गुरुवार, 28 जनवरी 2021

ये कैसा न्याय जस्ट‍िस गनेडीवाला ???

 अपराधमुक्त समाज की पहली शर्त होती है संवेदनशीलता और समाज को संवेदनशील बनाए रखने के ल‍िए ‘आचरण में संवेदना’ होना आवश्यक है। संवेदना क‍िसी ओहदे की मोहताज नहीं होती, वह तो सोच में नज़र आ जाती है। और सोच क‍िसी न्यायाध‍िकारी की भी न‍िम्न हो सकती है और क‍िसी मामूली से मामूली व्यक्त‍ि की भी अच्छी हो सकती है। कई बार तो न‍िम्न सोच वाले उच्चश‍िक्ष‍ित ही क्राइम करने में बेहद ऑर्गेनाइज्ड तरीका अपनाता है और सारी संवेदनाऐं लांघ जाता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट में नागपुर पीठ की जस्ट‍िस पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को एक व‍िवाद‍ित फैसला देकर अपनी ऐसी ही सोच को दर्शाया है। उन्होंने नाबालिग़ बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी ठहराए गए शख़्स की सज़ा में बदलाव करते हुए ‘यौन उत्पीड़न’ को लेकर कहा कि सिर्फ वक्षस्थल को जबरन छूना (ग्रोपिंग) यौन उत्पीड़न के तहत नहीं माना जाएगा, इसके लिए यौन मंशा के साथ स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट होना ज़रूरी है। दोषी पाए गए व्यक्ति पर आरोप था क‍ि उसने लालच देकर 12 साल की एक लड़की को अपने घर बुलाया और जबरन उसके वक्षस्थल को छूने और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की।

इससे पहले नागपुर सत्र न्यायालय ने भी आईपीसी सेक्शन 354 के तहत एक साल की और पोक्सो के तहत तीन साल की सज़ा सुनाई थी, व्यक्ति ने नागपुर के अतिरिक्त संयुक्त सहायक सत्र न्यायाधीश के उस फ़ैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी । ये दोनों ही सजा एक साथ दी जानी थीं लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद तीन साल की सजा वाला फ़ैसला फ‍िलहाल निष्क्रिय हो गया व हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्‍बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है।

पोक्सो क़ानून के प्रावधान कहीं भी निर्वस्त्र करने की बात नहीं करते हैं लेकिन हाईकोर्ट ने ये तर्क दे दिया है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। मैं जज की तार्किकता से सहमत नहीं हूं। इस सेक्शन की मंशा यौन अंगों को जानबूझकर छूने से है, इस तथ्य का कोई मतलब नहीं है कि कपड़े उतारे गए थे या नहीं। यौन अपराधों के मामले में क़ानून बिलकुल स्पष्ट हैं।
फैसला तो कुछ यूं कहता है क‍ि किसी को ग्लव्स पहनकर गलत तरीके से छुआ या शोषण क‍िया जाये तो क्या वह यौन उत्पीड़न के तहत नहीं आएगा?

यूं भी देखने में आया है क‍ि कोर्ट रूम में कई बार पूर्वाग्रह भी जज के फैसले को प्रभाव‍ित करते हैं और इस मामले में भी प्रतीत तो ऐसा ही हो रहा है। हो सकता है क‍ि आरोपी व्यक्त‍ि अपनी सफाई में ”कुछ सच” कह भी रहा हो और स्वयं को न‍िर्दोष बता रहा हो, परंतु कम से कम क‍िसी न्यायाध‍िकारी को तो फैसला देते समय इस बात का ध्यान रखना ही होगा क‍ि कानूनी पर‍िभाषायें अगर बदलीं तो इसका फायदा सबसे पहले गुनहगार ही उठायेंगे। फैसला देते समय हो सकता है जस्ट‍िस पुष्पा गनेडीवाला के ज़हन में आरोपी न‍िर्दोष रहा हो परंतु कानूनी तौर पर फ़ैसला अतार्किक था।

हम सभी जानते हैं क‍ि कोर्ट्स में दुश्मनी न‍िकालने के लिए कानूनी दुरुपयोग के मामलों की भरमार है परंतु यौन शोषण पर ऐसी क‍िसी भी ”कानूनी दुरुपयोग” की छूट नहीं ली जा सकती। हालांक‍ि अच्छी बात ये है क‍ि कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद से सोशल मीडिया से लेकर क़ानून को जानने वालों के बीच फ़ैसले का विरोध जारी है। देखते हैं क‍ि सुप्रीम कोर्ट अब इस पर क्या फैसला देता है।

– अलकनंदा स‍िंंह 

सोमवार, 25 जनवरी 2021

श्रीकृष्‍ण-द्रौपदी संवाद से न‍िकली राह पर… बीएचयू का ‘मूल्य प्रवाह’

गांव से लेकर शहर तक तेजी से क्षरण हो रहे सामाज‍िक व मानवीय मूल्यों के ल‍िए एक बड़ी नेक पहल बीएचयू ने की है। जी हां,

बनारस ह‍िंदू व‍िश्वव‍िद्यालय (बीएचयू) ने मानवीय मूल्यों पर आधार‍ित एक व‍िजन डॉक्यूमेंट ‘मूल्य प्रवाह’ यूजीसी को सौंपा है ज‍िसका उद्देश्य छात्रों के शैक्ष‍िक ही नहीं, चार‍ित्र‍िक न‍िर्माण और इसके माध्यम से राष्ट्र न‍िर्माण के महत्व को जन जन तक पहुंचाना है। इस तरह बीएचयू ‘मानवीय मूल्य और नैत‍िकता’ के ल‍िए नोडल केंद्र की तरह काम करेगा। व‍िश्वव‍िद्यालय स्वयं को डॉक्टर, इंजीन‍ियर, व्यापारी व शास्त्री बनाने तक सीम‍ित नहीं रखना चााहता, वह महामना के उस व‍िचार को ज़मीन पर उतारना चाहता है जो राष्ट्र-व‍िच्छेदी ना होकर पीढ़‍ियों को राष्ट्र-उत्थानक बना सके।

अभी तक यह हमारी गलतफहमी रही क‍ि हमने सदैव राष्ट्र के उत्थान को स‍िर्फ राजनीत‍ि का व‍िषय माना जबक‍ि राष्ट्र की प्रथम इकाई पर‍िवार होता है और पर‍िवार से ही उत्थान या सुधार प्रारंभ होने चाह‍िए, पर‍िवार में श्रेष्ठ संस्कार जब अपनों के प्रत‍ि मर्याद‍ित होंगे तो हर तरह की प्रगत‍ि भी मर्याद‍ित होगी और समाज का व‍िकास भी सुसंस्कार‍ित होगा।

सवाल पैदा होता है क‍ि बनारस ह‍िंदू व‍िश्वव‍िद्यालय को आख‍िर ऐसी जरूरत ही क्यों पड़ी… ? तो इस पर बात मुझे कहीं पर पढ़ा हुआ एक दृष्‍टांत याद आ रहा है…

महाभारत युद्ध की समाप्त‍ि पर श्रीकृष्‍ण और द्रौपदी में संवाद हो रहा है—-

18 दिन के युद्ध ने द्रोपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था…शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी! शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बाहुल्य था..पुरुष तो ना के बराबर बचे थे। चारों ओर बस अनाथ बच्चे ही घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह ”महारानी द्रौपदी” हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी। तभी श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल होते हैं…

द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है …कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं…थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बैठा देते हैं।

द्रोपदी: यह क्या हो गया सखा ?
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

कृष्ण: नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती! वह हमारे ”कर्मों को परिणामों में” बदल देती है।

तुम प्रतिशोध लेना चाहती थींं ना, और तुम सफल भी हुईंं, द्रौपदी! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ… सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए! तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !

द्रोपदी: सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ?

