मंगलवार, 29 अगस्त 2017

ठहरिए…देखिए…कहीं आपका टटलू न कट जाये

लव मैरिज, मनचाहा प्‍यार, वशीकरण, गृहक्‍लेश, जादूटोना, विदेश यात्रा, कारोबार में रुकावट, शादी में अड़चन, रूठों को मनाना, कोख में बाधा, किया कराया, पति पत्‍नी में अनबन, सौतन व दुश्‍मनी से छुटकारा, संतान प्राप्‍ति, मुठकरनी, A to Z समस्‍याओं का हल पाएं…सही काम एक ही नाम…दुआ भी तकदीर बदल देती है…हम कहते नहीं, करके दिखाते हैं….बाबा मिर्जाखान जी बंगाली। यह दावा है उस पैम्‍फलेट का जो अखबार के साथ आया था।
इसके आगे लिखा है- अगर मेरी एक आंख की रोशनी मुसलमान भाई हैं तो दूसरी आंख की रोशनी हिन्‍दू भाई हैं। पैम्‍फलेट में नीचे दोनों ओर शिरडी के साईं का फोटो भी है।
और हिदायतन साथ में ये भी लिखा था कि मन में सच्‍ची श्रद्धा लेकर ही फोन करें। हमारी एक कॉल ”आपकी” किस्‍मत बदल सकती है।
इसके भी ठीक नीचे दो सेलफोन नं. लिखे थे जिन पर ”समस्‍याग्रस्‍तों” को निजात दिलाई जानी है।
12×8 इंच का पीले-गुलाबी रंग के जर्जर कागज पर छपा पैमफ्लेट उन सभी समाज सुधारकों, अंधश्रद्धामूलकों, आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों, कानून-व्‍यवस्‍था देखने वालों, समाज को भयमुक्‍त कराने वालों के प्रयासों पर हावी होने का भरपूर प्रयास करता दिख रहा है।
इसका यह प्रयास अगर कुछ प्रतिशत भी सफल होता है तो निश्‍चित जानिए फिर इस पैम्‍फलेट वाले ”बाबा मिर्जाखान जी बंगाली” को ”बाबा राम रहीम” बनने से कौन रोक सकता है। समय लग सकता है मगर ये प्रक्रिया सतत चलती रहेगी क्‍योंकि व्‍यक्‍ति बैठे-बिठाए समस्‍या का निराकरण किए जाने का लालच और ”अंधभक्‍ति की आदत” उन्‍हें किसी न किसी बाबा के ”फेरे” लगाने को उनके ”ठिकानों” पर लाती ही रहेगी।
एक और उदाहरण देती हूं-
हमारे ब्रज में ”टटलुओं” का बड़ा आतंक है, ग्रामीण क्षेत्रों के ”निकम्‍मे” (इन्‍हें बेराजगार न समझा जाए) और आपराधिक प्रवृत्‍ति वाले हट्टे-कट्टे युवकों द्वारा सेल-परचेज वेबसाइट ओएलएक्‍स पर विज्ञापन देकर गुजरात-महाराष्‍ट्र-दक्षिणी प्रदेशों के लोगों को ”सस्‍ती कार” या ”सस्‍ती सोने की ईंट” देने का झांसा दिया जाता है, विज्ञापन देखकर लोग आते भी हैं और इनके जाल में फंसते भी हैं, गिरि गोवर्धन का क्षेत्र तो इन टटलुओं की पूरी तरह गिरफ्त में हैं जो उत्‍तरप्रदेश-राजस्‍थान-हरियाणा तीन प्रदेशों की सीमाओं को कवर करता है। कई बार सीमाक्षेत्र का विवाद इन्‍हें निष्‍कंटक अपना टारगेट पूरा करने में सहायक होता है। कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब पुलिस इन्हें लेकर शिकायतों और कार्यवाहियों से रूबरू न होती हो। यात्रियों को सावधान करने के लिए गोवर्धन क्षेत्र में पुलिस ने एहतियातन होर्डिंग्‍स भी लगवाए, प्रचार भी कराया मगर सब नाकाफी। फिलहाल टटलू सिंडीकेट अपना जलवा कायम रखे हुए आगे ही बढ़ रहा है क्‍योंकि फंसने वालों के लालच को कम करने का पुलिस के पास कोई उपाय नहीं है जबकि टटलुओं के पास चुग्‍गा फेंकने के तमाम साधन हैं। ऑनलाइन साधन इसमें इजाफा ही कर रहे हैं।
