गुरुवार, 27 मई 2021

बाहर आने लगी है “भगवानों” की संस्‍था #IMA के भीतर की गंदगी

 योग गुरू बाबा रामदेव द्वारा ऐलोपैथी को एक असफल चिकित्सा पद्धति कहे जाने के बाद से ऐलोपैथी डॉक्‍टरों की स्वयंसेवी संस्था “आईएमए” भड़की हुई है, इसकी उत्‍तराखंड शाखा ने तो योगगुरू पर 1000 करोड़ का मानहान‍ि केस तक दायर कर द‍िया है, साथ ही आईएमए के राष्‍ट्रीय महासचिव डॉ. जयेश लेले ने दिल्ली के आईपी एस्टेट थाने में शिकायत दर्ज कराई है, तो दूसरी ओर धर्मांतरण के लिए अपने कार्यालय का दुरुपयोग करने के लिए @IMAIndiaOrg प्रमुख डॉ जॉनरोस ऑस्टिन जयालाल के खिलाफ भी आपराधिक शिकायत दर्ज की गई है।

मैं आज यहां बाबा रामदेव के पक्ष में कुछ नहीं ल‍िख रही क्‍योंक‍ि ज‍िस तरह आधा सच नुकसान दायक होता है उसी तरह सही समय और सही मंच पर ना बोला सत्‍य भी गर‍िमाहीन हो जाता है, बाबा ने ऐसा ही सत्‍य बोला है।

इस पूरे घटनाक्रम में अब तक कथ‍ित “भगवानों” की संस्‍था “आईएमए” के भीतर की गंदगी, लोगों की सेहत से ख‍िलवाड़ करती देशद्रोही गत‍िव‍िध‍ियां सामने आ रही हैं। ऐलोपैथ‍ी से रोगों का इलाज़ करने वाले भारतीय डॉक्‍टरों के प्रत‍ि जनता के “अव‍िश्‍वास” को 327,207 डॉक्‍टरों की संस्‍था आईएमए के अपने रवैये ने और पुख्‍ता कर द‍िया है क‍ि उसे बाबा के बयान पर तो घोर आपत्‍त‍ि है परंतु वो उन प्रश्‍नों का जवाब नहीं देना चाहती जो स्‍वयं उसे ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।

जैसे क‍ि-

1. सरेआम ह‍िंदुओं का ईसाई धर्मांतरण करने में ल‍िप्‍त आईएमए के मौजूदा अध्‍यक्ष डॉ. जॉनरोज ऑस्टीन जयलाल के बयान क‍ि “सरकार और डॉक्‍टरों ने नहीं कोरोना को तो यीशु ने भगाया, इसल‍िए कोरोना से बचना है तो यीशु की शरण में आओ”, को क्‍या कहेंगे।

2. व‍िदेशी फार्मा कंपन‍ियों के साथ दशकों पुरानी लॉब‍िंग से भारी धन लेकर उनके प्रोडक्‍ट का प्रचार, आयुर्वेद सह‍ित अन्‍य च‍िक‍ित्‍सा पद्धत‍ियों के प्रत‍ि घृणा और भ्रम को बढ़ाना क्‍या है, इसके ल‍िए संस्‍था को व‍िदेशों से भारी रकम भी प्राप्‍त हुई।

3.  आईएमए ने 2007 में Pepsico कंपनी से 50,00,000 में उसके उत्‍पादों का व‍िज्ञापन करने का करार क‍िया जबक‍ि ट्रॉप‍िकाना जूस, सीर‍ियल, ओट्स सह‍ित उसके सभी प्रोडक्‍ट भारी कैलोरीज, बच्‍चों की लंबाई कम करने और मोटापा बढ़ाने वाले साब‍ित हुए। #CorporateDalals की भंत‍ि ब्रि‍टिश कंपनी Reckitt के उत्‍पाद Dettol Soap, Dettol व Lyzol को प्रचार‍ित क‍िया, इसी कड़ी में Dabur, ICICI , procter & gamble , Abbott india भी तो हैं।

4. इसी तरह एलईडी बल्ब, वॉल पेंट, पंखे, साबुन, तेल, वाटर प्यूरीफायर आदि को सर्टिफिकेट बांटना है? दरअसल रामदेव की वजह से उनकी दुकान बंद है, जिनकी स्थानीय/विदेशी कंपनियां पैसे से सर्टिफिकेट बांट रही हैं।

