रविवार, 28 अप्रैल 2013

यौनहिंसकों को विशेष ऑफर:कट अनकट फिल्‍म फेस्‍टीवल

समाज में मानसिक विकृत लोगों की शायद कुछ कमी खल रही होगी तभी तो सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय कट-अनकट फिल्म फेस्टिवल को आयोजित कर रहा है।

भारतीय दर्शक बॉलीवुड फिल्मों के वे किसिंग सीन भी देख पा रहे हैं  जिन पर 'मजबूरीवश' सेंसर बोर्ड को कैंची चलानी पड़ी थी।
मजबूरीवश इसलिए कि अव्‍वल तो मौजूदा सेंसरबोर्ड अध्‍यक्षा
फिल्‍मों के विवादास्‍पद और समाज के लिए विकृत उदाहरण
पेश करने वाले सीन्‍स को सेंसर करने की कतई पक्षधर हैं ही
नहीं, फिर अध्‍यक्ष के तौर पर उन्‍हें व उनके पुत्र को मिले
राष्‍ट्रीय पद्म पुरस्‍कार का अहसान चुकाने का इससे आसान
रास्‍ता दूसरा क्‍या हो सकता था।

गौरतलब है कि नई दिल्ली में पहली बार 25 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चल रहे "कट-अनकट" फेस्टिवल में फिल्मों के अनएडिटेड वर्जन दिखाए जाएंगे।

हैरानी की बात यह है कि बॉलीवुड की 100वीं वर्षगांठ पर यह
फेस्टिवल मिनिस्ट्री ऑफ इनफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग
आयोजित करवा रही है। मिनिस्ट्री के एक अधिकारी ने बड़ी
बेतकल्‍लुफी से बताया कि हम अब ज्यादा आजाद होना चाहते
हैं, पुराने नियमों को थोपना बंद कर कलाकारों की कला को
पहचानना चाहते हैं।

तो गोया आईबी मिनिस्‍ट्री को आज आज़ादी अगर कहीं दिखती
है तो वह सिर्फ और सिर्फ एडल्‍ट-पोजिंग सीन्‍स को सरेआम
करने में दिखाई देती है। समाज के लिए फ़िक्र करने का उसके
पास वक्‍त ही कहां है। वो भी एक ऐसे माहौल में जब हर रोज
होने वाली रेप की वारदातें समाज के बड़े तबके को उद्वेलित
कर रही हैं।

यूं तो  फिल्‍मों को साफ सुथरा बनाने की जिम्‍मेदार
संस्‍था ''सेंसर बोर्ड'' को ही अंतरंग सीन्‍स और सच्‍चाई के नाम
पर फूहड़ तरीके से दिखाये जाते न्‍यूड सीन्‍स की भरमार नजर
नहीं आती ।
इसी के साथ ये सच भी फिल्‍म जगत से लेकर आईबी
मिनिस्‍ट्री तक सभी जानते हैं कि जो सीन काटने की रस्‍म
अदायगी होती भी है उसके पीछे उन सीन्‍स का आपत्‍तिजनक
होना नहीं बल्‍कि फिल्‍म निर्माता-मिनिस्‍ट्री के नौकरशाह व
सेंसरबोर्ड की म्‍यूचुअल अंडरस्‍टैंडिंग में विफलता होती है।

आज के इस तेजाबी माहौल में जब कि बच्‍ची से लेकर बूढ़ी
औरत तक को यौन हिंसक छोड़ नहीं रहे तब ... यदि किसी
मूढ़ व्‍यक्‍ति से भी पूछा जाये कि समाज में यौन हिंसा के
बढ़ते प्रकोप का क्‍या कारण्‍ा है तो वह अन्‍य कारणों को गिनाने
से पहले इसके लिए फिल्‍मों में बढ़ती अश्‍लीलता को ही
मुख्‍यत: दोषी बतायेगा।

