गुरुवार, 27 अगस्त 2020

व‍िवाद करके कहीं के न रहे साइकॉलॉज‍िकल ड‍िसऑर्डर के मारे ये बुद्ध‍िजीवी

कुछ साइकॉलॉज‍िकल ड‍िसऑर्डर ऐसे होते हैं जो व्यक्ति, व‍िषय, देश और ''समाज के अह‍ित में ही अपना ह‍ित'' समझते हैं , इस तरह के ड‍िसऑर्डर्स में सुपरमेसी की लालसा इतनी हावी होती है...क‍ि दूसरे को ध्वस्त करना ही मकसद हो जाता है, चाहे इसमें खुद ही क्यों ना फना हो जायें।

आजकल इस ड‍िसऑर्डर से ही गुजर रहा है साह‍ित्य का वो धड़ा जो स्वयं को प्रगत‍िशील कहता न थकता था, साह‍ित्य के शीर्ष पर यही व‍िराजमान था ज‍िसने अपनी वामपंथी सोच के चलते देश में द्रोह-राजनीत‍ि से  ''न‍िकम्मेपन की प्रवृत्त‍ि'' यशोगान क‍िया, बुर्जुआ को गर‍ियाना और सर्वहारा को न‍िकम्मा बनाना इसका अभ‍ियान रहा परंतु अब यही धड़ा अपने साइकॉलॉज‍िकल ड‍िसऑर्डर के कारण बदहवास स्थ‍ित‍ि में है, बात बात पर व‍िरोध करने की प्रवृत्त‍ि ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा।

द‍िल्ली दंगों पर ल‍िखी क‍िताब Delhi Riots 2020: untold story को प्रकाश‍ित ना होने देने का जो अभ‍ियान इस वाम पंथी धड़े ने चलाया था, वो उसी पर भारी पड़ गया। दरअसल Delhi Riots 2020: untold story की तीनों लेखिकाओं वकील मोनिका अरोड़ा, डीसयू की प्रोफेसर सोनाली चितलकरप्रेरणा मल्होत्रा द्वारा फील्ड में घूम कर, कई लोगों से इंटरव्यू लेकर और पुलिस जाँच के आधार पर जो लिखा और संपादित किया गया है उसे  सितम्बर में ही रिलीज किया जाना था, वर्चुअल बैठकों में इसके रिलीज को लेकर बैठकें हो रहीं थीं। परंतु अभ‍िव्यक्त‍ि की आजादी पर पूरे देश को स‍िर पर उठा लेने वालों ने ब्लूमबेरी पब्ल‍िकेशन से क‍िताब के प्रकाशन पर रोक लगवा दी, क‍िताब की लेख‍िकाओं ने इस व‍िरोध को एक चैलेंज के तौर पर लेते हुए गरुड़ प्रकाशन से अपनी क‍िताब का प्रकाशन करवा ल‍िया और अब यह क‍िताब अभी तक लाखों के प्र‍िऑर्डर पर बुक हो चुकी है तथा आगे भी ब‍िक्री के सारे र‍िकॉर्ड टूटने वाले हैं। 

इस पूरे प्रकाशन व‍िरोध अभ‍ियान में पत्रकार तवलीन स‍िंह के बेटे पाक‍िस्तानी कट्टरवादी आत‍िश तासीर, मुगल कालीन इत‍िहास को मह‍िमामंड‍ित करने वाली पुस्तकें ल‍िखने वाले स्कॉटिश लेखक विलियम डेलरिम्पल, कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी के नेता, दक्षिण एशिया सॉलिडैरिटी इनिशिएटिव से जुड़े बुद्ध‍िजीवी, अभिनेत्री स्वरा भास्कर, कई पत्रकार शाम‍िल थे। ज‍िसमें खासकर वाम बुद्धिजीवियों ने क‍िताब के पब्ल‍िकेशन को रुकवाने के ल‍िए ब्लूमबेरी प्रकाशन पर स्ट्रेटज‍िक व फाइनेंश‍ियल हर तरह का दबाब बनाया और प्रकाशन रुकवाने में कामयाब भी रहे परंतु इस जद्दोजहद में वे यह भूल गए क‍ि वे स्वयं इस सब में बेनकाब हो गए हैं। स्वयं आतिश तासीर ने कहा कि स्कॉटिश इतिहासकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल ही वो व्यक्ति हैं, जिसने इस पुस्तक के प्रकाशन पर रोक लगवाई। विलियम डेलरिम्पल ने भी इसी अगस्त 21 को कहा था कि वो दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक का प्रकाशन रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