5. इसके अलावा प्लाईवुड, कोलगेट, टायलेट क्लीनर आदि प्रोडक्ट्स को बैक्टीरिया फ्री, वायरस फ्री और अमका फ्री ढिमका फ्री का सर्टिफिकेट भी तो आईएमए ही बांट रही है।

6. संस्‍था पदाध‍िकारी सह‍ित कमोवेश सभी ऐलोपैथ‍िक डॉक्‍टर्स व‍िदेश यात्रायें, बच्‍चों की पढ़ाई और मीट‍िंग्‍स,कॉ्रेंसेस तक स्‍पांसर कराते हैं, आख‍िर ये उसे कैसे जायज ठहरायेंगे। उनके पास फार्मा कंपनी के साथ साथ पैथ लैब्स,  मेडिकल र‍िप्र‍िजेंटेट‍िव, मेडिकल स्‍टोर्स के साथ साथ स्‍वयं की ऊंची फीस व हर स्‍टेप पर कमीशनखोरी से होने वाली अत‍िर‍िक्‍त कमाई के व्यवसायि‍क मॉडल पर है कोई जवाब।

आईएमए के ल‍िए बाबा का मौजूदा बयान तो बहाना बन गया क्‍योंक‍ि बाबा के देशी प्रोडक्‍ट इस संस्‍था के ईसाई धर्मांतरण मानस‍िकता वाले अध्‍यक्ष डॉ. जॉनरोज ऑस्टीन जयलाल को वैयक्‍त‍िक रूप से और संस्‍था से जुड़े व‍िदेशी ब्रांड्स को आर्थ‍िकरूप से नुकसान पहुंचा रहे थे, सो ये तो पुरानी खुन्‍नस है, न‍िकलनी ही थी।

बाबा का कुसूर इतना था क‍ि उन्‍होंने बड़बोलापन द‍िखाते हुए आचार्य सुश्रुत द्वारा “निदान स्थानम” में ल‍िखी बात ही दोहरा दी थी क‍ि-
“यद‍ि कोई एक चिकित्सा उपचार, बीमारी (जैसे क‍ि कोरोना) के कारण का इलाज करने में विफल रहता है और इसके अपने दुष्प्रभाव (sideeffect) होते हैं जिससे कई अन्य बीमारियां (Black fungus) जन्‍म लेती हों तो वह एक “असफल चिकित्सा पद्धति” है।

ज़ाह‍िर है कि लगभग  7000 cr के कोव‍िड धंधे में हजारों करोड़ के प्राइवेट हॉस्पिटल, ज‍िनका एक-एक दिन का चार्ज लाखों मेें होता है, की अगर कोई ऐसे पोल खोलेगा तो बुरा तो लगेगा ही ना, आईएमएम को भी लग गया और ठोक द‍िया बाबा पर मुकद्दमा, देखते हैं अब ऊँट क‍िस करवट बैठता है।

- अलकनंदा स‍िंंह 

http://legendnews.in/the-filth-inside-the-gods-organization-has-started-coming-out/

शनिवार, 22 मई 2021

पत्रकार‍िता की आड़ में पीड़‍ितों को न‍िगलता “बड़ों” का रसूख

तहलका के संपादक तरुण तेजपाल यौन उत्‍पीड़न के मामले में बरी 
    #ज़फ़र_इक़बाल_ज़फ़र ने ब‍िल्‍कुल ठीक           कहा है कि-

   एक जुम्बिश में कट भी सकते हैं
   धार पर रक्खे सब के चेहरे हैं
   रेत का हम लिबास पहने हैं
   और हवा के सफ़र पे निकले हैं।

   #ज़फ़र_इक़बाल_ज़फ़र के इस शेर को मैं         आज की पत्रकार‍िता द्वारा आदतन “चयन‍ित व‍िषयों पर ही अपनी र‍िपोर्ट” के मामले में प्रयोग कर रही हूं। कल तहलका के संपादक तरुण तेजपाल को गोवा कोर्ट द्वारा यौन उत्‍पीड़न के मामले में बरी क‍िए जाने के बाद से ही ये अभ‍ियान शुरू हो गया। चूंक‍ि गोवा में भाजपा की सरकार ने अब इस मामले को हाईकार्ट ले जाने की बात कही, तभी से पूरी की पूरी पत्रकार ब‍िरादरी खांचों में बंट गई।

