tag:blogger.com,1999:blog-35545706960764037992024-03-16T05:46:00.655-07:00अब छोड़ो भीBlog of Alaknanda singhAlaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.comBlogger542125tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-80379989634869425832024-03-07T01:53:00.000-08:002024-03-07T01:53:33.727-08:00कोर्ट के फैसले से छिड़ी नई बहस: हिंदू मैरिज एक्ट में क्यों है सपिंड विवाह की मनाही<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOitYwUqF34fmBfIDLoBqqcm6JNBUka-Sdifjo_wXyKLvypi9YCB3XEYyRYUQ82hBCBH5q3jV-3LU1HpzuUJtFhiTudqlt8A9pMg__2O2tYyE4CNd93NbwRtMV62SMwCaZRTsLnYUJ0EmpuwHCCrmhUYF8Wtd7DlfptzDU8YeTGNQ8W-uUcs1-MhArs0wO/s585/5375Sapind-vivah-in-hindu.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOitYwUqF34fmBfIDLoBqqcm6JNBUka-Sdifjo_wXyKLvypi9YCB3XEYyRYUQ82hBCBH5q3jV-3LU1HpzuUJtFhiTudqlt8A9pMg__2O2tYyE4CNd93NbwRtMV62SMwCaZRTsLnYUJ0EmpuwHCCrmhUYF8Wtd7DlfptzDU8YeTGNQ8W-uUcs1-MhArs0wO/w400-h210/5375Sapind-vivah-in-hindu.jpg" width="400" /></a></div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><b>हिंदू विवाह कानून</b> के तहत सपिंड संबंध निषिद्ध हैं । सपिंड वह व्यक्ति है जो परिवार में आपकी माता की ओर से आपके ऊपर तीन पीढ़ियों के भीतर कोई सामान्य पूर्वज रिश्तेदार हो,परिवार में आपके पिता की ओर से आपके ऊपर पांच पीढ़ियों के भीतर कोई समान पूर्वज रिश्तेदार हो।</span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">देश में संविधान बनने के बाद लोगों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए। मौलिक अधिकारों में एक अधिकार शादी भी है। कोई भी लड़का-लड़की अपने पसंद से एक दूसरे से विवाह कर सकते हैं। इसमें जात-धर्म या क्षेत्र बाधा नहीं बन सकते। लेकिन देश में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती। इन्हें 'सपिंड विवाह' कहते हैं। मौलिक अधिकार होने के बावजूद भी कपल इन रिश्तों में शादी नहीं कर सकते। गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने इस हफ्ते एक महिला की याचिका खारिज कर दी। वह हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5(v) को असंवैधानिक घोषित करने की लंबे समय से कोशिश कर रही थी। यह धारा दो हिंदूओं के बीच शादी को रोकती है अगर वे सपिंड हैं। अगर उनके समुदाय में ऐसा रिवाज होता है तो ये लोग शादी कर सकते हैं। 22 जनवरी को दिए अपने आदेश में, कोर्ट ने कहा कि अगर शादी के लिए साथी चुनने को बिना नियमों के छोड़ दिया जाए, तो गैर-कानूनी रिश्ते को मान्यता मिल सकती है। ये तो हो गई अब तक की अपडेट। संपिड शब्द अपने आप में कुछ लोगों के लिए नया तो कुछ लोगों के लिए आम हो सकता है। संपिड विवाह को लेकर हमारी पूरी बात टिकी है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्या है सपिंड विवाह</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />सपिंड विवाह उन दो लोगों के बीच होता है जो आपस में खून के बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट में, ऐसे रिश्तों को सपिंड कहा जाता है। इनको तय करने के लिए एक्ट की धारा 3 में नियम दिए गए हैं। धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, 'अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी से शादी नहीं कर सकता/सकती। मतलब, अपने भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी और इन रिश्तेदारों के रिश्तेदार जो मां की तरफ से तीन पीढ़ियों के अंदर आते हैं, उनसे शादी करना पाप और कानून दोनों के खिलाफ है।बाप की तरफ से ये पाबंदी पांच पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते/सकतीं। यह सब इसलिए है कि बहुत करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि, कुछ खास समुदायों में अपने मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का रिवाज होता है, ऐसे में एक्ट के तहत उस शादी को मान्यता दी जा सकती है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><br style="box-sizing: border-box;" />पिता की तरफ से ये शादी को रोकने वाली पाबंदी परदादा-परनाना की पीढ़ी तक या उससे पांच पीढ़ी पहले तक के पूर्वजों के रिश्तेदारों तक जाती है। मतलब, अगर आप ऐसे किसी रिश्तेदार से शादी करते हैं जिनके साथ आपके पूर्वज पांच पीढ़ी पहले तक एक ही थे, तो ये शादी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत मानी नहीं जाएगी। ऐसी शादी को "सपिंड विवाह" कहते हैं और अगर ये पाई जाती है और इस तरह की शादी का कोई रिवाज नहीं है, तो उसे कानूनी तौर पर अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि ये शादी शुरू से ही गलत थी और इसे कभी नहीं हुआ माना जाएगा।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सपिंड शादी पर रोक में क्या कोई छूट है?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />जी हां! इस नियम में एक ही छूट है और वो भी इसी नियम के तहत ही मिलती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, अगर लड़के और लड़की दोनों के समुदाय में सपिंड शादी का रिवाज है, तो वो ऐसी शादी कर सकते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(a) में रिवाज का जिक्र करते हुए बताया गया है कि एक रिवाज को बहुत लंबे समय से, लगातार और बिना किसी बदलाव के मान्यता मिलनी चाहिए। साथ ही, वो रिवाज इतना प्रचलित होना चाहिए कि उस क्षेत्र, कबीले, समूह या परिवार के हिंदू मानने वाले उसका पालन कानून की तरह करते हों। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सिर्फ पुरानी परंपरा ही काफी नहीं है। अगर कोई रिवाज इन शर्तों को पूरा करता है, तो भी उसे तुरंत मान्यता नहीं दी जाएगी। ये रिवाज "स्पष्ट, अजीब नहीं और समाज के हितों के विरुद्ध नहीं" होना चाहिए। इसके अलावा, अगर परिवार के भीतर ही कोई रीति-रिवाज चलता है, तो उसे उस परिवार में बंद नहीं होना चाहिए यानी उसके अस्तित्व पर सवाल न उठे हों। मतलब, वो परंपरा वहां अभी भी सच में मान्य होनी चाहिए।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कानून को किसके तहत दी गई चुनौती?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />इस कानून को महिला ने अदालत के सामने चुनौती दी थी। हुआ यह था कि 2007 में, उसके पति ने अदालत के सामने यह साबित कर दिया कि उनकी शादी सपिंड विवाह थी और महिला के समुदाय में ऐसी शादियां नहीं होतीं। इसलिए उनकी शादी को अमान्य घोषित कर दिया गया था। महिला ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2023 में कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी। मतलब, अदालत ने ये माना कि सपिंडा विवाह को रोकने वाला हिंदू मैरिज एक्ट का नियम सही है। महिला ने हार नहीं मानी और दोबारा हाई कोर्ट में उसी कानून को चुनौती दी। इस बार उन्होंने ये कहा कि सपिंड शादियां कई जगह पर होती हैं, चाहे वो समुदाय का रिवाज न भी हो। उन्होंने दलील दी कि हिंदू मैरिज एक्ट में सपिंड शादियों को सिर्फ इसलिए रोकना कि वो रिवाज में नहीं, असंवैधानिक है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो बराबरी का अधिकार देता है। महिला ने आगे यह भी कहा कि दोनों परिवारों ने उनकी शादी को मंजूरी दी थी, जो साबित करता है कि ये विवाह गलत नहीं है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">हाईकोर्ट का क्या जवाब था?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की दलीलों को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने माना कि याचिकाकर्ता ने पक्के सबूत के साथ किसी मान्य रिवाज को साबित नहीं किया, जो कि सपिंड विवाह को सही ठहरा सके। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि शादी के लिए साथी चुनने का भी कुछ नियम हो सकते हैं। इसलिए, कोर्ट ने माना कि महिला ये साबित करने में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं दे पाईं कि सपिंड शादियों को रोकना संविधान के बराबरी के अधिकार के खिलाफ है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सपिंड विवाह को लेकर बाकी देशों में क्या है?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />कई यूरोपीय देशों में ऐसे रिश्तों के लिए कानून भारत की तुलना में कम सख्त हैं जिन्हें भारत में गैर-कानूनी संबंध या सपिंड विवाह माना जाता है। जैसे कि फ्रांस में, साल 1810 के पीनल कोड के तहत व्यस्कों के बीच आपसी सहमति से होने वाले इन रिश्तों को गैर-अपराध बना दिया गया था। यह कोड नेपोलियन बोनापार्ट के शासन में लागू किया गया था और बेल्जियम में भी लागू था। हालांकि, साल 1867 में बेल्जियम ने अपना खुद का पीनल कोड बना लिया, लेकिन वहां आज भी इस तरह के रिश्ते कानूनी रूप से मान्य हैं। पुर्तगाल में भी इन रिश्तों को अपराध नहीं माना जाता। आयरलैंड गणराज्य में 2015 में समलैंगिक विवाह को मान्यता तो दी गई, लेकिन इसमें ऐसे रिश्ते शामिल नहीं किए गए। इटली में ही ये रिश्ते सिर्फ तभी अपराध माने जाते हैं जब ये समाज में हंगामा मचाए। अमेरिका में बात थोड़ी अलग है। वहां के सभी 50 राज्यों में सपिंडा जैसी शादियां अवैध हैं। हालांकि, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड नाम के दो राज्यों में अगर व्यस्क लोग आपसी सहमति से ऐसे रिश्ते में हैं तो इसे अपराध नहीं माना जाता।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- अलकनंदा सिंंह</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><a href="https://www.legendnews.in/single-post?s=a-new-debate-has-arisen-due-to-the-court-s-decision-as-to-why-superannuation-is-prohibited-in-the-hindu-marriage-act-15942" target="_blank">https://www.legendnews.in/single-post?s=a-new-debate-has-arisen-due-to-the-court-s-decision-as-to-why-superannuation-is-prohibited-in-the-hindu-marriage-act-15942 </a></p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-28804459515339630212024-03-06T05:04:00.000-08:002024-03-06T05:04:45.881-08:00भारत में अबॉर्शन को लेकर क्या कहता है कानून, जानें<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg75AntDZL0Qkd1X9mtJgzJ-y5vACvUoZmDZnpTR-ksuiOg0KnMXuVwFuRxRfpH2Q684AK28jXsVsBbgdqj3bQXI5LDIJO_FHT0q_da6N50olRXlElDgokjM6o_BHXTxPPqE0ggG80ioFoVT6paxgxrTmrcDJ0yFa2J-t6Enfj8T4sCZwE67OwNI_qWP67k/s585/abortion-rights-in-India.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg75AntDZL0Qkd1X9mtJgzJ-y5vACvUoZmDZnpTR-ksuiOg0KnMXuVwFuRxRfpH2Q684AK28jXsVsBbgdqj3bQXI5LDIJO_FHT0q_da6N50olRXlElDgokjM6o_BHXTxPPqE0ggG80ioFoVT6paxgxrTmrcDJ0yFa2J-t6Enfj8T4sCZwE67OwNI_qWP67k/w640-h336/abortion-rights-in-India.jpg" width="640" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">फ्रांस ने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार देने के बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस में एफिल टॉवर पर हजारों की तादाद में महिलाएं पुरुष जमा हुए थे फ्रांस के एक ऐतिहासिक फैसले का जश्न मनाने. टॉवर पर लाइट्स के साथ बड़े बड़े अक्षरों में My Body My Choice लिखा था. </span><p></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">फ्रांस ने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार देने के बाद ऐसा करने वाला वो दुनिया का पहला देश बन गया है. फ्रांस में पिछले कई दिनों से महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी. इसे लेकर कई सर्वे भी कराए गए थे, जिनमें 85% लोगों ने इसका समर्थन किया था.</span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पुर्तगाल से लेकर रूस तक 40 से अधिक यूरोपीय देशों में महिलाएं गर्भपात की सुविधा ले सकती हैं लेकिन इस शर्त पर कि गर्भावस्था कितने दिनों की हो गई है.</span></p><p><span style="background-color: white; color: #000099; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; font-weight: 700;">आइये जानते हैं कि अबाॉर्शन को लेकर भारत में क्या नियम हैं- </span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">2023 में भारत में गर्भपात का मुद्दा काफी सुर्खियों में रहा था. 26 सप्ताह की गर्भवती विवाहित महिला गर्भपात की गुहार लगाते सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. पर उस महिला को आखिर में निराशा ही मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने 26 हफ्ते का गर्भ गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि चूंकि महिला 26 हफ्ते और पांच दिन की गर्भवती है, इसलिए गर्भावस्था को समाप्त करना कानून का उल्लंघन होगा. कानून कहता क्या है?</span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">भारत में गर्भपात को नियंत्रित करने वाले कानून का नाम है-मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971. एक रजिस्टर्ड चिकित्सक गर्भपात कर सकता है. पर कुछ शर्तो के साथ. पहला अगर प्रेगनेंसी से महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा हो. दूसरा अगर भ्रूण के गंभीर मानसिक रूप से पीड़ित होने की संभावना हो. तीसरा यह कि अगर डॉक्टर को लगता है कि प्रसव होने पर महिला को शारीरिक असामान्यताएँ होंगी तो अबॉर्शन का अधिकार है.</span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">ऐसे कई मामले सुनने को मिलते हैं कि कोई महिला गर्भनिरोधक लेने के बावजूद गर्भवती हो जाती है. इस स्थिती में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 में कहा गया है कि इसे गर्भनिरोधक नाकामी का नतीजा माना जाएगा और और गर्भपात की अनुमति होगी. इसके अलावा 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अविवाहित महिला को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने की अनुमति दिया जाना चाहिए. रेप के मामले में भारत का कानून कहता है कि 24 हफ्ते तक का अबॉर्शन कराया जा सकता है.</span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">- Alaknanda Singh </span></p><div class="ad--space pd--20-0-40" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #777777; font-family: Mukta, sans-serif; font-size: 14px; padding: 20px 0px 40px;"><div class="carousel slide" data-ride="carousel" id="carousel-example-footer" style="box-sizing: border-box; position: relative;"><div class="carousel-inner" role="listbox" style="box-sizing: border-box; overflow: hidden; position: relative; width: 749.99px;"></div></div></div><div class="post--social pbottom--30" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #777777; font-family: Mukta, sans-serif; font-size: 0px; line-height: 0; margin-top: 10px; padding-bottom: 30px;"><span class="title" style="box-sizing: border-box; display: inline-block; font-size: 16px; line-height: 26px; margin-right: 5px; margin-top: 10px; min-width: 17px; vertical-align: middle;"><span class="fa fa-share-alt" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; box-sizing: border-box; display: inline-block; font-family: FontAwesome; font-feature-settings: normal; font-kerning: auto; font-optical-sizing: auto; font-size: inherit; font-stretch: normal; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; font-variant-position: normal; font-variation-settings: normal; line-height: 1; text-rendering: auto;"></span></span></div>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-79991959816274727082024-03-04T05:01:00.000-08:002024-03-04T05:01:54.911-08:00इन कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से हमारे पूर्वजों ने अत्यंत गूढ़ संदेश दिए<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEOqN4pRBmDjNaHD4CglRnNRHCXS6IVhesJd6o3dDFwpCgZH9LAaa7YU2eBrfhxR07WgbbGLe3amnwOwcCDNhhiye4BTGnVl0omQ2ahdrS0GQxoeWOdSGu8Bf0bf2VEAwyX7LSFFU6660N70Dmx3HSUThxCqNcIr_EyGKKLCTxRTYRXiUOG7GypJxZPSy6/s585/6719Kaal-Bhairav.jpe" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEOqN4pRBmDjNaHD4CglRnNRHCXS6IVhesJd6o3dDFwpCgZH9LAaa7YU2eBrfhxR07WgbbGLe3amnwOwcCDNhhiye4BTGnVl0omQ2ahdrS0GQxoeWOdSGu8Bf0bf2VEAwyX7LSFFU6660N70Dmx3HSUThxCqNcIr_EyGKKLCTxRTYRXiUOG7GypJxZPSy6/w400-h210/6719Kaal-Bhairav.jpe" width="400" /></a></b></div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><b>हिंदू आख्यान शास्त्र</b> के अनुसार श्वान को सबसे अशुभ प्राणी माना जाता है इसलिए उसे विवाह मंडपों और अन्य पवित्र जगहों के निकट आने से रोका जाता है। रोता हुआ श्वान दुर्भाग्य का अगुआ होता है। श्वान को देखना भी दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है लेकिन श्वान तो प्यारे, आज्ञाकारी और स्नेहमय प्राणी हैं। </span><p></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><b>ऋग्वेद </b>के अनुसार भी इंद्र ने खोई हुईं गायों को ढूंढने हेतु श्वानों की माता ‘सरमा’ को भेजा था। इससे उन्होंने स्वीकार किया कि श्वान रक्षा करने में भूमिका निभाते हैं। कथानकों में श्वानों को मृत्यु से जोड़ा जाता है इसलिए सरमा की संतान ‘सरमेय’ यमदेव के साथी होते हैं। उन्हें बंजर भूमि के साथ भी जोड़ा जाता है, न कि सभ्यता के साथ। श्वान शिव के उग्र रूप ‘भैरव’ का वाहन है। श्वान इतना अशुभ माना गया है कि महाभारत में युधिष्ठिर को श्वान के संग स्वर्ग में प्रवेश करने से रोका गया। </span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><b>आख्यान शास्त्र </b>का कभी शाब्दिक अर्थ नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक अर्थ लिया जाना चाहिए। इन कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से हमारे पूर्वजों ने अत्यंत गूढ़ संदेश दिए। चूंकि श्वान अशुभ माने जाते हैं, वे एक अशुभ विचार से जुड़े हैं। यह कौन-सा विचार है? भागवत पुराण में जड़ भरत नामक त्रषि की कहानी है। सब कुछ त्यागने के बावजूद वे एक हिरण से आसक्त हुए और इसलिए मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाए। उन्होंने हिरण बनकर पुनर्जन्म लिया। हिंदू दर्शनशास्त्र का मुख्य सिद्धांत यह है कि आसक्त होने से हम फंस जाते हैं। </span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">अब कल्पना करें कि एक श्वान आपकी ओर आतुरता और स्नेह भरी आंखों से देख रहा है- उसके प्रेममय व्यवहार से आपका हृदय पिघल जाता है। पालतू श्वान हमेशा अपने मालिक से पुष्टि चाहता है। उस पर ध्यान देने पर वह पूंछ हिलाता है और ध्यान न देने पर रोता है। अब श्वानों से घिरे एक संन्यासी की कल्पना करें। जैसे भरत हिरण से आसक्त हुए, वैसे क्या संन्यासी भी इन श्वानों से आसक्त हुए होंगे? </span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><b>पुनर्जन्म</b> के चक्र से मुक्ति पाने के लिए उन्हें आसक्ति की तीव्र इच्छा के पार जाना होगा। श्वान अपने मालिक से अबाध प्रेम करता है और इसलिए श्वान से प्रलोभित होना अप्सराओं से प्रलोभित होने से भी आसान है। सदा चार श्वानों से घिरे दत्तात्रेय तटस्थता के प्रतीक थे। श्वान दत्तात्रेय का पीछा करते थे, लेकिन दत्तात्रेय उन्हें प्रलोभन नहीं देते थे। श्वान क्षेत्रीय प्राणी है इसलिए वह अपने मालिक को भी किसी के साथ नहीं बांटता है। यदि उसे लगा कि उसका क्षेत्र खतरे में है या कोई उसके मालिक के निकट आ रहा है तो वह गुर्राता या भौंकता है। </span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">हमारे पूर्वज जान गए थे कि मनुष्यों में ऐसा व्यवहार अवांछनीय है। मनुष्य भी क्षेत्रीय जीव है। हमारा क्षेत्र चिह्नित करने से हमारी पहचान निर्मित होती है। एक उद्योगपति की पहचान उसके उद्योग हैं; एक नौकरशाह की पहचान उसका पद है; एक राजनीतिज्ञ की पहचान राजनीतिक दल और उसकी सत्ता है। यदि किसी का यह संदर्भ खतरे में रहा तो उसकी आक्रामक प्रतिक्रिया होगी, कुछ वैसे जैसे श्वान की होती है। </span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">हमें लगता है कि अपने क्षेत्र (शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक) से अधिकार चले जाने पर हमारी पहचान भी नष्ट होगी। इससे हम भयभीत होते हैं। जब हमारा क्षेत्र सुदृढ़ बनता है, तब हम श्वान जैसे प्रसन्न होते हैं। जब क्षेत्र खतरे में होता है, तब हम आक्रामक बनते हैं। और जब हमारे क्षेत्र की उपेक्षा होती है, तब हम रूठ जाते हैं। इस व्यवहार की जड़ भय में है। भैरव हमें इस भय से पार जाने में मदद करते हैं। वे हमारी आदिम, क्षेत्रीय सहज-बुद्धि का ठठ्ठा करते हैं। फलस्वरूप हम उनसे आतंकित होते हैं। दिल्ली और वाराणसी के काल भैरव मंदिरों में उन्हें मदिरा अर्पित की जाती है। मदिरा हमारे विवेक को धुंधला बनाती है और हममें यह विकृत समझ आती है कि क्षेत्र के कारण ही पहचान निर्मित होती है। हम भूल जाते हैं कि हम हमारे क्षेत्र के लिए जितना भी लड़ें, एक न एक दिन यमदेव और उनके सरमेय हमें उससे दूर ले जाएंगे। </span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">हमारे भौतिक, मानसिक और भावनात्मक क्षेत्रों के बारे में हम इतने असुरक्षित अनुभव करते हैं कि जीवन के अंतिम क्षणों तक उनके लिए कुछ उस तरह लड़ते हैं, जिस तरह श्वान हड्डी के लिए लड़ता है। और मृत्यु के पश्चात शरीर के श्मशान पहुंचने पर हम पाते हैं कि वहां श्वान पर बैठे भैरव हम पर हंस रहे हैं कि हमने हमारा जीवन व्यर्थ की खोज में गंवा दिया।</span></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">- Alaknanda Singh </span></p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-9553450540943473452024-02-19T05:14:00.000-08:002024-02-19T05:14:21.250-08:00क्या होती है प्रिविलेज कमेटी...संदेशखाली मामले के बाद आई चर्चा में, क्या हैं समिति के अधिकार और कैसे करती है काम <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgacqqaGLdGvIemhQAwqxNURL72_K7tzHWgifKxRbXKbPLgtljLYPcqAS3EC53nxXNXCSgwfOxPUeZLMgEpuioZ3wivHQRB6hqmoi6tnxq7fcjzW9Cf-q0eEn8_BgzoCe8D9PIZ9UhdvxiYM3GDMt9-Y-7a29ibV71InzkpXhC5MpNZCnEgkF3YmLFaXzPT/s585/Privilege-Committee-and-sup.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgacqqaGLdGvIemhQAwqxNURL72_K7tzHWgifKxRbXKbPLgtljLYPcqAS3EC53nxXNXCSgwfOxPUeZLMgEpuioZ3wivHQRB6hqmoi6tnxq7fcjzW9Cf-q0eEn8_BgzoCe8D9PIZ9UhdvxiYM3GDMt9-Y-7a29ibV71InzkpXhC5MpNZCnEgkF3YmLFaXzPT/w400-h210/Privilege-Committee-and-sup.jpg" width="400" /></a></div>संदेशखाली मामले में संसद की प्रिविलेज कमेटी यानी विशेषाधिकार समिति की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. इससे ममता बनर्जी सरकार को राहत मिली है, तो अब जानते हैं कि क्या होती है ये प्रिविलेज कमेटी.<p></p><p>राज्यसभा और लोकसभा, दोनों में ही प्रिविलेज कमेटी होती है. इसका गठन लोकसभा अध्यक्ष या सभापति करते हैं. समिति में दलों की संख्या के आधार पर उन्हें प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है. लोकसभा की प्रिविलेज कमेटी में 15 सदस्य और राज्यसभा की विशेषाधिकार समिति में 10 मेम्बर्स होते हैं. लोकसभा अध्यक्ष यहां की समिति प्रमुख होते हैं. वहीं, राज्यसभा विशेषाधिकार समिति के प्रमुख उपसभापति होते हैं. सदन में दलों की संख्या के आधार पर ही वो समिति के सदस्यों को नामित करते हैं.</p><p><b>क्या हैं समिति के अधिकार और कैसे काम करती है?</b></p><p>जब भी सदन में किसी सांसद के विशेषाधिकार का हनन होता है या इसके उल्लंघन का मामला सामने आता है तो उसकी जांच इसी कमेटी को सौंपी जाती है. संसदीय विशेषाधिकार उन अधिकारों को कहते हैं जो दोनों सदनों के सदस्य को मिलते हैं. इन अधिकारों का मकसद सदन, समिति और सदस्यों को उनके कर्तव्य को पूरा करने में मदद करना. ये संसदीय विशेषाधिकार संसद की गरिमा, स्वतंत्रता और स्वायत्तता की सुरक्षा करते हैं.</p><p>सदस्यों से जुड़े मामले इस कमेटी तक पहुंचने के बाद यह पूरी स्थिति को समझती है. कड़े कदम उठाती है. अगर कोई सदस्य विशेषाधिकार का उल्लंघन करता है तो उसे दंडित किया जाए या नहीं, यह सबकुछ समिति तय करती है. समिति उसकी सदस्यता रद करने से लेकर उसे जेल भेजने की सिफारिश भी कर सकती है. कमेटी अपनी रिपोर्ट तैयार करके अध्यक्ष को सौंप देती है.</p><p>संसद में किसी भी सदस्य के विशेष अधिकारों का हनन होता है या वो किसी तरह से आहत होते हैं तो इसे उनके विशेषाधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है. सदन के आदेश को न मानना, समिति या फिर इसके सदस्यों के खिलाफ अपमानित करने वाले लेख लिखना भी इनके विशेष अधिकारों का उल्लंघन करना ही है. साथ ही सदन की कार्यवाही में बाधा पहुंचाना भी इसका उल्लंघन है.</p><p><b>कब-कब चर्चा में रही कमेटी?</b></p><p>संसद की विशेषाधिकार समिति कई बार चर्चा में रही है. पश्चिम बंगाल के मामले से पहले भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी और बीएसपी सांसद दानिश अली का मामला इस समिति तक पहुंचा था.इससे पहले 1967, 1983, और 2008 में भी कई ऐसे मामले आए जो विशेषाधिकार समिति तक पहुंचे.</p><p>1967 में दो लोगों में दर्शक दीर्घा में पर्चे फेंकने का मामला सामने आया. 