शनिवार, 28 दिसंबर 2019

हे बुद्ध‍ि श्रेष्ठो! ये चुप्पी आपके वज़ूद को भी म‍िटा देगी

कभी शायर व गीतकार शकील बदायूंनी ने लिखा था-
काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ…
देश में सीएए और एनसीआर के व‍िरोध पर तो ये शेर ब‍िल्कुल फ‍िट बैठता ही है, साथ ही ये बुद्ध‍ि के उन मठाधीशों पर भी फ‍िट बैठता है जो बात-बात पर देश की अखंडता और गंगाजमुनी तहजीब की म‍िसालें देते रहते हैं। यही तथाकथ‍ित बुद्ध‍िजीवी प‍िछले 15 द‍िन से नागर‍िकता संशोधन कानून के व‍िरोध में देश को बंधक बना चुकी अराजकता पर चुप्पी साधे बैठे हैं।
इतने बड़े देश के क‍िसी एक कोने में मॉब ल‍िंच‍िंग की एक घटना पर अपने अवार्ड वापस करने वाले और पीएम मोदी को हर दूसरे तीसरे द‍िन गर‍ियाने वाले मुनव्वर राणा जैसे शायर हों अथवा अशोक वाजपेयी जैसे साहित्‍यकार, या अनपढ़ों की तरह नागर‍िकता संशोधन कानून का व‍िरोध करने वाली मैत्रेयी पुष्पा। इन जैसे बुद्ध‍िजीव‍ियों ने अपने मुंह से ”कागवचन” बोलकर बता द‍िया क‍ि हम ज‍िन्हें लगभग पूजते थे,ऑटोग्राफ लेते झूमते थे, उन मूर्धन्य साह‍ित्यकारों की अपनी असल‍ियत क्या है। इसे मेरी धृष्टता भी कहा जा सकता है क‍ि मैं इतने ” बड़े बड़े पुरस्कार प्राप्त व‍िभूत‍ियों” के बारे में ऐसे शब्द इस्तेमाल कर रही हूं परंतु क्या करूं समय इनके साथ-साथ हमारे मुगालतों का भी मूल्यांकन कर रहा है क‍ि अभी तक हम ”क‍िस-क‍िस” को अपना आदर्श मानते रहे।
कहां हैं वे राहत इंदौरी साहब जो कहते थे क‍ि-
नए किरदार आते जा रहे हैं,
मगर नाटक पुराना चल रहा है।
चुप क्यों हैं मुनव्वर राणा जो कहते थे क‍ि-
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना…
काश! राणा साहब उन पाक‍िस्तानी ह‍िंदुओं की बेबसी देख पाते ज‍िनकी लड़क‍ियों को उनके सामने ही अगवा कर धर्मांतरण करा द‍िया जाता है, उनके शवों को अंत‍िम संस्कार तक नहीं करने द‍िया जाता, तथाकथित अपने ही मुल्‍क में वे स‍िंदूर, ब‍िंदी नहीं लगा सकतीं…।
ये तो दो तीन मूर्धन्यों के उदाहरणभर हैं, और भी ढेरों हैं ऐसे ही शेरो शायरी के सरमाएदार… जो मानते हैं क‍ि जुल्म तो स‍िर्फ और स‍िर्फ मुसलमानों पर ही हो सकता है, मॉब ल‍िंच‍िंग स‍िर्फ मुसलमानों की हो सकती है, सरकार स‍िर्फ मुसलमानों के ख‍िलाफ ही कानून बना रही है। उन्हें देश में कोई अल्पसंख्यक द‍िखता है तो वह स‍िर्फ और स‍िर्फ मुसलमान ही है, वह भी ‘डरा हुआ मुसलमान’। गोया क‍ि मुसलमान अकेले ही अल्पसंख्यक हैं भारत में।
इत‍िहास गवाह है क‍ि आज तक ज‍ितने भी दंगे हुए, सभी में इन ”डरे हुए मुसलमानों” की कैसी-कैसी भूमिकाएं रहीं। क्यों आजादी के सत्तर साल बाद भी आज तक ये सत्ता का ”वोटबैंक तो बने” मगर आमजन का व‍िश्वास हास‍िल नहीं कर पाए। क्यों आज तक इन्हें वफादारी साब‍ित करनी पड़ती है, इन बुद्ध‍िजीवि‍यों ने कभी इस ओर सोचा है। ज़ाह‍िर है क‍ि अधिकांश मुसलमानों ने कभी देशह‍ित में नहीं सोचा, स‍िर्फ अपनी कौम का ही सोचा, इसील‍िए वफादारी पर प्रश्नच‍िन्ह इन्होंने खुद लगाया है।
उक्त बुद्ध‍िजीव‍ियों के अलावा भी जो मीड‍िया, सोशल मीड‍िया से लेकर सड़कों पर अराजकता फैला रहे हैं, वे ही कह रहे हैं क‍ि ”आज देश बड़े कठ‍िन दौर से गुजर रहा है…” । ये लफ़्ज कहने वाले वो लोग हैं, जो अभी तक ऐसे ही ना जाने क‍ितने ”कठ‍िन दौरों” को देखकर भी तमाशबीन बने रहे और 1947 से लेकर आज तक हर सांप्रदाय‍िक दंगे के चश्मदीद बने। मगर उनकी नजर में तब देश ”बड़े कठ‍िन दौर” से नहीं गुजरा।
उनकी स्वार्थी प्रवृत्त‍ि अब चरम पर है और इतनी चरम पर पहुंच गई है क‍ि ये ”डरे हुए मुसलमान” जब सरकारी संपत्त‍ि को आग लगा रहे होते हैं तब चुप्पी… और जब पुल‍िस द्वारा लठ‍ियाए जाते हैं तो ” डर का माहौल ”…। गजब आंकलन है भाई। कुल म‍िलाकर लब्बो-लुआब ये है क‍ि मुसलमान आज भी नहीं समझ रहे हैं क‍ि उन्हें क‍िस खतरनाक तरीके से ” इस्तेमाल” क‍िया जा रहा है। चाहे उन्हें देश का कानून न मानने को लेकर, जनसंख्या कानून से डरा कर, तीन तलाक पर गुमराह करके, एनसीआर व सीएए पर भ्रमित करके। आत्मावलोकन तो अब मुसलमानों को करना होगा क‍ि देश के इतर जाकर वे कथ‍ित बुद्ध‍िजीव‍ियों और स‍ियासतदानों के कहने पर अपनी कौम का क‍ितना नुकसान कर रहे हैं।
बहरहाल जाते जाते निदा फ़ाज़ली साहब का एक शेर –
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना।
- अलकनंदा स‍िंंह 

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

साहित्य अकादमी द्वारा 23 भाषाओं में वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा

साहित्य अकादमी ने आज 23 भाषाओं में अपने वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। 
सात कविता संग्रह, चार उपन्यास, छह कहानी संग्रह, तीन निबंध संग्रह, एक-एक कथेतर गद्य, आत्मकथा और जीवनी के लिए यह सम्मान दिया जाएगा।


हिंदी में नंदकिशोर आचार्य को उनके कविता-संग्रह ‘छीलते हुए अपने को’ के लिए यह सम्मान दिया जाएगा। 

शशि थरूर को अंग्रेजी भाषा में कथेतर गद्य ‘एन एरा ऑफ़ डार्कनेस’ के लिए दिया गया है। उर्दू में ‘शाफ़े किदवई’ को जीवनी ‘सवनेह-ए-सर-सैयद- एक बाज़दीद’ के लिए इस सम्मान की घोषणा हुई है।
बाकी भाषाओं में सम्मान पाने वाले साहित्यकार हैं 
असमिया – जय श्री गोस्वामी महंत
बाड्ला – चिन्मय गुहा
बोडो – फुकन चन्द्र
डोगरी – ओम शर्मा
गुजराती- रतिलाल बोरीसागर
कन्नड़ – विजया
कश्मीरी- अब्दुल अहद हाज़िनी
कोंकणी – निलबा खांडेकर
मैथिली – कुमार मनीष
मलयालम- मधुसूदन नायर
मणिपुरी – बेरिल
मराठी- अनुराधा पाटिल
ओड़िया – तरुण कांति
पंजाबी – किरपाल कज़ाक
राजस्थानी- रामस्वरूप किसान
संस्कृत – पेन्ना मधुसूदन
संताली – काली चरण
सिंधी – ईश्वर मूरजाणी
तमिल- धर्मन
तेलुगु – बंदि नारायणा स्वामी
नेपाली भाषा में पुरस्कार अभी घोषित नहीं किया गया है।
साहित्य अकादमी पुरस्कार के रूप में एक उत्कीर्ण ताम्र फलक, शॉल और एक लाख रुपये की राशि प्रदान की जाएगी। घोषित पुरस्कार 25 फरवरी 2020 को नई दिल्ली में आयोजित विशेष साहित्योत्सव में दिए जाएंगे।

