रविवार, 22 सितंबर 2013

डेढ़ सीएम..डेढ़ साल.. डेढ़ सौ दंगे

समय- डेढ़ साल ...उपलब्‍धि- डेढ़ सौ दंगे...राजनीतिक शतरंजी चाल- डेढ़ घर...
प्रशासनिक अफसरों का डेढ़-डेढ़ दिन में ट्रांसफर...
ये है हमारी प्रदेश सरकार जिसके हिस्‍से में मुख्‍यमंत्री भी डेढ़ ही आया  है...जिसमें पूरे एक मुख्‍यमंत्री हैं मुलायम सिंह और आधे पुछल्‍ले के रूप में  लटकते अखिलेश बाबू...और तो और दोनों ही जुबान भी डेढ़ बोलते हैं,  यकीन ना हो तो देखें कि मुलायम सिंह आधी जुबान ही काम में लेते हैं तो  अखिलेश बाबू पूरी जुबान से भी कनफर्म्ड बयान न देकर ''कहीं ना कहीं''  जुमले को हर बात में बोलने के आदी हैं।
यूं कहने को तो सभी कह रहे हैं कि प्रदेश को चार-चार मुख्‍यमंत्री चला रहे  हैं मगर ''मुखिया जी'' तो डेढ़ ही हैं ना।
जहां तक बात प्रदेश की राजनैतिक स्‍थितियों की है तो दंगों से झुलसते  प्रदेश में उठी चिंगारियां फिलहाल शांत होंगी, ऐसा कहीं से भी दिखाई नहीं  देता। एक ओर तो मुज़फ्फ़रनगर दंगों में नामज़द भारतीय जनता पार्टी के  नेताओं की गिरफ्तारी ने भाजपा को 2014 तक के लिए मसाला मुहैया करा  दिया है और इसी के साथ उसे अपने अंदर की सत्‍तालिप्‍सा की सड़ांध को  ढांपने का समय और मौका दोनों मिल गया। दूसरी ओर सत्‍तारूढ़  समाजवादियों को सांप्रदायिकता की आड़ में प्रदेश की अराजक स्‍थितियों को  दायें-बायें करने का मौका मिल गया।
सपा के आधे मुख्‍यमंत्री अखिलेश ने लैपटॉप बांटे तो बिजली महंगी कर दी,  सपा के मुखिया और पूरे साबुत मुख्‍यमंत्री मुलायम ने कांग्रेस को संसद में  हर बिल पर समर्थन देकर सीबीआई जांच से अपने पूरे खानदान को मुक्‍त  करवा लिया। चलो इसी बहाने केंद्र से मिलने वाले 'करोड़ी पैकेजे' आधे से  ज्‍यादा अपने खानदान की ही झोली में आयेंगे और उसे विदेशों में निवेश  करना आसान होगा।
उधर कांग्रेस ने पर्दानशीं होकर दंगों के बाद जो आंसू बहाये उनमें मुसलमान  पिघले या नहीं, कहा नहीं जा सकता अलबत्‍ता बहिन मायावती की जरूर  धुलाई हो गई। वे और उनके शिष्‍य तो सांप्रदायिक तत्‍वों के खिलाफ बोलने  गये थे, गले पड़ गई दंगों को भड़काने में नामज़दगी लिहाजा पुलिस और  सीबीआई के हाथ फिर से गर्दन तक पहुंचने को बेताब हैं।
अब देखिए ना, इन सारे परिदृश्‍यों में भाजपा को अपनी 84 कोसी यात्रा की  विफलता से मुंह चुराने की जरूरत नहीं पड़ेगी, इसके लिए उनके प्यादे जेल  जायेंगे...दंगों की प्रोसेस ऑफ जेनेसिस (उत्‍पत्‍ति की प्रक्रिया) को अब  गुजरात से उत्‍तरप्रदेश में शिफ्ट होने का मौका मिल जायेगा, इस सारी  हायतौबा में मोदी के नाम तले पार्टी की प्रदेश इकाई को अपने अवगुण और  नाकामियों को भी ढकने में आसानी होगी, 'पार्टी विद द डिफरेंस' के तमगे  को भी फिर से अपने डिफरेंसेस दूर करने का अवसर मिल जायेगा,  मुसलमानों का अन्‍य पार्टियों से होने वाला मोहभंग अपने लिए वरदान  बनाने में सहायता मिलेगी, सो अलग।
खैर, बात इतनी सी है कि लोकसभाई चुनावों के साग में नमक का काम  करेंगे ये मुज़फ्फरी दंगे और इन सात आठ महीनों के समय का सदुपयोग  सभी अपने-अपने तरीके से करने के लिए कमर कसे हैं मगर इस सबके  बीच बात वहीं ''डेढ़'' पर आकर ठहरती है कि हमारे डेढ़ मुख्‍यमंत्री अपनी डेढ़  वर्षीय सरकार को कब पूरे पैरों पर चलायेंगे, फिलहाल तो ऐसा नज़र नहीं  आता सो उत्‍तरप्रदेश के भाग्‍य में डेढ़ जुबानी मुख्‍यमंत्रियों का ये डेढ़ चाल  वाला रवैया प्रदेश की हालत और इसके हालातों पर कोई मुकम्‍मल बात  करेगा, मुश्‍किल लगता है। रही बात जनता की तो वो काफी अरसे से  प्रयोगवाद की फैक्‍ट्री बनी हुई है इस बार एक प्रयोग दंगों के आफ्टर  इफेक्‍ट्स का भी सही....।
- अलकनंदा सिंह

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