1983 में चप्पल फेंकने और नारे लगाने का मामला उठा. वहीं 2008 में एक ऊर्दू वीकली के संपादक के जुड़ा मामला सामने आया था. उसके संपादक ने राज्यसभा के सभापति को कायर बताते हुए टिप्पणी की थी.</p><p>- Alaknanda Singh </p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-72042248823751217462024-02-10T04:23:00.000-08:002024-02-10T04:23:16.599-08:00साइबरबुलिंग: बच्चों को बचाने के लिए यूनिसेफ ने दिए बचाव के टिप्स <p> आज ये वाली पोस्ट खालिस जानकारी के लिए है, इसमें मैंने कोई भी 'अपना' प्रयास नहीं किया है. </p><p>सोशल मीडिया ऐप पर अभी तक आपने ट्रोल करना सुना होगा जिसमें किसी कमेंट या पोस्ट पर लोग अपनी भड़ास निकाल कर सामने वाले को अपना स्टेंड वापस लेने के लिए मजबूर करते हैं.</p><p>लेकिन साइबरबुलिंग इससे एक कदम आगे बढ़कर बड़े छोटे सबके लिए नुकसानदायक साबित हो रही है. साइबरबुलिंग में डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके किसी को जानबूझ कर तंग करना या डराया-धमकाया जाता है. इसमें इंटरनेट या मोबाइल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके असभ्य, घटिया या तकलीफ़देह संदेश, टिप्पणियां और इमेज/वीडियो भेजना शामिल है. ऐसे में यूनिसेफ ने साइबरबुलिंग से बचने के लिए कुछ टिप्स शेयर किए हैं.</p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">यूनिसेफ के साइबरबुलिंग से बचाव के टिप्स</span></b></p><p><br /></p><p>1. मजबूत पासवर्ड का इस्तेमाल करें: अपने सभी ऑनलाइन खातों के लिए मजबूत और यूनिक पासवर्ड का उपयोग करें.</p><p><br /></p><p>2. अपनी निजी जानकारी को सीमित रखें: अपनी निजी जानकारी, जैसे कि अपना पूरा नाम, पता, या फोन नंबर, सार्वजनिक रूप से ऑनलाइन साझा करने से बचें.</p><p><br /></p><p>3. सोच समझकर पोस्ट करें: ऑनलाइन कुछ भी पोस्ट करने से पहले सोचें कि यह दूसरों को कैसे प्रभावित कर सकता है.</p><p><br /></p><p>4. साइबरबुलिंग को पहचानें: यदि आपको लगता है कि आप या आपके किसी परिचित को साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो उसे पहचानें और उससे निपटने के लिए कदम उठाएं.</p><p><br /></p><p>5. साइबरबुलिंग के खिलाफ खड़े हों: यदि आप साइबरबुलिंग देखते हैं, तो चुप न रहें. इसके खिलाफ आवाज उठाएं और पीड़ित का समर्थन करें.</p><p><br /></p><p>6. सबूत इकट्ठा करें: यदि आपको साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो सबूत इकट्ठा करना महत्वपूर्ण है. स्क्रीनशॉट, ईमेल, और टेक्स्ट संदेशों को सहेजें जो साइबरबुलिंग का प्रमाण हैं.</p><p><br /></p><p>7. किसी विश्वसनीय वयस्क से बात करें: यदि आपको साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो किसी विश्वसनीय वयस्क से बात करें, जैसे कि माता-पिता, शिक्षक, या परामर्शदाता.</p><p><br /></p><p>8. साइबरबुलिंग के बारे में दूसरों को शिक्षित करें: अपने दोस्तों, परिवार, और समुदाय को साइबरबुलिंग के बारे में शिक्षित करें और उन्हें इसके खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करें.</p><p><br /></p><p>9. ऑनलाइन सुरक्षित रहने के लिए टूल का उपयोग करें: ऑनलाइन सुरक्षित रहने में आपकी मदद करने के लिए कई टूल उपलब्ध हैं. इन टूल का उपयोग करें और अपने ऑनलाइन अनुभव को सुरक्षित बनाएं.</p><p><br /></p><p>10. साइबरबुलिंग रिपोर्ट करें: यदि आपको साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो इसे संबंधित अधिकारियों को रिपोर्ट करें.</p><p><br /></p><p>11. साइबरबुलिंग से डरें नहीं: याद रखें कि आप अकेले नहीं हैं. साइबरबुलिंग से डरें नहीं और इसके खिलाफ खड़े होने के लिए अपनी आवाज का उपयोग करें.</p><p><br /></p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-54437331409919109992024-01-29T04:51:00.000-08:002024-01-30T00:42:01.581-08:00यव अर्थात् यौवन: धार्मिक अनुष्ठानों में 'जौ' का उपयोग और इसके निहितार्थ<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHw-7DYg49_lFSMCOD0fyxCG-ehGclRydKfcd6ROJ-3-45-1AQosnRGwRi9iKPnBmWG1AYX8wa53rkClGm6Ojbdft8UF7g8DJDLN3qdykgTKcJmDs8-pLlEBsIVPcJ962IQhruAxz8Nu9cumQGssgDKrqYUtytaQgkqkfIoWv7NMGwmKwjv8AYZPLHA-a0/s585/barley-food.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHw-7DYg49_lFSMCOD0fyxCG-ehGclRydKfcd6ROJ-3-45-1AQosnRGwRi9iKPnBmWG1AYX8wa53rkClGm6Ojbdft8UF7g8DJDLN3qdykgTKcJmDs8-pLlEBsIVPcJ962IQhruAxz8Nu9cumQGssgDKrqYUtytaQgkqkfIoWv7NMGwmKwjv8AYZPLHA-a0/w640-h336/barley-food.jpg" width="640" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">अमेरिका के मेडिसन राज्य में कृषि विभाग अनुसधान केंद्र में काम कर रहे एक वैज्ञानिक को उसके पाकिस्तानी पिता ने बताया था कि जिस क्षेत्र में वे ग्रामीणों का इलाज करते हैं, वहां दिल का दौरा पड़ना एक अप्रत्याशित बात है। शायद ही किसी को दिल का कोई गम्भीर रोग हो। </span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">वैज्ञानिक डॉक्टर आसिफ कुरैशी के पिता पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक चिकित्सक थे। पिता के अनुसार वहां लोग बड़ी मात्रा में जौ खाते हैं क्योंकि यही उस इलाके का मुख्य अनाज है और यही इनके स्वास्थ्य का रहस्य है। कुरैशी अपने पिता के इस अनुभव को वैज्ञानिक स्तर पर सिद्ध करना चाहते थे और अमेरिका की इस प्रयोगशाला में जौ के गुणों की खोज करने लग गए।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">यव अथवा जौ पाकिस्तान के पंजाब में ही नहीं, पूरे भारत के कई क्षेत्रों में लोगों का मुख्य भोजन हुआ करता था और आज भी भोजन का महत्त्वपूर्ण अंग है। दैनिक खाने में इस की कमी तभी से आने लगी जबसे जौ का एक और व्यावसायिक उपयोग मालूम हुआ अर्थात् बियर बनाना। जौ रसोई से हट कर शराबखाने में स्थापित हुआ। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">यह भारतखण्ड के प्राचीनतम अन्नों में से एक है, गेहूं से बहुत पुराना और शायद चावल से भी कुछ प्राचीन। इसीलिए हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में चावल के साथ-साथ जौ का ही उपयोग होता रहा है। जौ पोषक आहार है, यह तो सभी जानते और मानते थे लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इतना पर्याप्त नहीं होता। <br style="box-sizing: border-box;" />वैज्ञानिक जानना चाहते हैं कि इसमें ऐसा क्या है जो इसे पोषक आहार बनाता है और यह भी कि जो रसायनिक पदार्थ इसमें हैं, वे काम किस प्रकार करते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />डाक्टर कुरैशी को पता लगा कि कुछ खाद्य पदार्थ, विशेष कर जौ और जई जैसे अन्न जिगर में उस रासायनिक प्रक्रिया को दबाते हैं जिनसे रक्त में कोलस्ट्रोल पैदा होता है। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">दरअसल बताया जाता है कि अगर हम अपने यकृत के साथ जबरदस्ती करना छोड़ दे, तो हम अपने आपको दिल की बीमारी से भी बचा सकते हैं। अगर यकृत कम कोलेस्ट्रॉल बना ले तो जिन कोशिकाओं को रोगकारक एलडीएल की आवश्यकता होती है, वे रक्त से उसे खींच लेती हैं, यानी रक्त में इस प्रकार कोलेस्ट्रॉल एकदम कम हो जाता है। इसी विशेषता के कारण इस बीमारी की पहली औषधि– लोवस्टेटिन बनी। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">यकृत जब कोलेस्ट्रोल बनाने वाली फैक्ट्री में बदल जाता है तो इसकी गतिविधि को कम करना आवश्यक हो जाता है। यह जौ में मौजूद रसायानों के कारण हो सकता है। जब कोलेस्ट्रॉल बनाने वाली प्रक्रिया को धीमा कर दिया जाता है तो एलडीएल बनना बंद होता है और रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने का खतरा भी समाप्त हो जाता है। डाक्टर आसिफ कुरेशी की यात्रा यहीं पर समाप्त हो गई।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">आगे की यात्रा ‘डाक्टर फाइबर’ ने आरम्भ की। फाइबर उनका नाम नहीं था, मोटे अनाजों के फाइबर के बारे में उनके जुनून के कारण उनकी पहचान थी, नाम तो जेम्स एंडरसन था। उन्होंने भी ऐसी किसी बात का आविष्कार नहीं किया जिसके बारे में समाज नहीं जानता था। लोक में तो वह बात प्रचलित ही थी लेकिन कुरेशी की ही तरह एंडरसन ने उसे प्रयोगशाला में सही सिद्ध कर दिया। यह आश्चर्य की बात लगती है कि पिछले दो दशक से दुनिया भर में गंवारू तरह के मोटे अनाजों को इज्जत से देखा जाने लगा है। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">आज कल बीसियों तरह के खाद्य बाजार में मिलते हैं जिनमें दावा किया जाता है कि उन में रेशा या फाइबर मिला हुआ है। एंडरसन को लगा कि मुख्य अनाज के अतिरिक्त कुछ तो और है जो कोलेस्ट्रोल बनाने की प्रक्रिया को थामता है। कई प्रकार के प्रयोगों के पश्चात उन्हें पता चला कि वह जौ और जई जैसे अनाजों की बाहरी परत है, जिसमें ऐसे गुण बहुतायत में पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रोल को रोकते हैं। वे वैज्ञानिक तो थे और उनके अनुसंधान का उद्देश्य तो जनहित ही था लेकिन उनके जुनून के पीछे उनका अपनी पीड़ा भी थी। वे रोगी थे, उनका रक्तचाप असाधारण तौर पर ऊंचा रहता था, लगभग 300 से ऊपर। उन्होंने पाया था कि जो लोग फाइबर समेत जौ और जई जैसे अनाजों का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, उनका न केवल कोलेस्ट्रोल ही नियंत्रण में होता बल्कि वे और मायनों में भी अधिक स्वस्थ रहते हैं। उनकी उम्मीद थी कि अगर उस तत्त्व को खोज पाएं, जिसके कारण यह संभव होता है तो उनके रक्तचाप का भी इलाज होगा।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">उन दिनों यानी वर्ष 1976 में एक कम्पनी जेई यानी ओटस का एक उत्पाद बडे पैमाने पर बेच रही थी जो कुत्ते बिल्ली जैसे पालतू जानवरों के खाने के लिए उपयोगी माना जाता था। एंडरसन ने उस कम्पनी क्वैकर ओटस कम्पनी को लिखा कि उन्हें जई की भूसी उपलब्ध कराएं। उन्हें मालूम था कि कम्पनी अपना व्यापारिक माल बनाते समय भूसी तो बचा कर रखते नहीं लेकिन उन्हें भी पता था कि जई की भूसी बर्तन की पैंदी में चिपक जाती है और कम्पनी जिन बड़े-बड़े पात्रों में अपना माल बनाती होगी, उनकी पैंदी से भूसी मिल ही जाएगी। हुआ भी वैसा ही।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">कम्पनी ने एक बड़ा ड्रम भूसी का भेज ही दिया, जो 533 लोगों को एक बार खिलाई जा सकती थी या पच्चास व्यक्तियों को दस-ग्यारह बार लेकिन इसकी आधी तो एंडरसन ने स्वयं ही खा डाली। कुछ समय पश्चात वे उत्साह में बोले, ‘ मेरा रक्तचाप कुछ ही सप्ताह मे 285 से 175 अंश तक गिर गया। 110 अंश नीचे। मैं शायद पहला मानव हूं जिसने जई की भूसी रक्तचाप कम करने के लिए खाई होगी।’<br style="box-sizing: border-box;" />डाक्टर एंडरसन को यह नहीं पता था कि पूरब में यह बात लगभग हर ग्रामीण को मालूम थी, अलबत्ता वे रक्तचाप और कोलेस्ट्राल जैसी शब्दावली नहीं जानते थे। अनुसंधान की लम्बी यात्रा के पश्चात अब यह चिकित्सक जानते हैं कि जहां जौ सीधे-सीधे यकृत में ही कोलेस्ट्रोल बनाने की प्रक्रिया पर अंकुश लगाता है, वहीं जई की भूसी अंतड़ियों में कुछ रासायनिक पदार्थों में बदल कर आंतों से बाइल के एसिडों को धो डालता है। अगर ऐसा न होता तो ये एसिड जो आंतों में बनते हैं, अंत में कोलेस्ट्राल में बदल जाते हैं। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">ठीक इसी आधार पर प्रसिद्ध ऐलेापैथिक औषधि कोलेस्टाइरामाइन भी आंतों को सफाई करके रोग का इलाज करती है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इन वैज्ञानिकों और दूसरे शोधकर्ताओं के शोध से एक बात साफ तौर पर समझ में आनी चाहिए कि निरामिष यानी केवल शाकाहारी भोजन करने भर से ही कुछ रोगों का हम उतनी कुशलता के साथ सामना कर सकते हैं, जितनी कुशलता की हम आधुनिकतम औषधियों से आशा करते हैं। केवल इतना ही नहीं, प्राकृतिक आहार के कारण लगातार हमारे शरीर में ऐसे सक्रिय औषधीय गुणों से युक्त पदार्थों को आहार के रूप में नियमित तौर पर लेते रहते हैं जो अनेक रोगों को आरम्भ ही नहीं होने देते। निरामिष आहार करने वाले समाजों के दीर्घजीवी होने का बस यही रहस्य है। जौ और जेई की भूसी से बना आहार विशेष रूप से उन लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है जिनको आंतों की गम्भीर बीमारियों जैसे कैंसर आदि का खतरा रहता है।</p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-44733330456661294482024-01-21T04:27:00.000-08:002024-01-21T04:27:03.916-08:00रामलला मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा: शुभ घड़ी आई... 50 वाद्ययंत्रों द्वारा 2 घंटे तक गूंजेगी मंगल ध्वनि<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjy0DVwPWY4d5tdgixh0SWAB47Wjg5s54ahdnablh7rKtUZuVvN2Qb2ngAV-fyerfDEmyakr96NEEvXI8wlA6iVUCoHjGynoBajA0BoJ5ZLmY1zOFHi09X8KDTDYCgUqumMITnMivVvoYU7gJGW8MHd8VQuseIscW0bW8IwEVeApQoZcaGZS6LqcUMA6iRM/s585/Ram-mandir.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjy0DVwPWY4d5tdgixh0SWAB47Wjg5s54ahdnablh7rKtUZuVvN2Qb2ngAV-fyerfDEmyakr96NEEvXI8wlA6iVUCoHjGynoBajA0BoJ5ZLmY1zOFHi09X8KDTDYCgUqumMITnMivVvoYU7gJGW8MHd8VQuseIscW0bW8IwEVeApQoZcaGZS6LqcUMA6iRM/w640-h336/Ram-mandir.jpg" width="640" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">रामलला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा आयोजन को भव्य, दिव्य और नव्य बनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जा रहा है. इसी के तहत देश के विभिन्न राज्यों से आए 50 से ज्यादा वाद्य यंत्र की मंगल घ्वनि गूंजेगी. </span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">22 जनवरी को देश दिवाली मनाने जा रहा है. देश ही नहीं विदेशों से भी रामलला के लिए बेशकीमती तोहफे आए हैं. साथ ही प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए रामभक्तों का अयोध्या पहुंचने का सिलसिला जारी है. पूरी अयोध्या नगरी सजकर तैयार है. 22 जनवरी को जब रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी, उससे 2 घंटे पहले से ही राम मंदिर परिसर में मंगल ध्वनि गूंजने लगेगी. वैदिक मंत्रोच्चार के साथ-साथ देश के तमाम राज्यो से आए 50 से ज्यादा शुभ वाद्य यंत्र भी बजाए जाएंगे. कह सकते हैं कि यह मंगल ध्वनि, मंत्रोच्चार, पूजा-पाठ आदि पूरे माहौल को एक अनोखी दिव्यता देंगे. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मनमोहक मंगल ध्वनि </span></span><br style="box-sizing: border-box;" />श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रविवार को घोषणा की है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन मंगल ध्वनि का कार्यक्रम भी होगा. यह एक मनमोहक संगीत कार्यक्रम होगा, जिसमें विभिन्न राज्यों से आए 50 से अधिक उत्कृष्ट वाद्ययंत्र इस शुभ मौके पर एक साथ बजाए जाएंगे. करीब 2 घंटे तक यह मंगल ध्वनि गूजेगी. इस मांगलिक संगीत कार्यक्रम के परिकल्पनाकार और संयोजक यतीन्द्र मिश्र हैं, जो प्रख्यात लेखक, अयोध्या संस्कृति के जानकार और कलाविद हैं. वहीं इस कार्यक्रम में केंद्रीय संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली भी सहयोग दे रही है. <br style="box-sizing: border-box;" /> <br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मुहूर्त से ठीक पहले होगा वादन</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">श्रीरामजन्मभूमि प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के ऐतिहासिक मौके पर मुख्य मुहूर्त से पहले सुबह 10 बजे से ही करीब 2 घंटे तक 'मंगल ध्वनि का आयोजन किया जाएगा. श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि हमारी भारतीय संस्कृति की परम्परा में किसी भी शुभ कार्य, अनुष्ठान, पर्व के अवसर पर देवता के सम्मुख आनन्द और मंगल के लिए पारम्परिक ढंग से मंगल- ध्वनि बजाने का विधान है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इसे लेकर ट्रस्ट ने पोस्ट में लिखा है- 'भक्ति में डूबे हुए, अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर प्राण प्रतिष्ठा का समारोह सुबह 10 बजे राजसी 'मंगल ध्वनि' से सुशोभित होगा. विभिन्न राज्यों के 50 से अधिक उत्कृष्ट वाद्ययंत्र इस शुभ अवसर पर एक साथ बजेंगे और लगभग दो घंटे तक गूंजते रहेंगे. विभिन्न राज्यों के ये अनोखे वाद्य यंत्र, दिव्य आर्केस्ट्रा में एकजुट होंगे. इससे भारत की सदियों पुरानी परंपराओं को अपनाने और पुनर्जीवित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है."</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- Alaknanda Singh </p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-79162891333036333142024-01-03T02:59:00.000-08:002024-01-03T02:59:44.097-08:00यह आपके लिए काम की खबर है, FSSAI क्वालिटी को लेकर क्यों कर रहा है 'चाय पर चर्चा', जानिए<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhEBMDg-afnS4H23bUzOSREfcpmlf-GJ1MycHC5sXw-4KZ-yGarxAmA9Q5bon227vvug7O8v9HjhEsJwjFolPRpWiDLtlGj0ZKUo-M9GsPevC6MlCPaVnMompLz-NxrJf6Vg1J_7mOc8w2nzxCTX1H_ihesNabiBLrjMx7B-D9EDaaUZvITh9f3w0-Qmsz/s585/FSSAI-and-tea.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhEBMDg-afnS4H23bUzOSREfcpmlf-GJ1MycHC5sXw-4KZ-yGarxAmA9Q5bon227vvug7O8v9HjhEsJwjFolPRpWiDLtlGj0ZKUo-M9GsPevC6MlCPaVnMompLz-NxrJf6Vg1J_7mOc8w2nzxCTX1H_ihesNabiBLrjMx7B-D9EDaaUZvITh9f3w0-Qmsz/w640-h336/FSSAI-and-tea.jpg" width="640" /></a></div><br /> <p></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><br /></span></p><p><span style="color: #444444; font-family: Open Sans, serif;"><span style="font-size: 16px;">बात सर्दी की हो या कि गर्मी का मौसम, कम से कम मुझे तो चाय हर मौसम में चाहिए... इसलिए मेरी तरह हो सकता है कि आप भी इस सांवली सलोनी रंगत वाले पेय के मुरीद हों परंतु ये खबर हमें चौंका रही है. </span></span></p><p><span style="color: #444444; font-family: Open Sans, serif;"><span style="font-size: 16px;">आप भी जान लीजिए कि </span></span><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">सर्दियों में हम सभी चाय में गर्माहट ढूंढते हैं लेकिन मिलावट कहां, कैसे मिल जाए, ये कोई नहीं कह सकता. देशभर से चाय की पत्तियों के लिए गए सैंपलों फूड रेगुलेटर FSSAI को न जाने क्या-क्या मिला है. फूड रेगुलेटर क्वालिटी को लेकर 'चाय पर चर्चा' कर रहा है. </span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">दरअसल, इसी महीने के मध्य में इंडस्ट्री, रेगुलेटर, उपभोक्ता मामले मंत्रालय की इस मुद्दे पर बैठक होने वाली है, जिसमें चाय की पत्तियों में मिलावट के खिलाफ कदम उठाए जाएंगे.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">FSSAI देशभर से जुटाए सैंपल की जांच कर रहा है. नियामक ने अक्टूबर माह में इंडस्ट्री, एसोसिएशन और अन्य स्टेकहोल्डर्स से चर्चा की थी. फूड रेगुलेटर की जांच आखिरी दौर में चल रही है. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">FSSAI की जांच में 50% से अधिक सैंपल मानक पर खरे नहीं उतरे हैं. देशभर से ये सैंपल इकट्ठा किए गए थे. चाय सैंपल में भारी मेटल, कलर, डस्ट की मिलावट मिली है. कई सैंपल में प्रॉसेस की हुई Used Tea मिली है. ऊपर से फ्लेवर्ड चाय के नाम पर कई तरह की विसंगतियां देखने को मिली हैं.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">उधर, चाय की पैदावार बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में कीटनाशक का प्रयोग हो रहा है. मई महीने में 5 पेस्टीसाइड्स emamectin, benzoate, fenpyroximate, hexaconazole, propiconazole, & quinalphos के मिनिमम रेसिड्यू लेवल को लेकर नोटिफिकेशन भी जारी किया गया था. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: #000099;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आखिर FSSAI क्यों हुआ इतना सक्रिय </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">भारत में घरेलू आबादी देश में उत्पादित कुल चाय का लगभग 76 प्रतिशत उपभोग करती है. इतनी बड़ी चाय पीने वाली आबादी के बीच चाय में मिलावट की खबरें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. निर्माताओं द्वारा काजू के बाहरी आवरण को जलने तक भूनकर नकली चाय पाउडर बनाने की कई शिकायतें सामने आई हैं. फिर इसे गुणवत्तापूर्ण चाय पाउडर के साथ मिलाया जाता है. अक्सर, निर्माता चाय में प्रतिबंधित रंग भी मिलाते हैं.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इस साल अगस्त में, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कोयंबटूर से 1.5 टन मिलावटी चाय की धूल जब्त की थी. एफएसएसएआई के नामित अधिकारी के. तमिलसेल्वन ने कहा, “हमने जो 500 ग्राम चाय की धूल के पैकेट जब्त किए उनमें से कुछ में 50 ग्राम चाय की धूल के पाउच में उच्च मात्रा में कलरेंट मिला हुआ था. इस पाउच को गाढ़ा रंग पाने के लिए असली चाय के बुरादे के साथ मिलाया जाना था. कई अन्य पैकेटों में चाय की धूल थी जो रंगों के साथ मिश्रित थी और उपयोग के लिए तैयार थी.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">चाय पर FSSAI 2011 विनियमन 2.10.1 (1) में उल्लेख है, "उत्पाद बाहरी पदार्थ, अतिरिक्त रंगीन पदार्थ और हानिकारक पदार्थों से मुक्त होगा. इस साल अक्टूबर में, FSSAI ने असम की एक चाय फैक्ट्री से लाए गए नमूनों की जांच की, तो उन्हें एक पीले रंग का पदार्थ, टार्ट्राज़िन मिला, जिसमें कैंसरकारी गुण पाए गए हैं.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">उत्पाद संस्करण में शुद्ध चाय की लोकप्रियता और स्थायित्व के कारण, केवल चाय की खपत को देखने या बेचने से यह पता चलता है कि यह वास्तविक या नकली है. हालांकि, कुछ तरीके हैं जिनसे आप रैना के बारे में पता लगा सकते हैं.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: #000099;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">तो आप अंतर कैसे पता कर सकते हैं? </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कैसे पता करें कि चाय को तारकोल के साथ कैसे बनाया गया है</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">एक फिल्टर पेपर/ब्लॉटिंग पेपर पर कुछ चाय की दुकानें, उन पर थोड़ा सा पानी छिड़कें. एक बार हो जाने पर, चाय की दुकान के नीचे नल के पानी के नीचे कागज और फिल्टर पेपर हटा दिए गए. उन दागों का निरीक्षण करें जो प्रकाश के विपरीत छूट दिए गए हैं. अगर चाय के अवशेष शुद्ध हैं तो फिल्टर पेपर पर दाग नहीं है और अगर आपकी चाय में तारकोल के रूप में उत्पाद है तो आप देखेंगे कि फिल्टर पेपर का रंग तुरंत बदल रहा है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कैसे पता करें कि चाय की दुकान में आयरन भराव की व्यवस्था की गई है</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इसके लिए आपको एक चुंबक की जरूरत पड़ेगी. एक कांच की प्लेट पर थोड़ी मात्रा में चाय की पत्तियां फैलाएं और चुंबक को चाय की पत्तियों के ऊपर धीरे से घुमाएं. चाय की पत्तियां शुद्ध होंगी तो चुंबक भी साफ होगा. हालांकि, मिलावट तब प्रकट होगी जब लोहे का भराव चुंबक से चिपक जाएगा.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ऐसे करें चाय का जल परीक्षण</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">चाय की शुद्धता जांचने का सबसे आसान तरीका एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच चाय की पत्तियां मिलाना है. सुनिश्चित करें कि पानी या तो ठंडा है या कमरे के तापमान पर है लेकिन गर्म नहीं है. अगर चाय शुद्ध होगी तो पानी के रंग में कोई बदलाव नहीं आएगा। अगर चाय की पत्तियों में कोई रंग मिला दिया जाए तो रंग तुरंत लाल हो जाएगा, इसलिए सावधान रहें.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">चाय की पत्तियों में मिलावट का एक कारण यह है कि जहां एक किलो असली पत्तियों से लगभग 400 से 500 कप चाय बनती है, वहीं चाय की समान मात्रा के लिए कृत्रिम स्वाद और रंग मिलाने से यह संख्या लगभग दोगुनी होकर 800 से 1,000 कप के बीच हो सकती है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">आपके लिए यह जांचने का समय आ गया है कि आपकी चाय शुद्ध है या नहीं.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><br /></p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-29197233850856368402023-12-30T04:27:00.000-08:002023-12-30T04:27:17.074-08:00विनय कटियार का इंटरव्यू: सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद कर ऐसे तैयार हुई राम जन्म भूमि की मुक्ति की पृष्ठभूमि<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitaRwOSzegum6w5OnAXK1f2csI5DGsFWTRImpYqAsBqLgCk9-GklSJDApJOGEM44sWzt7GOf8miQYt_BvcnmU62gwG_mXcrpzQmXZ92Nls8dCPv8EMGjMXsbs5YBRUDch9yQd-Hbd6AGifQqBfHdcLy6oqFZpaUgt8A9n6HGeoa27YcILe_5QqwPWWSg6h/s585/vinay-katiyar-on-rammandir.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitaRwOSzegum6w5OnAXK1f2csI5DGsFWTRImpYqAsBqLgCk9-GklSJDApJOGEM44sWzt7GOf8miQYt_BvcnmU62gwG_mXcrpzQmXZ92Nls8dCPv8EMGjMXsbs5YBRUDch9yQd-Hbd6AGifQqBfHdcLy6oqFZpaUgt8A9n6HGeoa27YcILe_5QqwPWWSg6h/w640-h336/vinay-katiyar-on-rammandir.jpg" width="640" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">विनय कटियार जी द्वारा दिए एक इंटरव्यू के अनुसार यह आलेख हम आपके समक्ष दे रहे हैं। </span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन जब शुरू हुआ था, तब न शक्ति थी और न सामर्थ्य। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, जनसंघ सहित अन्य कई संगठन अलग-अलग नामों से समाज के विभिन्न-विभिन्न वर्गों में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना फैलाने की कोशिश जरूर कर रहे थे। पर, यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि यह कोशिश भारतीय सांस्कृतिक चेतना के आधार पर अपने आराध्य के स्थान की मुक्ति के दुनिया के सबसे बड़े सफल आंदोलन का कारण बनेगी। इसका फल न सिर्फ राष्ट्रीय पुनर्जागरण के रूप में, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक फलक पर भी प्रभाव डालने के बड़े कारक के रूप में सामने आएगा।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">कानपुर में 1984 में संघ का शारीरिक शिक्षा वर्ग लगा था। वर्ग हो जाने के बाद प्रचारक के रूप में काम करने वालों के बीच मैं भी बैठा था। तब तक अलग-अलग तरीके से अयोध्या, मथुरा और काशी के मंदिरों को तोड़कर उन स्थानों को मस्जिद का रूप देने की घटनाएं उद्वेलित करने लगी थीं। मैं इन मुद्दों पर बोलता भी रहता था। संकल्प के अतिरिक्त अपने पास कुछ नहीं था। एक कुर्ता-धोती और कंधे पर झोला, जो हमारा कार्यालय भी था और कोष भी।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इसके अलावा यदि पास में था तो सिर्फ आचार्य तुलसीदास की यह पंक्तियां, प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं। तमाम उतार-चढ़ाव के बाद उस विश्वास की परिणति आखिरकार 5 अगस्त के रूप में सामने आना सुनिश्चित हो गया।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ऐसे तैयार हुई मुक्ति की पृष्ठभूमि</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />प्रचारकों की औपचारिक बैठक के बाद वरिष्ठ प्रचारक सरसंघचालक बाला साहब देवरस, प्रो. राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया, बालासाहब भाऊराव देवरस, अशोक सिंहल, मोरोपंत पिंगले, हो.वि. शेषाद्रि जैसे लोग अयोध्या को लेकर चर्चा करने लगे। मैंने अयोध्या के साथ मथुरा व काशी की मुक्ति को लेकर भी चर्चा की। पर, इन वरिष्ठ जनों की राय बनी कि काशी और मथुरा में हमारे मंदिर बने हुए हैं। इसलिए पहले अयोध्या को लेते हैं। चूंकि मुझे ही काम करना था तो मैं सबको प्रणाम करते हुए बाहर निकला।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">बाहर प्रो. रज्जू भैया से कहा, मैं तो अयोध्या को बहुत जानता नहीं हूं, तो कैसे काम करना है। रज्जू भैया ने कहा, कुछ नहीं सीधे-सीधे मुक्ति की बात करो। मैं अयोध्या आया, महंत रामचंद्र परमहंस से मिला। वे चूंकि इस मामले में वादी थे। बात की तो नाराजगी से बोले, बच्चा मैं इतने दिन से लड़ाई लड़ रहा हूं, अभी तक तो कुछ हुआ नहीं। तू क्या कर लेगा।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">हम लोग लौट आए। अगले दिन फिर गए तो उन्होंने फिर नाराजगी जताई। मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा, आप इतिहास बताइए, सब कुछ होगा। तब उन्होंने कहा, हमारी उम्र तो है नहीं। तुम लोगों को करना है तो करो। हमारा समर्थन और आशीर्वाद है। इसके बाद मैं गोरखपुर जाकर महंत अवेद्यनाथ से मिला। परमहंसजी के हां कहने की बात बताई तो बोले, ठीक है शुरू करो। मेरा पूरा सहयोग है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">धीरे-धीरे बनने लगा आंदोलन का माहौल</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />शुरू में बैठकों में बमुश्किल 20-30 लोग आते, पर जरूरत थी किसी ऐसे शख्स की जो लोगों को प्रेरित कर सके। फिर मैं अशोक सिंहल जी से मिला। उन्होंने ही कानपुर में संभाग प्रचारक रहते मुझे प्रचारक बनाया था। सिंहल जी का दौरा शुरू हो गया। सवाल पैदा हुआ मंदिर पर चल रहे कार्यक्रमों को एकजुट करके राममंदिर पर बड़े जनजागरण का। सिंहल जी के बुलावे पर मैं दिल्ली गया। वहां उन्होंने पश्चिम से दिनेश त्यागी को बुला लिया था। वहीं पर पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना की हम लोगों से मुलाकात कराई और आगे के आंदोलन की रणनीति बनी।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">सिंहल जी और खन्ना जी के एक साथ दौरे तय हुए। राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनी। लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में सभा हुई। इसमें मैंने बिना किसी पूर्व घोषणा के तमाम नवयुवकों के हाथ में बजरंग दल की पट्टियां बंधवा दी थी। इसके पहले बजरंग दल को कोई नहीं जानता था। युवाओं को जोड़ने की इस कोशिश को सभी ने सराहा। इसी सभा में प्रदेश के पूर्व डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित भी विहिप में आ गए। फिर महिलाओं के लिए मैंने दुर्गावाहिनी की स्थापना की।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अशोक सिंहल ने संभाला नेतृत्व</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />आंदोलन का विस्तार हो चुका था और समर्थन भी खूब मिल रहा था। सिंहल जी ने पूरे आंदोलन की कमान संभाली। महंत परमहंस और महंत अवेद्यनाथ सहित तमाम संत-महात्माओं का आशीर्वाद व सहयोग मिलना शुरू हो गया। वरिष्ठ प्रचारक रज्जू भैया और भाऊराव देवरस की व्यक्तिगत रुचि तथा संघ के समर्थन से संसाधन की समस्याएं दूर होने लगीं। जनजागरण के तमाम कार्यक्रम करते हुए शिला पूजन का कार्यक्रम तय किया गया। नारा दिया गया-आगे बढ़ो जोर से बोलो, जन्मभूमि का ताला खोलो। शिलापूजन के साथ ही एक और नारा दिया गया, अयोध्या तो झांकी है मथुरा-काशी बाकी है। वीर बहादुर मुख्यमंत्री थे। महंत अवेद्यनाथ ने कई बार उनसे बात की, लेकिन कुछ बात नहीं बनीं। अंतत: न्यायालय के आदेश से ताला खुलते हुए आंदोलन आगे बढ़ा और शिलान्यास भी हो गया।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मुलायम सिंह माफी मांगें</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />कारसेवा की घोषणा हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलवा दीं। राममंदिर आंदोलन के पांच सदी तक चले संघर्ष में लगभग 3.50 लाख लोगों के प्राण गए। आज भी हमारे, आडवाणी जी, जोशी जी, कल्याण सिंह सहित तमाम लोगों पर मुकदमे चल रहे हैं। बजरंग दल पर प्रतिबंध लगा। न्यायाधीश ने बजरंग दल का कार्यालय व कोष पूछा तो मैंने कहा कि मेरा झोला। इसी में सब है। न्यायाधीश मुस्कुराए और अंतत: बजरंग दल प्रतिबंध मुक्त हो गया। इतने बलिदानों के बाद अब रामजी की कृपा से राम मंदिर बनने जा रहा है। पर, मेरा एक आग्रह मुलायम सिंह यादव से जरूर है कि वह भगवान राम के दरबार में आकर माफी मांगने की घोषणा करें, तभी उनका प्रायश्चित होगा। कारण, अब यह सिद्ध हो गया है कि कारसेवक जिस स्थान पर कारसेवा करने जा रहे थे, वह मंदिर ही था।<br style="box-sizing: border-box;" />- Legend News</p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-90787689718032347752023-12-20T04:30:00.000-08:002023-12-20T04:30:41.790-08:00साहित्य अकादमी पुरस्कार 2023 की घोषणा, 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को अवार्ड<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOm9mJVcw6M-MargtcAV-OtFq4lx-TNjhZTPfW70Zl1ctlRtnH30uPQsiEs0AkEXJ9F9KF7PkIiwXeO_SBr1O05DWy_SOgk1kEunbqW0br8ofWv8u4qV6ASW1neLKBopndemlIV1gl6RCX1p7oxBOzwPGUjfpeV4WkUDM6uZCc622biOaigOMz3EAhvkou/s585/Sahitya-Akademi-Award-2023.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOm9mJVcw6M-MargtcAV-OtFq4lx-TNjhZTPfW70Zl1ctlRtnH30uPQsiEs0AkEXJ9F9KF7PkIiwXeO_SBr1O05DWy_SOgk1kEunbqW0br8ofWv8u4qV6ASW1neLKBopndemlIV1gl6RCX1p7oxBOzwPGUjfpeV4WkUDM6uZCc622biOaigOMz3EAhvkou/w640-h336/Sahitya-Akademi-Award-2023.jpg" width="640" /></a></div><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">नई दिल्ली। साहित्य अकादमी ने आज बुधवार को वर्ष 2023 के लिए विभिन्न पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. अकादमी ने उपन्यास श्रेणी में हिंदी के लिए संजीव, अंग्रेजी के लिए नीलम शरण गौर और उर्दू के लिए सादिक नवाब सहर समेत 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">विजेता के नाम की घोषणा साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के श्रीनिवासराव ने नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित रवींद्र भवन में साहित्य अकादमी मुख्यालय में की. पिछली साल हिंदी भाषम में यह पुरस्कार तुमड़ी के शब्द (कविता-संग्रह) के लिए बद्री नारायण को मिला था, जबकि उर्दू में अनीस अशफाक और अंग्रेजी में अनुराधा रॉय को दिया गया था.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्यों दिया जाता है साहित्य अकादमी पुरस्कार?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />साहित्य अकादमी पुरस्कार साहित्य और भाषा के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए दिया जाता है. इससे भारत की समृद्ध और विविध साहित्यिक विरासत को बढ़ावा और संरक्षण मिलता है. साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता को एक लाख रुपये राशि का नकद पुरस्कार दिया जाता है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">24 भाषाओं के लिए दिया जाता है पुरस्कार</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />साहित्य अकादमी पुरस्कार भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 24 भाषाओं को दिया जाता है. इसमें उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा असमिया, बंगाली, डोगरी , कन्नड़, मराठी और मलयालम जैसे क्षेत्रीय भाषाएं शामिल हैं.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कब हुई थी साहित्य अकादमी की स्थापना?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />भारतीय भाषाओं के साहित्य और साहित्यकारों को बढ़ावा देने के लिए 1954 में साहित्य अकादमी की स्थापना की गई थी. इसके पहले अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. वहीं, राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, अबुल कलाम आजाद,, जाकिर हुसैन, उमाशंकर जोशी, महादेवी वर्मा, और रामधारी सिंह दिनकर इसकी पहली काउंसिल के सदस्य थे.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">साहित्य अकादमी पुरस्कार का मकसद भारत की समृद्ध और विविध साहित्यिक विरासत को बढ़ावा देना और उसको संरक्षित रखना है. भारत के बाहर भारतीय साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए अकादेमी दुनिया के विभिन्न देशों के साथ साहित्यिक विनिमय कार्यक्रमों का आयोजन भी करती है.<br style="box-sizing: border-box;" />- Legend News</p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-25137238426793549322023-12-17T04:13:00.000-08:002023-12-17T04:13:32.196-08:00आगम शास्त्र की विषय वस्तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये, इसका आध्यात्मिकता से क्या है संबंध<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhg0EpdfBXqvemu9ClhaT385HRPBGdMEoeA2G7LWtGzAsecbwpcoLiugmwXzef_lMTHDYKdumR4e-q9GJmQ9lKoZo6u5cgJyRoi9kDEdrZVL_HZyu0ieITCP_n8KgclqGzy_dI3QWqgDVsHsi04oMnsW_aMuMmw6_wjeLVRgq_lRiMPvDUqs_O2R_5kT7mx/s585/211Aagam.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhg0EpdfBXqvemu9ClhaT385HRPBGdMEoeA2G7LWtGzAsecbwpcoLiugmwXzef_lMTHDYKdumR4e-q9GJmQ9lKoZo6u5cgJyRoi9kDEdrZVL_HZyu0ieITCP_n8KgclqGzy_dI3QWqgDVsHsi04oMnsW_aMuMmw6_wjeLVRgq_lRiMPvDUqs_O2R_5kT7mx/w640-h336/211Aagam.jpg" width="640" /></a></div><br /> <p></p><p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><br /></span></p><p><span style="color: #4d5156; font-family: arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px;"><b>आगम शास्त्र हमें मन्दिरों की संरचना से लेकर योजना, वास्तुकला तथा पूजा की विधि के बारे में सब कुछ बताते हैं । </b></span></span><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मंदिर बनाने के इस प्राचीन भारतीय विज्ञान के बारे में आज हम आपको बताते हैं, एक ऐसा विज्ञान जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं।</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आगम शास्त्र का आध्यात्मिकता से संबंध</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">आगम शास्त्र कुछ खास तरह के स्थानों के निर्माण का विज्ञान है। बुनियादी रूप में यह अपवित्र को पवित्र में बदलने का विज्ञान है। समय के साथ इसमें काफी-कुछ निरर्थक जोड़ दिया गया लेकिन इसकी विषय वस्तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">यह एक अत्यंत गूढ़ विज्ञान है लेकिन लोगों ने अपनी-अपनी सोच के अनुसार इसका अकसर गलत अर्थ निकाल लिया या फिर और बढ़ा-चढ़ा कर बखान किया। समय के साथ यह इतना अधिक होता गया कि आज आगम शास्त्र एक बेतुकी और हास्यास्पद प्रक्रिया बन कर रह गया है। कोई काम किसी खास तरीके से ही क्यों किया जा रहा है यह जाने बिना लोग बेवकूफी भरे काम कर रहे हैं। लेकिन सही ढंग से किये जाने पर यह एक ऐसी टेक्नालॉजी है जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं, जिसको हम ईश्वर कहते हैं।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">भारत में बहुत सारे मंदिर हैं। मंदिर कभी भी केवल प्रार्थना के स्थान नहीं रहे, वे हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। आपसे यह कभी नहीं कहा गया कि मंदिर जा कर पूजा-अर्चना करें, यह कभी नहीं कहा गया कि ईश्वर के आगे सिर झुकाकर उनसे कुछ याचना करें। आपसे यह कहा गया कि जब भी आप किसी मंदिर में जायें तो वहां कुछ समय के लिए बैठें जरूर। पर आजकल लोग पल भर को बैठे नहीं कि उठ कर चल देते हैं। बैठने का मतलब यह नहीं है। मकसद यह है कि आप वहां बैठ कर ऊर्जा ग्रहण करें, अपने भीतर समेट लें, क्योंकि यह पूजा-अर्चना का स्थान नहीं है। यह वह स्थान नहीं है जहां आप यकीन करें कि कुछ अनहोनी घट जाएगी या जहां किसी व्यक्ति की अगुवाई में आप दूसरों के साथ मिल कर प्रार्थना करेंगे। यह केवल एक ऊर्जा-केंद्र है जहां आप कई स्तरों पर ऊर्जा प्राप्त कर सकेंगे। चूंकि आप खुद कई तरह की ऊर्जाओं का एक जटिल संगम हैं इसलिए हर तरह के लोगों को ध्यान मे रखते हुए कई तरह के मंदिरों का एक जटिल समूह बनाया गया। एक व्यक्ति की कई तरह की जरूरतें होती हैं जिसे देखते हुए तरह-तरह के मंदिर बनाए गये।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">उदाहरण के लिए केदारनाथ एक बहुत शक्तिशाली स्थान है, इस स्थान की ऊर्जा काफी आध्यात्मिक तरह की है परंतु केदारनाथ के रास्ते में तंत्र-मंत्र की विद्या से संबंधित भी एक मंदिर है, किसी ने यहां पर एक छोटा मगर बहुत शक्तिशाली स्थान बनाया है। यदि किसी व्यक्ति को तंत्र-विद्या के ऊपर काम करना है तो वे इस छोटे-से मंदिर में जाते हैं क्योंकि यहां का वातावरण केदार मंदिर की अपेक्षा ऐसे काम के लिए अधिक सटीक होता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">आपको आध्यात्मिकता और तंत्र-विद्या के अंतर को समझना होगा। तंत्र-मंत्र एक तरह से एक टेक्नॉलॉजी है, भौतिक ऊर्जाओं के साथ काम करने की टेक्नॉलॉजी। <br style="box-sizing: border-box;" />आगम शास्त्र एक गूढ़ और जटिल टेक्नॉलॉजी है, जो इसी दायरे की है लेकिन बहुत चमत्कारिक है। हालांकि आध्यात्मिकता की प्रक्रिया इस दायरे की नहीं है। यह वह नहीं है जो आप करते हैं, यह वह है जो आप हो जाते हैं। यह आपके अस्तित्व के वर्तमान अवस्था का परम अवस्था की तरफ बढ़ जाना है। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">आगम में आपकी अवस्था नहीं बदलती है, यह आपके वर्तमान अस्तित्व के बारे में ही आपको एक बेहतर जानकारी देता है। आगम शास्त्र महज टेक्नॉलॉजी है। आध्यात्मिकता टेक्नॉलॉजी नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ अपनी चारदीवारियों के पार जाना है। आध्यात्मिकता वह नहीं है जिसको नियंत्रण में ले कर आप कुछ करते हैं, यह वह है जो आप स्वयं हो जाते हैं। यह बहुत अलग है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- अलकनंदा सिंंह </p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-27190918493442165462023-11-20T01:32:00.000-08:002023-11-20T01:32:50.903-08:00बीज मंत्र... वो छोटे मंत्र जो ब्रह्मांड निर्माण के समय ध्वनि तरंगों से पैदा हुए<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh90PnjjadhMxvQvTIfgfQgz4avcYbH26d3uFNq_i0mK44Ghf7LZa9ONds1hNX_vHDEQGfHZMHSFYJSoZIX7TsWz1gJ_1OCZNRQZGEgplb3eyy4B1faQS7mfXqs0VplLHAEfLh3QabKYuMDygHvHUV3D0QplFPwtCJEpfYlc5hzqaeRqV_a_mXAhkxycFCj/s585/5372Brahmand.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh90PnjjadhMxvQvTIfgfQgz4avcYbH26d3uFNq_i0mK44Ghf7LZa9ONds1hNX_vHDEQGfHZMHSFYJSoZIX7TsWz1gJ_1OCZNRQZGEgplb3eyy4B1faQS7mfXqs0VplLHAEfLh3QabKYuMDygHvHUV3D0QplFPwtCJEpfYlc5hzqaeRqV_a_mXAhkxycFCj/w640-h336/5372Brahmand.jpg" width="640" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">बीज मंत्र बहुत शक्तिशाली मंत्र है जिनका उपयोग हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के आह्वान के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह छोटे मंत्र ब्रह्मांड के निर्माण के दौरान बनाई गई ध्वनि तरंगों से पैदा हुए थे। इनमें से प्रत्येक मंत्र एक अर्थ से जुड़ा हुआ है। </span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">प्रत्येक बीज मंत्र के जाप के दौरान जो ध्वनि आवृत्ति बनती है, वह देवी का आह्वान करने का काम करती है। उनकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को शरीर में प्रवाहित करने में मदद करती है। यदि कोई दिव्य आकृतियों की शक्तियों को प्राप्त करने का इरादा रखता है, इन मंत्रों का जाप लगातार इस संदर्भ में चमत्कारी काम करता है। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">वास्तव में प्रत्येक देवता को समर्पित मंत्रों का जाप करना और उनमें बीज मंत्र जोड़ना, यह देवी-देवताओं को अधिक प्रसन्न करता है। इन बीज मंत्रों में शक्ति होती है। ये शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखते हैं।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">बीज मंत्र एकल या मिश्रित शब्द होते हैं, जहां शक्ति शब्द की ध्वनि में निहित होती है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बीज मंत्र कैसे मदद करते हैं </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">बीज मंत्र जाप के दौरान बोले जाने वाले प्रत्येक शब्द का एक महत्वपूर्ण अर्थ होता है, क्योंकि यह मंत्र की नींव बीज की तरह होती है। लेकिन शब्दों या ध्वनि को तोड़कर सरल और समझने योग्य भाषा में बदलना सही नहीं है। इन मंत्रों के पीछे के विज्ञान को समझने में काफी समय लग सकता है, फिर भी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाते हैं। ये प्राकृतिक रूप से प्रकट हुए हैं। इसके बाद ऋषियों द्वारा उनके छात्रों तक पहुंचा और अंत में शेष दुनिया में इसका प्रसारा हुआ। समय के साथ इन मंत्रों ने अपना स्थान बना लिया है। कई अलग-अलग बीज मंत्र हैं, जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। लेकिन ऐसे बीज मंत्र भी मौजूद हैं, जो विभिन्न ग्रहों को समर्पित हैं, जिनके उपयोग से उस ग्रह को शांत किया जा सकता है, जो व्यक्ति विशेष की कुंडली में गड़बड़ी का कारण बन रहा हो या खुद को ग्रह के अशुभ प्रभावों से बचाना हो।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">ये बीज मंत्र अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी हैं। जब दृढ़ विश्वास और पवित्र मन से इनका जाप किया जाता है, तो जातक की कोई भी इच्छा पूरी हो जाती है। इस मंत्र का जाप करने के लिए मन का स्थिर एवं शांत होना जरूरी है। शांत मन और ध्यान केंद्रित करने के लिए निरंतर "ओम" मंत्र का उच्चारण किया जा सकता है। इसके बाद विशिष्ट बीज मंत्र का जाप शुरू करना चाहिए। मंत्र को एक समान "ओम" से समाप्त करने से मंत्र पूरे चक्र में आ जाता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बीज मंत्रों का जाप कैसे करें </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">कहते हैं तन स्वच्छ तो मन स्वच्छ। इसलिए जब भी बीज मंत्रों के जाप की शुरुआत करें, तो उससे पहले स्नान कर लें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">सुबह-सुबह इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यदि किसी कारणवश आप मंत्र जाप करने से पहले स्नान नहीं कर सकते हैं तो खुद पर पानी की कुछ बूंदें छिड़कें। इसके बाद सफ मन से मंत्र जाप शुरू करें।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">मंत्र जाप करने के लिए मन शांत होना चाहिए। शांत मन के लिए ध्यान केंद्रित करना होता। इसलिए जब भी मंत्र जाप करें, एक शांत और खाली स्थान पर बैठें। मंत्र जाप के लिए हमेशा ऐसा स्थान चुनें, जहां कोई मौजूद न हो और कोई भी आपको 30 से 40 मिनट तक परेशान न करे। समय सीमा आप अपने हिसाब से निर्धारित कर सकते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />शब्द और उच्चारण बीज मंत्रों की शक्ति को उजागर करने की कुंजी हैं। हर शब्दांश का स्पष्ट रूप से बहुत दृढ़ संकल्प के साथ उच्चारण करने का प्रयास करें। बीज मंत्रों का जाप करने के सही तरीके पर मार्गदर्शन करने के लिए आप गुरु की मदद ले सकते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />यदि लंबे समयवधि तक मंत्र जाप करने के बावजूद कोई अच्छा परिणाम न मिले, तो हार न मानें। ध्यान रखें कि हर मंत्र को काम करने में समय लगता है। इस प्रक्रिया और स्वयं पर संदेह न करें। खुद पर विश्वास रखें। अगर आपने साफ मन से मंत्रों का जाप किया है, तो अंतिम रूप से अच्छे परिणाम जरूर मिलेंगे। बस थोड़ा सा धैर्य बनाए रखें।<br style="box-sizing: border-box;" />सर्वोत्तम परिणाम देखने के लिए दिन में कम से कम 108 बार मंत्र का जप करें।<br style="box-sizing: border-box;" />आप मंत्राें का उच्चारण करने से पहले खुद को ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। ध्यान आपको शांति प्राप्त करने में मदद करता है। साथ ही ध्यान करने की वजह से तनाव दूर होता है और आत्मा स्थिर होती है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">महत्वपूर्ण बीज मंत्र </span></span><br style="box-sizing: border-box;" />मूल बीज मंत्र "ओम" है। यह वह मंत्र है, जिससे अन्य सभी मंत्रों का जन्म हुआ है। प्रत्येक बीज मंत्र से एक विशिष्ट देवी-देवता जुड़े हुए हैं। बीज मंत्र के प्रकार हैं- योग बीज मंत्र, तेजो बीज मंत्र, शांति बीज मंत्र और रक्षा बीज मंत्र।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ह्रौं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह शिव बीज मंत्र है। यहां "ह्र" का अर्थ शिव और "औं" का अर्थ सदाशिव है। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव को ध्यान में रखकर ही इस मंत्र का जाप करें।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दूं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह मंत्र देवी दुर्गा को समर्पित है। उनका आशीर्वाद और उनसे सुरक्षा प्राप्त करने के लिए इसका जाप किया जाता है। "द’’ का मतलब दुर्गा और "ऊ" का मतलब सुरक्षा है। यहां बिन्दु क्रिया (प्रार्थना) है। यह मंत्र देवी दुर्गा की ब्रह्मांड की मां के रूप में स्तुति करता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्रीं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह मंत्र मां काली को समर्पित है। इस मंत्र में विशेष शक्तियां हैं, जो माता पार्वती के अवतारों में से एक मां काली को प्रसन्न करती है। यहां "क" का अर्थ है मां काली, "र" ब्रह्म है और "ई" महामाया है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है कि महामाया मां काली मेरे दुखों का हरण करो।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह बहुत ही शुभ मंत्र है। यह बीज मंत्र भगवान गणेश से संबंधित है। "ग" गणपति के लिए उपयोग किया गया है और बिंदु दुख का उन्मूलन है अर्थात श्री गणेश मेरे दुखों को दूर करो।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ग्लौं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह भी गणेश के बीज मंत्रों में से एक मंत्र है। यह मंत्र भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए है। इसमें "ग" स्वयं भगवान गणेश हैं, "ल" का अर्थ है व्याप्त है और "औं" का अर्थ है प्रतिभा।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ह्रीं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह देवी महामाया बीज मंत्र है, जिसे ब्रह्मांड की माता भुवनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां "ह" का अर्थ है शिव, "र" प्रकृति है और "ई" महामाया और ‘बिंदु’ दुख हर्ता है। इस मंत्र को दुर्भाग्य को दूर करने के लिए सहायक माना जाता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">श्रीं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह लक्ष्मी बीज मंत्र है। इस मंत्र को धन प्राप्ति के लिए जप किया जाता है। इस मंत्र में "श्र" महालक्ष्मी के लिए है, "र" धन के लिए है और "ई" पूर्ति के लिए है। जब कोई धन और समृद्धि के लिए महालक्ष्मी को जगाने की कोशिश कर रहा हो, तो उसे इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह बीज मंत्र बहुत फायदेमंद है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ऐं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />इस बीज मंत्र से मां सरस्वती का आविर्भाव होता है। अगर कोई ज्ञान और शिक्षा के लिए प्रार्थना करना चाहता है, तो यह बीज मंत्र आवश्यक है। मां सरस्वती शिक्षा, ज्ञान, संगीत और कला की देवी हैं। यहां "ऐं" का अर्थ है, हे मां सरस्वती।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्लीं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह बीज मंत्र भगवान कामदेव के लिए है। वह प्रेम और इच्छा के देवता हैं। इस बीज मंत्र के जरिए कामदेव की प्रार्थना की जाती है। यहाँ "क" का अर्थ कामदेव है, "ल" इंद्र देव के लिए है और "ई" संतुष्टि के लिए है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">हूं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह शक्तिशाली बीज मंत्र भगवान भैरव से जुड़ा है। भगवान भैरव, भगवान शिव के उग्र रूपों में से एक हैं। इस मंत्र में "ह" भगवान शिव है और "ऊं" भैरव के लिए है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है, हे शिव मेरे दुखों को नाश करो।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">श्रौं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />भगवान विष्णु के रूपों में से एक भगवान नृसिंह इस शक्तिशाली बीज मंत्र से उत्पन्न होते हैं। "क्ष" नृसिंह के लिए है, "र" ब्रह्म हैं, "औ" का अर्थ है ऊपर की ओर इशारा करते हुए दांत और "बिंदु" का अर्थ है दुख हरण। इस मंत्र के माध्यम से ब्रह्मस्वरूप नृसिंह से प्रार्थना की जा रही है कि हे भगवान मेरे दुखों को दूर करो।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- अलकनंदा सिंंह </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">https://www.legendnews.in/single-post?s=beej-mantras-those-small-mantras-that-were-born-from-the-sound-waves-created-during-the-creation-of-the-universe-12815 </p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-77140938949788947942023-10-17T03:19:00.005-07:002023-10-17T03:19:41.479-07:00सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ खिलवाड़ है समलैंगिक विवाह की बात<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4AHuUTCLMR3e7kvcEcLsMMoUBKkGi9l8Xkvv9AVQjQu6Sx202mTH2I7PFgrOP-w77PPIoMFgO06oibMEc-abUgamRnWRvWcLosWb_uNe0wtYxfDK_aAsSmWELv57fjVZDtl54GNix0wgbHFOfA8wTuvMCp0FbivrdhEfMwcESdXgmbCH8uE212SUHi0e0/s585/Supreme-Court-have-not-allo.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4AHuUTCLMR3e7kvcEcLsMMoUBKkGi9l8Xkvv9AVQjQu6Sx202mTH2I7PFgrOP-w77PPIoMFgO06oibMEc-abUgamRnWRvWcLosWb_uNe0wtYxfDK_aAsSmWELv57fjVZDtl54GNix0wgbHFOfA8wTuvMCp0FbivrdhEfMwcESdXgmbCH8uE212SUHi0e0/w400-h210/Supreme-Court-have-not-allo.jpg" width="400" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है. इस पीठ के 5 में से 4 जजों ने बारी-बारी से अपना फैसला सुनाया. सबसे पहले CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में समलैंगिकों को शादी का अधिकार देने की बात पर जोर दिया. इसके अलावा उन्होंने समलैंगिकों के साथ होने वाले भेदभाव को दूर करने को लेकर निर्देश भी जारी किये.</span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सुप्रीम कोर्ट बेंच के चारों जजों के फैसलों का लब्बोलुआब</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- किसी भी तरह का कानून बनाने का अधिकार संसद का है, इसलिए समलैंगिक विवाह पर कानून बनाने के लिए भी वहीं विचार होना चाहिए. - सॉलिटर जनरल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि यदि जरूरी हुआ तो संसद इस बारे में एक उच्चस्तरीय समिति बनाकर विचार करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील के प्रति सहमति दिखाई. - भारतीय संविधान में शादी का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन रिलेशनशिप को मान्यता दी गई है. इसलिए यदि कोई समलैंगिक जोड़ा अपने रिश्ते को किसी भी प्रकार से प्रकट करने के लिए स्वतंत्र है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- बच्चा गोद लेने के अधिकार को लेकर CJI और जस्टिस भट्ट के बीच काफी मतांतर दिखा. CJI इसके पक्ष में थे, जबकि जस्टिस भट्ट ने इसका विरोध किया (जस्टिस भट्ट ने इसकी वजह को पढ़ने से मना कर दिया). - समलैंगिक विवाद को कानूनी मान्यता देने से महिलाओं पर इसके दुष्प्रभाव पड़ने की बात रेखांकित हुई. जस्टिस भट्ट ने कहा कि अभी घरेलू हिंसा और दहेज से जुड़े कानूनों में महिला के रूप में पत्नी को काफी अधिकार हैं, जो खतरे में पड़ सकते हैं. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- समलैंगिकों के साथ किसी भी तरह के भेदभाव को दूर करने के मुद्दे पर सभी जस्टिस एकमत थे. और CJI चंद्रचूड़ ने इसके लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किये. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">अब बात आती है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में गे राइट्स विशेषकर शादी के अधिकारों को लेकर विरोध क्यों कर रही थी? अगर विरोध कर रही थी तो उसके तर्क क्या थे? और उन तर्कों के आधार पर यदि समाज के पड़ने वाले प्रभाव को देखा जाए तो किस उथल-पुथल की आशंका जताई गई थी. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">पति और पत्नी के अलग-अलग राइट्स हैं, पर कैसे पता चलेगा, कौन पति-कौन पत्नी?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कुछ पॉइंट्स ऐसे रखे थे जो निश्चित तौर पर समाज में बड़े पैमाने पर समस्या का कारण बन सकते हैं. दरअसल सेम सेक्स मैरिज में यह समझना कठिन होगा कि कौन पति है तो कौन पत्नी है. इसलिए बहुत से ऐसे कानून जो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गएं हैं उनपर एक्शन कैसे होगा यह सरकार के लिए चिंता का विषय है. जैसे सेम सेक्स मैरिज के बाद अगर तलाक की नौबत आती है तो कानून कैसे काम करेगा? </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">विशेष वर्ग में तलाक का कानून भी सभी लोगों के लिए एक बन सकता है? ट्रांस मैरिज में पत्नी कौन होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? इसका दूरगामी प्रभाव होगा. अभी जो कानून प्रचलन में है उसमें पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा? कैसे निर्धारित होगा कौन पति है कौन पत्नी है? </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">महिलाओं के अधिकारों की चर्चा करते हुए मेहता कहते रहे कि दहेज हत्या या घरेलू हिंसा के मामले जटिल हो जाएंगे. 'अगर कानून में पति या पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए, तो महिलाओं को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार न करने के प्रावधान कैसे लागू होंगे?' </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अनैतिक संबंधों में छूट की होगी डिमांड </span></span><br style="box-sizing: border-box;" />सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक बहुत सेंसिटिव मुद्दे को उठाया था. उन्होंने सेम सेक्स मैरिज को मौलिक अधिकार बताए जाने को बेहद जटिल बताया था. मेहता ने कहा था कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता के दावे को मौलिक अधिकार समझकर अगर सही माना जाए तो भविष्य में और बहुत से नैसर्गिक अधिकारों की डिमांड शुरू हो जाएगी.समाज में नजदीकी वर्जित संबंध जैसे नियम परंपराएं मानव समाज की ही बनाई हुई हैं. मेहता कहते हैं कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन और पसंद के अधिकार के दावे शुरू हो सकते हैं. दरअसल पसंद के अधिकार और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के मामले को याचिकाकर्ता ने उठाया है और सेम सेक्स में इसी आधार पर शादी की मान्यता की गुहार लगाई है. मेहता का कहना है कि इसी आधार पर आने वाले समय में तो वर्जित संबंधों में रिलेशनशिप के मामलों को पसंद का मामला बताया जाएगा. और सेक्सुअल ओरिएंटेशन का मामला बताकर राइट्स की मांग की जाएगी.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">समाज सुधार का हक समाज को है </span></span><br style="box-sizing: border-box;" />देश में समाज सुधार का इतिहास बहुत पुराना है. सती प्रथा और विधवा विवाह के लिए बंगाल में जबरदस्त अभियान चला. बाल विवाह की उम्र बढ़ाने की बात हो या कोई बड़े सामाजिक बदलाव लाने वाले हर कदम पर बड़े पैमाने पर समाज में बहस हुई है. विधवा पुनर्विवाह के मुद्दे पर बंगाल में खूब बवाल हुआ था. महिलाओं की शादी की उम्र घटाने और एज ऑफ कंसेंट बिल को लेकर बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले अलग-अलग खेमों में बंट गए. बंगाल में राधाकांत देब और महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो और महात्मा गांधी चाहते थे कि विदेशी शासक भारत की जनता के प्रतिनिधि नहीं हैं और हिंदू रीति-रिवाजों के बारे में कानून बनाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इनका कहना था कि बुद्ध, आदि शंकराचार्य, गुरु नानक और ज्योतिबा फुले जैसे महान समाज सुधारकों ने अपने संदेश समाज सुधार का आगे बढ़ाया. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">समलैंगिकों की शादी को कानूनी दर्जा देने के बारे में देश में सार्वजनिक बहस कराने के लिए कोई खास कोशिश होती नहीं दिखी. <b>LGBTQIA++ </b>कम्युनिटी भले ही इस पर चर्चा कर रही हो, लेकिन प्रस्तावित बदलावों से जिस तरह का बड़ा असर पड़ने वाला है, उसे देखते हुए कोई बड़ी सामाजिक बहस होती चाहिए थी. जो भी चर्चा है, वह दिल्ली की कानूनी बिरादरी के एक छोटे से तबके में और इंग्लिश मीडिया में दिख रही है. भारत लोकतांत्रिक संविधान से चलता है, ऐसे में यह मानना कि इंडियन स्टेट सेम सेक्स मैरिज जैसे विषय पर फैसला करने लायक नहीं है, एक मजाक ही है. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मनचले लोगों को बहाना मिल जाएगा </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">समाज में ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है जिनका सेक्सुअल ओरिएंटेशन कुछ समय बाद बदल जाया करता है. तमाम राजा महाराजाओं, मुगल शासकों का इतिहास बताता है कि इन्होंने शादी भी की , उनसे बच्चे भी हुए और इनके संबंध सेम सेक्स वाले से भी रहे. बॉलीवुड हो या भारतीय राजनीति , बिजनेस वर्ल्ड हो या फैशन संसार हर जगह इस तरह के किस्से आम हैं. बीस साल सफल वैवाहिक जीवन के बाद अगर किसी का सेक्सुअल ओरिएंटेशन बदलता है तो इसे क्या कहा जाएगा? सेक्सुअल ओरिएंटेशन बदलने की घटनाएं बड़े लोगों में ही नहीं छोटे कस्बों और गांवों में भी देखने की मिलती है.यहां बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो दोनों तरह के संबंधों में हैं. इनमें महिलाएं और पुरुष दोनों ही शामिल हैं. तमाम ऐसी महिलाएं हैं जिनके कई बच्चे होने के बाद वो सेम सेक्स रिलेशनशिप में है. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">कानून बनाने से पहले जनता को ये फैसला करने की सुविधा देनी होगी जिससे पता लगाया जा सके कि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से विपरीत लिंग के साथ आकर्षित है या सेम सेक्स के लिय़े. इस तरह का कानूनी अधिकार मिलने से निश्चित रूप से अरबन इलीट को ही फायदा मिलने वाला है. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- अलकनंदा सिंंह</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"> </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><br /></p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-80016534093703940852023-10-07T04:15:00.006-07:002023-10-08T02:27:49.853-07:00गुरु गोबिंद सिंह को क्यों पसंद थी चंडी देवी की कहानी?<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4dHC5Tzl00ChZS8n4PXtL2mHdYnIgpJrzy6UDZB_OJOGVv_Dn7vAKkw3jnzjrE1kCItOX5cqvEVniDrenHrz5_vg7XJs1FCeXbrQ0v3qIg4yrPS2klK2TI7jcPuMSZ_b6-D3j07Hn9WOY-1S9qJvCZtj58X6xzmBFJ3hG2-b0lYwTn6i-7OT64WG_yzC7/s585/8418Guru-Gobind-Singh.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img alt="7 अक्तूबर 1708 को आधी रात के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने सिर्फ़ 42 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया." border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4dHC5Tzl00ChZS8n4PXtL2mHdYnIgpJrzy6UDZB_OJOGVv_Dn7vAKkw3jnzjrE1kCItOX5cqvEVniDrenHrz5_vg7XJs1FCeXbrQ0v3qIg4yrPS2klK2TI7jcPuMSZ_b6-D3j07Hn9WOY-1S9qJvCZtj58X6xzmBFJ3hG2-b0lYwTn6i-7OT64WG_yzC7/w640-h336/8418Guru-Gobind-Singh.jpg" title="7 अक्तूबर 1708 को आधी रात के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने सिर्फ़ 42 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया." width="640" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु गोबिंद सिंह सिर्फ़ नौ साल के थे जब उनके पिता गुरु तेग बहादुर का कटा हुआ सिर अंतिम संस्कार के लिए आनंदपुर साहब लाया गया था.</span><p></p><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">उनके पिता की शहादत ने जीवन भर उनके नज़रिए को प्रभावित किया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह की छवि एक लंबे छरहरे, बेहतरीन कपड़े पहनने वाले और कई तरह के हथियारों से सुसज्जित रहने वाले शख़्स की है.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">तस्वीरों में उनके बाएं हाथ पर हमेशा एक सफ़ेद बाज़ और पगड़ी में एक कलगी लगी दिखाई जाती है. 19 साल की उम्र तक उन्होंने अपने-आप को आने वाले समय के लिए तैयार किया. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">खुशवंत सिंह अपनी मशहूर किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ़ द सिख्स’ में लिखते हैं, "इस बीच उनको संस्कृत और फ़ारसी पढ़ाई गई. हिंदी और पंजाबी उन्हें पहले से ही आती थी. उन्होंने घुड़सवारी करना और बंदूक चलाना भी सीखा. उन्होंने चार भाषाओं में कविताएं लिखना शुरू कर दिया. कभी-कभी वो एक ही कविता में चारों भाषाओं का इस्तेमाल करते.” </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">खुशवंत सिंह ने लिखा है, “उन्होंने हिंदू धर्मशास्त्र की कई कहानियों को अपने शब्दों में लिखा. उनकी पसंदीदा कहानी चंडी देवी की थी जो राक्षसों का विनाश करती थी. उनके बारे में मशहूर था कि उनके तीरों की नोक सोने की बनी होती थी ताकि मरने वाले के परिवार का ख़र्च उसको बेचकर चल सके.” </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गुरु गोबिंद सिंह की पहली जीत </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु गोबिंद सिंह को पहली चुनौती उनके पड़ोसी पहाड़ी राज्य बिलासपुर के राजा भीम चंद से मिली. भीम चंद को गुरु गोबिंद सिंह का लोगों के बीच लोकप्रिय होना नागवार गुज़रा. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">राजा इसलिए भी नाराज़ हो गया था क्योंकि एक बार गुरु ने उन्हें अपना हाथी देने से इंकार कर दिया था. उन्होंने आनंदपुर पर हमला कर दिया जिसमें उनकी हार हुई.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पतवंत सिंह अपनी किताब ‘द सिख्स’ में लिखते हैं, “सिख धर्म में सभी जातियों को समान महत्व दिया गया था लिहाज़ा ऊँची जाति के सामंतवादी सोच रखने वाले लोगों से उनका टकराव लाज़िमी था. पड़ोसी राज्यों के सरदारों को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी क्योंकि आने वाले समय में जनतांत्रिक सिख मूल्य उनके सामंतवादी अधिकारों के लिए ख़तरा साबित हो सकते थे.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">सन 1685 में गुरु गोबिंद सिंह ने पड़ोसी सिरमौर राज्य के राजा मेदिनी प्रकाश की मेज़बानी कबूल कर ली. वो वहाँ तीन सालों तक रहे. इसके बाद उन्होंने अपने रहने के लिए यमुना नदी के किनारे एक जगह चुनी जिसका नाम था पंवटा. यहीं उनके सबसे बड़े बेटे अजीत सिंह का जन्म हुआ.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">यहां उनको एक बार फिर लड़ाई का सामना करना पड़ा. इस बार भीम चंद और फ़तेह शाह की संयुक्त सेना ने उन पर हमला किया. ये लड़ाई पंवटा से छह मील दूर भंगानी में हुई. इस लड़ाई में भी इन राजाओं की हार हुई और लोगों को पता चल गया कि गोबिंद सिंह कितने ताक़तवर हैं. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">खालसा की स्थापना</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">सन 1699 की शुरुआत में उन्होंने सभी सिखों को संदेश दिया कि वे बैसाखी के मौके पर आनंदपुर में जमा हों. भीड़ के सामने ही उन्होंने अपनी म्यान से तलवार निकाली और ऐलान किया कि ऐसे पाँच लोग सामने आएं जो धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर सकते हों.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पतवंत सिंह लिखते हैं, “सबसे पहले लाहौर के दयाराम आगे आए. गुरु उनको बगल के एक तंबू में ले गए. उनके बाद हस्तिनापुर के धरमदास, द्वारका के मोहकम चंद, जगन्नाथ के हिम्मत और बीदर के साहिब चंद आगे आए.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">तंबू के बाहर जनता उत्सुकता से उनके बाहर आने का इंतज़ार करती रही, गुरु की तलवार से ख़ून टपकता देख लोगों को लगा कि उन्हें मार दिया गया है.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पतवंत सिंह लिखते हैं, “थोड़ी देर बाद गुरु गोबिंद सिंह इन पाँचों लोगों के साथ बाहर आए. इन पाँचों ने केसरिया रंग के कपड़े और पगड़ी पहनी हुई थी. तब जाकर वहाँ मौजूद लोगों को अहसास हुआ कि गुरु ने उनको मारा नहीं था. वो उनके साहस की परीक्षा ले रहे थे. गुरु ने इन पाँचों लोगों को ‘पंजप्यारे’ का नाम दिया.” </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">उन्होंने एक कड़ाहे में जल भरकर उसमें शक्कर डाल कर अपनी कृपाण से मिलाया और उन पाँचों लोगों को एक कटोरे में पीने को दिया. ये पाँचों लोग अलग-अलग हिंदू जातियों के थे.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसका सांकेतिक अर्थ ये था कि इस जल को पीकर वो जाति विहीन खालसा के सदस्य हो गए हैं. उन सबके हिंदू नाम बदलकर उन्हें उपनाम ‘सिंह’ दिया गया. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">खालसा के लिए पाँच नियम बनाए गए जिनका पहला शब्द ‘क’ से शुरू होता था, इसलिए इन्हें पंचकार कहा गया- केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">खुशवंत सिंह लिखते हैं, “उनसे कहा गया कि वो अपने बाल और दाढ़ी न कटवाएँ, उनको एक कंघा रखने की हिदायत दी गई ताकि वो अपने बालों को व्यवस्थित रख सकें. उनको घुटने तक का कपड़ा पहनने के लिए कहा गया जो कि उस ज़माने के सैनिक पहनते थे. उनके लिए दाएं हाथ में लोहे का मोटा कड़ा पहनना अनिवार्य कर दिया गया, और उनको हमेशा अपने साथ एक कृपाण रखने के लिए कहा गया.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसके अलावा उनके धूम्रपान करने, तम्बाकू खाने और शराब पीने पर रोक लगा दी गई. उनसे ये भी कहा गया कि वो मुस्लिम महिलाओं का सम्मान करेंगे. अंत में उन्होंने नए तरह के अभिवादन की शुरुआत की, वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरु जी की फ़तह. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">औरंगज़ेब के साथ पत्राचार</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">सन 1701 से 1704 के बीच सिखों और पहाड़ी राजाओं के बीच झड़पें होती रहीं. आखिर बिलासपुर के राजा भीम चंद के बेटे और वारिस अजमेर चंद ने दक्षिण जाकर औरंगज़ेब से मुलाक़ात की और गुरु गोबिंद सिंह को रास्ते से हटाने के लिए मदद माँगी.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">औरंगज़ेब ने गुरु को एक पत्र भेजा जिसमें लिखा, “आपका और मेरा धर्म एक ईश्वर में यकीन करता है. हम दोनों के बीच ग़लतफ़हमी क्यों होनी चाहिए? आपके पास मेरी प्रभुसत्ता मानने के अलावा कोई चारा नहीं है जो मुझे अल्लाह ने दी है. अगर आपको कोई शिकायत है तो मेरे पास आइए. मैं आपके साथ एक धार्मिक व्यक्ति की तरह बर्ताव करूँगा. लेकिन मेरी सत्ता को चुनौती मत दें वर्ना मैं खुद हमले का नेतृत्व करूँगा.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसका जवाब देते हुए गुरु गोबिंद सिंह ने लिखा, “दुनिया में सिर्फ़ एक सर्वशक्तिमान ईश्वर है जिसके मैं और आप दोनों आश्रित हैं. लेकिन आप इसको नहीं मानते और उन लोगों के प्रति भेदभाव करते हैं, उन्हें नुक़सान पहुंचाने की कोशिश करते हैं जिनका धर्म आपसे अलग है. ईश्वर ने मुझे न्याय बहाल करने के लिए इस दुनिया में भेजा है. हमारे बीच शांति कैसे हो सकती है जब मेरे और आपके रास्ते अलग हैं.” </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसके बाद औरंगज़ेब ने दिल्ली, सरहिंद और लाहौर के अपने गवर्नरों को आदेश दिए कि गुरु पर नियंत्रण करने के लिए अपने सारे सैनिकों को लगा दें.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">आदेश में कहा गया कि पहाड़ी राजाओं के सैनिक भी मुगल सेना के साथ लड़ेंगे और गुरु को औरंगज़ेब के सामने पेश करेंगे. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गुरु गोबिंद सिंह ने की लड़ाई की पूरी तैयारी</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">तय हुआ कि सरहिंद के गवर्नर वज़ीर ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल और पहाड़ी राजाओं की सेना आनंदपुर की तरफ़ कूच करेंगी. ये सुनते ही गुरु गोबिंद सिंह ने भाई मुखिया और भाई परसा को हुकुमनामा जारी कर घुड़सवारों, पैदल सैनिकों और साहसी युवाओं के साथ आनंदपुर पहुंचने के लिए कहा.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">कुरुक्षेत्र के मेले और अफ़ग़ानिस्तान से घोड़ों का इंतज़ाम किया गया. सिपहसालारों ने सेना को चाक-चौबंद करने और खासतौर पर नए रंगरूटों को प्रशिक्षण देने, लड़ाई के लिए योजना बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">हर सैनिक ठिकाने में पर्याप्त व्यवस्था की गई ताकि संभावित घेराव से होने वाली मुश्किलों का सामना किया जा सके. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">किले के अंदर रह कर लड़ने का फ़ैसला</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु ने अपनी सेना को छह भागों में विभाजित किया. पाँच टुकड़ियों को पाँच किलों की रक्षा की ज़िम्मेदारी दी गई और छठी टुकड़ी को रिज़र्व के तौर पर रखा गया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदगढ़ की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली. फ़तेहगढ़ की रक्षा की ज़िम्मेदारी उदय सिंह को मिली. मक्खन सिंह को नालागढ़ का कमांडर बनाया गया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु के सबसे बड़े बेटे अजीत सिंह को केशगढ़ का इंचार्ज बनाया गया जबकि उनके छोटे भाई जुझार को लोहगढ़ की सुरक्षा का भार दिया गया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">अमरदीप दहिया गुरु गोबिंद सिंह की जीवनी ‘फ़ाउंडर ऑफ़ द खालसा’ में लिखते हैं, “गुरु ने अपने सभी जनरलों को बता दिया कि मुग़ल सेना के संख्या में अधिक होने के कारण उनसे खुले में लड़ाई लड़ना अक्लमंदी नहीं होगी. बेहतर रणनीति ये होगी कि हम अपने किलों के अंदर रह कर उनसे लड़ें.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मुग़ल सेनाओं ने समुद्र की लहरों की तरह गुरु गोबिंद सिंह की सेना पर हमला किया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मैक्स आर्थर मौकॉलिफ़ अपनी किताब ‘द सिख रिलीजन’ में लिखते हैं, “पाँचों किलों से सिख तोपचियों ने उस इलाके को अपना निशाना बनाया जहाँ बहुत अधिक संख्या में मुग़ल सैनिक मौजूद थे. मुगल सैनिक खुले में लड़ रहे थे इसलिए सिख सैनिकों के मुक़ाबले उनका अधिक नुकसान हुआ. इसे देखते ही उदय सिंह और दया सिंह के नेतृत्व में सिख सैनिक किले से बाहर निकल आए और मुगल सैनिकों पर टूट पड़े. मुगलों के दो सिपहसालार वज़ीर ख़ाँ और ज़बरदस्त ख़ाँ ये देखकर दंग रह गए कि किस तरह उनकी फ़ौज़ से कहीं छोटी फ़ौज उनका इतना नुक़सान कर रही है.” </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गुरु गोबिंद सिंह का किला घिरा</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पहले दिन की लड़ाई की समाप्ति पर किलों की दीवारों के बाहर करीब 900 मुग़ल सैनिकों के शव पड़े हुए थे. अगले दिन गुरु गोबिंद सिंह ख़ुद लड़ाई में शामिल हो गए.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">अमरदीप दहिया लिखते हैं, “गुरु अपने मशहूर घोड़े पर सवार थे. उनके घोड़े की ज़ीन सुनहरे तारों से कढ़ी हुई थी. उनका धनुष चमकीले हरे रंग से रंगा हुआ था और उनके साफ़े पर जवाहरातों से जड़ी कलगी सुबह के सूरज में चमक रही थी. गुरु के लड़ाई में भाग लेने से प्रेरित होकर उनके सैनिक भी आगे जाकर मुग़लों से टक्कर ले रहे थे. राजा अजमेर चंद ने लड़ते हुए गुरु को पहचान लिया . तब वज़ीर ख़ाँ और ज़बरदस्त ख़ाँ ने वहीं ऐलान किया कि जो भी गुरु पर वार करेगा उसे बड़ा ईनाम दिया जाएगा.