शनिवार, 30 दिसंबर 2023

विनय कटियार का इंटरव्यू: सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद कर ऐसे तैयार हुई राम जन्म भूम‍ि की मुक्त‍ि की पृष्ठभूमि


 विनय कटियार जी द्वारा द‍िए एक इंटरव्यू के अनुसार यह आलेख हम आपके समक्ष दे रहे हैं।    

श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन जब शुरू हुआ था, तब न शक्ति थी और न सामर्थ्य। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, जनसंघ सहित अन्य कई संगठन अलग-अलग नामों से समाज के विभिन्न-विभिन्न वर्गों में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना फैलाने की कोशिश जरूर कर रहे थे। पर, यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि यह कोशिश भारतीय सांस्कृतिक चेतना के आधार पर अपने आराध्य के स्थान की मुक्ति के दुनिया के सबसे बड़े सफल आंदोलन का कारण बनेगी। इसका फल न सिर्फ राष्ट्रीय पुनर्जागरण के रूप में, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक फलक पर भी प्रभाव डालने के बड़े कारक के रूप में सामने आएगा।

सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद

कानपुर में 1984 में संघ का शारीरिक शिक्षा वर्ग लगा था। वर्ग हो जाने के बाद प्रचारक के रूप में काम करने वालों के बीच मैं भी बैठा था। तब तक अलग-अलग तरीके से अयोध्या, मथुरा और काशी के मंदिरों को तोड़कर उन स्थानों को मस्जिद का रूप देने की घटनाएं उद्वेलित करने लगी थीं। मैं इन मुद्दों पर बोलता भी रहता था। संकल्प के अतिरिक्त अपने पास कुछ नहीं था। एक कुर्ता-धोती और कंधे पर झोला, जो हमारा कार्यालय भी था और कोष भी।

इसके अलावा यदि पास में था तो सिर्फ आचार्य तुलसीदास की यह पंक्तियां, प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं। तमाम उतार-चढ़ाव के बाद उस विश्वास की परिणति आखिरकार 5 अगस्त के रूप में सामने आना सुनिश्चित हो गया।

ऐसे तैयार हुई मुक्ति की पृष्ठभूमि
प्रचारकों की औपचारिक बैठक के बाद वरिष्ठ प्रचारक सरसंघचालक बाला साहब देवरस, प्रो. राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया, बालासाहब भाऊराव देवरस, अशोक सिंहल, मोरोपंत पिंगले, हो.वि. शेषाद्रि जैसे लोग अयोध्या को लेकर चर्चा करने लगे। मैंने अयोध्या के साथ मथुरा व काशी की मुक्ति को लेकर भी चर्चा की। पर, इन वरिष्ठ जनों की राय बनी कि काशी और मथुरा में हमारे मंदिर बने हुए हैं। इसलिए पहले अयोध्या को लेते हैं। चूंकि मुझे ही काम करना था तो मैं सबको प्रणाम करते हुए बाहर निकला।

बाहर प्रो. रज्जू भैया से कहा, मैं तो अयोध्या को बहुत जानता नहीं हूं, तो कैसे काम करना है। रज्जू भैया ने कहा, कुछ नहीं सीधे-सीधे मुक्ति की बात करो। मैं अयोध्या आया, महंत रामचंद्र परमहंस से मिला। वे चूंकि इस मामले में वादी थे। बात की तो नाराजगी से बोले, बच्चा मैं इतने दिन से लड़ाई लड़ रहा हूं, अभी तक तो कुछ हुआ नहीं। तू क्या कर लेगा।

हम लोग लौट आए। अगले दिन फिर गए तो उन्होंने फिर नाराजगी जताई। मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा, आप इतिहास बताइए, सब कुछ होगा। तब उन्होंने कहा, हमारी उम्र तो है नहीं। तुम लोगों को करना है तो करो। हमारा समर्थन और आशीर्वाद है। इसके बाद मैं गोरखपुर जाकर महंत अवेद्यनाथ से मिला। परमहंसजी के हां कहने की बात बताई तो बोले, ठीक है शुरू करो। मेरा पूरा सहयोग है।

धीरे-धीरे बनने लगा आंदोलन का माहौल
शुरू में बैठकों में बमुश्किल 20-30 लोग आते, पर जरूरत थी किसी ऐसे शख्स की जो लोगों को प्रेरित कर सके। फिर मैं अशोक सिंहल जी से मिला। उन्होंने ही कानपुर में संभाग प्रचारक रहते मुझे प्रचारक बनाया था। सिंहल जी का दौरा शुरू हो गया। सवाल पैदा हुआ मंदिर पर चल रहे कार्यक्रमों को एकजुट करके राममंदिर पर बड़े जनजागरण का। सिंहल जी के बुलावे पर मैं दिल्ली गया। वहां उन्होंने पश्चिम से दिनेश त्यागी को बुला लिया था। वहीं पर पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना की हम लोगों से मुलाकात कराई और आगे के आंदोलन की रणनीति बनी।

सिंहल जी और खन्ना जी के एक साथ दौरे तय हुए। राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनी। लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में सभा हुई। इसमें मैंने बिना किसी पूर्व घोषणा के तमाम नवयुवकों के हाथ में बजरंग दल की पट्टियां बंधवा दी थी। इसके पहले बजरंग दल को कोई नहीं जानता था। युवाओं को जोड़ने की इस कोशिश को सभी ने सराहा। इसी सभा में प्रदेश के पूर्व डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित भी विहिप में आ गए। फिर महिलाओं के लिए मैंने दुर्गावाहिनी की स्थापना की।

अशोक सिंहल ने संभाला नेतृत्व
आंदोलन का विस्तार हो चुका था और समर्थन भी खूब मिल रहा था। सिंहल जी ने पूरे आंदोलन की कमान संभाली। महंत परमहंस और महंत अवेद्यनाथ सहित तमाम संत-महात्माओं का आशीर्वाद व सहयोग मिलना शुरू हो गया। वरिष्ठ प्रचारक रज्जू भैया और भाऊराव देवरस की व्यक्तिगत रुचि  तथा संघ के समर्थन से संसाधन की समस्याएं दूर होने लगीं। जनजागरण के तमाम कार्यक्रम करते हुए शिला पूजन का कार्यक्रम तय किया गया। नारा दिया गया-आगे बढ़ो जोर से बोलो, जन्मभूमि का ताला खोलो। शिलापूजन के साथ ही एक और नारा दिया गया, अयोध्या तो झांकी है मथुरा-काशी बाकी है। वीर बहादुर मुख्यमंत्री थे। महंत अवेद्यनाथ ने कई बार उनसे बात की, लेकिन कुछ बात नहीं बनीं। अंतत: न्यायालय के आदेश से ताला खुलते हुए आंदोलन आगे बढ़ा और शिलान्यास भी हो गया।

मुलायम सिंह माफी मांगें
कारसेवा की घोषणा हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलवा दीं। राममंदिर आंदोलन के पांच सदी तक चले संघर्ष में लगभग 3.50 लाख लोगों के प्राण गए। आज भी हमारे, आडवाणी जी, जोशी जी, कल्याण सिंह सहित तमाम लोगों पर मुकदमे चल रहे हैं। बजरंग दल पर प्रतिबंध लगा। न्यायाधीश ने बजरंग दल का कार्यालय व कोष पूछा तो मैंने कहा कि मेरा झोला। इसी में सब है। न्यायाधीश मुस्कुराए और अंतत: बजरंग दल प्रतिबंध मुक्त हो गया। इतने बलिदानों के बाद अब रामजी की कृपा से राम मंदिर बनने जा रहा है। पर, मेरा एक आग्रह मुलायम सिंह यादव से जरूर है कि वह भगवान राम के दरबार में आकर माफी मांगने की घोषणा करें, तभी उनका प्रायश्चित होगा। कारण, अब यह सिद्ध हो गया है कि कारसेवक जिस स्थान पर कारसेवा करने जा रहे थे, वह मंदिर ही था।
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बुधवार, 20 दिसंबर 2023

साहित्य अकादमी पुरस्कार 2023 की घोषणा, 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को अवार्ड

नई द‍िल्ली। साहित्य अकादमी ने आज बुधवार को वर्ष 2023 के लिए विभिन्न पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. अकादमी ने उपन्यास श्रेणी में हिंदी के लिए संजीव, अंग्रेजी के लिए नीलम शरण गौर और उर्दू के लिए सादिक नवाब सहर समेत 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.

विजेता के नाम की घोषणा साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के श्रीनिवासराव ने नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित रवींद्र भवन में साहित्य अकादमी मुख्यालय में की. पिछली साल हिंदी भाषम में यह पुरस्कार तुमड़ी के शब्द (कविता-संग्रह) के लिए बद्री नारायण को मिला था, जबकि उर्दू में अनीस अशफाक और अंग्रेजी में अनुराधा रॉय को दिया गया था.

क्यों दिया जाता है साहित्य अकादमी पुरस्कार?
साहित्य अकादमी पुरस्कार साहित्य और भाषा के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए दिया जाता है. इससे भारत की समृद्ध और विविध साहित्यिक विरासत को बढ़ावा और संरक्षण मिलता है. साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता को एक लाख रुपये राशि का नकद पुरस्कार दिया जाता है.

24 भाषाओं के लिए दिया जाता है पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में  शामिल 24 भाषाओं को दिया जाता है. इसमें उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा असमिया, बंगाली, डोगरी , कन्नड़, मराठी और मलयालम जैसे क्षेत्रीय भाषाएं शामिल हैं.

कब हुई थी साहित्य अकादमी की स्थापना?
भारतीय भाषाओं के साहित्य और साहित्यकारों को बढ़ावा देने के लिए 1954 में साहित्य अकादमी की स्थापना की गई थी.  इसके पहले अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. वहीं, राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, अबुल कलाम आजाद,, जाकिर हुसैन, उमाशंकर जोशी, महादेवी वर्मा, और रामधारी सिंह दिनकर इसकी पहली काउंसिल के सदस्य थे.

