कल Fit india Movement का आग़ाज करते हुए जब पीएम नरेंद्र मोदी ने याद दिलाया कि हम ‘त’ से तलवार (तीव्रता, चपलता) पढ़ते-पढ़ते कब ‘त’ से तरबूज (आलस्य और अतिभोजनी) होते गए, इसका पता ही तब चला जब सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही फिट निकले।
ऐसे में गालिब का शेर याद आया कि
"कोई वीरानी सी वीरानी है, दश्त को देखकर घर याद आया…"
यानि जब चारों तरफ जंगल दिखता है तो घर याद आता है। ये शेर बड़ा सटीक बैठता है कि किस तरह हम ही अपनी जड़ों से स्वयं को काटते गए और बीमारों का एक पूरा देश खड़ा कर लिया।
चौतरफा बीमारों का एक बड़ा सा जंगल हमें 24 घंटे अपने आसपास नजर आता है, जो ये मनन करने पर बाध्य करता है कि क्या हम उन्हीं पूर्वजों की संतानें हैं जिन्होंने कभी एक पूरा का पूरा आयुर्वेद सिर्फ सेहत पर ही लिख दिया…जिन्होंने निरोगी काया को पहला सुख बताया…जिन्होंने आलस्य के लिए सूत्रवाक्य बना दिया कि ‘आलसस्य कुतो विद्या’…जिन्होंने योग को जीवन का मूलाधार बनाया…परंतु आज जब हम तकनीकी युग में जी रहे हैं तब पूर्वजों के इन्हीं भुलाए जा चुके ज्ञान की बेहद आवश्यकता है।
"कोई वीरानी सी वीरानी है, दश्त को देखकर घर याद आया…"
यानि जब चारों तरफ जंगल दिखता है तो घर याद आता है। ये शेर बड़ा सटीक बैठता है कि किस तरह हम ही अपनी जड़ों से स्वयं को काटते गए और बीमारों का एक पूरा देश खड़ा कर लिया।
चौतरफा बीमारों का एक बड़ा सा जंगल हमें 24 घंटे अपने आसपास नजर आता है, जो ये मनन करने पर बाध्य करता है कि क्या हम उन्हीं पूर्वजों की संतानें हैं जिन्होंने कभी एक पूरा का पूरा आयुर्वेद सिर्फ सेहत पर ही लिख दिया…जिन्होंने निरोगी काया को पहला सुख बताया…जिन्होंने आलस्य के लिए सूत्रवाक्य बना दिया कि ‘आलसस्य कुतो विद्या’…जिन्होंने योग को जीवन का मूलाधार बनाया…परंतु आज जब हम तकनीकी युग में जी रहे हैं तब पूर्वजों के इन्हीं भुलाए जा चुके ज्ञान की बेहद आवश्यकता है।
हम सुविधाओं के जंगल में अपने सुख का दश्त ढूढ़ रहे हैं कि कहीं तो अच्छी सेहत हासिल हो, कहीं तो शांति मिले, इसे हासिल करने के लिए ना जाने कितनी यात्राएं, कितने मंदिर और कितने हॉस्पीटल्स के चक्कर काटते रहते हैं कि सब ठीक हो जाए, परंतु इन सभी समस्याओं के मूल की ओर नहीं देखते। हम नहीं सोचते कि अपने पूर्वजों के ज्ञान की ओर जाकर हमारी ज़रा सी कोशिश इनमें से कई समस्याओं का न केवल निवारण करेगी बल्कि भविष्य भी सुरक्षित करेगी।
आज के हालात ये हैं कि तकनीक, आलस्य व दिखावे के कारण हमने अपना शरीर स्वयं पंगु बना दिया है, घरों में अपना काम स्वयं करना बंद कर दिया, सफाई से लेकर रसोई और अब तो बच्चों का पालन पोषण भी मेड के भरोसे कर दिया। एप के जरिए मोबाइल पर अपने कदमों की गिनती कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं कि आज इतने स्टेप्स चले। भरपूर और फास्ट फूड खाते हुए डायटिंग पर चर्चा क्या अपने ही साथ मजाक नहीं है। 10 मिनट चलकर ये सोचना कि यह 24 घंटे के लिए पर्याप्त है, निरा भ्रम है। ऐसा करके आखिर हम किसे धोखा दे रहे हैं। यह तो हमें ही सोचना होगा ना।
बहरहाल वृद्धाश्रमों, अस्पतालों की बढ़ती संख्या हो या मानसिक विकारों से उत्पन्न अपराधों में बाढ़, सभी की जड़ में बिगड़ती सेहत है। इसमें दूसरों (बीमारों व बूढ़ों) पर रहम करने की बजाय हम स्वयं पर रहम करें कि इन स्थितियों से हमें दो चार ना होना पड़े।
चलिए आप भी अपनी सेहत के लिए कुछ संकल्प साधिए और आखिर में इक़बाल साजिद का एक शेर-
प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े।
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े।
-अलकनंदा सिंह
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-09-2019) को " जी डी पी और पी पी पी में कितने पी बस गिने " (चर्चा अंक- 3445) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
धन्यवाद अनीता जी
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