इन बेरोजगार ठगों का जाल पूरी रिसर्च के साथ फैलाया जाता है, जो व्‍यक्‍ति फंसता दिखता है उसे पहले फोन से यहां बुलाया जाता है ”माल दिखाने” के लिए फिर निश्‍चित दूरी पर खड़े टटलू गिरोह के सदस्‍य उसे पहले बातों में फिर धमकियों से डिमॉरलाइज करके उसे लूटकर भाग जाते हैं, घटना की आखिरी कड़ी ये होती है कि शिकार थाने में मुंह लटकाए कानून-व्‍यवस्‍था को कोस रहा होता है। निश्‍चित ही आमजन की सुरक्षा पुलिस का दायित्‍व है मगर शिकार हुए कथित ”भोले भाले” व्‍यक्‍ति को उसके ”अपने लालच” से कौन बचाएगा। तो क्‍या पुलिस को अब इसके लिए भी रिहैब सेंटर्स खोलने चाहिए। इनसे बचने को जो जागरूकता चाहिए वो किसी बाबा या सुरक्षा एजेंसी अथवा सरकार के सिखाए से नहीं स्‍वयं के सोचने से आएगी। टटलुओं के शिकार होने वाले सभी शिक्षित होते हैं, इसलिए इन्‍हें ”निरीह शिकार” मानकर और इन पर रहम खाकर हम इनके लालच को पोषित कर रहे हैं, इसके अतिरिक्‍त और कुछ नहीं। और ये पोषित लालच ही आगे कहीं किसी बाबा के चक्कर में नहीं फंसेगा, ये कैसे कहा जा सकता है।
क्‍या आप समझते हैं कि ये भय और भावनाओं के इस मायाजाल में सिर्फ आर्थिक व मानसिक रूप से कमजोर ही फंसते हैं, ऐसा नहीं है। इनका टारगेट सिर्फ वे लोग ही होते हैं जो ऊपर लिखे गए पैम्‍फलेट में बाबा मिर्जाखान जी बंगाली के टारगेट होंगे। हो सकता है कि शिकायत किए जाने पर पुलिस बाबा मिर्जाखान बंगाली को कब्‍जे में ले ले मगर फिर और कोई बाबा मिर्जाखान बंगाली या बाबा रामरहीम अपना साम्राज्‍य नहीं फैलाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं।
ये भय और भावनाओं का कॉकटेल है जो समाज से ही उठता है और समाज में ही धन, संतान, व्‍यापार तथा संपत्‍ति के ”लालचियों” को अपने कब्‍जे में ले लेता है, ये शिकारी ठग चाहे वो बाबा मिर्जाखान जी बंगाली हो, रामहीम हो, आसाराम बापू हो या फिर ब्रजक्षेत्र के टटलू हो ”लालच” को तलाशते हैं तराशते हैं और फिर वही होता है जो डेरा सच्‍चा सौदा में होता रहा या आगे भी किसी ”अड्डे” पर होता दिख जाएगा। सच ये भी है कि इन टटलुओं की आकार, रूप, रंग और जगह बदल सकती है मगर इनका वजूद खत्‍म नहीं होगा। इनके कुकृत्‍यों के प्रति सचेत रहना ही बस एकमात्र उपाय है।
जो बाबा लव मैरिज, मनचाहा प्‍यार , वशीकरण, गृहक्‍लेश, जादूटोना, विदेश यात्रा, कारोबार में रुकावट,शादी में अड़चन, रूठों को मनाना, कोख में बाधा, किया कराया, पति पत्‍नी में अनबन, सौतन व दुश्‍मनी से छुटकारा, संतान प्राप्‍ति, मुठकरनी, A to Z समस्‍याओं से निजात दिलाने को कुछ पैम्‍फलेट छपवा कर स्‍वयं का विज्ञापन करने को बाध्‍य है, वो आमजन की समस्‍याओं को दूर करने का ठेका ले रहा है, आखिर कैसे।
समाज में किसी भी अनजान गतिविधि पर जब प्रश्‍न उठना बंद हो जाते हैं, जब लोग अंधश्रद्धा या अंधभक्‍ति की ओर मुड़ते हैं तब बाबाओं के डेरे ऐसे ही हमें ठगने को तैयार दिखते हैं ये ठग हमारा टटलू काटने से बाज नहीं आते। तो आप भी अपने आसपास कौन, कैसे, क्‍यों, कहां,कब, किसलिए जैसे प्रश्‍नों को संचारित करें ताकि फिर कोई बाबा हमें हमारे समाज को बेवकूफ ना बना सके, फिर कोई ठगी ना कर सके।
-अलकनंदा सिंह