कांग्रेस समर्थक पत्रकारों का एक खांचा तेजपाल की तरफदारी में लगा था तो दूसरा खांचा भाजपा पर मामले को कोर्ट ले जाने में जल्‍दबाजी और पीड़‍िता द्वारा पुल‍िस में श‍िकायत “दर्ज़ ना कराने” के बावजूद उन्‍हें राजनैत‍िक कारणों से फंसाया जाना बता रहा था मगर इस बीच जो सबसे शर्मनाक रहा, वह था तेजपाल का संद‍िग्‍ध चर‍ित्र और उस पर पत्रकार‍िता की रहस्‍यमयी चुप्‍पी। हालांक‍ि ये चुप्‍पी घटना (2013) के समय इतनी गहरी नहीं थी परंतु कल से तो पत्रकारों ने मुंह ही सीं ल‍िया है जबक‍ि सभी जानते हैं क‍ि आठ साल बाद ये न‍िर्णय अभी मात्र सेशन कोर्ट से ही आया है, गोवा सरकार की मानें तो अंत‍िम न‍िर्णय आने में समय लगेगा। इस बीच मीड‍िया की ये चुप्‍पी तेजपाल के रसूख का मूक सर्मथन करती द‍िख रही है।

तेजपाल के रसूख का अंदाज़ा इसी बात से भी लगा सकते हैं क‍ि उसे बलात्कार, यौन उत्पीड़न और जबरन बंधक बनाने के सभी आरोपों से बरी कराने में पीड़‍िता के ख‍िलाफ कुल 11 बड़े व नामी वकील पैरवी में लगे रहे। इनमें राजीव गोम्स, प्रमोद दुबे, आमिर ख़ान, अंकुर चावला, अमित देसाई, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, अमन लेखी, संदीप कपूर, राजन कारंजेवाला और श्रीकांत शिवाडे जैसे हाइलीपेड वकील रहे और इन्‍होंने 156 गवाहों की सूची में से मात्र 70 गवाहों से ही जिरह की और इसी आधार पर फैसला सुना द‍िया गया।

वकीलों की इतनी बड़ी फौज की भी वजह थी क‍ि न‍िर्भया केस के बाद बलात्कार की जस्टिस वर्मा कमेटी द्वारा तय की गई नई परिभाषा ‘फ़ोर्स्ड पीनो-वैजाइनल पेनिट्रेशन’ के तहत तेजपाल का ये मामला किसी रसूखदार व्यक्ति के खि‍लाफ़ आया पहला केस था। उधर 2013 में विशाखा गाइडलाइन्स पर बने नए कानून के तहत सभी कार्यालयों के ल‍िये “कार्यस्‍थल पर यौन उत्पीड़न” की जांच और फ़ैसले के लिए इंटर्नल कम्प्लेनेंट्स कमेटी बनाना आवश्‍यक था इसील‍िए नवंबर 2013 में पीड़‍िता ने अपने दफ़्तर को चिट्ठी लिख पूरे मामले की जानकारी दी थी और जांच की मांग की थी परंतु उस वक़्त तक तहलका मैगज़ीन में कोई इंटरनल कम्प्लेनेट्स कमेटी थी ही नहीं। हालांक‍ि वो चाहती तो क्रिमिनल लॉ के सेक्शन 354 (ए) के तहत पुलिस के पास भी जा सकती थी परंतु तेजपाल का रसूख यहां भी हावी था। अत: मामला सामने आने के बाद गोव सरकार को आगे आना पड़ा।

इसके बावजूद कई अख़बारों, वेबसाइट और टीवी चैनलों ने तरुण तेजपाल और महिला सहकर्मी की एक-दूसरे को और दफ़्तर को लिखे ई-मेल्स बिना सहमति लिए छाप दिए थे। इंटरनेट पर अब भी शिकायतकर्ता की अपनी संस्था #Tehelka  को लिखी वो ई-मेल मौजूद है जिसमें उनके साथ की गई हिंसा का पूरा विवरण था, ये ई-मेल केस के कुछ ही समय बाद ‘लीक’ हो गया था।  इतना सब लीक होने के बाद भी अब पत्रकारों द्वारा तेजपाल का “इस तरह” स्‍वागत करना बहुत कुछ कह रहा है।