कृष्ण: नहीं द्रौपदी, मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने आया हूँ! हमारे कर्मों के परिणाम (अच्‍छे अथवा बुरे) को हम, दूर तक नहीं देख पाते और जब वे हमारे सामने आते हैं, तब तक परिस्‍थितियां बहुत कुछ बदल चुकी होती हैं, तब हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।

द्रोपदी: तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ कृष्ण?
कृष्ण: नहीं, द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो…
लेकिन, तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखतींं तो स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

द्रोपदी: मैं क्या कर सकती थी कृष्ण?

कृष्ण: तुम बहुत कुछ कर सकती थीं! …जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ…तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करतींं और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो, शायद परिणाम कुछ और होता।

इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया…तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी, परिणाम कुछ और होता।

और…

उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया…
कि अंधों के पुत्र अंधे होते हैं। वह नहीं कहतींं तो तुम्हारा चीर हरण नहीं होता…तब भी शायद, परिस्थितियाँ कुछ और होतींं।

हमारे शब्द भी
हमारे कर्म ही होते हैं द्रोपदी…

और हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत ज़रूरी होता है…अन्यथा उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं… अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं। संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है…जिसका “व‍िष” उसके “दाँतों” में नहीं, “शब्दों” में है…

द्रोपदी को यह सुनाकर हमें श्रीकृष्‍ण ने वो सीख दे दी जो आए दिन हम गाल बजाते हुए ना तो याद रख पाते हैं और ना ही कोशिश करते हैं। नतीजतन घटनाएं, दुर्घटनाओं में बदल जाती हैं और मामूली सा वाद-विवाद रक्‍तरंजित सामाजिक क्‍लेश में…।

फ‍िलहाल बीएचयू का 21 पेज वाला व‍िजन डॉक्यूमेंट ‘मूल्य प्रवाह’ एक अनोखी पहल तो है ही। बीएचयू में ही मानवीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा का केंद्र जहां बनेगा, शीघ्र ही ‘मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र को नोडल सेंटर बनाया जाएगा। इसी सेशन से व‍िद्यार्थ‍ियों को औपचारिक पाठ्यक्रमों में भी मूल्य नीति पढ़ाई जा सकेगी। यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डीपी सिंह और मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के समन्वयक प्रो. आशाराम त्रिपाठी को इस पहल का श्रेय जाता है।

श‍िक्षा के माध्यम से संस्कार अगर लगातार द‍िए जाएंऔर उनका प्रयोग घर व पर‍िवार से शुरू हो तो न‍िश्च‍ित ही पर‍िणाम अच्छे ही आऐंगे। बीएचयू की ये पहल हमें ऐसा प्राणी बनने से बचा सकती है जो क‍ि अपने ”शब्दों में ज़हर” लेकर चलता है और गाहे-बगाहे उसे क‍िसी पर उड़ेल कर सुख भी पाता है।

– अलकनंदा स‍िंंह 

http://legendnews.in/bhus-mulya-pravah-on-the-path-of-sri-krishna-draupadi-dialogue-after-mahabharata/

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

अपराध का अंधा कुंआ…’बस एक क्ल‍िक’

ड‍िज‍िटल दुन‍िया का जादू ही है क‍ि ‘बस एक क्ल‍िक’ करो और पूरी दुन‍िया सामने हाज‍िर… परंतु इसी एक क्ल‍िक ने इसके उस स्याह पहलू को भी हमारे सामने ला द‍िया है जो इंसानों के बीच ”व‍िश्वास” को भारी क्षत‍ि पहुंचा रहा है। यूपी में ही प‍िछले द‍िनों दो सरकारी ओहदेदारों को अलग-अलग जगह से क‍िशोरों के साथ अपचार करने और उनकी वीड‍ियो क्ल‍िप बनाकर पॉर्न मार्केट में बेचने के आरोप में ग‍ि‍रफ्तार क‍िया जाना बताता है क‍ि ड‍िज‍िटली हमें सभ्य होने के ल‍िए क‍ितनी दूरी तय करनी है।

उक्त दोनों ही अपराधि‍यों से उनके कंप्यूटर की हार्ड ड‍िस्क समेत बहुत सारे सुबूत इकठ्ठा क‍िये जा चुके हैं, शोष‍ित बच्चों का परीक्षण क‍िया जा रहा है… परंतु लंबी प्रक्र‍िया के बाद या इस बीच क‍ितने और ऐसे ही अपराधी होंगे जो बच्चों को अपना श‍िकार बना चुके होंगे… कहा नहीं जा सकता।

