शनिवार, 28 सितंबर 2019

प्रदेश की मेधाशक्‍ति के हित में आदेश, जिस पर राजनीति होना तय है

देशभर में शैक्षिक गुणवत्‍ता के गिरते स्‍तर वाले समाचारों के बीच उत्‍तर प्रदेश सरकार की ओर से एक खबर अच्‍छी आई है जिसमें प्राइवेट तकनीकी संस्‍थानों में प्रोफेशनल कोर्स करने वाले दलित छात्रों को इंटरमीडिएट में कम से कम 60 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य होगा तभी वे छात्रवृत्‍ति व शुल्क प्रतिपूर्ति ले सकेंगे। इंटरमीडिएट में 60 प्रतिशत से कम अंक पर निजी क्षेत्र के कॉलेजों में प्रवेश लेने पर कोई छात्रवृत्ति या फीस प्रतिपूर्ति नहीं मिलेगी। ये आदेश ऐसे मान्यता प्राप्त प्रोफेशनल कोर्स के लिए है जिनमें प्रवेश की न्यूनतम अर्हता 12वीं है हालांकि प्रोफेशनल कोर्स में बीए, बीकॉम, बीएससी और बीएससी-एजी छोड़ दिया गया है।
इस एक आदेश से योगी सरकार ने कई निशाने साधे हैं। एक तो इससे तकनीकी संस्‍थानों की शैक्षिक गुणवत्‍ता में सुधार आएगा, दूसरे इन्‍हीं संस्‍थानों द्वारा सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत कर छात्रवृत्‍ति के नाम पर वृहद स्‍तर पर किये जा रहे घोटालों पर लगाम लगाई जा सकेगी। चूंकि अभीतक कम प्राप्‍तांक कोई बाधा नहीं थे इसलिए छात्रवृत्‍ति घोटाले के लिए फर्जी छात्रों की संख्‍या भी आसानी से बढ़ा ली जाती थी परंतु अब इसकी संभावना कम रहेगी।
दरअसल अभी तक एससी-एसटी छात्रों को छात्रवृत्‍ति और शुल्‍क प्रतिपूर्ति के नाम पर जो धन केंद्र सरकार राज्‍य सरकारों को मुहैया कराती आई है, उसे भ्रष्‍ट अधिकारियों और तकनीकी संस्‍थानों के प्रबंध तंत्रों द्वारा बिना किसी बाधा के हजम कर लिया जाता रहा और इसीलिए तकनीकी संस्‍थान खोलना फायदे का सौदा बन गया। हकीकत तो ये है कि लगभग हर प्रदेश में छात्रवृत्‍ति घोटाला हो रहा है और कई प्रदेश सरकारें इससे जूझ भी रही हैं, कुछ कड़े कदम भी उठाए हैं परंतु घोटालेबाजों की तू डाल डाल मैं पात पात वाली गति ना तो जरूरतमंदों को मदद लेने दे रही है और ना ही मेधा को आगे आने दे रही है।
अभी तक होता ये आया है कि प्राप्‍तांकों की शर्त ना होने के कारण एससीएसटी वर्ग के अधिकाधिक छात्रों की एडमीशन लिस्‍ट सरकारों के पास भेजकर भारी छात्रवृत्‍ति का जुगाड़ किया जाता रहा। काउंसलिंग के लिए आए छात्रों से शैक्षिक प्रमाणपत्रों के साथ उनके आधार कार्ड की कॉपी भी जमा करा ली जाती थी। चूंकि तकनीकी प्रवेश परीक्षा में पास हुए सभी छात्र काउंसलिंग के लिए तो कई संस्थानों में जाते हैं परंतु एडमीशन किसी एक में ही लेते हैं। ऐसे में छात्र के एडमीशन न लेने पर भी संस्‍थान छात्र के ”आधार कार्ड की कॉपी” का इस्‍तेमाल समाज कल्‍याण विभाग की मिलीभगत से उस छात्र के नाम पर छात्रवृत्‍ति व शुल्‍क प्रतिपूर्ति हासिल करने के लिए करता रहता और हद तो ये कि ये प्रक्रिया सालोंसाल ”उस छात्र” के नाम पर लगातार चलती रही जिसने सिर्फ काउंसलिंग में हिस्‍सा लिया, एडमीशन नहीं। पूरा का पूरा एक कॉकस इसी तरह काम करता रहा।
बहरहाल अब यूपी सरकार के इस फैसले से प्रदेश के निजी क्षेत्र के कॉलेजों में 70 से 80 फीसदी दलित छात्र, छात्रवृत्ति एवं फीस प्रतिपूर्ति के दायरे से बाहर हो जाएंगे और संस्‍थान इस 80 फीसदी की बदौलत जो ” कमा रहे” थे वह बंद हो जाएगा। इसीलिए उत्तर प्रदेश के अनुसचिव सतीश कुमार का उक्त आदेश पहुंचते ही निजी कॉलेजों में हड़कंप मच गया है।
चूंकि यह आदेश पूरी तरह से एससी-एसटी के लिए है इसलिए पर्याप्‍त राजनीति करने का एक और मुद्दा विपक्ष को मिल गया है और वो राजनीति करेंगे भी, बिना ये सोचे समझे कि इससे प्रदेश के होशियार एससीएसटी छात्रों को भी अब ”रिजर्वेशन से आया है” का दंश नहीं झेलना पड़ेगा। एक बात और कि इस आदेश के बाद घोटालेबाजों की ”ताकतवर लॉबी” इसे निरस्‍त कराने को एड़ी चोटी का जोर लगा देगी परंतु सरकार यदि अपने इस आदेश को मनवा पाई तो नकल माफिया पर नकेल की तरह यह भी शिक्षा और खासकर उत्‍तरप्रदेश की मेधाशक्‍ति के लिए अहम कदम माना जाएगा।

बुधवार, 25 सितंबर 2019

Sonakshi: दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं,
जान परत है काक प‍िक र‍ितु बसंत के मांह‍ि…
रहीम दास जी का ये दोहा Sonakshi Sinha पर एकदम फ‍िट बैठता है। उसने बता द‍िया क‍ि अच्छी शक्लोसूरत , पैसा और रसूख, बुद्ध‍िमत्ता की बानगी नहीं हुआ करते इसील‍िए मामूली से सवाल पर सारी द‍िमागी असल‍ियत सामने आ सकती है। रहीम दास जी ने ऐसे ही लोगों के ल‍िए संभवत: ये दोहा रचा होगा, कौआ और कोयल तो मात्र उदाहरण के बतौर बताए थे ।
ह‍िंंदीबेल्ट की राजनीत‍ि करने वाले प‍िता शत्रुघ्न स‍िन्हा की बेटी और ह‍िंंदूघर में जन्मने वाली  बॉलीवुड अभ‍िनेत्री Sonakshi Sinha द्वारा जब केबीसी में पूछे गए प्रश्‍न ” हनुमान क‍िसके ल‍िए संजीवनी लाए थे” का जवाब नहीं द‍िया जा सका और वो बगलें झांकने लगीं, फिर लाइफलाइन भी ले डाली तो मीड‍िया ने तो उनके इस ”ज्ञान” को लेकर ख‍िंचाई की, उसके फॉलोवर्स ने भी अपना माथा ठोंक ल‍िया। सोनाक्षी के इस ” ज्ञान ” ने उसकी परवर‍िश, उसके पर‍िवार और उन मूल्यों का सच भी उगल द‍िया जो गाहे-बगाहे उसके प‍िता हांकते रहते हैं। 
इस सबके बाद हद तो तब हो गई जब सोनाक्षी स‍िन्हा ने आलोचना करने वालों से उल्टे यह कहा क‍ि मुझे तो पाइथागोरस प्रमेय, मर्चेंट ऑफ वेन‍िस , पीर‍ियोड‍िक टेबल , मुगल साम्राज्य और ना जाने क्या क्या याद नहीं तो क्या हुआ।
मतलब साफ है क‍ि सोनाक्षी को ये बात बेहद मामूली लगी और इससे ज्यादा की अपेक्षा उनसे नहीं की जानी चाह‍िए वरना मुंह खोलते ही वे अपने और ”ज्ञान” से हमारे द‍िमागों को प्रदूष‍ित ही करेंगी, हम कम से कम उससे तो बच जायेंगे। ”अल्पज्ञानी” और ”धृष्ट” व्यक्त‍ि से तो कोई भी बहस बेमानी होती है, वो रहम का पात्र होता है। अत: सोनाक्षी पर बस रहम ही क‍िया जा सकता है क‍ि राम कथा के पात्रों को लेकर इतना अल्पज्ञान, वह भी तब जबक‍ि उनके घर का नाम ही रामायण है… पिता का नाम शत्रुघ्न और भाइयों का नाम लव और कुश है।
सोनाक्षी के बहाने ही सही, हमने तस्वीर का वो रुख भी देख ल‍िया जो सही परवर‍िश के मायने खोजने को बाध्य कर रहा है। इस संदर्भ में प्रस‍ि‍द्ध गाय‍िका माल‍िनी अवस्थी का कहना सही है क‍ि अब वक्त है क‍ि हम थोड़ा ठहरें, ये सोचें क‍ि अब कितने परिवारों में बच्चों को हमारे पूर्वजों की कथाएँ सुनाई जाती हैं? यूं भी राम व कृष्ण की कथाएँ कहना सुनना जिस शिक्षित समाज में आज भी पुरातनपंथी होने का द्योतक हो, वहां सोनाक्षी सिन्हा जैसा उत्तर ही मिलेगा। अपने धर्म प्रतीकों संस्कृति के प्रति उपहास /उदासीनता में पली पीढ़ी का यह कटु सत्य है। तो फ‍िर सोनाक्षी के जवाब पर हो हल्ला क्यों।
जब अपने बच्चों में संस्कारों का रास्ता हमने ही बदला है तो फिर इस पीढ़ी द्वारा आराध्य राम की और इनकी लीला भुला देने वाली पीढ़ी से कैसी शिकायत? कथ‍ित प्रगत‍िवाद के नाम पर स्कूलों के सिलेबस से जानबूझकर राम और कृष्ण की कथायें हटाई गईं, चाणक्य कौन थे, इस पीढ़ी के 70 प्रत‍िशत बच्चों को नहीं पता , फ‍िर स्वामी व‍िवेकानंद , रामकृष्ण परमहंस, आद‍ि शंकराचार्य की बात ही छोड़ दीज‍िए… परंतु इस पर हमने कभी बहस की ? कभी नहीं ।
हम डरते रहे क‍ि यद‍ि अपने बच्चों को धर्म, संस्कृत‍ि, परंपरा और उनमें समाह‍ित शिक्षाओं, उनके वैज्ञान‍िक पक्षों पर बात करेंगे तो हमें प‍िछड़ा बता द‍िया जाएगा। इस डर ने ही हमारे आसपास ना जाने क‍ितने सोनाक्षी-संस्करण खड़े कर द‍िए।
हर बुराई के पीछे अच्छाई छ‍िपी होती है, इस एक वाक्य से हमें संकट में भी सकारात्मक सोचने की सलाह दी गई ताक‍ि हम बुराई से न‍िकले सबक को लेकर सचेत हो जायें और ये सोचें क‍ि आख‍िर ये स्थ‍ित‍ि आई ही क्यों। अब वक्त ट्रोल करने से पहले स्वयं से पूछने का है क‍ि हमारी परवर‍िश की द‍िशा कौन सी है।
- अलकनंदा स‍िंंह 

शनिवार, 21 सितंबर 2019

रिफ्रेशर कोर्स ‘अर्पित’ ने खोली उच्च श‍िक्षा के गुरुओं की पोल

उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में शिक्षा की हकीकत बताने पर एक रिपोर्ट आई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में कार्यरत शिक्षकों के लिए पिछले वर्ष एक रिफ्रेशर कोर्स ज्‍वॉइन करने हेतु जो परीक्षा आयोजित की गई थी, उसमें 40 प्रतिशत शिक्षक फेल हो गए।
दरअसल मानव संसाधन मंत्रालय ने उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों की गुणवत्‍ता व यहां के शिक्षकों के ज्ञान को परखने को एक ऑनलाइन रिफ्रेशर कोर्स ‘ARPIT‘ (ऐनुअल रिफ्रेशर प्रोग्राम इन टीचिंग) जारी किया। इसमें शामिल होने के लिए एक शुरुआती टेस्‍ट होना था। अकर्मण्‍यता का इससे बड़ा नमूना और क्‍या हो सकता है कि इस रिफ्रेशर कोर्स ‘अर्पित’ को लेकर उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में पढ़ा रहे लगभग 15 लाख शिक्षकों में से सिर्फ 51000 शिक्षकों ने ही रजिस्‍ट्रेशन कराया और उनमें से भी सिर्फ 6,411 शिक्षक ही शामिल हुए जिसमें से भी 40 प्रतिशत शिक्षक फेल हो गए।
यूं इस कोर्स को करना अनिवार्य नहीं था परंतु इसे पदोन्‍नति से जोड़ा गया था, बावजूद इसके इतनी बड़ी संख्‍या में शिक्षकों का ‘रिफ्रेशर कोर्स टेस्‍ट’ में फेल होना ये बताता है कि उच्‍च शिक्षा में बदहाली और शिक्षकों की जो ‘दयनीय’ दशा है, वह दरअसल इकतरफा है, जानबूझकर प्लान्ट की गई है । इस इकतरफा ‘स्‍थापित की गई तस्‍वीर’ में कहीं भी ना तो शिक्षकों की अकर्मण्‍यता का जि़क्र आता है और न ही शैक्षिक माफियागिरी का। निश्‍चित जानिए ना तो इन फेल हुए 40 प्रतिशत का उल्‍लेख होगा और ना ही उन 14 लाख 40 हजार का जिन्‍होंने परीक्षा केलिए रजिस्‍ट्रेशन ही नहीं कराया।
बहरहाल शिक्षक संघों द्वारा हमारे सामने बनाई गई तस्‍वीर में शिक्षकों को सदैव बेचारा बताकर सरकारों को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है जबकि तस्‍वीर का दूसरा रुख जो आज हमारे सामने 40 % के रूप में आया, वह उच्‍च शिक्षा के इन कमजोर कंधों की हकीकत बयान करता है। वह यह भी बताता है कि देश के करदाताओं का पैसा इन जैसे ना जाने कितने अकर्मण्‍यों पर बरबाद किया जा रहा है। कम तनख्‍वाह, अतिरिक्‍त कार्य के अलावा बात बात पर जिंदाबाद मुर्दाबाद करते शिक्षक संघों, यूनीवर्सिटी यूनियनों के जरिए संस्‍थानों पर हावी रहने की निकम्‍मी-प्रवृत्‍ति ने शिक्षण कार्य की गुणवत्‍ता को तो प्रभावित किया ही है, साथ ही उन्‍हें परजीवी की भांति गैरजिम्‍मेदार भी बना दिया और नतीजा हमारे-आपके सबके सामने है कि हम अपने बच्‍चों के भविष्‍य को आखिर किसके हाथों सौंपते चले आ रहे हैं।
नियम तो ये होना चाहिए कि जो देश के भविष्‍य का निर्माण करने को नियुक्‍त ऐसे सभी लोग अपनी योग्‍यता समय-समय पर सिद्ध करने को बाध्‍य हों क्‍योंकि तभी उच्‍च शिक्षा में आगे बढ़ा जा सकता वरना अभी तक तो हम सरकार पर शिक्षाबजट कम होने का आरोप लगाकर कबूतर की भांति असल समस्‍या को देखकर आंखें ही बंद करते आए हैं।

