पहले आप डा. हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा के दूसरे खंड ''नीड़ का निर्माण फिर फिर'' की उन पंक्तियों को पढ़िए जो आज के इस लेख पर खरी उतरती हैं, हालांकि संदर्भ अलग-अलग हैं मगर दोनों के अर्थ एक ही है ।
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से ऊषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
अब मैं अपनी बात कहती हूं...आज इन पंक्तियों को जिस संदर्भ में मैंने उद्धृत किया है, वह हमारे उन ''परित्यक्त-परिजनों'' से संबंधित है जिन्हें उनकी अपनी संतानों ने संपत्ति हथियाने के बाद शारीरिक व मानसिक स्तर पर प्रताड़ित करके नीड़ (घर) से दूर कर दिया और हालात के मारे ये लोग अब वृद्धाश्रमों की चौखट पर ''खाली हाथ'' बैठे खून के आंसू रोने को विवश हैं ।
दो दिन पहले आगरा स्थित रामलाल वृद्धाश्रम से आई खबर को एडिट करते हुए जो सच्चाई सामने आई, वह परवरिश में खोट, लालची प्रवृत्ति और ज़माने के दस्तूर जैसी दलीलों में नहीं छुपाई जा सकती।
यह हमारे समाज की वो सूरत है जिसे भद्दा बनाने के लिए हम स्वयं ही दोषी हैं । जिन लैंगिक, आर्थिक असमानताओं से जुड़े विचारों को हमने ही समाज में पिरोया, ये सब उसके आफ्टर इफेक्ट्स हैं । जब आज से लगभग दो-तीन दशक पहले वृद्धजनों को तिरस्कृत किया जाने लगा तभी समाज की ओर से गंभीर प्रयास नहीं हुए। हालांकि ''हैल्पएज इंडिया'' जैसी गैरसरकारी संस्थाओं ने जिम्मेदारी संभाली भी, मगर वृद्धजनों की संख्या को देखते हुए यह प्रयास नाकाफी था। ''हैल्पएज-इंडिया'' ने 2014 में जारी अपनी रिपोर्ट के अंदर खुलासा किया था कि भारत में 10 करोड़ से अधिक बूढ़े लोग रहते हैं। इनमें से करीब एक करोड़ लोगों को उनके ही बच्चों ने सम्पत्ति विवाद के चलते घर से बाहर निकाल दिया है।
इत्तेफाकन उसी दिन इसी खबर के साथ एक और खबर आ गई कि केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय इसके लिए माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक देखभाल एवं कल्याण अधिनियम 2007 में संशोधन करने जा रहा है। बच्चों द्वारा सम्पत्ति अपने नाम करवा लेने के बाद बूढ़े माता-पिता को घर से निकाल देने की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए संशोधित अधिनियम को कैबिनेट की मंज़ूरी मिलते ही राज्य सरकारों को भेज दिया जाएगा। इस कानून को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों की होगी।
अधिनियम से जुड़े ये दो खास बिंदु हैं जिन्हें आप भी अवश्य जान लें- कि...
वित्तीय मदद सीमा बढ़ेगी
मां-बाप को जीवनयापन के लिए बच्चों की ओर से हर माह दी जाने वाली वित्तीय मदद (10 हजार रुपए) की सीमा भी हटाई जाएगी।
पीड़ित मां-बाप यहां शिकायत कर सकेंगे
राज्यों में मैंटीनैंस ट्रिब्यूनल या अपीलेट ट्रिब्यूनल में पीड़ित मां-बाप इसकी शिकायत कर सकेंगे। इन ट्रिब्यूनल के पास सिविल कोर्ट के अधिकार हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 53.2 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें माता-पिता से दुर्व्यवहार का कारण सिर्फ सम्पत्ति है।
हालांकि ये सारी खबरें वृद्धजनों के प्रति एक सहानुभुति जगाती हैं और होना भी ऐसा ही चाहिए मगर यह उन वृद्धजनों को चौकन्ना भी करती हैं जो बच्चों पर ''अतिनिर्भर'' होकर हम अपनी आत्मनिर्भरता को कम करते जाते हैं। हम स्वयं अपनी ओर भी देखें और आंकलन करें कि जो गलतियां अब तक औरों से होती रहीं हैं, वे अब आगे हमसे न दोहराई ना जाऐं।
आगरा का रामलाल आश्रम जो कर्तव्य निभा रहा है, हमें उससे एक कदम आगे के बारे में सोचना होगा। जैसाकि वृंदावन में सुलभ संस्था के प्रयासों के बाद उत्तरप्रदेश सरकार ने किया। पहले बात-बात पर घरवालों की लालची-क्रूर प्रवृत्ति और तमाम अन्य कुप्रवृत्तियों का रोना रोने वाली ''वृंदावन की विधवाओं'' का आत्मनिर्भर होते जाना हमें बताता है कि जीवन के सफ़र में बनी-बनाई अवधारणाओं के अलावा भी जबतक जीवन है, बहुत कुछ करके उन बहुतों के काम आया जा सकता है जो जरूरतमंद हैं।
इस सबके बावजूद मैं यहां उन संतानों के लिए कुछ भी नहीं कह पा रही...एक शब्द भी नहीं...कतई नि:शब्द हूं... क्योंकि लालच और अपने माता-पिता की अवहेलना करने वाले जिस घृणा के पात्र है, उसे तो मेरे शब्द भी व्यक्त नहीं कर पा रहे।
सरकार के नीतिगत प्रयास, हैल्पऐज इंडिया के सहयोग और वृद्धाश्रमों की सेवा के बाद...
अब एक बार फिर डा. हरिवंशराय 'बच्चन' के उस 'नीड़ के निर्माण' की आवश्यकता है जो इन वृद्धजनों की ससम्मान वापसी करा सके, साथ ही आर्थिक -पारिवारिक-सामाजिक सुरक्षा दे सके और देने के साथ साथ उस सुरक्षा का अहसास भी करा सके।
-अलकनंदा सिंह
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से ऊषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
अब मैं अपनी बात कहती हूं...आज इन पंक्तियों को जिस संदर्भ में मैंने उद्धृत किया है, वह हमारे उन ''परित्यक्त-परिजनों'' से संबंधित है जिन्हें उनकी अपनी संतानों ने संपत्ति हथियाने के बाद शारीरिक व मानसिक स्तर पर प्रताड़ित करके नीड़ (घर) से दूर कर दिया और हालात के मारे ये लोग अब वृद्धाश्रमों की चौखट पर ''खाली हाथ'' बैठे खून के आंसू रोने को विवश हैं ।
दो दिन पहले आगरा स्थित रामलाल वृद्धाश्रम से आई खबर को एडिट करते हुए जो सच्चाई सामने आई, वह परवरिश में खोट, लालची प्रवृत्ति और ज़माने के दस्तूर जैसी दलीलों में नहीं छुपाई जा सकती।
खबर थी कि-
''वृद्धजनों पर अत्याचार और उन्हें प्रताड़ित करने की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। खबर के अनुसार प्रताड़नाओं के हद से गुजर जाने के बाद कई वृद्धजन कैलाश मन्दिर के पास स्थित Ramlal Ashram में आ गये। जहां आश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने उन सभी का स्वागत-सत्कार किया गया और सभी को आश्रम में शरण दी।
अभी 1 माह में वहां ऐसे 25 दादा-दादी का आगमन हुआ है, जिनमें से कई को तो काउसिंलिग के द्वारा उनके परिजनों के पास भेज दिया गया, बाकी 15 का समझौता नहीं हो पाया लिहाजा उन्हें आश्रम में शरण दे दी गई।''
यहां पढ़ें पूरी खबर-
http://legendnews.in/respected-in-the-ramlal-ashram-of-the-old-age-expelled-from-the-homes/यह हमारे समाज की वो सूरत है जिसे भद्दा बनाने के लिए हम स्वयं ही दोषी हैं । जिन लैंगिक, आर्थिक असमानताओं से जुड़े विचारों को हमने ही समाज में पिरोया, ये सब उसके आफ्टर इफेक्ट्स हैं । जब आज से लगभग दो-तीन दशक पहले वृद्धजनों को तिरस्कृत किया जाने लगा तभी समाज की ओर से गंभीर प्रयास नहीं हुए। हालांकि ''हैल्पएज इंडिया'' जैसी गैरसरकारी संस्थाओं ने जिम्मेदारी संभाली भी, मगर वृद्धजनों की संख्या को देखते हुए यह प्रयास नाकाफी था। ''हैल्पएज-इंडिया'' ने 2014 में जारी अपनी रिपोर्ट के अंदर खुलासा किया था कि भारत में 10 करोड़ से अधिक बूढ़े लोग रहते हैं। इनमें से करीब एक करोड़ लोगों को उनके ही बच्चों ने सम्पत्ति विवाद के चलते घर से बाहर निकाल दिया है।
इत्तेफाकन उसी दिन इसी खबर के साथ एक और खबर आ गई कि केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय इसके लिए माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक देखभाल एवं कल्याण अधिनियम 2007 में संशोधन करने जा रहा है। बच्चों द्वारा सम्पत्ति अपने नाम करवा लेने के बाद बूढ़े माता-पिता को घर से निकाल देने की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए संशोधित अधिनियम को कैबिनेट की मंज़ूरी मिलते ही राज्य सरकारों को भेज दिया जाएगा। इस कानून को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों की होगी।
अधिनियम से जुड़े ये दो खास बिंदु हैं जिन्हें आप भी अवश्य जान लें- कि...
