शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

घरों में पलते गुलाम

मानव तस्करी सुन कर लगता है कोई ऐसी बात है जो हमसे बहुत दूर की और सिर्फ पुलिस खुफिया एजेंसियों के मतलब की है. भारत के लोग यह देख ही नहीं पा रहे कि इस अपराध के शिकार उनके पास पड़ोस या खुद उनके घर में रह रहे हैं. दिल्ली के एक अस्पताल में बिस्तर पर लेटी 18 साल की लड़की के सिर पर बंधी मोटी पट्टी उन जुल्मों की कहानी बता रही है जो उसने चार महीनों में अपनी मालकिन के घर में सहे. होश में आई तो बोली, "वो मेरे बाल उखाड़ देंगी, मेरे सिर पर जोर से मारेंगी...हर वक्त वो मुझसे नाराज ही रहती हैं." इस लड़की का कहना है कि अकसर उसे बेल्ट, झाड़ू और जंजीरों से पीटा जाता है और उस घर में कैद कर रखा गया है जहां वह घर के काम करने आई थी. इस लड़की की बायीं गाल और सीने पर जख्मों के निशान हैं और उसका कहना है, "वो मुझे मेरा पैसा नहीं देंगी, मुझे फोन नहीं करने देतीं, किसी से मिलने नहीं देतीं, मेरे सारे दस्तावेज फाड़ डाले और वो कागज भी जिसमें रिश्तेदारों के नंबर थे."

इसी महीने पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उसे मालकिन की कैद से छु़ड़ा कर अस्पताल में भर्ती कराया. यह कहानी सिर्फ इसी लड़की की नहीं, दुनिया में गुलामों की तरह जी रहे आधे से ज्यादा लोग भारत में रहते हैं. दुनिया के गुलामों पर रिपोर्ट तैयार करने वाले संगठन वाक फ्री फाउंडेशन के प्रमुख निको ग्रोनो का कहना है, "लोगों को हिंसा के जरिए काबू में किया जाता है. वो छलावे से या फिर जबर्दस्ती इस तरह की हालत में डाले जाते हैं जहां उनका आर्थिक शोषण किया जा सके. उन्हें पैसा नहीं मिलता या मिलता भी है तो बहुत मामूली और उनके पास काम छोड़ने की आजादी नहीं होती."
जुल्म का शिकार हुई झारखंड की यह लड़की महज तीन साल स्कूल गई, काम से पैसा कमाकर घर भेजने का लक्ष्य लेकर दिल्ली आई थी. नौकर मुहैया कराने वाली एजेंसी के संपर्क में आने से पहले उसने कई घरों में काम किया. लड़की का नाम कानूनी वजहों से नहीं दिया जा सकता. इसी एजेंसी ने उसे इस घर में काम के लिए रखवाया. घर के मालिक को गिरफ्तार भी किया गया लेकिन वो आरोपों से इनकार करते हैं. मामला अभी अदालत में है. उसकी मां उसे वापस घर ले जा कर स्कूल में डालने की बात कह रही है.
 हर तरह का शोषण

भारत में प्रमुख रूप से महिलाओं को घरेलू कामों से लेकर वेश्यावृत्ति या जबरन विवाह के लिए मानव तस्करी और धोखे से या फिर डरा धमका कर इस काम में धकेला जाता है. जानकारों का कहना है कि निराश और परेशान मां बाप अपने बच्चों को बेच देते हैं जहां से उन्हें जबर्दस्ती भीख मांगने, यौन शोषण या फिर कोयले की खदानों में मजदूरी जैसे कामों में लगा दिया जाता है. संयुक्त राष्ट्र के नशीली दवाओं और अपराध से जुड़े विभाग यूएनडीओसी के मुताबिक अब भी इस तरह के जुल्मों के शिकार पहले दिल्ली लाए जाते हैं. यूएनडीओसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के साथ नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश से तस्करी के जरिए लाए गए लोगों की "दिल्ली मंजिल है और वहां से आगे जाने का केंद्र भी." इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि खासतौर से राजधानी में मानव तस्करी का यह धंधा बुरी शक्ल ले चुका है. आपराधिक गैंग अपने काम बढ़ाने के लिए प्लेसमेंट एजेंसी और मसाज पार्लर के रूप में कारोबार की तरह इसे चला रहे हैं.
 अपनों की तलाश

पश्चिम बंगाल की राबिया बीबी अपनी सबसे छोटी बेटी 17 साल की रानू के साथ खाने का सामान खरीदने बाजार गई थीं. वहां से उनकी बेटी को अगवा कर लिया गया. अब वो उसे ढूंढने दिल्ली आईं. कभी गांव से बाहर नहीं गईं राबिया बीबी दिल्ली के बारे में ना तो कुछ जानती हैं, ना ही उनके पास पैसे हैं. कई हफ्तों से पुलिस ने उनके साथ जगह जगह छापे मारे. वो बताती हैं, "तीन मछुआरों ने मेरी बेटी को एक तेज भागती कार में चीखते देखा था." गरीब मजदूर नवीन हारू भी इसी तरह अपनी 13 साल की बेटी ज्योति मरियम को ढूंढने का फैसला कर दिल्ली आए. दिन के उजाले में उनकी बेटी को छत्तीसगढ़ में स्कूल से लौटते वक्त अगवा कर लिया गया. दोनों घटनाएं एक जैसी लग रही हैं, लेकिन लड़कियां अलग अलग हालत में मिलीं. रानू को एक होटल के कमरे में बंद कर रखा गया था जबकि मरियम प्लास्टिक में लिपटे शव के रूप में बरामद हुई. आधिकारिक रूप से मौत की वजह मलेरिया दर्ज की गई और पुलिस की इसके पीछे के अपराध को जानने समझने में कोई दिलचस्पी नहीं है.
 भारत में अपराध की घटनाओं का लेखा जोखा रखने वाली एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने बताया कि पिछले साल कुल 38,200 महिलाओं और बच्चों को अगवा किया गया. इससे पहले के साल में यह तादाद 35,500 थी. हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि वास्तव में यह संख्या इससे बहुत ज्यादा है. मानव तस्करी रोकने के लिए नीतियां बनाने पर केंद्र सरकार के साथ मिल कर काम कर रही भामती कहती है, "अपराध का कोई क्षेत्र नहीं है, वह देशों या एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा नहीं जानता."

मानव तस्करी रोकने के लिए काम कर रहे गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी से जुड़े ऋषिकांत इन सबके पीछे आर्थिक विषमताओं को भी जिम्मेदार मानते हैं. उनका कहना है, "अमीर लोग अपने घरों में ऐसे नौकरों के लिए कोई भी पैसा देने को तैयार हैं जो उनके घर साफ करें और बचे हुए खाने पर जिंदा रहें. नौकर मुहैया कराने वाली अवैध एजेंसियां बड़ी संख्या में सभी बड़े शहरों में उग आई हैं.

रानू या वो लड़की तो किसी तरह बच कर वापस जा रही है लेकिन मरियम और उसकी जैसी हजारों या तो मारी जा रही हैं या मौत से मुश्किल जिंदगी जी रही हैं.



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