women के लिए बदजुबानी में कौन कम है भला, खासकर राजनीति में और वो भी
राजनीति अगर यूपी की हो तो कहने ही क्या। यूपी बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह के
बयान से देश की सियासत में उबाल है। उनकी मायावती पर की गई भद्दी टिप्पणी
को राजनीतिक के गिरते स्तर का एक और नमूना कहा जा रहा है। हालांकि ऐसा पहली
बार नहीं हुआ है।
घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं जिसके तहत -दयाशंकर सिंह के अपशब्दों के विरोधस्वरूप बसपा के गालीबाजों को अपनी जुबान साफ करने का मौका मिल गया और उन्होंने अपने नेता नसीमुद्दीन सिद्दकी की अगुवाई में दयाशंकर की पत्नी स्वाति व उनकी 12 साल की बच्ची को ”पेश” करने की बात कहकर गंदी जुबान की पराकाष्ठा पार कर दी। मायावती इसे TiT for Tat यानि गाली का बदला गाली बता रही हैं । कम से कम यूपी में सब जानते हैं कि बदजुबानी में तो स्तरहीन वह भी हैं ।
हालांकि दयाशंकर को भाजपा से निष्काषित कर उन्हें पदच्युत कर भाजपा ने अपना कर्तव्य निभाया, यूपी पुलिस दयाशंकर को खोजने में जुटकर अपना कर्तव्य निभा रही है और उनकी पत्नी स्वाति सिंह अपने व अपनी बेटी के प्रति बसपाइयों द्वारा बोले गए ”अपमानजनक अपशब्दों ” को लेकर मायावती के खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में मामला दर्ज करवा चुकी हैं। उनका कहना सही भी है कि पूरे देश ने देखा कि कल बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने किस भाषा का इस्तेमाल किया। क्या यह महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नहीं है।
बहरहाल, इस बदलते घटनाक्रमों के बावजूद बात तो ये है कि महिलाओं को लेकर इतनी बदजुबानी क्यों। इसी वजह से सियासत में महिलाओं का आना सभ्रांत स्तर का नहीं माना जाता।
ज़रा एक नजर समय समय पर दिए गए ”बड़े नेताओं” के इन गरियाऊ बयानों पर –
1. दिसंबर 2012 में जब गुजरात विधानसभा के चुनाव नतीजे आए थे, तब कांग्रेस के पूर्व सांसद संजय निरुपम ने स्मृति ईरानी को ठुमके वाली कह डाला था। निरुपम ने कहा था- आप तो टीवी पर ठुमके लगाती थीं और आज चुनावी विश्लेषक बन गई हैं।
2. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अपनी ही पार्टी की तत्कालीन सांसद मीनाक्षी नटराजन (मंदसौर) को सौ टंच माल करार दिया था।
3. वर्तमान में केंद्रीय मंत्री और पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह ने मीडिया को presstitutes कह कब संबोधित किया था।
4. दिल्ली से भाजपा विधायक ओपी शर्मा ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की विधायक अल्का लांबा को रात में घूमने वाली करार दिया था।
5. 2015 में जदयू नेता शरद यादव ने राज्यसभा में दक्षिण भारतीय महिलाओं पर अजीब टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, दक्षिण भारत की महिलाएं दिखने में काली होती हैं, लेकिन उनका शरीर सुंदर होता है। ऐसा यहां नजर नहीं आता।
6. 2014 में मुंबई के शक्तिमील में दो महिलाओं से गैंगरेप में कोर्ट के फैसले पर मुलायम सिंह यादव यह कह बैठे थे कि लड़के तो लड़के हैं। गलतियां करेंगे ही। जब भी दोस्ती खत्म होती है, लड़की के लिए लड़का रेपिस्ट बन जाता है।
7. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी का यह बयान भी खासा विवादों में रहा, जिसमें उन्होंने निर्भया गेंगरेप कांड के दौरान कहा था कि जो लड़कियां यहां हाथों में मोमबत्तियां लेकर प्रदर्शन कर रही हैं, वो रात में डिस्को जाती हैं।
ये तो वो उदारण हैं जो मुझे याद रहे अन्यथा हम अपने घर, मोहल्ले से लेकर हाई प्रोफाइल सोसाइटीज तक महिलाओं को गरियाने वालों को या तो तिरछी नजर से देखकर छोड़ देते हैं या फिर दो चार बात सुनाकर। राजनीति में आने वाली महिलाओं के लिए सम्मान पाना बड़ी टेढ़ी खीर है। खासकर तब जबकि हमारी नीति नियंता जमात चारित्रिक अपशब्दों का जखीरा अपनी कांख में हमेशा दबाए घूमती फिरती हो। किसी महिला से ज़रा सा मात खाए नहीं कि बिलबिलाकर गालियों को थूकने में देर नहीं करते, साथ ही जस्टीफाई भी करते हैं कि ”वो” तो है ही इसी लायक, ये सब तो राजनीति में चलता ही है, नहीं सुन सकती तो राजनीति में आई ही क्यों… आदि आदि।