बहरहाल अब जब कि‍ सेशन कोर्ट से तेजपाल बरी हो गया है तब हमारे (पत्रकारों) ल‍िए ये गंभीरता से सोचने का समय है क‍ि पीड़‍ितों की आवाज़ उठाने वाली पत्रकार‍िता को अब पूरी तरह र‍िवाइव क‍िया जाए ताक‍ि पत्रकार‍िता भाजपा, कांग्रेस, वामपंथी आद‍ि के खांचों में ना बंटे क्‍योंक‍ि आज भी “बड़ों” का रसूख ना जाने क‍ितने पीड़‍ितों को न‍िगलने को आतुर है। ऐसे में वे जो अपनी आवाज़ स्‍वयं नहीं उठा सकते, इसलिए उनकी आवाज़ बना जा सके ताक‍ि राजनैत‍िक दलों, मीड‍िया हाउस के बड़े ओहदेदारों द्वारा खांचों में बांटकर पत्रकार‍िता को मोहरे की तरह इस्‍तेमाल होने से रोक सकें।

और अंत में सभी पत्रकारों से यही कहूंगी क‍ि हमें अपना ग‍िरेबां चुस्‍त दुरुस्‍त रखने के ल‍िए ही सही,  #ज़फ़र_इक़बाल_ज़फ़र के ही शब्‍दों में “रेत का लिबास पहनकर हवा के सफ़र पे निकलने” वाली बेवकूफ़ी से बचना चाह‍िए।

-अलकनंदा स‍िंंह 

सोमवार, 17 मई 2021

हे सरकार! एक ऑड‍िट इनके द‍िमाग का भी हो

आपदा से जूझते अपने देश के स्‍वास्‍थ्‍य ढांचे को लेकर राजनैत‍िक दुष्‍प्रचार ने अब तो सारी सीमाएं लांघ दी हैं, समझ में नहीं आता क‍ि कोई इतना कैसे ग‍िर सकता है। कोरोना काल में जब सभी राजनैत‍िक पार्ट‍ियों को केंद्र सरकार के साथ म‍िलकर आपदा से दो-दो हाथ करने चाह‍िए, तब वे दुष्‍प्रचार के चरम पर जा रहे हैं।

बतौर उदाहरण दुष्‍प्रचार के पहले मामले में केजरीवाल सरकार ने लगातार ऑक्‍सीजन स‍िलेंडर्स, ऑक्‍सीजन कंसेंटेटर्स, वेंटीलेटर्स की कमी बताई और इसकी ज‍िम्‍मेदारी केंद्र पर डाली। भ्रम और झूठ का भरपूर भूत खड़ा क‍िया गया परंतु जैसे ही ऑड‍िट हुआ तो सारा सच सामने आ गया और ज‍िन उपकरणों को लेकर वे कमी का रोना रो रहे थे, अचानक वो इतनी बहुतायत में आ गए कि‍ वे उन्‍हें दान देने की बात करने लगे।

इसी तरह अब वैक्सीन पर रोना जारी है। दो द‍िन पहले द‍िल्‍ली में ही पोस्‍टर लगाए गए क‍ि ‘मोदी जी हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दी?’ इस दुष्‍प्रचार के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत ज‍िन 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया उनके पक्ष में राहुल गांधी, द‍िग्‍व‍िजय स‍िंह समेत द‍िल्‍ली के आप व‍िधायक अमानतुल्‍ला खान आद‍ि ने ट्विवर पर ‘मुझे भी गिरफ्तार करो’ का अभियान चलाकर इसे प्रोफाइल पिक्चर बनाया, साथ ही ल‍िखा क‍ि ‘सुना है ये पोस्टर 𝗦𝗛𝗔𝗥𝗘 करने से पूरा 𝗦𝗬𝗦𝗧𝗘𝗠 कांपने लगता है…’।

व‍िदेशों को वैक्‍सीन मुहैया कराने का सच 
न‍िश्‍च‍ित रूप से क‍िसी अंधे व्‍यक्‍त‍ि को तो रास्‍ता द‍िखाया जा सकता है परंतु जो देखते हुए अंधा बनने का नाट‍क करे, उसे कौन दृष्‍ट‍ि दे। वैक्‍सीन को दूसरे देशों में भेजने पर क‍िए जा रहे कांग्रेस व आप के दुष्‍प्रचार के पीछे भी यही बात है जबक‍ि हकीकत यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के समझौते एवं कच्चे माल के एवज में वाणिज्यिक करार के तहत वैक्सीन देने की “बाध्यताा” है।

