गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

राग दरबारी के रचनाकार श्रीलाल शुक्ल का जन्मद‍िन आज


श्रीलाल शुक्ल हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे ज‍िन्होंने ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता की परतें उघाड़ कर ल‍िखी थी राग दरबारी। श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसम्बर 1925 को लखनऊ के अतरौली गाँव में हुआ था। श्रीलाल शुक्ल को लखनऊ जनपद के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे।

विख्यात हिन्दी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध व्यंग्य रचना रागदरबारी के लिये उन्हें सन् 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह ऐसा उपन्यास है जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है।

‘राग दरबारी’ का लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अन्तिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ। 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई।

उन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में राज्य सिविल सेवा से नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए। ‘राग दरबारी’ सहित उनका समूचा साहित्य किसी न किसी रूप में उपन्यास, कहानी, व्यंग्य और आलोचना को अभिनव अन्त:दृष्टि प्रदान करता है। साहित्य को रूमानी मूर्खताओं से मुक्त करने में उनकी भूमिका की अब शायद ज्यादा याद आएगी।

श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपने आप में मिसाल था। सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। श्रीलाल शुक्ल अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान थे। श्रीलाल शुक्ल संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे। ‘कथाक्रम’ समारोह समिति के वह अध्यक्ष रहे। श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, लेकिन उसके विलाप से लेखन को नहीं भरा। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे।

श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते। श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बड़ा सहज था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे। लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहते थे। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली ‘राग दरबारी’ जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी।

‘राग दरबारी’ एक ऐसा उपन्यास है जो गांव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। यह उपन्यास एक आदर्श स्टूडेंट की कहानी कहता है, जो सामाजिक, राजनीतिक बुराइयों में अपने विश्वविद्यालय में मिली आदर्श शिक्षा के मूल्यों को स्थापित करने के लिए संघर्ष करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। ‘राग दरबारी’ का लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अंतिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ। 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई।

‘राग दरबारी’ व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है। ‘राग दरबारी’ की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल फूल रही हैं।

- Alaknanda singh

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

सीहोर साहित्य सम्मान 2021: सबसे बड़े साहित्यिक पुरस्कार की घोषणा


 नागपुर से संचालित साहित्यिक प्रकाशन, कथाकानन और साहित्य सदन सीहोर, हरियाणा के एक उनींदे गाँव सीहोर में पनप रहे साहित्य उपक्रम ने साथ जुट कर एक कहानी तथैव तीन कविताओं के लिए हिंदी साहित्य जगत में इस श्रेणी के सबसे बड़े साहित्यिक पुरस्कार की घोषणा की है।