उस पर भी कमाल यह कि जो सरकार महिला सुरक्षा पर एक
मुकम्‍मल बिल नहीं ला पाई, उसी का एक मंत्रालय इस तरह
की कथित बेबाकी दिखा रहा है। जो सैंसर बोर्ड औपचारिकतावश ही सही, अभी तक फिल्मों में लम्बे किसिंग सीन, न्यूडिटी और सरकार के खिलाफ विद्रोह पैदा करने वाले वीडियोज पर कैंची चला देता था। अब वही बोर्ड मिनिस्‍ट्री की हां में हां मिलाते हुये कह रहा है कि "बदलते समय के साथ हमें फ्रेश अप्रोच को अपनाना चाहिए। हमारा मकसद है सैंसर लॉ के पुराने नियमों को जल्द बदलना।"
ज़ाहिर है समाज के टूटते रिश्‍तों व आपसी विश्‍वास के लिए
इस फिल्‍म फेस्‍टीवल ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है
कि अपने नाम की तरह ''कट और अनकट'' के दोराहे पर खड़े
होकर सिर्फ और सिर्फ समाज की तबाही देखी जा सकती है
और कुछ नहीं ।
गौरतलब है कि 1952 में ड्राफ्ट हुआ और 1983 में संशोधित
हुए सेंसर बोर्ड के कानून के तहत सेक्स का चित्रण, न्यूडिटी
या सोशल अनरेस्ट और हिंसा को फिल्मों से बाहर रखा जा
सकता है। हो सकता है इसके आफ्टर इफेक्‍ट्स अभी दिखाई न
दें मगर जल्‍दी ही वो भी सबके सामने होंगे।
- अलकनंदा सिंह

लॉबिंग की भेंट चढ़ते बड़े पुरस्‍कार

जिस किसी ने भी लॉबिंग शब्‍द ईज़ाद किया होगा तो उसने यह सोचा भी न होगा कि इसका प्रयोग इतना व्‍यापक हो जायेगा।यह जीवन के हर रंग हर क्षेत्र और हर तबके को अपनी गिरफ्त में ले लेगा।
अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्दों की बात यदि ना भी की जाये तो महज हमारे देश में ही यह इस तरह रच बस गया है कि गोया जीवन में  सफलता का अर्थ ही लॉबिंग की कसौटी पर खरा उतरना हो गया है।
हाल ही में एक खबर आई है कि प्रख्‍यात सितारवादक पं.रविशंकर को मरणोपरांत पहले अंतर्राष्‍ट्रीय  टैगोर पुरस्‍कार से नवाजा जायेगा।
राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दिये जाने वाले इस पुरस्‍कार को पं. रविशंकर की पत्‍नी सुकन्‍या ग्रहण करेंगीं और इसकी राशि पूरे एक करोड़ होगी।
गुरु रविन्‍द्रनाथ टैगोर की 150वीं जयन्‍ती पर दिये जाने इस पुरस्‍कार का उद्देश्‍य बेशक संगीत व कला क्षेत्र की विभूतियों को सम्‍मान देना व प्रतिभाओं को आगे लाना है और होना भी चाहिये मगर पुरस्‍कार का असली उद्देश्‍य कुछ और ही कह रहा है।
मेरे कुछ प्रश्‍न हैं ....
भला मरणोपरांत पुरस्‍कार लेकर क्‍या पं. रविशंकर की आत्‍मा को खुशी होगी,
क्‍या इस पुरस्‍कार राशि का उपयोग संगीत क्षेत्र के किसी उत्‍थान कार्य में किया जायेगा,
क्‍या सुकन्‍या जी स्‍वयं जरूरतमंद हैं,
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है...जिसतरह किसी को भरे पेट पर रोटी का स्‍वाद और अहमियत पता नहीं चलती उसी तरह स्‍व.पं. रविशंकर जैसे ख्‍यातिलब्‍ध संगीतकार को 'मरणोपरांत' और अच्‍छे रसूख वाली सुकन्‍या जी को एक करोड़ राशि दिया जाना गुरु रविन्‍द्रनाथ टैगोर की याद में दिये जाने वाले पुरस्‍कार की सही जगह नहीं हो सकती।
हाल ही में रेवड़ियों की भाति बांटे गये पद्म पुरस्‍कारों की लिस्‍ट यह बताने के लिए काफी है कि लॉबिंग का खेल अच्‍छी तरह खेलने वाले ही इनके साये में आ पाते हैं ।
फिल्‍म पुरस्‍कारों से लेकर राजकीय पुरस्‍कारों तक यह निश्‍चित ही हो चुका है कि पुरस्‍कार पाना है तो लॉबिंग करो।
यूं भी हम चाहे कितना भी मानवीय द्रष्‍टिकोण की बात करें मगर लॉबिंग से न कोई मुक्‍त हो पाया है और न हो  पायेगा।
-अलकनंदा सिंह