...कि इस समय मेरी जिह्वा
पर जो एक विराट् झूठ है
वही है--वही है मेरी सदी का
सब से बड़ा सच !
...ये उस कविता की पंक्तियां हैं जिसे कवि केदारनाथ सिंह ने अपनी एक लंबी कविता ''बाघ'' में उद्धृत किया है। कवि ने 'समय के सच' का माप 'झूठ की ऊंचाई' के समकक्ष खड़ा करके निर्णय करने के लिए दोनों शब्दों को...और उनकी मौजूदगी को हमारे सामने छोड़ दिया है ताकि हम स्वयं फैसला कर सकें।
हम बखूबी झूठ तथा सच को माप सकें, परख सकें कि आखिर इसमें हमारे लिए और समाज के लिए क्या ठीक रहेगा।
ये हम सभी की जन्मजात कमजोरी है कि जो सामने दिखता है उसे आंख मूंदकर सच मान लेते हैं जबकि आंखों देखा भी कभी कभी सच नहीं होता।
अब तो सोशल मीडिया के ज़रिए प्रति माइक्रो सेकंड दिमाग को छलनी करती सूचनाओं से जूझते हुए हम आज के इस समय में कैसे झूठ और सच के बीच पहचान करें, इस परीक्षा से गुजरते हैं।
आज सुबह-सुबह Whatsapp पर एक वीडियो मैसेज कुछ यूं टपका जैसे कि यदि इसे शेयर ना करने वाले महापापी हों और यदि उन्होंने इसे शेयर ना किया तो उनकी या उनके परिवार में से किसी प्रिय की मृत्यु अवश्य हो जाएगी। इस वीडियो को देवी मां काली की तस्वीरों के साथ डरावनी आवाज़ में वायरल किया जा रहा है। वायरल करने वाले मृत्यु के भय को कैश करना जानते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में मृत्यु को निश्चित माना गया है। जो निश्चित है उससे भय कैसा, फिर क्यों और कौन इस भय की मार्केटिंग कर रहा है।
''Larger than Life'' जीने की प्रेरणा देने वाले हमारे धर्म-समाज में अंधश्रद्धा की कोई जगह नहीं है और फिर देवी मां काली को तो स्वयं काल की देवी अर्थात् शिवतत्व में विलीन कर मोक्ष देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है, तब इस तरह की अंधभक्ति और अंधविश्वास फैलाने वाले मैसेज आखिर क्या बताना चाहते हैं।
अब जरूरी हो गया है कि इन तैरते संदेशों को सरकार साइबर अपराध की श्रेणी में ले आए, साथ ही हम भी जागरूकता के लिए कदम उठाएं ताकि देवी देवताओं के नाम पर मृत्यु का भय दिखाकर इस तरह की कुचेष्टाओं को रोका जा सके। मृत्यु तो जीवन का सत्य है, ना तो डर कर इससे बचा जा सकता और न भयवश पूजा-पाठ करके इसे रोका जा सकता है। हम सब इस सत्य को जानते हैं। अब ऐसा तो है नहीं कि सारे दिन ज्ञान बघारने वाले और व्हाट्सएप चलाने वाले इनके घातक परिणामों को ना जानते हों, इतने शिक्षित तो वे होते ही हैं। मुझे आश्चर्य हो रहा है कि फिर भी ऐसे संदेशों को लेकर आखिर लोगों ने इसे आगे शेयर कैसे कर दिया।
आप भी देखें इस वीडियो को...और हो सके तो इस तरह के प्रयासों को अपने स्तर से रोकें और इनकी भर्त्सना करें।
झूठ और सच को मापने का कोई निश्चित यंत्र नहीं होता, फिर ऐसे वीडियो हों या कोई अन्य माध्यम, इनके द्वारा फैलाया जा रहा झूठ हमें अपने-अपने भीतर बैठे सच से भी साक्षात्कार करा रहा है कि हम आखिर किन-किन बातों से भयभीत हो सकते हैं।
ऐसे में कवि केदारनाथ सिंह की कविता ''बाघ'' के आमुख में उनका लिखा झूठ का कड़वा ''सच'' हमें दिशा दिखा रहा है कि-
बिंब नहीं
प्रतीक नहीं
तार नहीं
हरकारा नहीं
मैं ही कहूँगा
क्योंकि मैं ही
सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ
मेरी पीठ पर
मेरे समय के पंजो के
कितने निशान हैं
कि कितने अभिन्न हैं
मेरे समय के पंजे
मेरे नाख़ूनों की चमक से
कि मेरी आत्मा में जो मेरी ख़ुशी है
असल में वही है
मेरे घुटनों में दर्द
तलवों में जो जलन
मस्तिष्क में वही
विचारों की धमक
कि इस समय मेरी जिह्वा
पर जो एक विराट् झूठ है
वही है--वही है मेरी सदी का
सब से बड़ा सच!
यह लो मेरा हाथ
इसे तुम्हें देता हूँ
और अपने पास रखता हूँ
अपने होठों की
थरथराहट.....
एक कवि को
और क्या चाहिए!