न‍िश्च‍ित ही ये अपराध क‍िसी एक व्यक्त‍ि द्वारा अंजाम नहीं द‍िया गया बल्क‍ि पूरा स‍िंडीकेट इसके पीछे होगा और इसमें र‍िटायर्ड सरकारी अध‍ि‍कार‍ियों को शाम‍िल करना इसी रणनीत‍ि का ह‍िस्सा रहा होगा क्योंक‍ि र‍िटायर्ड अध‍िकारी पर ‘अव‍िश्वास’ करना आसान नहीं होता। उम्र और ओहदा दोनों उनका कवच होते हैं।

साइबर क्राइम का ही एक और उदाहरण कल तब सामने आया जब #UPATS ने 14 साइबर अपराध‍ियों को गिरफ्तार क‍िया है, जो बैंकों में फर्जी खाते खोलकर विदेश से पैसे मंगाते थे, इस गैंग ने कोरोना काल में करोड़ों का ट्रांजेक्शन किया, इस मामले में दो विदेशी नागरिकों के खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी किया गया है।

इनका मोडस ऑपरेंडी गलत नाम, पता से ऑनलाइन ही अलग-अलग बैंकों में खाता खोलना फ‍िर अज्ञात स्रोतों से इन खातों में रकम मंगाना व इसके बाद कार्डलेस पेमेंट मोड से एटीएम द्वारा पैसे निकाल लेना था। यहां तक क‍ि इन खातों को खोलने के लिए ये प्रीएक्टिवेटेड सिम डिस्ट्रीब्यूटर्स से लेते थे, ये डिस्ट्रीब्यूटर- रिटेलर अपनी दुकानों पर आने वाले लोगों की आईडी का मिस यूज करके उनकी जानकारी के बिना सिम एक्टिवेट करा देते थे, ऐसे प्रत‍ि सिम कार्ड एक्टीवेशन पर इन्हें 260 रुपया मिलता था।

साइबर ठग हमें सचेत कर रहे हैं क‍ि आंखमूंदकर क‍िसी हर उस एक शख्स को जो क‍ि चंद रोज में अमीर हुआ हो, पर भरोसा नहीं करना है, उसकी सतत न‍िगाहबानी हमें ही नहीं कई अन्य संभाव‍ित श‍िकारों को बचा सकती है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी) के आंकड़ों को देखें तो साल 2017 में साइबर क्राइम की संख्या 21,796 , साल 2018 में 28248, साल 2019 में साइबर क्राइम के 44,546 मामले दर्ज किये गये और अब इसमें 80 प्रत‍िशत की र‍िकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो चुकी है …आगे यह स‍िलस‍िला कहां पहुंचेगा सोच कर ही थरथराहट होती है। इसका बस एक ही इलाज है ” सतर्कता और जागरूकता” वरना ज़रा सी चूक हमें और तमाम मासूमों को क‍िस अंधकार में धकेल देगी कहा नहीं जा सकता ।

- अलकनंदा स‍िंंह  

http://legendnews.in/made-blinded-by-crime-just-a-click-blog-by-sumitra-singh-chaturvedi/

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

बेनकाब हो रही है... आइने के दूसरी ओर वाली सूरत

 जो आइने के सामने खड़े होकर अपनी ही सूरत देखने के आदी होते हैं, वे भूल जाते हैं क‍ि दूसरी ओर का नज़ारा उन्हें भी उतना ही नंगा करके द‍िखा रहा होता है और फ‍िलहाल कृष‍िकानूनों को रद्द करने पर अड़े क‍िसान संगठन इसी स्थ‍ित‍ि में आ पहुंचे हैं क्योंक‍ि कमेटी के सामने पेश ना होने की बात ' न‍िकाल ' कर वे अपने ही बुने जाल में जा फंसे हैं। 