साहित्य अकादमी पुरस्कार का मकसद भारत की समृद्ध और विविध साहित्यिक विरासत को बढ़ावा देना और उसको संरक्षित रखना है. भारत के बाहर भारतीय साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए अकादेमी दुनिया के विभिन्न देशों के साथ साहित्यिक विनिमय कार्यक्रमों का आयोजन भी करती है.
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रविवार, 17 दिसंबर 2023

आगम शास्त्र की विषय वस्‍तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये, इसका आध्यात्मिकता से क्या है संबंध


 


आगम शास्त्र हमें मन्दिरों की संरचना से लेकर योजना, वास्तुकला तथा पूजा की विधि के बारे में सब कुछ बताते हैं ।  मंदिर बनाने के इस प्राचीन भारतीय विज्ञान के बारे में आज हम आपको बताते हैं, एक ऐसा विज्ञान जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं।

आगम शास्त्र का आध्यात्मिकता से संबंध

आगम शास्त्र कुछ खास तरह के स्थानों के निर्माण का विज्ञान है। बुनियादी रूप में यह अपवित्र को पवित्र में बदलने का विज्ञान है। समय के साथ इसमें काफी-कुछ निरर्थक जोड़ दिया गया लेकिन इसकी विषय वस्‍तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये।

यह एक अत्यंत गूढ़ विज्ञान है लेकिन लोगों ने अपनी-अपनी सोच के अनुसार इसका अकसर गलत अर्थ निकाल लिया या फिर और बढ़ा-चढ़ा कर बखान किया। समय के साथ यह इतना अधिक होता गया कि आज आगम शास्त्र एक बेतुकी और हास्यास्पद प्रक्रिया बन कर रह गया है। कोई काम किसी खास तरीके से ही क्यों किया जा रहा है यह जाने बिना लोग बेवकूफी भरे काम कर रहे हैं। लेकिन सही ढंग से किये जाने पर यह एक ऐसी टेक्नालॉजी है जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं, जिसको हम ईश्वर कहते हैं।

भारत में बहुत सारे मंदिर हैं। मंदिर कभी भी केवल प्रार्थना के स्थान नहीं रहे, वे हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। आपसे यह कभी नहीं कहा गया कि मंदिर जा कर पूजा-अर्चना करें, यह कभी नहीं कहा गया कि ईश्वर के आगे सिर झुकाकर उनसे कुछ याचना करें। आपसे यह कहा गया कि जब भी आप किसी मंदिर में जायें तो वहां कुछ समय के लिए  बैठें जरूर। पर आजकल लोग पल भर को बैठे नहीं कि उठ कर चल देते हैं। बैठने का मतलब यह नहीं है। मकसद यह है कि आप वहां बैठ कर ऊर्जा ग्रहण करें, अपने भीतर समेट लें, क्योंकि यह पूजा-अर्चना का स्थान नहीं है। यह वह स्थान नहीं है जहां आप यकीन करें कि कुछ अनहोनी घट जाएगी या जहां किसी व्यक्ति की अगुवाई में आप दूसरों के साथ मिल कर प्रार्थना करेंगे। यह केवल एक ऊर्जा-केंद्र है जहां आप कई स्तरों पर ऊर्जा प्राप्त कर सकेंगे। चूंकि आप खुद कई तरह की ऊर्जाओं का एक जटिल संगम हैं इसलिए हर तरह के लोगों को ध्यान मे रखते हुए कई तरह के मंदिरों का एक जटिल समूह बनाया गया। एक व्यक्ति की कई तरह की जरूरतें होती हैं जिसे देखते हुए तरह-तरह के मंदिर बनाए गये।

उदाहरण के लिए केदारनाथ एक बहुत शक्तिशाली स्थान है, इस स्थान की ऊर्जा काफी आध्यात्मिक तरह की है परंतु केदारनाथ के रास्ते में तंत्र-मंत्र की विद्या से संबंधित भी एक मंदिर है,  किसी ने यहां पर एक छोटा मगर बहुत शक्तिशाली स्थान  बनाया है। यदि किसी व्यक्ति को तंत्र-विद्या के ऊपर काम करना है तो वे इस छोटे-से मंदिर में जाते हैं क्योंकि यहां का वातावरण केदार मंदिर की अपेक्षा ऐसे काम के लिए अधिक सटीक होता है।

आपको आध्यात्मिकता और तंत्र-विद्या के अंतर को समझना होगा। तंत्र-मंत्र एक तरह से एक टेक्नॉलॉजी है, भौतिक ऊर्जाओं के साथ काम करने की टेक्नॉलॉजी। 
आगम शास्त्र एक गूढ़ और जटिल टेक्नॉलॉजी है, जो इसी दायरे की है लेकिन बहुत चमत्कारिक है। हालांक‍ि आध्यात्मिकता की प्रक्रिया इस दायरे की नहीं है। यह वह नहीं है जो आप करते हैं, यह वह है जो आप हो जाते हैं। यह आपके अस्तित्व के वर्तमान अवस्था का परम अवस्था की तरफ बढ़ जाना है। 

आगम में आपकी अवस्था नहीं बदलती है, यह आपके वर्तमान अस्तित्व के बारे में ही आपको एक बेहतर जानकारी देता है। आगम शास्‍त्र महज टेक्नॉलॉजी है। आध्यात्मिकता टेक्नॉलॉजी नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ अपनी चारदीवारियों के पार जाना है। आध्यात्मिकता वह नहीं है जिसको नियंत्रण में ले कर आप कुछ करते हैं,  यह वह है जो आप स्वयं हो जाते हैं। यह बहुत अलग है।

- अलकनंदा स‍िंंह 

सोमवार, 20 नवंबर 2023

बीज मंत्र... वो छोटे मंत्र जो ब्रह्मांड निर्माण के समय ध्वनि तरंगों से पैदा हुए


 बीज मंत्र बहुत शक्तिशाली मंत्र है जिनका उपयोग हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के आह्वान के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह छोटे मंत्र ब्रह्मांड के निर्माण के दौरान बनाई गई ध्वनि तरंगों से पैदा हुए थे। इनमें से प्रत्येक मंत्र एक अर्थ से जुड़ा हुआ है। 

प्रत्येक बीज मंत्र के जाप के दौरान जो ध्वनि आवृत्ति बनती है, वह देवी का आह्वान करने का काम करती है। उनकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को शरीर में प्रवाहित करने में मदद करती है। यदि कोई दिव्य आकृतियों की शक्तियों को प्राप्त करने का इरादा रखता है, इन मंत्रों का जाप लगातार इस संदर्भ में चमत्कारी काम करता है। 

वास्तव में प्रत्येक देवता को समर्पित मंत्रों का जाप करना और उनमें बीज मंत्र जोड़ना, यह देवी-देवताओं को अधिक प्रसन्न करता है। इन बीज मंत्रों में शक्ति होती है। ये शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखते हैं।

बीज मंत्र एकल या मिश्रित शब्द होते हैं, जहां शक्ति शब्द की ध्वनि में निहित होती है।

बीज मंत्र कैसे मदद करते हैं 

बीज मंत्र जाप के दौरान बोले जाने वाले प्रत्येक शब्द का एक महत्वपूर्ण अर्थ होता है, क्योंकि यह मंत्र की नींव बीज की तरह होती है। लेकिन शब्दों या ध्वनि को तोड़कर सरल और समझने योग्य भाषा में बदलना सही नहीं है। इन मंत्रों के पीछे के विज्ञान को समझने में काफी समय लग सकता है, फिर भी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाते हैं। ये प्राकृतिक रूप से प्रकट हुए हैं। इसके बाद ऋषियों द्वारा उनके छात्रों तक पहुंचा और अंत में शेष दुनिया में इसका प्रसारा हुआ। समय के साथ इन मंत्रों ने अपना स्थान बना लिया है। कई अलग-अलग बीज मंत्र हैं, जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। लेकिन ऐसे बीज मंत्र भी मौजूद हैं, जो विभिन्न ग्रहों को समर्पित हैं, जिनके उपयोग से उस ग्रह को शांत किया जा सकता है, जो व्यक्ति विशेष की कुंडली में गड़बड़ी का कारण बन रहा हो या खुद को ग्रह के अशुभ प्रभावों से बचाना हो।

ये बीज मंत्र अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी हैं। जब दृढ़ विश्वास और पवित्र मन से इनका जाप किया जाता है, तो जातक की कोई भी इच्छा पूरी हो जाती है। इस मंत्र का जाप करने के लिए मन का स्थिर एवं शांत होना जरूरी है। शांत मन और ध्यान केंद्रित करने के लिए निरंतर "ओम" मंत्र का उच्चारण किया जा सकता है। इसके बाद विशिष्ट बीज मंत्र का जाप शुरू करना चाहिए। मंत्र को एक समान "ओम" से समाप्त करने से मंत्र पूरे चक्र में आ जाता है।

बीज मंत्रों का जाप कैसे करें 

कहते हैं तन स्वच्छ तो मन स्वच्छ। इसलिए जब भी बीज मंत्रों के जाप की शुरुआत करें, तो उससे पहले स्नान कर लें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।

सुबह-सुबह इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यदि किसी कारणवश आप मंत्र जाप करने से पहले स्नान नहीं कर सकते हैं तो खुद पर पानी की कुछ बूंदें छिड़कें। इसके बाद सफ मन से मंत्र जाप शुरू करें।

मंत्र जाप करने के लिए मन शांत होना चाहिए। शांत मन के लिए ध्यान केंद्रित करना होता। इसलिए जब भी मंत्र जाप करें, एक शांत और खाली स्थान पर बैठें। मंत्र जाप के लिए हमेशा ऐसा स्थान चुनें, जहां कोई मौजूद न हो और कोई भी आपको 30 से 40 मिनट तक परेशान न करे। समय सीमा आप अपने हिसाब से निर्धारित कर सकते हैं।
शब्द और उच्चारण बीज मंत्रों की शक्ति को उजागर करने की कुंजी हैं। हर शब्दांश का स्पष्ट रूप से बहुत दृढ़ संकल्प के साथ उच्चारण करने का प्रयास करें। बीज मंत्रों का जाप करने के सही तरीके पर मार्गदर्शन करने के लिए आप गुरु की मदद ले सकते हैं।
यदि लंबे समयवधि तक मंत्र जाप करने के बावजूद कोई अच्छा परिणाम न मिले, तो हार न मानें। ध्यान रखें कि हर मंत्र को काम करने में समय लगता है। इस प्रक्रिया और स्वयं पर संदेह न करें। खुद पर विश्वास रखें। अगर आपने साफ मन से मंत्रों का जाप किया है, तो अंतिम रूप से अच्छे परिणाम जरूर मिलेंगे। बस थोड़ा सा धैर्य बनाए रखें।
सर्वोत्तम परिणाम देखने के लिए दिन में कम से कम 108 बार मंत्र का जप करें।
आप मंत्राें का उच्चारण करने से पहले खुद को ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। ध्यान आपको शांति प्राप्त करने में मदद करता है। साथ ही ध्यान करने की वजह से तनाव दूर होता है और आत्मा स्थिर होती है।

