मीडिया के निकम्मेपन और गिरावट ने अब तो सारी हदें पार कर दी हैं। कभी जिस वर्ग को समाज और वंचितों के लिए प्राणवायु माना जाता था, आज मीडिया का वही वर्ग और उसके कर्मचारी ( जिन्हें पत्रकार तो हरगिज नहीं कहा जा सकता) अपनी सारी क्रेडिबिलिटी खो चुके हैं। अब ये चीखने वाले कथित पत्रकार किसी मज़लूम की ज़िंदगी व न्याय के लिए रिपोर्टिंग नहीं करते, वे पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों के काले कारनामों को दबाने के आदी हो चले हैं , समाज में कहां क्या बुरा हो रहा है, इसपर नज़र नहीं डालते।
वे सुशांत सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती से लेकर कंगना रानौत पर गला फाड़ फाड़कर तो चिल्लाते हैं, परंतु उन्हीं की नाक के नीचे गाज़ियाबाद के विकास नगर, लोनी में 16 वर्ष की नाबालिग बहन को छेड़ रहे शोहदों द्वारा भाई को ही धारदार हथियार से घायल करने की खबर नहीं होती है, जबकि उल्टा शोहदे ने ही लड़की के भाई पर जयश्रीराम ना बोलने पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने की रिपोर्ट करा दी गई। लड़की के अनुसार इससे पहले भी कई बार आरोपी अभिषेक जाटव ने अश्लील हरकतों के साथ छेड़ा है।
ये पत्रकार इससे भी अनभिज्ञ रहते हैं कि गाज़ियाबाद पुलिस द्वारा लड़की के भाई पर ही ‘शोहदे को मारने’ का आरोप लगाकर SC-ST एक्ट में केस दर्ज करने की लापरवाही आखिर कैसे की गई। वो तो भला हो सोशल मीडिया का जिस पर ये तस्वीर वायरल हो गई और अब गाजियाबाद की पुलिस व उनके पिठ्ठू पत्रकारों का ये गठजोड़ बेनकाब हो गया।
पुलिस की ये रिपोर्ट डीसीआरबी में देखने के बाद भी क्राइम बीट संभालने वाले गाजियाबाद के पत्रकारों को ये नहीं सूझता कि आखिर पूरी बस्ती जाटव समाज की, छेड़ने वाले जाटव समाज के तो एक अकेला ब्राह्मण लड़का सैकड़ों जाटव समाज के घर के बीच कैसे उनको मार लेगा और कैसे उन्हें जयश्रीराम बोलने को बाध्य करेगा ?
जातिगत आधार पर यदि यही मामला उल्टा होता तो टीआरपी के नाम पर यही पत्रकार थाली लोटा लेकर पीछे पड़ जाते। लोनी के विकासनगर का ये मामला अकेला मामला नहीं, SC-ST एक्ट में दर्ज हजारों फर्जी मामले ऐसे हैं जो बदले की भावना से लिखवाए गए। ब्राह्मण सहित सभी सवर्णों के प्रति दुर्भावना को कैश करने का माध्यम बन गया है ये एक्ट परंतु किसी मीडिया हाउस ने इस संदर्भ में कुछ नहीं किया।
बात ब्राह्मण और दलित की नहीं है, और ना ही लड़की से छेड़छाड़ व सिर फाड़ देने की है… बात तो उस जिम्मेदार तबके ”मीडिया” की अवसरवादिता की है जो अपने ही गिरेबां को अपने ही हाथों से मैला कर रही है। हमें पढ़ाया गया था कि पत्रकारिता की पहली सीढ़ी ही प्रश्नों के साथ ही शुरू होती है.. कहां , क्या, कौन, कब, किसने, किसको , कसितरह आदि प्रश्न जबतक नहीं उभरेंगे तब तक पत्रकारिता अपने उद्देश्य को हासिल नहीं कर सकती परंतु अब … अब तो हो ये रहा है कि सुबह सुबह ही मीडिया मैनेजमेंट की ओर से मीटिंग में मुद्दे तय कर दिये जाते हैं और गरीब, मजलूम, अन्याय, बदइंतजामी से सुविधानुसार मुंह फेर लिया जाता है।
विडंबना ये है कि भरोसा खो चुका मीडिया अब अपनी इस गिरावट के लिए किसी और को दोष भी नहीं दे सकता क्यों कि ये सब उसके अपने लालच व स्वार्थ ने किया है। बस एक शेर और बात खत्म कि
संभला तो कभी भी जा सकता है, कोशिश तो करे कोई…
इस कुफ्र की दीवार को हल्का ही धक्का काफी है… ।
-अलकनंदा सिंंह
खरी खोटी सटीक बातें।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी
हटाएंदेखते-देखते समय कितना बदल गया है ! बीते दिनों में अपनी भाषा को सुधारने के लिए, शब्दों के सही उच्चारण के लिए या भाषा पर पूरा अधिकार पाने के लिए हमसे अखबार पढ़ने और रेडिओ पर ख़बरें सुनने को कहा जाता था ! टी वी के शुरूआती दिनों में भी उस पर प्रसारित होने वाली ख़बरों को, चाहे वे किसी भी भाषा में हों, बहुत सोच समझ कर प्रसारित किया जाता था ! उन्हें पढ़ने वालों का उस भाषा पर पूरा नियंत्रण होता था। टी आर पी नामक सुरसा का जन्म नहीं हुआ था। अवाम पूरी तरह इन माध्यमों पर विश्वास करता था !
जवाब देंहटाएंपर आज क्या हम अधोगति को प्राप्त इन माध्यमों पर लेश मात्र भी भरोसा कर सकते हैं !
नमस्ते शर्मा जी, निश्चित ही आपने सही कहा, यह मीडिया की अधोगति ही है... परंतु मैं फिर भी आशा रखती हूं कि ये सब ज्यादा दिन नहीं चलेगा...लोग समझ रहे हैं, स्वयं मीडियापर्सन्स भी समझ रहे हैं... यूं भी हर रात की सुबह होती है। धन्यवाद
हटाएंधन्यवाद अनीता जी
जवाब देंहटाएंसीधी सच्ची सपाट रखी है आपने अपनी बात ...
जवाब देंहटाएंहर हद पार कर रहा है आज मीडिया ... न जाने कब संतुलन आएगा ...
धन्यवाद नासवा जी, परंतु मीडिया की कमियों पर भी बोलना आवश्यक हो गया है।
हटाएंविचारणीय
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंबहुत विचारणीय समस्याओं को इंगित करता सशक्त लेख ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी
हटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जोशी जी
हटाएंबिल्कुल सही कहा आपने टी आर पी पाने के चक्कर में मीडिया अपने ही गिरेबां को अपने ही हाथों से मैला कर रही है।...सटीक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी
हटाएंमीडिया के अब दो काम हो गये हैं... एक तो अपने अजेंडे को चलाना और दूसरा एक नाटक प्रस्तुत करना.. ऐसा नाटक जो कि दर्शकों को चटपटी खबरे ही बस देता रहे जिससे उनकी टी आर पी बढे और मजे से वो चांदी काटें.....आपने सही कहा मीडिया कर्मचारी अब पत्रकार तो रहे ही नहीं हैं... बस अदाकार हो गये हैं..
जवाब देंहटाएं