बुधवार, 23 अगस्त 2017

बेबी बंप: एक्‍सपोज...एक्‍सपोजर...एक्‍सपोज्‍ड


एक्‍सपोजर पाने को एक्‍सपोज्‍ड होने की ललक आपको किस-किस तरह से एक्‍सपोज करेगी, यह अगर  देखना है तो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही उन तस्‍वीरों को देख लीजिए जिनमें बॉलीवुड की  अप्‍सराएं स्‍वयं को खपाए दे रही हैं।

इस मानसिकता को समझने में खलील ज़िब्रान की यह कहानी काफी मदद कर सकती है-

एक दिन 'खुबसूरती' और 'बदसूरती' एक समुद्र तट पर मिलीं और बोलीं आओ, चलो समुद्र में नहाते हैं।  दोनों समुद्र में नहाने लगीं, कुछ देर बाद 'बदसूरती' पानी से निकली और तट पर आकर खूबसूरती के  कपड़े पहन कर चलती बनी। कुछ देर बाद 'खूबसूरती' भी तट पर आई, उसे अपने कपड़े नहीं मिले तो  उसे अपनी नग्‍नता पर लज्‍जा आ गई, उसने 'बदसूरती' के ही कपड़े पहने और अपने रास्‍ते चली गई।

आज तक आदमी और औरतें दोनों को पहचानने में भूल कर जाते हैं। फिर भी कुछ लोग हैं जिन्होंने  'खूबसूरती' के चेहरे को देखा है और वे उसे उसके बदसूरत वस्‍त्रों के बावजूद पहचान जाते हैं, कुछ लोग हैं जो बदसूरती के चेहरे को पहचानते हैं और उसके चकमक कपड़े उनकी आंखों को धोखा नहीं दे सकते।

ज़िब्रान साहब की ये कहानी सिर्फ कहानीभर नहीं है, यह पूरे के पूरे मानव दर्शन, उसकी इच्‍छाएं व भ्रम  को दिखाती है।यह दिखाती है कि जितना अंतर नग्‍नता और अश्‍लीलता में होता है, उतना ही अंतर नग्‍नता और खूबसूरती में भी होता है।

बॉलीवुड में आजकल एक चलन है कि अभिनेत्रियां अपनी गर्भावस्‍था यानि बेबी बंप के प्रत्‍येक चरण का  सरेआम प्रदर्शन करती हैं, इनके दीवाने सोशल साइट पर इनके पिक्‍चर्स आते ही टूटकर इनके कसीदे  पढ़ने लगते हैं। अब दीवाने हैं तो कसीदे पढ़ेंगे ही, मगर बेबी बंप के साथ इनकी तस्‍वीरें ज़िब्रान साहब  की 'बदसूरती' द्वारा खूबसूरती के कपड़े पहनने वाली फितरत को सही ठहराती हैं।
गर्भावस्‍था की तस्‍वीरें, स्‍तनपान कराती तस्‍वीरें, होड़ के स्‍तर तक बेबी-शॉवर (गोदभराई) के दौरान अपने  प्रेग्‍नेंसी गाउन को खींचकर स्‍पेशली बेबी बंप दिखाने का शौक पागलपन की हद तक देखा जा रहा है।

सी-बीच पर बिकनी फोटो, अभिनेत्री-अभिनेता के किस करते फोटो के बाद अभिनेत्री-अभिनेत्री के बीच  लेस्‍बी-किस के फोटो से ऊबीं ये अभिनेत्रियां वायरल होने की चाह में ''छा जाने'' की हवस के कारण  गर्भावस्‍था जैसे नितांत व्‍यक्‍तिगत और गरिमामयी अनुभव को इस फूहड़ता से प्रदर्शित कर रही हैं कि  गर्भावस्‍था अश्‍लील नज़र आने लगी है।

फिल्‍मों में नकार दी गई हों या बड़े घराने से ताल्‍लुक रखती हों, ''इमेज-कैश'' करने को इनके द्वारा  कराया गर्भावस्‍था का फोटोसेशन इनके लिए एक ''शगल'' भर है जो बाजार और मीडिया को अपनी ओर  आकर्षित करने का हुनर बखूबी जानता है।

अभिनेत्रियों के ''गर्भ'' के हर माह का क्रमवार प्रदर्शन करने वाली ये तस्‍वीरें सिर्फ गर्भावस्‍था का ही  मजाक नहीं उड़ातीं, बल्‍कि उनकी ये तस्‍वीरें उन महिलाओं का मजाक उड़ाती नजर आती हैं जो अपने  गर्भ का प्रदर्शन करना तो दूर उसको सहेजती हैं... संभालती हैं... संवारती हैं... ताकि आने वाला मेहमान  पूरी गरिमा के साथ संसार में जन्‍म ले सके। यह तस्‍वीरें उन महिलाओं का भी मजाक उड़ती नज़र  आती हैं जो इस दौरान भी अपने परिवार का पोषण करने को रातदिन लगी रहती हैं। अकसर दिख  जाऐंगीं ऐसी तस्‍वीरें जहां महिला कामगार अपने गर्भ के साथ ईंटों को अपने सिर पर रखे होगी।  बॉलीवुड की ये 'मॉम' उन महिलाअधिकारवादियों की सोच पर प्रश्‍नचिन्‍ह भी लगाती हैं जो ''बोल्‍डनेस''  के नाम पर बेची जा रही इस ''फूहड़ता'' को नजरंदाज़ किए हुए हैं। वस्‍त्रहीन होना खूबसूरती का पैमाना  नहीं हो सकता। यदि ऐसा होता तो आज भी महिलाएं-नवयौवनाएं ''मधुबाला'' होने की चाहत नहीं रखतीं,  आज भी कपड़ों में लकदक ढंकी मीनाकुमारी और नरगिस की ऊंचाई कोई अभिनेत्री क्‍यों नहीं पा सकी, यह सोचना होगा।

बहरहाल, अभिनेत्रियों से तो ''समाज के लिए'' कुछ भी सोचने या करने की आशा करना भी बेमानी है  मगर फेमिनिस्‍ट्स, मीडिया के साथ साथ अभिनेत्रियों की इस फूहड़ता को लेकर यदि हम भी नग्‍नता  और खूबसूरती में अंतर नहीं कर पा रहे हैं और आधुनिकता या 'बोल्‍डनेस' के शब्‍दजाल में अपनी सोच  को 'रैपअप' कर स्‍वयं को स्‍वतंत्र बता रहे हैं तो यह समाज की सोच को ही अश्‍लीलता की ओर ले  जाना होगा। इन अभिनेत्रियों की तस्‍वीरों को वायरल करके ज़रा सोचिए कि हम अपनी पीढ़ियों को  एक्‍सपोज और एक्‍सपोजर के नाम पर वल्‍गैरिटी का ये कौन सा पाठ पढ़ा रहे हैं।

