फिलहाल तो देश में अध्यादेश के माध्यम से लाए गए तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है और एक कमेटी का गठन करने का आदेश दिया है। इससे पहले कोर्ट ने कमेटी के पास न जाने की बात पर किसानों को फटकार लगाई है। इससे तिलमिलाए किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट को ही चेतावनी देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के रोक का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यह सरकार का एक तरीका है कि हमारा आंदोलन बंद हो जाए। यह सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है यह सरकार का काम था, संसद का काम था और संसद इसे वापस ले। जब तक संसद में ये वापस नहीं होंगे हमारा संघर्ष जारी रहेगा।
बहरहाल लोकतंत्र के नाम पर 45 दिन से दिल्ली-एनसीआर की सीमाओं को रोक अराजकता का ''शाहीन बाग पैटर्न'' अब अपने सचों को स्वयं खोलने लगा है।
अपने मन मुताबिक स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार रखने वाली सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल तो उन रास्तों को खोल दिया जो कि देश की कानून व्यवस्था को चुनौती देने के लिए आगे भी अख़्तियार किये जा सकेंगे।
किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कल जो कुछ कहा, वह संवैधानिक संस्था व लोकतंत्र का अच्छा खासा अपमान है जो चुनिंदा संगठनों की हठधर्मिता को और बढ़ावा देगा क्योंकि इससे पहले भी शाहीन बाग के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ''वार्ताकार'' भेजने वाला ऐसा ही कदम उठाया था जिसकी परिणति दिल्ली-दंगों के रूप में देश ने भोगी।
कृषि-कानूनों को संसद में पेश करते समय जो विपक्षी दल गैर हाज़िर रहे और ''मुद्दाविहीन'' होने की अपनी कमजोरी व तड़प को लोकसभा स्पीकर के सामने बिल की कॉपी फाड़कर व संसद भवन के अहाते में भूख हड़ताल पर बैठकर ढंक रहे थे, वे ही कानून पारित होते ही अब अपनी इसी कमजोरी व तड़प को दिल्ली की सीमाओं पर ज़ाहिर कर रहे हैं, अब वे अराजकता को हथियार बना रहे हैं, वह भी तब जबकि कोरोना से देश लड़ भी रहा है और बैक्सीन के ज़रिए पूरी दुनिया में ख्याति भी कमा रहा है।
एक और तथ्य विचारणीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों से ''आंदोलन में बुजुर्गों, बच्चों व महिलाओं पर उपस्थिति क्यों'' पर कोई सवाल ही क्यों नहीं किया । यदि इस एक सवाल पर कोर्ट गंभीर होकर सवाल उठाता तो तमाम परतें खुदबखुद खुल जातीं। वो चाहता तो स्वत: संज्ञान लेकर समाचारों के आधार पर ही बहुत कुछ पूछ सकता था, कि आखिर जिन ' गरीब' किसानों को कानूनों से खतरा है, वे इस ''5 स्टार सुविधा वाले टेंट-बिरयानी-काजूबादम का हलवा-24 घंटे का लंगर'' वाला आंदोलन आखिर अफोर्ड किस सोर्स के माध्यम से कर पा रहे हैं।
कई सच बहुत कड़वे हैं बशर्ते सुप्रीम कोर्ट खोलने पर आए तो...।
इसी बात पर निज़ाम रामपुरी का शेर देखिए कि -
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो,
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो।
- अलकनंदा सिंंह
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो,
जवाब देंहटाएंऔर ये भी देखते हैं कोई देखता न हो।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
यथार्थ दर्शन।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने |बहुत सुन्दर लेख |
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