वेदों से लेकर उपनिषदों तक, शास्त्रों - पुराणों से लेकर सभी सनातनी ग्रंथों तक कि सी पूजा से पहले स्वच्छता को प्रथम स्थान दिया गया है क्योंकि यह शारीरिक शुद्धता के माध्यम से मानसिक बल व निरोगी रहने की मूलभूत आवश्यकता होती है। कोई भी पूजा मन, वचन और कर्म की शुद्धि व स्वच्छता के बिना पूरी नहीं होती।
आज से शारदीय नवरात्र देवी के आगमन का पर्व शुरू हो गया है। देवी उसी घर में वास करती है, जहां आंतरिक और बाह्य शुद्धि हो। वह कहती भी हैं कि मृजया रक्ष्यते (स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है), स्वच्छता धर्म है इसीलिए यही पूजा में सर्वोपरि भी है। शरीर, वस्त्र, पूजास्थल, आसन, वातावरण शुद्ध हो, कहीं गंदगी ना हो। यहां तक कि पूजा का प्रारंभ ही इस मंत्र से होता है -''ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोsपिवा।
यह स्वच्छता को धर्म में प्रमुखता देने के कारण ही तो पूरे देवीशास्त्र में 8 प्रकार की शुद्धियां बताई गई हैं- द्रव्य (धनादि की स्वच्छता अर्थात् भ्रष्टाचार मुक्त हो), काया (शरीरिक स्वच्छता), क्षेत्र (निवास या कार्यक्षेत्र के आसपास स्वच्छता), समय (बुरे विचार का त्याग अर्थात् वैचारिक स्वच्छता), आसन (जहां बैठें उस स्थान की स्वच्छता), विनय (वाणी में कठोरता ना हो), मन (बुद्धि की स्वच्छता) और वचन (अपशब्दों का इस्तेमाल ना करें)।
इन सभी स्वच्छताओं के लिए अलग अलग मंत्र भी हैं इसलिए आपने देखा होगा कि पूजा से पहले तीन बार आचमन, न्यास, आसन, पृथ्वी, दीप, दिशाओं आदि को स्वच्छ कर देवी का आह्वान किया जाता है।
विडंबना देखिए कि हमने इसी मृजया रक्ष्यते के सूत्र वाक्य को हमने भुला दिया है और आज हजारों करोड़ रुपये सिर्फ इस प्रचार पर 'जाया' करने पड़ रहे हैं कि हम स्वच्छता के असली मायने ही भुला चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक कार्यकाल पूरा हो गया '' स्वच्छता का आव्हान करते करते '' इसी स्वच्छता अभियान के तहत उन्होंने खुले में शौच से मुक्ति के लिए पूरा का पूरा मंत्रालय जुटा दिया परंतु आज भी ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं व छोटी बच्चियों के साथ आए दिन होने वाली रेप की घटनाओं के पीछे खेत में शौच के लिए जाना भी एक कारण निकल कर सामने आ रहा है। इतनी सहायता के बाद भी शत प्रतिशत सफलता क्यों नहीं मिली, क्योंकि हमने उसे अपनाया नहीं बल्कि ओढ़ लिया। स्वच्छता दूतों ने प्रचार-प्रसार कर अपना मेहनताना सीधा किया, जनप्रतिनिधियों और सरकारी बाबुओं ने इसे सिर्फ 'नरेंद्र मोदी का काम' मान कर इतिश्री कर ली।
जिस सूत्रवाक्य को हमारे धर्म शास्त्रों में स्वयं देवी के मुख से कहलवाया गया ताकि स्वच्छता संदेश का प्रभाव कुछ तो स्थायी रहे परंतु हम घरों के भीतर की स्वच्छता तक सिमट गये और मृजया रक्ष्यते का अहम संदेश तिरोहित हो गया। तो क्या जिस देवी का आह्वान स्वयं को बलवान बनाने के लिए करते हैं, उसके संदेश हम जीवन में हीं उतार सकते, निश्चित ही उतार सकते हैं , इसके लिए बहुत अधिक प्रयास की आवयकता नहीं है, थोड़ा सा प्रयास कीजिए फिर देखिए कि देवी का ''आव्हान'' करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, वे स्वयं आपके सन्निकट होंगीं।
- अलकनंदा सिंंह
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-10-2020) को "शारदेय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3858) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंसही बात।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी
हटाएंशुभकामनाएं नवरात्रि की। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जोशी जी
हटाएंधन्यवाद शिवम जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदा जी
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हिंंदीगुरू जी
हटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुजाता जी , नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
हटाएंहृदय उर्मियाँ
जवाब देंहटाएंकरती वंदन
संभव हो अलौकिक दर्शन
इस धरा की यह सच्चाई
माँ ही तो है जीवनदायी
🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏
जय माता दी
धन्यवाद सधु जी , आपको भी नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
हटाएंस्वच्छता दूतों ने प्रचार-प्रसार कर अपना मेहनताना सीधा किया, जनप्रतिनिधियों और सरकारी बाबुओं ने इसे सिर्फ 'नरेंद्र मोदी का काम' मान कर इतिश्री कर ली।
जवाब देंहटाएंसही कहा एकदम सटीक...
बहुत ही सुन्दर सार्थक एव लाजवाब सृजन।
धन्यवाद सुधा जी
हटाएं