अभी कोलकाता, मुरादाबाद और बदलापुर के रेप-गैंगरेप पर हम बात कर ही रहे थे कि आज राजस्थान के अजमेर शहर में 32 साल पहले हुआ अजमेर सेक्स स्कैंडल एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। इस मामले में कोर्ट ने 100 से ज्यादा छात्राओं से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में 6 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. अजमेर की विशेष अदालत ने यह फैसला सुनाया है। 32 साल पुराने इस सेक्स स्केंडल कांड में नफीस चिश्ती, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, नसीम सैयद, जमीर हुसैन व सोहिल गनी को कोर्ट ने दोषी माना।
इस सेक्स स्केंडल में कुल 18 आरोपी थे, जिनमें नौ आरोपियों को पहले ही सजा सुनाई जा चुकी है। बाकी बचे नौ आरोपियों में से एक ने सुसाइड कर लिया, एक फरार है और एक कुकर्म के आरोपी का अलग से ट्रायल चल रहा है।
ये था पूरा मामला
सन् 1992 लगभग 29 साल पहले सोफिया गर्ल्स स्कूल अजमेर की लगभग 250 से ज्यादा हिन्दू लडकियों का रेप जिन्हें लव जिहाद/ प्रेमजाल में फंसा कर, न केवल सामूहिक बलात्कार किया बल्कि एक लड़की का रेप कर उसकी फ्रेंड/ भाभी/ बहन आदि को लाने को कहा, एक पूरा रेप चेन सिस्टम बनाया, जिसमें पीड़ितों की न्यूड तस्वीरें लेकर उन्हें ब्लैकमेल करके यौन शोषण किया जाता रहा।
फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती- इस बलात्कार रेप कांड के मुख्य आरोपी थे। तीनों अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिम (केयरटेकर) के रिश्तेदार/ वंशज तथा कांग्रेस यूथ लीडर भी थे।
फारूक चिश्ती ने सोफिया गर्ल्स स्कूल की 1 हिन्दू लड़की को प्रेमजाल में फंसा कर एक दिन फार्म हाउस पर ले जा कर सामूहिक बलात्कार करके, उसकी न्यूड तस्वीरें लीं और तस्वीरो से ब्लैकमेल कर उस लड़की की सहेलियों को भी लाने को कहा।
एक के बाद एक लड़की के साथ पहले वाली लड़की की तरह फार्म हाउस पर ले जाना, बलात्कार करना, न्यूड तस्वीरें लेना, ब्लैकमेल कर उसकी भी बहन/ सहेलियों को फार्म हाउस पर लाने को कहना और उन लड़कियों के साथ भी यही घृणित कृत्य करना- इस चेन सिस्टम में लगभग 250 से ज्यादा लडकियों के साथ भी वही शर्मनाक कृत्य किया।
उस जमाने में आज की तरह डिजिटल कैमरे नही थे। रील वाले थे। रील धुलने जिस स्टूडियो में गयी वह भी चिश्ती के दोस्त और मुसलमान समुदाय का ही था। उसने भी एक्स्ट्रा कॉपी निकाल लड़कियों का शोषण किया।
ये भी कहा जाता है कि स्कूल की इन लड़कियों के साथ रेप करने में नेता और सरकारी अधिकारी भी शामिल थे। आगे चलकर ब्लैकमैलिंग में और भी लोग जुड़ते गये।
आखिरी में कुल 18 ब्लैकमेलर्स हो गये। बलात्कार करने वाले इनसे तीन गुने। इन लोगों में लैब के मालिक के साथ-साथ नेगटिव से फोटोज डेवेलप करने वाला टेकनिशियन भी था।
यह ब्लैकमेलर्स स्वयं तो बलात्कार करते ही, अपने नजदीकी अन्य लोगों को भी “ओब्लाइज” करते। इसका खुलासा हुआ तो हंगामा हो गया। इसे भारत का अब तक का सबसे बडा सेक्स स्कैंडल माना गया।
इस केस ने बड़ी-बड़ी कंट्रोवर्सीज की आग को हवा दी। जो भी लड़ने के लिए आगे आता, उसे धमका कर बैठा दिया जाता।
अधिकारियों ने, कम्युनल टेंशन (सांप्रदायिक तनाव) न हो जाये, इसका हवाला दे कर आरोपियों को बचाया।
अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम (केयरटेकर) चिश्ती परिवार का खौफ इतना था, जिन लड़कियों की फोटोज खींची गई थीं, उनमें से कईयों ने सुसाइड कर लिया।
एक समय अंतराल में 6-7 लड़कियां ने आत्महत्या की।
डिप्रेस्ड होकर इन लड़कियों ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया । एक ही स्कूल की लड़कियों का एक साथ सुसाइड करना अजीब सा था। सब लड़कियां नाबालिग और 10वी, 12वी में पढने वाली मासूम किशोरियां।