सवाल उठता है क‍ि पुस्तक का प्रकाशन रुकवाने के इस पूरे मामले में उनके हाथ क्या लगा...इतनी क्या इमरजेंसी क‍ि ये सब के सब इकठ्ठे होकर देश से लेकर व‍िदेशी लेखकों तक की मदद मांगने को व‍िवश हुए  ... क‍िताब में ऐसा क्या था क‍ि ये सब भयभीत हो रहे थे ...मात्र दंगे की र‍िपोर्ट‍िंग पर इनका भयभीत हो जाना '' दाल में काला '' की ओर इशारे नहीं करता क्या...। क‍िताब का प्रकाशन रुकवाकर हो सकता है ये खुश हो रहे हों परंतु अब जबक‍ि यही क‍िताब गरुड़ प्रकाशन से बाजार में आ रही है, तब इनका ये पूरा का पूरा अभ‍ियान चौपट हो गया। अभी तक ज‍िस क‍िताब को एक ल‍िम‍िटेड वर्ग पढ़ता अब उसी क‍िताब की गरुड़ प्रकाशन द्वारा छापने की घोषणा करने के चंद घंटों के भीतर ही 20 हजार प्रत‍ियों की  प्र‍िबुक‍िंग हो गई।

वामपंथ‍ियों की इस स्थ‍ित‍ि पर मुझे ''मोर के नाचने'' का सीन याद आ रहा है, ज‍िसमें पंखों की ओर से भले ही वो खूबसूरत द‍िखे परंतु असल में वो नंगा हो रहा होता है। मुझे आश्चर्य होता है अपने ''बौद्ध‍िक'' कहलाने पर भी क‍ि कैसे कैसे जाह‍िलों को अभी तक हमने ढोया, कैसे कैसे द्रोह‍ियों को हम अभी तक सरआंखों पर बैठाते आए... कैसे कैसे...  परंतु अब और नहीं, भांडा फूट चुका है... मैं जो क‍ि सदैव लेखन में न‍िरपेक्षता न‍िरपेक्षता रटती रही आज महसूस हुआ क‍ि समस्या की ओर से आंखें मूंद लेना न‍िरपेक्षता नहीं कायरता होती है परंतु अब और नहीं ।

- अलकनंदा स‍िंंह

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

ये सोशल मीड‍िया है… बुरी ज़हन‍ियत को नंगा भी कर देता है

हाल ही में घट‍ित हुए तीन उदाहरणों से मैं एक बात पर पहुंची हूं क‍ि दंगाई हों, सफेदपोश नेता हों, कव‍ि हों या शायर हों, इस सोशल मीड‍िया के समय में क‍िसी की कारस्तानी छुपी नहीं रह सकती। कल तक हम ज‍िन्हें स‍िर आंखों पर बैठाते थे और अचानक उनकी कोई ऐसी करतूत हमारे सामने आ जाए जो न केवल समाज व‍िरोधी हों बल्क‍ि देश व‍िरोधी भी हो तो इसके ल‍िए हम सोशल मीड‍िया को ही धन्यवाद देते हैं। फिर मुंह से न‍िकल ही जाता है क‍ि अच्छा हुआ पता चल गया वरना…
इस तर‍ह बेपर्दा होने के तीन उदाहरण हमारे सामने हैं। कल बैंगलुरु में हुई ह‍िंसा, फिर राहत इंदौरी का चले जाना और उससे एक द‍िन पहले मुनव्वर राणा साहब का ज़हर उगलना।
पहला उदाहरण- बैंगलुरू ह‍िंसा मामले की शुरुआत भगवान कृष्ण को रेप‍िस्ट बताकर राधा जी और गोप‍ियों के ख‍िलाफ ”कुछ तत्वों” द्वारा अनर्गल ल‍िखने से हुई परंतु प्रचार‍ित ये क‍िया जा रहा है क‍ि ”मुहम्मद साहब” के ख‍िलाफ अनर्गल ट्विटर पोस्ट पर बवाल हुआ और ”कुछ तत्वों” ने आगजनी कर लाखों की संपत्त‍ि फूंककर पुल‍िस पर हमला करते हुए दर्जनों पुल‍िसकर्मी घायल कर द‍िए… । इसके बाद हमारे तथाकथ‍ित धर्मन‍िरपेक्ष ठेकेदारों ने मंद‍िर के आगे मानव श्रृंखला बनाए खड़े कुछ मुस्ल‍िम युवकों की तारीफ में कसीदे पढ़े ही थे क‍ि सोशल मीड‍िया ने सारा सच उगल द‍िया… क‍ि पूर्व न‍ियोज‍ित था यह क‍ि ह‍िंसा व आगजनी के बाद ऐसा वीड‍ियो बनाकर ”खास तरह” से प्रचार‍ित क‍िया जाए। हिंसा में बड़ी बात निकलकर सामने आई है। पुलिस की मानें तो 5 दंगाइयों ने 300 लोगों का गैंग बनाया था। उनका प्लान सभी पुलिस वालों को जान से मारने का था। हमलावरों ने हिंसा के दौरान पुलिस को निशाना बनाने के लिए गुरिल्ला जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया। 


