दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं,
जान परत है काक पिक रितु बसंत के मांहि…
जान परत है काक पिक रितु बसंत के मांहि…
रहीम दास जी का ये दोहा Sonakshi Sinha पर एकदम फिट बैठता है। उसने बता दिया कि अच्छी शक्लोसूरत , पैसा और रसूख, बुद्धिमत्ता की बानगी नहीं हुआ करते इसीलिए मामूली से सवाल पर सारी दिमागी असलियत सामने आ सकती है। रहीम दास जी ने ऐसे ही लोगों के लिए संभवत: ये दोहा रचा होगा, कौआ और कोयल तो मात्र उदाहरण के बतौर बताए थे ।
हिंंदीबेल्ट की राजनीति करने वाले पिता शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी और हिंंदूघर में जन्मने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री Sonakshi Sinha द्वारा जब केबीसी में पूछे गए प्रश्न ” हनुमान किसके लिए संजीवनी लाए थे” का जवाब नहीं दिया जा सका और वो बगलें झांकने लगीं, फिर लाइफलाइन भी ले डाली तो मीडिया ने तो उनके इस ”ज्ञान” को लेकर खिंचाई की, उसके फॉलोवर्स ने भी अपना माथा ठोंक लिया। सोनाक्षी के इस ” ज्ञान ” ने उसकी परवरिश, उसके परिवार और उन मूल्यों का सच भी उगल दिया जो गाहे-बगाहे उसके पिता हांकते रहते हैं।
इस सबके बाद हद तो तब हो गई जब सोनाक्षी सिन्हा ने आलोचना करने वालों से उल्टे यह कहा कि मुझे तो पाइथागोरस प्रमेय, मर्चेंट ऑफ वेनिस , पीरियोडिक टेबल , मुगल साम्राज्य और ना जाने क्या क्या याद नहीं तो क्या हुआ।
मतलब साफ है कि सोनाक्षी को ये बात बेहद मामूली लगी और इससे ज्यादा की अपेक्षा उनसे नहीं की जानी चाहिए वरना मुंह खोलते ही वे अपने और ”ज्ञान” से हमारे दिमागों को प्रदूषित ही करेंगी, हम कम से कम उससे तो बच जायेंगे। ”अल्पज्ञानी” और ”धृष्ट” व्यक्ति से तो कोई भी बहस बेमानी होती है, वो रहम का पात्र होता है। अत: सोनाक्षी पर बस रहम ही किया जा सकता है कि राम कथा के पात्रों को लेकर इतना अल्पज्ञान, वह भी तब जबकि उनके घर का नाम ही रामायण है… पिता का नाम शत्रुघ्न और भाइयों का नाम लव और कुश है।
सोनाक्षी के बहाने ही सही, हमने तस्वीर का वो रुख भी देख लिया जो सही परवरिश के मायने खोजने को बाध्य कर रहा है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध गायिका मालिनी अवस्थी का कहना सही है कि अब वक्त है कि हम थोड़ा ठहरें, ये सोचें कि अब कितने परिवारों में बच्चों को हमारे पूर्वजों की कथाएँ सुनाई जाती हैं? यूं भी राम व कृष्ण की कथाएँ कहना सुनना जिस शिक्षित समाज में आज भी पुरातनपंथी होने का द्योतक हो, वहां सोनाक्षी सिन्हा जैसा उत्तर ही मिलेगा। अपने धर्म प्रतीकों संस्कृति के प्रति उपहास /उदासीनता में पली पीढ़ी का यह कटु सत्य है। तो फिर सोनाक्षी के जवाब पर हो हल्ला क्यों।
जब अपने बच्चों में संस्कारों का रास्ता हमने ही बदला है तो फिर इस पीढ़ी द्वारा आराध्य राम की और इनकी लीला भुला देने वाली पीढ़ी से कैसी शिकायत? कथित प्रगतिवाद के नाम पर स्कूलों के सिलेबस से जानबूझकर राम और कृष्ण की कथायें हटाई गईं, चाणक्य कौन थे, इस पीढ़ी के 70 प्रतिशत बच्चों को नहीं पता , फिर स्वामी विवेकानंद , रामकृष्ण परमहंस, आदि शंकराचार्य की बात ही छोड़ दीजिए… परंतु इस पर हमने कभी बहस की ? कभी नहीं ।
हम डरते रहे कि यदि अपने बच्चों को धर्म, संस्कृति, परंपरा और उनमें समाहित शिक्षाओं, उनके वैज्ञानिक पक्षों पर बात करेंगे तो हमें पिछड़ा बता दिया जाएगा। इस डर ने ही हमारे आसपास ना जाने कितने सोनाक्षी-संस्करण खड़े कर दिए।
हर बुराई के पीछे अच्छाई छिपी होती है, इस एक वाक्य से हमें संकट में भी सकारात्मक सोचने की सलाह दी गई ताकि हम बुराई से निकले सबक को लेकर सचेत हो जायें और ये सोचें कि आखिर ये स्थिति आई ही क्यों। अब वक्त ट्रोल करने से पहले स्वयं से पूछने का है कि हमारी परवरिश की दिशा कौन सी है।
- अलकनंदा सिंंह
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.9.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3470 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
धन्यवाद, दिलबाग जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को चर्चा-3470 में शामिल करने के लिए आभार
हटाएंव्वाहहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
सादर..
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 26 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को पांच लिंंकों के आनंद में शामिल करने के लिए आभार
हटाएंलज्जा की बात है ,लेकिन सभी माता-पिता और अभिभावक जन अपने पाल्य को कितने संस्कार दे सके हैं इसके प्रति भी सचेत हो जाएँ.
जवाब देंहटाएंजी प्रतिभा जी, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद
हटाएंवाह सारगर्भित लेख बहुत सुंदर मुद्दा उठाया है आपने शिक्षा लेने योग्य।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुसुम जी, सदैव की भांति आपकी इस टिप्पणी के लिए हृदय से आभार
हटाएंहम डरते रहे कि यदि अपने बच्चों को धर्म, संस्कृति, परंपरा और उनमें समाहित शिक्षाओं, उनके वैज्ञानिक पक्षों पर बात करेंगे तो हमें पिछड़ा बता दिया जाएगा। इस डर ने ही हमारे आसपास ना जाने कितने सोनाक्षी-संस्करण खड़े कर दिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक और विचारणीय बात कही आपने ,सादर नमन
सबसे पहले आपका धन्यवाद, अब अपनी जड़ों की ओर लौटने का अभियान शुरू किया जाना चाहिए कामिनी जी । क्यों ठीक कहा ना मैंने
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