आज पाकिस्तानी मॉडल कंदील बलोच की हत्या से ना जाने कितने सवाल जहन में आ रहे हैं जो ये सोचने पर विवश कर रहे हैं कि आखिर इस्लाम के नाम पर, गैर मजहब के नाम पर, महिलाओं (औरत शब्द का प्रयोग मैं नहीं करूंगी क्योंकि इस शब्द का प्रयोग अरब देशों में महिला के जेनाइटल भाग को संबोधित करने के लिए किया जाता रहा है मगर उर्दू में आते-आते इसे महिलाओं के ही लिए प्रयोग किया जाने लगा) के नाम पर एक पूरा का पूरा धर्म इतना डरा हुआ क्यों है कि उसे सब अपने विरुद्ध जाते दिखाई दे रहे हैं।
क्यों उसके धर्म गुरू इतने भीरू हो गए हैं कि भटकी हुई सोच और हावी होती क्रूरता को वे कंट्रोल नहीं कर पा रहे।
दशकों से चलता आ रहा ये तंगदिली का खेल फतवों से आगे ही नहीं बढ़ पा रहा। यदि कहीं बढ़ रहा है तो वह हथियार, खूनखराबा, जो जहालत के नए नए प्रतिमान गढ़ रहा है, जो अपने लिए तमाम प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए सफाइयां तलाश रहा है। अपनी जाहिल सोच को जस्टीफाई करने पर आमादा है।
आखिर क्या वजह है कि पूरी दुनिया में जहां कहीं भी कत्लोआम और आतंकवादी वारदात होती हैं वहां बतौर गुनहगार कथित इस्लामपरस्त जरूर मौजूद होता है।
मैं देशों और आतंकवाद पर ना जाते हुए आज ही घटे क्रूर घटनाक्रम ''कंदील बलोच की हत्या '' के ही मुद्दे पर आती हूं. इसके मानने वाले इतने तंगदिल हैं कि कंदील बलोच के वीडियो को, उसकी सेंसेशनल बने रहने की ख्वाहिश को सहन नहीं कर पाए और उसे उसके अपनों ने ही मौत की नींद सुला दिया।
सोशल मीडिया पर चल रही खबरें बताती हैं कि कंदील के इस कथित ''गुनाह'' के कितने चाहने वाले थे जिसमें पुरुष ही नहीं औरतें भी हैं, सब पूछ रहे हैं कि 'आज़ाद ख्याल लड़की से क्या इस्लाम ख़तरे में था'।
क़ंदील बलोच की हत्या के बाद लोग सोशल मीडिया पर उन्हें याद कर रहे हैं। क़ंदील की हत्या उन्हीं के भाई ने कर दी है, पंजाब पुलिस ने इसकी पुष्टि की है।
पाकिस्तानी मीडिया इसे ऑनर किलिंग यानी सम्मान के नाम पर क़त्ल तो बता रहा है मगर उसकी डरपोक प्रवृत्ति उन कारणों की ओर रुख नहीं करती जो उस देश को जहालत के गर्त में धकेल रहे हैं। पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी क़ंदील बलोच की खबरें ट्विटर पर टॉप ट्रेंड हो रही हैं।
बहरहाल, पाकिस्तानी फ़िल्मकार शर्मीन ओबैद ने लिखा, "ऑनर किलिंग में क़ंदील बलोच की हत्या. हमारे ऑनर किलिंग विरोधी क़ानून बनाने से पहले कितनी महिलाओं को अपनी जान देनी होगी."
भारतीय अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने लिखा, "भ्रूण के रूप में लड़कियां बाप के हाथों मारी जाती हैं, सम्मान के नाम पर भाइयों के हाथों मारी जाती हैं और पत्नी के रूप में दहेज़ के लिए मारी जाती हैं.'
मीशा शफ़ी ने लिखा, "क्या आपने कभी सुना है कि किसी बहन ने अपने भाई की बैग़ैरती के लिए उसकी हत्या कर दी हो? नहीं. ये सम्मान का नहीं पितृसत्ता का मामला है."
मंसूर अली ख़ान ने लिखा, "प्रिय मीडिया, ग़ैरत (सम्मान) के नाम पर क़त्ल जैसी कोई चीज़ नहीं होती. ये वाक्य ही अपने आप में अपमानजनक है."