इस पुरस्कार  कहानी खंड के लिए प्रविष्टियाँ स्वीकार करने की अवधि 1 जनवरी २०२१ से आरम्भ होगी, और १५ फरवरी २०२१ मध्यरात्रि को समाप्त होगी।  कहानी का प्रथम पुरस्कार  21000/ रुपये का होगा। मौलिक एवं अप्रकाशित होने के साथ साथ, यह अनिवार्य है कि कहानी की शब्द- संख्या न्यूनतम 700 शब्द तथा अधिकतम 3000 शब्द हो। द्वितीय और तृतीय पुरस्कार क्रमशः 11000/ एवम 5000/ रुपये के होंगे। इनके अतिरिक्त लघुसूची में प्रवेश पानेवाले हर कहानीकार को 500/ रुपये का प्रोत्साहन पुरस्कार प्राप्त होगा।
हिंदी साहित्य के तीन सुप्रसिद्ध उपन्यासकार/ कहानीकार इस प्रतियोगिता के कहानी- खंड के निर्णायक होंगे। जनसत्ता मुम्बई के भूतपूर्व फीचर संपादक और सहारा समय के भूतपूर्व संपादक धीरेंद्र अस्थाना जो कि एक स्थापित उपन्यासकार और कहानी लेखक भी हैं, तीन निर्णायकों में से एक निर्णायक तय हुए हैं। एक दर्जन के आसपास उनके उपन्यास और कहानी संग्रह छप चुके हैं, जिनमें ‘गुज़र क्यों नहीं जाता’ और ‘हलाहल’ उपन्यास तथा ‘खुल जा सिम सिम’ और ‘उस रात की गंध’ कहानी-संग्रह शामिल हैं। दूसरे निर्णायक हैं हिंदी कहानी जगत में अपनी अलग पहचान रखने वाले कहानीकार योगेंद्र आहूजा। योगेंद्र आहूजा के कहानी संग्रह ‘ अँधेरे में हँसी’ और ‘पाँच मिनट’ खूब चर्चा में रहे, और उन्हें मिले अनेक सम्मानों में ‘ कथा पुरस्कार’, ‘ परिवेश पुरस्कार’ और ‘ रमाकांत स्मृति पुरस्कार’ प्रमुख हैं। तीसरे निर्णायक के लिए एन डी टी वी के वरिष्ठ संपादक प्रियदर्शन को चुना गया है।  लोकप्रिय उपन्यास ‘ ज़िन्दगी लाइव’, तथा कहानी- संग्रह ‘ बारिश, धुआं और दोस्त’ तथा ‘ उसके हिस्से का जादू’ को मिलाकर प्रियदर्शन की 9 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  सलमान रश्दी,  अरुंधति राय, तथा अन्य लेखकों की सात कृतियों का वे हिंदी में अनुवाद कर चुके हैं। विजेताओं की घोषणा अप्रैल के प्रथम सप्ताह में की जायेगी।
बाबू गौतम, सीहोर साहित्य सम्मान के संस्थापक, और साहित्यिक प्रकाशन कथाकानन के प्रेता हैं और फिलहाल एफ डी सी एम एस्सेलवर्ल्ड गोरेवाड़ा ज़ू के व्यवस्थापक हैं। बाबू गौतम की हिंदी कहानियाँ हालाँकि भारतीय परंपराओं में उपजी होती हैं, पर कथ्य और शैली में हेमिंग्वे और रॉल्ड डाहल जैसे विश्वस्तरीय कहानीकारों के साथ रखी जा सकती हैं। उनकी अंग्रेजी कृतियों में उपन्यास ‘ डैडली इन्नोसेंट’ ( संक्षिप्त संस्करण एंडी लीलू) और कहानी- संग्रह ” मोहम्मद ए मेकैनिक एंड मैरी ए मेड” प्रमुख हैं। वे सीहोर गाँव के मूलनिवासी हैं।
बाबू गौतम का मानना है कि ‘हमारा भोजन हमें उतना हम नहीं बनाता है, जितना कि हमारा पठन। हम वही बनते हैं जो हम पढ़ते हैं।’ उन्होंने अपने संसाधनों को हिंदी साहित्य के उत्थान में यह सोच कर समर्पित किया है कि ‘अगर हमें अपने खोये हुए गौरव को हासिल करना है तो आर्थिक समृद्धि के साथ साथ साहित्यिक बुलंदियों को भी छूना होगा’।
कविता- खंड के लिए भी निर्णायकों का चयन कर लिया गया है, प्रविष्टियाँ 15 जनवरी से स्वीकार की जाएँगी। कविता- खंड का प्रथम पुरस्कार 11000/ रुपये का होगा, जिसका नाम आधुनिक हिंदी कविता के सिरमौर मंगलेश डबराल की स्मृति में ‘मंगलेश डबराल सम्मान’ होगा।
अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सएप नंबर 9820506161पर संपर्क करें और अपनी रचनाएँ gautambl@yahoo.co.in इस
ईमेल पर रचनाएँ भेजें।
-Legend News

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

हाथरस कांड: वो सच जो कानून के दायरे से बाहर रह गए


 आख‍िरकार ज‍िसका अंदेशा था, वही हुआ। हाथरस कांड में सीबीआई ने अपनी चार्जशीट जमा कर दी और इस तरह जो स्क्र‍िप्ट घटना के 'चौथे द‍िन' से ल‍िखनी शुरू की गई थी, वह अब सीबीआई के ठप्पे के साथ कोर्ट में जमा हो गई है। 

अब चारों आरोप‍ितों के ख‍िलाफ 376 A , 376 D, 302 IPC व SCST Act के तहत मुकद्दमा चलेगा अर्थात् जो पटकथा का आधार घटना के चौथे द‍िन से बनाया गया , वह अब कोर्ट में ज‍िरहों के संग अपने भूत व भव‍िष्य को तय करेगा। 


धर्म, जात‍ि, संप्रदाय से अलग होकर हम सभी चाहते हैं क‍ि बेहतर समाज के ल‍िए 'वास्तव‍िक' अपराधी को सजा अवश्य म‍िले परंतु जब क‍िसी अपराध की पटकथा ''रच कर'' उसे साब‍ित कराने को हथकंडे अपनाए जायें, तो यह समाज की समरसता के ल‍िए पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। कुछ तो कानून और कुछ कोर्ट की सालों लंबी ख‍िंचती प्रक्र‍िया के कारण हमारी सोच कुछ इस तरह की हो चुकी है, क‍ि आरोपी को पहले द‍िन से अपराधी मान लेते हैं और इसी सोच ने अच्छे से अच्छे कानून के दुरुपयोगों को जन्म द‍िया। 

मह‍िलाओं से जुड़े कानूनों का सर्वाध‍िक दुरुपयोग हुआ और अब भी हो रहा है या यूं कहें क‍ि लगातार बढ़ ही रहा है। प्रेम‍िका प्रेमी की हत्या गला दबाकर कर देती है तो उसके पीछे वजहें खोजी जाती है ताक‍ि वह बेचारी साब‍ित की जा सके। इसी तरह हर बाल‍िग मह‍िला ''बहला फुसला'' ली जाती है और लड़के से घंटों घंटों मोबाइल पर फोन करने के बावजूद हर लड़की प्रेम के मामले में ''मासूम'' होती है। नाक में दम कर देने वाला हर दल‍ित '' बेचारा'' और हर व‍िवाह‍ित मह‍िला की मौत ''दहेज हत्या'' होती है।  

मरते हुए व्यक्त‍ि के बयान को सनातन सत्य और हर पीड़‍ित को न‍िर्दोष बताने वाली इस अवसरवादी व्याख्या का फायदा क‍िसी सच को स्थाप‍ित करने में नहीं बल्क‍ि झूठ की बुन‍ियाद को पुख्ता में हो रहा है। 

हाथरस कांड में घटना वाले द‍िन से लेकर अगले दो तीन द‍िन तक अलीगढ़ मेडीकल कॉलेज में एडम‍िट की गई पीड़‍िता का वीड‍ियो र‍िकॉर्डेड बयान एकदम अलग था तो कैसे वह बयान द‍िल्ली के अस्पताल तक जाते जाते पलट गया, वह भी व‍िपक्षी दल‍ित नेताओं के मजमे के बाद... इतना ही नहीं पीड़ि‍ता की मां का बयान भी उतनी ही बार पलटा ज‍ितनी बार क‍िसी नेता ने उससे मुलाकात की, सभी पर‍िजन  नार्को टेस्ट कराने से भी मुकर गए...क्या यह काफी नहीं है सच्चाई बयां करने को, यद‍ि अपराध सच में आरोप‍ियों ने ही क‍िया था तो नार्को से ये ( पीड़‍ित के पर‍िजन) क्यों मुकरे। सीबीआई तो वही र‍िपोर्ट करेगी ना जो उसे पीड़‍ित बतायेंगे और तो और ज‍िसके खेत में वारदात हुई वह चश्मदीद क‍िशोर 'छोटू' भी नार्को से क्यों मुकरा.. यह कोई ऐसी पहेली नहीं क‍ि ज‍िसे सब समझ ना रहे हों... परंतु...इस पूरे मामले में नार्को टेस्ट कराने की कानूनी बाध्यता ना होने का फायदा उन षडयंत्रकार‍ियों को म‍िलेगा जो तमाम तरह से '' लाभान्व‍ित '' हुए।  

