कॉस्मिक किरणें-दिशा ज्ञान और नक्षत्र विज्ञान पर यूं तो कितना ही कुछ शोधों के द्वारा सिद्ध किया जा चुका है मगर इस पर बात फिर कभी करेंगे। फिलहाल इसी नक्षत्र-विज्ञान के अनुसार सौरमंडल में जो कुछ ग्रह अपनी वक्र गति ( retrogate) से चल रहे हैं उनके कारण समाज में जो कुछ भी गलत हुआ है उसकी साफसफाई का समय आ गया है और इसी कारण दशकों से जमे ''बाबाओं'' के डेरे-आश्रमों से लेकर विदेश के स्थापित साम्राज्यों व विनाशक शक्तियों तक सभी में उथलपुथल मची है...प्रकृति का मंथन तेज हो रहा है ताकि जो अग्रहणीय है उसे निकाल बाहर किया जाए और इस तरह ये मंथन-गति संतुलन की ओर बढ़ रही है ।
इसी मंथन से संबंधित दो वाकये बताती हूं- पहला तो यह कि दो दिन पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि फर्जी संतों-बाबाओं को सनातन धर्म की परंपराओं से खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा। हम इसके खिलाफ कार्यवाही करेंगे। कल इसी संदर्भ में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने स्वयंभू संत महात्माओं को फर्जी बताते हुए उन्हें साधु संन्यासी संत या बाबा मानने से इंकार कर दिया है। इतना ही नहीं इन्हें संत या महात्मा कहे जाने पर भी आपत्ति जताई है क्योंकि ये सनातन हिंदू परंपरा या अखाड़ा व्यवस्था के अंग नहीं हैं और न ही ये साधु संन्यासी हैं। परिषद की ओर से सभी 13 अखाड़ों को एडवाइजरी जारी की गई है कि उन्हें अपने यहां स्थापित समिति के अनुमोदन के बाद ही संतों महामंडलेश्वरों को मान्यता दिये जाने की सलाह दी है। इन 13 अखाड़ों में निरंजनी, आनंद, महानिर्वाणी, अटल, बड़ा उदासीन, नया उदासीन, निर्मल अखाड़ा,जूना, अव्हान,अग्नि, दिगंबर अणि,निर्वाणी अणि और निर्मोही अणि शामिल हैं।
दूसरा वाकया है कि - कल जिस समय अखाड़ा परिषद हरिद्वार में ये एडवाइजरी जारी कर रही थी ठीक उसी समय धर्मनगरी हरिद्वार से ही ताल्लुक रखने वाले एक पीठाधीश्वर रहे एक 'बाबा' का बीच सड़क कार की बोनट पर लड़की को 'किस' करते फोटो के सोशल मीडिया पर वायरल होने से चर्चाओं का बाजार गरम है, फोटो लोकेशन दिल्ली-आगरा यमुना एक्सप्रेस हाईवे की बताई जा रही है, इस पर अधिकारिक रूप से मुंह खोलने को तैयार नहीं। मामले की जानकारी और फोटो अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तक भी पहुंचा दी गई।
फोटो में दिख रहे बाबा हरिद्वार-देहरादून रोड पर स्थित एक आश्रम से जुड़े बताए जा रहे हैं हालांकि इन कथित बाबा के चेलों द्वारा सफाई दी जा रही है कि फोटो पुराना है और वह काफी समय पहले हरिद्वार से दिल्ली आश्रम चले गए हैं और अब वह कभी-कभार ही यहां आते हैं। उन्होंने दिल्ली स्थित आश्रम में ही अपना स्थायी डेरा बना लिया है मगर ये तो सफाईभर है ना। अभी हम इतने आधुनिक भी नहीं हुए हैं कि एक पीठाधीश्वर संत को सरेआम किस करते और सामाजिक सभ्यता के मापदंडों व मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाते देखते रहें और प्रतिक्रिया भी ना दें।
हम सब जानते हैं कि सनातन धर्म में गृहस्थ संतों को भी उतना ही महत्व दिया जाता रहा है जितना कि वैरागियों को मगर उच्छृंखलता को न कोई समाज मान्यता देता है और ना ही धर्म। समाज में व्यवस्था बनाए रखने के कुछ नियम होते हैं, और धर्म संवाहकों से इन्हें मानने की अपेक्षा सर्वाधिक होती है। मंदिरों-मठों में व्यभिचार की खबरें पहले भी आती रही हैं मगर अब ये सीमायें पार कर चुकी हैं। इनकी सफाई इनके भीतर से ही शुरू होनी चाहिए। गेरुए वस्त्रों की महिमा और सनातन धर्म की खिल्ली इस 'बाबा' जैसे न जाने ''कितने और बाबा'' उड़ा रहे होंगे, इस संबंध में अखाड़ा परिषद को सिर्फ एडवाइजरी जारी करके ही नहीं चुप रह जाना चाहिए बल्कि उन बाबाओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी करनी चाहिए। आज सड़क पर किस करते बाबा का फोटो वायरल हुआ है, कल को कोई ऐसा ही बाबा सड़क पर शारीरिक संबंध बनाता दिख जाए तो फिर आश्चर्य कैसा, बेलगाम इच्छाऐं और धर्म की आड़ में इन बाबाओं की असलियत सामने आनी ही चाहिए।
इसके साथ ही हमें ''गुरूदीक्षा लेने के कुचक्र'' की ओर भी ध्यान देना होगा जो हमारे आसपास अंधश्रद्धा के रूप में फैलाया जाता है कि मोक्षप्राप्ति के लिए किसी गुरू की का होना अति आवयश्क है। ये सारी बातें कतई निराधार हैं जबकि स्वयं गुरुओं के गुरू दत्तात्रेय ने कहा है कि ये उर्वर पृथ्वी, ये खुला आकाश, ये बहती हवाऐं, ये जलती आग, ये बहता पानी, ये सुबह उठता सूरज, ये रात बितातात चांद, ये इतराती तितलियां, ये शहद बनाती मक्खियां, ये मदमस्त हाथी, ये व्यस्त चीटियां, ये जाल बुनतीं मकड़ियां, कुलांचे भरते हिरन, चहचहाती चिड़ियां, अबोध बच्चे, बर्बर शिकरी, जहरीले सांप, ये सब गुरू ही तो हैं। जब प्रकृति की हर गतिविधि हमारी गुरू हो सकती है तो इन ''बाबाओं'' के कुचक्र से बचना कोई असंभव कार्य तो नहीं। क्या हम गुरू दत्तात्रेय के कहे इन वाक्यों को झ़ठला सकते हैं, नहीं, इन बाबाओं को साइडबाइ करने का एक ही फॉर्मूला है कि बस थोड़ी नजर चौकस और थोड़ी अपने प्रति विश्वास व अपनों के प्रति श्रद्धा...और क्या।
-अलकनंदा सिंह
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