रायबरेली। 83 साल पहले छपे व आज दुर्लभ महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ के पुनर्प्रकाशन का विमोचन समारोह साहित्य आकदेमी के अध्यक्ष डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी युग निर्माता और युग प्रेरक थे। उन्होंने प्रेमचद, मैथिलीशरण गुप्त जैसे लेखकों की रचनाओं में संशोधन किए। उन्होंने विभिन्न बोली-भाषा में बंटी हिंदी को एक मानक रूप में ढालने का भी काम किया। वे केवल कहानी-कविता ही नहीं, बल्कि बाल साहित्य, विज्ञान, किसानों के लिए भी लिखते थे। हिंदी में प्रगतिशील चेतना की धारा का प्रारंभ द्विवेदीजी से ही हुआ।
श्री तिवारी आज से 83 साल पहले छपे व आज दुर्लभ महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ के पुनर्प्रकाशन के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति, रायबरेली और राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न इस समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात आलोचक प्रो. मैनेजर पांडे कर रहे थे। इस आयोजन में पद्मश्री रामबहादर राय, प्रो. पुष्पिता अवस्थी, नीदरलैंड , अनुपम मिश्र और न्यास की निदेशक डा. रीटा चौधरी विशिष्ट अतिथि थे।
उल्लेखनीय है कि सन 1933 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा आचार्य द्विवेदी के सम्मान में प्रकाशित इस ग्रंथ में महात्मा गांधी से लेकर ग्रियर्सन तक और प्रेमंचद से लेकर सुमित्रानंदन पंत व सुभद्रा कुमारी चौहान तक देश-दुनिया के सभी विशिष्ट लोगों ने आलेख लिखे थे।
कई दुर्लभ चित्रों से सज्जित यह ग्रंथ उस दौर की भारतीय संस्कृति व सरोकार का आईना था। इस दुर्लभ पुस्तक को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने फिर से प्रकाशित किया है जिसकी भूमिका प्रो. मैनेजर पांडे ने लिखी है। अपने उद्बोधन में प्रो. पांडे ने इस ग्रंथ को भारतीय साहित्य का विश्वकोष निरूपित किया। उन्होंने आचार्यजी की अर्थशास्त्र में रूचि व ‘‘संपत्ति शास्त्र’’ के लेखन, उनकी महिला विमर्ष और किसानों की समस्या पर लेखन में भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। श्री अनुपम मिश्र ने पुस्तक में प्रस्तुत चित्रों को अपने विमर्ष का केंद्र बनया। उन्होंने नंदलाल बोस की कृति ‘रूधिर’ और अप्पा साहब की कृति ‘मोलभाव’ पर चर्चा करते हुए उनकी प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त किए। श्री मिश्र ने अच्छे कामों के केंद्र को विकेंद्रीकृत करने पर जोर दिया।
नीदरलैड से पधारीं हिंदी विदुषी प्रो. पुश्पिता अवस्थी ने कहा कि इस ग्रंथ को कई-कई बार पढ़ कर ही सही तरीके से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदी का असली ताकत उन घरों में है, उन मस्तिष्कों में है जहां भारतीय संस्कृति बसती है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की निदेशक व साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका डा. रीटा चैधरी ने कहा कि यह अवसर न्यास के लिए बेहद गौरवपूर्ण व महत्वपूर्ण है कि हम इस अनूठे ग्रंथ के पुनप्र्रकाषन के कार्य से जुड़ पाए। उन्होंने ऐसी विशिष्ट पुस्तकों का अनुवाद सभी भारतीय भाषाओं में करने पर बल दिया। डा. चौधरी ने कहा कि यह ग्रंथ हिंदी का नहीं बल्कि भारतीयता का ग्रंथ है और उस काल का भारत दर्शन है।
प्रख्यात पत्रकार रामबहादुर राय ने इन दिनों मुद्रित होने वाले नामीगिरामी लोगों के अभिनंदन ग्रंथों की चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे ग्रंथों को लोग घर में रखने से परहेज करते हैं लेकिन आचार्य द्विवेदी की स्मृति में प्रकाशित यह ग्रंथ हिंदी साहित्य, समाज, भाषा, ज्ञान का विमर्श करते हैं ना कि आचार्य द्विवेदी की प्रशंसा मात्र। उन्होंने इस ग्रंथ को अपने आप में एक विष्व हिंदी सम्मेलन निरूपित किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री गौरव अवस्थी ने महावीर प्रसाद द्विवेदी से जुड़ी स्मृतियों का एक पॉवर पॉईंट प्रेजेंटेशन किया जिसमें बताया गया कि किस तरह से रायबरेली का आम आदमी, मजदूर, किसान भी आचार्य द्विवेदी जी को समझता और सम्मान करता है। अंत में पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने इस ग्रंथ के प्रकाशन हेतु राष्ट्रीय पुस्तक न्यास व इस आयोजन के लिए रायबरेली की जनता को धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन पंकज चतुर्वेदी ने किया।
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