गुरुवार, 7 मार्च 2024

कोर्ट के फैसले से छ‍िड़ी नई बहस: हिंदू मैरिज एक्ट में क्यों है सप‍िंड व‍िवाह की मनाही

हिंदू विवाह कानून के तहत सपिंड संबंध निषिद्ध हैं । सपिंड वह व्यक्ति है जो परिवार में आपकी माता की ओर से आपके ऊपर तीन पीढ़ियों के भीतर कोई सामान्य पूर्वज रिश्तेदार हो,परिवार में आपके पिता की ओर से आपके ऊपर पांच पीढ़ियों के भीतर कोई समान पूर्वज रिश्तेदार हो।

देश में संविधान बनने के बाद लोगों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए। मौलिक अधिकारों में एक अधिकार शादी भी है। कोई भी लड़का-लड़की अपने पसंद से एक दूसरे से विवाह कर सकते हैं। इसमें जात-धर्म या क्षेत्र बाधा नहीं बन सकते। लेकिन देश में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती। इन्हें 'सपिंड विवाह' कहते हैं। मौलिक अधिकार होने के बावजूद भी कपल इन रिश्तों में शादी नहीं कर सकते। गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने इस हफ्ते एक महिला की याचिका खारिज कर दी। वह हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5(v) को असंवैधानिक घोषित करने की लंबे समय से कोशिश कर रही थी। यह धारा दो हिंदूओं के बीच शादी को रोकती है अगर वे सपिंड हैं। अगर उनके समुदाय में ऐसा रिवाज होता है तो ये लोग शादी कर सकते हैं। 22 जनवरी को दिए अपने आदेश में, कोर्ट ने कहा कि अगर शादी के लिए साथी चुनने को बिना नियमों के छोड़ दिया जाए, तो गैर-कानूनी रिश्ते को मान्यता मिल सकती है। ये तो हो गई अब तक की अपडेट। संपिड शब्द अपने आप में कुछ लोगों के लिए नया तो कुछ लोगों के लिए आम हो सकता है। संपिड विवाह को लेकर हमारी पूरी बात टिकी है।

क्या है सपिंड विवाह
सपिंड विवाह उन दो लोगों के बीच होता है जो आपस में खून के बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट में, ऐसे रिश्तों को सपिंड कहा जाता है। इनको तय करने के लिए एक्ट की धारा 3 में नियम दिए गए हैं। धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, 'अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा।

हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी से शादी नहीं कर सकता/सकती। मतलब, अपने भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी और इन रिश्तेदारों के रिश्तेदार जो मां की तरफ से तीन पीढ़ियों के अंदर आते हैं, उनसे शादी करना पाप और कानून दोनों के खिलाफ है।बाप की तरफ से ये पाबंदी पांच पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते/सकतीं। यह सब इसलिए है कि बहुत करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि, कुछ खास समुदायों में अपने मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का रिवाज होता है, ऐसे में एक्ट के तहत उस शादी को मान्यता दी जा सकती है।


पिता की तरफ से ये शादी को रोकने वाली पाबंदी परदादा-परनाना की पीढ़ी तक या उससे पांच पीढ़ी पहले तक के पूर्वजों के रिश्तेदारों तक जाती है। मतलब, अगर आप ऐसे किसी रिश्तेदार से शादी करते हैं जिनके साथ आपके पूर्वज पांच पीढ़ी पहले तक एक ही थे, तो ये शादी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत मानी नहीं जाएगी। ऐसी शादी को "सपिंड विवाह" कहते हैं और अगर ये पाई जाती है और इस तरह की शादी का कोई रिवाज नहीं है, तो उसे कानूनी तौर पर अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि ये शादी शुरू से ही गलत थी और इसे कभी नहीं हुआ माना जाएगा।

