जैसा कि कूर्म पुराण और विष्णु पुराण में कहा गया है कि जब संसार में आसुरी शक्तियों का शासन चरम पर था तब संतुलन बनाने के समुद्र मंथन की युक्ति निकाली गई। ना तो आसुरी शक्तियां (जैसा कि कथाओं में बताया जाता है) भयानक शक्ल वाली थीं और ना ही अजीबो-गरीब लिबास-अस्त्र-शस्त्रों वाली थीं बल्कि वो एक ऐसे विचार वाली थीं जो सभ्य समाज के लिए तकलीफदेह थीं।
इसीलिए समुद्र मंथन की जरूरत पड़ी।
मंथन कोई एक घटना नहीं थी बल्कि ब्रह्मांड के सृष्टिचक्र को दुरुस्त करने का एक जरिया था और बहुत जरूरी था क्योंकि जब-जब आसुरी शक्तियां और निकृष्ट सोच हावी होती है तब-तब ऐसे किसी मंथन की आवश्यकता पड़ती ही है।
फिलहाल कई विश्वस्तरीय ''एस्ट्रोनॉमिकल स्टडीज'' की मानें तो हमें प्रत्यक्षत: दिखाई ना देने वाली मंथन की ये प्रक्रिया 2008 से शुरू भी हो चुकी है जो 2020 में अपने सद्विचारों-सद्कृत्यों-सद्भावनाओं को सामने लाना शुरू कर देगी।
यूं भी हमारे ग्रंथ बताते हैं कि मंथन में सबसे पहले हलाहल ही निकला था। आज भी हलाहल ही निकल रहा है, जो घोर आपराधिक सोच व कृत्यों के रूप में हमारे सामने है।
यहां एक और बात गौर करने लायक है कि उक्त एस्ट्रोनॉमिकल स्टडीज के साथ कुछ एस्ट्रोलॉजिकल स्टडी भी जुड़ गई हैं। उदाहरण के लिए 1943 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक साल के अंदर ही तीन-तीन ग्रहण पड़ रहे हैं। जबकि ग्रहण सामान्यत: जोड़े में पड़ते हैं। साथ में मंगल ग्रह का धरती के करीब आना, जोकि आकस्मिक घटना नहीं है। 2020 में प्लूटो (यमग्रह अथवा प्लेनेट ऑफ हेल) और शनि (न्यायग्रह) के एक साथ आने की पूर्वस्थिति ही है जो एक दूसरे से सिर्फ 6 डिग्री पर होंगे तथा एक दूसरे को प्रभावित करेंगे और मंथनस्वरूप निकलेगा आज की आपराधिक सोचों को दूर करने का ''फल''।
आजकल तो ऐसी-ऐसी आसुरी घटनाएं हमारे सामने आ रही हैं जिन पर विश्वास करना मुश्किल होता है। जैसे कि बुराड़ी व बिहार में एक सुशिक्षित परिवारों द्वारा सामूहिक आत्महत्या कर लेना, ब्लूव्हेल चैलेंज में बच्चे ही नहीं बड़ों द्वारा भी स्वयं अपनी हत्या (इसे आत्महत्या कहना ठीक नहीं लग रहा) किया जाना, सामूहिक बलात्कार, बकरी जैसे जानवर के साथ सामूहिक बलात्कार, बच्चियों के साथ जघन्यतम अपराध और मॉब लिंचिंग। ऐसी घटनाओं का सिलसिला अब ''किकी डांस चैलेंज'' पर आ पहुंचा है, हालांकि जैसा कि समय बता रहा है ये अभी और बढ़ेगा।
''किकी डांस चैलेंज'' में कनाडा के रैपर ड्रेक के एक गाने ''किकी डू यू लव मी'' के एक डांस मूव को धीमी गति से चलती कार से सड़क पर कूदकर दिखाना होता है साथ ही वापस कार में चढ़ना होता है, अभी तक इसमें कई जाने जा चुकी हैं और तमाम चेतावनियों के बाद भी ''खाये-अघाए' और बौराए'' लोग इसे रोजाना एक्सेप्ट भी कर रहे हैं।
