उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की हकीकत बताने पर एक रिपोर्ट आई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों के लिए पिछले वर्ष एक रिफ्रेशर कोर्स ज्वॉइन करने हेतु जो परीक्षा आयोजित की गई थी, उसमें 40 प्रतिशत शिक्षक फेल हो गए।
दरअसल मानव संसाधन मंत्रालय ने उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता व यहां के शिक्षकों के ज्ञान को परखने को एक ऑनलाइन रिफ्रेशर कोर्स ‘ARPIT‘ (ऐनुअल रिफ्रेशर प्रोग्राम इन टीचिंग) जारी किया। इसमें शामिल होने के लिए एक शुरुआती टेस्ट होना था। अकर्मण्यता का इससे बड़ा नमूना और क्या हो सकता है कि इस रिफ्रेशर कोर्स ‘अर्पित’ को लेकर उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ा रहे लगभग 15 लाख शिक्षकों में से सिर्फ 51000 शिक्षकों ने ही रजिस्ट्रेशन कराया और उनमें से भी सिर्फ 6,411 शिक्षक ही शामिल हुए जिसमें से भी 40 प्रतिशत शिक्षक फेल हो गए।
यूं इस कोर्स को करना अनिवार्य नहीं था परंतु इसे पदोन्नति से जोड़ा गया था, बावजूद इसके इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों का ‘रिफ्रेशर कोर्स टेस्ट’ में फेल होना ये बताता है कि उच्च शिक्षा में बदहाली और शिक्षकों की जो ‘दयनीय’ दशा है, वह दरअसल इकतरफा है, जानबूझकर प्लान्ट की गई है । इस इकतरफा ‘स्थापित की गई तस्वीर’ में कहीं भी ना तो शिक्षकों की अकर्मण्यता का जि़क्र आता है और न ही शैक्षिक माफियागिरी का। निश्चित जानिए ना तो इन फेल हुए 40 प्रतिशत का उल्लेख होगा और ना ही उन 14 लाख 40 हजार का जिन्होंने परीक्षा केलिए रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराया।
बहरहाल शिक्षक संघों द्वारा हमारे सामने बनाई गई तस्वीर में शिक्षकों को सदैव बेचारा बताकर सरकारों को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है जबकि तस्वीर का दूसरा रुख जो आज हमारे सामने 40 % के रूप में आया, वह उच्च शिक्षा के इन कमजोर कंधों की हकीकत बयान करता है। वह यह भी बताता है कि देश के करदाताओं का पैसा इन जैसे ना जाने कितने अकर्मण्यों पर बरबाद किया जा रहा है। कम तनख्वाह, अतिरिक्त कार्य के अलावा बात बात पर जिंदाबाद मुर्दाबाद करते शिक्षक संघों, यूनीवर्सिटी यूनियनों के जरिए संस्थानों पर हावी रहने की निकम्मी-प्रवृत्ति ने शिक्षण कार्य की गुणवत्ता को तो प्रभावित किया ही है, साथ ही उन्हें परजीवी की भांति गैरजिम्मेदार भी बना दिया और नतीजा हमारे-आपके सबके सामने है कि हम अपने बच्चों के भविष्य को आखिर किसके हाथों सौंपते चले आ रहे हैं।
नियम तो ये होना चाहिए कि जो देश के भविष्य का निर्माण करने को नियुक्त ऐसे सभी लोग अपनी योग्यता समय-समय पर सिद्ध करने को बाध्य हों क्योंकि तभी उच्च शिक्षा में आगे बढ़ा जा सकता वरना अभी तक तो हम सरकार पर शिक्षाबजट कम होने का आरोप लगाकर कबूतर की भांति असल समस्या को देखकर आंखें ही बंद करते आए हैं।
सार्थक लेख है दी जी अध्यापकों ऐसी हालत.... बच्चे कैसे होंगे ?
जवाब देंहटाएंसादर
जी अनीता जी, हकीकत देखने के बाद विश्वास स्वयं उठ रहा है तभी तो गुरू से अध्यापक तक नीचे की ओर आते गए हैं ये लोग
हटाएंधन्यवाद शास्त्री जी
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