सोमवार, 9 सितंबर 2019

वेदों का मजाक उड़ाने वालों को जवाब है प्रो. पेनरोज, Dr. Hammeroff का शोध

जो व्‍यक्‍ति अथवा समाज अपने अतीत को विस्‍मृत कर देता है वह अपने वर्तमान का ध्‍वंस तो करता ही है, भविष्‍य का भी अपराधी होता है। हम वेदों द्वारा सौंपे गए ज्ञान को भुलाकर यही अपराध लगातार करते रहे परंतु अब ये तस्‍वीर उलट रही है और इस पर गर्व करने की बारी हमारी है, वह भी प्रमाणों के साथ। अब भौतिकी के क्वाटंम सिद्धांत पर आधारित शोधों के बाद वैज्ञानिक ये सिद्ध करने में सफल हुए हैं कि आत्‍मा अजर व अमर है।
आधुनिक विज्ञान की आधारशिला बने ब्रह्मांडीय अध्‍ययन के साथ साथ शरीर विज्ञान के अध्‍ययन ये बताने को काफी हैं कि जो कुछ हमारे ऋषि-मुनि अपने ज्ञान से बताकर गए वह न केवल सत्‍य है बल्‍कि प्रमाणिक भी था और सदैव रहेगा।
हाल ही में ऑक्‍सफोर्ड यूनीवर्सिटी के गणित व भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर सर रोगर पेनरोज तथा यूनीवर्सिटी ऑफ एरीजाना के भौतिक वैज्ञानिक Dr. Stuart Hameroff ने 20 साल तक किए अनेक शोधों के बाद निष्‍कर्ष निकाला कि आत्‍मा अजर अमर है। इस बारे में इन्‍होंने कुल 6 शोधपत्र प्रकाशित किए हैं और इसपर अमेरिकी साइंस चैनल में डॉक्‍युमेंटरी भी जल्‍द ही दिखाई जाएगी।
शोधकर्ता प्रोफेसर सर रोगर पेनरोज तथा डा. स्‍टुअर्ट Hammeroff का कहना है कि मानव मस्तिष्क एक जैविक कंप्यूटर की भांति है। इस जैविक कंप्यूटर का प्रोग्राम चेतना या आत्मा है जो मस्तिष्क के अंदर मौजूद एक क्वांटम कंप्यूटर के जरिये संचालित होती है। क्वांटम कंप्यूटर से तात्पर्य मस्तिष्क की कोशिकाओं में स्थित सूक्ष्म नलिकाओं से है जो प्रोटीन आधारित अणुओं से निर्मित हैं। बड़ी संख्या में ऊर्जा के ये सूक्ष्म स्रोत अणु मिलकर एक क्वाटंम स्टेट तैयार करते हैं जो वास्तव में चेतना या आत्मा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, जब व्यक्ति दिमागी रूप से मृत होने लगता है तब ये