भारत ने 7 पड़ोसी देशों बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका आदि को 78 लाख 50 हजार वैक्सीन अनुदान के तहत उपलब्ध कराया। इन आंख वाले अंधों को कौन समझाए क‍ि 2 लाख डोज संयुक्त राष्ट्र संघ के उस शांति बल के लिए सहायता स्वरूप दी गईं जिसमें 6600 तो भारतीय सैनिक ही हैं, अन्य देशों को दिए गए कुल वैक्सीन का यह करीब 16% है।

विदेशों को दिए गए 6 करोड़ 63 लाख वैक्सीन के डोज का करीब 84 प्रतिशत डोज वाणिज्यिक समझौते व लाइसेंसिंग करार के तहत उन देशों को दिया गया जिनसे हमें वैक्सीन तैयार करने के लिए कच्चा माल व लाइसेंस मिला है।

यूके को बड़ी मात्रा में वैक्सीन इसलिए देनी पड़ी क्योंकि सीरम इंस्टिट्यूट जिस कोविशिल्ड वैक्सीन का निर्माण कर रही है उसका लाइसेंस यूके के ‘ऑक्सफोर्ड एक्स्ट्रा जेनिका’ से प्राप्त हुआ है और “लाइसेंसिंग करार” के तहत उसे वैक्सीन का डोज देना जरूरी है।

इसके अलावा वाणिज्यिक समझौते के तहत सऊदी अरब को 12.5 प्रतिशत वैक्सीन देनी है क्योंकि जहां उससे पेट्रोलियम का आयात होता है वहीं बड़ी संख्या में वहां रह रहे भारतीयों को दो डोज मुफ्त वैक्सीन देने का उसने भारत से समझौता किया है।

इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन से हुए एक समझौते के तहत कुल निर्यात का 30 प्रतिशत वैक्सीन ‘को-वैक्स फैसिलिटी’ को दिया जाना है।

तो कुल म‍िलाकर बात ये है कि‍ ज‍िस बुद्ध‍ि के पैमाने का प्रदर्शन राहुल गांधी करते रहे हैं, उसमें “वाण‍िज्‍यक करार” को समझ पाना मुश्‍क‍िल ही लगता है। शहर और गांव के हर चौराहे पर कोई न कोई एक ऐसा नमूना आपको म‍िल ही जाएगा जो कपड़े फाड़ता हुआ जोर जोर से चीखता है परंतु उसे कोई गंभीरता से लेता ही नहीं, राहुल गांधी का भी यही हाल है। केंद्र सरकार की बजाय केवल पीएम के प्रत‍ि दुष्‍प्रचार का यह तरीका उन्‍हें कहीं का नहीं छोड़ेगा, बेहतर होगा क‍ि वो अपनी तरह व‍िदेशों में तो देश की फजीहत ना करायें क्‍यों कि‍ इनके द‍िमाग और कुप्रवृत्‍त‍ियों का ऑड‍िट तो नहीं कराया जा सकता।

– अलकनंदा स‍िंह

सोमवार, 10 मई 2021

‘पाखंड की प्रत‍िष्ठा’ से वैक्सीन पर प्रोपेगंडा जीवि‍यों के मंसूबे…


कव‍ि जयशंकर प्रसाद की एक कव‍िता है ‘पाखंड की प्रत‍िष्ठा’, इस कविता के माध्‍यम से उन्होंने भलीभांत‍ि बताया है क‍ि क‍िस तरह कोई पाखंडी अपने देश, अपनी संस्कृत‍ि तथा आमजन का जीवन दांव पर लगा कर उन्हें त्राह‍ि-त्राह‍ि करते देख आनंद‍ित होता है। कव‍िता में कहा गया है क‍ि –

स्मृतियों के शोर में अब से मौन मचाया जायेगा,
धुर वैचारिक अट्टहास में सुस्मित गाया जायेगा,
कुंठा के आगार में किंचित मुक्ति बांधी जाएगी,
भय आच्छादित मेड़ लगाकर प्रेम उगाया जायेगा.