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">दूसरे दिन की लड़ाई की समाप्ति पर किले में दाखिल होने से पहले गुरु और उनके सैनिकों ने भारी तबाही मचाई थी. इसमें सैकड़ों घोड़े और मुगल सैनिक मारे गए थे. राजाओं और मुग़ल सैनिकों के बीच हुई बैठक में दोनों ने एक दूसरे पर पूरी ताकत से न लड़ने का आरोप लगाया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मुग़लों को लग गया कि सिख सैनिकों को हराने का एकमात्र उपाय है कि उनके किलों की घेराबंदी कर उनको बाहरी दुनिया से पूरी तरह काट दिया जाए ताकि अनाज न पहुंचने के कारण भूख से परेशान होकर वो मुग़लों की अधीनता मान लें.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">तय किया गया कि अब गुरु गोबिंद सिंह के सैनिकों पर हमला नहीं किया जाएगा बल्कि उनके किलों को चारों तरफ़ से घेर लिया जाएगा. उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि वो सिख सैनिकों के हथियारों की पहुंच से बाहर रहें. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">किले में अनाज समाप्त हुआ</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">किलों में इतना अनाज मौजूद था कि कुछ दिनों तक इस घेराबंदी का कोई असर नहीं दिखा. इस तरह दिन महीनों में बदलते गए लेकिन मुग़लों ने घेराबंदी में कोई ढील नहीं दी.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मुग़ल सिपहसालारों को अपने सैनिकों को समझाना पड़ा कि वो धीरज रखें. वो दिन दूर नहीं जब सिखों की आपूर्ति समाप्त हो जाएगी और उन्हें हथियार डालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. धीरे-धीरे किलों की रसद समाप्त होने लगी और सिखों को लगने लगा कि कुछ दिनों बाद उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं रहेगा.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">कमांडरों की बैठक में तय हुआ कि सिख सैनिकों का एक जत्था बाहर जाकर मुग़ल सैनिकों के घेरे को तोड़ेगा और जितना अनाज ला सकता है अंदर लाएगा.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">उसी रात बाहर जाने का पहला प्रयास किया गया. मुग़ल सैनिकों को इसकी उम्मीद नहीं था. सिख सैनिक घेराबंदी तोड़ने में सफल हो गए और काफ़ी सारा अनाज किले के अंदर ले आए.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसके बाद के बाहर निकलने के प्रयास कामयाब नहीं हो पाए. मुग़ल सैनिक सावधान हो गए और उनके बाहर निकलने के प्रयासों को सफलता नहीं मिली. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">सुरक्षित निकलने का प्रस्ताव</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">कुछ दिनों बाद किलों के अंदर भुखमरी की नौबत आ गई. उस समय संगत के कुछ सदस्यों ने इस कष्ट से बचने के लिए किले से बाहर निकलने का फ़ैसला किया. गुरु ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मुग़लों ने भी जब देखा कि बाहर निकलने वाले लोगों में अधिकतर महिलाएं, बच्चे और अधेड़ शख़्स थे तो उन्होंने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की ताकि और सिख किले को छोड़कर बाहर आने के लिए प्रेरित हों.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">अजमेर चंद ने गोबिंद सिंह को एक पत्र लिखकर प्रस्ताव भेजा. पत्र में कहा गया कि अगर गुरु गोबिंद सिंह अपने साथियों को साथ आनंदपुर से निकल जाते हैं तो उन्हे जहाँ वो चाहें जाने की अनुमति होगी और वो अपने साथ बिना रोक-टोक अपना सामान ले जा सकेंगे.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु को इस प्रस्ताव में दाल में कुछ काला नज़र आया लेकिन उनकी माँ माता गुजरी ने उन्हें मनाया कि ऐसा कर वो कई लोगों की जान बचा सकते हैं. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">बेकार सामान बाहर भेजा गया</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु ने कहा कि इससे पहले कि 'मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार करूँ, मैं मुग़लों और राजाओं की नेकनियती की परीक्षा लेना चाहता हूँ.'</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">उन्होंने मुग़लों को संदेश भिजवाया कि वो और उसके साथी आनंदपुर से बाहर निकलने के लिए तैयार हैं बशर्ते उनके मूल्यवान सामान को बैलगाड़ियों के काफ़िले में पहले बाहर भेजा जाए.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मुग़लों ने तुरंत संदेश भेजा कि वो इसके लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि अगर ज़रूरत हो तो हम आपको बैलगाड़ियाँ भी भेजने के लिए तैयार हैं.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">अमरदीप दहिया लिखते हैं, “गुरु ने आनंदपुर के लोगों से अपना सारा बेकार सामान जमा करने के लिए कहा. थोड़ी देर में वहाँ पुराने जूतों, फटे पुराने कपड़ों, टूटे बर्तनों और जानवरों की हड्डियों का ढेर लग गया. इन सबको कीमती थैलों में डाल कर बैलगाड़ियों पर लादा गया. हर बैलगाड़ी पर मशाल जलाई गई ताकि लोगों का ध्यान उस पर लदे सामान पर जा सके.” </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">बैलगाड़ियों का काफ़िला अँधेरी रात में किले से निकला. जैसे ही वो मुग़ल सेना की पहुंच के भीतर गए, उन सारे थैलों को लूट लिया गया. रातभर उन पर पहरा बैठा कर रखा गया. सुबह जब उनको खोला गया तो मुग़ल सैनिक ये देखकर दंग रह गए कि उन थैलों में कूड़ा-करकट भरा हुआ था.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इस तरह गुरु गोबिंद सिंह ने राजाओं और मुग़ल सैनिकों के इरादों का भंडा फोड़ दिया. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु के जत्थे पर धोखे से हमला</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">मुग़लों और पहाड़ के राजाओं ने उनसे किए गए वादे का पालन नहीं किया. अंतत: गुरु गोबिंद सिंह को आनंदपुर छोड़ना पड़ा. सिखों का जो पहला जत्था निकला, उसमें महिलाएं, बच्चे, गुरु की माँ और चार बेटे भी शामिल थे.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">वे जब एक छोटी नदी सरसा के किनारे पहुंचे, उन पर मुगल सैनिकों ने हमला बोल दिया. इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह के सबसे सक्षम कमांडर उदय सिंह मारे गए. लेकिन उन्होंने तब तक मुग़लों का रास्ता रोक कर रखा जब तक गुरु गोबिंद सिंह वहां से सुरक्षित नहीं निकल गए.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पतवंत सिंह लिखते हैं, “इस लड़ाई में कई लोग मारे गए और कई लोग नदी के किनारे पहुंचने पर अपनों से बिछुड़ गए. इनमें शामिल थे गुरु गोबिंद सिंह की माँ और उनके दो छोटे बेटे ज़ोरावर सिंह और फ़तह सिंह.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु गोबिंद सिंह के अपने सैनिकों की संख्या 500 से घट कर सिर्फ़ 40 रह गई. वो इन सैनिकों और अपने दो बेटों के साथ चमकौर पहुंचने में सफल हो गए. मुग़ल सैनिक अभी भी उनके पीछे पड़े हुए थे.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">यहाँ हुई लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह के 40 सैनिकों ने अपने से संख्या में कहीं अधिक मुग़ल सैनिकों का बहादुरी से सामना किया. लेकिन इस लड़ाई में उनके दो बचे हुए बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह और ‘पंजप्यारे’ में शामिल मोहकम सिंह और हिम्मत सिंह मारे गए.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">चमकौर से बच निकलने के बाद गुरु अपने साथियों से बिछुड़ गए और मच्छीवाड़ा जंगलों में बिल्कुल अकेले हो गए. लेकिन कुछ देर बाद उनके तीन बिछड़े साथी उनसे आ मिले. ये चारों कुछ स्थानीय सिखों की मदद से किसी तरह उस स्थान से निकल पाने में कामयाब रहे.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">आख़िर में वो जटपुरा गाँव पहुंचे जहाँ उस इलाके के मुस्लिम सरदार राय काल्हा ने उनका स्वागत किया. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे बेटों की भी मौत</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">यहीं पर गोबिंद सिंह को अपने दो छोटे बेटों ज़ोरावर सिंह और फ़तह सिंह के मारे जाने की ख़बर मिली.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">सिख दस्तावेज़ों के अनुसार उनके नौकर ने उनकी मुख़बरी कर दी थी. सरहिंद के गवर्नर वज़ीर ख़ाँ ने उनको मारने का आदेश दिया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पतवंत सिंह लिखते हैं, “वज़ीर ख़ाँ ने गुरु गोबिंद सिंह के दोनों बेटों से कहा कि अगर वो इस्लाम धर्म क़बूल कर लें तो उनकी जान बख्शी जा सकती है. उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया. तब वज़ीर ख़ाँ ने उन्हें ज़िंदा दीवार में चिनवा देने का आदेश दिया. तब उनकी उम्र आठ साल और छह साल थी.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">जब उनका सिर और कंधा चिनने से रह गया तब उनसे एक बार फिर धर्म बदलने के बारे में पूछा गया. इस बार भी इनकार करने के बाद उन्हें दीवार से निकाल कर वज़ीर ख़ाँ के सामने पेश किया गया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">वज़ीर ख़ाँ ने उन्हें तलवार से मारे जाने का आदेश दे दिया. उनकी मौत की खबर सुनते ही साहबज़ादों की दादी माता गुजरी ने सदमे से दम तोड़ दिया. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">औरंगज़ेब के बेटे की मदद की</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">नाभा में रहते हुए गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगज़ेब को फ़ारसी में एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने धोखे से हमला किए जाने के लिए औरंगज़ेब को दोषी ठहराया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">जब औरंगज़ेब को अहमदनगर में गुरु गोबिंद सिंह का लिखा पत्र मिला तो उसने अपने दो अफ़सरों को लाहौर के डिप्टी-गवर्नर मुनीम ख़ाँ के पास भेजकर कहलवाया कि वो गुरु गोबिंद सिंह के साथ समझौता कर लें.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">एक समय ऐसा भी आया कि गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगज़ेब से मिलने का फ़ैसला किया. लेकिन वो अभी राजपूताना ही पहुंचे थे कि उन्हें औरंगज़ेब की मौत का समाचार मिला.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि औरंगज़ेब की मौत के बाद हुई उत्तराधिकार की लड़ाई में उसके पुत्र शहज़ादा मुअज़्ज़म ने अपने भाइयों के ख़िलाफ़ लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह की मदद माँगी.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु ने कुलदीपक सिंह के नेतृत्व में मुअज़्ज़म के भाई आज़म से लड़ने के लिए सिख लड़ाकों का एक जत्था भेजा. जून, 1707 में आगरा के पास जजाऊ में हुई लड़ाई में आज़म मारा गया और मुअज़्ज़म मुगलों की गद्दी पर बैठा. गद्दी पर बैठने के बाद मुअज्ज़म ने अपना नाम बदल कर बादशाह बहादुर शाह रख लिया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">जब वो अपने दूसरे भाई कामबख़्श के विद्रोह को दबाने दक्षिण गया, तब गुरु और उनके कुछ साथियों ने भी दक्षिण का रुख़ किया. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">गुरु गोबिंद सिंह की हत्या</span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">अपने जीवन के अंतिम पड़ाव मे गुरु गोबिंद सिंह गोदावरी नदी के किनारे बसे शहर नांदेड़ में थे. उनके सुरक्षाकर्मियों को आदेश थे कि उनसे मिलने आने वाले किसी व्यक्ति को रोका न जाए.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">खुशवंत सिंह लिखते हैं- “20 सितंबर 1708 की शाम जब वो प्रार्थना के बाद अपने बिस्तर पर आराम कर रहे थे, दो युवा पठानों अताउल्ला ख़ाँ और जमशेद ख़ाँ ने उनके तंबू मे प्रवेश किया. गुरु को अकेला पाकर दोनों ने उनके पेट पर छुरे से वार किया. उन दोनों को वज़ीर ख़ाँ ने भेजा था. गुरु को मारने के उद्देश्य का कभी पता नहीं चल पाया क्योंकि दिल के पास छुरा भोंके जाने के बावजूद गुरु गोबिंद सिंह ने एक हत्यारे को तो वहीं मार डाला. दूसरे हत्यारे को भी उनके साथियों ने ज़िंदा नहीं छोड़ा.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">गुरु के ज़ख़्म पर उनके एक साथी अमर सिंह ने टाँके लगाए लेकिन कुछ दिनों बाद उनके टाँके खुल गए. जब बादशाह बहादुर शाह को गोबिंद सिंह पर हमले की ख़बर मिली तो उन्होंने अपने इटालियन चिकित्सक निकोलाओ मनूची को उपचार के लिए भेजा.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">लेकिन 6 अक्तूबर आते-आते गुरु को लग गया कि उनका अंत निकट है. उन्होंने अपने अनुयायियों की सभा बुलाकर ऐलान किया कि उनके बाद कोई व्यक्ति गुरु नहीं होगा और सारे सिख गुरु ग्रंथ साहब को गुरु मानेंगे. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">सर्बप्रीत सिंह अपनी किताब ‘द स्टोरी ऑफ़ द सिख्स’ में लिखते हैं, “गुरु ने दमदमा साहब में तैयार किए गुरु ग्रंथ साहब को खोलने के लिए कहा. उन्होंने उनके सामने सिर झुकाया और पाँच पैसे और एक नारियल प्रसाद के तौर पर रखे. उन्होंने चार बार गुरुग्रंथ साहब का चक्कर लगाया और फिर उनके सम्मान में अपना सिर ज़मीन पर झुका दिया.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">वहीं पर उन्होंने घोषणा की, “आज्ञा भई अकाल की, तभी चलाया पंथ, सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ.”</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">7 अक्तूबर 1708</span></span><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"> को आधी रात के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने सिर्फ़ 42 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">Compiled: Legend News</span>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-52663282729838079802023-09-26T02:25:00.003-07:002023-09-26T02:29:10.140-07:00NEET-PG के क्वालीफाइंग परसेंटाइल जीरो करने पर क्यों मचा है बवाल, ये है पूरा मामला<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYYnKCkMk8rNuRLDL7t9_0eXOVaZPyrxnBY6_teJF2uMzra34CnEAGnGJCoJ3cDSh9DL7p6VfNVmvyX4v9tTIqYJuO0Bdg9IhR9W4lPylbf0Q1QAddD8wRmlBy5oYTNOhQe4R2nX_IKXmmJSWyFhwKNxcRrYBZahAOAKXw2vOt4dvxLOk4K1BE4AxHz_Pn/s585/qualifying-percentile-of-NE.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYYnKCkMk8rNuRLDL7t9_0eXOVaZPyrxnBY6_teJF2uMzra34CnEAGnGJCoJ3cDSh9DL7p6VfNVmvyX4v9tTIqYJuO0Bdg9IhR9W4lPylbf0Q1QAddD8wRmlBy5oYTNOhQe4R2nX_IKXmmJSWyFhwKNxcRrYBZahAOAKXw2vOt4dvxLOk4K1BE4AxHz_Pn/w400-h210/qualifying-percentile-of-NE.jpg" width="400" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">विपक्ष से लेकर स्वयं मेडीकल लाइन के जानकारों के बीच बहस का मुद्दा बन गया है NEET-PG के क्वालीफाइंग परसेंटाइल को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 'जीरो' कर देना.</span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">मगर इसके पीछे की वजह जो मुझे समझ में आई है वह यह है कि देशभर के सरकारी और प्राइवेट मेडीकल कॉलेजों में पीजी स्तर की लगभग 13 हजार से ज्यादा खाली पड़ी सीटों को भरा जा सके. क्योंकि सिर्फ एक सीट पर सरकार की ओर से 3 करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं और 13 हजार सीटों का मतलब है एक पूरी की मिनिस्ट्री खड़ी कर देना. तो इस भारी नुकसान को बचाने के लिए परसेंटाइल को जीरो कर दिया गया. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">NEET-PG के क्वालीफाइंग परसेंटाइल जीरो करने का मतलब है, जिस भी बच्चे ने NEET-PG एग्जाम दिया, इसमें वे भी शामिल हैं, जिन्होंने 0 नंबर पाए या निगेटिव मार्क्स आए, वे काउंसलिंग के लिए एलिजिबल माने जाएंगे. इस फैसले का रिजल्ट ये रहा कि 0 नंबर वाले 14 स्टूडेंट्स, निगेटिव स्कोर वाले 13 और 1 स्टूडेंट -40 स्कोर वाला भी NEET PG के लिए क्वालीफाई माना जाएगा.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">NEET-PG नेशनल लेवल का एंट्रेंस टेस्ट है. इस टेस्ट के जरिए देश भर में PG मेडिकल सीटों पर दाखिला दिया जाता है. एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए मेडिकल काउंसिल कमेटी ने कहा, इस साल अब तक बची खाली PG सीटों के लिए एलिजिबिलिटी जीरो परसेंटाइल कर दी जाएगी. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ऐसी छूट क्यों देनी पड़ी </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक काउंसलिंग के दो राउंड हो जाने के बाद तक भी मेडिकल कॉलेजों में PG की करीब 13 हजार सीटें खाली रह गईं. यह पहली बार है जब एलिजिबिलिटी कट-ऑफ को पूरी तरह से हटा दिया गया है ताकि सीटें भरी जा सकें. एक सीट पर तीन करोड़ खर्च करने वाली सराकर के लिए यह काफी नुकसानदेह था कि 13,245 खाली रह गई सीटों को हर हाल में भरा जाए.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कौन दे सकता है NEET PG एग्जाम</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">NEET PG एग्जाम वे कैंडिडेट्स देते हैं तो MBBS कर चुके हैं. ये कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट होता है. इसमें मल्टीपल चॉइस के सवाल आते हैं, जिसमें मेडिकल सब्जेक्ट्स के टॉपिक कवर किए जाते हैं. इस परीक्षा के जरिए रैंक, परसेंटाइल, कैंडिडेट की एलिजिबलिटी और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स और इंस्टीट्यूट में प्रिफ्रेंस तय किया जाता है. इसी के जरिए ये कय किया जाता है कि कैंडिडेट मेडिकल स्टडीज के लिए सभी एजुकेशनल दायरों को पूरा करता हो.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्या है परसेंटाइल- </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">परसेंटाइल एक स्टेटिस्टिकल Measure है जिसके जरिए आप ये तुलना कर सकते हैं कि कॉम्पटिशन में आपने कितनों से बेहतर किया. उदाहरण से समझिए. एक अंग्रेजी का टेस्ट हुआ. इस टेस्ट में आपका परसेंटाइल ये बताएगा कि कितने लोगों ने आपसे कम और ज्यादा स्कोर किया है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">पेपर में हिस्सा लेने वालों टेस्ट स्कोर इकट्ठा किए और उन्हें एक ऑर्डर में lowest to highest रखा, मान लेते हैं पेपर में कुल 100 स्कोर पाए. यदि आपको 80 नंबर मिले, तो इसका मतलब है कि परीक्षा देने वाले 80 लोगों ने आपसे कम नंबर पाए. ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने 100 में से 80 लोगों से बेहतर प्रदर्शन किया. यदि आप 90वें परसेंटाइल में हैं, तो आपने 100 में से 90 लोगों से बेहतर प्रदर्शन किया. यदि आप 50वें परसेंटाइल में हैं, तो आपने आधे लोगों (100 में से 50) के बराबर ही अच्छा प्रदर्शन किया है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दूसरे राउंड की काउंसलिंंग के बाद भी 13,245 खाली रह गईं</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />NEET-PG काउंसलिंग सेशन जुलाई में हुआ, MCC ने इसके लिए कट-ऑफ परसेंटाइल 50 सेट की. कुल 800 नंबरों में से 582 पाने वाले को 100th परसेंटाइल दिया गया. इस मुताबिक सीटें भरी जानें लगीं और दूसरे राउंड के बाद 13,245 खाली रह गईं. इन मेडिकल कॉलेजों में सबसे बड़ी तादाद में खाली सीटों की संख्या All-India quota के तहत रही, जो कि 3000 थी. ये सीटें DNB डॉक्टर्स के लिए थी.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">मेडिकल में मास्टर्स डिग्री करने के लिए तीन कोर्स हैं. MD (Doctor of Medicine), MS (Master of Surgery), DNB (Diplomate of National Board) हैं. DNB भी पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल क्वालीफिकेशन है जो NBE की ओर से भारत में ऑफर की जाती है. ये डिग्री MD, MS के बराबर मानी जाती है. इसके लिए जरिए मेडिकल और सर्जिकल में अलग अलग स्पेशलाइजेन मिलता है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">एक एमबीबीएस सीट के लिए सरकार 3 करोड़ रुपये करती है खर्च </span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">शासकीय मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीट पर दाखिला लेने वाले एक छात्र को डॉक्टर बनाने में सरकार तीन करोड़ रुपये खर्च करती है. इसमें डॉक्टर/प्रोफेसर का वेतन, कॉलेज का इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर प्रयोगशाला, हॉस्टल और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) में मान्यता के आवेदन का खर्च शामिल है. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इस परेशानी के मद्देनजर <span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">इंडियन मेडिकल एसोसिएशन</span> समेत सभी <span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मेडिकल एसोसिशएंस</span> ने हेल्थ मिनिस्ट्री से परसेंटाइल कट-ऑफ को 20 तक कम करने की अपील की थी. </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इसके जवाब ने MCC ने मांगे गए नंबर तक परसेंटाइल घटाने की बजाय उसे जीरो (0) तक घटा दिया. 0 परसेंटाइल का मतलब है, जिस भी बच्चे ने NEET-PG एग्जाम दिया, इसमें वे भी शामिल हैं, जिन्होंने 0 नंबर पाए या निगेटिव मार्क्स आए, वे काउंसलिंग के लिए एलिजिबल माने जाएंगे. इस फैसले का रिजल्ट ये रहा कि 0 नंबर वाले 14 स्टूडेंट्स, निगेटिव स्कोर वाले 13 और 1 स्टूडेंट -40 स्कोर वाला भी NEET PG के लिए क्वालीफाई माना जाएगा.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इसका मतलब सीधा है कि अगर आपने नीट पीजी में अप्लाई किया है, अपीयर हुए हैं या अगर आप उस परीक्षा में केवल बैठे भी हैं तो भी आप उस सीट के दावेदार हैं. अगर कॉलेज में सीट है तो आप उस सीट के लिए आवेदन कर सकते हैं. अभी तक दो राउंड की काउंसलिंग हो चुकी है और तीसरे राउंड की काउंसलिंग शुरू होगी, जिसमें स्टूडेंट्स अपनी चॉइस भरेंगे और वो इन छह से सात हजार मेडिकल सीटों के लिए अप्लाई कर सकेंगे.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">IMA ने बयान जारी किया</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">केंद्र सरकार की ओर से यह पत्र राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (NBE) को भी भेजा गया था. ये NEET PG द्वारा आयोजित किया जाता रहा है. इसके साथ ही मंत्रालय के चिकित्सा परामर्श प्रभाग और सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों (स्वास्थ्य) को भेजा गया था. इस आदेश के जवाब में आईएमए ने एक बयान जारी कर स्वास्थ्य मंत्री का आभार किया गया है. उन्होंने कहा कि उसने सरकार से ऐसा करने का अनुरोध किया था. बीते वर्ष काउंसलिंग के आखिरी दौर के लिए क्वालीफाइंग परसेंटाइल को घटाकर 30 करा गया था. उस वक्त लगभग 4 हजार सीटें खाली हो गई थीं. सरकार के इस कदम के जरिए स्ट्रीम में पीजी सीटें भरने का लक्ष्य रखा है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- अलकनंदा सिंंह </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; margin: 0px 0px 10px;"><span style="color: #444444; font-family: Open Sans, serif;"><span style="font-size: 16px;"><a href="https://www.legendnews.in/single-post?s=why-is-there-an-uproar-over-reducing-the-qualifying-percentile-of-neet-pg-to-zero-understand-the-complete-mathematics--12352">https://www.legendnews.in/single-post?s=why-is-there-an-uproar-over-reducing-the-qualifying-percentile-of-neet-pg-to-zero-understand-the-complete-mathematics--12352</a></span></span></p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-38407909075158026372023-09-22T02:29:00.000-07:002023-09-22T02:29:00.642-07:00'ऋग्वेद' का 'नासदीय सूक्त' देता है ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर हर सवाल का जवाब<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4xVb-kknEHI0G2mHUJuZrDFfLuSl_KpnoCj9ae-VOqLU1HqqwIxbJb4QbPxZ1KkdMDMvU93f1L_cSsj0s_hhRAmzelB2ms52j3iybE_iI2eUGU-h8pKfcWYjcs9rSi0p9ZZ1CyYLLdT6ObpE-O32botOCkcLwdN8cB6Ekz4ddGTXMqCa7euVFMBTnuGhK/s585/2870Rigveda.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4xVb-kknEHI0G2mHUJuZrDFfLuSl_KpnoCj9ae-VOqLU1HqqwIxbJb4QbPxZ1KkdMDMvU93f1L_cSsj0s_hhRAmzelB2ms52j3iybE_iI2eUGU-h8pKfcWYjcs9rSi0p9ZZ1CyYLLdT6ObpE-O32botOCkcLwdN8cB6Ekz4ddGTXMqCa7euVFMBTnuGhK/w400-h210/2870Rigveda.jpg" width="400" /></a></div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">हम सभी के मन में कभी न कभी ये सवाल जरूर आया होगा कि आखिर इस ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई। जब स्टीफन हॉकिंग की ब्रह्मांड के जन्म को लेकर 'बिग बैंग' थ्योरी आई थी तो लोगों की इस विषय के बारे में जानने की उत्सुकता और बढ़ गई, लेकिन साथ ही साथ इस बात को लेकर बहस भी छिड़ गई कि ब्रह्मांड के निर्माण को लेकर दी गई इस वैज्ञानिक व्याख्या से बहुत पहले ही वेद इससे जुड़े कई तथ्य बताये जा चुके हैं जो बिग बैंग थ्योरी के काफी करीब हैं। बिग बैंग थ्योरी में इस बात की व्याख्या करने की कोशिश की गई है कि किस प्रकार करीब 15 अरब साल पहले इस ब्रह्मांड की रचना हुई थी। ऋग्वेद में काफी दिलचस्प तरीके से ब्रह्मांड की रचना की प्रक्रिया बताई गई है। </span><p></p><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"> ब्रह्मांड बनने से पहले की स्थिति कैसी थी </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">ब्रह्मांड के निर्माण को लेकर अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग व्याख्या की गई है। सनातन धर्म में 'ऋग्वेद' का 'नासदीय सूक्त' ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर कई आश्चर्यजनक व्याख्या करता है। </span><div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><br /></span></div><div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसमें बताया गया है कि ब्रह्मांड बनने से पहले की स्थिति कैसी थी, फिर ब्रह्मांड बनने की शुरुआत कैसे हुई और कैसे इसका विस्तार होता चला गया। यह बेहद दिलचस्प और सोचने वाली बात है कि आज जब विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है, तब भी वह बड़ी मुश्किल से ब्रह्मांड की संरचना को लेकर कुछ ही मुद्दों पर बात कर सकता है जबकि सनातन धर्म में इसकी चर्चा हजारों साल पहले की जा चुकी है। </span></div><div><span style="background-color: white; font-size: 16px;"><span style="color: #444444; font-family: Open Sans, serif;"><br /></span></span></div><div><span style="background-color: white; font-size: 16px;"><span style="color: red; font-family: Open Sans, serif;"><i><b>नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मण्डल का 129 वां सूक्त है। 'नासद्' (= न + असद् ) से आरम्भ होने के कारण इसे 'नासदीय सूक्त' कहा जाता है। इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है। विद्वानों का विचार है कि इस सूक्त में भारतीय तर्कशास्त्र के बीज छिपे हैं।</b></i></span></span></div><div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><br /></span></div><div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">सोचने की बात यह भी है कि आविष्कार के बिना महर्षियों ने आखिर कैसे इस बात को समझा होगा, जाना होगा और इसे पुख्ता किया होगा।</span></div><div><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></span><div><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ब्रह्मांड के रहस्यों से जुड़े सवालों के जवाब मिलते हैं </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">ऋग्वेद के 'नासदीय सूक्त' में ब्रह्मांड से जुड़ी सारी जानकारियां सूक्ति के माध्यम बताई गई हैं लेकिन इन सूक्तियों का अर्थ स्पष्ट और सरल नहीं है इसलिए आम लोगों के लिए इसे समझना मुश्किल है। हालांकि कई जानकारों द्वारा इन सूक्तियों की व्याख्या सरल शब्दों में की गई है ताकि इससे मिली जानकारी वैज्ञानिक शोधों में इस्तेमाल की जा सके। नासदीय सूक्त में सात ऐसे मंत्र या सूक्ति बताये गये हैं जिसके माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों से जुड़े सवालों के जवाब मिलते हैं। </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></span></div><div><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ब्रह्मांड की रचना से पहले न तो अंतरिक्ष था, न समय </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">पहले सूक्त के अनुसार ब्रह्मांड की रचना से पहले ना तो 'सत् (जो है)' था, ना ही 'असत् (जो नहीं है)' था; ना ही आकाश था, ना ही पृथ्वी थी और ना ही पाताल लोक था। यानि ब्रह्मांड की रचना से पहले न तो अंतरिक्ष था, न समय और न ही कोई भौतिक पदार्थ। केवल शून्य और अंधकार था। बिग बैंग थ्योरी के अनुसार भी अंतरिक्ष पहले से मौजूद नहीं था बल्कि इसकी रचना बहुत ही अजीबोगरीब स्थिति में हुई है। उनके अनुसार इसकी शुरुआत सबसे पहले ब्लैक होल के केंद्र भाग में मौजूद ‘विलक्षणता’ (सिंगुलैरिटी) से हुई होगी, जहाँ एक अनंत घनत्व वाला सूक्ष्म बिंदु आया और उसमें विस्फोट हुआ। यही घटना 'बिग बैंग' कहलाई। उस विस्फोट से न केवल 'द्रव्य-पदार्थ' का निर्माण हुआ बल्कि 'अंतरिक्ष' और 'समय' की भी रचना हुई। वेद के अनुसार ब्रह्मांड के निर्माण के समय जो 'नाद' अर्थात् 'ध्वनि' उत्पन्न हुई थी, वह था 'अम्भास' और बिग बैंग के अनुसार वह ध्वनि 'ऊँ' से मिलती-जुलती थी। </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></span></div><div><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">जल के समान हर ओर अंधकार था </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">दूसरे सूक्त के अनुसार उस समय न तो 'मृत्यु' थी और न ही अमरता। दिन-रात का भी नामो-निशान नहीं था। जल के समान हर ओर अंधकार था। केवल एक ऊर्जा अस्तित्व में थी, जिसमें वायु की अनुपस्थिति थी। उन्होंने इस ऊर्जा के स्रोत को 'परम तत्व' कहा और यह भी बताया कि इसी ऊर्जा से ब्रह्मांड में अन्य चीजों का जन्म हुआ है, केवल प्राण को छोड़कर। इस परम तत्व से बाकी चीजें ऐसे बाहर निकलकर आईं, जैसे फेफड़े से एक झोंके के रूप में हवा बाहर निकलकर आती है। वेद में बताये गये ऊर्जा के स्रोत 'परम तत्व' की व्याख्या जैसी ही व्याख्या भी बिग बैंग थ्योरी करता है। उनका भी मानना है कि जब अंतरिक्ष की रचना हुई थी, तो वह बहुत गर्म था और आज जो चार मूलभूत बल ( गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत चुम्बकीय बल, न्यूक्लियर फोर्स और वीक इनटेरेक्शन फोर्स) काम करते हैं, उस समय वे सब मिलकर एक थे। जैसे-जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, ये सारे बल अलग होते चले गये। उनका मानना है कि आज जो भी चीजें मौजूद हैं, उन सबकी उत्पत्ति ब्रह्मांड से ही हुई है, जिसे वेद ने 'परम तत्व' कहा है। वेद में दिन और रात नहीं होने की बात भी प्रमाणित होती है क्योंकि उस वक्त सूर्य और चंद्रमा का निर्माण नहीं हुआ था, तो दिन और रात होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></span></div><div><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">ब्रह्मांड में पहले केवल अंधेरा था </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">घटना को समझना असंभव था। पहले एक लहराता द्रव्य अस्तित्व में आया, जिसे 'सलिल' कहा गया और उसके आसपास एक हल्का पदार्थ फैला था जिसे 'अभु' कहा गया। उनके अनुसार वह शायद ऊष्मा से विकसित हो गया था। वेद में यहाँ तारों और आकाशगंगा के निर्माण की बात कही जा रही है। बिग बैंग थ्योरी के अनुसार भी शुरुआती के कुछ लाख वर्ष तक 'पदार्थों' और 'ऊर्जाओं' का निर्माण होता रहा, इसी प्रक्रिया को ऋषियों ने रहस्यमयी घटना कहा था। उन वर्षों में 'फोटॉन', 'इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन' से टकराता रहा और उसने एक अपारदर्शी द्रव्य का निर्माण किया। लगभग एक लाख वर्ष बाद जब ब्रह्मांड का तापमान कम हुआ, तो प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन ने मिलकर हाईड्रोजन परमाणु का निर्माण किया। हाईड्रोजन पारदर्शी होता है, जिसने उस सैकडों सालों से बन रहे उन अपारदर्शी द्रव्यों को पारदर्शी किया जिसे हम आज अंतरिक्ष कहते हैं। बाद में धीरे-धीरे आकाशगंगा और तारों का निर्माण होना भी शुरु हुआ। </span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></span></div><div><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">उस समय ब्रह्मांड में कोई दिशा नहीं थी </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">आगे की सूक्तियों में ऋषि यह बताते नजर आते हैं कि कैसे अंतरिक्ष में छोटे-बड़े 'गेलेक्सीज' का निर्माण हुआ। इन गेलेक्सीज में काफी मात्रा में गैस और धूल थी, जिससे 'ग्रहों', 'उपग्रहों' और 'उल्का पिंडों' का निर्माण हुआ। इस सिद्धांत के लिए सूक्त में 'स्वध' और 'प्रयति' शब्द का इस्तेमाल हुआ है। वो दिशाओं के बारे में भी बताते हैं कि उस समय ब्रह्मांड में कोई दिशा नहीं थी। ऊपर किसे कहें या नीचे किसे कहें, या तिरछा किस तरफ है, कहा नहीं जा सकता था। बाद की सूक्तियों में वह यह सवाल करते नजर आते हैं कि यह बताना बहुत मुश्किल है कि सबकुछ की रचना कैसे हुई। कोई नहीं जानता कि जीवन और जीव की शुरुआत कैसे हुई? कोई नहीं बता सकता कि ईश्वर के सहयोग से सबकुछ अस्तित्व में आया या नहीं? कोई नहीं जानता कि इस ब्रह्मांड का सर्वेसर्वा कौन है? ऋषि अनुमान लगाते हुए कहते हैं कि शायद केवल उच्च शक्ति ही है, जो बता सकती है कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई या फिर क्या पता उस उच्च शक्ति के ऊपर भी कोई शक्ति हो।</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"><br /></span></span></div><div><span style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: blue; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नासदीय सूक्त में रिसर्च से जुड़े सवालों के जवाब पहले से मौजूद थे </span></span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">खैर, बिंग बैंग थ्योरी भी ब्रह्मांड के केवल शुरुआती प्रक्रिया की व्याख्या करता है और वह भी आगे कहीं बन कहीं पहेली बनकर रह जाता है या ईश्वर जैसे शब्दों से जुड़ जाता है। उसके पास भी सारे सवालों के जवाब नहीं हैं। लेकिन भले ही आज आधुनिक शोधकर्ता, ब्रह्मांड के आगे के सवालों के जवाब ढूंढ रहे हों, वो इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि 'नासदीय सूक्ति' में उनकी शुरुआत के रिसर्च से जुड़े सवालों के जवाब पहले से मौजूद थे। </span></div></div>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-70957073137006597342023-09-16T06:15:00.004-07:002023-09-16T06:15:24.300-07:00जानिए नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के बारे में , कैसे होगा आमजन को फायदा<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2EGUEtZ1qC1cl-pq-F8ME6n_8AEzyts3TPcDvWla8d2w3K6r3tQozRQtGHaPZ5XF8HjOs23GNRlDuE7_7gMKIE4zXuj8l37jL6iuuJosPym2sW-Ur16Lb-_z5LopOxHd_ooinSI7A_DyqNplGw4o5EU1EwpWfisq5DVzQA1aUb4xekJd-oBpAml0x2tmg/s585/NJDG.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2EGUEtZ1qC1cl-pq-F8ME6n_8AEzyts3TPcDvWla8d2w3K6r3tQozRQtGHaPZ5XF8HjOs23GNRlDuE7_7gMKIE4zXuj8l37jL6iuuJosPym2sW-Ur16Lb-_z5LopOxHd_ooinSI7A_DyqNplGw4o5EU1EwpWfisq5DVzQA1aUb4xekJd-oBpAml0x2tmg/w400-h210/NJDG.jpg" width="400" /></a></div><br /> नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड से सुप्रीम कोर्ट के जुड़ जाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित मामलों से लेकर अदालत के आदेश और मुकदमे की तारीख तक पता चल सकेगी. यूं तो अब तक इससे देशभर की जिला अदालतें और हाइकोर्ट जुड़े थे परंतु अब इससे सुप्रीम कोर्ट भी जुड़ गया है. <p></p><p>नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड (NJDG) यानी राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड ने अपना पहला और महत्वपूर्ण चरण पूरा कर लिया है.</p><p>इस समय देश की 18735 से ज्यादा अदालतें इससे जुड़ चुकी हैं. मतलब, कोई भी व्यक्ति अब अदालतों की पेंडेंसी जान सकता है. अपने मुकदमों के फैसले आदि भी देखे जा सकते हैं. इस तरह यह कहा जा सकता है कि अब तक परदे के पीछे छिपी न्यायिक व्यवस्था में भी एक ऐसा पारदर्शी सिस्टम लागू हो गया है जी आमजन को संतोष प्रदान करेगा.</p><p><span style="color: red;"><b>कैसे मिलेगा नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड का फायदा</b></span></p><p>NJDG के लागू करने से पूरी न्यायिक व्यवस्था ऑनलाइन हो गई है. अब कोई भी व्यक्ति यह जान सकता है कि देश में कितने मुकदमे लंबित हैं. वह यह भी जान सकता है कि उसके मुकदमे में क्या फैसला आया या सुनवाई के दौरान अदालत ने क्या आदेश किया है? अगली तारीख क्या पड़ी है? इसकी शुरुआत कई साल पहले हुई थी. धीरे-धीरे प्रोजेक्ट आगे बढ़ता गया और अब अपने अंतिम मुकाम तक पहुंच गया, मतलब सुप्रीम कोर्ट भी इसके दायरे में आ गया.</p><p><b><span style="color: red;">रूटीन के ऑर्डर का भी मिलेगा अपडेट</span></b></p><p>चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ के इस फैसले की पीएम नरेंद्र मोदी ने भी सराहना की है. कल्पना यह है कि अदालती फैसले, रूटीन के ऑर्डर भी रोज के आधार पर यहां अपडेट हों. ऐसा हो भी रहा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि जहां कहीं चूक हो रही होगी, वहां भी चीजें रफ्तार पकड़ लेंगी. क्योंकि अब किसी भी जज के लिए यह छिपाना मुश्किल होगा कि उसके मुकदमे में क्या चल रहा है? अब इसे सिस्टम के अंदर बैठा कोई भी पर्यवेक्षक देख सकेगा.</p><p><b><span style="color: red;">देश में कितनी अदालतों की जरूरत, यह पता चलेगा</span></b></p><p>इसके लागू होने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अदालतों को मैप करते हुए असल में पता करना आसान हो जाएगा कि देश में असल में कितनी अदालतों की जरूरत है. मतलब जब भी केंद्र एवं राज्य सरकारें नीतिगत निर्णय लेना चाहेंगी तो उन्हें मदद मिलेगी. विश्व बैंक ने इसके शुरुआती दिनों में ही भारत के इस प्रोजेक्ट की सराहना की है. जमीन के विवाद देश में बड़ी समस्या हैं. इनके निस्तारण में काफी वक्त लगता है.</p><p><b><span style="color: red;">4.44 करोड़ से ज्यादा मुकदमे पेंडिंग</span></b></p><p>उन्होंने कहा, NJDG से जुड़ी वेबसाइट के माध्यम से मैं देख पा रहा हूं कि देश में इस समय 4.44 करोड़ से ज्यादा कुल मुकदमे विभिन्न अदालतों में लंबित हैं. इनमें सिविल के 1.10 करोड़ केस सिविल मामलों के तथा 3.33 करोड़ केस क्रिमिनल के हैं. यही वेबसाइट बता रही है कि बीते एक साल में 2.75 करोड़ मामले अदालतों में बीते एक साल से पेंडिंग हैं. इनमें दो करोड़ से ज्यादा क्रिमिनल और 66 लाख से ज्यादा सिविल केस हैं. 98771 मामले 30 साल से ज्यादा समय से पेंडिंग हैं. पांच लाख से ज्यादा मामले 20 से 30 साल से पेंडिंग हैं. वेबसाइट में जितना खोजते जाएंगे तो यहां छोटी से छोटी जानकारी मिलेगी.</p><p><br /></p><p><br /></p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-34593463802919910312023-09-02T03:49:00.004-07:002023-09-02T03:49:45.136-07:00जानिए दुनिया की लाइब्रेरियों के बारे में...गोरखपुर में भी बन रही है देश की सबसे बड़ी लाइब्रेरी <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLtHoX5vxsnrOWefmo8n-dpD00Qis-SqEjD0lk1QA8SPP4gjCB6uwaNbKE2HZAgxHpOSgTeMTQc4GwU3uzlfUIp-j0XrJCJAZr1Lw_hy2ZhC9VHMJkYr7zNrhyZNEyY-H1gp3EMlSIepcjU4S92XakYOUE0L9bIjRUhN8Q8ygjRODfhVOwLQOiFEamxJ8o/s585/8945spiritual-library.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLtHoX5vxsnrOWefmo8n-dpD00Qis-SqEjD0lk1QA8SPP4gjCB6uwaNbKE2HZAgxHpOSgTeMTQc4GwU3uzlfUIp-j0XrJCJAZr1Lw_hy2ZhC9VHMJkYr7zNrhyZNEyY-H1gp3EMlSIepcjU4S92XakYOUE0L9bIjRUhN8Q8ygjRODfhVOwLQOiFEamxJ8o/w400-h210/8945spiritual-library.jpg" width="400" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">प्राचीन समय में भारत से काफी दूर एक देश हुआ करता था असीरिया। करीब 5000 साल पहले वहां का अंतिम राजा था अशुरबनीपाल, जो दुनिया का सबसे ताकतवर राजा माना जाता था।</span><p></p><div class="post--item post--single post--title-largest pd--30-0" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #777777; font-family: Mukta, sans-serif; font-size: 14px; padding: 30px 0px; position: relative; z-index: 0;"><div class="post--content" style="box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; line-height: 2; margin-top: 14px;"><p style="box-sizing: border-box; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box;">कहते हैं कि उसका साम्राज्य बेबीलोन, असीरिया, पर्सिया और इजिप्ट तक फैला हुआ था। वह जानता था कि अगर दुनिया पर राज करना है तो किताबों और कला को जानना जरूरी है।<br style="box-sizing: border-box;" />उसने दुनिया के तमाम हिस्सों से किताबें मंगवाईं और एक बड़ी लाइब्रेरी बनवाई, जहां इन किताबों को सहेजा गया। इस लाइब्रेरी में प्राचीन मेसोपोटामिया की सभ्यता और इतिहास के अलावा रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, गणित और अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ीं किताबें थीं।<br style="box-sizing: border-box;" />दुनिया जीतने का सपना संजोने वाले अलेक्जेंडर द ग्रेट ने भी नील नदी के किनारे अलेक्जेंड्रिया में काफी बड़ी लाइब्रेरी बनवाई थी।<br style="box-sizing: border-box;" />भारत पर 200 सालों से ज्यादा समय तक राज करने वाले अंग्रेज भी लाइब्रेरी की अहमियत जानते थे। तभी तो 1835 में ब्रिटिश संसद में भारत में अंग्रेजी शिक्षा की वकालत करने वाले लॉर्ड मैकाले ने भारत के ज्ञान-विज्ञान की खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की अलमारी में भारत और अरब का संपूर्ण देशी साहित्य समा सकता है।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">जब भी कहीं जाते, 60 ऊंटों पर लादकर किताबें लेकर जाते</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />10वीं सदी की बात है, जब ईरान में साहिब इब्न अब्बाद नाम के एक महान लेखक और साहित्य-संरक्षक हुए। कहते हैं कि उन्होंने 500 कवि, लेखकों और दार्शनिकों को पैसों से मदद की और नवाब मुअदुद्दौला के दरबार को अरब की दुनिया में ज्ञान और दर्शन का बड़ा केंद्र बना दिया।<br style="box-sizing: border-box;" />इनको किताबों से इस कदर मोहब्बत थी कि उन्होंने अपनी एक पर्सनल लाइब्रेरी बनाई, जिसमें करीब दो लाख किताबें थीं। जब भी ये कहीं जाते तो अपने साथ 60 ऊंटों का काफिला लेकर जाते, जिनकी पीठ पर किताबों का गट्ठर होता। ऊंटों का यह काफिला एक तरह से मोबाइल लाइब्रेरी थी।<br style="box-sizing: border-box;" />किताबें इंसान की प्रगति और सभ्यता की गवाह रही हैं। इंसान ने जब से लिखना और कागज बनाना सीखा, तब से किताबें पढ़ने और कलेक्शन का काम होता आ रहा है।<br style="box-sizing: border-box;" />‘द ग्रेट लाइब्रेरी ऑफ अलेक्जेंड्रिया’ इन्हीं लाइब्रेरियों में से एक थी। ऐसे ही हजारों साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय की विशाल लाइब्रेरी में कई देशों के छात्र पढ़ा करते थे। आधुनिक दौर में भारत की सबसे बड़ी लाइब्रेरी कोलकाता की रही जिसके कई बार नाम भी बदले गए। <br style="box-sizing: border-box;" />कुछ समय से देश में लाइब्रेरी को लेकर धार्मिक रुझान भी बढ़ा है। <br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">यूपी में बन रही देश की सबसे बड़ी आध्यात्मिक लाइब्रेरी</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यूपी के गोरखपुर में देश की सबसे बड़ी आध्यात्मिक लाइब्रेरी को मंजूरी मिली है। चंपा देवी पार्क के 25 एकड़ एरिया में गोरखपुर विकास प्राधिकरण इस लाइब्रेरी को बनाएगा। इसके अंदर भारतीय सभ्यता और संस्कृति का स्टडी मैटेरियल मौजूद होगा। 500 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले इस पुस्तकालय में पेपरबुक और डिजिटल बुक दोनों रूप में अध्ययन किया जा सकेगा। <br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अमेरिकी लाइब्रेरी में 470 भाषाओं में हैं 17 करोड़ किताबें</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में 200 साल पुरानी ‘लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस’ में 17 करोड़ से अधिक किताबें हैं। इस लाइब्रेरी को अमेरिका के संघीय ढांचे की सबसे पुरानी सांस्कृतिक विरासत माना जाता है। इसकी वॉशिंगटन में तीन और वर्जीनिया में एक इमारत है, जिनमें दुनिया की 470 भाषाओं में किताबें हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />1812 में अमेरिका और ब्रिटेन के बीच हुए युद्ध में अंग्रेजों ने इस लाइब्रेरी को आग के हवाले कर दिया था। इसमें किताबों के ज्यादातर ओरिजिनल कलेक्शन खाक हो गए। 1815 में इसे दोबारा शुरू करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन के निजी कलेक्शन से 6,487 किताबें खरीदी गईं।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी लंदन में, यहां हर साल आतीं 30 लाख किताबें</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />लंदन में मौजूद ब्रिटिश लाइब्रेरी कलेक्शन के लिहाज से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी है। ब्रिटिश लाइब्रेरी में 17 करोड़ से 20 करोड़ किताबें हैं। कहा यह भी जाता है कि इस लाइब्रेरी के कलेक्शन में हर साल 30 लाख नई किताबें जुड़ती हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />कहा जाता है कि आयरलैंड और यूके में प्रकाशित प्रत्येक पुस्तक की प्रतियां विभिन्न भाषाओं डिजिटल और हार्ड कॉपी में इस लाइब्रेरी में मौजूद हैं। यह लाइब्रेरी 1 जुलाई 1973 को स्थापित की गई थी। इससे पूर्व यह लाइब्रेरी ब्रिटिश म्यूजियम का हिस्सा हुआ करती थी।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">चीन के पास है दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />शंघाई लाइब्रेरी चीन की सबसे बड़ी पब्लिक लाइब्रेरी है। यह शंघाई लाइब्रेरी सिस्टम का हिस्सा है, जिसमें करीब 5.6 करोड़ किताबें हैं। इसका न सिर्फ दुनिया की टॉप 3 लाइब्रेरी में शुमार है बल्कि दूसरी सबसे ऊंची लाइब्रेरी भी है। इसकी इमारत 24 मंजिला ऊंची है। शंघाई लाइब्रेरी 1847 के आसपास बनाई गई थी।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">कनाडा की लाइब्रेरी में सेव है एक पेटाबाइट डिजिटल इन्फॉर्मेशन</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />‘लाइब्रेरी एंड आर्काइव्स कनाडा’ को LAC के नाम से भी लोग जानते हैं। इसमें 5.4 करोड़ से ज्यादा किताबें हैं। इस पर देश की डॉक्यूमेंट्री हेरिटेज को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी है। LAC को साल 2004 में बनाया गया था। इस लाइब्रेरी में एक पेटाबाइट की डिजिटल इन्फॉर्मेशन भी सुरक्षित है।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">‘श्राइन ऑफ द बुक लाइब्रेरी’ का दो तिहाई हिस्सा धरती के नीचे</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />यह पश्चिमी जेरूसलम में इस्राइल म्यूजियम का एक भाग है। यहां कई पुरातन पांडुलिपियां रखी गई हैं। इसका दो-तिहाई भाग धरती के नीचे है। इस लाइब्रेरी को अपने खास डिजाइन के लिए भी जाना जाता है।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">अमेरिका में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं जातीं लाइब्रेरी</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />इंटरनेट के इस युग में जहां ज्यादातर लोग मोबाइल या लैपटॉप से चिपके रहते हैं, वहां अमेरिकी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने को ज्यादा महत्व देते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />4 साल पहले गैलप पोल के एक सर्वे में पाया गया कि अमेरिका में छुट्टी के दिनों में लाइब्रेरी भरी रहती। स्टूडेंट्स भी 2019 में लाइब्रेरी का उपयोग करने में आगे रहे। सर्वे में पाया गया कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में लगभग दो बार ज्यादा लाइब्रेरी जा रही हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />लाइब्रेरी के इस्तेमाल पर प्यू रिसर्च सेंटर ने 2016 में एक सर्वे किया जिसमें पता चला कि लगभग 80 फीसदी वयस्क अमेरिकी लाइब्रेरीज के सोर्स पर भरोसा करते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">मुगल शासक हुमायूं की लाइब्रेरी की सीढ़ियों से गिरकर हुई थी मृत्यु</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />कहते हैं मुगल शासक हुमायूं किताबें पढ़ने और संजोने का बेहद शौकीन था लेकिन उसका ज्यादातर वक्त युद्ध और इधर-उधर भागने में बीता। हालांकि वह इन अभियानों में भी पुस्तकें अपने साथ ले जाया करता था।<br style="box-sizing: border-box;" />एक रात में जब वह गुजरात के अभियान पर था तब अचानक कुछ जंगली एवं पहाड़ी कबाइली लोगों ने उस पर आक्रमण कर दिया, जिसके कारण उसे पीछे हटना पड़ा।<br style="box-sizing: border-box;" />उसकी बहुत सारी अच्छी और दुर्लभ किताबें वहीं रह गईं। इन किताबों में से एक “तैमूरनामा” भी थी जिसकी प्रतिलिपि मौलाना सुल्तान अली और उस्ताद बेहज़ाद द्वारा चित्रित की गई थी।<br style="box-sizing: border-box;" />1555 में दिल्ली फतह करने के बाद उसने वैज्ञानिक स्टडी और रिसर्च पर ध्यान दिया। भारत और दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों से विद्वानों को जमा किया। किताबें इकट्ठा कीं और शेर मंडल को दीनपनाह लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया। मगर अगले साल ही दीनपनाह की सीढ़ियों से गिरकर हुमायूं की मृत्यु हो गई। यह जगह दिल्ली के पुराना किला इलाके में आज भी मौजूद है।<br style="box-sizing: border-box;" />दुनिया में ऐसी चलती फिरती लाइब्रेरीज भी मौजूद हैं जो बच्चों के अलावा हर उम्र के पुस्तक प्रेमियों के लिए भी कौतूहल की वजह बन सकती है। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ मोबाइल लाइब्रेरीज के बारे में-<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">टैंक जैसी दिखने वाली मोबाइल लाइब्रेरी कहलाती है ‘वेपन ऑफ मास इंस्ट्रक्शन’</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />1979 में अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में अर्जेंटीनियाई आर्ट कार मेकर और आर्टिस्ट राउल लेमेसऑफ ने टैंक जैसी दिखने वाली फोर्ड फाल्कन को मोबाइल लाइब्रेरी बनाया। <br style="box-sizing: border-box;" />आमतौर पर यह कहा जाता है कि कार की बॉडी में बुक्स कैसे फिक्स की जा सकती हैं, पर राउल ने ऐसा करके दिखाया। <br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">नीदरलैंड की संकरी गलियों के लिए बनी बेइब बस मोबाइल लाइब्रेरी</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />नीदरलैंड की संकरी गलियों के लिए आर्किटेक्ट जॉर्ड डेन होलैंडर ने शानदार तरीका निकाला। उन्होंने ट्रॉली के आकार की ऐसी बेइब बस (Biebbus) तैयार की, जिसमें वर्टिकल दो रूम बनाए गए हैं। इसमें नीचे के कमरे में 7 हजार के करीब बच्चों की किताबें हैं। 