महत्वपूर्ण बीज मंत्र 
मूल बीज मंत्र "ओम" है। यह वह मंत्र है, जिससे अन्य सभी मंत्रों का जन्म हुआ है। प्रत्येक बीज मंत्र से एक विशिष्ट देवी-देवता जुड़े हुए हैं। बीज मंत्र के प्रकार हैं- योग बीज मंत्र, तेजो बीज मंत्र, शांति बीज मंत्र और रक्षा बीज मंत्र।

ह्रौं
यह शिव बीज मंत्र है। यहां "ह्र" का अर्थ शिव और "औं" का अर्थ सदाशिव है। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव को ध्यान में रखकर ही इस मंत्र का जाप करें।

दूं
यह मंत्र देवी दुर्गा को समर्पित है। उनका आशीर्वाद और उनसे सुरक्षा प्राप्त करने के लिए इसका जाप किया जाता है। "द’’ का मतलब दुर्गा और "ऊ" का मतलब सुरक्षा है। यहां बिन्दु क्रिया (प्रार्थना) है। यह मंत्र देवी दुर्गा की ब्रह्मांड की मां के रूप में स्तुति करता है।

क्रीं
यह मंत्र मां काली को समर्पित है। इस मंत्र में विशेष शक्तियां हैं, जो माता पार्वती के अवतारों में से एक मां काली को प्रसन्न करती है। यहां "क" का अर्थ है मां काली, "र" ब्रह्म है और "ई" महामाया है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है कि महामाया मां काली मेरे दुखों का हरण करो।

गं
यह बहुत ही शुभ मंत्र है। यह बीज मंत्र भगवान गणेश से संबंधित है। "ग" गणपति के लिए उपयोग किया गया है और बिंदु दुख का उन्मूलन है अर्थात श्री गणेश मेरे दुखों को दूर करो।

ग्लौं
यह भी गणेश के बीज मंत्रों में से एक मंत्र है। यह मंत्र भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए है। इसमें "ग" स्वयं भगवान गणेश हैं, "ल" का अर्थ है व्याप्त है और "औं" का अर्थ है प्रतिभा।

ह्रीं
यह देवी महामाया बीज मंत्र है, जिसे ब्रह्मांड की माता भुवनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां "ह" का अर्थ है शिव, "र" प्रकृति है और "ई" महामाया और ‘बिंदु’ दुख हर्ता है। इस मंत्र को दुर्भाग्य को दूर करने के लिए सहायक माना जाता है।

श्रीं
यह लक्ष्मी बीज मंत्र है। इस मंत्र को धन प्राप्ति के लिए जप किया जाता है। इस मंत्र में "श्र" महालक्ष्मी के लिए है, "र" धन के लिए है और "ई" पूर्ति के लिए है। जब कोई धन और समृद्धि के लिए महालक्ष्मी को जगाने की कोशिश कर रहा हो, तो उसे इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह बीज मंत्र बहुत फायदेमंद है।

ऐं
इस बीज मंत्र से मां सरस्वती का आविर्भाव होता है। अगर कोई ज्ञान और शिक्षा के लिए प्रार्थना करना चाहता है, तो यह बीज मंत्र आवश्यक है। मां सरस्वती शिक्षा, ज्ञान, संगीत और कला की देवी हैं। यहां "ऐं" का अर्थ है, हे मां सरस्वती।

क्लीं
यह बीज मंत्र भगवान कामदेव के लिए है। वह प्रेम और इच्छा के देवता हैं। इस बीज मंत्र के जरिए कामदेव की प्रार्थना की जाती है। यहाँ "क" का अर्थ कामदेव है, "ल" इंद्र देव के लिए है और "ई" संतुष्टि के लिए है।

हूं
यह शक्तिशाली बीज मंत्र भगवान भैरव से जुड़ा है। भगवान भैरव, भगवान शिव के उग्र रूपों में से एक हैं। इस मंत्र में "ह" भगवान शिव है और "ऊं" भैरव के लिए है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है, हे शिव मेरे दुखों को नाश करो।

श्रौं
भगवान विष्णु के रूपों में से एक भगवान नृसिंह इस शक्तिशाली बीज मंत्र से उत्पन्न होते हैं। "क्ष" नृसिंह के लिए है, "र" ब्रह्म हैं, "औ" का अर्थ है ऊपर की ओर इशारा करते हुए दांत और "बिंदु" का अर्थ है दुख हरण। इस मंत्र के माध्यम से ब्रह्मस्वरूप नृसिंह से प्रार्थना की जा रही है कि हे भगवान मेरे दुखों को दूर करो।

- अलकनंदा स‍िंंह 

https://www.legendnews.in/single-post?s=beej-mantras-those-small-mantras-that-were-born-from-the-sound-waves-created-during-the-creation-of-the-universe-12815 

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

सामाजि‍क व्यवस्थाओं के साथ ख‍िलवाड़ है समलैंगिक विवाह की बात


 समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्‍यता देने की याचिका कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है. इस पीठ के 5 में से 4 जजों ने बारी-बारी से अपना फैसला सुनाया. सबसे पहले CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में समलैंगिकों को शादी का अधिकार देने की बात पर जोर दिया.  इसके अलावा उन्‍होंने समलैंगिकों के साथ होने वाले भेदभाव को दूर करने को लेकर निर्देश भी जारी किये.

सुप्रीम कोर्ट बेंच के चारों जजों के फैसलों का लब्‍बोलुआब

- किसी भी तरह का कानून बनाने का अधिकार संसद का है, इसलिए समलैंगिक विवाह पर कानून बनाने के लिए भी वहीं विचार होना चाहिए. - सॉलिटर जनरल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि य‍दि जरूरी हुआ तो संसद इस बारे में एक उच्‍चस्‍तरीय समिति बनाकर विचार करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील के प्रति सहमति दिखाई. - भारतीय संविधान में शादी का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन रिलेशनशिप को मान्‍यता दी गई है. इसलिए यदि कोई समलैंगिक जोड़ा अपने रिश्‍ते को किसी भी प्रकार से प्रकट करने के लिए स्‍वतंत्र है.

- बच्‍चा गोद लेने के अधिकार को लेकर CJI और जस्टिस भट्ट के बीच काफी मतांतर दिखा. CJI इसके पक्ष में थे, जबकि जस्टिस भट्ट ने इसका विरोध किया (जस्टिस भट्ट ने इसकी वजह को पढ़ने से मना कर दिया). - समलैंगिक विवाद को कानूनी मान्‍यता देने से महिलाओं पर इसके दुष्‍प्रभाव पड़ने की बात रेखांकित हुई. जस्टिस भट्ट ने कहा कि अभी घरेलू हिंसा और दहेज से जुड़े कानूनों में महिला के रूप में पत्‍नी को काफी अधिकार हैं, जो खतरे में पड़ सकते हैं. 

- समलैंगिकों के साथ किसी भी तरह के भेदभाव को दूर करने के मुद्दे पर सभी जस्टिस एकमत थे. और  CJI चंद्रचूड़ ने इसके लिए विस्‍तृत दिशा निर्देश जारी किये. 

अब बात आती है क‍ि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में गे राइट्स विशेषकर शादी के अधिकारों को लेकर विरोध क्यों कर रही थी? अगर विरोध कर रही थी तो उसके तर्क क्या थे? और उन तर्कों के आधार पर यदि समाज के पड़ने वाले प्रभाव को देखा जाए तो किस उथल-पुथल की आशंका जताई गई थी. 

पति और पत्नी के अलग-अलग राइट्स हैं, पर कैसे पता चलेगा, कौन पति-कौन पत्नी?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कुछ पॉइंट्स ऐसे रखे थे जो निश्चित तौर पर समाज में बड़े पैमाने पर समस्या का कारण बन सकते हैं. दरअसल सेम सेक्स मैरिज में यह समझना कठिन होगा कि कौन पति है तो कौन पत्नी है. इसलिए बहुत से ऐसे कानून जो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गएं हैं उनपर एक्शन कैसे होगा यह सरकार के लिए चिंता का विषय है. जैसे सेम सेक्स मैरिज के बाद अगर तलाक की नौबत आती है तो कानून कैसे काम करेगा? 

विशेष वर्ग में तलाक का कानून भी सभी लोगों के लिए एक बन सकता है? ट्रांस मैरिज में पत्नी कौन होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? इसका दूरगामी प्रभाव होगा. अभी जो कानून प्रचलन में है उसमें पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा? कैसे निर्धारित होगा कौन पति है कौन पत्नी है? 

महिलाओं के अधिकारों की चर्चा करते हुए मेहता कहते रहे कि दहेज हत्या या घरेलू हिंसा के मामले जटिल हो जाएंगे.  'अगर कानून में पति या पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए, तो महिलाओं को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार न करने के प्रावधान कैसे लागू होंगे?'  

अनैतिक संबंधों में छूट की होगी डिमांड 
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक बहुत सेंसिटिव मुद्दे को उठाया था.  उन्होंने सेम सेक्स मैरिज को मौलिक अधिकार बताए जाने को बेहद जटिल बताया था. मेहता ने कहा था कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता के दावे को मौलिक अधिकार समझकर अगर सही माना जाए तो भविष्य में और बहुत से नैसर्गिक अधिकारों की डिमांड शुरू हो जाएगी.समाज में नजदीकी वर्जित संबंध जैसे नियम परंपराएं मानव समाज की ही बनाई हुई हैं. मेहता कहते हैं कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन और पसंद के अधिकार के दावे शुरू हो सकते हैं.  दरअसल पसंद के अधिकार और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के मामले को याचिकाकर्ता ने उठाया है और सेम सेक्स में इसी आधार पर शादी की मान्यता की गुहार लगाई है.  मेहता का कहना है कि इसी आधार पर आने वाले समय में तो वर्जित संबंधों में रिलेशनशिप के मामलों को पसंद का मामला बताया जाएगा.  और सेक्सुअल ओरिएंटेशन का मामला बताकर राइट्स की मांग की जाएगी.