और अंत में-
माफ करना खलील ज़िब्रान, आपकी ''खूबसूरती'' को विचारों की नग्‍नता का जामा पहनाकर इसे सोशल मीडिया पर बेचा भी जा रहा है और ''बदसूरती'' को बेबी-बंप के नाम पर भुनाया जा रहा है।सेलिब्रिटीज द्वारा दिखाया जा रहा बेबी बंप दरअसल स्‍वतंत्रता के नाम पर अपनी गुमनामी से डरे हुओं द्वारा खुद को लाइमलाइट में लाने का एक ढकोसलाभर है और कुछ नहीं।

-अलकनंदा सिंह

रविवार, 13 अगस्त 2017

सावधान! कन्‍हैया निशाने पर हैं...


जन्‍माष्‍टमी को दो दिन बचे हैं और मथुरा के मंदिरों-घाटों-आश्रमों-गेस्‍ट हाउसों में भारी  भीड़ है। इस भीड़ में अधिकांशत: पूर्वी प्रदेश के दर्शनार्थी ही हैं, इसके बाद क्रमश: अगले  नंबरों पर पंजाब, दिल्‍ली, हरियाणा और राजस्थान व पश्‍चिम बंगाल के लोग आते हैं। हर  बार की तरह इस बार भी शहर के वाशिदों को आशंका है कि जन्‍माष्‍टमी के ठीक बाद इन  दर्शनार्थियों द्वारा छोड़े गए अपने खाने-पीने-रहने-निवृत होने के अवशेषों से महामारी फैल  जाएगी। ब्रज पिछले कई वर्षों से इस आशंका को वास्‍तविक रूप में भुगत भी रहा है।

सरकारी अमला और धार्मिक व समाजसेवी संस्‍थाऐं सब मिलकर दर्शनार्थियों की हर संभव  सेवा और सुरक्षा करता है मगर सड़कों के किनारे बसें रोककर झुंड के झुंड जब निवृत होते  हैं और स्‍नान कार्य संपन्‍न करते हैं तो शहर वासी चाहकर भी उनके प्रति सेवाभाव नहीं  रख पाता और अपने ही अतिथियों के प्रति एक आशंका से भर उठता है।

पिछले लगभग 20 साल के आंकड़े बताते हैं कि गुरूपूर्णिमा और जन्‍माष्‍टमी के ठीक बाद  से पुरे ब्रज क्षेत्र में वायरल, चिकनगुनिया जैसे रोग महामारी की तरह फैलते हैं। पिछले दो  दिन से जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण गोरखपुर मेडीकल कॉलेज में जब से बच्‍चों की  मौत का मंज़र देखा है, तब से ब्रज क्षेत्र में ऐसी ही किसी बीमारी की आहट से लोग  चिंतित हैं।

बाबा जयगुरुदेव के अधिकांश अनुयायी पुर्वी उत्‍तरप्रदेश से ताल्‍लुक रखते हैं और शहरी  क्षेत्र में आने वाले हाईवे का आधे से अधिक हिस्‍से पर इनका कब्‍ज़ा रहता है। अतिथियों  की सेवा धर्म होती है मगर अतिथि इस सेवा का जो ''प्रसाद'' ब्रजवासियों को सौंप कर  जाते हैं, वह इस बार भयभीत कर रहा है क्‍योंकि गोरखपुर में हुई मौतों का ताजा उदाहरण  सामने है।  

अधिकांशत: बच्‍चों को ही डसने वाली जापानी इंसेफेलाइटिस नामक इस महामारी से अकेले  पूर्वी उत्‍तरप्रदेश में ही 1978 से अब तक मरने वाले बच्‍चों की संख्‍या लगभग ''एक  लाख'' होने जा रही है। इसमें वो बच्‍चे शामिल नहीं हैं जो नेपाल के तराई इलाकों और  बिहार के सीमावर्ती  क्षेत्रों से गोरखपुर मेडीकल कॉलेज में दाखिल किए गए।

अब तक ''गोरखपुर ट्रैजडी'' को ना जाने कितने कोणों से देखा जांचा जा रहा है, एक ओर  सरकार पर विपक्ष हमलावर हो रहा है तो दूसरी ओर मीडिया ट्रायल करने में कोई कसर  नहीं छोड़ी जा रही है। कहीं कुछ कथित समाजसेवी अपनी पूर्व में व्‍यक्‍त की गई  आशंकाओं को ''सच'' साबित करने पर तुले हैं।

नि:संदेह प्रदेश की योगी सरकार से मेडीकल कॉलेज प्रशासन पर निगरानी रखने में भारी  चूक हुई और इतने बच्‍चों की मौत का कलंक उसे ढोना ही होगा क्‍योंकि लापरवाही के  उत्‍तरदायित्‍व में वह तथा स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय सहभागी रहा परंतु दूसरों पर दोष लादने की  राजनैतिक पृवृत्‍ति को छोड़ अब मरीजों को, मृत बच्‍चों के परिजनों को हालिया राहत देते  हुए खुले में शौच से संपूर्ण प्रदेश (खासकर पूर्वी उत्‍तर प्रदेश) को मुक्‍त करने के अभियान  को कागजों से नीचे उतारने का काम कमर कस कर किया जाना चाहिए।
प्रशासनिक अधिकारियों पर ही नहीं, ग्रामीण स्‍तर पर इसके लिए ''जागरूकता अभियान  इकाईयां'' बनाकर स्‍वयं सरकार के ''राजनैतिक समाजसेवी'' इस अभियान में जुटेंगे तो  स्‍थिति काबू में लाई जा सकती हैं। ये इतना असाध्‍य भी नहीं है।