52 वर्ग मीटर स्पेस में 30 से 45 बच्चे बैठ जाते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">दुनिया की सबसे बड़ी तैरती लाइब्रेरी गूगल ने बनाई</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />'एमवी लागोस होप' दुनिया की सबसे बड़ी तैरती लाइब्रेरी है। इस लाइब्रेरी को गूगल ने बनाई है। इसको गूगल बुक्स फॉर आल (जीबीए) शिप्स ऑपरेट करता है। जीबीए के पास इसी तरह की तीन और लाइब्रेरी हैं। लेकिन एमवी लागोस होप सबसे बड़ी लाइब्रेरी है। यह दुनिया भर के देशों का दौरा करती रहती है। भारत में यह दो बार 1972 और 2011 में आ चुकी है। इस लाइब्रेरी को 40 देशों के करीब 400 वॉलंटियर ऑपरेट करते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" /><span style="box-sizing: border-box; color: blue;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">उत्तराखंड के गांवों में पहुंची घोड़ा लाइब्रेरी</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />किताबों से लदी ऊंट की पीठ पर चलती-फिरती लाइब्रेरी से शुरू हुआ बुक लवर्स और पढ़ने के शौकीनों का सफर आज गूगल की ऑनलाइन लाइब्रेरी तक जा पहुंचा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि किताबें ऊंट न सही टट्टू की पीठ पर लादकर आज भी उत्तराखंड के दूर-दराज के पहाड़ी इलाकों में पहुंच रही हैं। <br style="box-sizing: border-box;" />जहां न सड़कें हैं न पर्याप्त बिजली, लेकिन वहां के बच्चों को पढ़ने का शौक है और टट्टू पर लदी किताबें उनके चेहरे पर मुस्कुराहट ला देती हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />इस लाइब्रेरी को चलाने वाले शुभम बधानी कहते हैं कि जैसे ही मैंने ये सोचा कि मैं घोड़े पर किताबें लादकर बच्चों तक पहुंचाऊं, तो मेरा आइडिया गांवों को इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने घोड़े, टट्टू की सेवाएं तुरंत देने की बात की। वॉलंटियर्स ने इस लाइब्रेरी के लिए किताबें भी दीं और रीडिंग सेशन भी शुरू किए हैं। <br style="box-sizing: border-box;" />जैसे ही घोड़े की सुविधा मिली हिमोत्तम और संकल्प और यूथ फंडिंग ने आगे बढ़कर मदद की और किताबों की सुविधाएं दीं। वॉलंटियर्स गांव गांव चक्कर लगाते हैं और उन बच्चों से मिलते हैं जो किताबें पढ़ना चाहते हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />कई बार एक हफ्ते किताबें पढ़ने के लिए भी देते हैं। दूसरे राउंड में पुरानी किताबें लेकर फिर दूसरी नई किताबें बच्चों को दी जाती हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />इस तरह कम किताबें होते हुए भी बच्चों को कुछ नया लगातार पढ़ने को मिलता रहता है।<br style="box-sizing: border-box;" />शुभम बताते हैं कि यह संस्था पूरी तरह से फंडिंग पर निर्भर है और ऐसे ही मदद करने वालों की तलाश है। अभी हमारे पास 15 साल के बच्चों के लिए किताबें हैं।<br style="box-sizing: border-box;" />जैसे ही हमारे को आर्थिक मदद मिलेगी, हम सभी उम्र के पाठकों को किताबों मुहैया कराएंगे और इससे हमारे गांवों का दायरा भी बढ़ेगा। <br style="box-sizing: border-box;" />शुभम कहते हैं कि सबसे अच्छी बात ये रही कि गांव की महिलाओं में किताब पढ़ने की दिलचस्पी देखने को मिली। बच्चों के लिए होने वाले रीडिंग सेशन में हर उम्र का व्यक्ति शामिल होता है।<br style="box-sizing: border-box;" />सबको लगता है कि हमें इससे नया सीखने को मिलता है। कुछ महिलाएं अपनी बेटियों के आती हैं। बच्चियां अगर घोड़ा देखकर खुश होती है तो किताबें देखकर उन्हें और खुशी होती है।<br style="box-sizing: border-box;" />इसलिए किसी को भी एक अच्छी लाइब्रेरी से जुड़ने में देरी नहीं करनी चाहिए। अपने स्कूल-कॉलेज या शहर की लाइब्रेरी से जुड़िए और किताबें पढ़कर सोच को साफ-सुथरा बनाइए।<br style="box-sizing: border-box;" />Compiled: Legend News</span></p></div></div><div class="ad--space pd--20-0-40" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #777777; font-family: Mukta, sans-serif; font-size: 14px; padding: 20px 0px 40px;"><div class="carousel slide" data-ride="carousel" id="carousel-example-footer" style="box-sizing: border-box; position: relative;"><div class="carousel-inner" role="listbox" style="box-sizing: border-box; overflow: hidden; position: relative; width: 749.99px;"></div></div></div><div class="post--social pbottom--30" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #777777; font-family: Mukta, sans-serif; font-size: 0px; line-height: 0; margin-top: 10px; padding-bottom: 30px;"><span class="title" style="box-sizing: border-box; display: inline-block; font-size: 16px; line-height: 26px; margin-right: 5px; margin-top: 10px; min-width: 17px; vertical-align: middle;"><span class="fa fa-share-alt" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; box-sizing: border-box; display: inline-block; font-family: FontAwesome; font-feature-settings: normal; font-kerning: auto; font-optical-sizing: auto; font-size: inherit; font-stretch: normal; font-variant-alternates: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; font-variation-settings: normal; line-height: 1; text-rendering: auto;"></span></span></div>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-44992831050135918622023-08-26T04:37:00.007-07:002023-08-26T04:40:03.529-07:00मनुस्मृति में "शूद्र" शब्द को लेकर जानबूझकर फैलाया गया दलितों के बीच भ्रम<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-7PgmlGWml_DQTYDbR5g6hMIOyyn_cmMTyBtgp8f47E9vbzXHOgYca4fSgHLnTemgat8exwbbLw36iSqT0SiTCai-JlIKyJ9QxQ-DG5R3u2DpDh4y0bdxkia7tWMPY4qk1e00ZzSySQWLc9q8FLSBzy4MdZgdWO5d4V15OhY4KRIuHWjPb5IdlguTjJje/s585/3039manusmriti-and-shudra.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-7PgmlGWml_DQTYDbR5g6hMIOyyn_cmMTyBtgp8f47E9vbzXHOgYca4fSgHLnTemgat8exwbbLw36iSqT0SiTCai-JlIKyJ9QxQ-DG5R3u2DpDh4y0bdxkia7tWMPY4qk1e00ZzSySQWLc9q8FLSBzy4MdZgdWO5d4V15OhY4KRIuHWjPb5IdlguTjJje/w400-h210/3039manusmriti-and-shudra.jpg" width="400" /></a></div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">महर्षि मनु और मनुस्मृति के सबन्ध में आज सर्वाधिक ज्वलन्त विवाद शूद्रों को लेकर है। पाश्चात्य और उनके अनुयायी लेखकों तथा डॉ. अम्बेडकर ने आज के दलितों के मन में यह भ्रम पैदा कर दिया है कि मनु ने अपनी स्मृति में उनको घृणित नाम ‘शूद्र’ दिया है और उनके लिए पक्षपातपूर्ण एवं अमानवीय विधान किये हैं। गत शतादियों में शूद्रों के साथ हुए भेदभाव एवं पक्षपातपूर्ण व्यवहारों के लिए उन्होंने मनुस्मृति को भी जिमेदार ठहराया है। इस अध्याय में मनुस्मृति के आन्तरिक प्रमाणों द्वारा इस तथ्य का विश्लेषण किया जायेगा कि उपर्युक्त आरोपों में कितनी सच्चाई है, क्योंकि अन्तःसाक्ष्य सबसे प्रभावी और उपयुक्त प्रमाण होता है। सर्वप्रथम ‘शूद्र’ नाम को लेकर जो गलत धारणाएं बनी हुई हैं, उन पर विचार किया जाता है।</span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(क) जैसे आज की सरकारी सेवाव्यवस्था में चार वर्ण निर्धारित किये हुए हैं-1. प्रथम श्रेणी अधिकारी, 2. द्वितीय श्रेणी अधिकारी, 3. तृतीय श्रेणी कर्मचारी, 4. चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी। इनमें समान, सुविधा, वेतन, कार्यक्षेत्र निर्धारण पृथक्-पृथक् है। इन वर्गों के नामों से सबोधित करने में किसी को आपत्ति भी नहीं होती। इसी प्रकार वैदिक काल में समाज व्यवस्था में चार वर्ग थे जिन्हें ‘वर्ण’ कहा जाता था। किसी भी कुल में जन्म लेने के बाद कोई भी बालक या व्यक्ति अभीष्ट वर्ण के गुण, कर्म, योग्यता को ग्रहण कर उस वर्ण को धारण कर सकता था। उनमें ऊंच-नीच, छूत-अछूत आदि का भेदभाव नहीं था। समान, सुविधा, वेतन (आय), कार्यक्षेत्र का निर्धारण पृथक्-पृथक् था। आज के समान तब भी किसी को वर्णनाम से पुकारने पर आपत्ति नहीं थी, न बुरा माना जाता था। आज हम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को पीयन, क्लास फोर, सेवादार, अर्दली, श्रमिक, मजदूर, चपरासी, श्रमिक, आदेशवाहक, सफाई कर्मचारी, वाटरमैन, सेवक, चाकर आदि विभिन्न नामों से पुकारते हैं और लिखते हैं, किन्तु कोई बुरा नहीं मानता। इसी प्रकार जन्मना जातिवाद के पनपने से पूर्व ‘शूद्र’ नाम से कोई बुरा नहीं मानता था और न ही यह हीनता या घृणा के अर्थ में प्रयुक्त होता था।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">वैदिक व्यवस्था में ‘शूद्र’ एक सामान्य और गुणाधारित संज्ञा थी। जन्मना जातिवाद के आरभ होने के बाद, जातिगत आधार पर जो ऊंच-नीच का व्यवहार शुरू हुआ, उसके कारण ‘शूद्र’ नाम के अर्थ का अपकर्ष होकर वह हीनार्थ में रूढ़ हो गया। आज भी हीनार्थ में प्रयुक्त होता है। इसी कारण हमें यह भ्रान्ति होती है कि मनु की प्राचीन वर्णव्यवस्था में भी यह हीनार्थ में प्रयुक्त होता था, जबकि ऐसा नहीं था। इस तथ्य का निर्णय ‘शूद्र’ शद की व्याकरणिक रचना से हो जाता है। उस पर एक बार पुनः विस्तृत विचार किया जाता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">व्याकरणिक रचना के अनुसार शूद्र शद के अधोलिखित अर्थ होंगे- ‘शु’ अव्ययपूर्वक ‘द्रु-गतौ’ धातु से ‘डः’ प्रत्यय के योग से शूद्र पद बनता है। इसकी व्युत्पत्ति होगी-‘शु द्रवतीति शूद्रः’ = जो स्वामी के कहे अनुसार इधर-उधर आने-जाने का कार्य करता है अर्थात् जो सेवा और श्रम का कार्य करता है। संस्कृत साहित्य में ‘शूद्र’ के पर्याय रूप में ‘प्रेष्यः’=इधर-उधर काम के लिए भेजा जाने वाला, (मनु0 2.32, 7.125 आदि), ‘परिचारकः’=सेवा-टहल करने वाला (मनु0 7.217), ‘भृत्यः’=नौकर-चाकर आदि प्रयोग मिलते हैं। आज भी हम ऐसे लोगों को सेवक, सेवादार, आदेशवाहक, अर्दली, श्रमिक, मजदूर आदि कहते हैं, जिनका उपर्युक्त अर्थ ही है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इस धात्वर्थ में कोई हीनता का भाव नहीं है, केवल व्यवसायबोधक सामान्य शद है। ‘शुच्-शोके’ धातु से भी ‘रक्’ प्रत्यय के योग से ‘शूद्र’ शद बनता है। इसकी व्युत्पत्ति होती है-‘शोच्यां स्थितिमापन्नः, शोचतीति वा’=जो निनस्तर की जीवनस्थिति में है और उससे चिन्तायुक्त रहता है। आज भी अल्पशिक्षित या अशिक्षित व्यक्ति को श्रमकार्य की नौकरी मिलती है। वह अपने जीवननिर्वाह की स्थिति को सोचकर प्रायः चिन्तित रहता है। उसे इस बात का पश्चात्ताप होता रहता है कि उच्चशिक्षित होता तो मुझे भी अच्छी नौकरी मिलती। इसी प्रकार प्राचीन वर्णव्यवस्था में जो अल्पशिक्षित या अशिक्षित रहता था उसे भी श्रमकार्य मिलता था। उसी श्रेणी को शूद्रवर्ण कहते थे। उसे भी अपने जीवन स्तर पर चिन्ता उत्पन्न होती थी। इसी भाव को अभिव्यक्त करने वाला ‘शूद्र’ शद है। इस धात्वर्थ में भी हीन अर्थ नहीं है। यह केवल मनोभाव का बोधक है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">महर्षि मनु ने श्लोक 10.4 में शूद्रवर्ण के लिए अन्य एक शद का प्रयोग किया है जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और सटीक है, वह है- ‘एकजातिः’। यह शूद्रवर्ण की सारी पृष्ठभूमि और यथार्थ को स्पष्ट कर देता है। ‘एकजाति वर्ण’ या व्यक्ति वह कहाता है जिसका केवल एक ही जन्म माता-पिता से हुआ है, दूसरा विद्याजन्म नहीं हुआ। अर्थात् जो विधिवत् शिक्षा ग्रहण नहीं करता और अशिक्षित या अल्पशिक्षित रह जाता है। इस कारण उस वर्ण या व्यक्ति को ‘शूद्र’ कहा जाता है। शेष तीन वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ‘द्विजाति’ और ‘द्विज’ कहे जाते हैं; क्योंकि वे विधिवत् शिक्षा ग्रहण करते हुए अभीष्ट वर्ण का प्रशिक्षण प्राप्त करके उस वर्ण को धारण करते हैं। वह उनका दूसरा जन्म ‘‘ब्रह्मजन्म’’= ‘विद्याध्ययन जन्म’ कहाता है। पहला जन्म उनका माता-पिता से हुआ, दूसरा विद्याध्ययन से, अतः वे ‘द्विज’ और ‘द्विजाति’ कहे गये। इस नाम में भी किसी प्रकार की हीनता का भाव नहीं है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">मनु का श्लोक है- ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः त्रयो वर्णाः द्विजातयः। चतुर्थः एकजातिस्तु शूद्रः नास्ति तु पंचमः॥ (10.4) अर्थात्-‘वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीन वर्ण ‘द्विज’ या ‘द्विजाति’ कहलाते हैं; क्योंकि माता-पिता से जन्म के अतिरिक्त विद्याध्ययन रूप दूसरा जन्म होने से इन वर्णों के दो जन्म होते हैं। चौथा वर्ण ‘एकजाति’ है; क्योंकि उसका केवल माता-पिता से एक ही जन्म होता है, वह विद्याध्ययन रूप दूसरा जन्म नहीं प्राप्त करता। उसी को शूद्र कहते हैं। वर्णव्यवस्था में पांचवां कोई वर्ण नहीं है।’ इसी आधार पर संस्कृत में पक्षियों और दांतों को द्विज कहते हैं, क्योंकि उनके दो जन्म होते हैं। वैदिक संस्कृति में दूसरे जन्म का विशेष महत्त्व है, क्योंकि वही राष्ट्र को कुशल, प्रशिक्षित नागरिक प्रदान करता है, वही आजीविका प्रदान करता है, वही मनुष्य को मनुष्य बनाता है, वही सभी उन्नतियों का मूल कारण है, वही देवत्व और ऋषित्व की ओर ले जाता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">मनु ने कहा है- ब्रह्मजन्म ही विप्रस्य प्रेत्य चेह च शाश्वतम्। (2.146) अर्थात्-‘शरीरजन्म की अपेक्षा ब्रह्मजन्म=विद्याध्ययन रूप जन्म ही द्विजातियों का इस जन्म और परजन्म में शाश्वत रूप से कल्याणकारी है।’ ब्रह्म-जन्म को न प्राप्त करने वाला अशिक्षा और अज्ञान से ग्रस्त व्यक्ति जीवन में उन्नति नहीं कर सकता, अतः वह प्रशंसनीय नहीं है। इसी कारण वर्णव्यवस्था में शूद्र को चौथे स्थान पर रखा है और आज भी अशिक्षित व्यक्ति चौथे स्थान पर (चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी) है। इस नाम में भी कोई हीनता का भाव नहीं है। यह केवल शूद्र वर्ण के निर्माण की प्रक्रिया की जानकारी दे रहा है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(ख) वर्तमान बालिद्वीप (इंडोनेशिया) में पहले चातुर्वर्ण्य व्यवस्था रही है और अब भी कहीं-कहीं व्यवहार है। मनु की व्यवस्था के अनुसार, वहां उच्च तीन वर्णों को ‘द्विजाति’ तथा चतुर्थ वर्ण को ‘एकजाति’ कहा जाता है। वहां के समाज में शूद्र से कोई ऊंच-नीच या छूत-अछूत का व्यवहार नहीं होता। अतः त्रुटि मनु की व्यवस्था में नहीं है। यह त्रुटि भारतीय समाज में जन्मना जातिवाद के उद्भव के कारण आयी है। इसका दोष मनु पर नहीं डाला जा सकता (प्रमाण संया 8, पृ0 16 पर प्रथम अध्याय में द्रष्टव्य है)।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(ग) बाद तक वर्णनिर्धारण का यही नियम पाया जाता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">मनुस्मृति के प्रक्षिप्तसिद्ध एक श्लोक में कहा है- शूद्रेण हि समस्तावद् यावत् वेदे न जायते। (2.172) अर्थात्-‘जब तक कोई वेदाध्ययन नहीं करता तब तक वह शूद्र के समान है, चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो।’</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(घ) पुराणकाल तकाी यही नियम था – ‘‘जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते।’’ (स्कन्दपुराण, नागरखण्ड 239.31) अर्थात्-प्रत्येक बालक, चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो, जन्म से शूद्र ही होता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">उपनयन संस्कार में दीक्षित होकर विद्याध्ययन करने के बाद ही द्विज बनता है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(ङ) अशिक्षित होना ही शूद्र की पहचान है। मनु का एक अन्य श्लोक इसकी पुष्टि करता है- यो न वेत्त्यभिवादस्य विप्रः प्रत्यभिवादनम्। नाभिवाद्यः स विदुषा यथा शूद्रस्तथैव सः॥ (2.126) </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">अर्थ-‘जो द्विज अभिवादन करने वाले को उत्तर में विधिपूर्वक अभिवादन नहीं करता अथवा अभिवादन-विधि के अनुसार अभिवादन करना नहीं जानता, उसको अभिवादन न करें क्योंकि वह वैसा ही है जैसा शूद्र होता है।’ इस श्लोक से दो तथ्य प्रकट होते हैं-एक, शूद्र शिक्षित और शिक्षितों की विधियों को जानने वाले नहीं होते अर्थात् अशिक्षित होते हैं। दो, इन कारणों से कोई भी द्विज ‘शूद्र’ घोषित हो सकता है अर्थात् उसका उच्चवर्ण से निनवर्ण में पतन हो सकता है, यदि उसका आचार-व्यवहार शिक्षित वर्णों जैसा नहीं है।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(च) मनु की पूर्वोक्त व्युत्पत्तियों की पुष्टि शास्त्रीय परपरा से भी होती है। उनमें भी हीनता का भाव नहीं है। ब्राह्मण ग्रन्थों में शूद्र की उत्पत्ति ‘असत्’ से वर्णित की है। यह बौद्धिक गुणाधारित उत्पत्ति है- ‘‘असतो वा एषः सभूतः यच्छूद्रः’’ (तैत्ति0 ब्रा0 3.2.3.9) अर्थात्-‘‘यह जो शूद्र है, यह असत्=अशिक्षा (अज्ञान) से उत्पन्न हुआ है।’’ विधिवत् शिक्षा प्राप्त करके ज्ञानी व प्रशिक्षित नहीं बना, इस कारण शूद्र रह गया।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(छ) महाभारत में वर्णों की उत्पत्ति बतलाते हुए शूद्र को ‘परिचारक’ = ‘सेवा-टहल करने वाला’ संज्ञा दी है। उससे जहां शूद्र के कर्म का स्पष्टीकरण हो रहा है, वहीं यह भी जानकारी मिल रही है कि शूद्र का अर्थ परिचारक है, कोई हीनार्थ नहीं। श्लोक है- मुखजाः ब्राह्मणाः तात, बाहुजाः क्षत्रियाः स्मृताः। ऊरुजाः धनिनो राजन्, पादजाः परिचारकाः॥ (शान्तिपर्व 296.6) अर्थ- मुखमण्डल की तुलना से ब्राह्मण, बाहुओं की तुलना से क्षत्रिय, जंघाओं की तुलना से धनी=वैश्य, और पैरों की तुलना से परिचारक=सेवक (शूद्र) निर्मित हुए। </p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">(ज) डॉ0 अम्बेडकर र का मत-डॉ0 अम्बेडकर र ने मनुस्मृति के श्लोक ‘‘वैश्यशूद्रौ प्रयत्नेन स्वानि कर्माणि कारयेत्’’ (8.418) के अर्थ में शूद्र का अर्थ ‘मजदूर’ माना है- ‘‘राजा आदेश दे कि व्यापारी तथा मजदूर अपने-अपने कर्त्तव्यों का पालन करें।’’ (अम्बेडकर र वाङ्मय, खंड 6, पृ0 61)। यह अर्थ भी हीन नहीं है। मनु के और शास्त्रों के प्रमाणों से यह स्पष्ट हो गया है कि जब शूद्र शद का प्रयोग हुआ तब वह कर्माधरित या गुणवाचक यौगिक था। उसका कोई हीनार्थ नहीं था। मनु ने भी शूद्र शद का प्रयोग गुणवाचक किया है, हीनार्थ या घृणार्थ में नहीं। शूद्र नाम तब हीनार्थ में रूढ़ हुआ जब यहां जन्म के आधार पर जाति-व्यवस्था का प्रचलन हुआ। हीनार्थवाचक शूद्र शद के प्रयोग का दोष वैदिककालीन मनु को नहीं दिया जा सकता। यदि हम परवर्ती समाज का दोष आदिकालीन मनु पर थोपते हैं तो यह मनु के साथ अन्याय ही कहा जायेगा। अपने साथ अन्याय होने पर आक्रोश में आने वाले लोग यदि स्वयं भी किसी के साथ अन्याय करेंगे तो उनका वह आचरण किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जायेगा। वे लोग यह बतायें कि जिस दोष के पात्र मनु नहीं है, उन पर वह दोष उन थोपने का अन्याय वे क्यों कर रहे है? क्या, उनकी यह भाषाविषयक अज्ञानता और इतिहास विषयक अनभिज्ञता है अथवा केवल विरोध का दुराग्रह?</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">- डॉ सुरेन्द्र कुमार</p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-9249639653699613972023-07-01T02:00:00.000-07:002023-07-01T02:28:13.082-07:00हैल्थ पैकेज और ऑफर्स के संग... आज नेशनल डॉक्टर्स डे कितना प्रासंगिक ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhx7Re_i2Vrr7IbUIQ_I84ftmf3c-M0f_59iHv2bGhUUKY2Uv3krZTLPtpOde5rTIb87dqM051Xm4WwaNSKtxyFUE8MSrfxitwnJANEnTNGwpddzVQX1umuel0Lzlb_9qdCZzSPutzQVM51/s1600/national-doctors-day.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="259" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhx7Re_i2Vrr7IbUIQ_I84ftmf3c-M0f_59iHv2bGhUUKY2Uv3krZTLPtpOde5rTIb87dqM051Xm4WwaNSKtxyFUE8MSrfxitwnJANEnTNGwpddzVQX1umuel0Lzlb_9qdCZzSPutzQVM51/s320/national-doctors-day.jpg" width="320" /></a></div>
कहते हैं कि किसी बीमारी को ठीक करने के किसी नेक दिल की दुआ और अच्छे डॉक्टर की दवा दोनों की जरूरत होती है । चूंकि ईश्वर प्रत्यक्ष उपलब्ध नहीं होता इसलिए डॉक्टर को ही ईश्वर तुल्य माना जाता रहा, अभी कुछ वर्ष पूर्व तक ये होता भी था कि डॉक्टर ने हाथ पकड़ा नहीं कि मरीज आधा तो उसी वक्त ठीक महसूस करने लगता था। डॉक्टर नब्ज़ थामता हुआ पूछता जाता घर के हालचाल , मौसम की बातें करता हुआ वह न केवल रोग की तह तक जा पहुंचता बल्कि रोगी की मनोदशा का आंकलन करके दवाऐं देता था। इस पूरी प्रक्रिया में चंद मिनट ही तो लगते थे। मगर यह मरीज को आश्वस्त कर देती थी कि अब उसे कुछ नहीं होगा, वह सुरक्षित हाथों में है । बीमार तन को ठीक करने का ये मन से होता हुआ रास्ता बिना खर्च किये, बिना समय बरबाद किये बखूबी चल रहा था जो फैमिली डॉक्टर जैसे रिश्तों को जन्म दे गया । <br />
समय बदला , उदारीकरण आया, ग्लोबलाइजेशन ने शिक्षा को धंधा बना दिया , चिकित्सा जगत भी इसकी चपेट में आया। मेडीकल कॉलेज में काबिलों के साथ साथ नाकाबिल भी डोनेशन के बूते एडमीशन- इंटर्नशिप से लेकर बड़े बड़े आलीशान नर्सिंग होम बनाकर आई एम ए जैसी एसोसिएशन्स के जरिये मरीजों को कमोडिटी की तरह ट्रीट करने लगे। सब बदल गया मगर ये बदलाव डॉक्टर और मरीज के बीच ईश्वरतुल्य वाली छवि को ध्वस्त कर गया। जो सेवा थी वो पेशा बन गई। जहां स्पर्शमात्र से आधा दर्द चला जाता था, वहां मिनीमम एक दर्ज़न टेस्ट कराके भी परिणामों की श्योरिटी नहीं होती। लापरवाहियों के उदाहरण आम हो गये हैं। प्रत्यक्षत: लिंग परीक्षण पर रोक लगी है मगर कौन नहीं जानता कि भ्रूण हत्याओं का ऊंचा ग्राफ सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर्स की इस प्रोफेशनलिज्म की प्रवृत्ति की वजह से आगे चढ़ा और खुद आईएमए ने कभी कोई कार्यवाही नहीं की,वरना सरकार को क्यों तरह तरह से भ्रूण हत्या रोकने को उपाय करने पड़ते। इसके बावजूद जब आज नेशनल डॉक्टर्स डे पर कुछ डॉक्टर्स से बात की तो उन्होंने मरीज और डॉक्टर्स के बीच पनप रहे अविश्वास को लेकरअनगिनत मजबूरियां तो गिना दीं मगर प्रोफेशनलिज्म को सेवा मानने को वे हरगिज़ तैयार न थे । <br />
बदलते समय की ये नई परिभाषायें अपने साथ बहुत से बदलाव लाई जिसने डॉक्टर्स को भी सेवा की जगह प्रोफेशनल और प्रैक्टीकल बना दिया और अब आलम ये है कि एक बड़े डॉक्टर कहते हैं कि आज बिना प्रेाफेशनल बने खर्चे निकालना मुश्किल है, तो वहीं दूसरे डॉक्टर ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट को ही इस सबका दोष दे दिया । वे बोले, सीपीए यानि कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की वजह से डॉक्टरों में कोर्ट में घसीटे जाने का डर लगा रहता है। किसी एक बीमारी के लिए भी तमाम टेस्ट कराने पर वो अपनी सफाई देते हैं कि कोई डॉक्टर रिस्क सीपीए की वजह से नहीं लेना चाहता इसलिए वह एक सिर दर्द होने पर भी सभी टेस्ट कराके आश्वस्त हो जाने के बाद ही इलाज करना शुरू करता है ताकि कोई कोताही न होने पाए। <br />
एक डॉक्टर तो कहते हैं कि आजकल प्रोफेशनल होना हमारी मजबूरी है , वरना इतने महंगे इक्विपमेंट्स , स्टाफ की सैलरी , बिजली से लेकर मैडीकल वेस्ट तक का खर्चा कहां से निकले।इस सफाई में वो असल सवाल टाल ही गए कि मरीज और डॉक्टर से बीच आए अविश्वास को कैसे कम किया जाए। <br />
तमाम बहानों के साथ ही ये तो निश्चत हो गया कि विश्वास का संकट तो स्वयं डॉक्टर्स ने ही उपजाया है । जहां तक मरीजों द्वारा कानून की शरण लेने की बात है तो जो रोग से जूझ रहा हो , क्या वो शौकियातौर पर जाना चाहेगा कोर्ट । हमारे देश में कोर्ट जाना या न्याय पाना क्या इतना आसान है। <br />
इनकी तरह कई और डॉक्टर्स ने भी बहानों का पहाड़ खड़ा किया मगर सभी के सभी टोटल इललॉजिकल। समस्या को फिलहाल वो सतही तौर पर देख रहे हैं जो पूरी के पूरी स्वास्थ्य सेवाओं के खतरनाक है। <br />
अब बताइये कि एक पर्ची पर केवल एक हफ्ते ही दिखाया जा सकता है, अगले हफ्ते के लिए फिर से दूसरी पर्ची पूरी फीस चुकाकर बनवानी पड़ेगी, चाहे कितना भी रेग्यूलर चेकअप क्यों न करवा रहे हों । इसी तरह नर्सिंग होम के अंदर ही मेडीकल स्टोर, पैथेलॉजी लैब, कैंटीन और ऐसी ही सुविधाओं के साथ पूरा बिजनेस सेटअप ... दवा कंपनियों के ऑब्लीगेंटरी गिफ्ट्स पर विदेशों की सैर का लालच के चलते जेनेरिक दवाओं को डॉक्टर्स प्रेस्क्राइब ही नहीं करते ....आलीशान 5 और 7 स्टार्स हॉस्पीटल्स के '' ऑफर्स '' के साथ पैम्फलेट बांटा जाना, एक बीमारी के इलाज के साथ दूसरे टेस्ट्स फ्री... बताने वाले आदि ऐसे सच हैं जिनसे आप सभी कभी ना कभी तो दोचार हुए ही होंगे। इसके अलावा गांवों में जाना तो स्वयं सरकारी डॉक्टर्स पसंद नहीं करते , वो भी शहरों के नर्सिंग होम्स के साथ कांट्रेक्ट्स करके रखते हैं ताकि प्रोफेशनल हो सकें... । ये कुछ सच्चाइयां हैं जो मरीज को मरीज नहीं बल्कि कमोडिटी बनाकर उसके विश्वास के साथ खेल रही हैं... इस स्थिति से बाज आना होगा और विश्वास बहाली का पहला कदम तो डॉक्टर्स को ही उठाना होगा । <br />