समाज सुधार का हक समाज को है 
देश में समाज सुधार का इतिहास बहुत पुराना है. सती प्रथा और विधवा विवाह के लिए बंगाल में जबरदस्त अभियान चला. बाल विवाह की उम्र बढ़ाने की बात हो या कोई बड़े सामाजिक बदलाव लाने वाले हर कदम पर बड़े पैमाने पर समाज में बहस हुई है. विधवा पुनर्विवाह के मुद्दे पर बंगाल में खूब बवाल हुआ था. महिलाओं की शादी की उम्र घटाने और एज ऑफ कंसेंट बिल को लेकर बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले अलग-अलग खेमों में बंट गए.  बंगाल में राधाकांत देब और महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो और महात्मा गांधी चाहते थे कि विदेशी शासक भारत की जनता के प्रतिनिधि नहीं हैं और हिंदू रीति-रिवाजों के बारे में कानून बनाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए.  

इनका कहना था कि बुद्ध, आदि शंकराचार्य, गुरु नानक और ज्योतिबा फुले जैसे महान समाज सुधारकों ने अपने संदेश समाज सुधार का आगे बढ़ाया. 

समलैंगिकों की शादी को कानूनी दर्जा देने के बारे में देश में सार्वजनिक बहस कराने के लिए कोई खास कोशिश होती नहीं दिखी. LGBTQIA++ कम्युनिटी भले ही इस पर चर्चा कर रही हो, लेकिन प्रस्तावित बदलावों से जिस तरह का बड़ा असर पड़ने वाला है, उसे देखते हुए कोई बड़ी सामाजिक बहस होती चाहिए थी. जो भी चर्चा है, वह दिल्ली की कानूनी बिरादरी के एक छोटे से तबके में और इंग्लिश मीडिया में दिख रही है. भारत लोकतांत्रिक संविधान से चलता है, ऐसे में यह मानना कि इंडियन स्टेट सेम सेक्स मैरिज जैसे विषय पर फैसला करने लायक नहीं है, एक मजाक ही है. 

मनचले लोगों को बहाना मिल जाएगा 

समाज में ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है जिनका सेक्सुअल ओरिएंटेशन कुछ समय बाद बदल जाया करता है.  तमाम राजा महाराजाओं, मुगल शासकों का इतिहास बताता है कि इन्होंने शादी भी की , उनसे बच्चे भी हुए और इनके संबंध सेम सेक्स वाले से भी रहे. बॉलीवुड हो या भारतीय राजनीति , बिजनेस वर्ल्ड हो या फैशन संसार  हर जगह इस तरह के किस्से आम हैं. बीस साल सफल वैवाहिक जीवन के बाद अगर किसी का सेक्सुअल ओरिएंटेशन बदलता है तो इसे क्या कहा जाएगा?  सेक्सुअल ओरिएंटेशन बदलने की घटनाएं बड़े लोगों में ही नहीं छोटे कस्बों और गांवों में भी देखने की मिलती है.यहां बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो दोनों तरह के संबंधों में हैं. इनमें महिलाएं और पुरुष दोनों ही शामिल हैं. तमाम ऐसी महिलाएं हैं जिनके कई बच्चे होने के बाद वो सेम सेक्स रिलेशनशिप में है.  

कानून बनाने से पहले जनता को ये फैसला करने की सुविधा देनी होगी जिससे पता लगाया जा सके कि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से विपरीत लिंग के साथ आकर्षित है या सेम सेक्स के लिय़े. इस तरह का कानूनी अधिकार मिलने से निश्चित रूप से अरबन इलीट को ही फायदा मिलने वाला है. 

- अलकनंदा स‍िंंह

 


शनिवार, 7 अक्तूबर 2023

गुरु गोबिंद सिंह को क्यों पसंद थी चंडी देवी की कहानी?

7 अक्तूबर 1708 को आधी रात के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने सिर्फ़ 42 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

 गुरु गोबिंद सिंह सिर्फ़ नौ साल के थे जब उनके पिता गुरु तेग बहादुर का कटा हुआ सिर अंतिम संस्कार के लिए आनंदपुर साहब लाया गया था.

