रविवार, 19 जनवरी 2014

मैंने ही नहीं पी, तूने भी तो पी है.....

मैंने ही नहीं पी, तूने भी तो पी है.....वे दोनों दोस्‍त पंचों के फरमान को तोड़ने का दुस्‍साहस करने जा रहे थे मगर अभी ये बहस कानाफूसी स्‍टाइल में चल ही रही थी कि एक ग्रामीण  पंचों को ले आया और पंचों के सामने दोनों दोस्‍तों को आर्थिक दंड के साथ शराब को फिर कभी हाथ न लगाने के लिए अपने बच्‍चों की कसम खानी पड़ी।
इतना ही नहीं, भीषण ठण्‍ड के बावजूद उन पर ये ज़िम्‍मेदारी भी डाली गई कि वो आसपास  के चालीस कोसों तक शराब पर प्रतिबंध को लेकर जनजागरण करेंगे। चूंकि पंच जानते हैं कि शराब के लती या शौकीनों को बच्‍चों की कसम और आर्थिकदंड से नहीं रोका जा सकता, इसलिए उन्‍होंने इस कोहरे से लदी-फदी ठंड में बाहर निकलने की जिम्‍मेदारी डाल दी जो उन्‍हें शराब से दूर रखने में ज्‍यादा कारगर थी। अब वे दोनों रोज़ाना सुबह निकलते हैं और हर दिन एक गांव में जाकर शराब बंदी के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। इससे आगे का काम फिर पंचों का होता है।
जी हां! ये ब्रजक्षेत्र में शराब, शराबियों, ठेकेदारों और शराब माफियाओं के खिलाफ चलाया जाने वाला एक अनोखा अभियान है जिसे महज एक ग्राम पंचायत ने यूं ही एक प्रयोग के तौर पर शुरू किया था लेकिन आज एक दर्जन ग्राम पंचायतों में यह अभियान सफल रहा है । कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली के दूरदराज गांवों में ये अलख जगाकर पंचों ने तमाम नेतागिरी को आइना दिखाया है कि यदि इच्‍छाशक्‍ति हो तो कोई भी सुधार कार्यक्रम अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है। इसके लिए न बजट की जरूरत है... न सरकारी लावलश्‍कर की.... और ना ही अफसरशाही की।
अब तो आलम ये हो चला है कि जनपद मथुरा की हरियाणा और  राजस्‍थान से लगी सीमाओं तक इस अभियान ने अपना दायरा फैला लिया है। शराब माफियाओं के पैर उखड़ने लगे हैं, हालांकि अभी माफिया से पूरी तरह निजात मिलना बाकी है ।
 ये वही क्षेत्र है जहां गौकशी, अवैध हथियार सप्‍लाई, टटलुओं (पीतल को सोना बताकर अपराध करने वालों) की भारी मौजूदगी, बड़े बड़े ट्रकों की लूट एवं उनके चालक-परिचालकों की हत्‍या के साथ-साथ गांव के गांव वाहन चोरी के ऐसे गढ़ बन चुके हैं, यहां पुलिस को नाकों चने चबाने पड़ते हैं। पुलिस  के तमाम अधिकारी तो इसे बर्र के छत्‍ते की संज्ञा भी दे चुके हैं क्‍योंकि यहां अपराधी खोजे नहीं मिल सकता ।
ग्राम पंचायतों द्वारा सख़्ती के साथ लागू किए गये इस सुधार कार्यक्रम को अब आसपास की ग्राम पंचायतें स्‍वेच्‍छा से चलाने को रोज मशक्‍कत कर रही हैं। कोसी, छाता, शेरगढ़ से चलता हुआ ये अभियान अब राजस्‍थान के सीमावर्ती गांवों तक भी पहुंच गया है।
आज नज़ारा ये आम होता है कि न कोई भवन.. ना कोई चाय-नाश्‍ते का इंतजाम.. न कोई फाइलों का अंबार...और ना कोई वाहन..हर रोज पैदल चलकर जनजागरण की धुन... बस खुले में जल रहे अलावों के  आसपास खालिस ग्रामीण वेशभूषा में जमा होते पंच और जनता से उठती शपथ लेने की आवाजें बता रही हैं कि शराबबंदी के लिए चलाया जा रहा ये अभियान अब थमने वाला नहीं है। सिर्फ शराब पिलाकर ही शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी बरबादियों के इस मंज़र को भुगतने के लिए जो ग्रामीण अभिशप्‍त थे, वे आज सुधारक की भूमिका में हैं ।  जिस शिद्दत से  ग्रामीणों ने अपने इस अभियान को परवान चढ़ाने का जिम्‍मा अपने ही कंधों पर लिया है,उससे माफिया , अफसरों और उन नेताओं के होश फ़ाख्‍़ता हुये हैं जो अभी तक ग्रामीणों को अपनी उंगलियों पर नचाते आये थे।
एक बात और जनआंदोलन सरीखी दिखने वाली शराबबंदी की ये अनूठी कोशिश अभी तक विलुप्‍त हो चुकी पंचायत-व्‍यवस्‍था के प्रति 'आस्‍था' को वापस ला रही है। जनहित के निर्णय में युवाओं का वापस बढ़चढ़कर हिस्‍सा लेना शुभ संकेत है 'ग्राम - सुराज' का । इन पंचायतों ने नशाबंदी क्षेत्र में शराब विक्रेताओं पर 5100 रु. और शराब पीने वाले व्‍यक्‍ति पर 1100 रु. का दंड रखा है । साथ ही दंडस्‍वरूप दोषी व्‍यक्‍ति जनजागरूकता के लिए नये गांवों में जाकर अन्‍य लोगों को इस अभियान के प्रति चेतायेगा।
निश्‍चित ही इस एक लत से निजात दिलाकर तमाम अपराधों को न केवल रोका जा सकता है बल्‍कि संपन्‍नता और समृद्धि का नया ककहरा भी गढ़ा जा सकता है...बस ये अभियान यूं ही चलते रहना चाहिए...।

- अलकनंदा सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें