जिस नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर जवाहरलाल नेहरू यूनीवर्सिटी (JNU), अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी(AMU), जामिया मिलिया यूनीवर्सिटी (JMU) से लेकर कल लखनऊ यूनीवर्सिटी (LU) तक छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन को हिंसक रूप दे दिया गया, वह अनायास हुई कोई नाराजगी या घटना नहीं है, बल्कि एक षड्यंत्रकारी अराजक गठबंधन की वो अभिव्यक्ति है जो धारा 370, तीन तलाक और राम मंदिर पर कुछ ना बोल सकी इसलिए अब नागरिकता कानून को ”संविधान विरोधी” व ”मुस्लिमाें पर संकट” बताकर भ्रम व अराजकता फैला रही है।
यह सही है कि अभिव्यक्ति की आजादी के तहत विरोध प्रदर्शन को लोकतंत्र में ”मौलिक अधिकार” माना गया है परंतु संविधान के अनुरूप बने किसी पूरे के पूरे कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर देश में सिर्फ और सिर्फ अराजकता फैलाना किसी तरह उचित नहीं क्योंकि इसकी आड़ में असामाजिक तत्व छोटे छोटे बच्चों व कानून से अनजान मुस्लिम महिलाओं को शामिल कर रहे हैं।
यह दुखद है कि इस अराजकता में छात्रों के साथ वो यूनीवर्सिटी शिक्षक भी शामिल हैं जिन पर कि ज्ञान बांटने की जिम्मेदारी है। कोई कम जानकार या भ्रमित व्यक्ति ये कहे कि नागरिकता संशोधन कानून विभाजनकारी है तो माना भी जा सकता है परंतु जब शिक्षक ही ऐसा कहने लगें तो समझा जा सकता है कि शिक्षा का स्तर क्या होगा और दिशा क्या होगी। अब हम यह अच्छी तरह समझ सकते हैं कि इन यूनीवर्सिटीज में ” किस तरह के छात्र” तैयार किए जा रहे हैं।
एक निश्चित प्रोपेगंडा के तहत लंबी अवधि के शोधकार्य व उच्च शिक्षा की डिग्रियां दर डिग्रियां लेने के नाम पर शिक्षकों द्वारा गरीब छात्रों को छात्रसंघों के हवाले कर एक ऐसा कॉकस ”पाला-पोसा” जा रहा है जो गाहे-बगाहे ”अंधविरोध और देश के खिलाफ दुष्प्रचार के लिए टूल की तरह ”यूज” होता है परंतु सत्य कहां छिपता है।
हम देख भी चुके हैं पूर्व में कि जेएनयू व एमएमयू द्वारा किस तरह कश्मीर को लेकर देश की छवि दुनिया में धूमिल करने की कोशिश की गई थी, आतंकियों की मारे जाने पर यूनीर्विटी कैंपस में जुलूस निकाले गए, फातिहा पढ़े गए। इसी तरह जेएनयू के छात्रों का फीस बढ़ोत्तरी को लेकर हिंसक प्रदर्शन अब भी जारी है, जबकि सबने देखा कि कथित ”बेचारे व गरीब प्रदर्शनकारी” छात्र आईफोन तो इस्तेमाल कर रहे हैं परंतु होस्टल की 350 रुपये महीना फीस नहीं दे सकते ।
यह क्या है, कौन सी शिक्षा है, कौन सी राजनीति है जो देश को हर वक्त अराजक स्थिति में ही देखना चाहती है।
इसी तरह अराजक स्थिति बनाए रखने और भ्रम फैलाने वाले बुद्धिजीवियों ने तो सोशल मीडिया पर पिछले दो दिन से ऐसी ऐसी पोस्ट डाली हैं जो नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को एक जैसा ही बता रही हैं और दोनों को ही मुस्लिम विरोधी बताकर दुष्प्रचार कर रही हैं जबकि सत्य तो यह है कि नागरिकता संशोधन कानून, इस्लामिक शासन वाले पड़ोसी देशों के धार्मिक आधार पर सताए हुए अल्पसंख्यकों को देश में शरण देकर उन्हें नागरिकता देने की बात करता है, यह किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है, फिर यह कहां से मुस्लिम विरोधी हो गया। इसी प्रकार एनआरसी देश के हर नागरिक की अपनी पहचान को रजिस्टर्ड करेगा, यह भी कैसे मुस्लिम विरोधी हुआ। हां, इतना अवश्य है कि नागरिकता संशोधन कानून व एनआरसी के बाद देश में अवैध अप्रवासियों की घुसपैठ बंद हो जाएगी। और यही बात इन अराजक तत्वों की परेशानी का कारण है परंंतु ये यह भूल रहे हैं कि षड्यंत्र कितने भी गहरे हों, उनका भेद खुल ही जाता है। आज नहीं तो कल।
सहमत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राकेश जी
हटाएंआपने भेद खोल दिया....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया। आपके विचारों से मैं सहमत हूँ।
धन्यवाद प्रकाश जी
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