किसी भी देश के अस्तित्व को उसकी सभ्यता के वर्षों पुराने इतिहास से आंका जाता है। आज के इस लेख से पहले मैंने एक बार लिखा था कि ''पहले हिन्दू राष्ट्र था अफगानिस्तान में 5000 हजार वर्ष पुराना विमान मिला'' (इसके बारे में विस्तृत रूप से आप यहां पढ़ सकते हैं), इस रिपोर्ट को लिखने के बाद कुछ पाठकों ने मेरी आलोचना भी की कि मैंने अवैज्ञानिक तरीके से तथ्यों को रखा और जानबूझकर सनातन सभ्यता को महिमामंडित किया। हालांकि मैंने प्राप्त तथ्यों के आधार पर ही लिखा था।
मगर अब बागपत के सिनौली गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को उत्खनन में कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जो अंग्रेजों द्वारा लिखे भारतवर्ष के इतिहास को बदल देंगे।
दरअसल, हमारे ही इतिहास को जिन दूसरों के द्वारा लिखा गया वो भारत के नायकों, विकसित विचारधाराओं को सम्माननीय दृष्टि से कभी देख ही न सके और वैदिक व्यवस्थाओं व आविष्कारों को पोंगापंथी कहकर गरियाते रहे।
बहरहाल, मुझ पर तथ्यहीन लेख लिखने का आरोप लगाने वाले इन पाठकों के लिए आज मैं फिर यह कहना चाहती हूं कि हमारे लिए तो.... शताब्दियों का ये रथ अब भी उसी गति से भाग रहा है....हम आज भी उतने ही आधुनिक और प्रयोगधर्मी हैं जितने वैदिक काल में थे। गुलामी के सैकड़ों सालों में भारतवर्ष के इतिहास को जिस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया और हमारी महान खोजों को मिट्टी में दबा दिया गया, वह अब मेरठ मंडल के बागपत जनपद की सिनौली साइट से पूरी दुनिया के सामने आ रहा है।
सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ी सामग्री मसलन उस समय के चिह्न, मिट्टी के बर्तन, कंकाल, आभूषण और कॉपर होर्ड सभ्यता से जुड़ी सामग्रियां अब तक अलग-अलग जगहों पर तो मिलीं थीं, लेकिन अब तक कोई ऐसा मौका पहले नहीं आया था जहां दोनों के चिह्न एक साथ मिले हों। सिनौली की खोदाई में तीन कंकाल, उनके ताबूत, आसपास रखी पॉटरी पर जहां सिंधु घाटी सभ्यता के चिह्न मिले हैं, वहीं लकड़ी के रथ में बड़े पैमाने पर तांबे का इस्तेमाल, मुट्ठे वाली लंबी तलवार, तांबे की कीलें, कंघी कॉपर होर्ड का प्रतिनिधित्व करती हैं। रथ के लकड़ी का हिस्सा तो मिट्टी हो चुका है लेकिन तांबा जस का तस है। उत्खनन में मिले ताबूत और उसके पास से मिले ये सामान प्रमाणित करते हैं कि यह शवाधान केंद्र किसी राजशाही परिवार का रहा होगा और वे लगभग पांच हजार पूर्व तांबे का प्रयोग करते थे।
इस सच के सामने आने से पहले हमने ''गुलामी के उस वजन'' को बखूबी ढोया है जिसमें कहा गया कि ''सिंधु घाटी सभ्यता के समापन के समय ही भारत में आर्यों का आक्रमण'' हुआ, उसके बाद आर्यों द्वारा यहां नए सिरे से एक सभ्यता गढ़ी गई और फिर नई-नई खोजें व विकास हुए, अर्थात् सिनौली की मिट्टी का उत्खनन अब अंग्रेजों द्वारा रचे गए इस ''आर्य इतिहास'' के झूठ को भी उजागर करेगा क्योंकि सिनौली उत्खनन में मिले रथ को देखकर पहली बार सिंधु घाटी सभ्यता और कॉपर होर्ड (ताम्रयुगीन संस्कृति) का सामंजस्य भी सामने आ गया है और वेद-ग्रंथों में बताई गई वस्तुओं का प्रमाण भी मिल गया।
तांबे और लकड़ी से रथ के साथ सिंधु घाटी सभ्यता के निशानों ने अब नए सिरे से इतिहास लिखने की बहस छिड़ चुकी है।
