घर का गेट खोला… तो देखा दरवाजे की चौखटों पर दीमक लगी हुई है, घर के कई कोनों तक उसका फैलाव हो गया जबकि अभी कुछ दिन पहले ही तो पेस्ट ट्रीमटमेंट कराया था। काफी कुछ तो खरोंच कर भी उतारी मगर सब बेकार। दीमक कुछ समय के लिए गई लेकिन फिर वापस आ गई। इसे दूर करने के लिए घर के कोने-कोने व दरवाजों को लगातार खरोंचना होगा… दरअसल, दीमक की प्रवृत्ति ही ऐसी होती है कि उसे दूर करने को सतत प्रयास करने होते हैं।
ऐसा ही कुछ हाल है हमारे समाज में व्याप्त दीमकों का भी है, जो सिर्फ अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए देश के हर उस दरवाजे और हर उस अंग को अपने लपेटे में ले चुकी हैं, जहां-जहां से उन्हें प्रगति की आस लगी हो। दीमक को अंधेरा, सीलन और कमजोर कड़ियों का साथ चाहिए बस, फिर देखने लायक होता है उसका फैलाव…।
मैं बात कर रही हूं, ऐसी ही कुछ दीमकों की जैसे कि दिल्ली दंगों के साजिशकर्ता तथा सीएए व एनआरसी का विरोध करने वाले वो ”कथित बुद्धिजीवी” जो बलवाइयों को न केवल आर्थिक मदद देते रहे बल्कि कोर्ट में उनकी रिहाई और अन्य खर्चों को भी स्वयं ही वहन करते रहे हैं…उनकी ये मदद बदस्तूर अब भी जारी है।
कल की ही बात ले लीजिए… दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद का नाम दंगों में ”जबरन फ्रेम” करने व कोई सुबूत ”ना” होने का आरोप लगाते हुए कथित बुद्धिजीवी उसके लिए सहानुभुति अभियान चला रहे थे, वह भी सोशल मीडिया के उस युग में जब इसकी ”करतूतों” वाले वीडियो वायरल होकर सरेआम हो चुके हैं कि कैसे उमर खालिद ”खून बहाने” की बात कहता है… कैसे वह डोनाल्ड ट्रंप का नाम लेते हुए कहता है कि यही अच्छा मौका है जिससे हमारी बात इंटरनेशनली सुनी जा सकेगी… वह आईबी के अंकित शर्मा के हत्यारे ताहिर हुसैन से मुलाकात करता है, ये वीडियो भी सोशल मीडिया पर है… फिर भी उसके पक्ष में बोल रहे कथित बुद्धिजीवी आखिर समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं, क्यों अविश्वास और अलगाववाद की दीमकों को पनपा रहे हैं, वे यह क्यों नहीं समझते कि इससे तो स्वयं उनकी ही विश्वसनीयता पर खतरा है।
कोरोना संक्रमण काल में भी बजाय वॉरियर्स का साथ देने के सीएए व एनआरसी से लेकर दिल्ली दंगों तक को अंजाम देने वाली ये दीमकें आखिर देश को किधर ले जाना चाहती हैं।
अगला उदाहरण है रेलवे कर्मचारी यूनियन अर्थात ‘ऑल इंडिया रेलवे मेंन्स फेडरेशन’ नामक दीमक का, जो रेलवे द्वारा कुछ प्राइवेट ट्रेन्स को ट्रैक पर चलाने का विरोध कर रही है जबकि इससे गरीबजन की यात्रा पर कोई आंच नहीं आएगी, ये तो बस एक्स्ट्रा इनकम के लिए ओवरटाइम है ताकि रेलवे समृद्ध हो सके। प्राइवेट ट्रेनों का संचालन जहां रेलवे कर्मचारियों की कार्यसंस्कृति को प्रतिस्पर्द्धा बनाएगा वहीं संसाधनों का दुरुपयोग भी रोकेगा परंतु ऑल इंडिया रेलवे मेंन्स फेडरेशन के इरादे भी दीमकों की भांति रहे हैं जो ”अधिकारों” के नाम पर विभागहित को ही चाटते रहे हैं।
प्रतिस्पर्द्धा और प्रतिबद्धता दोनों ही फेडरेशन के कुकृत्यों के लिए खतरा हैं। अभी तक फेडरेशन के नेता कुछ भ्रष्ट रेलवे अधिकारियों के साथ मिलकर टेंडर्स के नाम पर बड़े घोटाले, करोड़ों की रेलवे भूमि को खुर्दबुर्द करके, वेंडर्स से लेकर कंस्ट्रक्शन, रेलवे अस्पतालों के सामान खरीद तक में घोटाला करके मामूली से पद पर रहते हुए जो करोड़ों कमा रहे हैं, वो ये नहीं कर पायेंगे, कर्मचारी संगठन पर दबदबा खो देंगे, सो अलग।
दरअसल यूनियन द्वारा कर्मचारी के हित की बात करना तो मुखौटा है, इसके पीछे खालिस तौर पर वो कॉकस है जो प्राइवेटाइजेशन के नाम पर न केवल कर्मचारियों को बरगला रहा है बल्कि रेलवे को फायदे में आने से भी रोक रहा है। संगठन पदाधिकारी से लेकर अधिकारियों के घर तक कर्मचारियों से ”बेगार” या रेलवे ट्रैक की देखरेख करने वाले गैंगमैन्स से घरों में बर्तन, पोंछा करवाना कैसा कर्मचारी हित है परंतु यूनियनबाजी के चलते विभाग ऐसे लोगों को ढोने पर विवश है।
कुछ अन्य दीमकों में शामिल हैं फर्जी भर्तियों को अंजाम देने वाले ठेकेदार, ई गवर्नेंस को धता बताते भ्रष्टाचारी सरकारी कर्मचारी। वंचितों -आदिवासियों के लिए काम करने वाली वो गैर सरकारी संस्थाऐं जिनका ‘विकास’ गरीबों का ”धर्म परिवर्तित” करा कर ही ज़मीन पर उतरता है और इस विकास के लिए वे हथियारों से लेकर मानव तस्करी तक के नेटवर्क को इस्तेमाल कर रही हैं। इसी श्रेणी में आती हैं ड्रगमाफिया, हथियार माफिया, बॉलीवुड माफिया की दीमकें (Termites) जो अपने अपने तरीके से समाज को चट कर रही हैं।
अब इन दीमकों को समझ लेना चाहिए कि समाज और देश की व्यवस्थाओं में भरी सीलन और कमजोरी जो इन्हें अपने मंसूबे कामयाब कराती आई है, आगे नहीं मिलने वाली क्योंकि समय ही नहीं सरकार भी बदल रही है।
– अलकनंदा सिंंह
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
धन्यवाद दिलबाग जी
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 17 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बढ़िया और आंखे खोलने वाला लेख। बड़ी तेजी से ये दीमक नंगे होते जा रहे हैं और अपनी सामाजिकता खोते जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार लेख👌
जवाब देंहटाएंक्योंकि समय ही नहीं सरकार भी बदल रही है। सहमत।
जवाब देंहटाएं''दीमक की प्रवृत्ति ही ऐसी होती है कि उसे दूर करने को सतत प्रयास करने होते हैं''.....
जवाब देंहटाएंनहीं तो ''वातावरण की नमी'' सदा उसका सहयोग करने के लिए तत्पर रहती है
सही एवं सटीक ...बस यूँ ही इन दीमकों से निजात पाने की कोशिशें चलती रहें ...बहुत ही सराहनीय सचमुच आँखें खोलने वाला लेख। बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी
हटाएं