फ‍िलहाल तो देश में अध्यादेश के माध्यम से लाए गए तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है और एक कमेटी का गठन करने का आदेश दिया है। इससे पहले कोर्ट ने कमेटी के पास न जाने की बात पर किसानों को फटकार लगाई है।  इससे त‍िलम‍िलाए क‍िसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट को ही चेतावनी देते हुए कहा है क‍ि सुप्रीम कोर्ट के रोक का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यह सरकार का एक तरीका है कि हमारा आंदोलन बंद हो जाए। यह सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है यह सरकार का काम था, संसद का काम था और संसद इसे वापस ले। जब तक संसद में ये वापस नहीं होंगे हमारा संघर्ष जारी रहेगा। 

बहरहाल लोकतंत्र‍ के नाम पर 45 द‍िन से द‍िल्ली-एनसीआर की सीमाओं को रोक अराजकता का ''शाहीन बाग पैटर्न'' अब अपने सचों को स्वयं खोलने लगा है।   

अपने मन मुताब‍िक स्वत: संज्ञान लेने का अध‍िकार रखने वाली सुप्रीम कोर्ट ने फ‍िलहाल तो उन रास्तों को खोल द‍िया जो क‍ि देश की कानून व्यवस्था को चुनौती देने के ल‍िए आगे भी अख़्त‍ियार क‍िये जा सकेंगे। 

क‍िसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कल जो कुछ कहा, वह संवैधान‍िक संस्था व लोकतंत्र का अच्छा खासा अपमान है जो चुन‍िंदा संगठनों की हठधर्म‍िता को और बढ़ावा देगा क्योंक‍ि इससे पहले भी शाहीन बाग के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ''वार्ताकार'' भेजने वाला ऐसा ही कदम उठाया था ज‍िसकी पर‍िणत‍ि द‍िल्ली-दंगों के रूप में देश ने भोगी।  

कृष‍ि-कानूनों को संसद में पेश करते समय जो व‍िपक्षी दल  गैर हाज़‍िर रहे और ''मुद्दाव‍िहीन'' होने की अपनी कमजोरी व तड़प को लोकसभा स्पीकर के सामने ब‍िल की कॉपी फाड़कर व संसद भवन के अहाते में भूख हड़ताल पर बैठकर ढंक रहे थे, वे ही कानून पार‍ित होते ही अब अपनी इसी कमजोरी व तड़प को द‍िल्ली की सीमाओं पर ज़ाह‍िर कर रहे हैं, अब वे अराजकता को हथ‍ियार बना रहे हैं, व‍ह भी तब जबक‍ि कोरोना से देश लड़ भी रहा है और बैक्सीन के ज़र‍िए पूरी दुन‍िया में ख्यात‍ि भी कमा रहा है।  

एक और तथ्य व‍िचारणीय है क‍ि सुप्रीम कोर्ट ने क‍िसान संगठनों से  ''आंदोलन में बुजुर्गों, बच्चों व मह‍िलाओं पर उपस्थ‍ित‍ि क्यों'' पर कोई सवाल ही क्यों नहीं क‍िया । यद‍ि इस एक सवाल पर कोर्ट गंभीर होकर सवाल उठाता तो तमाम परतें खुदबखुद खुल जातीं। वो चाहता तो स्वत: संज्ञान लेकर समाचारों के आधार पर ही बहुत कुछ पूछ सकता था, क‍ि आख‍िर ज‍िन ' गरीब' क‍िसानों को कानूनों से खतरा है, वे इस ''5 स्टार सुवि‍धा वाले टेंट-ब‍िरयानी-काजूबादम का हलवा-24 घंटे का लंगर'' वाला आंदोलन आख‍िर अफोर्ड क‍िस सोर्स के माध्यम से कर पा रहे हैं। 

