शनिवार, 4 जनवरी 2020

सरकारी नौकरी में संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है कोटा ट्रेजडी

राजस्थान का कोटा… जी हां, वही कोटा जहां बच्चे मर रहे हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलौत सीएए के व‍िरोध में मार्च न‍िकाल रहे हैं। बच्चे मर रहे हैं और स्वास्थ्य मंत्री व प्रभारी मंत्री अपने स्वागत में कारपेट ब‍िछवा रहे हैं। बच्चे मर रहे हैं और अस्पताल प्रांगण में गंदगी व सूअरों के घूमने को प‍िछली सरकार की ”राजनैत‍िक साज‍िश” बता रहे हैं। ज‍िनके शब्दों में मृत शरीरों पर भी राजनीत‍ि करने का ज़हर घुल चुका हो, उनसे ये उम्मीद रखना तो कतई बेमानी है क‍ि वे कोटा की घटना से सबक सीखेंगे क्योंक‍ि ऐसा होता तो कई द‍िन बीत जाने पर भी अभी तक अस्पताल में इंतजामात वैसे के वैसे ही हैं बल्क‍ि बूंदी के अस्पताल में भी 10 बच्चे मर चुके हैं।
कोटा में जो भी बच्चे मरे वो स‍िर्फ सरकारी अस्पताल के कुप्रबंधन से, उपकरणों की कमी से , गंदगी की भयंकर स्थ‍ित‍ि से, कदम कदम पर लापरवाही से… ज‍िसे कोई न्यूनदृष्ट‍ि वाला भी बता सकता है क‍ि कमी आख‍िर क‍िसकी है , प्रथम दृष्टया दोषी कौन है, क‍िसकी कमान कसी जानी चाह‍िए और त्वर‍ित सुधार के ल‍िए क्या क्या क‍िया जाना चाह‍िए। जबक‍ि हो इसका उल्टा रहा है क‍ि इस पर बात ना करके कांग्रेस की वर्तमान गहलौत सरकार अपनी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को इन मौतों और अस्पतालों की दुर्दशा के ल‍िए ज‍िम्मेदार बता रही है। हद तो ये क‍ि अब भी कोई ना तो त्वर‍ित सहायता पहुंचाई गई और ना ही कार्यवाही की गई।
घ‍िनौनी राजनीत‍ि की बानगी देख‍िए क‍ि राजस्थान के ही स्वास्थ्य मंत्री ”बेचारे” रघु शर्मा, ज‍िन्हें बच्चों की मौत के 10 द‍िन बाद कोटा अस्पताल का दौरा करने का ”समय” मि‍ल पाया। चाटुकारों ने यहां भी उनका कारपेट ब‍िछाकर स्वागत करने का मौका नहीं छोड़ा , वो तो मीड‍िया था क‍ि बात खुल गई और दूर तलक गई। इसी तरह ठीक 11 वें द‍िन कांग्रेस की अध्यक्षा सोन‍िया गांधी के आदेश ( जैसा क‍ि पार्टी के पीआर व‍िभाग द्वारा प्रचार‍ित क‍िया जा रहा है) पर सच‍िन पायलट कोटा का आज दौरा करेंगे।
17 द‍िसंबर 2018 को राजस्थान में कांग्रेस की सरकार ने शपथ ली उसके बाद से पूरा एक साल म‍िला शासन चलाने को, तो ऐसे में पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार को अस्पतालों के कुप्रबंधन के ल‍िए ज‍िम्मेदार ठहराना कहां तक उच‍ित है।
इसी राजनीत‍ि पर एक हास्यास्पद व बेतुका जुमला ये क‍ि उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अख‍िलेश यादव ने राजस्थान की घटना पर उप्र के मुख्यमंत्री आद‍ित्यनाथ को बच्चों की मौत पर जमकर कोसा।
बहरहाल राजनीत‍ि से इतर सारी ज‍िम्मेदारी तो उस अस्पताल प्रशासन की है जो हर महीने लाखों की तनख्वाह लेकर भी न‍िकम्मा बना हुआ है। असंवेदनशीलता और अकर्मण्यता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा क‍ि सूअरों का व‍िचरण उनकी आंखों के सामने हो रहा था। अस्पतालों के कर्मचार‍ियों व अफसरों के न‍िकम्मेपन को देखना हो तो उनके घरों में जाकर देखें आधे से अध‍िक सामान अस्पतालों से ”पार क‍िया हुआ ” म‍िलेगा। अस्पताल में आने वाली दवाइयां ही नहीं बल्क‍ि अलमारी, बेड , चादरें व कंबल, बाल्टी मग, के अलावा मरीजों के ल‍िए आने वाली खाद्यसाम‍िग्री तक का स्वास्थ्य अध‍िकारी व कर्मचारी आपस में ही बंदरबांट कर लेते हैं। अस्पतालों में फैले इस भ्रष्टाचार के रोग से कोई एक राज्य नहीं बल्क‍ि पूरा देश इससे ग्रस‍ित है।
सरकारी नौकरी में संवेदनाशून्य की प्रवृत्त‍ि का घालमेल ही आज हमें ये सोचने पर व‍िवश कर रहा है क‍ि क्या सच में ज‍िन्हें हम अपने करों से वेतन भत्ते देते हैं वे कर्मचारी हमारी सेवा के ल‍िए हैं भी या हमें पूरे स‍िस्टम द्वारा मूर्ख बनाया जा रहा है।

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०५- ०१-२०२० ) को "माँ बिन मायका"(चर्चा अंक-३५७१) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. गरीब-गुरबों का एकमात्र सहारा होता है अस्पताल, लेकिन इन्हीं की तरह इनका भी भगवान ही मालिक होता है। रामभरोसे चलते हैं, क्योँकि कोई जिम्मेदार नहीं होता , सब एक दूसरे पर टाल देते हैं सब !

    जवाब देंहटाएं