यह भी सत्य है कि जहां अंग्रेजों द्वारा उल्लिखित इतिहास के अनुसार आर्य सभ्यता में ही पहली बार घोड़े के उपयोग की बात की गई वहीं सिनौली के उत्खनित प्रमाण इससे पूर्व की सभ्यता के हैं अर्थात् भारत निर्माण और इसके पुरातात्विक महत्व को लेकर अब तक दिए तमाम तर्कों को सिनौली की मिट्टी झुठला रही है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के आंकलन में उत्खनित साइट पर मिले सामान लगभग चार से पांच हजार वर्ष पूर्व के हैं, लिहाजा अंग्रेजों का भारत पर आर्यों के आक्रमण और उनके द्वारा यहां पर नई सभ्यता की स्थापना को 1500-2000 वर्ष पुराना बताने वाले दावे धूल में मिल गए हैं। मिट्टी के नीचे दबे प्रमाणों के बाहर आने से यह अब साफ हो गया है कि आर्यों के आने से कम से कम तीन हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज रथ बना चुके थे और तत्कालीन राजसत्ता तांबे का भरपूर उपयोग करती थी।
इस संबंध में कुछ उन बयानों को मैं यहां देना चाहूंगी जो इतिहास के आंकलन और उसकी प्रमाणिकता के क्षेत्र में अव्वल माने जाते हैं।
सिनौली की धरती ने इसके अलावा यह भी सिद्ध किया है कि महान भारत की संस्कृति व समृद्धि को झुठलाने का प्रयास हर युग में किया जाता रहा और अब भी किया जा रहा है जबकि रामायण से लेकर महाभारत तक के काल की गाथा कहने वाले अवशेष सामने हैं।
-अलकनंदा सिंह
मगर अब बागपत के सिनौली गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को उत्खनन में कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जो अंग्रेजों द्वारा लिखे भारतवर्ष के इतिहास को बदल देंगे।
दरअसल, हमारे ही इतिहास को जिन दूसरों के द्वारा लिखा गया वो भारत के नायकों, विकसित विचारधाराओं को सम्माननीय दृष्टि से कभी देख ही न सके और वैदिक व्यवस्थाओं व आविष्कारों को पोंगापंथी कहकर गरियाते रहे।
In a First, Chariot From Pre-Iron Age Found During Excavation in UP's Sanauli |
बहरहाल, मुझ पर तथ्यहीन लेख लिखने का आरोप लगाने वाले इन पाठकों के लिए आज मैं फिर यह कहना चाहती हूं कि हमारे लिए तो.... शताब्दियों का ये रथ अब भी उसी गति से भाग रहा है....हम आज भी उतने ही आधुनिक और प्रयोगधर्मी हैं जितने वैदिक काल में थे। गुलामी के सैकड़ों सालों में भारतवर्ष के इतिहास को जिस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया और हमारी महान खोजों को मिट्टी में दबा दिया गया, वह अब मेरठ मंडल के बागपत जनपद की सिनौली साइट से पूरी दुनिया के सामने आ रहा है।
ASI approves excavation of tunnel near Mahabharata-era's 'Lakshagriha' |
इस सच के सामने आने से पहले हमने ''गुलामी के उस वजन'' को बखूबी ढोया है जिसमें कहा गया कि ''सिंधु घाटी सभ्यता के समापन के समय ही भारत में आर्यों का आक्रमण'' हुआ, उसके बाद आर्यों द्वारा यहां नए सिरे से एक सभ्यता गढ़ी गई और फिर नई-नई खोजें व विकास हुए, अर्थात् सिनौली की मिट्टी का उत्खनन अब अंग्रेजों द्वारा रचे गए इस ''आर्य इतिहास'' के झूठ को भी उजागर करेगा क्योंकि सिनौली उत्खनन में मिले रथ को देखकर पहली बार सिंधु घाटी सभ्यता और कॉपर होर्ड (ताम्रयुगीन संस्कृति) का सामंजस्य भी सामने आ गया है और वेद-ग्रंथों में बताई गई वस्तुओं का प्रमाण भी मिल गया।
तांबे और लकड़ी से रथ के साथ सिंधु घाटी सभ्यता के निशानों ने अब नए सिरे से इतिहास लिखने की बहस छिड़ चुकी है।