सपिंड शादी पर रोक में क्या कोई छूट है?
जी हां! इस नियम में एक ही छूट है और वो भी इसी नियम के तहत ही मिलती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, अगर लड़के और लड़की दोनों के समुदाय में सपिंड शादी का रिवाज है, तो वो ऐसी शादी कर सकते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(a) में रिवाज का जिक्र करते हुए बताया गया है कि एक रिवाज को बहुत लंबे समय से, लगातार और बिना किसी बदलाव के मान्यता मिलनी चाहिए। साथ ही, वो रिवाज इतना प्रचलित होना चाहिए कि उस क्षेत्र, कबीले, समूह या परिवार के हिंदू मानने वाले उसका पालन कानून की तरह करते हों। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सिर्फ पुरानी परंपरा ही काफी नहीं है। अगर कोई रिवाज इन शर्तों को पूरा करता है, तो भी उसे तुरंत मान्यता नहीं दी जाएगी। ये रिवाज "स्पष्ट, अजीब नहीं और समाज के हितों के विरुद्ध नहीं" होना चाहिए। इसके अलावा, अगर परिवार के भीतर ही कोई रीति-रिवाज चलता है, तो उसे उस परिवार में बंद नहीं होना चाहिए यानी उसके अस्तित्व पर सवाल न उठे हों। मतलब, वो परंपरा वहां अभी भी सच में मान्य होनी चाहिए।

कानून को किसके तहत दी गई चुनौती?
इस कानून को महिला ने अदालत के सामने चुनौती दी थी। हुआ यह था कि 2007 में, उसके पति ने अदालत के सामने यह साबित कर दिया कि उनकी शादी सपिंड विवाह थी और महिला के समुदाय में ऐसी शादियां नहीं होतीं। इसलिए उनकी शादी को अमान्य घोषित कर दिया गया था। महिला ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2023 में कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी। मतलब, अदालत ने ये माना कि सपिंडा विवाह को रोकने वाला हिंदू मैरिज एक्ट का नियम सही है। महिला ने हार नहीं मानी और दोबारा हाई कोर्ट में उसी कानून को चुनौती दी। इस बार उन्होंने ये कहा कि सपिंड शादियां कई जगह पर होती हैं, चाहे वो समुदाय का रिवाज न भी हो। उन्होंने दलील दी कि हिंदू मैरिज एक्ट में सपिंड शादियों को सिर्फ इसलिए रोकना कि वो रिवाज में नहीं, असंवैधानिक है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो बराबरी का अधिकार देता है। महिला ने आगे यह भी कहा कि दोनों परिवारों ने उनकी शादी को मंजूरी दी थी, जो साबित करता है कि ये विवाह गलत नहीं है।

हाईकोर्ट का क्या जवाब था?
दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की दलीलों को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने माना कि याचिकाकर्ता ने पक्के सबूत के साथ किसी मान्य रिवाज को साबित नहीं किया, जो कि सपिंड विवाह को सही ठहरा सके। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि शादी के लिए साथी चुनने का भी कुछ नियम हो सकते हैं। इसलिए, कोर्ट ने माना कि महिला ये साबित करने में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं दे पाईं कि सपिंड शादियों को रोकना संविधान के बराबरी के अधिकार के खिलाफ है।

सपिंड विवाह को लेकर बाकी देशों में क्या है?
कई यूरोपीय देशों में ऐसे रिश्तों के लिए कानून भारत की तुलना में कम सख्त हैं जिन्हें भारत में गैर-कानूनी संबंध या सपिंड विवाह माना जाता है। जैसे कि फ्रांस में, साल 1810 के पीनल कोड के तहत व्यस्कों के बीच आपसी सहमति से होने वाले इन रिश्तों को गैर-अपराध बना दिया गया था। यह कोड नेपोलियन बोनापार्ट के शासन में लागू किया गया था और बेल्जियम में भी लागू था। हालांकि, साल 1867 में बेल्जियम ने अपना खुद का पीनल कोड बना लिया, लेकिन वहां आज भी इस तरह के रिश्ते कानूनी रूप से मान्य हैं। पुर्तगाल में भी इन रिश्तों को अपराध नहीं माना जाता। आयरलैंड गणराज्य में 2015 में समलैंगिक विवाह को मान्यता तो दी गई, लेकिन इसमें ऐसे रिश्ते शामिल नहीं किए गए। इटली में ही ये रिश्ते सिर्फ तभी अपराध माने जाते हैं जब ये समाज में हंगामा मचाए। अमेरिका में बात थोड़ी अलग है। वहां के सभी 50 राज्यों में सपिंडा जैसी शादियां अवैध हैं। हालांकि, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड नाम के दो राज्यों में अगर व्यस्क लोग आपसी सहमति से ऐसे रिश्ते में हैं तो इसे अपराध नहीं माना जाता।

- अलकनंदा स‍िंंह

https://www.legendnews.in/single-post?s=a-new-debate-has-arisen-due-to-the-court-s-decision-as-to-why-superannuation-is-prohibited-in-the-hindu-marriage-act-15942 

बुधवार, 6 मार्च 2024

भारत में अबॉर्शन को लेकर क्या कहता है कानून, जानें


 फ्रांस ने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार देने के बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस में एफिल टॉवर पर हजारों की तादाद में महिलाएं पुरुष जमा हुए थे फ्रांस के एक ऐतिहासिक फैसले का जश्न मनाने. टॉवर पर लाइट्स के साथ बड़े बड़े अक्षरों में My Body My Choice लिखा था. 