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

ये कौन लोग हैं जो देश को हर वक्त अराजक स्थ‍ित‍ि में ही देखना चाहते हैं

ज‍िस नागर‍िकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर जवाहरलाल नेहरू यूनीवर्स‍िटी (JNU), अलीगढ़ मुस्ल‍िम यूनीवर्स‍िटी(AMU), जाम‍िया म‍िल‍िया यूनीवर्स‍िटी (JMU) से लेकर कल लखनऊ यूनीवर्स‍िटी (LU) तक छात्रों द्वारा व‍िरोध प्रदर्शन को ह‍िंसक रूप दे द‍िया गया, वह अनायास हुई कोई नाराजगी या घटना नहीं है, बल्क‍ि एक षड्यंत्रकारी अराजक गठबंधन की वो अभ‍िव्यक्त‍ि है जो धारा 370, तीन तलाक और राम मंद‍िर पर कुछ ना बोल सकी इसलिए अब नागर‍िकता कानून को ”संव‍िधान व‍िरोधी” व ”मुस्ल‍िमाें पर संकट” बताकर भ्रम व अराजकता फैला रही है।
यह सही है क‍ि अभ‍िव्यक्त‍ि की आजादी के तहत व‍िरोध प्रदर्शन को लोकतंत्र में ”मौल‍िक अध‍िकार” माना गया है परंतु संव‍िधान के अनुरूप बने क‍िसी पूरे के पूरे कानून को मुस्ल‍िम व‍िरोधी बताकर देश में स‍िर्फ और स‍िर्फ अराजकता फैलाना किसी तरह उचित नहीं क्‍योंकि इसकी आड़ में असामाजिक तत्‍व छोटे छोटे बच्चों व कानून से अनजान मुस्ल‍िम मह‍िलाओं को शाम‍िल कर रहे हैं।
यह दुखद है क‍ि इस अराजकता में छात्रों के साथ वो यूनीवर्स‍िटी श‍िक्षक भी शाम‍िल हैं जि‍न पर क‍ि ज्ञान बांटने की ज‍िम्मेदारी है। कोई कम जानकार या भ्रम‍ित व्यक्त‍ि ये कहे क‍ि नागर‍िकता संशोधन कानून व‍िभाजनकारी है तो माना भी जा सकता है परंतु जब श‍िक्षक ही ऐसा कहने लगें तो समझा जा सकता है क‍ि श‍िक्षा का स्तर क्या होगा और द‍िशा क्या होगी। अब हम यह अच्छी तरह समझ सकते हैं क‍ि इन यूनीवर्स‍िटीज में ” क‍िस तरह के छात्र” तैयार क‍िए जा रहे हैं।
एक न‍िश्च‍ित प्रोपेगंडा के तहत लंबी अवध‍ि के शोधकार्य व उच्च श‍िक्षा की ड‍िग्र‍ियां दर ड‍िग्र‍ियां लेने के नाम पर श‍िक्षकों द्वारा गरीब छात्रों को छात्रसंघों के हवाले कर एक ऐसा कॉकस ”पाला-पोसा” जा रहा है जो गाहे-बगाहे ”अंधव‍िरोध और देश के ख‍िलाफ दुष्प्रचार के ल‍िए टूल की तरह ”यूज” होता है परंतु सत्य कहां छ‍िपता है।
हम देख भी चुके हैं पूर्व में क‍ि जेएनयू व एमएमयू द्वारा क‍िस तरह कश्मीर को लेकर देश की छव‍ि दुन‍िया में धूम‍िल करने की कोश‍िश की गई थी, आतंक‍ियों की मारे जाने पर यूनीर्व‍िटी कैंपस में जुलूस न‍िकाले गए, फात‍िहा पढ़े गए। इसी तरह जेएनयू के छात्रों का फीस बढ़ोत्तरी को लेकर ह‍िंसक प्रदर्शन अब भी जारी है, जबक‍ि सबने देखा क‍ि कथ‍ित ”बेचारे व गरीब प्रदर्शनकारी” छात्र आईफोन तो इस्तेमाल कर रहे हैं परंतु होस्टल की 350 रुपये महीना फीस नहीं दे सकते ।
यह क्या है, कौन सी श‍िक्षा है, कौन सी राजनीत‍ि है जो देश को हर वक्त अराजक स्थ‍ित‍ि में ही देखना चाहती है।
इसी तरह अराजक स्थ‍ित‍ि बनाए रखने और भ्रम फैलाने वाले बुद्ध‍िजीव‍ियों ने तो सोशल मीड‍िया पर प‍िछले दो द‍िन से ऐसी ऐसी पोस्ट डाली हैं जो नागर‍िकता संशोधन कानून और एनआरसी को एक जैसा ही बता रही हैं और दोनों को ही मुस्ल‍िम व‍िरोधी बताकर दुष्प्रचार कर रही हैं जबक‍ि सत्य तो यह है क‍ि नागर‍िकता संशोधन कानून, इस्लाम‍िक शासन वाले पड़ोसी देशों के धार्म‍िक आधार पर सताए हुए अल्पसंख्यकों को देश में शरण देकर उन्हें नागर‍िकता देने की बात करता है, यह किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है, फिर यह कहां से मुस्ल‍िम व‍िरोधी हो गया। इसी प्रकार एनआरसी देश के हर नागर‍िक की अपनी पहचान को रज‍िस्टर्ड करेगा, यह भी कैसे मुस्ल‍िम व‍िरोधी हुआ। हां, इतना अवश्य है क‍ि नागर‍िकता संशोधन कानून व एनआरसी के बाद देश में अवैध अप्रवास‍ियों की घुसपैठ बंद हो जाएगी। और यही बात इन अराजक तत्वों की परेशानी का कारण है परंंतु ये यह भूल रहे  हैं क‍ि षड्यंत्र क‍ितने भी गहरे हों, उनका भेद खुल ही जाता है। आज नहीं तो कल।