आश्चर्य की बात यह कि रेप की गई लड़कियों में आईएएस, आईपीएस की बेटियां भी थीं। ये सब किया गया अश्लील फोटो खींच कर। पहले एक लड़की, फिर दूसरी और ऐसे करके 250 से ऊपर लड़कियों के साथ हुई ये हरकत। ये लड़कियां किसी गरीब या मिडिल क्लास बेबस घरों से नहीं, बल्कि अजमेर के जाने-माने घरों से आने वाली बच्चियां थीं।
वो दौर सोशल मीडिया का नहीं, पेड/ बिकाऊ मीडिया का था। फिर पच्चीस तीस साल पुरानी ख़बरें कौन याद रखता है? ये वो ख़बरें थी जिन्हें कांग्रेसी नेताओं ने वोट और तुष्टीकरण की राजनीति के लिए दबा दिया था।
पुलिस के कुछ अधिकारियों और इक्का दुक्का महिला संगठनों की कोशिशों के बावजूद लड़कियों के परिवार आगे नहीं आ रहे थे। इस गैंग में शामिल लोगों के कांग्रेसी नेताओं और खूंखार अपराधियों तथा चिश्तियों से कनेक्शन्स की वजह से लोगों ने मुंह नहीं खोला।
बाद में फोटो और वीडियोज के जरिए तीस लड़कियों की शक्लें पहचानी गईं। इनसे जाकर बात की गई। केस फाइल करने को कहा गया। लेकिन सोसाइटी में बदनामी के नाम से बहुत परिवारों ने मना कर दिया। बारह लड़कियां ही केस फाइल करने को तैयार हुई। बाद में धमकियां मिलने से इनमे से भी दस लड़कियां पीछे हट गई।
बाकी बची दो लड़कियों ने ही केस आगे बढ़ाया। इन लड़कियों ने सोलह आदमियों को पहचाना। ग्यारह लोगों को पुलिस ने अरेस्ट किया। जिला कोर्ट ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई।
इसी बीच मुख्य आरोपियों में से फारूक चिश्ती का मानसिक संतुलन ठीक नहीं का सर्टिफिकेट पेश कर फांसी की सजा से बचा कर 10 साल की सजा का ही दंड मात्र दिया।
नवज्योति के संपादक दीनबंधु चौधरी ने स्वीकार किया था कि स्थानीय प्रशासन एवं अन्य अधिकारियों को इस कांड के खुलने के लगभग एक साल पहले से ही इस घोटाले की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने स्थानीय राजनेताओं के दवाब और प्रभाव के कारण जांच को रोकने की अनुमति दी और रोके रखा। चौधरी ने कहा कि आखिरकार उन्होंने कहानी के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया क्योंकि यह स्थानीय प्रशासन को कार्रवाई में जागृत करने का एकमात्र तरीका था।
अंत में, पुलिस ने आठ आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। आगे की जांच में कुल 18 लोगों को आरोपित किया गया और कई दिनों तक शहर में अत्यधिक तनाव व्याप्त रहा। विरोध करने के लिए लोग सड़कों पर उतर आए और सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। तीन दिवसीय बंद का आह्वाहन किया गया और फिर बाद में व्यापक शोषण और ब्लैकमेल की खबरें आने लगीं। सेवानिवृत्त राजस्थान के पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज जो उस समय अजमेर में पुलिस उपमहानिरीक्षक थें को आरोपियों ने बहुत परेशान किया और उन्होंने अपनी सामाजिक और वित्तीय ताकत के कारण ओमेंद्र भारद्वाज को इस मामले को आगे लाने से रोकने की बहुत कोशिश की।
राजस्थान के पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज, जो उस समय डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल के पद पर तैनात थे, ने इस घटना के संबंध में कहा था कि "आरोपी सामाजिक और आर्थिक रूप से अत्यंत हीं सक्षम और समृद्ध थें और इसी कारण पुलिस के लिए इन पीड़ित लड़कियां को इस कांड के घटना की जानकर देने और इस कांड में केस दर्ज करने के लिए आगे लाना अत्यंत ही कठिन कार्य था।"