कई सच बहुत कड़वे हैं बशर्ते सुप्रीम कोर्ट खोलने पर आए तो...।   

इसी बात पर न‍िज़ाम रामपुरी का शेर देख‍िए क‍ि -

अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो, 

और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो।  

- अलकनंदा स‍िंंह 


शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

वर्ष 2021: ऑनलाइन ज़‍िंदगी का ”ये” सबसे बड़ा खतरा


 प‍िछला साल विदा हुआ, और वह अपने साथ उन घटना-दुर्घटनाओं की भी विदाई कर ले गया जो इत‍िहास में दर्ज हो गईं हैं, वह भी अपने सबसे अध‍िक भयानक रूप में…। इन दुर्घटनाओं में से एक है कोरोना जैसी महामारी का प्रकोप, परंतु इस महामारी ने ज‍िंदग‍ियों को ही नहीं बदला बल्क‍ि पूरे व‍िश्व में कार्य-संस्कृत‍ि को भी बदल द‍िया। सब कुछ ऑनलाइन हो गया…ज‍िंदगी भी ऑनलाइन ही बढ़ती गई, और यही ऑनलाइन ज‍िंदगी अपने साथ अनेक अपराधों को समेटकर चलती रही… इन अपराधों में सबसे ज्यादा प्रसार‍ित होने वाला व‍िषय रहा ‘पोर्न’।

इससे संबंध‍ित कुछ वाकये हमें सोचने को व‍िवश कर देते हैं क‍ि सभ्यता का आख‍िर हम कौन सा मानदंड अपनी अगली पीढ़‍ियों को सौंपने जा रहे हैं। सभ्य समाज के असभ्य आचरण पर हम रोते तो बहुत हैं, उपदेश भी देते हैं परंतु कड़वा सच तो ये हैं क‍ि हममें से अध‍िकांश इसी ”असभ्यता” के वाहक भी हैं। अकसर ऐसे अपराधों के ल‍िए हम जाह‍िलों व अनपढ़ों को ज‍िम्मेदार बताते हैं परंतु है इसका ठीक उल्टा।


अब देख‍िए ना… प‍िछले हफ्ते से एक खबर आ रही है क‍ि ”अमेजन-क‍िंडल का पब्ल‍िश‍िंग प्लेटफॉर्म” अपने ओपन एंड फ्री पब्ल‍िश‍िंग सुव‍िधा का उपयोग पोर्न परोसने में कर रहा है। दरअसल, इस प्लेटफॉर्म पर कोई भी व्यक्त‍ि अपने साह‍ित्य को स्वयं पब्ल‍िश कर सकता है ब‍िल्कुल सोशल मीड‍िया की भांति और इसी का फायदा उन व‍िकृत मानस‍िकता वाले ‘सुनीता सरन’ और ‘पब‍िश स‍िंह’ के छद्म नाम वाले लेखकों ने उठाया जो पब्ल‍िकली पोर्न को परोस रहे हैं जबक‍ि वे यह भलीभांत‍ि जानते हैं…क‍ि एडल्ट ही नहीं अब बच्चे भी अपनी पढ़ाई सह‍ित अन्य कार्य ऑनलाइन ही न‍िबटा रहे हैं।

‘सुनीता सरन’ और ‘पब‍िश स‍िंह’ जैसे छद्म लेखकों की ‘रेप साहित्य’ संबंधी इन क‍िताबों में ह‍िंदू मह‍िलाओं और मुस्ल‍िम पुरुष के संबंधों को टारगेट क‍िया गया है, जो क‍ि अपने आप में प्रोपेगंडा है। मैंने तो ये बस दो उदाहरणभर द‍िए हैं, लेकिन अमेजन के किंडल एडिशन पर साहित्य के बहाने तमाम तरह की अश्लील और रेप कल्चर को डिफाइन करने वाली सामग्री मौजूद हैं। शर्मनाक बात यह है कि इसमें खास कर मुस्लिम युवकों और हिंदू महिलाओं का प्रमुख रूप से जिक्र किया गया है, ये ज‍िक्र ही द‍िखाता है क‍ि मात्र मह‍िलाओं के प्रत‍ि घृण‍ित सोच ही नहीं, इनके ज़र‍िए अश्लीलता व सांप्रदाय‍िक घृणा फैलाने को जानबूझकर माध्यम बनाया गया ताक‍ि क‍िंडल पर पढ़ने वालों के द‍िमाग को यौन‍िक अपराध के ल‍िए उकसाया जा सके।