उनके पिता की शहादत ने जीवन भर उनके नज़रिए को प्रभावित किया.
इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह की छवि एक लंबे छरहरे, बेहतरीन कपड़े पहनने वाले और कई तरह के हथियारों से सुसज्जित रहने वाले शख़्स की है.
तस्वीरों में उनके बाएं हाथ पर हमेशा एक सफ़ेद बाज़ और पगड़ी में एक कलगी लगी दिखाई जाती है. 19 साल की उम्र तक उन्होंने अपने-आप को आने वाले समय के लिए तैयार किया. 
खुशवंत सिंह अपनी मशहूर किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ़ द सिख्स’ में लिखते हैं, "इस बीच उनको संस्कृत और फ़ारसी पढ़ाई गई. हिंदी और पंजाबी उन्हें पहले से ही आती थी. उन्होंने घुड़सवारी करना और बंदूक चलाना भी सीखा. उन्होंने चार भाषाओं में कविताएं लिखना शुरू कर दिया. कभी-कभी वो एक ही कविता में चारों भाषाओं का इस्तेमाल करते.” 
खुशवंत सिंह ने लिखा है, “उन्होंने हिंदू धर्मशास्त्र की कई कहानियों को अपने शब्दों में लिखा. उनकी पसंदीदा कहानी चंडी देवी की थी जो राक्षसों का विनाश करती थी. उनके बारे में मशहूर था कि उनके तीरों की नोक सोने की बनी होती थी ताकि मरने वाले के परिवार का ख़र्च उसको बेचकर चल सके.” 
गुरु गोबिंद सिंह की पहली जीत 
गुरु गोबिंद सिंह को पहली चुनौती उनके पड़ोसी पहाड़ी राज्य बिलासपुर के राजा भीम चंद से मिली. भीम चंद को गुरु गोबिंद सिंह का लोगों के बीच लोकप्रिय होना नागवार गुज़रा. 
राजा इसलिए भी नाराज़ हो गया था क्योंकि एक बार गुरु ने उन्हें अपना हाथी देने से इंकार कर दिया था. उन्होंने आनंदपुर पर हमला कर दिया जिसमें उनकी हार हुई.
पतवंत सिंह अपनी किताब ‘द सिख्स’ में लिखते हैं, “सिख धर्म में सभी जातियों को समान महत्व दिया गया था लिहाज़ा ऊँची जाति के सामंतवादी सोच रखने वाले लोगों से उनका टकराव लाज़िमी था. पड़ोसी राज्यों के सरदारों को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी क्योंकि आने वाले समय में जनतांत्रिक सिख मूल्य उनके सामंतवादी अधिकारों के लिए ख़तरा साबित हो सकते थे.”
सन 1685 में गुरु गोबिंद सिंह ने पड़ोसी सिरमौर राज्य के राजा मेदिनी प्रकाश की मेज़बानी कबूल कर ली. वो वहाँ तीन सालों तक रहे. इसके बाद उन्होंने अपने रहने के लिए यमुना नदी के किनारे एक जगह चुनी जिसका नाम था पंवटा. यहीं उनके सबसे बड़े बेटे अजीत सिंह का जन्म हुआ.
यहां उनको एक बार फिर लड़ाई का सामना करना पड़ा. इस बार भीम चंद और फ़तेह शाह की संयुक्त सेना ने उन पर हमला किया. ये लड़ाई पंवटा से छह मील दूर भंगानी में हुई. इस लड़ाई में भी इन राजाओं की हार हुई और लोगों को पता चल गया कि गोबिंद सिंह कितने ताक़तवर हैं. 
खालसा की स्थापना
सन 1699 की शुरुआत में उन्होंने सभी सिखों को संदेश दिया कि वे बैसाखी के मौके पर आनंदपुर में जमा हों. भीड़ के सामने ही उन्होंने अपनी म्यान से तलवार निकाली और ऐलान किया कि ऐसे पाँच लोग सामने आएं जो धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर सकते हों.
पतवंत सिंह लिखते हैं, “सबसे पहले लाहौर के दयाराम आगे आए. गुरु उनको बगल के एक तंबू में ले गए. उनके बाद हस्तिनापुर के धरमदास, द्वारका के मोहकम चंद, जगन्नाथ के हिम्मत और बीदर के साहिब चंद आगे आए.”
तंबू के बाहर जनता उत्सुकता से उनके बाहर आने का इंतज़ार करती रही, गुरु की तलवार से ख़ून टपकता देख लोगों को लगा कि उन्हें मार दिया गया है.
पतवंत सिंह लिखते हैं, “थोड़ी देर बाद गुरु गोबिंद सिंह इन पाँचों लोगों के साथ बाहर आए. इन पाँचों ने केसरिया रंग के कपड़े और पगड़ी पहनी हुई थी. तब जाकर वहाँ मौजूद लोगों को अहसास हुआ कि गुरु ने उनको मारा नहीं था. वो उनके साहस की परीक्षा ले रहे थे. गुरु ने इन पाँचों लोगों को ‘पंजप्यारे’ का नाम दिया.” 
उन्होंने एक कड़ाहे में जल भरकर उसमें शक्कर डाल कर अपनी कृपाण से मिलाया और उन पाँचों लोगों को एक कटोरे में पीने को दिया. ये पाँचों लोग अलग-अलग हिंदू जातियों के थे.
इसका सांकेतिक अर्थ ये था कि इस जल को पीकर वो जाति विहीन खालसा के सदस्य हो गए हैं. उन सबके हिंदू नाम बदलकर उन्हें उपनाम ‘सिंह’ दिया गया. 
केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण
खालसा के लिए पाँच नियम बनाए गए जिनका पहला शब्द ‘क’ से शुरू होता था, इसलिए इन्हें पंचकार कहा गया- केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण.
खुशवंत सिंह लिखते हैं, “उनसे कहा गया कि वो अपने बाल और दाढ़ी न कटवाएँ, उनको एक कंघा रखने की हिदायत दी गई ताकि वो अपने बालों को व्यवस्थित रख सकें. उनको घुटने तक का कपड़ा पहनने के लिए कहा गया जो कि उस ज़माने के सैनिक पहनते थे. उनके लिए दाएं हाथ में लोहे का मोटा कड़ा पहनना अनिवार्य कर दिया गया, और उनको हमेशा अपने साथ एक कृपाण रखने के लिए कहा गया.”
इसके अलावा उनके धूम्रपान करने, तम्बाकू खाने और शराब पीने पर रोक लगा दी गई. उनसे ये भी कहा गया कि वो मुस्लिम महिलाओं का सम्मान करेंगे. अंत में उन्होंने नए तरह के अभिवादन की शुरुआत की, वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरु जी की फ़तह. 
औरंगज़ेब के साथ पत्राचार
सन 1701 से 1704 के बीच सिखों और पहाड़ी राजाओं के बीच झड़पें होती रहीं. आखिर बिलासपुर के राजा भीम चंद के बेटे और वारिस अजमेर चंद ने दक्षिण जाकर औरंगज़ेब से मुलाक़ात की और गुरु गोबिंद सिंह को रास्ते से हटाने के लिए मदद माँगी.
औरंगज़ेब ने गुरु को एक पत्र भेजा जिसमें लिखा, “आपका और मेरा धर्म एक ईश्वर में यकीन करता है. हम दोनों के बीच ग़लतफ़हमी क्यों होनी चाहिए? आपके पास मेरी प्रभुसत्ता मानने के अलावा कोई चारा नहीं है जो मुझे अल्लाह ने दी है. अगर आपको कोई शिकायत है तो मेरे पास आइए. मैं आपके साथ एक धार्मिक व्यक्ति की तरह बर्ताव करूँगा. लेकिन मेरी सत्ता को चुनौती मत दें वर्ना मैं खुद हमले का नेतृत्व करूँगा.”
इसका जवाब देते हुए गुरु गोबिंद सिंह ने लिखा, “दुनिया में सिर्फ़ एक सर्वशक्तिमान ईश्वर है जिसके मैं और आप दोनों आश्रित हैं. लेकिन आप इसको नहीं मानते और उन लोगों के प्रति भेदभाव करते हैं, उन्हें नुक़सान पहुंचाने की कोशिश करते हैं जिनका धर्म आपसे अलग है. ईश्वर ने मुझे न्याय बहाल करने के लिए इस दुनिया में भेजा है. हमारे बीच शांति कैसे हो सकती है जब मेरे और आपके रास्ते अलग हैं.” 
इसके बाद औरंगज़ेब ने दिल्ली, सरहिंद और लाहौर के अपने गवर्नरों को आदेश दिए कि गुरु पर नियंत्रण करने के लिए अपने सारे सैनिकों को लगा दें.
आदेश में कहा गया कि पहाड़ी राजाओं के सैनिक भी मुगल सेना के साथ लड़ेंगे और गुरु को औरंगज़ेब के सामने पेश करेंगे. 
गुरु गोबिंद सिंह ने की लड़ाई की पूरी तैयारी
तय हुआ कि सरहिंद के गवर्नर वज़ीर ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल और पहाड़ी राजाओं की सेना आनंदपुर की तरफ़ कूच करेंगी. ये सुनते ही गुरु गोबिंद सिंह ने भाई मुखिया और भाई परसा को हुकुमनामा जारी कर घुड़सवारों, पैदल सैनिकों और साहसी युवाओं के साथ आनंदपुर पहुंचने के लिए कहा.
कुरुक्षेत्र के मेले और अफ़ग़ानिस्तान से घोड़ों का इंतज़ाम किया गया. सिपहसालारों ने सेना को चाक-चौबंद करने और खासतौर पर नए रंगरूटों को प्रशिक्षण देने, लड़ाई के लिए योजना बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी.
हर सैनिक ठिकाने में पर्याप्त व्यवस्था की गई ताकि संभावित घेराव से होने वाली मुश्किलों का सामना किया जा सके. 
किले के अंदर रह कर लड़ने का फ़ैसला
गुरु ने अपनी सेना को छह भागों में विभाजित किया. पाँच टुकड़ियों को पाँच किलों की रक्षा की ज़िम्मेदारी दी गई और छठी टुकड़ी को रिज़र्व के तौर पर रखा गया.
गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदगढ़ की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली. फ़तेहगढ़ की रक्षा की ज़िम्मेदारी उदय सिंह को मिली. मक्खन सिंह को नालागढ़ का कमांडर बनाया गया.
गुरु के सबसे बड़े बेटे अजीत सिंह को केशगढ़ का इंचार्ज बनाया गया जबकि उनके छोटे भाई जुझार को लोहगढ़ की सुरक्षा का भार दिया गया.
अमरदीप दहिया गुरु गोबिंद सिंह की जीवनी ‘फ़ाउंडर ऑफ़ द खालसा’ में लिखते हैं, “गुरु ने अपने सभी जनरलों को बता दिया कि मुग़ल सेना के संख्या में अधिक होने के कारण उनसे खुले में लड़ाई लड़ना अक्लमंदी नहीं होगी. बेहतर रणनीति ये होगी कि हम अपने किलों के अंदर रह कर उनसे लड़ें.”
मुग़ल सेनाओं ने समुद्र की लहरों की तरह गुरु गोबिंद सिंह की सेना पर हमला किया.
मैक्स आर्थर मौकॉलिफ़ अपनी किताब ‘द सिख रिलीजन’ में लिखते हैं, “पाँचों किलों से सिख तोपचियों ने उस इलाके को अपना निशाना बनाया जहाँ बहुत अधिक संख्या में मुग़ल सैनिक मौजूद थे. मुगल सैनिक खुले में लड़ रहे थे इसलिए सिख सैनिकों के मुक़ाबले उनका अधिक नुकसान हुआ. इसे देखते ही उदय सिंह और दया सिंह के नेतृत्व में सिख सैनिक किले से बाहर निकल आए और मुगल सैनिकों पर टूट पड़े. मुगलों के दो सिपहसालार वज़ीर ख़ाँ और ज़बरदस्त ख़ाँ ये देखकर दंग रह गए कि किस तरह उनकी फ़ौज़ से कहीं छोटी फ़ौज उनका इतना नुक़सान कर रही है.” 
गुरु गोबिंद सिंह का किला घिरा
पहले दिन की लड़ाई की समाप्ति पर किलों की दीवारों के बाहर करीब 900 मुग़ल सैनिकों के शव पड़े हुए थे. अगले दिन गुरु गोबिंद सिंह ख़ुद लड़ाई में शामिल हो गए.
अमरदीप दहिया लिखते हैं, “गुरु अपने मशहूर घोड़े पर सवार थे. उनके घोड़े की ज़ीन सुनहरे तारों से कढ़ी हुई थी. उनका धनुष चमकीले हरे रंग से रंगा हुआ था और उनके साफ़े पर जवाहरातों से जड़ी कलगी सुबह के सूरज में चमक रही थी. गुरु के लड़ाई में भाग लेने से प्रेरित होकर उनके सैनिक भी आगे जाकर मुग़लों से टक्कर ले रहे थे. राजा अजमेर चंद ने लड़ते हुए गुरु को पहचान लिया . तब वज़ीर ख़ाँ और ज़बरदस्त ख़ाँ ने वहीं ऐलान किया कि जो भी गुरु पर वार करेगा उसे बड़ा ईनाम दिया जाएगा.”
दूसरे दिन की लड़ाई की समाप्ति पर किले में दाखिल होने से पहले गुरु और उनके सैनिकों ने भारी तबाही मचाई थी. इसमें सैकड़ों घोड़े और मुगल सैनिक मारे गए थे. राजाओं और मुग़ल सैनिकों के बीच हुई बैठक में दोनों ने एक दूसरे पर पूरी ताकत से न लड़ने का आरोप लगाया.
मुग़लों को लग गया कि सिख सैनिकों को हराने का एकमात्र उपाय है कि उनके किलों की घेराबंदी कर उनको बाहरी दुनिया से पूरी तरह काट दिया जाए ताकि अनाज न पहुंचने के कारण भूख से परेशान होकर वो मुग़लों की अधीनता मान लें.
