लेखकों को विरोध करने का अलग तरीका अपनाना चाहिए और साहित्य अकादमी जैसी स्वायत्तशासी निकाय का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए.
लेखक नयनतारा सहगल और कवि अशोक वाजपेयी द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा करने के बाद अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा है कि अकादमी कोई सरकारी संगठन नहीं बल्कि एक स्वायत्तशासी निकाय है. किसी भी लेखक को एक चुने गए कार्य के लिए पुरस्कार दिया जाता है और पुरस्कार लौटाने का कोई तर्क नहीं है क्योंकि यह पद्म पुरस्कार जैसा नहीं है.
हिंदी कवि अशोक वाजपेयी ने आज साहित्य पुरस्कार लौटा दिया, जो उन्हें 1994 में उनके काव्य संग्रह ‘कहीं नहीं वहीं’ के लिए दिया गया था.
उन्होंने यह पुरस्कार ‘जीवन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमले’ के खिलाफ लौटाया और आरोप लगाया कि साहित्य अकादमी की ओर से कुछ नहीं कहा गया.
कल लेखक नयनतारा सहगल ने एक खुला पत्र लिखकर अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी और दादरी में एक मुस्लिम की गोमांस खाने के संदेह में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर की गई हत्या और कन्नड़ लेखक एम. एम. कलबुर्गी और तर्कवादी नरेंद्र डाभोलकर एवं गोविंद पानसरे की हत्याओं का उल्लेख किया.
तिवारी ने कहा, ‘भारत की साहित्यिक संस्कृति की राष्ट्रीय अकादमी पुरस्कार के लिए चुनी गई कृतियों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में कराता है और पुरस्कृत लेखक को इससे काफी सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. यदि लेखक पुरस्कार लौटा भी देता है तो उसे मिली ख्याति का क्या?’
अकादमी के अध्यक्ष तिवारी स्वयं हिंदी के जानेमाने कवि, लेखक, और समीक्षक हैं.
उन्होंने लेखकों से विरोध जताने के लिए अलग तरीका अपनाने का आग्रह किया और कहा कि वे इस साहित्यिक संस्था को राजनीति में नहीं खींचें. उन्होंने कहा, ‘लेखकों को विरोध जताने के लिए अलग तरीका अपनाना चाहिए. वे साहित्य अकादमी को जिम्मेदार कैसे ठहरा सकते हैं जिसका 60 से अधिक वर्षों से अस्तित्व है. आपातकाल के दौरान भी अकादमी ने कोई रुख नहीं अपनाया था.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्यिक हलकों में परंपरा के तहत अकादमी कृतियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कराता है, पुरस्कार देता है, सम्मेलन आयोजित करता है और कार्यशालाएं आयोजित करता है ताकि साहित्यिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाया जा सके.
तिवारी ने कहा, ‘यदि साहित्य अकादमी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी के खिलाफ विरोध जताएगा तो क्या वह अपने प्राथमिक कार्य से भटक नहीं जाएगा.? उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूं कि लेखक साहित्य अकादमी नहीं बल्कि सरकार का विरोध कर रहे हैं. इसलिए यदि यह एजेंडा है तो क्या साहित्य अकादमी को इस एजेंडे में पड़ना चाहिए और साहित्यिक कार्य छोड़ देना चाहिए?’
लेखक नयनतारा सहगल और कवि अशोक वाजपेयी द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा करने के बाद अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा है कि अकादमी कोई सरकारी संगठन नहीं बल्कि एक स्वायत्तशासी निकाय है. किसी भी लेखक को एक चुने गए कार्य के लिए पुरस्कार दिया जाता है और पुरस्कार लौटाने का कोई तर्क नहीं है क्योंकि यह पद्म पुरस्कार जैसा नहीं है.
हिंदी कवि अशोक वाजपेयी ने आज साहित्य पुरस्कार लौटा दिया, जो उन्हें 1994 में उनके काव्य संग्रह ‘कहीं नहीं वहीं’ के लिए दिया गया था.
उन्होंने यह पुरस्कार ‘जीवन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमले’ के खिलाफ लौटाया और आरोप लगाया कि साहित्य अकादमी की ओर से कुछ नहीं कहा गया.
कल लेखक नयनतारा सहगल ने एक खुला पत्र लिखकर अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी और दादरी में एक मुस्लिम की गोमांस खाने के संदेह में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर की गई हत्या और कन्नड़ लेखक एम. एम. कलबुर्गी और तर्कवादी नरेंद्र डाभोलकर एवं गोविंद पानसरे की हत्याओं का उल्लेख किया.
तिवारी ने कहा, ‘भारत की साहित्यिक संस्कृति की राष्ट्रीय अकादमी पुरस्कार के लिए चुनी गई कृतियों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में कराता है और पुरस्कृत लेखक को इससे काफी सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. यदि लेखक पुरस्कार लौटा भी देता है तो उसे मिली ख्याति का क्या?’
अकादमी के अध्यक्ष तिवारी स्वयं हिंदी के जानेमाने कवि, लेखक, और समीक्षक हैं.
उन्होंने लेखकों से विरोध जताने के लिए अलग तरीका अपनाने का आग्रह किया और कहा कि वे इस साहित्यिक संस्था को राजनीति में नहीं खींचें. उन्होंने कहा, ‘लेखकों को विरोध जताने के लिए अलग तरीका अपनाना चाहिए. वे साहित्य अकादमी को जिम्मेदार कैसे ठहरा सकते हैं जिसका 60 से अधिक वर्षों से अस्तित्व है. आपातकाल के दौरान भी अकादमी ने कोई रुख नहीं अपनाया था.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्यिक हलकों में परंपरा के तहत अकादमी कृतियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कराता है, पुरस्कार देता है, सम्मेलन आयोजित करता है और कार्यशालाएं आयोजित करता है ताकि साहित्यिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाया जा सके.
तिवारी ने कहा, ‘यदि साहित्य अकादमी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी के खिलाफ विरोध जताएगा तो क्या वह अपने प्राथमिक कार्य से भटक नहीं जाएगा.? उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूं कि लेखक साहित्य अकादमी नहीं बल्कि सरकार का विरोध कर रहे हैं. इसलिए यदि यह एजेंडा है तो क्या साहित्य अकादमी को इस एजेंडे में पड़ना चाहिए और साहित्यिक कार्य छोड़ देना चाहिए?’
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