डिजिटलाइजेशन के इस युग में इस तरह की मौतों के लिए हम जैसे पढ़े-लिखे लोग भी  कम जिम्‍मेदार नहीं हैं यानि वो वर्ग जो अपने सुख तक सिमटा है और दोषारोपण करती  बहसों का आनंद ले रहा है, बजाय इसके कि स्‍वच्‍छता और अशौच के प्रति लोगों को  जागरूक करे।

बहरहाल, मैं वापस मथुरा और ब्रज के अन्‍य धार्मिक स्‍थानों पर फैले उस भय से सभी को  परिचित कराना चाहती हूं जो कि अतिथियों का स्‍वागत करने से पहले उसके आफ्टर  इफेक्‍ट्स से डर रहा है। हमारे कन्‍हाई भी अबकी बार इंसेफेलाइटिस के निशाने पर  हैं...नंदोत्‍सव और राधाष्‍टमी तक वे खतरे में रहेंगे...हमें तैयार रहना ही होगा।

जन्‍माष्‍टमी पर हमारे यहां तो कन्‍हाई जन्‍मेंगे ही, लेकिन हम सभी ब्रजवासी गोरखपुर के  उन कन्‍हाइयों की अकाल मौत से भी बेहद दुखी हैं जो सरकारी खामियों, अपनों के अशौच  और उनकी लापरवाहियों का शिकार बन रहे हैं।

सरकार पर दोषारोपण इलाज मुहैया न कराने के लिए किया जा सकता मगर सफाई की  सोच जब तक हमारे भीतर नहीं बैठेगी, तब तक हम अपने बच्‍चों को यूं ही गंवाते रहेंगे।  हमें गरीब के नाम पर रहम परोसने की राजनीति छोड़नी होगी क्‍योंकि कोई कितना भी  गरीब क्‍यों ना हो, गंदे हाथ धोने को मिट्टी और राख तो सभी जगह मिल सकती है, नीम-  तुलसी हर घर में हो सकता है इसलिए बहानेबाजी, दोषारोपण तथा मौतों के आंकड़े गिनने  से बेहतर है कि सच्‍चाई को स्‍वीकार किया जाए और अपने स्‍वच्‍छता की जिम्‍मेदारी खुद  उठाई जाए।

हम तैयार हैं अपने अतिथियों की तमाम निवृत पश्‍चात फैली गंदगियों को साफ करने के  लिए और अपने कन्‍हाई पर आ रहे महामारियों के खतरे से जूझने के लिए मगर  अतिथियों से भी आशा करते हैं कि वे ब्रज रज के सम्‍मान को तार-तार न करें।
अपनी श्रद्धा के नाम पर ब्रजवासियों को सौगात में ऐसा कुछ परोसकर न जाएं जो उन पर  और उनके परिवार पर भारी पड़े।  

-अलकनंदा सिंह

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

अंसारी साहब…शहर के कुछ बुत ख़फ़ा हैं इसलिये, चाहते हैं हम उन्हें सज़दा करें

बुद्धिमत्‍ता जब अपने ही व्‍यूह में फंस जाए और पाखंड से ओवरलैप कर दी जाए तो वही स्‍थिति हो जाती है जो आज निवर्तमान उपराष्‍ट्रपति मोहम्‍मद हामिद अंसारी की हो रही है।

''देश के मुस्लिम समुदाय में घबराहट व असुरक्षा का माहौल है'' कहकर आज से निवर्तमान उपराष्‍ट्रपति का टैग लगाकर चलने वाले हामिद अंसारी ने अपने पूरे 10 साल के राज्‍यसभा संचालन पर पानी फेर लिया। 24 घंटों में ऐसा क्‍या हुआ जो हामिद अंसारी को असुरक्षित कर गया, रिटायरमेंट फोबिया की गिरफ्त में आ चुके 80 साल की उम्र पार कर चुके अंसारी ने देश के उस माहौल पर उंगली उठाई है जो इक्‍का-दुक्‍का दुर्भाग्‍यपूर्ण घटनाओं से प्रेरित है। ज़ाहिर है वे अपनी सियासती वफादारी साबित करने पर आमादा दिखाई दे रहे हैं।

बतौर काबिलियत 01 अप्रैल 1934 को जन्‍मे मोहम्मद हामिद अंसारी ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय विदेश सेवा से एक नौकरशाह के रूप में 1961 के दौरान तब की थी जब उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। वे आस्ट्रेलिया में भारत के उच्चायुक्त भी रहे। बाद में उन्होंने अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, तथा ईरान में भारत के राजदूत के तौर पर काम किया, वो भारतीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी रहे। 1984 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे मई सन 2000 से मार्च 2004 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। 10 अगस्त 2007 को भारत के 13वें उपराष्ट्रपति चुने गये थे। 2002 के गुजरात दंगा पीड़ितों को मुआवजा दिलाने और सदभावना के लिए उनकी भूमिका के लिए भी उन्‍हें सराहा जाता है।