तय किया गया कि अब गुरु गोबिंद सिंह के सैनिकों पर हमला नहीं किया जाएगा बल्कि उनके किलों को चारों तरफ़ से घेर लिया जाएगा. उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि वो सिख सैनिकों के हथियारों की पहुंच से बाहर रहें. 
किले में अनाज समाप्त हुआ
किलों में इतना अनाज मौजूद था कि कुछ दिनों तक इस घेराबंदी का कोई असर नहीं दिखा. इस तरह दिन महीनों में बदलते गए लेकिन मुग़लों ने घेराबंदी में कोई ढील नहीं दी.
मुग़ल सिपहसालारों को अपने सैनिकों को समझाना पड़ा कि वो धीरज रखें. वो दिन दूर नहीं जब सिखों की आपूर्ति समाप्त हो जाएगी और उन्हें हथियार डालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. धीरे-धीरे किलों की रसद समाप्त होने लगी और सिखों को लगने लगा कि कुछ दिनों बाद उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं रहेगा.
कमांडरों की बैठक में तय हुआ कि सिख सैनिकों का एक जत्था बाहर जाकर मुग़ल सैनिकों के घेरे को तोड़ेगा और जितना अनाज ला सकता है अंदर लाएगा.
उसी रात बाहर जाने का पहला प्रयास किया गया. मुग़ल सैनिकों को इसकी उम्मीद नहीं था. सिख सैनिक घेराबंदी तोड़ने में सफल हो गए और काफ़ी सारा अनाज किले के अंदर ले आए.
इसके बाद के बाहर निकलने के प्रयास कामयाब नहीं हो पाए. मुग़ल सैनिक सावधान हो गए और उनके बाहर निकलने के प्रयासों को सफलता नहीं मिली. 
सुरक्षित निकलने का प्रस्ताव
कुछ दिनों बाद किलों के अंदर भुखमरी की नौबत आ गई. उस समय संगत के कुछ सदस्यों ने इस कष्ट से बचने के लिए किले से बाहर निकलने का फ़ैसला किया. गुरु ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की.
मुग़लों ने भी जब देखा कि बाहर निकलने वाले लोगों में अधिकतर महिलाएं, बच्चे और अधेड़ शख़्स थे तो उन्होंने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की ताकि और सिख किले को छोड़कर बाहर आने के लिए प्रेरित हों.
अजमेर चंद ने गोबिंद सिंह को एक पत्र लिखकर प्रस्ताव भेजा. पत्र में कहा गया कि अगर गुरु गोबिंद सिंह अपने साथियों को साथ आनंदपुर से निकल जाते हैं तो उन्हे जहाँ वो चाहें जाने की अनुमति होगी और वो अपने साथ बिना रोक-टोक अपना सामान ले जा सकेंगे.
गुरु को इस प्रस्ताव में दाल में कुछ काला नज़र आया लेकिन उनकी माँ माता गुजरी ने उन्हें मनाया कि ऐसा कर वो कई लोगों की जान बचा सकते हैं. 
बेकार सामान बाहर भेजा गया
गुरु ने कहा कि इससे पहले कि 'मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार करूँ, मैं मुग़लों और राजाओं की नेकनियती की परीक्षा लेना चाहता हूँ.'
उन्होंने मुग़लों को संदेश भिजवाया कि वो और उसके साथी आनंदपुर से बाहर निकलने के लिए तैयार हैं बशर्ते उनके मूल्यवान सामान को बैलगाड़ियों के काफ़िले में पहले बाहर भेजा जाए.
मुग़लों ने तुरंत संदेश भेजा कि वो इसके लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि अगर ज़रूरत हो तो हम आपको बैलगाड़ियाँ भी भेजने के लिए तैयार हैं.
अमरदीप दहिया लिखते हैं, “गुरु ने आनंदपुर के लोगों से अपना सारा बेकार सामान जमा करने के लिए कहा. थोड़ी देर में वहाँ पुराने जूतों, फटे पुराने कपड़ों, टूटे बर्तनों और जानवरों की हड्डियों का ढेर लग गया. इन सबको कीमती थैलों में डाल कर बैलगाड़ियों पर लादा गया. हर बैलगाड़ी पर मशाल जलाई गई ताकि लोगों का ध्यान उस पर लदे सामान पर जा सके.” 
बैलगाड़ियों का काफ़िला अँधेरी रात में किले से निकला. जैसे ही वो मुग़ल सेना की पहुंच के भीतर गए, उन सारे थैलों को लूट लिया गया. रातभर उन पर पहरा बैठा कर रखा गया. सुबह जब उनको खोला गया तो मुग़ल सैनिक ये देखकर दंग रह गए कि उन थैलों में कूड़ा-करकट भरा हुआ था.
इस तरह गुरु गोबिंद सिंह ने राजाओं और मुग़ल सैनिकों के इरादों का भंडा फोड़ दिया. 
गुरु के जत्थे पर धोखे से हमला
मुग़लों और पहाड़ के राजाओं ने उनसे किए गए वादे का पालन नहीं किया. अंतत: गुरु गोबिंद सिंह को आनंदपुर छोड़ना पड़ा. सिखों का जो पहला जत्था निकला, उसमें महिलाएं, बच्चे, गुरु की माँ और चार बेटे भी शामिल थे.
वे जब एक छोटी नदी सरसा के किनारे पहुंचे, उन पर मुगल सैनिकों ने हमला बोल दिया. इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह के सबसे सक्षम कमांडर उदय सिंह मारे गए. लेकिन उन्होंने तब तक मुग़लों का रास्ता रोक कर रखा जब तक गुरु गोबिंद सिंह वहां से सुरक्षित नहीं निकल गए.
पतवंत सिंह लिखते हैं, “इस लड़ाई में कई लोग मारे गए और कई लोग नदी के किनारे पहुंचने पर अपनों से बिछुड़ गए. इनमें शामिल थे गुरु गोबिंद सिंह की माँ और उनके दो छोटे बेटे ज़ोरावर सिंह और फ़तह सिंह.”
गुरु गोबिंद सिंह के अपने सैनिकों की संख्या 500 से घट कर सिर्फ़ 40 रह गई. वो इन सैनिकों और अपने दो बेटों के साथ चमकौर पहुंचने में सफल हो गए. मुग़ल सैनिक अभी भी उनके पीछे पड़े हुए थे.
यहाँ हुई लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह के 40 सैनिकों ने अपने से संख्या में कहीं अधिक मुग़ल सैनिकों का बहादुरी से सामना किया. लेकिन इस लड़ाई में उनके दो बचे हुए बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह और ‘पंजप्यारे’ में शामिल मोहकम सिंह और हिम्मत सिंह मारे गए.
चमकौर से बच निकलने के बाद गुरु अपने साथियों से बिछुड़ गए और मच्छीवाड़ा जंगलों में बिल्कुल अकेले हो गए. लेकिन कुछ देर बाद उनके तीन बिछड़े साथी उनसे आ मिले. ये चारों कुछ स्थानीय सिखों की मदद से किसी तरह उस स्थान से निकल पाने में कामयाब रहे.
आख़िर में वो जटपुरा गाँव पहुंचे जहाँ उस इलाके के मुस्लिम सरदार राय काल्हा ने उनका स्वागत किया. 
गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे बेटों की भी मौत
यहीं पर गोबिंद सिंह को अपने दो छोटे बेटों ज़ोरावर सिंह और फ़तह सिंह के मारे जाने की ख़बर मिली.
सिख दस्तावेज़ों के अनुसार उनके नौकर ने उनकी मुख़बरी कर दी थी. सरहिंद के गवर्नर वज़ीर ख़ाँ ने उनको मारने का आदेश दिया.
पतवंत सिंह लिखते हैं, “वज़ीर ख़ाँ ने गुरु गोबिंद सिंह के दोनों बेटों से कहा कि अगर वो इस्लाम धर्म क़बूल कर लें तो उनकी जान बख्शी जा सकती है. उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया. तब वज़ीर ख़ाँ ने उन्हें ज़िंदा दीवार में चिनवा देने का आदेश दिया. तब उनकी उम्र आठ साल और छह साल थी.”
जब उनका सिर और कंधा चिनने से रह गया तब उनसे एक बार फिर धर्म बदलने के बारे में पूछा गया. इस बार भी इनकार करने के बाद उन्हें दीवार से निकाल कर वज़ीर ख़ाँ के सामने पेश किया गया.
वज़ीर ख़ाँ ने उन्हें तलवार से मारे जाने का आदेश दे दिया. उनकी मौत की खबर सुनते ही साहबज़ादों की दादी माता गुजरी ने सदमे से दम तोड़ दिया. 
औरंगज़ेब के बेटे की मदद की
नाभा में रहते हुए गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगज़ेब को फ़ारसी में एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने धोखे से हमला किए जाने के लिए औरंगज़ेब को दोषी ठहराया.
जब औरंगज़ेब को अहमदनगर में गुरु गोबिंद सिंह का लिखा पत्र मिला तो उसने अपने दो अफ़सरों को लाहौर के डिप्टी-गवर्नर मुनीम ख़ाँ के पास भेजकर कहलवाया कि वो गुरु गोबिंद सिंह के साथ समझौता कर लें.
एक समय ऐसा भी आया कि गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगज़ेब से मिलने का फ़ैसला किया. लेकिन वो अभी राजपूताना ही पहुंचे थे कि उन्हें औरंगज़ेब की मौत का समाचार मिला.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि औरंगज़ेब की मौत के बाद हुई उत्तराधिकार की लड़ाई में उसके पुत्र शहज़ादा मुअज़्ज़म ने अपने भाइयों के ख़िलाफ़ लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह की मदद माँगी.
गुरु ने कुलदीपक सिंह के नेतृत्व में मुअज़्ज़म के भाई आज़म से लड़ने के लिए सिख लड़ाकों का एक जत्था भेजा. जून, 1707 में आगरा के पास जजाऊ में हुई लड़ाई में आज़म मारा गया और मुअज़्ज़म मुगलों की गद्दी पर बैठा. गद्दी पर बैठने के बाद मुअज्ज़म ने अपना नाम बदल कर बादशाह बहादुर शाह रख लिया.
जब वो अपने दूसरे भाई कामबख़्श के विद्रोह को दबाने दक्षिण गया, तब गुरु और उनके कुछ साथियों ने भी दक्षिण का रुख़ किया. 
गुरु गोबिंद सिंह की हत्या
अपने जीवन के अंतिम पड़ाव मे गुरु गोबिंद सिंह गोदावरी नदी के किनारे बसे शहर नांदेड़ में थे. उनके सुरक्षाकर्मियों को आदेश थे कि उनसे मिलने आने वाले किसी व्यक्ति को रोका न जाए.
खुशवंत सिंह लिखते हैं- “20 सितंबर 1708 की शाम जब वो प्रार्थना के बाद अपने बिस्तर पर आराम कर रहे थे, दो युवा पठानों अताउल्ला ख़ाँ और जमशेद ख़ाँ ने उनके तंबू मे प्रवेश किया. गुरु को अकेला पाकर दोनों ने उनके पेट पर छुरे से वार किया. उन दोनों को वज़ीर ख़ाँ ने भेजा था. गुरु को मारने के उद्देश्य का कभी पता नहीं चल पाया क्योंकि दिल के पास छुरा भोंके जाने के बावजूद गुरु गोबिंद सिंह ने एक हत्यारे को तो वहीं मार डाला. दूसरे हत्यारे को भी उनके साथियों ने ज़िंदा नहीं छोड़ा.”
गुरु के ज़ख़्म पर उनके एक साथी अमर सिंह ने टाँके लगाए लेकिन कुछ दिनों बाद उनके टाँके खुल गए. जब बादशाह बहादुर शाह को गोबिंद सिंह पर हमले की ख़बर मिली तो उन्होंने अपने इटालियन चिकित्सक निकोलाओ मनूची को उपचार के लिए भेजा.
लेकिन 6 अक्तूबर आते-आते गुरु को लग गया कि उनका अंत निकट है. उन्होंने अपने अनुयायियों की सभा बुलाकर ऐलान किया कि उनके बाद कोई व्यक्ति गुरु नहीं होगा और सारे सिख गुरु ग्रंथ साहब को गुरु मानेंगे. 
सर्बप्रीत सिंह अपनी किताब ‘द स्टोरी ऑफ़ द सिख्स’ में लिखते हैं, “गुरु ने दमदमा साहब में तैयार किए गुरु ग्रंथ साहब को खोलने के लिए कहा. उन्होंने उनके सामने सिर झुकाया और पाँच पैसे और एक नारियल प्रसाद के तौर पर रखे. उन्होंने चार बार गुरुग्रंथ साहब का चक्कर लगाया और फिर उनके सम्मान में अपना सिर ज़मीन पर झुका दिया.”
वहीं पर उन्होंने घोषणा की, “आज्ञा भई अकाल की, तभी चलाया पंथ, सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ.”
7 अक्तूबर 1708 को आधी रात के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने सिर्फ़ 42 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 
Compiled: Legend News