- अलकनंदा सिंह
पर जो एक विराट् झूठ है
वही है--वही है मेरी सदी का
सब से बड़ा सच !
...ये उस कविता की पंक्तियां हैं जिसे कवि केदारनाथ सिंह ने अपनी एक लंबी कविता ''बाघ'' में उद्धृत किया है। कवि ने 'समय के सच' का माप 'झूठ की ऊंचाई' के समकक्ष खड़ा करके निर्णय करने के लिए दोनों शब्दों को...और उनकी मौजूदगी को हमारे सामने छोड़ दिया है ताकि हम स्वयं फैसला कर सकें।
हम बखूबी झूठ तथा सच को माप सकें, परख सकें कि आखिर इसमें हमारे लिए और समाज के लिए क्या ठीक रहेगा।
ये हम सभी की जन्मजात कमजोरी है कि जो सामने दिखता है उसे आंख मूंदकर सच मान लेते हैं जबकि आंखों देखा भी कभी कभी सच नहीं होता।
अब तो सोशल मीडिया के ज़रिए प्रति माइक्रो सेकंड दिमाग को छलनी करती सूचनाओं से जूझते हुए हम आज के इस समय में कैसे झूठ और सच के बीच पहचान करें, इस परीक्षा से गुजरते हैं।
आज सुबह-सुबह Whatsapp पर एक वीडियो मैसेज कुछ यूं टपका जैसे कि यदि इसे शेयर ना करने वाले महापापी हों और यदि उन्होंने इसे शेयर ना किया तो उनकी या उनके परिवार में से किसी प्रिय की मृत्यु अवश्य हो जाएगी। इस वीडियो को देवी मां काली की तस्वीरों के साथ डरावनी आवाज़ में वायरल किया जा रहा है। वायरल करने वाले मृत्यु के भय को कैश करना जानते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में मृत्यु को निश्चित माना गया है। जो निश्चित है उससे भय कैसा, फिर क्यों और कौन इस भय की मार्केटिंग कर रहा है।
''Larger than Life'' जीने की प्रेरणा देने वाले हमारे धर्म-समाज में अंधश्रद्धा की कोई जगह नहीं है और फिर देवी मां काली को तो स्वयं काल की देवी अर्थात् शिवतत्व में विलीन कर मोक्ष देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है, तब इस तरह की अंधभक्ति और अंधविश्वास फैलाने वाले मैसेज आखिर क्या बताना चाहते हैं।
अब जरूरी हो गया है कि इन तैरते संदेशों को सरकार साइबर अपराध की श्रेणी में ले आए, साथ ही हम भी जागरूकता के लिए कदम उठाएं ताकि देवी देवताओं के नाम पर मृत्यु का भय दिखाकर इस तरह की कुचेष्टाओं को रोका जा सके। मृत्यु तो जीवन का सत्य है, ना तो डर कर इससे बचा जा सकता और न भयवश पूजा-पाठ करके इसे रोका जा सकता है। हम सब इस सत्य को जानते हैं। अब ऐसा तो है नहीं कि सारे दिन ज्ञान बघारने वाले और व्हाट्सएप चलाने वाले इनके घातक परिणामों को ना जानते हों, इतने शिक्षित तो वे होते ही हैं। मुझे आश्चर्य हो रहा है कि फिर भी ऐसे संदेशों को लेकर आखिर लोगों ने इसे आगे शेयर कैसे कर दिया।
आप भी देखें इस वीडियो को...और हो सके तो इस तरह के प्रयासों को अपने स्तर से रोकें और इनकी भर्त्सना करें।
झूठ और सच को मापने का कोई निश्चित यंत्र नहीं होता, फिर ऐसे वीडियो हों या कोई अन्य माध्यम, इनके द्वारा फैलाया जा रहा झूठ हमें अपने-अपने भीतर बैठे सच से भी साक्षात्कार करा रहा है कि हम आखिर किन-किन बातों से भयभीत हो सकते हैं।
ऐसे में कवि केदारनाथ सिंह की कविता ''बाघ'' के आमुख में उनका लिखा झूठ का कड़वा ''सच'' हमें दिशा दिखा रहा है कि-
बिंब नहीं
प्रतीक नहीं
तार नहीं
हरकारा नहीं
मैं ही कहूँगा
क्योंकि मैं ही
सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ
मेरी पीठ पर
मेरे समय के पंजो के
कितने निशान हैं
कि कितने अभिन्न हैं
मेरे समय के पंजे
मेरे नाख़ूनों की चमक से
कि मेरी आत्मा में जो मेरी ख़ुशी है
असल में वही है
मेरे घुटनों में दर्द
तलवों में जो जलन
मस्तिष्क में वही
विचारों की धमक
कि इस समय मेरी जिह्वा
पर जो एक विराट् झूठ है
वही है--वही है मेरी सदी का
सब से बड़ा सच!
यह लो मेरा हाथ
इसे तुम्हें देता हूँ
और अपने पास रखता हूँ
अपने होठों की
थरथराहट.....
एक कवि को
और क्या चाहिए!
- अलकनंदा सिंह
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