इसके बाद राजनीतिक प्रभाव और प्रशासनिक अक्षमता की एक और गाथा लिखी गई। लड़कियों को प्रताड़ित करने और ब्लैकमेल करने का मामला अभी भी बंद होने से कोसों दूर था। कई पीड़ित जो गवाह बनने वाले थे, बाद में पलट गए। सामाजिक कलंक और आडंबर की बदबू इतनी बुरी थी कि शहर की लड़कियों को गिरोह का शिकार होने के बाद उन्हें एक दूसरे के साथ पहचान करवा कर आरोपियों ने आपस मे पहचान करा दिया था। पीड़ितों की संख्या कई सौ मानी गई। कुछ ही पीड़ित लड़कियां आगे आई। स्थिति इतनी खराब थी कि भावी दूल्हे, जो अजमेर की लड़कियों से शादी करने वाले थे, अखबारों के कार्यालयों में आ जाते थे और यह पता लगाने की कोशिश करते थे कि जिस लड़की से वे शादी करने जा रहे थे क्या उनकी होने वाली पत्नी कहीं उनमें से एक तो नहीं। अनंत भटनागर, राज्य महासचिव, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज और अजमेर के निवासी ने कहा कि लोग कहते थे कि अगर लड़की अजमेर की थी, तो उन्हें यह पता लगाना होगा कि वह किस तरह की लड़की थी।
इस भयावह मामले का सबसे विचलित करने वाला हिस्सा पीड़ितों की अनकही पीड़ा है। बलात्कार के बाद, अधिकांश पीड़ितों ने उत्पीड़न और धमकियों का सामना किया। इस से बाहर आने के लिए उन्हें समाज या उनके परिवारों से कोई समर्थन नहीं मिला। पुलिस जांच के अनुसार लगभग 6 पीड़ितों ने कथित तौर पर आत्महत्या की। अजमेर महिला संगठन जिसने पीड़ितो की मदद करने और इस पूरे घटना को कानूनी मदद देनी चाही तो उन्हें धमकियां मिलने लगीं और उन धमकियों के मिलने के कारण इस संगठन ने अपना विचार त्याग दिया। उस समय अजमेर में छोटे समय की वीडियोज काफी सनसनीखेज थीं। जैसे कि सैकड़ों लड़कियों का सामूहिक शोषण शहर की अंतरात्मा के लिए कोई नई ख़बर लेकर आई हो। कई पीड़ितों को कथित रूप से इन वीडियोस फ़ोटो और स्थानीय कागजात द्वारा आगे भी ब्लैकमेल किया गया था। उनके पास लड़कियों की स्पष्ट तस्वीरों तक पहुंच थी और मालिकों और प्रकाशकों ने लड़कियों के परिवारों से उन्हें छिपाए रखने के लिए पैसे मांगे।
एक स्थानीय अखबार नवज्योति ने सबसे पहले कुछ लड़कियों के नग्न चित्र और एक कहानी प्रकाशित की जिसमें स्कूली छात्राओं को स्थानीय गिरोह के द्वारा ब्लैकमेल किए जाने की बात कही गई थी। इसके बाद हीं लोगों को इस जघन्य कांड और इस घोटाले के संबंध में पता चला और फिर उसके बाद इस निर्मम कांड के एक-एक तार आपस मे जुड़ते चले गए।
दोनो मुख्य आरोपी अजमेर के प्रसिद्व मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिमों (या यूं कहें कि उस दरगाह के देखभालकर्ताओं) के कबीले से थें। मुख्य आरोपी फारूक चिस्ती था। उसके अतिरिक्त अजमेर के भारतीय युवा कांग्रेस से जुड़े हुए दो अन्य नफीस चिश्ती और उसका भाई अनवर चिश्ती क्रमशः अजमेर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उपाध्यक्ष और संयुक्त सचिव थे। अंततः 18 जाने-माने अपराधियों को अदालत में आरोपित किया गया। आठ को जीवन भर के लिए दोषी ठहराया गया था, उनमें से 4 को बाद में 2001 में बरी कर दिया गया था, और शेष को पहले से ही जेल की सजा को कम करने के बाद मुक्त कर दिया गया था।
धन्य हो गए हम 32 साल बाद ही सही |
जवाब देंहटाएंअलकनंदा जी, , मैंने मेरी ननंद से इस खौफनाक घटना के बारे में सुना था तो मेरे रौंगटे खड़े हो गए थे! कितना दुखद है कि न्याय वो भी 32 साल बाद! अबोध बालिकाओं को ये असहनीय पीड़ा देने वाले अपराधी बेखौफ 32 साल अपना अच्छा खासा जीवन जीते रहे और पीड़ित परिवार इंसाफ के लिए इतने साल भटकते रहे इससे दुःखद क्या हो सकता है! ? इस न्याय को क्या सही में न्याय कहना उचित होगा? आभार आपका इस सार्थक लेख के लिए🙏😞
जवाब देंहटाएंभयावह था यह कांड। तुष्टिकरण की रजनीति का घिनौना प्रमाण। खून खौलने लगता है, जब भी बच्चियों के साथ हुए इस पाशविक कृत्य के बारे में पढ़ता हूं।
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