मंगलवार, 26 सितंबर 2023

NEET-PG के क्वालीफाइंग परसेंटाइल जीरो करने पर क्यों मचा है बवाल, ये है पूरा मामला


 व‍िपक्ष से लेकर स्वयं मेडीकल लाइन के जानकारों के बीच बहस का मुद्दा बन गया है NEET-PG के क्वालीफाइंग परसेंटाइल को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 'जीरो' कर देना.

मगर इसके पीछे की वजह जो मुझे समझ में आई है वह यह है क‍ि देशभर के सरकारी और प्राइवेट मेडीकल कॉलेजों में पीजी स्तर की लगभग 13 हजार से ज्यादा खाली पड़ी सीटों को भरा जा सके.  क्योंक‍ि स‍िर्फ एक सीट पर सरकार की ओर से 3 करोड़ रुपये खर्च क‍िये जाते हैं और 13 हजार सीटों का मतलब है एक पूरी की म‍िन‍िस्ट्री खड़ी कर देना.  तो इस भारी नुकसान को बचाने के ल‍िए परसेंटाइल को जीरो कर द‍िया गया.  

NEET-PG के क्वालीफाइंग परसेंटाइल जीरो करने का मतलब है, जिस भी बच्चे ने NEET-PG एग्जाम दिया, इसमें वे भी शामिल हैं, जिन्होंने 0 नंबर पाए या निगेटिव मार्क्स आए, वे काउंसलिंग के लिए एलिजिबल माने जाएंगे. इस फैसले का रिजल्ट ये रहा कि 0 नंबर वाले 14 स्टूडेंट्स, निगेटिव स्कोर वाले 13 और 1 स्टूडेंट -40 स्कोर वाला भी NEET PG के लिए क्वालीफाई माना जाएगा.

NEET-PG नेशनल लेवल का एंट्रेंस टेस्ट है. इस टेस्ट के जरिए देश भर में PG मेडिकल सीटों पर दाखिला दिया जाता है. एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए मेडिकल काउंसिल कमेटी ने कहा, इस साल अब तक बची खाली PG सीटों के लिए एलिजिबिलिटी जीरो परसेंटाइल कर दी जाएगी. 

ऐसी छूट क्यों देनी पड़ी 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक काउंसलिंग के दो राउंड हो जाने के बाद तक भी मेडिकल कॉलेजों में PG की करीब 13 हजार सीटें खाली रह गईं. यह पहली बार है जब एलिजिबिलिटी कट-ऑफ को पूरी तरह से हटा दिया गया है ताक‍ि सीटें भरी जा सकें. एक सीट पर तीन करोड़ खर्च करने वाली सराकर के ल‍िए यह काफी नुकसानदेह था क‍ि 13,245 खाली रह गई सीटों को हर हाल में भरा जाए.

कौन दे सकता है NEET PG एग्जाम

NEET PG एग्जाम वे कैंडिडेट्स देते हैं तो MBBS कर चुके हैं. ये कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट होता है. इसमें मल्टीपल चॉइस के सवाल आते हैं, जिसमें मेडिकल सब्जेक्ट्स के टॉपिक कवर किए जाते हैं. इस परीक्षा के जरिए रैंक, परसेंटाइल, कैंडिडेट की एलिजिबलिटी और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स और इंस्टीट्यूट में प्रिफ्रेंस तय किया जाता है. इसी के जरिए ये कय किया जाता है कि कैंडिडेट मेडिकल स्टडीज के लिए सभी एजुकेशनल दायरों को पूरा करता हो.

क्या है परसेंटाइल- 

परसेंटाइल एक स्टेटिस्टिकल Measure है जिसके जरिए आप ये तुलना कर सकते हैं कि कॉम्पटिशन में आपने कितनों से बेहतर किया. उदाहरण से समझिए. एक अंग्रेजी का टेस्ट हुआ. इस टेस्ट में आपका परसेंटाइल ये बताएगा कि कितने लोगों ने आपसे कम और ज्यादा स्कोर किया है.

पेपर में हिस्सा लेने वालों टेस्ट स्कोर इकट्ठा किए और उन्हें एक ऑर्डर में lowest to highest रखा, मान लेते हैं पेपर में कुल 100 स्कोर पाए. यदि आपको 80 नंबर मिले, तो इसका मतलब है कि परीक्षा देने वाले 80 लोगों ने आपसे कम नंबर पाए. ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने 100 में से 80 लोगों से बेहतर प्रदर्शन किया. यदि आप 90वें परसेंटाइल में हैं, तो आपने 100 में से 90 लोगों से बेहतर प्रदर्शन किया. यदि आप 50वें परसेंटाइल में हैं, तो आपने आधे लोगों (100 में से 50) के बराबर ही अच्छा प्रदर्शन किया है.

दूसरे राउंड की काउंसल‍िंंग के बाद भी  13,245 खाली रह गईं
NEET-PG काउंसलिंग सेशन जुलाई में हुआ, MCC ने इसके लिए कट-ऑफ परसेंटाइल 50 सेट की. कुल 800 नंबरों में से 582 पाने वाले को 100th परसेंटाइल दिया गया. इस मुताबिक सीटें भरी जानें लगीं और दूसरे राउंड के बाद 13,245 खाली रह गईं. इन मेडिकल कॉलेजों में सबसे बड़ी तादाद में खाली सीटों की संख्या All-India quota के तहत रही, जो कि 3000 थी. ये सीटें DNB डॉक्टर्स के लिए थी.

मेडिकल में मास्टर्स डिग्री करने के लिए तीन कोर्स हैं. MD (Doctor of Medicine), MS (Master of Surgery), DNB (Diplomate of National Board) हैं.  DNB भी पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल क्वालीफिकेशन है जो NBE की ओर से भारत में ऑफर की जाती है. ये डिग्री MD, MS के बराबर मानी जाती है. इसके लिए जरिए  मेडिकल और सर्जिकल में अलग अलग स्पेशलाइजेन मिलता है.

एक एमबीबीएस सीट के ल‍िए सरकार 3 करोड़ रुपये करती है खर्च 

शासकीय मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीट पर दाखिला लेने वाले एक छात्र को डॉक्टर बनाने में सरकार तीन करोड़ रुपये खर्च करती है. इसमें डॉक्टर/प्रोफेसर का वेतन, कॉलेज का इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर प्रयोगशाला, हॉस्टल और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) में मान्यता के आवेदन का खर्च शामिल है. 

इस परेशानी के मद्देनजर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन समेत सभी मेडिकल एसोसिशएंस ने हेल्थ मिनिस्ट्री से परसेंटाइल कट-ऑफ को 20 तक कम करने की अपील की थी. 

इसके जवाब ने MCC ने मांगे गए नंबर तक परसेंटाइल घटाने की बजाय उसे जीरो (0) तक घटा दिया. 0 परसेंटाइल का मतलब है, जिस भी बच्चे ने NEET-PG एग्जाम दिया, इसमें वे भी शामिल हैं, जिन्होंने 0 नंबर पाए या निगेटिव मार्क्स आए, वे काउंसलिंग के लिए एलिजिबल माने जाएंगे. इस फैसले का रिजल्ट ये रहा कि 0 नंबर वाले 14 स्टूडेंट्स, निगेटिव स्कोर वाले 13 और 1 स्टूडेंट -40 स्कोर वाला भी NEET PG के लिए क्वालीफाई माना जाएगा.

इसका मतलब सीधा है कि अगर आपने नीट पीजी में अप्लाई किया है, अपीयर हुए हैं या अगर आप उस परीक्षा में केवल बैठे भी हैं तो भी आप उस सीट के दावेदार हैं. अगर कॉलेज में सीट है तो आप उस सीट के लिए आवेदन कर सकते हैं. अभी तक दो राउंड की काउंसलिंग हो चुकी है और तीसरे राउंड की काउंसलिंग शुरू होगी, जिसमें स्टूडेंट्स अपनी चॉइस भरेंगे और वो इन छह से सात हजार मेडिकल सीटों के लिए अप्लाई कर सकेंगे.

IMA ने बयान जारी किया

केंद्र सरकार की ओर से यह पत्र राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (NBE) को भी भेजा गया था. ये NEET PG द्वारा आयोजित किया जाता रहा है. इसके साथ ही मंत्रालय के चिकित्सा परामर्श प्रभाग और सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों (स्वास्थ्य) को भेजा गया था. इस आदेश के जवाब में आईएमए ने एक बयान जारी कर स्वास्थ्य मंत्री का आभार किया गया है. उन्होंने  कहा कि उसने सरकार से ऐसा करने का अनुरोध किया था. बीते वर्ष काउंसलिंग के आखिरी दौर के लिए क्वालीफाइंग परसेंटाइल  को घटाकर 30 करा गया था. उस वक्त लगभग 4 हजार सीटें खाली हो गई थीं. सरकार के इस कदम के जरिए स्ट्रीम में पीजी सीटें भरने का लक्ष्य रखा है.