बहरहाल, मंथन के इस दौर में हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि ऐसी आपराधिक सोचों व घटनाओं पर विलाप करने तथा एस्ट्रोनॉमिकल व एस्ट्रोलॉजिकल के बहाने दूसरों को गरियाने की बजाय स्वयं अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करें एवं समाज को सकारात्मक सोच से भरने का हरसंभव प्रयास करें।
ये समय संक्रमणकारी विचारों से बचकर अपने आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखने का भी है। किसी को अकेला या संदिग्ध स्थिति में देखें तो उसे टोकें। एक बार का टोकना किसी भी गलत विचार को मार सकने में बहुत कारगर होता है। इस एक कदम से हम भी किसी अपराध की संभावना को रोक सकते हैं।
प्राकृतिक बदलाव को तो हम नहीं रोक सकते और ना ही उसे गति दे सकते हैं परंतु निजी स्तर पर किसी घटना के प्रति ''हमें क्या या हमारे साथ तो नहीं हुई'' वाली सोच को जरूर बदल सकते हैं। सभ्य समाज बनाने की दिशा में इतना प्रयास भी काफी है।
किकी चैलेंज हो या बलात्कार अथवा मॉब लिंचिंग सभी में भीड़ का हिस्सा बनने या रुककर फोटो लेने की बजाय स्वयं अपनी जिम्मेदारी निभायें तो सार्थक परिणाम सामने आ सकते हैं।
भीड़तंत्र हर युग में अच्छी सोच को प्रभावित करने की कोशिश करता रहा है लिहाजा आज भी कर रहा है, किंतु याद रहे कि भीड़ में दिमाग नहीं होता और इसीलिए बुद्धिमान लोग हमेशा भीड को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं।
बेहतर होगा कि कठपुतली बनने की बजाय, डोर थामने वाले बनो। मात्र शोर मचाकर आप भीड़तंत्र के उद्देश्य की पूर्ति ही करते हैं इसलिए चुपचाप मंथन का हिस्सा बनिए। विश्वास कीजिए कि सदा की भांति इस दौर में भी जीत सद्विचारों की ही होगी और अंतत: नतीजे सार्थक निकलेंगे।
- अलकनंदा सिंह
इसीलिए समुद्र मंथन की जरूरत पड़ी।
मंथन कोई एक घटना नहीं थी बल्कि ब्रह्मांड के सृष्टिचक्र को दुरुस्त करने का एक जरिया था और बहुत जरूरी था क्योंकि जब-जब आसुरी शक्तियां और निकृष्ट सोच हावी होती है तब-तब ऐसे किसी मंथन की आवश्यकता पड़ती ही है।
फिलहाल कई विश्वस्तरीय ''एस्ट्रोनॉमिकल स्टडीज'' की मानें तो हमें प्रत्यक्षत: दिखाई ना देने वाली मंथन की ये प्रक्रिया 2008 से शुरू भी हो चुकी है जो 2020 में अपने सद्विचारों-सद्कृत्यों-सद्भावनाओं को सामने लाना शुरू कर देगी।
यूं भी हमारे ग्रंथ बताते हैं कि मंथन में सबसे पहले हलाहल ही निकला था। आज भी हलाहल ही निकल रहा है, जो घोर आपराधिक सोच व कृत्यों के रूप में हमारे सामने है।
यहां एक और बात गौर करने लायक है कि उक्त एस्ट्रोनॉमिकल स्टडीज के साथ कुछ एस्ट्रोलॉजिकल स्टडी भी जुड़ गई हैं। उदाहरण के लिए 1943 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक साल के अंदर ही तीन-तीन ग्रहण पड़ रहे हैं। जबकि ग्रहण सामान्यत: जोड़े में पड़ते हैं। साथ में मंगल ग्रह का धरती के करीब आना, जोकि आकस्मिक घटना नहीं है। 2020 में प्लूटो (यमग्रह अथवा प्लेनेट ऑफ हेल) और शनि (न्यायग्रह) के एक साथ आने की पूर्वस्थिति ही है जो एक दूसरे से सिर्फ 6 डिग्री पर होंगे तथा एक दूसरे को प्रभावित करेंगे और मंथनस्वरूप निकलेगा आज की आपराधिक सोचों को दूर करने का ''फल''।