हामिद अंसारी ने बतौर उपराष्‍ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज़ को सेल्यूट नहीं किया
कल जब उनका विदाई समारोह हो रहा था, तब प्रधानमंत्री मोदी आदतन उनसे चुटकियां ले रहे थे, ऐसे में मुझे एक सीन याद आ रहा था, अमेरिकी राष्‍ट्रपति ओबामा के आगमन पर इन्‍हीं हामिद अंसारी ने बतौर उपराष्‍ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज़ को सेल्यूट नहीं किया। एक नहीं, ऐसे अनेक वाकये हैं जिनका कम से कम अब उनके इस ''मुस्‍लिमों के लिए असुरक्षा वाले'' बयान के बाद जवाब लिया जाना चाहिए।

10 साल तक देश का उपराष्ट्रपति रहते हुए क्‍या अंसारी साहब ये बतायेंगे कि भारत अगर मुस्‍लिमों के लिए असुरक्षित है तो-


कांग्रेस सरकार ने पूरी दुनिया से दुत्कारे हुए 50000 रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में क्यों बसाया,
कश्‍मीर राज्‍य से सभी पंडितों को किसने भगाया,
हमारे राष्‍ट्रपति कलाम साहब क्‍या मुस्‍लिम नहीं थे, क्‍या वो असुरक्षित थे इसीलिए इतने बड़े वैज्ञानिक बन गए,
भारत मुस्‍लिमों के लिए असुरक्षित है तभी तो 6 करोड़ बंग्लादेशी पिछ्ले 45 साल से यहाँ देश के संसाधनों को लूट रहे हैं, पश्चिम बंगाल, असम की जनसांख्‍यिकी तो ध्‍वस्‍त ही इन्‍होंने की,
भारत असुरक्षित है इसलिए छोटा ओवैसी यह कह पाता है की देश से 15 मिनट पुलिस हटा दो हम सब हिन्दुओं का सफाया कर देंगे,
भारत मुस्‍लिमों के लिए असुरक्षित है तभी तो जेएनयू में भारत के टुकड़े करने वाले पूरे देश के टैक्‍स पर पल रहे हैं,
भारत असुरक्षित है इसलिए लव जिहाद और धर्म परिवर्तन यहाँ सामान्य घटनाएं हैं,
भारत मुस्‍लिमों के लिए असुरक्षित है इसीलिए पाकिस्तान के झंडे और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे कहीं भी लगाये जा सकते हैं,
मुस्‍लिमों के लिए असुरक्षा का माहौल है तभी तो दिल्‍ली के जाफराबाद, सीलमपुर और अन्य मुस्लिम इलाकों में किसी हिन्दू की जमीन खरीदने की हिम्मत नहीं होती, इन इलाकों में अघोषित धारा 370/35 लगी हुई है,

भारत मुस्‍लिमों के लिए असुरक्षित है इसीलिए 26 अगस्‍त 2015 को जारी जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 सालों में मुस्लिमों की जनसंख्या में भारी इजाफा दर्ज किया गया, यानि उनकी आबादी में 24.6 फीसदी की बढ़ोत्तरी।
अजीब आंकलन है अंसारी साहब का- असुरक्षा में तो लोगों की चिंताएं बढ़ती हैं तो क्‍या चिंतित व्‍यक्‍ति बच्‍चे पैदा करने में जुट जाते हैं,

तो अंसारी साहब...

दुनिया में "मुसलमानों" को कोई भी देश अपने यहाँ नहीं आने देना चाह्ता ...
यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका में रहने वाले पाकिस्तानी, बांग्लादेश अफगानिस्तान के मुस्लिम्स खुद को वहां इंडियन बताते हैं क्यूंकि बाकी मुस्लिम्स को तो वहां आंतकवादी माना जाता है।

ये भारत है जहाँ ग्रेजुएट होने वाली मुस्‍लिम बेटियों को केंद्र सरकार 51000 रुपये बतौर शगुन देने की घोषणा करती है ताकि बच्‍चियां पढ़ सकें और देश-दुनिया का मुकाबला अपने बूते कर सकें। उन्‍हें किसी हामिद अंसारी की सलाह की जरूरत ही ना पड़े।

आप जैसे लोगों ने मुसलमानों को सभी के साथ मुसलमान की बजाय ''मुसलमान बनाम अन्‍य'' बना दिया है। तभी तो विश्‍वभर के गैर इस्लामिक लोगों में मुस्लिम के प्रति नफरत बढ़ी है लेकिन हम खुश हैं क्‍योंकि हमारे देश में अधिकांश गैर मुस्लिम अब्दुल कलाम जी को ही अपना आदर्श भी मानते हैं ।