ऐसे ही क‍िंडल प्लेटफऑर्म पर Indian Hindu wife’s affair with her Muslim lover नाम की किताब अनलिमिटिड सब्सक्रिप्शन पर फ्री में पढ़ने के लिए मौजूद है। इस किताब की लेखिका का नाम नीलिमा स्टिवन्स है। 35 पृष्ठों की किताब के कवर पेज में एक व्यक्ति इस्लामी टोपी पहने दिखता है। वहीं महिला डीप क्लिवेज दिखाते हुए बिंदी लगाए नजर आती है। रिपोर्ट कहती है कि इस लेखक के नाम पर किंडल में 20 किताब मौजूद हैं। किंडल पर मौजूद ऐसी किताबों के शीर्षक पढ़कर कहाँ से लग रहा है कि इनका मकसद समाज को साहित्य के नाम पर उसका आइना दिखाना है। वो भी तब जब आए दिन हिंदू महिलाएँ कट्टरपंथियों की बर्बरता का शिकार हो रही हैं। इन किताबों के शीर्षक भर पढ़ लेने से ऐसा लगता है जैसे रेप आदि का महिमामंडन किया जा रहा हो।

हालांक‍ि अमेजन-क‍िंडल पर पब्ल‍िश हुई इन पोर्न क‍िताबों का इस तरह ऑनलाइन सबके ल‍िए उपलब्ध होने और ह‍िंदू- मुस्ल‍िम का जानबूझकर ज‍िक्र क‍िये जाने पर अब राष्ट्रीय मह‍िला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा  ने संज्ञान ल‍िया है और उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए अमजेन के वरिष्ठ अधिकारी अमित अग्रवाल को ऐसी सामग्रियों पर रोक लगाने के लिए कहा है जिनमें महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध को बढ़ावा दिया गया हो और स‍िर्फ एक ही समुदाय के लिए गलत संदेश जाता हो।

ऑनलाइन अपराध का एक ऐसा ही मामला मुरादाबाद से सामने आया है ज‍िसमें धार्म‍िक और नववर्ष के शुभकामना संदेशों की इमेज के माध्यम से जो पोर्न वीड‍ियो सोशल मीड‍िया पर भेजे जा रहे हैं। वे अपने भीतर कई ‘स्टेनोग्राफी संदेश’ छुपाए रहते हैं ज‍िन्हें ‘डीकोड’ करने पर पता चला क‍ि ये आतंक‍ियों के संदेश थे और स्लीपर सेल को भेजे गए थे। मुरादाबाद का, चूंक‍ि देश में अभी तक घट‍ित होने वाली आतंकी घटनाओं से पुराना संबंध रहा है इसल‍िए स्टेनोग्राफी संदेशों का बधाई-अभ‍िवादन संदेशों में लपेटकर ‘पोर्न वीड‍ियो’ की शक्ल में भेजा जाना बहुत बड़ी साज‍िश है। पोर्न वीड‍ियो को इसील‍िए माध्यम बनाया गया क्योंक‍ि इसके प्रत‍ि अध‍िकाध‍िक तथाकथित ”सभ्य” समाज आकर्ष‍ित रहता है।

कुल म‍िलाकर बात ये है क‍ि अमेजन-क‍िंडल पर पब्ल‍िश हुई पोर्न क‍िताबें हों या पोर्न वीड‍ियो में छुपे आतंकी संदेश …ये तो मात्र उदाहरण भर हैं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के दुरुपयोग का। दुरुपयोग भी ऐसा-वैसा नहीं, बल्क‍ि संस्कृत‍ि और सुरक्षा के ल‍िए अपने दानवी रूप में जो हमें अनेक कोणों पर चौकन्ना रहने का संदेश भी देता है। चूंक‍ि अब इस ऑनलाइन संस्कृत‍ि से दूर तो रहा नहीं जा सकता मगर इसके दुष्प्रभावों-चुनौत‍ियों से कुछ सतर्क रहकर इससे बचा अवश्य जा सकता है।

नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ आज बस इतना ही।

-  अलकनंदा स‍िंंह