और अंत में आज <b><span style="color: red;"><a href="https://legendnews.in/single-post?s=with-health-packages-and-offers-how-relevant-is-national-doctors-day-today-9805" target="_blank">नेशनल डॉक्टर्स डे</a></span></b> है जो डॉ बी सी रॉय की याद में प्रति वर्ष १ जुलाई को मनाया जाता है , यही उनका जन्मदिन भी है और पुण्य तिथि भी। 1961 में भारत रत्न से सम्मानित डा. रॉय के नाम पर १९७६ में सरकारें उनके सम्मान में चिकित्सा , विज्ञानं , आर्ट , और राजनीति के क्षेत्र में विशिष्ठ कार्य के लिए डॉ बी सी रॉय नेशनल अवार्ड देती आई हैं। <br />
इस दिन हर वर्ष सभी चिकित्सक संस्थाएं अपने उन डॉक्टर्स को सम्मानित करती हैं , जो अपने क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं । तो डॉक्टर्स डे के इस हीरों के नाम पर ही सही आज के इस सेवाकार्य के बदलते प्रोफेशनल रूप को लेकर हम सभी को सोचना होगा। दोषारोपण से नहीं बल्कि सार्थक बदलाव लाकर हम मानवीय आधार पर सर्वश्रेष्ठ कर पाऐं , ऐसा उपाय करना होगा। <br />
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- अलकनंदा सिंह </div>
Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-45931640529920012682023-06-17T04:13:00.006-07:002023-06-17T04:13:42.883-07:00समान नागरिक संहिता अर्थात् UCC से जुड़े हर बड़े सवाल का जवाब है यहां<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwmqExz7EEzrlyUWxWr5c7fM9J3Y9De5JxeqfVxokZTA_xrhSwdEbx47j3F6Jl_zJmIzS-Ss_h4cJyXa5888ziPNKKrP3LX5IHKMAECSAnstvjz_kbmrQJycW94qqrC0k939ENA5js4xop0aGiYGJXqbZxVdQvzaEO-j19dJE1KeETbJJYcsS_1jnnIw/s585/Uniform-Civil-Code.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwmqExz7EEzrlyUWxWr5c7fM9J3Y9De5JxeqfVxokZTA_xrhSwdEbx47j3F6Jl_zJmIzS-Ss_h4cJyXa5888ziPNKKrP3LX5IHKMAECSAnstvjz_kbmrQJycW94qqrC0k939ENA5js4xop0aGiYGJXqbZxVdQvzaEO-j19dJE1KeETbJJYcsS_1jnnIw/w400-h210/Uniform-Civil-Code.jpg" width="400" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">समान नागरिक संहिता (</span><span style="color: #444444; font-family: Open Sans, serif;">UCC) </span><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">भारत के लिए एक कानून बनाने की मांग करती है, जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा. इसको लेकर देश में विवाद छिड़ा हुआ है. विधि आयोग एक रिपोर्ट भी तैयार कर रहा है.</span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दिये जा रहे हैं. पक्षधर इसके फायदे गिना रहे हैं जबकि विरोेध करने वालों की नजर में इससे देश के अंदर धार्मिक आजादी को खतरा होगा. संवैधानिक प्रावधानों में धर्म निरपेक्षता प्रभावित होगी. क्योंकि इससे यानी हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा निजी कानून खत्म हो जाएंगे.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">दरअसल विधि आयोग इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है. यूनिफॉर्म सिविल कोड मतलब एक समान नागरिक संहिता से है, इसके तहत पूरे देश में सभी के लिए एक कानून तय करना है. इसके मुताबिक सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों मसलन संपत्ति, विवाह, विरासत, गोद लेने आदि में भी समान कानून लागू होगा. आइए 5 अहम सवाल और उसके जवाब जानने की कोशिश करते हैं.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">UCC के बारे में संविधान क्या कहता है?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है, भारतीय राज्य नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास कर सकता है. मतलब संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों को लेकर एक कानून बनाने का निर्देश दे सकता है जो मौजूदा समय में उनके व्यक्तिगत कानून के दायरे में हैं. और यही वजह है कि विपक्ष दल इसका विरोध कर रहे हैं. उनके मुताबिक देश की विविधता इससे खतरे में पड़ जाएगी. जबकि केंद्र सरकार के मुताबिक समानता जरूरी है और समय की मांग है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">राज्य आधारित यूसीसी व्यावहारिक तौर पर कितना संभव?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />वास्तव में यह राज्य का नीति निर्देशक सिद्धांत से जुड़ा मामला है. यानी यह सभी राज्यों में एक जैसा लागू करने लायक नहीं है. उदाहरण के लिए अनुच्छेद 47 के तहत कोई राज्य नशीले पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर रोक लगाता है. लेकिन दूसरे कई राज्यों में शराब धड़ल्ले से बेची जाती है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">किसी राज्य के पास समान नागरिक संहिता लाने की शक्ति को लेकर कानूनी विशेषज्ञ बंटे हुए हैं. कुछ का कहना है कि चूंकि विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं. यह 52 विषयों की सूची है, केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं. राज्य सरकारों के पास भी इसे लागू करने की शक्ति है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्या यूसीसी केवल इस्लाम के खिलाफ है?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />इसका जवाब है – नहीं. क्योंकि जब यूसीसी लागू होता है तो सभी धर्म, जाति के लिए लागू होता है. इसके तहत मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम ही नहीं बल्कि हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम भी खत्म हो जाएंगे. यहां तक कि विरासत और गोद लेने की प्रथा भी समुदाय विशेष पर आधारित नहीं रहेगी.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">आदिवासी समुदायों पर भी लागू होगा यूसीसी?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />प्रावधान के मुताबिक ऐसा ही माना गया है. राष्ट्रीय स्तर यूसीसी के लागू होने पर सभी इसकी जद में आएंगे. उनके भी विवाह, विवाह-विच्छेद या संपत्ति को लेकर निजी कानून निरस्त हो जाएंगे. हालांकि जनजातीय समुदाय में इसको लेकर रोेष भी देखा गया है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">समुदाय ने कोर्ट में कहा था उनके समाज के लोकाचार, रीति-रिवाज और धार्मिक प्रथाएं प्रभावित होंगी. आदिवासी हितों की रक्षा करने वाली राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद ने कोर्ट से उनके रीति-रिवाजों और धार्मिक प्रथाओं की सुरक्षा की मांग की है. गौरतलब है कि आदिवासी समाज में भी बहुविवाह और बहुपतित्व का रिवाज है.</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; color: red;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">क्या कहीं लागू है यूसीसी ?</span></span><br style="box-sizing: border-box;" />देश में फिलहाल एकमात्र राज्य गोवा में यूसीसी लागू है. चूंकि गोवा को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है. संसद ने बकायदा कानून गोवा में पुर्तगाली यूसीसी लागू किया था. इसे गोवा सिविल कोड के नाम से जाना जाता है. हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सबके लिए एक समान कानून लागू है. जिसमें शादी, उत्तराधिकार से लेकर गोद लेने की प्रथा तक शामिल है.</p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-32196045644301428142023-06-11T02:18:00.004-07:002023-06-11T02:18:24.407-07:00बोली-भाषा: खानाबदोश और चिरकुट, इन दो शब्दों का आखिर क्या अर्थ होता है<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9AgO36Wz_Rl74g_Vu-C7llQ-JVETpRGrTt6gtFGGM5A3OJekAqx10gd6LJ494SUjxFd3fYWiCPuNv0akltND-gB0hwyhudmsbAHoKsBi9p3oTHJ4n-OhZtQrz44yKcPWXgXnsJq9uRjMXZ7raGhg4K0nHwivNorP2GupRLoIsu1ilzwyUad8ToI6_qw/s585/6518khanabadosh.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9AgO36Wz_Rl74g_Vu-C7llQ-JVETpRGrTt6gtFGGM5A3OJekAqx10gd6LJ494SUjxFd3fYWiCPuNv0akltND-gB0hwyhudmsbAHoKsBi9p3oTHJ4n-OhZtQrz44yKcPWXgXnsJq9uRjMXZ7raGhg4K0nHwivNorP2GupRLoIsu1ilzwyUad8ToI6_qw/w400-h210/6518khanabadosh.jpg" width="400" /></a></div><br /> ख़ानाबदोश एक फ़ारसी शब्द है जो भारत में काफी प्रचलित है। इस शब्द का विश्लेषण बड़ा रोचक है।<p></p><p>यह शब्द तीन अक्षरों से मिल कर बना है- ख़ाना ब दोश। यहाँ ख़ (ख़ाना) के नीचे नुक़्ता न भूलें क्योंकि बिना बिन्दु के ‘खाना’ का अर्थ भोजन हो जायेगा।</p><p>फ़ारसी शब्द ख़ाना अथवा ख़ाने का अर्थ होता है ‘घर या स्थान - जैसे पागलख़ाना, दवाख़ाना, गुसलखाना इत्यादि।</p><p>और दोश का मतलब है -‘कंधा’ ‘ब या बा’ सँग साथ के लिए लगता है।</p><p>इस तरह खानाबदोश वह लोग हुए जो अपना घर कंधे पर उठा कर चलते हैं।</p><p>वह कैसे?</p><p>ख़ानाबदोश कहीं पर भी स्थाई रूप से निवास नहीं करते। उनके पास बड़े बड़े तम्बू होते हैं और जो जगह उनके मनोकूल लगे वहीं तम्बू गाड़ कर रहने लगते हैं।</p><p>यह बंजारे पशु पालन, दस्तकारी इत्यादि का सुन्दर काम करते हैं। यह ऊँट, खच्चर, घोड़े, गाय इत्यादि जानवर भी पालते हैं और फिर इनके लिए चारागाह की तलाश में समान अपने जानवरों पर लाद और अपने तम्बू उखाड़ कर अपने कंधों पर रख आगे निकल जाते हैं।</p><p>जब सामान अपने जानवरों पर लादते हैं तो तम्बू भी उन पर लादने को कौन मना करता है? पर कहा यूँ जाता है कि ‘ख़ाना (घर) अपने कंधों पर लाद कर चलते हैं। कुछ भी हो बंजारे अपना घर अपने सँग लेकर चलते हैं।</p><p>हिन्दी में इनके लिए बंजारे शब्द का प्रयोग होता है एवं अंग्रेज़ी में जिप्सी कहते हैं।</p><p>अंग्रेजी में आमतौर पर जिप्सी शब्द भारत आदि देशों में ही घुमंतू जातियों के लिए प्रयोग होता है, परंतु वास्तव में जिप्सी एक अलग ही यूरोपीय जनजाति है जैसे हमारे देश में बकरवाल या भूटिया। ये लोग स्वयं को रोमानी या रोमा कहते हैं, जिप्सी कुछ अर्थों में अपमानजनक शब्द है। रोमानी और रोमा शब्द संयुक्त राष्ट्र आदि संगठन भी प्रयोग करते हैं। माना जाता है कि जिप्सी शब्द इजिप्शियन से आया, क्योंकि यूरोप पहुंचने पर इन्हें इजिप्ट का समझा गया। रोमा लोगों का मूल स्थान भारतीय उपमहाद्वीप का उत्तरी भाग माना जाता है।</p><p>बंजारा शब्द भी हिंदी में घुमंतू जातियों के लिए सर्वनाम बन गया है, परंतु यह शब्द भी एक खास जनजाति का नाम है, जो मुख्यतः राजस्थान से है।</p><p>खानाबदोश के लिए उपयुक्त अंग्रेजी शब्द nomad या itinerant group होगा। हिंदी में घुमंतू कहना उपयुक्त है।</p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">मुंबइया भाषा तक सिमटा 'चिरकुट' शब्द, आखिर क्या होता है इसका अर्थ</span></b></p><p>चिरकुट शब्द की रचना संस्कृत भाषा के दो शब्दों, चिर (कहीं-कहीं इसे चीर भी माना गया है) तथा कूट के मेल से हुई है। इसका अर्थ फटा-पुराना कपडा, चिथड़ा अथवा गुदड़ है।</p><p><br /></p><p>जायसी ने इस शब्द का प्रयोग इस प्रकार किया है :</p><p><br /></p><p>काढ़हु कंथा चिरकुट लावा ।</p><p><br /></p><p>पहिरहु राते दगल सुहावा ।</p><p><br /></p><p>— जायसी</p><p><br /></p><p>चिर — (चि + बाहुलकात् रक् ।) लम्बा समय, पुराना, स्थाई। यह विष्णु तथा शिव के नामों में भी है। लम्बे समय जीने वाले हनुमान, अश्वत्थामा आदि भी चिर कहलाते हैं।</p><p><br /></p><p>अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥</p><p><br /></p><p>चीर — (चिनोति आवृणोति वृक्षं कटिदेशा- दिकं वा । चि + “शुसिचिमीनां दीर्घश्च ।” उणां । २ । २५ । इति क्रन् दीर्घश्च ।) वस्त्र, कपड़ा, फटा हुआ वस्त्र, छाल, एक प्रकार का लेखन आदि। यथा:</p><p>क्षौमं दुकूलमजिनं चीरं वल्कलमेव वा ।</p><p>वसेऽन्यदपि सम्प्राप्तं दिष्टभुक्तुष्टधीरहम् ॥</p><p>— शतपथ ब्राह्मण ७.१३.३९ ॥</p><p><br /></p><p>भावार्थ :—</p><p>अपने शरीर को ढंकने के लिए, मैं जो कुछ भी उपलब्ध है, उसका उपयोग करता हूं, चाहे वह मेरे भाग्य के अनुसार सन, रेशम, कपास, कौपीन या मृगछाला हो, और मैं पूरी तरह से संतुष्ट और अविकल हूँ।)</p><p>कुट — (कुट इ वैकल्ये । इति कविकल्पद्रुमः ॥ ) इसका अर्थ है कटना, फटना, तुड़-मुड़ा, गतिहीन होना, छल करना, धूर्तता करना, बेईमानी करना आदि। (इस अर्थ में कभी-कभी दीर्घ मात्रा भी प्रयुक्त है)।</p><p>स्त्रीबालवृद्धकितव मत्तोन्मत्ताभिशस्तकाः ।</p><p>रङ्गावतारिपाखण्डि कूटकृद्विकलेन्द्रियाः ॥</p><p>— याज्ञवल्क्यस्मृतिः व्यवहाराध्यायः साक्षिप्रकरणम् २.७० ॥</p><p>इससे बना चिरकुट, जो है फटा-पुराना। किसी व्यक्ति को यह उपमा दी जाए तो अर्थ यही कि उसका व्यक्तिगत चिथड़ों की तरह बिखरा हुआ है। इसी चिरकुट को गुलजार ने चिरंजीव कर दिया, अंगूर में संजीव कुमार के मुख से कहला कर "अगर मेरा नाम चिरकुट कुमार होता तब भी? "</p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-77951748037412064182023-06-07T05:32:00.002-07:002023-06-07T05:32:35.593-07:00द्रुमकुल्य क्षेत्र अर्थात् कज़ाखस्तान: जहां श्रीराम ने समुद्र को सुखाने वाला ब्रह्मास्त्र छोड़ा था<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitY-bdK2WatI7VHcsndMUrs3CzFr6b-hZs6Dv97L4kJCmBXKOJLeJRw-DrGRaxHDLC0Mabt25mCwTaWJOUBBiYuhgZnCamTE-9aRfp3TkFvBBOoMlmsgwdp6JpVAziMDfCsTX8p6l_8Aqy_JOBcWcWQ3XBx4GRC4Qd9QjMYVGpP23eZQI1vVOZu2ymkA/s585/Shri-ram-krodh-on-Samudra.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitY-bdK2WatI7VHcsndMUrs3CzFr6b-hZs6Dv97L4kJCmBXKOJLeJRw-DrGRaxHDLC0Mabt25mCwTaWJOUBBiYuhgZnCamTE-9aRfp3TkFvBBOoMlmsgwdp6JpVAziMDfCsTX8p6l_8Aqy_JOBcWcWQ3XBx4GRC4Qd9QjMYVGpP23eZQI1vVOZu2ymkA/w400-h210/Shri-ram-krodh-on-Samudra.jpg" width="400" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">रामायण में एक प्रसंग आता है जब भगवान राम लंका जाने के लिए समुद्र देवता से रास्ता मांगते हैं और उन्हें रास्ता नहीं मिलता. उस समय श्री राम क्रोधित हो जाते हैं. क्रोध में आकर वह अपना धनुष उठाते हैं और समुद्र को सुखाने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाने का मन बना लेते हैं. तभी समुद्र देवता प्रकट होकर उन्हें अपनी गलती के लिए क्षमा मांगते हैं और श्री राम को बताते हैं कि वह वानरो की सहायता से समुद्र में पुल बनाकर लंका जा सकते हैं.</span><p></p><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">भगवान राम समुद्र देवता की बात सुनकर उन्हें क्षमा कर देते हैं. लेकिन क्रोध में निकाले गए ब्रह्मास्त्र को वापस नहीं रख सकते थे. तब उन्होंने समुद्र देवता से पूछा कि अब तो य बाण कहीं न कहीं छोड़ना ही पड़ेगा. इस पर समुद्र देवता उन्हें द्रुमकुल्य नाम के देश में बाण छोड़ने का सुझाव देते हैं. समुद्र देवता का कहना था कि द्रुमकुल्य पर भयंकर दस्तु (डाकू) रहते हैं जो उनके जल को भी दूषित करते रहे हैं. इस पर राम ने ब्रह्मास्त्र चाल दिया.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">वाल्मीकि रामायण मे दिए गए वर्णन के अनुसार ब्रह्मास्त्र की गर्मी से द्रुमकुल्य के डाकू मारे गए. लेकिन इसकी गर्मी इतनी ज्यादा थी कि सारे पेड़-पौधे सूख गए और धरती जल गई. इसके कारण पूरी जगह रेगिस्तान में बदल गई और वहां के पास मौजूद सागर भी सूख गया. यह वर्णन बेहद आश्चर्यजनक है और जिस तरह से लंका तक बनाए गए रामसेतु को भगवान राम की एतिहासिकता के सबूत के तौर पर माना जाता है उसी तरह इस घटना को भी सही माना जाता है.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">माना जाता है कि यह जगह आज का कजाकिस्तान है. कजाकिस्तान में ऐसी ढेरों विचित्रताएं हैं जो इशारा करती है. कि उसका संबंध रामायण काल से हो सकता है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम ने उत्तर दिशा में द्रुमकुल्य के लिए बाण चलाया था. वो जानते थे कि इसके असर से वहां डाकू तो मर जाएंगे लेकिन निद्रोष जीवजंतु भी मारे जाएंगे और पूरी धरती रेगिस्तान बन जाएगी.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">इसलिए उन्होंने यह आशीर्वाद भी दिया कि कुथ दिन बाद वहां सुगंधित औषधियां उगेंगी, वह जगह पशुओं के लिए उत्तम, फल मूल मधु से भरी होगी. कजाकिस्तान में जिस जगह पर राम का बाण गिरा वो जगह किजिलकुम मरुभूमि के नाम से जानी जाती है. यह दुनिया का 15वां सबसे बड़ा रेगिस्तान है. स्थानीय भाषा में किजिलकुम का मतलब लाल रेत होता है. माना जाता है कि कि ब्रह्मास्त्र की ऊर्जा के असर से यहां की रेत लाल हो गई.</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;" /><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">किजिलकुम में कई दुर्लभ पेड़-पैधे पाए जाते हैं. पास में अराल सागर है. जो दुनिया का इकलौता समुद्र है जो समय के साथ-साथ सूख रहा है. आज यह अपने मूल आकार का मात्र 10 फीसदी बचा है. किजिलकुम का कुछ हिस्सा तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान में भी है. रामेश्वरम तट से इस जगह की दूरी करीब साढ़े चार हजार किलोमीटर है.</span><div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;"><br /></span></div><div><span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">- Alaknanda Singh </span></div>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-46221419480919019222023-06-03T04:00:00.005-07:002023-06-03T04:00:43.542-07:00हिंदुओं को मृत्यु उपरांत RIP शब्द को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvXr2RNmTmghaqC0tjpZWPpc59Nfzl5FAoOjDyycgTsptG4GgxjuX96sIYmzSR_ZsKqR48nnhXe0rocOq0JLYDFkapscrOrElo00i-RdURLRL6N88pENnxLevrUJhDl4TH4BVnediuAGrK4tvn7VjMFOD3b3cMJnIqLHAZr5XXxbSGVw4Y0QmY5R8ALQ/s585/4019Hindu-antim-sanskar.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="308" data-original-width="585" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvXr2RNmTmghaqC0tjpZWPpc59Nfzl5FAoOjDyycgTsptG4GgxjuX96sIYmzSR_ZsKqR48nnhXe0rocOq0JLYDFkapscrOrElo00i-RdURLRL6N88pENnxLevrUJhDl4TH4BVnediuAGrK4tvn7VjMFOD3b3cMJnIqLHAZr5XXxbSGVw4Y0QmY5R8ALQ/w400-h210/4019Hindu-antim-sanskar.jpg" width="400" /></a></div><br /> <span style="background-color: white; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px;">R.I.P यानी रेस्ट इन पीस कहना लोगों का फैशन बन गया है| लोग बिना कुछ सोचे समझे ही किसी के भी मरने पर RIP RIP की रट लगा देते हैं खासकर फेसबुक ट्विटर या व्हाट्सएप ग्रुप में। दोस्तों शब्दों में धार्मिक भेदभाव तो नहीं किया जा सकता लेकिन R.I.P शब्द का मतलब सिर्फ मुस्लिम और ईसाइयों के लिए ही सिद्ध होता है ना कि हिंदुओं के लिए|</span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">हम इस शब्द के मतलब से अनजान अपनी तरफ से तो हम RIP शब्द का उपयोग कर मृत व्यक्ति की शांति के लिए मांग रहे होते हैं | आज मैं आपको बता देता हूं कि इस बात का अर्थ यह नहीं होता है|</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">आइये जानते हैं की हिंदुओं के लिए R.I.P शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए और इसकी जगह क्या शब्द इस्तेमाल करें|</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">R.I.P (Rest in Peace) का अर्थ हिंदी में कहूं तो शांति से आराम करो या फिर शांति में आराम करो| शांति से आराम करो और ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे इन दोनों पंक्तियों में जमीन आसमान का अंतर है हमें इस में फर्क करना आना चाहिए|</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">शांति से आराम करो उन लोगों के लिए अपनाया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया है क्योंकि ईसाइयों और मुस्लिमों की मान्यताओं के अनुसार जब जजमेंट डे यानी कयामत का दिन आएगा तब सारे मृत जी उठेंगे| इस लिए मुस्लिम और ईसाई कहते हैं कयामत के दिन तक शांति से इंतज़ार करो।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">ईसाई और मुस्लिम शरीर में यकीन रखते हैं मानना है कि कयामत के दिन फिर से जी उठेंगे लेकिन हिंदू इसके विपरीत पुनर्जन्म मे यकीन रखते हैं और आत्मा को अमर मानते हैं हिंदू धर्म के अनुसार शरीर नश्वर है यानी एक ना एक दिन इसे नष्ट होना ही है इसी वजह से हिंदू शरीर को जला दिया जाता है हिंदुओं का मानना है कि मरने के बाद शरीर से आत्मा ही निकल गई तो शरीर किस काम का।</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;"><span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;">भगवद् गीता (मूल श्लोकः।।2.22।) में कहा गया है कि- </span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">वासांसि जीर्णानि यथा विहाय<br style="box-sizing: border-box;" />नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।<br style="box-sizing: border-box;" />तथा शरीराणि विहाय जीर्णा<br style="box-sizing: border-box;" />न्यन्यानि संयाति नवानि देही</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">भावार्थ: मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है ऐसे ही आत्मा पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीर में चला जाता है।<br style="box-sizing: border-box;" />गीता में यह भी कहा गया है कि</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।<br style="box-sizing: border-box;" />न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ 2/23</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">भावार्थ: इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता॥23॥</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">संसार के किसी भी वस्तु से हम आत्मा को छू भी नहीं सकते और ध्यान देने योग्य बात यह है कि जल वायु अग्नि तीनों ही हिंदू धर्म में देवता माने गए हैं| हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य अपने कर्मो के फल स्वरूप या तो मोक्ष प्राप्ति कर लेता है या फिर आत्मा नया शरीर को धारण कर लेती है |इसलिए हमारे यहां कहां जाता है,</p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #444444; font-family: "Open Sans", serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 10px;">ओम शांति सदगति<br style="box-sizing: border-box;" />अर्थात: ईश्वर आत्मा को शांति दे मोक्ष की प्राप्ति हो|</p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3554570696076403799.post-85547656241986697612023-05-24T05:45:00.006-07:002023-05-24T05:45:51.851-07:00राजदंड सेंगोल: इतिहास के आइने से लेकर सेंट्रल विस्टा तक <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifD0JhidRUTVZah7jojjSErhkp4MSyJT1hsPmUW7OE3CsP1Hxs8c72dahh1NnGErUWZ317W6SElPyACu_0Z1i4O705Q6b8nIvseK3pZmRvhE4V3owDQC2MgLq78Om3R_4RZfr6lhNAh6iVbS3G_2L3w4p7rl1j1esOgeaG408lAntFkmwUEBn4K4wMlw/s1102/sengol.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="620" data-original-width="1102" height="360" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifD0JhidRUTVZah7jojjSErhkp4MSyJT1hsPmUW7OE3CsP1Hxs8c72dahh1NnGErUWZ317W6SElPyACu_0Z1i4O705Q6b8nIvseK3pZmRvhE4V3owDQC2MgLq78Om3R_4RZfr6lhNAh6iVbS3G_2L3w4p7rl1j1esOgeaG408lAntFkmwUEBn4K4wMlw/w640-h360/sengol.jpg" width="640" /></a></div><br /> <p></p><p>सेंगोल का आशय राजदंड से लगाया जाता है, 14 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि पं. जवाहर लाल नेहरू को जो सेंगोल सौंपा गया था उस पर ऊपर भगवान शिव के सेवक नंदी की आकृति है. जो एक गोले पर विराजमान हैं. सेंगोल में इस गोले का अर्थ संसार से लगाया गया है. इसके ऊपर विराजमान शिव के वाहन नंदी की सुंदर नक्काशी है, जिन्हें सर्वव्यापी, धर्म व न्याय के रक्षक के वाहन के रूप में माना गया है. इसमें तिरंगे की नक्काशी भी है. </p><p><br /></p><p>सेंगोल को चोल वंश के राजा प्रयोग करते थे, उस समय एक राजा दूसरे चोल राजा को सत्ता हस्तांतरण इसी सेंगोल के माध्यम से करता था. जो बेहद ठोस, सुंदर नक्काशी वाला सुनहरा राजदंड था. इस पर भी भगवान शिव के वाहन नंदी की नक्काशी होती थी, इतिहासकारों के मुताबिक चोल भगवान शिव के परम भक्त थे, इसीलिए राजदंड में उनके परम भक्त नंदी की आकृति होती थी. सेंगोल के अति सुंदर कृति है, इसकी लंबाई पांच फीट है जो शिल्प कौशल से संपन्न है.</p><p><br /></p><p>सेंगोल को उस समय तमिलनाडु के प्रसिद्ध स्वर्णकार वुम्मिडी एथिराजुलु और वुम्मिडी सुधाकर ने 10 शिल्पकारों के दल के साथ बनाया था. इसे चांदी से तैयार किया गया था और उसके ऊपर सोने की परत चढ़ाई गई थी. इस काम में 10 से 15 दिन लगे थे. सेंगोल बनाने वाले वुम्मिडी भाइयों के मुताबिक यह बहुत गर्व की बात थी.</p><p> </p><p>श्री ला श्री तंबीरन सेंगोल को लेकर तमिलनाडु से दिल्ली तक गए थे, उन्होंने पहले इसे माउंटबेटन को सौंपा था और उसके बाद इसे वापस लेकर पवित्र जल से शुद्ध किया था. इसके बाद पं. जवाहर लाल नेहरू के आवास पर जाकर सेरेमनी में श्री ला श्री तंबीरन ने तत्कालीन राष्ट्रपतित पं. राजेंद्र प्रसाद और अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति में इसे नेहरू जी को सौंपा था. </p>Alaknanda Singhhttp://www.blogger.com/profile/15279923300617808324noreply@blogger.com2