सूक्ष्म नलिकाएं क्वांटम स्टेट खोने लगती हैं। सूक्ष्म ऊर्जा कण मस्तिष्क की नलिकाओं से निकल ब्रह्मांड में चले जाते हैं। कभी मरता इंसान जिंदा हो उठता है, तब ये कण वापस सूक्ष्म नलिकाओं में लौट जाते हैं। आत्मा चेतन दिमाग की कोशिकाओं में प्रोटीन से बनी नलिकाओं में ऊर्जा के सूक्ष्म स्रोत अणुओं एवं उपअणुओं के रूप में रहती है। सूचनाएं इन्हीं सूक्ष्म कणों में संग्रहित रहती हैं।
शोध के अनुसार सूक्ष्म ऊर्जा कणों के ब्रह्मांड में जाने के बावजूद उनमें निहित सूचनाएं नष्ट नहीं होती। क्वाटंम सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले वैज्ञानिक मैक्स प्लंक के नाम पर म्यूनिख में प्लंक इंस्टीट्यूट है, वहां के वैज्ञानिक हेंस पीटर टुर ने भी इसकी पुष्टि की है।
भारतीय वैदिक ज्ञान परंपरा पर सवाल उठाने वालों और इसे पोंगापंथी बताने वालों के लिए भौतिकी के क्वाटंम सिद्धांत पर आधारित यह शोध एक सबक है क्‍योंकि वाे भारतीय ज्ञान परंपरा में हुए ब्रह्मांडीय प्रयोगों को कमतर आंकते रहे और हर तथ्‍य को पोंगापंथ कहकर परे धकेलते रहे। वेदों के ज्ञान से भरे हुए हमारे अतीत को आज फिर से उसी प्रतिष्‍ठा के लिए याद करने का समय है।
जैसे कि पुरुषसूक्‍त, ऋग्वेद. 10.90.2 में कहा गया है-
पुरुष एव इदं सर्वं यद् भूतं यच्च भव्यम्।
उतामृतत्वस्य ईशानो यद् अन्नेन अतिरोहति।।
अर्थात्
इस सृष्टि में जो कुछ भी इस समय विद्यमान है, जो अब तक हो चुका है और आगे जो भविष्य में होगा, वह सब पुरुष (परमात्मा) ही है। वह पुरुष उस अमरत्व का भी स्वामी है, जो इस दृश्यमान भौतिक जगत के ऊपर है।
आज का विज्ञान भी मानता है कि इस दृश्यमान जगत के अंदर की सच्चाई इसके ऊपर से दिखने वाले रूप से सर्वथा भिन्न है। ऋग्‍वेद का संदेश आत्‍मा निरंतरता व अमरता को समझने के लिए काफी था जिसे अब प्रोफेसर सर रोगर पेनरोज व डा. स्‍टुअर्ट हैमरॉफ द्वारा क्‍वांटम कंप्‍यूटिंग व मैकेनिज्‍म से प्रमाणित किया जा रहा है।
– अलकनंंदा सिंह