आजकल तो ऐसी-ऐसी आसुरी घटनाएं हमारे सामने आ रही हैं जिन पर विश्वास करना मुश्किल होता है। जैसे कि बुराड़ी व बिहार में एक सुशिक्षित परिवारों द्वारा सामूहिक आत्महत्या कर लेना, ब्लूव्हेल चैलेंज में बच्चे ही नहीं बड़ों द्वारा भी स्वयं अपनी हत्या (इसे आत्महत्या कहना ठीक नहीं लग रहा) किया जाना, सामूहिक बलात्कार, बकरी जैसे जानवर के साथ सामूहिक बलात्कार, बच्चियों के साथ जघन्यतम अपराध और मॉब लिंचिंग। ऐसी घटनाओं का सिलसिला अब ''किकी डांस चैलेंज'' पर आ पहुंचा है, हालांकि जैसा कि समय बता रहा है ये अभी और बढ़ेगा।
''किकी डांस चैलेंज'' में कनाडा के रैपर ड्रेक के एक गाने ''किकी डू यू लव मी'' के एक डांस मूव को धीमी गति से चलती कार से सड़क पर कूदकर दिखाना होता है साथ ही वापस कार में चढ़ना होता है, अभी तक इसमें कई जाने जा चुकी हैं और तमाम चेतावनियों के बाद भी ''खाये-अघाए' और बौराए'' लोग इसे रोजाना एक्सेप्ट भी कर रहे हैं।
बहरहाल, मंथन के इस दौर में हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि ऐसी आपराधिक सोचों व घटनाओं पर विलाप करने तथा एस्ट्रोनॉमिकल व एस्ट्रोलॉजिकल के बहाने दूसरों को गरियाने की बजाय स्वयं अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करें एवं समाज को सकारात्मक सोच से भरने का हरसंभव प्रयास करें।
ये समय संक्रमणकारी विचारों से बचकर अपने आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखने का भी है। किसी को अकेला या संदिग्ध स्थिति में देखें तो उसे टोकें। एक बार का टोकना किसी भी गलत विचार को मार सकने में बहुत कारगर होता है। इस एक कदम से हम भी किसी अपराध की संभावना को रोक सकते हैं।
प्राकृतिक बदलाव को तो हम नहीं रोक सकते और ना ही उसे गति दे सकते हैं परंतु निजी स्तर पर किसी घटना के प्रति ''हमें क्या या हमारे साथ तो नहीं हुई'' वाली सोच को जरूर बदल सकते हैं। सभ्य समाज बनाने की दिशा में इतना प्रयास भी काफी है।
किकी चैलेंज हो या बलात्कार अथवा मॉब लिंचिंग सभी में भीड़ का हिस्सा बनने या रुककर फोटो लेने की बजाय स्वयं अपनी जिम्मेदारी निभायें तो सार्थक परिणाम सामने आ सकते हैं।
भीड़तंत्र हर युग में अच्छी सोच को प्रभावित करने की कोशिश करता रहा है लिहाजा आज भी कर रहा है, किंतु याद रहे कि भीड़ में दिमाग नहीं होता और इसीलिए बुद्धिमान लोग हमेशा भीड को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं।
बेहतर होगा कि कठपुतली बनने की बजाय, डोर थामने वाले बनो। मात्र शोर मचाकर आप भीड़तंत्र के उद्देश्य की पूर्ति ही करते हैं इसलिए चुपचाप मंथन का हिस्सा बनिए। विश्वास कीजिए कि सदा की भांति इस दौर में भी जीत सद्विचारों की ही होगी और अंतत: नतीजे सार्थक निकलेंगे।
- अलकनंदा सिंह
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