- अलकनंदा स‍िंंह 

https://www.legendnews.in/single-post?s=why-is-there-an-uproar-over-reducing-the-qualifying-percentile-of-neet-pg-to-zero-understand-the-complete-mathematics--12352

शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

'ऋग्वेद' का 'नासदीय सूक्त' देता है ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर हर सवाल का जवाब

हम सभी के मन में कभी न कभी ये सवाल जरूर आया होगा कि आखिर इस ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई। जब स्टीफन हॉकिंग की ब्रह्मांड के जन्म को लेकर 'बिग बैंग' थ्योरी आई थी तो लोगों की इस विषय के बारे में जानने की उत्सुकता और बढ़ गई, लेकिन साथ ही साथ इस बात को लेकर बहस भी छिड़ गई कि ब्रह्मांड के निर्माण को लेकर दी गई इस वैज्ञानिक व्याख्या से बहुत पहले ही वेद इससे जुड़े कई तथ्य बताये जा चुके हैं जो बिग बैंग थ्योरी के काफी करीब हैं। बिग बैंग थ्योरी में इस बात की व्याख्या करने की कोशिश की गई है कि किस प्रकार करीब 15 अरब साल पहले इस ब्रह्मांड की रचना हुई थी। ऋग्वेद में काफी दिलचस्प तरीके से ब्रह्मांड की रचना की प्रक्रिया बताई गई है। 

 ​ब्रह्मांड बनने से पहले की स्थिति कैसी थी​ 
ब्रह्मांड के निर्माण को लेकर अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग व्याख्या की गई है। सनातन धर्म में 'ऋग्वेद' का 'नासदीय सूक्त' ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर कई आश्चर्यजनक व्याख्या करता है। 

इसमें बताया गया है कि ब्रह्मांड बनने से पहले की स्थिति कैसी थी, फिर ब्रह्मांड बनने की शुरुआत कैसे हुई और कैसे इसका विस्तार होता चला गया। यह बेहद दिलचस्प और सोचने वाली बात है कि आज जब विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है, तब भी वह बड़ी मुश्किल से ब्रह्मांड की संरचना को लेकर कुछ ही मुद्दों पर बात कर सकता है जबकि सनातन धर्म में इसकी चर्चा हजारों साल पहले की जा चुकी है। 

नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मण्डल का 129 वां सूक्त है। 'नासद्' (= न + असद् ) से आरम्भ होने के कारण इसे 'नासदीय सूक्त' कहा जाता है। इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है। विद्वानों का विचार है कि इस सूक्त में भारतीय तर्कशास्त्र के बीज छिपे हैं।

सोचने की बात यह भी है कि आविष्कार के बिना महर्षियों ने आखिर कैसे इस बात को समझा होगा, जाना होगा और इसे पुख्ता किया होगा।


ब्रह्मांड के रहस्यों से जुड़े सवालों के जवाब मिलते हैं​ 
ऋग्वेद के 'नासदीय सूक्त' में ब्रह्मांड से जुड़ी सारी जानकारियां सूक्ति के माध्यम बताई गई हैं लेकिन इन सूक्तियों का अर्थ स्पष्ट और सरल नहीं है इसलिए आम लोगों के लिए इसे समझना मुश्किल है। हालांकि कई जानकारों द्वारा इन सूक्तियों की व्याख्या सरल शब्दों में की गई है ताकि इससे मिली जानकारी वैज्ञानिक शोधों में इस्तेमाल की जा सके। नासदीय सूक्त में सात ऐसे मंत्र या सूक्ति बताये गये हैं जिसके माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों से जुड़े सवालों के जवाब मिलते हैं।  

ब्रह्मांड की रचना से पहले न तो अंतरिक्ष था, न समय​ 
पहले सूक्त के अनुसार ब्रह्मांड की रचना से पहले ना तो 'सत् (जो है)' था, ना ही 'असत् (जो नहीं है)' था; ना ही आकाश था, ना ही पृथ्वी थी और ना ही पाताल लोक था। यानि ब्रह्मांड की रचना से पहले न तो अंतरिक्ष था, न समय और न ही कोई भौतिक पदार्थ। केवल शून्य और अंधकार था। बिग बैंग थ्योरी के अनुसार भी अंतरिक्ष पहले से मौजूद नहीं था बल्कि इसकी रचना बहुत ही अजीबोगरीब स्थिति में हुई है। उनके अनुसार इसकी शुरुआत सबसे पहले ब्लैक होल के केंद्र भाग में मौजूद ‘विलक्षणता’ (सिंगुलैरिटी) से हुई होगी, जहाँ एक अनंत घनत्व वाला सूक्ष्म बिंदु आया और उसमें विस्फोट हुआ। यही घटना 'बिग बैंग' कहलाई। उस विस्फोट से न केवल 'द्रव्य-पदार्थ' का निर्माण हुआ बल्कि 'अंतरिक्ष' और 'समय' की भी रचना हुई। वेद के अनुसार ब्रह्मांड के निर्माण के समय जो 'नाद' अर्थात् 'ध्वनि' उत्पन्न हुई थी, वह था 'अम्भास' और बिग बैंग के अनुसार वह ध्वनि 'ऊँ' से मिलती-जुलती थी। 

जल के समान हर ओर अंधकार था 
दूसरे सूक्त के अनुसार उस समय न तो 'मृत्यु' थी और न ही अमरता। दिन-रात का भी नामो-निशान नहीं था। जल के समान हर ओर अंधकार था। केवल एक ऊर्जा अस्तित्व में थी, जिसमें वायु की अनुपस्थिति थी। उन्होंने इस ऊर्जा के स्रोत को 'परम तत्व' कहा और यह भी बताया कि इसी ऊर्जा से ब्रह्मांड में अन्य चीजों का जन्म हुआ है, केवल प्राण को छोड़कर। इस परम तत्व से बाकी चीजें ऐसे बाहर निकलकर आईं, जैसे फेफड़े से एक झोंके के रूप में हवा बाहर निकलकर आती है। वेद में बताये गये ऊर्जा के स्रोत 'परम तत्व' की व्याख्या जैसी ही व्याख्या भी बिग बैंग थ्योरी करता है। उनका भी मानना है कि जब अंतरिक्ष की रचना हुई थी, तो वह बहुत गर्म था और आज जो चार मूलभूत बल ( गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत चुम्बकीय बल, न्यूक्लियर फोर्स और वीक इनटेरेक्शन फोर्स) काम करते हैं, उस समय वे सब मिलकर एक थे। जैसे-जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, ये सारे बल अलग होते चले गये। उनका मानना है कि आज जो भी चीजें मौजूद हैं, उन सबकी उत्पत्ति ब्रह्मांड से ही हुई है, जिसे वेद ने 'परम तत्व' कहा है। वेद में दिन और रात नहीं होने की बात भी प्रमाणित होती है क्योंकि उस वक्त सूर्य और चंद्रमा का निर्माण नहीं हुआ था, तो दिन और रात होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। 

ब्रह्मांड में पहले केवल अंधेरा था ​
घटना को समझना असंभव था। पहले एक लहराता द्रव्य अस्तित्व में आया, जिसे 'सलिल' कहा गया और उसके आसपास एक हल्का पदार्थ फैला था जिसे 'अभु' कहा गया। उनके अनुसार वह शायद ऊष्मा से विकसित हो गया था। वेद में यहाँ तारों और आकाशगंगा के निर्माण की बात कही जा रही है। बिग बैंग थ्योरी के अनुसार भी शुरुआती के कुछ लाख वर्ष तक 'पदार्थों' और 'ऊर्जाओं' का निर्माण होता रहा, इसी प्रक्रिया को ऋषियों ने रहस्यमयी घटना कहा था। उन वर्षों में 'फोटॉन', 'इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन' से टकराता रहा और उसने एक अपारदर्शी द्रव्य का निर्माण किया। लगभग एक लाख वर्ष बाद जब ब्रह्मांड का तापमान कम हुआ, तो प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन ने मिलकर हाईड्रोजन परमाणु का निर्माण किया। हाईड्रोजन पारदर्शी होता है, जिसने उस सैकडों सालों से बन रहे उन अपारदर्शी द्रव्यों को पारदर्शी किया जिसे हम आज अंतरिक्ष कहते हैं। बाद में धीरे-धीरे आकाशगंगा और तारों का निर्माण होना भी शुरु हुआ। 

उस समय ब्रह्मांड में कोई दिशा नहीं थी​ 
आगे की सूक्तियों में ऋषि यह बताते नजर आते हैं कि कैसे अंतरिक्ष में छोटे-बड़े 'गेलेक्सीज' का निर्माण हुआ। इन गेलेक्सीज में काफी मात्रा में गैस और धूल थी, जिससे 'ग्रहों', 'उपग्रहों' और 'उल्का पिंडों' का निर्माण हुआ। इस सिद्धांत के लिए सूक्त में 'स्वध' और 'प्रयति' शब्द का इस्तेमाल हुआ है। वो दिशाओं के बारे में भी बताते हैं कि उस समय ब्रह्मांड में कोई दिशा नहीं थी। ऊपर किसे कहें या नीचे किसे कहें, या तिरछा किस तरफ है, कहा नहीं जा सकता था। बाद की सूक्तियों में वह यह सवाल करते नजर आते हैं कि यह बताना बहुत मुश्किल है कि सबकुछ की रचना कैसे हुई। कोई नहीं जानता कि जीवन और जीव की शुरुआत कैसे हुई? कोई नहीं बता सकता कि ईश्वर के सहयोग से सबकुछ अस्तित्व में आया या नहीं? कोई नहीं जानता कि इस ब्रह्मांड का सर्वेसर्वा कौन है? ऋषि अनुमान लगाते हुए कहते हैं कि शायद केवल उच्च शक्ति ही है, जो बता सकती है कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई या फिर क्या पता उस उच्च शक्ति के ऊपर भी कोई शक्ति हो।

नासदीय सूक्त में रिसर्च से जुड़े सवालों के जवाब पहले से मौजूद थे​ 
खैर, बिंग बैंग थ्योरी भी ब्रह्मांड के केवल शुरुआती प्रक्रिया की व्याख्या करता है और वह भी आगे कहीं बन कहीं पहेली बनकर रह जाता है या ईश्वर जैसे शब्दों से जुड़ जाता है। उसके पास भी सारे सवालों के जवाब नहीं हैं। लेकिन भले ही आज आधुनिक शोधकर्ता, ब्रह्मांड के आगे के सवालों के जवाब ढूंढ रहे हों, वो इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि 'नासदीय सूक्ति' में उनकी शुरुआत के रिसर्च से जुड़े सवालों के जवाब पहले से मौजूद थे।