फ्रांस ने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार देने के बाद ऐसा करने वाला वो दुनिया का पहला देश बन गया है. फ्रांस में पिछले कई दिनों से महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी. इसे लेकर कई सर्वे भी कराए गए थे, जिनमें 85% लोगों ने इसका समर्थन किया था.

पुर्तगाल से लेकर रूस तक 40 से अधिक यूरोपीय देशों में महिलाएं गर्भपात की सुविधा ले सकती हैं लेकिन इस शर्त पर कि गर्भावस्था कितने दिनों की हो गई है.

आइये जानते हैं क‍ि अबाॉर्शन को लेकर भारत में क्या नियम हैं- 

2023 में भारत में गर्भपात का मुद्दा काफी सुर्खियों में रहा था. 26 सप्ताह की गर्भवती विवाहित महिला गर्भपात की गुहार लगाते सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. पर उस महिला को आखिर में निराशा ही मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने 26 हफ्ते का गर्भ गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि चूंकि महिला 26 हफ्ते और पांच दिन की गर्भवती है, इसलिए गर्भावस्था को समाप्त करना कानून का उल्लंघन होगा. कानून कहता क्या है?

भारत में गर्भपात को नियंत्रित करने वाले कानून का नाम है-मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971. एक रजिस्टर्ड चिकित्सक गर्भपात कर सकता है. पर कुछ शर्तो के साथ. पहला अगर प्रेगनेंसी से महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा हो. दूसरा अगर भ्रूण के गंभीर मानसिक रूप से पीड़ित होने की संभावना हो. तीसरा यह कि अगर डॉक्टर को लगता है कि प्रसव होने पर महिला को शारीरिक असामान्यताएँ होंगी तो अबॉर्शन का अधिकार है.

ऐसे कई मामले सुनने को मिलते हैं कि कोई महिला गर्भनिरोधक लेने के बावजूद गर्भवती हो जाती है. इस स्थिती में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 में कहा गया है कि इसे गर्भनिरोधक नाकामी का नतीजा माना जाएगा और और गर्भपात की अनुमति होगी. इसके अलावा 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अविवाहित महिला को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने की अनुमति दिया जाना चाहिए. रेप के मामले में भारत का कानून कहता है कि 24 हफ्ते तक का अबॉर्शन कराया जा सकता है.

- Alaknanda Singh 

सोमवार, 4 मार्च 2024

इन कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से हमारे पूर्वजों ने अत्यंत गूढ़ संदेश दिए

हिंदू आख्यान शास्त्र के अनुसार श्वान को सबसे अशुभ प्राणी माना जाता है इसलिए उसे विवाह मंडपों और अन्य पवित्र जगहों के निकट आने से रोका जाता है। रोता हुआ श्वान दुर्भाग्य का अगुआ होता है। श्वान को देखना भी दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है लेकिन श्वान तो प्यारे, आज्ञाकारी और स्नेहमय प्राणी हैं। 

ऋग्वेद के अनुसार भी इंद्र ने खोई हुईं गायों को ढूंढने हेतु श्वानों की माता ‘सरमा’ को भेजा था। इससे उन्होंने स्वीकार किया कि श्वान रक्षा करने में भूमिका निभाते हैं। कथानकों में श्वानों को मृत्यु से जोड़ा जाता है इसलिए सरमा की संतान ‘सरमेय’ यमदेव के साथी होते हैं। उन्हें बंजर भूमि के साथ भी जोड़ा जाता है, न कि सभ्यता के साथ। श्वान शिव के उग्र रूप ‘भैरव’ का वाहन है। श्वान इतना अशुभ माना गया है कि महाभारत में युधिष्ठिर को श्वान के संग स्वर्ग में प्रवेश करने से रोका गया। 

