देह तक सिमटे ''कथित फरिश्ते'' |
आध्यात्मिक गुरू होने का दावा करने वाले वीरेंद्र देव दीक्षित के वकील ने कल सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट में विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि ‘नारी नर्क का द्वार है’ और इसलिए हम लड़कियों को आश्रम में कैद करके रखते हैं।
हालांकि कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी. हरि. शंकर की पीठ ने दीक्षित के वकील के इस बयान पर कड़ा एतराज जताते हुए उसे तत्काल कोर्ट से बाहर निकलवा दिया।
इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि ‘दीक्षित न सिर्फ खुद को सबसे ऊपर मानते हैं, बल्कि खुद को भगवान भी समझते हैं। तो इस पर भी आश्रम के वकील ने कहा कि हम न तो कोई सोसायटी हैं और न ही हमारे ऊपर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या किसी अन्य संस्था का आदेश मानने के लिए बाध्य हैं क्योंकि हम कोई डिग्री या डिप्लोमा नहीं देते हैं।
हाईकोर्ट ने जब पूछा कि आखिर यह विश्वविद्यालय कैसे कहलाता है तो इसके जवाब में आश्रम के वकील ने कहा कि आश्रम इस लिहाज से विश्वविद्यालय कहलाता है क्योंकि इसका संचालन खुद भगवान कर रहे हैं। वकील ने दीक्षित को भगवान बताते हुए कहा कि जब भगवान खुद ज्ञान दे रहे हैं तो कोई हमको विश्वविद्यालय कहने से मना कैसे कर सकता है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि आश्रम विश्वविद्यालय शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकता क्योंकि इसका गठन नियमों के तहत नहीं हुआ है और न ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त है।
बहरहाल, दीक्षित के वकील ने बता दिया कि वह और उसका क्लाइंट ''कथित भगवान'' उसी लाइन में लग गए हैं जिस लाइन को अब तक पकड़े गए एक दर्जन से अधिक ''दुराचारी बाबाओं'' ने तैयार किया, जो ''कथित बाबा'' अभी तक सार्वजनिक नहीं हुए, यहां उनकी कोई गिनती नहीं हुई है ।
निश्चित ही हम मानते हैं कि समाज की सोच में गिरावट आई है और इसका फायदा ऐसे ही दुराचारी उठा रहे हैं तथा वासनापूर्ति के साथ संपत्तियां अर्जित कर रहे हैं। ये सब हुआ ही इसलिए कि हम अपने मूलधर्म और उसकी अवधारणा से दूर होते गए। जिस सनातन धर्म की नींव वेदों की ऋचाओं के अनुसार रखी गई, उनमें भी कहीं ये जिक्र नहीं है कि ''नारी नर्क का द्वार'' है।
इसी संदर्भ में ऋग्वेद के एक मंत्र का मैं उल्लेख करना चाहूंगी।
जिस मंत्र का मैं उल्लेख कर रही हूं, उसके तीसरे मंडल के 18वें श्लोक के पहले मंत्र में कहा गया है कि-
''यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है। हे मनुष्यो, आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें।'- (ऋग्वेद-3-18-1)
इस मंत्र में ना तो माता को स्त्री माना गया है और ना ही देहमात्र, बल्कि माता को प्रकृति, धरती अथवा जन्मदात्री माना है और तीनों के संदर्भ में यह मंत्र अपनी सार्थकता सिद्ध करता है। परंतु स्त्री को मात्र देह भर समझाने वाले इसके औचित्य तक नहीं पहुंच सकते और इन्हीं में शामिल हैं ऐसे ''दुराचारी बाबा''।
यूं भी जो लोग अपनी मानसिक चेतना को सिर्फ देह तक ही सीमित रखते आए हैं, उन्हें फिर से ऋग्वेद की ओर ले जाने की खुशफहमी हमें नहीं पालनी चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति विकृत मानसिकता का है, वह इस ज्ञान का दुरुपयोग ही करेगा।
ऋग्वेद ने हमें माता के जिस रूप को सहेजने का ज्ञान दिया, वह नरक के द्वार में कब और कैसे तब्दील हुई और इसे तब्दील किसने किया, यह अब कोई पहेली नहीं रह गई।
सनातन धर्म को ऐसे ही लोगों द्वारा विकृतरूप में पेश किया जाता रहा है और यही कारण है कि आज देश की ही विराट विरासत को गरियाने वालों की कमी नहीं हैं। ना मूलभाव समझा, ना ही मूलरूप। आधे-अधूरे सच के रूप में कोई मनुस्मृति लेकर चौराहे पर खड़ा हो जाता है तो कोई बाबा बनकर अपना धन-वासना का साम्राज्य स्थापित कर ''लोगों को बेवकूफ बनाने'' में मशगूल। सनातन धर्म को अपभ्रंशित रूप में आमजन के सामने पेश करने का ही नतीजा है कि आज कहीं ''बाबाओं'' का घिनौना रूप सामने आ रहा है तो कहीं उनके कुत्सित विचार।
देह तक सिमटे ये ''कथित फरिश्ते'' हमारे सनातन धर्म का कितना नुकसान कर चुके हैं और अभी कितना करेंगे, यह दिल्ली हाई कोर्ट में दीक्षित के वकील ने अपनी घिनौनी सोच से बता दिया। इस पर यदि गौर नहीं किया गया और हम हर बाबा को धर्मरक्षक अथवा संत-महात्मा मानकर पूजते रहेंगे और उन्हीं में से उपजते रहेंगे राम रहीम- वीरेंद्र दीक्षित-आसाराम आदि आदि....।
- अलकनंदा सिंह
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