आलोक श्रीवास्तव द्ववारा राणा को ल‍िखा पत्र-

दूसरा उदाहरण हैं – जाने माने शायर मुनव्वर राणा, ज‍िन्होंने राम मंद‍िर पर सुप्रीमकोर्ट के न‍िर्णय को गलत बताते हुए एकसाथ देश की सुप्रीम कोर्ट व सरकार पर सवाल खड़े कर अपनी ”अभ‍िव्यक्त‍ि की स्वतंत्रता” का बेजां इस्तेमाल क‍िया। ये वही मुनव्वर राणा हैं जो आजतक के पूर्व एंकर व शायर आलोक श्रीवास्तव की नज़्म चुराकर उन्हीं की मौजूदगी में मुशायरे में अपने नाम से सुना चुके हैं, मैं उस पत्र को भी यहां चस्‍पा कर रही हूं जो आलोक श्रीवास्तव ने मुनव्वर राणा को ल‍िखा था। ये पत्र भी सरेआम हो गया और मुनव्वर राणा की हक़ीकत हमें बता गया।
हालांक‍ि सोशल मीड‍िया दोधारी तलवार भी है तो बूमरैंग भी, दोधारी तलवार इसल‍िए क‍ि इस पर आने वाली सूचनाएं कहर बरपा सकती हैं और जागरूकता भी पैदा कर सकती हैं। बूमरैंग इसल‍िए क‍ि इस पर डाली गई साम‍ग्री लगातार घूमकर कब हमारे सामने क‍िसे नंगा कर दे, कहा नहीं जा सकता। सोशल मीड‍िया क‍ि पूरी प्रोसेस में परदे के पीछे से घात करने वाले बहुत द‍िनों तक छुप नहीं पाते, उनके कुकृत्य सबके सामने आ ही जाते हैं। मुनव्वर राणा इसका ताजा उदाहरण हैं।

अब तीसरा उदाहरण राहत इंदौरी साहब का- हालांक‍ि मरने के बाद हमारे संस्कारों में नहीं है क‍िसी की मजामत करना, परंतु अटल ब‍िहारी वाजपेयी से लेकर अहमदाबाद के दंगों पर उनकी ज़ुबान का ज़हर तो हमने मुशायरों में बहुत सुना परंतु कभी वह गोधरा का सच ना बोल सके…आख‍िर क्यों.. ?? मुशायरों के मंच से युवाओं को अहमदाबाद दंगे याद रखने को कहते हैं और मुंबई दंगे भूल जाते हैं, उन्हें 370 तो याद रहता है…व‍िस्थाप‍ित पंड‍ितों को भूल जाते हैं। स‍िर्फ ह‍िंदू ही क्यों, उन्हें तो तीन तलाक़ का खत्म होना भी अखरता है पर हलाला भूल जाते हैं.. इन सबके सुबूत सोशल मीड‍िया हमें देता रहता है परंतु हम ही अगर एक आंख से देखेंगे तो कैसे इनकी असल‍ियत पहचानेंगे … अब यही मीड‍िया उनकी कलई खोल रहा है।
देख‍िए वीड‍ियो-


सत्य कड़वा होता है, सुना नहीं जाता परंतु सोशल मीड‍िया ही है जो अब इन जैसों को नंगा कर रहा है। बैंगलुरू ह‍िंसा के पीछे छुपे तत्व हों या मुनव्वर राणा व राहत इंदौरी जैसे बड़े शायर, सबकी ज़हन‍ियत के सच से हमें सावधान रहना होगा।
- अलकनंदा स‍िंंह