जन्माष्टमी को दो दिन बचे हैं और मथुरा के मंदिरों-घाटों-आश्रमों-गेस्ट हाउसों में भारी भीड़ है। इस भीड़ में अधिकांशत: पूर्वी प्रदेश के दर्शनार्थी ही हैं, इसके बाद क्रमश: अगले नंबरों पर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान व पश्चिम बंगाल के लोग आते हैं। हर बार की तरह इस बार भी शहर के वाशिदों को आशंका है कि जन्माष्टमी के ठीक बाद इन दर्शनार्थियों द्वारा छोड़े गए अपने खाने-पीने-रहने-निवृत होने के अवशेषों से महामारी फैल जाएगी। ब्रज पिछले कई वर्षों से इस आशंका को वास्तविक रूप में भुगत भी रहा है।
सरकारी अमला और धार्मिक व समाजसेवी संस्थाऐं सब मिलकर दर्शनार्थियों की हर संभव सेवा और सुरक्षा करता है मगर सड़कों के किनारे बसें रोककर झुंड के झुंड जब निवृत होते हैं और स्नान कार्य संपन्न करते हैं तो शहर वासी चाहकर भी उनके प्रति सेवाभाव नहीं रख पाता और अपने ही अतिथियों के प्रति एक आशंका से भर उठता है।
पिछले लगभग 20 साल के आंकड़े बताते हैं कि गुरूपूर्णिमा और जन्माष्टमी के ठीक बाद से पुरे ब्रज क्षेत्र में वायरल, चिकनगुनिया जैसे रोग महामारी की तरह फैलते हैं। पिछले दो दिन से जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण गोरखपुर मेडीकल कॉलेज में जब से बच्चों की मौत का मंज़र देखा है, तब से ब्रज क्षेत्र में ऐसी ही किसी बीमारी की आहट से लोग चिंतित हैं।
बाबा जयगुरुदेव के अधिकांश अनुयायी पुर्वी उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखते हैं और शहरी क्षेत्र में आने वाले हाईवे का आधे से अधिक हिस्से पर इनका कब्ज़ा रहता है। अतिथियों की सेवा धर्म होती है मगर अतिथि इस सेवा का जो ''प्रसाद'' ब्रजवासियों को सौंप कर जाते हैं, वह इस बार भयभीत कर रहा है क्योंकि गोरखपुर में हुई मौतों का ताजा उदाहरण सामने है।
अधिकांशत: बच्चों को ही डसने वाली जापानी इंसेफेलाइटिस नामक इस महामारी से अकेले पूर्वी उत्तरप्रदेश में ही 1978 से अब तक मरने वाले बच्चों की संख्या लगभग ''एक लाख'' होने जा रही है। इसमें वो बच्चे शामिल नहीं हैं जो नेपाल के तराई इलाकों और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों से गोरखपुर मेडीकल कॉलेज में दाखिल किए गए।
अब तक ''गोरखपुर ट्रैजडी'' को ना जाने कितने कोणों से देखा जांचा जा रहा है, एक ओर सरकार पर विपक्ष हमलावर हो रहा है तो दूसरी ओर मीडिया ट्रायल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। कहीं कुछ कथित समाजसेवी अपनी पूर्व में व्यक्त की गई आशंकाओं को ''सच'' साबित करने पर तुले हैं।
नि:संदेह प्रदेश की योगी सरकार से मेडीकल कॉलेज प्रशासन पर निगरानी रखने में भारी चूक हुई और इतने बच्चों की मौत का कलंक उसे ढोना ही होगा क्योंकि लापरवाही के उत्तरदायित्व में वह तथा स्वास्थ्य मंत्रालय सहभागी रहा परंतु दूसरों पर दोष लादने की राजनैतिक पृवृत्ति को छोड़ अब मरीजों को, मृत बच्चों के परिजनों को हालिया राहत देते हुए खुले में शौच से संपूर्ण प्रदेश (खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश) को मुक्त करने के अभियान को कागजों से नीचे उतारने का काम कमर कस कर किया जाना चाहिए।
प्रशासनिक अधिकारियों पर ही नहीं, ग्रामीण स्तर पर इसके लिए ''जागरूकता अभियान इकाईयां'' बनाकर स्वयं सरकार के ''राजनैतिक समाजसेवी'' इस अभियान में जुटेंगे तो स्थिति काबू में लाई जा सकती हैं। ये इतना असाध्य भी नहीं है।
डिजिटलाइजेशन के इस युग में इस तरह की मौतों के लिए हम जैसे पढ़े-लिखे लोग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं यानि वो वर्ग जो अपने सुख तक सिमटा है और दोषारोपण करती बहसों का आनंद ले रहा है, बजाय इसके कि स्वच्छता और अशौच के प्रति लोगों को जागरूक करे।
बहरहाल, मैं वापस मथुरा और ब्रज के अन्य धार्मिक स्थानों पर फैले उस भय से सभी को परिचित कराना चाहती हूं जो कि अतिथियों का स्वागत करने से पहले उसके आफ्टर इफेक्ट्स से डर रहा है। हमारे कन्हाई भी अबकी बार इंसेफेलाइटिस के निशाने पर हैं...नंदोत्सव और राधाष्टमी तक वे खतरे में रहेंगे...हमें तैयार रहना ही होगा।
जन्माष्टमी पर हमारे यहां तो कन्हाई जन्मेंगे ही, लेकिन हम सभी ब्रजवासी गोरखपुर के उन कन्हाइयों की अकाल मौत से भी बेहद दुखी हैं जो सरकारी खामियों, अपनों के अशौच और उनकी लापरवाहियों का शिकार बन रहे हैं।
सरकार पर दोषारोपण इलाज मुहैया न कराने के लिए किया जा सकता मगर सफाई की सोच जब तक हमारे भीतर नहीं बैठेगी, तब तक हम अपने बच्चों को यूं ही गंवाते रहेंगे। हमें गरीब के नाम पर रहम परोसने की राजनीति छोड़नी होगी क्योंकि कोई कितना भी गरीब क्यों ना हो, गंदे हाथ धोने को मिट्टी और राख तो सभी जगह मिल सकती है, नीम- तुलसी हर घर में हो सकता है इसलिए बहानेबाजी, दोषारोपण तथा मौतों के आंकड़े गिनने से बेहतर है कि सच्चाई को स्वीकार किया जाए और अपने स्वच्छता की जिम्मेदारी खुद उठाई जाए।
हम तैयार हैं अपने अतिथियों की तमाम निवृत पश्चात फैली गंदगियों को साफ करने के लिए और अपने कन्हाई पर आ रहे महामारियों के खतरे से जूझने के लिए मगर अतिथियों से भी आशा करते हैं कि वे ब्रज रज के सम्मान को तार-तार न करें।
अपनी श्रद्धा के नाम पर ब्रजवासियों को सौगात में ऐसा कुछ परोसकर न जाएं जो उन पर और उनके परिवार पर भारी पड़े।
-अलकनंदा सिंह
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