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

शिक्षक दिवस: ‘नौकरी की सोच’ से आगे की बात

The point beyond 'job thinking'
यूं तो आज शिक्षक दिवस है और शिक्षा व शिक्षकों को लेकर कसीदे पढ़े जायेंगे, उनकी समस्यायें गिनाईं जाएंगी, सरकारों से उनके लिए क्‍या करें क्‍या ना करें, आदि आदि समाधान बताए जाऐंगे, जो स्‍वयं कुछ नहीं कर सके वे दूसरों को उपदेश देंगे कि शिक्षक दिवस पर ये करें, वो ना करें… आदि आदि। निश्‍चित जानिए कि आज का दिन शिक्षकों की ”बेचारगी” का रोना रोने में जाएगा। गुरुकुल की महान परंपरा वाले देश में इस तरह का रुदाली-रुदन अच्‍छा नहीं, ये तो शिक्षकों का डिमॉरलेजाइशन ही हुआ ना।
बहरहाल मैं अपनी बात यहीं से शुरू करती हूं कि आखिर क्‍यों ‘गुरू को पूजने वाले हम’ स्‍वयं का विक्‍टिमाइजेशन करने के आदी होते गए, गरीब और गरीबी को कथित रूप से महिमामंडित करते रहे। इस बेचारगी के रोने में कब स्‍वाभिमान तिल तिल कर समाप्‍त होता गया, पता ही नहीं चला।
शिक्षकों को लेकर हम इतना रोए कि ये विक्‍टिमाइजेशन की प्रवृत्‍ति रग रग में समाती चली गई, नतीजा यह रहा कि पूरे समाज को शिक्षित करने वाला शिक्षक ही अपने स्‍वाभिमान और कर्तव्‍य को ‘नौकरी’ के लबादे में लपेटकर स्‍वयं को हद दर्जे तक लगातार गिराता गया। स्‍तर यहां तक गिरा कि नौकरी के लिए शिक्षक हिंसक विरोध प्रदर्शनों पर उतर आए।
अकर्मण्‍यता, राजनीति, विरोध-प्रदर्शनों का पर्याय क्‍यों होते गए शिक्षक। शिक्षा देने वाले ही जब हिंसा पर उतारू हो जाऐंगे तो शिक्षा देगा कौन और कैसी होगी वह शिक्षा, आज के दिन ये भी सोचना जरूरी है। शिक्षादान को नौकरी में समेटकर हमने जो भूल कीं, अब उसे सुधारने का समय आ गया है।
सम्‍मान पाने के लिए सम्‍मान देना भी जरूरी है, और जो अपने कर्म को ही सम्‍मान नहीं दे सकता वह सम्‍मान पाने का अधिकार खो देता है। ये सम्‍मान किसी सरकार या संस्‍था से लिए जाने वाला सम्‍मान नहीं, बल्‍कि अपनी ही नज़रों में अपने सम्‍मान की बात है। तभी तो उन्‍हें ही श्रेष्‍ठ शिक्षक कहा जाता है जो नि:स्‍वार्थ शिक्षा देने में यकीं रखते हैं। संपन्‍नता नहीं, सुख खोजेंगे…अधिकार से पहले कर्तव्‍य को अंजाम देंगे तो ही समझ आएगा कि शिक्षक दिवस पर अब शिक्षकों को अपनी यात्रा का रुख किस ओर करना चाहिए।