ग्रामीण इलाकों में पीढ़ी दर पीढ़ी पलती रंज‍िशों के समाजशास्त्र में यह केस भी अपने भव‍िष्य के साथ आगे बढ़ रहा है। अन्याय के बाद जन्म लेने वाले अपराध से उपजी रंज‍िशें पीढ़‍ियों को न‍िगल जाती हैं , इस दल‍ित राजनीत‍ि का घ‍िनौना रूप गांव के चप्पे चप्पे पर जैसे च‍िपक कर रह गया है, हाथरस का ये गांव चंदपा अब ठाकुरों और दल‍ितों के खेमे में बंट गया है और कोई न्याय इसे पाट नहीं सकता।  

19 साल पहले इसी पीड़‍ित दल‍ित पर‍िवार ने SCSTAct में 'फर्जी केस' दर्ज कराकर जब 2 लाख रुपये लेकर इन्हीं ( वर्तमान आरोप‍ियों) से राजीनामा क‍िया था, रंज‍िश तो तभी से शुरू हो गई थी, इस दुश्मनी को गाढ़ा रंग म‍िला आरोपी एक लड़के से मृतका के प्रेम संबंधों के चलते। इत्त‍िफाक ऐसा क‍ि लड़की से संबंध रखने वाले का नाम संदीप और लड़की भाई का भी नाम संदीप... व‍िक्ट‍िम लड़की के सबसे पहले जो वीड‍ियो आए वे सारी कहानी बताते हैं परंतु व‍िक्ट‍िम के पर‍िवारीजन शुरू से ही संदेह के घेरे में रहे और इसकी तस्दीक उन्होंने नार्को टेस्ट से मना करके कर भी दी। तमाम अन्य कारणों को तो जाने ही दें। 

बहरहाल अब आगे की राजनीत‍ि के ल‍िए वोटों का कैश काउंटर खुल चुका है, ज‍िसमें व‍िपक्ष प्रदेश की योगी सरकार को कठघरे में लाता रहेगा और सीबीआई र‍िपोर्ट के आधार पर अपनी अपनी हांडी चढ़ाएगा, इस हांडी में प‍िसेगा तो पूरा का पूरा चंदपा गांव। 

- अलकनंदा स‍िंंह 

शनिवार, 5 दिसंबर 2020

क‍िसान आंदोलन: परत दर परत खुल रहे हैं राज़


 ‘इंद‍िरा ठोक दी, मोदी क्या चीज़ है, मोदी को भी…’  के साथ खाल‍िस्तान की मांग वाले पोस्टर्स,  पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे, शाहीनबाग वाली दादी ब‍िल्क‍िस बानो, धारा 370 वापसी की मांग, नागर‍िकता संशोधन ब‍िल के व‍िरोधी, सरदार जी के वेश में नज़ीर की उपस्थ‍ित‍ि, मस्ज़‍िदों से पहुंचता खाना, हाथरस वाली भाभी की उपस्थ‍ित‍ि, जेएनयू की छात्राओं के गुट, क‍िसान नेता महेंद्र स‍िंह ट‍िकैत ज‍िस बेटे की हरकतें पसंद नहीं करते थे, वो राकेश ट‍िकैत, पीएफआई के साथ संबंध रखने वाला चंद्रशेखर और द‍िल्ली दंगों के आरोपी अमानतुल्ला खान, इंद‍िरा गांधी को म‍िटाया और अब मोदी को म‍िटाने की धमकी देने वाले तत्व, आंदोलन स्थल से पीछे की ओर अपनी आलीशान गाड़‍ियां खड़ी कर आईफोन से सेल्फी लेने वाले तथाकथ‍ित ”बेचारे गरीब क‍िसान” …..।

ये मजमा है उन लोगों का है जो केंद्र सरकार के व‍िरोध से ज्यादा स्वयं ”मोदी व‍िरोध” में स्वयं अपना ही चेहरा मैला क‍िये जा रहे हैं और क‍िसान ब‍िल के व‍िरोध की आड़ में कोरोना के बाद पटरी पर आती देश की अर्थव्यवस्था को तहस नहस करने पर आमादा हैं। यही वजह है क‍ि आंदोलन को अब हर खासोआम हिकारत की नजर से देखने लगा है।