और 24 घंटे के अंदर दो बार दिए गए इस एक बयान के बाद निश्‍चित ही आप आदर्श बनने से चूक गए हैं।
गनीमत रही कि आपकी डिप्‍लोमैटिक-सियासती सोच से आपकी पत्‍नी सलमा अंसारी अलग सोचती हैं। जब ट्रिपल तलाक पर बहस-मुबाहिसे चल रहे थे तब आपने खामोशी क्‍यों ओढ़े रखी, मगर सलमा जी ने देवबंदियों के खिलाफ जाकर कहा मुस्लिम महिलाओं को खुद क़ुरान पढ़ने और किसी के कहने पर गुमराह नहीं होने की सलाह दी थी।

मोहम्मद हामिद अंसारी ने जाते-जाते अपने व्‍यक्‍तित्व की जो आखिरी छाप देशवासियों पर छोड़ी है, वह उन्‍हें एक पाखंडी दर्शाती है। और कोई भी समाज या सरकार किसी पाखंडी को तब तक दण्डित नहीं कर सकती जब तक पाखंडी अनैतिकता का प्रदर्शन करते पकड़ा न जाए।

एक शिक्षाविद् होने के नाते अंसारी साहब ये बखूबी जानते होंगे कि पाखंडी अनैतिक आचरण वाले व्यक्ति के समान खुले तौर पर अपराध नहीं करता। वह योजनाबद्ध तरीके से इस प्रकार अपराध करता है कि उसका ऐसा आचरण आसानी से न पकड़ा जा सके। ऐसा व्यक्ति प्रायः ऐसे व्यक्तियों को अपना शिकार बनाता है जो उसके बाह्य आचरण के मोह जाल में फंसे होते हैं, ऐसे लोगों को पकड़ने के लिए जाल बिछाने की आवश्यकता होती है और यहां तो अंसारी साहब स्‍वयं को ''मुस्‍लिम हितरक्षक'' बताने के अपने पाखंड को खुद ही सरेआम कर चुके हैं।
बहरहाल, देश का मुसलमान तुष्‍टीकरण की राजनीति के दुष्‍चक्र से काफी कुछ बाहर आ चुका है, जो शेष है वह भी अपना भला-बुरा ''कांग्रेस-बीजेपी-सपा-जदयू-राजद-तृमूकां-माकपा'' आदि के अलावा भी सोच सकता है।

कल मुंबई में 1000 उलेमाओं द्वारा देश के मुसलमानों की सोच को यूएन तक भेजा गया, यह एक बानगी है हामिद अंसारी साहब, कि मुसलमान देश में असुरक्षित नहीं हैं बल्‍कि वह अपने ही ''कट्टरवाद'' से असुरक्षित हैंं, जिसे अगर आप जैसे शिक्षाविद् ''स्‍वस्‍थ-सोच'' के साथ दूर करने में  लगें तो दूर किया जा सकता है, बस 80 बरस बाद भी  सियासत करने से बाज आयें ।

अनवर जलालपुरी ने आज की इस परिस्‍थिति पर क्‍या खूब कहा है-

खुदगर्ज़ दुनिया में आखिर क्या करें
क्या इन्हीं लोगों से समझौता करें

शहर के कुछ बुत ख़फ़ा हैं इसलिये
चाहते हैं हम उन्हें सज़दा करें

चन्द बगुले खा रहे हैं मछलियाँ
झील के बेचारे मालिक क्या करें

तोहमतें आऐंगी नादिरशाह पर
आप दिल्ली रोज़ ही लूटा करें

तजरुबा एटम का हम ने कर लिया
अहलें दुनिया अब हमें देखा करें



-अलकनंदा सिंह

शनिवार, 5 अगस्त 2017

चोटी कटवा: खौफ़ की मौत तो जाहिल मरा करते हैं

सबसे पहले एक शेर-
बड़े खौफ़ में रहते हैं वो, जो ज़हीन होते हैं
मगर खौफ़ की मौत तो जाहिल मरा करते हैं...

और इन्हीं दो पंक्‍तियों के साथ आज सुबह तक चोटी काटने की घटनाओं की संख्‍या बढ़कर 62 पहुंच गई।

ग़ज़ब है इस देश की रंगत कि हर छ: महीने के अंतराल पर कोई न कोई ऐसी अफवाह मुहैया करा देती है जो लोगों के ''ज़ाहिल होने'' का फायदा बखूबी उठाती है।

गाहे ब गाहे फैलने वाली इन अफवाहों के चलन पर गौर करें तो एक बात इनमें कॉमन है कि इनके शिकार और शिकारी दोनों ही उस तबके से आते हैं जहां जागरूकता का नामोनिशान नहीं होता, ये दायरा गांव-खेड़े से लेकर शहर के उन लोगों तक फैला है जो किसी भी बात को जांच-परखने की बजाय जस का तस मान लेने के आदी होते हैं। इन्‍हीं का फायदा धर्म के छद्म गुरुओं से लेकर तांत्रिकों तक उठाया जाता है, एक कदम और आगे बढ़कर बाजार भी इन्‍हें कैश करने में पीछे नहीं रहता।

डर का बाजार से बहुत बड़ा रिश्‍ता है। लोगों में बीमारियों का डर फैलाकर दवा कंपनियां और चिकित्‍सक हों या गरीब होने का डर फैलाकर चिटफंड कंपनियां, करियर में पीछे रह जाने का डर फैलाकर टैक्‍निकल एजूकेशन संस्‍थान, पति-भाई-पिता की 'उम्र कम' हो जाने का डर फैलाकर कई त्‍यौहारों को अपने तरीके से सैलिब्रेट करन वाने वाली कंपनियां हों, सभी डर फैलाकर अपनी मार्केटिंग का स्कोप बढ़ा रहे हैं। तो फिर चोटी काटने की अफवाह को सच कैसे मान लिया जाए।