आख्यान शास्त्र का कभी शाब्दिक अर्थ नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक अर्थ लिया जाना चाहिए। इन कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से हमारे पूर्वजों ने अत्यंत गूढ़ संदेश दिए। चूंकि श्वान अशुभ माने जाते हैं, वे एक अशुभ विचार से जुड़े हैं। यह कौन-सा विचार है? भागवत पुराण में जड़ भरत नामक त्रषि की कहानी है। सब कुछ त्यागने के बावजूद वे एक हिरण से आसक्त हुए और इसलिए मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाए। उन्होंने हिरण बनकर पुनर्जन्म लिया। हिंदू दर्शनशास्त्र का मुख्य सिद्धांत यह है कि आसक्त होने से हम फंस जाते हैं। 

अब कल्पना करें कि एक श्वान आपकी ओर आतुरता और स्नेह भरी आंखों से देख रहा है- उसके प्रेममय व्यवहार से आपका हृदय पिघल जाता है। पालतू श्वान हमेशा अपने मालिक से पुष्टि चाहता है। उस पर ध्यान देने पर वह पूंछ हिलाता है और ध्यान न देने पर रोता है। अब श्वानों से घिरे एक संन्यासी की कल्पना करें। जैसे भरत हिरण से आसक्त हुए, वैसे क्या संन्यासी भी इन श्वानों से आसक्त हुए होंगे? 

पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाने के लिए उन्हें आसक्ति की तीव्र इच्छा के पार जाना होगा। श्वान अपने मालिक से अबाध प्रेम करता है और इसलिए श्वान से प्रलोभित होना अप्सराओं से प्रलोभित होने से भी आसान है। सदा चार श्वानों से घिरे दत्तात्रेय तटस्थता के प्रतीक थे। श्वान दत्तात्रेय का पीछा करते थे, लेकिन दत्तात्रेय उन्हें प्रलोभन नहीं देते थे। श्वान क्षेत्रीय प्राणी है इसलिए वह अपने मालिक को भी किसी के साथ नहीं बांटता है। यदि उसे लगा कि उसका क्षेत्र खतरे में है या कोई उसके मालिक के निकट आ रहा है तो वह गुर्राता या भौंकता है। 

हमारे पूर्वज जान गए थे कि मनुष्यों में ऐसा व्यवहार अवांछनीय है। मनुष्य भी क्षेत्रीय जीव है। हमारा क्षेत्र चिह्नित करने से हमारी पहचान निर्मित होती है। एक उद्योगपति की पहचान उसके उद्योग हैं; एक नौकरशाह की पहचान उसका पद है; एक राजनीतिज्ञ की पहचान राजनीतिक दल और उसकी सत्ता है। यदि किसी का यह संदर्भ खतरे में रहा तो उसकी आक्रामक प्रतिक्रिया होगी, कुछ वैसे जैसे श्वान की होती है। 

हमें लगता है कि अपने क्षेत्र (शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक) से अधिकार चले जाने पर हमारी पहचान भी नष्ट होगी। इससे हम भयभीत होते हैं। जब हमारा क्षेत्र सुदृढ़ बनता है, तब हम श्वान जैसे प्रसन्न होते हैं। जब क्षेत्र खतरे में होता है, तब हम आक्रामक बनते हैं। और जब हमारे क्षेत्र की उपेक्षा होती है, तब हम रूठ जाते हैं। इस व्यवहार की जड़ भय में है। भैरव हमें इस भय से पार जाने में मदद करते हैं। वे हमारी आदिम, क्षेत्रीय सहज-बुद्धि का ठठ्ठा करते हैं। फलस्वरूप हम उनसे आतंकित होते हैं। दिल्ली और वाराणसी के काल भैरव मंदिरों में उन्हें मदिरा अर्पित की जाती है। मदिरा हमारे विवेक को धुंधला बनाती है और हममें यह विकृत समझ आती है कि क्षेत्र के कारण ही पहचान निर्मित होती है। हम भूल जाते हैं कि हम हमारे क्षेत्र के लिए जितना भी लड़ें, एक न एक दिन यमदेव और उनके सरमेय हमें उससे दूर ले जाएंगे। 

हमारे भौतिक, मानसिक और भावनात्मक क्षेत्रों के बारे में हम इतने असुरक्षित अनुभव करते हैं कि जीवन के अंतिम क्षणों तक उनके लिए कुछ उस तरह लड़ते हैं, जिस तरह श्वान हड्डी के लिए लड़ता है। और मृत्यु के पश्चात शरीर के श्मशान पहुंचने पर हम पाते हैं कि वहां श्वान पर बैठे भैरव हम पर हंस रहे हैं कि हमने हमारा जीवन व्यर्थ की खोज में गंवा दिया।

- Alaknanda Singh