यह भी सत्य है कि जहां अंग्रेजों द्वारा उल्लिखित इतिहास के अनुसार आर्य सभ्यता में ही पहली बार घोड़े के उपयोग की बात की गई वहीं सिनौली के उत्खनित प्रमाण इससे पूर्व की सभ्यता के हैं अर्थात् भारत निर्माण और इसके पुरातात्विक महत्व को लेकर अब तक दिए तमाम तर्कों को सिनौली की मिट्टी झुठला रही है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के आंकलन में उत्खनित साइट पर मिले सामान लगभग चार से पांच हजार वर्ष पूर्व के हैं, लिहाजा अंग्रेजों का भारत पर आर्यों के आक्रमण और उनके द्वारा यहां पर नई सभ्यता की स्थापना को 1500-2000 वर्ष पुराना बताने वाले दावे धूल में मिल गए हैं। मिट्टी के नीचे दबे प्रमाणों के बाहर आने से यह अब साफ हो गया है कि आर्यों के आने से कम से कम तीन हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज रथ बना चुके थे और तत्कालीन राजसत्ता तांबे का भरपूर उपयोग करती थी।
इस संबंध में कुछ उन बयानों को मैं यहां देना चाहूंगी जो इतिहास के आंकलन और उसकी प्रमाणिकता के क्षेत्र में अव्वल माने जाते हैं।
1. सेंटर फॉर आम्र्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली के फेलो डॉ. अमित पाठक के अनुसार अंग्रेजों ने अभी तक यह साबित किया था कि आर्यों ने 1500-2000 वर्ष ईसा पूर्व भारत पर हमला किया। वे रथ से आए और यहां की सभ्यता को रौंदते हुए नई सभ्यता की नींव रखी। उनका दावा था कि आर्यों के आने से पहले तक यहां बैलगाड़ी थी, घोड़ागाड़ी नहीं जबकि सिनौली साइट की खोदाई में मिले रथ ने यह साबित कर दिया है कि रथ हमारे यहां लगभग पांच हजार वर्ष या उससे भी पहले से है। यानि रामायण, महाभारत की बात को यदि प्रमाण के रूप में ना भी लें तो अंग्रेजों की आर्य थ्योरी को पलटने के लिए तो सिनॉली के प्रमाण ही काफी हैं।कुल मिलाकर सिनौली की भूमि के अंदर दबी संस्कृति, सभ्यता और इतिहास की इन धरोहरों ने पूरी तरह यह साबित कर दिया कि अखंड भारत कभी कितना समृद्ध और सुविकिसित था।
2. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सुपरिंटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट रहे कमल किशोर शर्मा कहते हैं कि यह एक बड़ी डिस्कवरी है।
3. पुरातत्वविद् बी. लाल के साथ काम करने वाले के. के. शर्मा के अनुसार पूर्व में आर्कियो-जेनेटिक्स भी स्पष्ट कर चुकी है कि हमारे डीएनए, क्रोमोजोम में पिछले 12 हजार वर्ष में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और अब मिला यह आर्कियोलॉजिकल प्रमाण नए इतिहास को सृजित कर रहा है।
4. शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन कहते हैं कि दिसंबर 2007 में भी यहां 160 कंकाल मिले थे, जिनकी कॉर्बन डेटिंग के बाद स्पष्ट हुआ था कि ये लगभग चार से पांच हजार वर्ष पुराने हैं। ऐसे में रथ का यहीं से कंकालों के साथ मिलना अंग्रेजों की आर्य थ्योरी को पलट रहा है।
सिनौली की धरती ने इसके अलावा यह भी सिद्ध किया है कि महान भारत की संस्कृति व समृद्धि को झुठलाने का प्रयास हर युग में किया जाता रहा और अब भी किया जा रहा है जबकि रामायण से लेकर महाभारत तक के काल की गाथा कहने वाले अवशेष सामने हैं।
-अलकनंदा सिंह
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