उमैर जावेद ने लिखा, "कैसा दयनीय छोटी सोच वाला देश है. हमें अपने आप पर ही शर्म आ रही है."
वहीं नज़राना गफ़्फ़ार ने लिखा, "उनके बेटे और पति की तस्वीरें प्रकाशित करने वाली मीडिया भी इसके लिए ज़िम्मेदार है. आपने भी उनके क़त्ल को उक़साया है."
महीन तसीर ने लिखा, "क़ंदील के बारे में लोगों के व्यक्तिगत विचार भले ही जो भी हों लेकिन क़त्ल को सही नहीं ठहराया जा सकता. उनके भाई को फ़ांसी होनी चाहिए."
सुंदूस रशीद ने लिखा, "एक पुरुष की इज़्ज़त महिला के शरीर में क्यों होती हैं?"
प्रमोद सिंह ने लिखा, "पाकिस्तानी मॉडल क़ंदील बलोच की हत्या.. ज़रा सा आज़ाद ख़याल वाली लड़की से भी इस्लाम खतरे में पड़ गया था!"
अजब है ये सोच। पाकिस्तान में क़दील बलोच के वीडियो को लोग ख़ूब देखते थे लेकिन उसे बुरा भी कहते रहे तो क्या कंदील पाकिस्तानी समाज का दोहरा चरित्र उजागर करती हैं? यूं भारत भी इस सोच से अलहदा नहीं है। भारतीय भी चाहते हैं चटपटे और सेंसेशनल वीडियो देखना साथ ही ये भी कि उनके घर की महिलायें इस बावत सोचें भी नहीं। मगर यह भी सच है कि भारत में हम बोल सकते हैं कि पुरुषों की ये दोहरी सोच स्वयं उन्हीं की कमजोरी जाहिर करती है, इसके ठीक उलट पाकिस्तान या किसी भी इस्लामिक देश में महिलाऐं बोलना तो दूर, वो अपनी भावनाएं जाहिर तक नहीं करा सकतीं। और जो कराने का साहस करती भी हैं उन्हें कंदील बलोच के हश्र को देखना होता है ।
अब वक्त आ गया है कि पूरी दुनिया में ''एक ही धर्म पर'' उसकी तंगदिली पर तमाम एंगिल से उठ रही उंगलियों की बावत मंथन हो, धर्म गुरू सोचें कि आखिर ''खून'' में डूबता-उतराता ये धर्म कब तक अपनी वकालत करेगा कि वह कट्टरपंथी नहीं है, वह शांति की बात करता है ।
- Alaknanda singh
क्यों उसके धर्म गुरू इतने भीरू हो गए हैं कि भटकी हुई सोच और हावी होती क्रूरता को वे कंट्रोल नहीं कर पा रहे।
दशकों से चलता आ रहा ये तंगदिली का खेल फतवों से आगे ही नहीं बढ़ पा रहा। यदि कहीं बढ़ रहा है तो वह हथियार, खूनखराबा, जो जहालत के नए नए प्रतिमान गढ़ रहा है, जो अपने लिए तमाम प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए सफाइयां तलाश रहा है। अपनी जाहिल सोच को जस्टीफाई करने पर आमादा है।
आखिर क्या वजह है कि पूरी दुनिया में जहां कहीं भी कत्लोआम और आतंकवादी वारदात होती हैं वहां बतौर गुनहगार कथित इस्लामपरस्त जरूर मौजूद होता है।
मैं देशों और आतंकवाद पर ना जाते हुए आज ही घटे क्रूर घटनाक्रम ''कंदील बलोच की हत्या '' के ही मुद्दे पर आती हूं. इसके मानने वाले इतने तंगदिल हैं कि कंदील बलोच के वीडियो को, उसकी सेंसेशनल बने रहने की ख्वाहिश को सहन नहीं कर पाए और उसे उसके अपनों ने ही मौत की नींद सुला दिया।
सोशल मीडिया पर चल रही खबरें बताती हैं कि कंदील के इस कथित ''गुनाह'' के कितने चाहने वाले थे जिसमें पुरुष ही नहीं औरतें भी हैं, सब पूछ रहे हैं कि 'आज़ाद ख्याल लड़की से क्या इस्लाम ख़तरे में था'।
क़ंदील बलोच की हत्या के बाद लोग सोशल मीडिया पर उन्हें याद कर रहे हैं। क़ंदील की हत्या उन्हीं के भाई ने कर दी है, पंजाब पुलिस ने इसकी पुष्टि की है।
पाकिस्तानी मीडिया इसे ऑनर किलिंग यानी सम्मान के नाम पर क़त्ल तो बता रहा है मगर उसकी डरपोक प्रवृत्ति उन कारणों की ओर रुख नहीं करती जो उस देश को जहालत के गर्त में धकेल रहे हैं। पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी क़ंदील बलोच की खबरें ट्विटर पर टॉप ट्रेंड हो रही हैं।
बहरहाल, पाकिस्तानी फ़िल्मकार शर्मीन ओबैद ने लिखा, "ऑनर किलिंग में क़ंदील बलोच की हत्या. हमारे ऑनर किलिंग विरोधी क़ानून बनाने से पहले कितनी महिलाओं को अपनी जान देनी होगी."
भारतीय अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने लिखा, "भ्रूण के रूप में लड़कियां बाप के हाथों मारी जाती हैं, सम्मान के नाम पर भाइयों के हाथों मारी जाती हैं और पत्नी के रूप में दहेज़ के लिए मारी जाती हैं.'
मीशा शफ़ी ने लिखा, "क्या आपने कभी सुना है कि किसी बहन ने अपने भाई की बैग़ैरती के लिए उसकी हत्या कर दी हो? नहीं. ये सम्मान का नहीं पितृसत्ता का मामला है."
मंसूर अली ख़ान ने लिखा, "प्रिय मीडिया, ग़ैरत (सम्मान) के नाम पर क़त्ल जैसी कोई चीज़ नहीं होती. ये वाक्य ही अपने आप में अपमानजनक है."
उमैर जावेद ने लिखा, "कैसा दयनीय छोटी सोच वाला देश है. हमें अपने आप पर ही शर्म आ रही है."
वहीं नज़राना गफ़्फ़ार ने लिखा, "उनके बेटे और पति की तस्वीरें प्रकाशित करने वाली मीडिया भी इसके लिए ज़िम्मेदार है. आपने भी उनके क़त्ल को उक़साया है."
महीन तसीर ने लिखा, "क़ंदील के बारे में लोगों के व्यक्तिगत विचार भले ही जो भी हों लेकिन क़त्ल को सही नहीं ठहराया जा सकता. उनके भाई को फ़ांसी होनी चाहिए."
सुंदूस रशीद ने लिखा, "एक पुरुष की इज़्ज़त महिला के शरीर में क्यों होती हैं?"
प्रमोद सिंह ने लिखा, "पाकिस्तानी मॉडल क़ंदील बलोच की हत्या.. ज़रा सा आज़ाद ख़याल वाली लड़की से भी इस्लाम खतरे में पड़ गया था!"
अजब है ये सोच। पाकिस्तान में क़दील बलोच के वीडियो को लोग ख़ूब देखते थे लेकिन उसे बुरा भी कहते रहे तो क्या कंदील पाकिस्तानी समाज का दोहरा चरित्र उजागर करती हैं? यूं भारत भी इस सोच से अलहदा नहीं है। भारतीय भी चाहते हैं चटपटे और सेंसेशनल वीडियो देखना साथ ही ये भी कि उनके घर की महिलायें इस बावत सोचें भी नहीं। मगर यह भी सच है कि भारत में हम बोल सकते हैं कि पुरुषों की ये दोहरी सोच स्वयं उन्हीं की कमजोरी जाहिर करती है, इसके ठीक उलट पाकिस्तान या किसी भी इस्लामिक देश में महिलाऐं बोलना तो दूर, वो अपनी भावनाएं जाहिर तक नहीं करा सकतीं। और जो कराने का साहस करती भी हैं उन्हें कंदील बलोच के हश्र को देखना होता है ।
अब वक्त आ गया है कि पूरी दुनिया में ''एक ही धर्म पर'' उसकी तंगदिली पर तमाम एंगिल से उठ रही उंगलियों की बावत मंथन हो, धर्म गुरू सोचें कि आखिर ''खून'' में डूबता-उतराता ये धर्म कब तक अपनी वकालत करेगा कि वह कट्टरपंथी नहीं है, वह शांति की बात करता है ।
- Alaknanda singh
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें