सरकारी खर्चे पर ऐश करते परिजन भ्रष्टाचार की मुख्य वजह
जो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रहे हों...जो राष्ट्रीय पुरस्कार से लेकर पद्म पुरस्कारों से सुशोभित किये जा चुके हों...जो एक एक टूर्नामेंट से करोड़ों रुपये कमा रहे हों...जिनके लिए तमाम सरकारी सुविधाओं सहित गाड़ी, बंगला का अंबार लगा हो, उनसे आप ये उम्मीद तो नहीं कर सकते कि वो ज़रा से खर्चे के लिए भ्रष्टाचार कर रहे होंगे।
आटे में नमक बराबर हो या पूरा आटा ही सना हुआ हो, मगर भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार ही रहेगा ना। जी हां, भ्रष्टाचार की ये खबर किसी मामूली व्यक्ति से नहीं, बल्कि हमारी उन दो खेल विभूतियों से जुड़ी है जो देश की नई उम्मीदों को ''पर देकर उड़ान भरने'' के लिए प्रसिद्ध हैं। ये हैं बैडमिंटन की स्टार पीवी सिंधु और साइना नेहवाल।
दरअसल, ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने के लिए जा रही पीवी सिंधु के साथ उनकी माता विजया पुसरला और साइना के साथ उनके पिता हरवीर सिंह को ''सरकारी खर्चे'' पर बतौर बैडमिंटन अधिकारी जाने के लिए ओलंपिक संघ के नौकरशाहों ने पूरा बंदोबस्त कर दिया था जबकि इन दोनों खिलाड़ियों के माता-पिता का किसी खेल से कोई वास्ता नहीं है, फिर भी वो भारतीय दल की लिस्ट में बतौर अधिकारी शामिल किए गए। हालांकि अच्छी बात ये रही कि खेल मंत्री ने इन्हें ''सरकारी खर्चे'' पर भेजने से मना कर दिया है।
बात यहां किसी खिलाड़ी के माता या पिता को सरकारी खर्चे पर भेजने की नहीं है, बात है उस भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति की जो सरकार के और हमारे टैक्स का दुरुपयोग करने से जुड़ी है।
इन दोनों ही खिलाड़ियों के खेल का हम सम्मान करते हैं मगर उनके भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ये इनके द्वारा जानबूझकर किया जाने वाला एक गंभीर अपराध है।
भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति और पैसे की हवस का कोई अंत नहीं होता, कोई अंधा व्यक्ति भी कह देगा कि इतना कमा लेने के बाद तो ये खिलाड़ी अपने परिजनों को निजी खर्चे पर दुनिया में कहीं की भी सैर करा सकती हैं ।
बहराहल, तारीफ करनी होगी खेलमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर की, जिन्होंने खेलों में सरकारी पैसे की ''लूट'' करने वाले इंडियन ओलंपिक संघ की कारगुजारी पर न केवल शिकंजा कसा बल्कि इस धांधली के लिए जिम्मेदार लोगों को ''संभल जाने'' की चेतावनी भी दे दी।
इससे पहले तो 2012 में लंदन ओलंपिक में सानिया मिर्जा की मां नसीम मिर्जा ''टेनिस मैनेजर'' बनकर सरकारी खर्चे पर यात्रा कर ही चुकी हैं। ये तो वो मामले हैं जो संज्ञान में आए , वरना दबे छुपे मामलों का तो बस अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। करोड़पति खिलाड़ियों की इस हरकत से हमें चौकन्ना रहने की हिदायत भी मिलती है और यह भी कि तमाम पुरस्कारों से नवाजे जाने वाले भी हमारी आंखों में धूल झोंक सकते हैं।
कहते हैं ना कि जब भोजन पेट से ऊपर खा लिया जाए तो वह अफरा कर देता है, राज्य व केंद्र सरकारों को यह भी सोचना होगा कि किसी पदक को जीतने के बाद किसी भी खिलाड़ी को सरआंखों पर बिठाते हुए उन पर जो धनवर्षा की जाती है, उसे भी खत्म किया जाना चाहिए।
इनाम-इकराम तो हौसलाअफजाई का माध्यम होते हैं मगर उतना ही जितना जरूरत हो। इस तरह गाड़ी-बंगला देकर इन पर ''लुटाया गया'' धन ना जाने कितने ऐसे खिलाड़ियों की ज़िंदगी संवार सकता है जो एक रैकेट तक खरीदने के लिए अपनी तमाम जमापूंजी को दांव पर लगा देते हैं, देश में अब भी आमजन के बच्चों के लिए खेल सुविधायें पाना अनिश्चित नहीं तो दुरूह अवश्य है।
जो भी हो, इस खुलासे से बड़े स्तर पर खिलाड़ियों द्वारा धनलाभ के लिए की जाने वाली ओछी हरकतें हमें सबक जरूर देती हैं और बताती हैं कि बेशुमार दौलत, शौहरत तथा इज्जत पाने के बावजूद पैसे की हवस किसी को कितने नीचे गिरा सकती है। फिर वह चाहे कोई पुरुष हो या महिला।
पीवी सिंधु और सानिया नेहवाल का यह अपराध इसलिए कहीं अधिक गंभीर हो जाता है कि सामान्य तौर पर महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक संवेदनशील तथा अधिक नेकनीयत माना जाता रहा है।
- अलकनंदा सिंह
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