शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

विवेकानंद जयंती : तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है

स्‍वामी विवेकानंद ने कहा था कि-
You have to grow from the inside out. None can teach  you, none can make you spiritual. There is no other  teacher but your own soul.

अर्थात्
तुम्हें अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हें पढ़ा  नहीं सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता, तुम्हारी  आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है।।

आज के मनोवैज्ञानिक शोधों में स्‍वामी विवेकानंद के इसी कथन को  आधार मानकर सेल्‍फ सजेशन व ऑटो सजेशन जैसी विधियों पर  काफी शोध हो रहा है। पीटर फ्लैचर की ''How to Practice Self  Suggestion" व एमेल कोयू की "Self Mastery Through  Conscious Auto Suggestion" जैसी पुस्‍तकें यह बताने को काफी  हैं कि आज जिस सेल्‍फ सजेशन व ऑटो सजेशन जैसी विधियों पर  काम हो रहा है, उसे तो हमारे दार्शनिकों, चिंतकों ने सदियों पूर्व  भारतीय समाज में स्‍थापित कर दिया था।

सेल्‍फ सजेशन से ऑटो सजेशन की ओर ले जाती भगवद्गीता का  भी तो सार यही है। गीता कहती है कि तुम्‍हारे वश में सिर्फ ''करना  है''। तो सोचो और करो। सोचने का अर्थ ही स्‍वयं के बारे में  विचारना है, ''स्‍वयं सोचना'' यानि सेल्‍फ सजेशन और इसके बाद की  प्रक्रिया ''करना'' यानि ऑटो सजेशन देते हुए खुद को खुद का संदेश  देना। इसका अर्थ है कि अपनी आत्‍मा को अपनी सोच में शामिल  करना, अपने मन व मस्तिष्‍क दोनों को जगाना। और जब यह  प्रक्रिया चल निकलेगी तो निश्‍चित ही आप ऐसी अवस्‍था में पहुंच  जायेंगे जो आपको दीवारों में से रास्‍ता बनाने में मदद करेगी।  कठिन से कठिन स्‍थितियों में भी धैर्य धारण करने के लिए गीता के  संदेश से लेकर स्‍वामी विवेकानंद के कथ्‍य और पीटर फ्लैचर व  एमेल कोयू सभी के वाक्‍य अपने भीतर झांकने को कहते हैं। इसका  अर्थ यह भी है कि जब मन और मस्‍तिष्‍क खुद से संवाद स्‍थापित  कराते हैं तो अंतरात्‍मा की आवाज़ सुनना आसान हो जाता है, यह  संप्रेषण ही सेल्‍फ सजेशन से होकर ऑटो सजेशन की ओर ले जाता  है।

आज जब पूरे विश्‍व के साथ-साथ हमारे देश में भी वैचारिक  नकारात्‍मकता अपने पांव फैला चुकी है तब स्‍वामी विवेकानंद के  यह वाक्‍य कि ''तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है'' पर  अमल करना अराजक सोच को दूर कर सकता है।

ये आज के समय की बड़ी आवश्‍यकता है क्‍योंकि किस्‍म-किस्‍म की  आजादी मांग रहे लोगों की सिर्फ ''अपने हितों'' और ''अपनी  इच्‍छाओं'' तक सीमित होने की प्रवृत्‍ति ने पूरा वातावरण अराजक  बना दिया है, हर कोई सिर्फ अपने लिए सोच रहा है। एक ऐसे  समय जब निर्वस्‍त्र होने को निजी स्‍वतंत्रता और गौमांस भक्षण को  भोजन की आजादी बताया जाने लगा हो, तब जरूरी हो जाता है कि  व्‍यक्‍ति को अपने उस सदियों पुराने दर्शन से फिर जोड़ा जाए जो  सर्वहित सोच सके। स्‍वयं के साथ समाज की प्रगति चाहने को  मानसिक शांति जरूरी है और इसके लिए अपने भीतर ही गुरू की  खोज करनी होगी।

बहरहाल, गीता के सार की भांति ही एक ''व्‍यक्‍तित्‍व'' को ''अमरत्‍व''  की ओर ले जाने वाले हमारे महानुभावों के ये अनमोल वाक्‍य हमें  फिर से अपने भीतर की ओर जाने के प्रेरित कर रहे हैं क्‍योंकि  आज हर दूसरा व्‍यक्‍ति किसी अन्‍य की खामी निकालने, उसे सलाह  देने, उसके व्‍यक्‍तित्‍व को क्षीण करने पर आमादा है।

ऐसे में आवश्‍यक यह है कि स्‍वामी विवेकानंद की औपचारिक जयंती  मनाने के बजाय हम उनके विचारों को आत्‍मसात करने की कोशिश  करें, और कोशिश करें इस बात की कि महान आत्‍माओं का ध्‍येय  पूरा करने में सहयोगी बन पाएं।
मन, वचन और कर्म से हम एक हों और किसी स्‍तर पर हमारे  विचारों में अंशमात्र खोट पैदा न हो सके क्‍योंकि सेल्‍फ सजेशन से  ऑटो सजेशन की यात्रा तभी पूरी होना संभव है अन्‍यथा समस्‍त सूत्र  वाक्‍य तथा सारे धर्मग्रंथ मात्र कागज के टुकड़ों पर अंकित  काले अक्षरों के सिवाय कुछ नहीं हैं। 

- सुमित्रा सिंह चतुर्वेदी

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