वोट बैंक, जाति और लिंग आधारित भावनाओं के ज्वार में आकर यदि कोई कानून बना दिया जाएगा तो उससे किसी पीड़ित को न्याय मिलने की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है। दहेज हत्याएं हुईं तो इसके लिए कानून, दुष्कर्म हुए तो इसके लिए कानून, दलित सताये गए तो इसके लिए कानून, यहां तक महिलाओं का यौन शोषण रोकने के लिए अलग-अलग कानून बना दिये गये, वो भी बिना ये सोचे समझे कि इनका दुरुपयोग करने वाले अधिक ही होंगे… कम नहीं।
प्राकृतिक नियम है कि शोषित होने की थ्योरी हमेशा काम नहीं करती, सच सामने आ ही जाता है परंतु मीडिया आए दिन किसी भी एक घटना को जिस तरह आधा-अधूरा सच दिखाकर ‘आपाधापी वाली वाहवाही’ बटोरने में जुट जाता है वह ‘ सच ‘ की तह तक पहुंचने में बाधा ही बनता है जबकि होना यह चाहिए कि जो काम पुलिस नहीं कर सकती वह ‘खोजबीन’ निष्पक्ष होकर मीडिया द्वारा की जानी चाहिए परंतु ना तो सच बोलने का जोखिम उठाना चाहती है और ना ही प्रोपेगंडा की धारा में बहने की सहजता खोना चाहती है।
ठीक यही हुआ है हाथरस की घटना में। पूरा बुलगढ़ी गांव जानता है कि वाल्मिकी जाति की मृतका का प्रथम आरोपी संदीप से प्रेमसंबंध था, परंतु 19 साल की खानदानी रंजिश और वाल्मिकी-ठाकुर का गैप, दोनों के घर वालों को पसंद नहीं था, इसी के चलते भाई द्वारा मृतका को अकसर मारापीटा जाता था। एकबार दोनों घर में ही एकसाथ पकड़े गए, प्रधान के द्वारा गांव में पंचायत हुई, दोनों की शादी का प्रस्ताव पंचायत ने रखा परंतु परिवारों ने नहीं माना, लड़के को लड़की से दूर रहने की हिदायत के साथ गांव से दूर भेज दिया गया।
प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों के अनुसार 14 सितंबर को घटना से एक दिन पहले ही वह गांव वापस आया था। घरवालों की कड़ी पहरेदारी के बीच वो खेत पर मां के साथ घास काटने गई लड़की (मृतका) से मिलने पहुंच गया, मात्र 10-15 मीटर दूरी पर घास काट रही मां ने उसे लड़की से बात करते देख लिया और शोर मचाते हुए अपने बेटे यानि मृतका के भाई को आवाज़ दी, भाई के आते ही कथित दोषी (संदीप) भाग गया और मृतका के भाई ने बहन का गला दबा कर मारते हुए उसे अधमरा कर दिया। वो पहले भी लड़की को इसी तरह मारता रहा है परंतु इस बार बहन की हड्डी टूट गई, उसे अस्पताल ले जाना पड़ा, बहन के प्रेमी को जेल भेजने के लिए ये सारा प्रपंच रचा गया।
मीडियाकर्मी अगर थाने में लिखी गई पहली तहरीर को ही खंगाल लेते तो सारा माजरा समझ में आ जाता मगर इसे दबा दिया गया। SCSTAct के तहत मारपीट में दर्ज की गई एफआईआर को क्रमश: पहले रेप, फिर गैंगरेप में तब्दील कराया गया, और ये प्रपंच किसी विरोधी पार्टी या किसी दबंग ने नहीं बल्कि भाजपा के ही दलित सांसद ने लड़की के भाई के संग मिलकर रचा ताकि ”दलित बेटी का दबंगों द्वारा गैंगरेप ” कहकर मामले को तूल दिया जा सके।
घटना की जांच करने वाले एसएचओ डीके वर्मा जो कि खुद दलित वर्ग से हैं, ने पाया कि लड़के के अलावा जिन तीन अन्य को नामज़द कराया जा रहा है, वे वही लोग हैं जिनके द्वारा लड़के के परिवार की पैरवी की जा सकती थी। इनमें से एक तो उस समय किसी आइस फैक्ट्री में काम कर रहा था (जिसकी तस्दीक उस आइस फैक्ट्री के मालिक ने भी की) और एक वो पास के ही खेत से भागकर आया व भाई के चंगुल से लड़की को बचाया, पानी पिलाया।
फिलहाल मीडिया के दबाव में एसएचओ डीके वर्मा लाइन हाज़िर हैं और मृतका के भाई व पिता राजनीति व मीडिया के टूल बने अभी तक आधा दर्जन बार बयान बदल चुके हैं। आगे गांव में उनके लिए पनप रही नफरत क्या गुल खिलाएगी, कहा नहीं जा सकता।
