौशालाओं के नाम पर देश-विदेश से भारी दान इकठ्ठा करने वाले धर्मगुरूओं की आज अचानक गाय और बीफ मुद्दे पर उमड़ी करुणा और दया हो या आजम खान के उर्दू और मुसलमानों के लिए बहते आंसू, इनको आइना दिखाने वाले मुनव्वर राणा व अनवर जलालपुरी इंसानियत की जिस सूरत की बात करते हैं उसके लिए बार- बार तहेदिल से यही निकलता है कि काश ! हर दिल मुनव्वर हो जाए तो कोई बात बने …
मुनव्वर साहब के ही शब्दों में —-
यहाँ वीरानियों की एक मुद्दत से हुकूमत है
यहाँ से नफ़रतें गुज़री है बरबादी बताती है
लहू कैसे बहाया जाय यह लीडर बताते हैं
लहू का ज़ायक़ा कैसा है यह खादी बताती है
ग़ुलामी ने अभी तक मुल्क का पीछा नहीं छोड़ा
हमें फिर क़ैद होना है ये आज़ादी बताती है….
– अलकनंदा सिंह
इस सबके पीछे गत दिनों दादरी में घटी गौमांस खाने पर हत्या किये जाने की घटना को आधार बनाया गया है। राजनैतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक जगत के ये वरिष्ठ लोग आहत हैं या आहत होने का दिखावा कर रहे हैं, यह धीमे धीमे सबके सामने आता जा रहा है।
ऐसे में कोई यदि ये कहे कि ”जिस उत्तर प्रदेश में ये घटना घटी, उस प्रदेश में नेता नहीं दलाल रहते हैं, उस प्रदेश के धर्मगुरू गाय के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे हैं, उत्तर प्रदेश में मसला गाय का नहीं 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव का है,” तो आप क्या कहेंगे?
यही ना कि ये फरिश्ता कहां से आ टपका जो इस सोचविहीन समाज में ऐसी बातें कर रहा है। हो सकता है कि आप ये भी कहें कि इस व्यक्ति को या तो कोई खौफ नहीं है या इसे लालच नहीं है उस जमात में बैठने का जो साहित्य जगत को भी राजनीति का अखाड़ा बनाने पर आमादा रहती है।
जी हां! ये हैं मशहूर शायर मुनव्वर राणा, जिन्होंने सहारनपुर के मुशायरे में भाग लेने से पहले मीडिया के सामने अपने जज़्बात साझा करते हुए यह सब कहा। मुनव्वर राणा व अनवर जलालपुरी सहारनपुर के मेला ”गुघाल” के अवसर पर आयोजित होने वाले मुशायरे में शामिल होने पहुंचे थे।
मुनव्वर राणा साहब की लाजवाब शख्सियत के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है। और कल तो उन्होंने सरेमीडिया उक्त बात कहकर न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति की ज़मींदोज़ हो चुकी साख को लानत मलानत भेजी बल्कि उस साहित्यिक जमात के विचारों को भी ललकारा जो आजकल देश की सेक्यूलर छवि को लेकर बड़े चिंतित हैं। ये वही साहित्यिक जमात है जो आयातित सेक्यूलरिज्म के नाम पर अनर्गल लिखने और बोलने को सच्ची साहित्यिक साधना कहती है, बिना ये सोचे कि हमारे देश का समाजवाद दुनिया के किसी और देश में नहीं, उन देशों में भी नहीं जहां के समाजवाद को ये के साहित्यिक वरिष्ठजन इसे ढो रहे हैं। ये वही जमात है जो कला या साहित्य साधना के नाम पर चरित्रों के कोने- कोने को भ्रष्ट करती है। ये वही जमात है जिसके लिए शराब और बीफ साहित्यिक गोष्ठियों का मेन मेन्यू होता है। ये कैसा समाजवाद है इनका, मुनव्वर साहब ने इन साहिबानों के समाजवाद पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि गाय को जो बेचे या मारे, वह सबसे बड़ा गुनहगार है। बीफ मुद्दे पर दो पक्षों द्वारा की जा रही राजनीति महज 2017 के चुनावों तक है। जब दादरी का पीड़ित परिवार राज्य और केंद्र सरकारों के प्रयास व स्वयं अपने गांव वालों की दिलेरी से मुतमईन है तो फिर आजम खान जैसे नेता या कोई आदित्यनाथ जैसे धर्मगुरू द्वारा इस प्रकरण में बयानबाजी के आखिर क्या मायने हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नगर विकास मंत्री आजम खान द्वारा उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की ओर से प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को सम्मानित किए जाने के सवाल पर मुनव्वर राणा ने कहा कि जो उर्दू की आत्मा को नहीं जान सके वे ही पुरस्कार समिति के अध्यक्ष बने हुए हैं। आखिर ये कैसा मजाक है उर्दू के साथ।
अनवर जलालपुरी के संग प्रेस वार्ता कर रहे मुनव्वर राणा साहब ने उर्दू अकादमी के चेयरमैन बनाने की प्रक्रिया और नीयत दोनों पर सवाल उठाए कि नाकाबिल लोग अगर राजनैतिक रसूख के बल पर चेयरमैन बनेंगे तो अकादमी और उर्दू जबान दोनों का गर्त में जाना निश्चित है। उनका ये कहना कि कोई शायर है और मुसलमान है सिर्फ इसी के बूते उर्दू अकादमी का चेयरमैन नहीं बनाया जा सकता। उसमें नेताओं की चौखट चूमने से ज्यादा भाषा के सम्मान का गुण होना चाहिए।
उर्दू अकादमी का चेयरमैन बनाने के पीछे मुसलमान होना कोई वजह नहीं होनी चाहिए इसी तरह उर्दू की बेहतरी के लिए उर्दू अकादमी की जरूरत नहीं, अकादमी बना देने से उर्दू का भला होने वाला नहीं है क्योंकि अकादमी को लेकर प्रदेश सरकार की मंशा अच्छी नहीं है। सरकार और सरकार के मंत्रीगणों ने उर्दू अकादमी को अय्याशी का अड्डा बना रखा है।
मुनव्वर राणा का ये कहना कि जिस दिन प्रदेश के मुसलमान सपा सरकार में शामिल मुस्लिम नेताओं के पीछे चलना छोड़ देंगे तथा लाल बत्ती वालों का गिरेबां पकड़ लेंगे, उसी दिन प्रदेश के मुस्लिमों के हालत सुधर जाएंगे।
ये वो झकझोरते सवाल हैं जो मुनव्वर राणा साहब ने उर्दू के भविष्य, साहित्य की छीछीलेदर करती समाजवादी जमात और गाय को लेकर हो रही राजनीति पर दागे व स्वयं मुसलमानों की भटकी हुई दिशा व दशा पर उठाए।
निश्चित ही भूखों मरती गायों की ओर कभी मुड़कर न देखने वाले, गौशालाओं के नाम पर देश-विदेश से भारी दान इकठ्ठा करने वाले धर्मगुरूओं की आज अचानक गाय और बीफ मुद्दे पर उमड़ी करुणा और दया हो या आजम खान के उर्दू और मुसलमानों के लिए बहते आंसू, इनको आइना दिखाने वाले मुनव्वर राणा व अनवर जलालपुरी इंसानियत की जिस सूरत की बात करते हैं उसके लिए बार- बार तहेदिल से यही निकलता है कि काश ! हर दिल मुनव्वर हो जाए तो कोई बात बने …
मुनव्वर साहब के ही शब्दों में —-
यहाँ वीरानियों की एक मुद्दत से हुकूमत है
यहाँ से नफ़रतें गुज़री है बरबादी बताती है
लहू कैसे बहाया जाय यह लीडर बताते हैं
लहू का ज़ायक़ा कैसा है यह खादी बताती है
ग़ुलामी ने अभी तक मुल्क का पीछा नहीं छोड़ा
हमें फिर क़ैद होना है ये आज़ादी बताती है….
– अलकनंदा सिंह
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