आंदोलन का सच बताने में रही-सही कसर अवार्ड वापसी गैंग्स और उन ख‍िलाड़ि‍यों व कलाकारों ने पूरी कर दी जो कभी क‍िसान रहे ही नहीं। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि जिन्होंने कायदे से गांव नहीं देखे, खेत से जिनका साबका नहीं पड़ा, फसल की निराई-गुड़ाई नहीं की, उपज की मड़ाई-कटाई नहीं की, जो नहीं जानते क‍ि घर पर खेतों से अनाज कैसे आता है, वे लोग किसानों के हमदर्द बनने चले हैं। और दावा यह भी कि ये तो “किसान आंदोलन” है, इसका राजनीति से कोई भी लेना-देना नहीं।

न‍िश्च‍ित रूप से इसका राजनीत‍ि से लेना देना नहीं है परंतु उन तत्वों से अवश्य लेना-देना है ज‍िनके एनजीओ को फंड‍िंग के लाले पड़े हैं। जो मंड‍ियों के ब‍िचौल‍िए थे, करोड़ों में खेलते थे और उनका एकाध‍िकार टूट रहा है। क‍िसान अपनी फसल क‍िसी को भी बेचे, यह कोई भी ब‍िचौल‍िया कैसे बर्दाश्त करेगा भला।

बेशक हम सोशल मीड‍िया को तमाम नकारात्मक गत‍िव‍िध‍ियों के ल‍िए गर‍ियाते रहते हैं परंतु यही मीड‍िया ‘इन जैसे’ तत्वों की पोल खोलने का माध्यम भी बना है, ठीक हाथरस कांड की तरह ज‍िसमें एक कांग्रेस नेता की पीएफआई के साथ सांठगांठ को दलि‍त अत्याचार के रूप में प्रचार‍ित क‍िया गया था।

इस कथ‍ित क‍िसान आंदोलन में मेधा पाटकर, चंद्रशेखर, जेएनयू छात्र, सीएए व‍िरोधी और खाल‍िस्तानी अलगाववाद‍ियों की उपस्थ‍ित‍ि के साथ साथ पाक‍िस्तानी मौलवी और कनाडा के पीएम के बयानों ने पूरा पैटर्न ही समझा दिया क‍ि आख‍िर आंदोलन का प्रोपेगंडा क्या है और क्यों पंजाब से ही इसकी अगुवाई की जा रही है।

दरअसल कश्मीर में अलगाववाद‍ियों को जेल, धारा 370 हटाने, स‍िख फॉर जस्ट‍िस, बब्बर खालसा जैसे तमाम एनजीओ’ज की फंड‍िंग बंद कर इन्हें बैन करने के बाद से तो ये सरकार व‍िरोधी भूचाल आना ही था, और बहाना बन गया कृषि कानून का अंधा विरोध, ज‍िसे पंजाब की कांग्रेस सरकार ने पूरा साथ दिया।

फ‍िलहाल ”पंजाब ही क्यों”… के सवाल उठने पर अब बाकायदा धन देकर उन गैर भाजपा शाष‍ित राज्यों से भी क‍िसान संगठनों को बुलाने की कोश‍िश हो रही है जो पहले ही एमएसपी पर फसल खरीद में बड़ा र‍िकॉर्ड बना चुके हैं परंतु बात तो खुल ही चुकी है… बस देखना यह है क‍ि ख‍िंचेगी कब तक ।

बहरहाल, देश को खंड-खंड करने और क‍िसान को गरीब बनाए रखने की मंशा पालने वाले ”कथ‍ित क‍िसानों” की चाल पर ”अब्दुल मन्नान तरज़ी” का शेर और बात खत्म क‍ि-

नालों ने ये बुलबुल के बड़ा काम किया है
अब आतिश-ए-गुल ही से चमन जलने लगा है।

-Alaknanda singh