स्वतंत्रता से पहले हो या उसके बाद हमारे देश में सदैव से ऐसे तत्व मौजूद रहे हैं ज‍िन्हें स‍िर्फ और स‍िर्फ अपने प्रोपेगंडा से वास्ता रहा, फ‍िर चाहे इसकी कीमत आमजन को भले ही क्यों ना चुकानी पड़ी हो। ऐसी ही पूरी की पूरी एक जमात अब वैक्सीन पर हायतौबा कर रही है। इस जमात ने पहले वैक्सीन न‍िर्माण पर और अब इसके न‍िर्यात पर बावेला मचा रखा है क‍ि… वैक्सीन का न‍िर्यात रोको।

पत्रकार तवलीन स‍िंह ने तो पीएम नरेंद्र मोदी को ‘नीरो’ ही बना द‍िया, जो ”स‍िर्फ अपनी छव‍ि व‍िदेशी नेताओं के समक्ष” चमकाने में लगे हैं और इसील‍िए वैक्सीन न‍िर्यात की जा रही है। वकील प्रशांत भूषण ने कहा क‍ि प्राकृतिक रूप से ही खत्म हो रहा है कोरोना संक्रमण, तो फ‍िर निजी वैक्सीन कंपनियों को सरकारी मदद क्यों।

इन प्रोपेगंडा जीवि‍यों को सोशल मीडि‍या पर लाखों लोग फॉलो करते हैं। वैक्सीन न‍िर्यात पर हायतौबा मचाने से पहले इन्होंने वैक्सीन लगाने को लेकर भी डर फैलाया, लोगों को गुमराह किया, वैक्सीन की दक्षता पर प्रश्न खड़े किए ज‍िससे लोगों के मन में शंका पैदा हुई। जब टीकाकरण शुरू हुआ तो इन लोगों ने सबसे पहले जाकर वैक्सीन का डोज लिया और फ्री में वैक्सीन उपलब्ध कराने की माँग करने लगे। चुपके से अपना वैक्सीनेशन कराने वाले पत्रकार संदीप चौधरी हों या कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य और पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी, इन्‍होंने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के ख‍िलाफ अभ‍ियान चला रखा है।

अब बात करते हैं वैक्सीन न‍िर्यात की, क‍ि अपनी जरूरतें पूरी करने के साथ-साथ हमारे लिए इसका न‍िर्यात क्यों जरूरी है। भारत ने अपने ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम के जरिए करीब 83 देशों को स्‍वदेशी कोरोना वैक्सीन भेजकर मदद की। दूसरे देशों को टीकों की आपूर्ति करना अपने देश में पर्याप्त उपलब्धता होने पर ही संभव है। इसकी लगातार निगरानी एक सशक्त समिति कर रही है। इसके अलावा भारत को वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चा माल आयात करना पड़ता है, दुनिया भर से कच्चा माल लेकर हम वैक्सीन निर्यात पर रोक नहीं लगा सकते।

ये प्रोपेगंडाजीवी जानबूझकर इस तथ्य को छ‍िपा रहे है क‍ि वैश्व‍िक साझा सहयोग की नीत‍ि के तहत अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने के नतीजे क्या हो सकते हैं? इसील‍िए कोरोना की दूसरी लहर के न‍िपटने को दूसरे देशों से लगातार मदद ऑफर की जा रही है। सार्वभौम है क‍ि शक्त‍ि हो तो सब साथी होते हैं… वैक्सीन प्रकरण पर भारत यही नीत‍ि अपना रहा है और आज जो ऑक्सीजन व दवाइयों की खेप की खेप भारत आ रही है, वह भी इसी का पर‍िणाम है। यूं भी कॉमर्शियल ऑब्लिगेशन को तोड़ना आसान नहीं होता।

वैक्सीन निर्यात से नुक्सान पर रोने वालों के ल‍िए तो मैं पुन: कव‍ि जयशंकर प्रसाद की उसी कव‍िता को उद्धृत करना चाहूंगी क‍ि –

स्मृतियों के शोर में अब से मौन मचाया जायेगा

कलम थमा दी जाएगी अब विक्षिप्तों के हाथों में,
मन का मैल… कलम से बहकर… सूखे श्रेष्ठ क़िताबों में,
चिंतन के विषयों में विष का घोल मिलाया जायेगा,
ले लेकर चटकार कलेजा मां का खाया जायेगा।

तो शपथ लें क‍ि हम भारत मां का कलेजा चीरने वाले ऐसे बुद्ध‍िजीव‍ियों की असली सूरत सामने लाते रहेंगे।
– अलकनंदा स‍िंंह