मायावती के बहाने से ही सही, ये बात एकबार फिर उठी है और संसद से इसकी जोरदार भर्त्सना भी हुई, यह सूचक है कि समाज के सांस्कृतिक पतन को अब चुप होकर नहीं सुना जा सकेगा… आवाज उठेगी ही…।
– अलकनंदा सिंह
घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं जिसके तहत -दयाशंकर सिंह के अपशब्दों के विरोधस्वरूप बसपा के गालीबाजों को अपनी जुबान साफ करने का मौका मिल गया और उन्होंने अपने नेता नसीमुद्दीन सिद्दकी की अगुवाई में दयाशंकर की पत्नी स्वाति व उनकी 12 साल की बच्ची को ”पेश” करने की बात कहकर गंदी जुबान की पराकाष्ठा पार कर दी। मायावती इसे TiT for Tat यानि गाली का बदला गाली बता रही हैं । कम से कम यूपी में सब जानते हैं कि बदजुबानी में तो स्तरहीन वह भी हैं ।
हालांकि दयाशंकर को भाजपा से निष्काषित कर उन्हें पदच्युत कर भाजपा ने अपना कर्तव्य निभाया, यूपी पुलिस दयाशंकर को खोजने में जुटकर अपना कर्तव्य निभा रही है और उनकी पत्नी स्वाति सिंह अपने व अपनी बेटी के प्रति बसपाइयों द्वारा बोले गए ”अपमानजनक अपशब्दों ” को लेकर मायावती के खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में मामला दर्ज करवा चुकी हैं। उनका कहना सही भी है कि पूरे देश ने देखा कि कल बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने किस भाषा का इस्तेमाल किया। क्या यह महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नहीं है।
बहरहाल, इस बदलते घटनाक्रमों के बावजूद बात तो ये है कि महिलाओं को लेकर इतनी बदजुबानी क्यों। इसी वजह से सियासत में महिलाओं का आना सभ्रांत स्तर का नहीं माना जाता।
ज़रा एक नजर समय समय पर दिए गए ”बड़े नेताओं” के इन गरियाऊ बयानों पर –
1. दिसंबर 2012 में जब गुजरात विधानसभा के चुनाव नतीजे आए थे, तब कांग्रेस के पूर्व सांसद संजय निरुपम ने स्मृति ईरानी को ठुमके वाली कह डाला था। निरुपम ने कहा था- आप तो टीवी पर ठुमके लगाती थीं और आज चुनावी विश्लेषक बन गई हैं।
2. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अपनी ही पार्टी की तत्कालीन सांसद मीनाक्षी नटराजन (मंदसौर) को सौ टंच माल करार दिया था।
3. वर्तमान में केंद्रीय मंत्री और पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह ने मीडिया को presstitutes कह कब संबोधित किया था।
4. दिल्ली से भाजपा विधायक ओपी शर्मा ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की विधायक अल्का लांबा को रात में घूमने वाली करार दिया था।
5. 2015 में जदयू नेता शरद यादव ने राज्यसभा में दक्षिण भारतीय महिलाओं पर अजीब टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, दक्षिण भारत की महिलाएं दिखने में काली होती हैं, लेकिन उनका शरीर सुंदर होता है। ऐसा यहां नजर नहीं आता।
6. 2014 में मुंबई के शक्तिमील में दो महिलाओं से गैंगरेप में कोर्ट के फैसले पर मुलायम सिंह यादव यह कह बैठे थे कि लड़के तो लड़के हैं। गलतियां करेंगे ही। जब भी दोस्ती खत्म होती है, लड़की के लिए लड़का रेपिस्ट बन जाता है।
7. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी का यह बयान भी खासा विवादों में रहा, जिसमें उन्होंने निर्भया गेंगरेप कांड के दौरान कहा था कि जो लड़कियां यहां हाथों में मोमबत्तियां लेकर प्रदर्शन कर रही हैं, वो रात में डिस्को जाती हैं।
ये तो वो उदारण हैं जो मुझे याद रहे अन्यथा हम अपने घर, मोहल्ले से लेकर हाई प्रोफाइल सोसाइटीज तक महिलाओं को गरियाने वालों को या तो तिरछी नजर से देखकर छोड़ देते हैं या फिर दो चार बात सुनाकर। राजनीति में आने वाली महिलाओं के लिए सम्मान पाना बड़ी टेढ़ी खीर है। खासकर तब जबकि हमारी नीति नियंता जमात चारित्रिक अपशब्दों का जखीरा अपनी कांख में हमेशा दबाए घूमती फिरती हो। किसी महिला से ज़रा सा मात खाए नहीं कि बिलबिलाकर गालियों को थूकने में देर नहीं करते, साथ ही जस्टीफाई भी करते हैं कि ”वो” तो है ही इसी लायक, ये सब तो राजनीति में चलता ही है, नहीं सुन सकती तो राजनीति में आई ही क्यों… आदि आदि।
मायावती के बहाने से ही सही, ये बात एकबार फिर उठी है और संसद से इसकी जोरदार भर्त्सना भी हुई, यह सूचक है कि समाज के सांस्कृतिक पतन को अब चुप होकर नहीं सुना जा सकेगा… आवाज उठेगी ही…।
– अलकनंदा सिंह
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