वित्तीय मदद सीमा बढ़ेगी
मां-बाप को जीवनयापन के लिए बच्चों की ओर से हर माह दी जाने वाली वित्तीय मदद (10 हजार रुपए) की सीमा भी हटाई जाएगी।
पीड़ित मां-बाप यहां शिकायत कर सकेंगे
राज्यों में मैंटीनैंस ट्रिब्यूनल या अपीलेट ट्रिब्यूनल में पीड़ित मां-बाप इसकी शिकायत कर सकेंगे। इन ट्रिब्यूनल के पास सिविल कोर्ट के अधिकार हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 53.2 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें माता-पिता से दुर्व्यवहार का कारण सिर्फ सम्पत्ति है।
हालांकि ये सारी खबरें वृद्धजनों के प्रति एक सहानुभुति जगाती हैं और होना भी ऐसा ही चाहिए मगर यह उन वृद्धजनों को चौकन्ना भी करती हैं जो बच्चों पर ''अतिनिर्भर'' होकर हम अपनी आत्मनिर्भरता को कम करते जाते हैं। हम स्वयं अपनी ओर भी देखें और आंकलन करें कि जो गलतियां अब तक औरों से होती रहीं हैं, वे अब आगे हमसे न दोहराई ना जाऐं।
आगरा का रामलाल आश्रम जो कर्तव्य निभा रहा है, हमें उससे एक कदम आगे के बारे में सोचना होगा। जैसाकि वृंदावन में सुलभ संस्था के प्रयासों के बाद उत्तरप्रदेश सरकार ने किया। पहले बात-बात पर घरवालों की लालची-क्रूर प्रवृत्ति और तमाम अन्य कुप्रवृत्तियों का रोना रोने वाली ''वृंदावन की विधवाओं'' का आत्मनिर्भर होते जाना हमें बताता है कि जीवन के सफ़र में बनी-बनाई अवधारणाओं के अलावा भी जबतक जीवन है, बहुत कुछ करके उन बहुतों के काम आया जा सकता है जो जरूरतमंद हैं।
इस सबके बावजूद मैं यहां उन संतानों के लिए कुछ भी नहीं कह पा रही...एक शब्द भी नहीं...कतई नि:शब्द हूं... क्योंकि लालच और अपने माता-पिता की अवहेलना करने वाले जिस घृणा के पात्र है, उसे तो मेरे शब्द भी व्यक्त नहीं कर पा रहे।
सरकार के नीतिगत प्रयास, हैल्पऐज इंडिया के सहयोग और वृद्धाश्रमों की सेवा के बाद...
अब एक बार फिर डा. हरिवंशराय 'बच्चन' के उस 'नीड़ के निर्माण' की आवश्यकता है जो इन वृद्धजनों की ससम्मान वापसी करा सके, साथ ही आर्थिक -पारिवारिक-सामाजिक सुरक्षा दे सके और देने के साथ साथ उस सुरक्षा का अहसास भी करा सके।
-अलकनंदा सिंह
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