कहीं UP Election 2017 के लिए ये एक चीता चाल तो नहीं, कहीं स्मृति
ईरानी को बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए ही तो कम महत्व का मंत्रालय नहीं
दिया गया, कहीं अमेठी में राहुल गांधी को कड़ी टक्कर देने वाली स्मृति को
यूपी की कमान तो नहीं दी जा रही…?
ऐसे तमाम प्रश्न चुनावी पंडितों के जहन में तैर रहे हैं, लाजिमी भी है ऐसा होना क्योंकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाकर अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण कपड़ा मंत्रालय यदि प्रखर वक्ता और मीडिया में मोदी जी के बहुत करीबी मानी जाने वाली मंत्री को दे दिया जाए तो ये चर्चा तो होगी ही। लोग तो सोचेंगे ही कि आखिर उनके पर क्यों कतरे गए।
चुनावी विश्लेषक तो ये भी कह रहे हैं कि चीता सी चाल यानि ‘दो कदम आगे फिर एक कदम पीछे’ रहकर अटैक करने में विश्वास करने वाले प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, स्मृति ईरानी के लिए यूपी में किसी रोल की पटकथा तैयार कर चुके हों तो कोई हैरानी नहीं होगी।
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद आए इस बड़े बदलाव पर भले ही स्मृति का कद छोटा करने की चर्चा आम हो गई पर राजनीतिक पंडित मानते हैं कि ये स्मृति ईरानी के पर कतरने नहीं, बल्कि पर फैलाने का इंतजाम किया गया है। इसकी वजह भी है कि कपड़ा मंत्रालय के जरिए रोजगार के सर्वाधिक अवसर और उत्तर प्रदेश में चुनावों तक इसे जमीन पर उतारना व इसके जरिए युवा वोटरों को भाजपा तक लेकर आना। इस पूरी कवायद में एक तो स्मृति का चेहरा, उनकी आक्रामकता और रोजगार… ये तीनों ही कारण निम्न वर्ग व मध्यम वर्ग के युवाओं को भाजपा के वोट में तब्दील कर सकते हैं।
इन पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो स्मृति ईरानी की छवि जिस तरह से युवाओं में लगातार बढ़ रही है और जिस तरह से लोकसभा चुनाव से ही वह गांधी परिवार से उनके ही गढ़ में लोहा लेती रही हैं, उसे देखते हुए उन्हें यूपी महासमर का प्रणेता बनाया जा सकता है।
भाजपा लगातार यूपी के चुनावी महासंग्राम की न सिर्फ तैयारी में लगी है बल्कि विरोधी पार्टियों की चाल को भी पढ़ने में जुटी है। मंत्रिमंडल में फेरबदल इसी का नतीजा है व इसके बाद संगठन और संघ में भी फेरबदल इसी चाल को पढ़ कर किया जाने वाला है।
कांग्रेस द्वारा जिस तरह से यूपी के लिए प्रियंका वाड्रा के रूप में ब्रह्मास्त्र छोड़ने का लगभग ऐलान किया जाना तय माना जा रहा है, उसी तरह से भाजपा भी स्मृति को मुख्यमंत्री के तौर पर यूपी चुनाव में उतार सकती है, हालांकि अभी दोनों पार्टियां इनके लिए किसी भी तरह की घोषणा से बच रही हैं।
कुछ दिन पहले हुए भाजपा के एक आंतरिक सर्वे में भले ही वरुण गांधी और राजनाथ सिंह को यूपी की कमान संभालने पर बराबर का वोट मिला हो लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि स्मृति ईरानी ने भी वहां जबरदस्त प्रदर्शन किया था। एक असम को छोड़कर कई अन्य राज्यों की भांति भाजपा मुख्यमंत्री के लिए कोई एक नाम लेकर चलने की बजाय इन तीनों को ही लेकर चले तो भी अप्रत्याशित नहीं कहा जाएगा। ये उनकी पॉलिटकल स्ट्रेटजी भी रही है, इससे मुख्यमंत्री पद को लेकर आंतरिक कलह से बचा जा सकता है और हर प्रत्याशित व्यक्ति की क्षमताओं का भरपूर उपयोग भी किया जा सकता है ।
जहां तक बात स्मृति ईरानी की है तो लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में वह भले ही राहुल गांधी से हार गईं थी लेकिन उस चुनाव में राहुल को अगर 4 लाख वोट मिले थे तो स्मृति भी 3 लाख वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थीं और चुनावों के बाद भी जितनी बार स्मृति अमेठी गई हैं उतनी बार राहुल गांधी नहीं गये।
अमेठी में लोकसभा चुनाव जैसा करिश्मा करने वाली वह पहली भाजपा नेता हैं। स्मृति के इस बढ़ते कद से कांग्रेस भी एक बार सकते में आ गई थी इसलिए भाजपा आलाकमान स्मृति ईरानी के इस करिश्मे को भुलाए बिना और कैश कराना चाहती है, इसके पूरे पूरे आसार है।
बहरहाल, अभी स्मृति के कद को छोटा करने की रणनीति को किसी पनिशमेंट के बतौर सोचना जल्दबाजी होगी, वह भी उत्तर प्रदेश जैसे राजनैतिक रूप से अतिमहत्वपूर्ण राज्य के आसन्न चुनावों को देखते हुए। यही वजह रही कि कल स्मृति से उनके मंत्रालय को लेकर टिप्पणी जब की गई तो उन्होंने लगभग ठहाका लगाते हुए कहा था कि कुछ तो लोग कहेंगे और मेरा व आपका (मीडिया) साथ तो और आगे बढ़ेगा ही।
ऐसे तमाम प्रश्न चुनावी पंडितों के जहन में तैर रहे हैं, लाजिमी भी है ऐसा होना क्योंकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाकर अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण कपड़ा मंत्रालय यदि प्रखर वक्ता और मीडिया में मोदी जी के बहुत करीबी मानी जाने वाली मंत्री को दे दिया जाए तो ये चर्चा तो होगी ही। लोग तो सोचेंगे ही कि आखिर उनके पर क्यों कतरे गए।
चुनावी विश्लेषक तो ये भी कह रहे हैं कि चीता सी चाल यानि ‘दो कदम आगे फिर एक कदम पीछे’ रहकर अटैक करने में विश्वास करने वाले प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, स्मृति ईरानी के लिए यूपी में किसी रोल की पटकथा तैयार कर चुके हों तो कोई हैरानी नहीं होगी।
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद आए इस बड़े बदलाव पर भले ही स्मृति का कद छोटा करने की चर्चा आम हो गई पर राजनीतिक पंडित मानते हैं कि ये स्मृति ईरानी के पर कतरने नहीं, बल्कि पर फैलाने का इंतजाम किया गया है। इसकी वजह भी है कि कपड़ा मंत्रालय के जरिए रोजगार के सर्वाधिक अवसर और उत्तर प्रदेश में चुनावों तक इसे जमीन पर उतारना व इसके जरिए युवा वोटरों को भाजपा तक लेकर आना। इस पूरी कवायद में एक तो स्मृति का चेहरा, उनकी आक्रामकता और रोजगार… ये तीनों ही कारण निम्न वर्ग व मध्यम वर्ग के युवाओं को भाजपा के वोट में तब्दील कर सकते हैं।
इन पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो स्मृति ईरानी की छवि जिस तरह से युवाओं में लगातार बढ़ रही है और जिस तरह से लोकसभा चुनाव से ही वह गांधी परिवार से उनके ही गढ़ में लोहा लेती रही हैं, उसे देखते हुए उन्हें यूपी महासमर का प्रणेता बनाया जा सकता है।
भाजपा लगातार यूपी के चुनावी महासंग्राम की न सिर्फ तैयारी में लगी है बल्कि विरोधी पार्टियों की चाल को भी पढ़ने में जुटी है। मंत्रिमंडल में फेरबदल इसी का नतीजा है व इसके बाद संगठन और संघ में भी फेरबदल इसी चाल को पढ़ कर किया जाने वाला है।
कांग्रेस द्वारा जिस तरह से यूपी के लिए प्रियंका वाड्रा के रूप में ब्रह्मास्त्र छोड़ने का लगभग ऐलान किया जाना तय माना जा रहा है, उसी तरह से भाजपा भी स्मृति को मुख्यमंत्री के तौर पर यूपी चुनाव में उतार सकती है, हालांकि अभी दोनों पार्टियां इनके लिए किसी भी तरह की घोषणा से बच रही हैं।
कुछ दिन पहले हुए भाजपा के एक आंतरिक सर्वे में भले ही वरुण गांधी और राजनाथ सिंह को यूपी की कमान संभालने पर बराबर का वोट मिला हो लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि स्मृति ईरानी ने भी वहां जबरदस्त प्रदर्शन किया था। एक असम को छोड़कर कई अन्य राज्यों की भांति भाजपा मुख्यमंत्री के लिए कोई एक नाम लेकर चलने की बजाय इन तीनों को ही लेकर चले तो भी अप्रत्याशित नहीं कहा जाएगा। ये उनकी पॉलिटकल स्ट्रेटजी भी रही है, इससे मुख्यमंत्री पद को लेकर आंतरिक कलह से बचा जा सकता है और हर प्रत्याशित व्यक्ति की क्षमताओं का भरपूर उपयोग भी किया जा सकता है ।
जहां तक बात स्मृति ईरानी की है तो लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में वह भले ही राहुल गांधी से हार गईं थी लेकिन उस चुनाव में राहुल को अगर 4 लाख वोट मिले थे तो स्मृति भी 3 लाख वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थीं और चुनावों के बाद भी जितनी बार स्मृति अमेठी गई हैं उतनी बार राहुल गांधी नहीं गये।
अमेठी में लोकसभा चुनाव जैसा करिश्मा करने वाली वह पहली भाजपा नेता हैं। स्मृति के इस बढ़ते कद से कांग्रेस भी एक बार सकते में आ गई थी इसलिए भाजपा आलाकमान स्मृति ईरानी के इस करिश्मे को भुलाए बिना और कैश कराना चाहती है, इसके पूरे पूरे आसार है।
बहरहाल, अभी स्मृति के कद को छोटा करने की रणनीति को किसी पनिशमेंट के बतौर सोचना जल्दबाजी होगी, वह भी उत्तर प्रदेश जैसे राजनैतिक रूप से अतिमहत्वपूर्ण राज्य के आसन्न चुनावों को देखते हुए। यही वजह रही कि कल स्मृति से उनके मंत्रालय को लेकर टिप्पणी जब की गई तो उन्होंने लगभग ठहाका लगाते हुए कहा था कि कुछ तो लोग कहेंगे और मेरा व आपका (मीडिया) साथ तो और आगे बढ़ेगा ही।
- Alaknanda singh
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