सुरसा की तरह हमारे मूल्यों को निगल चुके बाजार का वश चले तो सभी को बीमार, बदसूरत, बेचारा व गरीब बना डाले। छोटे से पिज्जा के टुकड़े के लिए किसी लड़की या लड़के को ट्रैफिक रूल्स तोड़ते, यहां तक कि भूख के कारण लड़के से लड़की बने मॉडल को चॉकलेट खाते ही असली रूप में आते देख तो अतिशयोक्ति के सारे रिकॉर्ड टूट जाते हैं। लड़की जब खास क्रीम लगाती है तो गोरी होती है और जब गोरी होती है तो कॉन्फीडेंस और नौकरी में ऊंचे पद पर पहुंच जाती है।
रात दिन लोगों में उनके शरीर, रूप, रंग, खानपान व करियर को लेकर इतनी नकारात्मकता परोसते जाने का ही असर है कि आजकल किसी ना किसी तरह बच्चे, जवान, बूढ़े, शहर, ग्रामीण, पुरुष व महिलायें भारी कुंठा के शिकार हो रहे हैं।
ये जानते हुए भी कि ये विज्ञापन ”अपने-अपने झूठ ”सिर्फ और सिर्फ उत्पाद बेचने के लिए फैला रहे हैं, हम इनके उत्पादों के लिए अपने घरों को प्रयोगशाला और अपने शरीर को इनका ”गिनी पिग” बना चुके हैं, यानि लाइलाज बीमारियों को खुला आमंत्रण देते रहते हैं।
नकारात्मक और कमतर बताने का ये बाजारी फंडा एक और घिनौने रूप में तब हमारे सामने आता है जब हम शहर की ”हर दीवार” पर खानदानी शफाखानों (Sex clinics ) से जुड़े ”मर्दाना कमजोरी” के विज्ञापन देखते हैं।
मजे की बात ये है कि इन शफाखानों के डॉक्टर अजीब से निकनेम वाले होते हैं, गोया कि पूरा नाम लिखने से इनकी कोई ”कमजोरी” जाहिर हो जाएगी। आपत्तिजनक भाषाओं में लक्षणों का सरेआम प्रदर्शन ना जाने कितने पुरुषों (महिलाओं के लिए नहीं होते ये विज्ञापन) को कुंठित बनाता होगा। ऐसी कुंठायें कहां व किस रूप में निकलती होंगी, अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं। यौन अपराधों में बढ़ोत्तरी के पीछे अपराधी का कुंठित होना भी एक कारण अवश्य होता है।
इस सबके बीच अच्छी खबर ये है कि मथुरा-वृंदावन नगर निगम ने एक सराहनीय काम यह किया है कि अब शहर की दीवारों को Sex clinics के विज्ञापन से रंगने पर प्रतिबंध के साथ-साथ भारी-भरकम जुर्माना वसूलना शुरू कर दिया है ताकि शहर में ये फिर ना दिखाई पड़ें। स्थानीय सांसद हेमामालिनी द्वारा इन पर आपत्ति जताने के बाद शुरू हुआ अभियान धार्मिक शहर की छवि को तो सुधारेगा ही, साफ-सुथरे रूप में प्रस्तुत भी करेगा।
खानदानी शफाखानों पर ये कड़ाई श्रद्धालुओं अब पर्यटकों के बीच ना तो अश्लीलता का प्रचार कर पाएगी और ना ही धार्मिक शहर के छवि को खराब करेगी।
खानदानी शफाखानों पर ये कड़ाई श्रद्धालुओं अब पर्यटकों के बीच ना तो अश्लीलता का प्रचार कर पाएगी और ना ही धार्मिक शहर के छवि को खराब करेगी।
बहरहाल, बाजार ने नितांत व्यक्तिगत शारीरिक समस्याओं को कुंठाओं से भर देने वालों के खिलाफ एक शहर नहीं पूरे देश में कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। स्वस्थ समाज बनाने के भाषणों से हटकर जमीनी कार्यवाही होनी चहिए जैसे कि मथुरा-वृंदावन नगर निगम ने की। कम से कम धार्मिक स्थानों पर बाजार के ऐसे कुचक्रों को नहीं चलने देना चाहिए क्योंकि यहां श्रद्धालु आध्यात्मिकता के लिए आते हैं ना कि कुंठा मोल लेने।
-अलकनंदा सिंंह
आदरणीया दीदी जी - बेहतरीन और सार्थक सृजन आज के बदलते परिवेश का परिवर्तनशील चेहरा लिये दौड़ रहा समाज घुटनों पर बैठा है
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी, इस सार्थक टिप्प्णी के लिए धन्यवाद, समाज कितना भी घुटनों पर बैठ जाए हम उसे उठने पर बाध्य करते रहेंगे।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-08-2019) को " मुझको ही ढूँढा करोगे " (चर्चा अंक- 3424) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
मेरी पोस्ट को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए धन्यवाद अनीता जी
हटाएंबेहतरीन और सार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
धन्यवाद नीतीश जी, iwillrocknow.com की रचनायें बहुत अच्छी लगीं
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