यह और कुछ नहीं मास हिस्टीरिया नाम की मानसिक समस्या है। इस समस्या के तहत एक स्‍थान विशेष में रहने वाला पूरा समूह किसी अफवाह पर भरोसा कर लेता है और उसे सच मानने लगता है। और तो और इन्‍हें सच मानकर लोग इस तरह की हरकतें करने भी लगते हैं। इसी तरह एक बार मुंहनोचवा की खबर फैली थी जिसे आजतक किसी ने नहीं देखा लेकिन अफवाह पर लोगों को इतना विश्वास हो गया कि सोते वक्त उन्हें लगने लगा कि कोई उन्हें नोचकर भाग रहा है।

मास हिस्‍टीरिया के ऐसे केस भारत में होते हों , ऐसा नहीं है बल्‍कि यह पूरे विश्‍व में फैले हुए हैं तभी तो ''इकॉनॉमिक वॉरफेयर: सीक्रेट ऑफ वेल्‍थ क्रिएशन इन द एज ऑफ वेलफेयर पॉलिटिक्‍स'' के लेखक जायद के. अब्‍देलनर कहते हैं कि
“Always remember... Rumors are carried
by haters, spread by fools, and
accepted by idiots.”


होम्‍योपैथी में तो बाकायदा किसी भी रोग का इलाज ही मानसिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है और मास व इंडीविजुअल हिस्‍टीरिया के लक्षणों में पाया गया है कि रोगी को हमेशा अपने आसपास कोई छाया सी महसूस होती है, कभी कोई दूसरा (invisible) उन्‍हें शरीर के अमुक अंगों पर कोच रहा होता है, कभी रोगी को लगता है कि उसके शरीर में बहुत दर्द व जलन है जबकि पैथॉलॉजिकली लक्षण किसी बीमारी के नहीं मिलते। इन मानसिक अवस्‍थाओं के लक्षणों वाले रोगियों को होम्‍योपैथी में दवाओं से ठीक करने का निश्‍चित प्रावधान है।

अफवाहों के इस बाजार में मीडिया का भी अपना हिस्‍सा है, वह ज़रा सी बात को तूल देने का आदी है, रीडर्स और व्‍यूअर्स की संख्‍या का लालच सारे एथिक्‍स किनारे करवा देता है और जागरूकता फैलाने के लिए जिस माध्‍यम को प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए, वह फ्रंट पेज पर चोटी कटने की घटनाओं को लीड बनाकर अपना जहालत और लालच दोनों दिखा देता है। चोटी कटी, अस्‍त-व्‍यस्‍त कपड़ों में बेहोश पड़ी महिलाओं के फोटो आज के हर समाचारपत्र का चेहरा होते हैं। जिन्‍हें जागरूकता फैलाने और अंधविश्‍वास को हटाने का माध्‍यम बनना चाहिए, वे भी अफवाहों से अपना कलेक्‍शन करने की सोच रहे हैं।

बहरहाल अफवाहें हमारी अपनी सोच का आइना होती हैं, हमारी सोच जितनी डरी हुई होगी उतनी ही ''किसी और की बात'' ''किसी और का सच'' '' किसी और का चरित्र'' अपने मनमुताबिक ढाल लेगी। ''किसी और'' के लिए किया गया आंकलन स्‍वयं की सोच पर आधारित होता है।

चोटी कटवा: पुलिस-प्रशासन की एडवाइजरी

पुलिस-प्रशासन चाहे कितनी भी एडवाइजरी जारी कर दे मगर चोटी कटने जैसी इस डरी हुई सोच का इलाज तो प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को स्‍वयं करना होगा।
समाज में अंधविश्‍वास के प्रति लगातार जागरुकता अभियान चलाए जाने की आवश्‍यकता है। सामाजिक चेतना ही एकमात्र ऐसा माध्‍यम है जो अफवाहों की संक्रामकता को कम कर सकता है।




और अंत में एक अनाम कवि की कविता- इन अफवाहों के नाम

अफवाहें भी उड़ती/उड़ाई जाती हैं,
जैसे जुगनुओं ने मिलकर
जंगल में आग लगाई
तो कोई उठे कोहरे को
उठी आग का धुंआ बता रहा
तरुणा लिए शाखों पर उग रहे
आमों के बोरों के बीच
छुप कर बैठी कोयल
जैसे पुकार कर कह रही हो
बुझा लो उड़ती अफवाहों की आग
मेरी मिठास सी कुह-कुहू पर ना जाओ
ध्यान ना दो उड़ती अफवाहों पर
सच तो यह है कि अफवाहों से
उम्मीदों के दीये नहीं जला करते
बल्कि उम्मीदों पर पानी फिर जाता है
ख्वाब कभी अफवाह नहीं बनते
और यदि ऐसा होता तो अफवाहें
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे,गिरजाघर से
अपनी जिंदगी की भीख
भला क्यों मांगती ?

- अलकनंदा सिंह
Blog: www.abchhodobhi.blogspot.in