14 सितंबर से 22 सितंबर और कल के राजनैतिक ड्रामे के बाद इतना तो निश्चित ही कहा जा सकता है कि यह एक साधारण सी प्रेम कहानी का वीभत्स अंत था जो हॉरर किलिंग का ही एक रूप है। इसमें जितना दोष मृतका के भाई और सांसद का है, उतना ही दोष पुलिस का भी है जिसने असंवेदनशीलता से सारे मामले को हैंडिल किया और रात्रि में ही मृतका का दाह संस्कार कर दिया।
बहरहाल पूरे मामले में हाथरस केस का वो ”ग्रे” फैक्टर जो आधे अधूरे सच पर गढ़ा गया और कानून को जिस तरह अपने अपने हित में प्रयोग किया गया वह उन रिश्तों के लिए घृणा बो गया जो गांवों की थाती हुआ करते थे। निश्चित ही इस पूरे प्रकरण ने संशयों का ऐसा पहाड़ खड़ा कर दिया है जो वास्तविक अपराधियों को बचाने का ही काम करेगा।
– अलकनंदा सिंह
बिल्कुल सही लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंतो क्या बलात्कार की बात झूठी है? हे भगवान!राजनीति और पत्रकारिता दोनों इस देश का नाश करने पर तुले हैं। युपी पुलिस तो ख़ैर राम-भरोसे ही है।
जवाब देंहटाएंजी, शत प्रतिशत , रंजिशन सारााघटनाक्रम हुआ और फिर राजनीति-मीडिया के गठजोड़ ने ने मामले को बिल्कुल उल्टा कर दिया
हटाएंविचारोत्तेजक. यह जांच का विषय है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी , जांच शुरू हो चुकी है और सत्य सिद्ध होकर रहेगा
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-10-2020) को "एहसास के गुँचे" (चर्चा अंक - 3844) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंआज जो दिखता है और दिखाया और बनाया जाता है उसे समझ पाना आसान नहीं रहा आजकल
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविता जी, इसीलिए ये काम मीडिया को करना चाहिए परंतु वो फेल रहा पूरी तरह
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जवाब देंहटाएंभाई मारे या कुत्सित मानसिकता वाले बलात्कारी , एक लडकी के अनमोल जीवन का मर्मान्तक अंत मानवता पर कलंक बनकर रहेगा अलकनंदा जी | मैं क्षमा चाहती हूँ इस बारे में किसी प्रमाणिक जानकारी का मुझे ज्ञान नहीं पर लडकी के वीभत्सता से अंत ने मेरी आँखें नम कर दी |
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही इस सबमें लड़की ही पिसी...प्रेम करने की सजा वह पहले भी कई बार सरेआम भुगतती रही है अपने ही भाई के हाथों..पंचायत में भी बात गई इसलिए पूरे गांव को पता है...वरना तो अभी तक हम सब भी यही मान रहे होते कि आरोपी लड़के ने ही क्राइम किया...शेष रही राजनीति की बात तो अब देखते हैं कि क्या क्या होगा... आगे का घटनाक्रम फिर लिखूंगी
हटाएंघटना बहुत दुखद है और जो भी दोषी हैं उनको कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। आपने जो लिखा वो सच इसलिए लग रहा है क्योंकि लोकल लोग यही बात कह रहे हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नीतिश जी, इस विश्वास के लिए, धीमे धीमे ही सही सत्य सामने आकर रहेगा...लड़की के भाई और पिता आदतन ब्लैकमेलर हैं, पहले भी आरोपी लड़के (लड़की का प्रेमी) के पिता को एससीएसटी में रिपोर्ट कराकर 2 लाख रुपये वसूल चुके हैं
हटाएंदुखद बहुत ही संवेदनशील अत्याचार तो नारी पर ही हुआ
जवाब देंहटाएंऔर इस सब के साथ मीडिया, राजनीतिज्ञ, प्रशाशन अपनी रोटी सेकने में लगे हे
जी, देखते हैं आगे कहां तक जाता है ये प्रोपेगंडा
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