चंदे में भी धंधा करने वालों ने किस तरह नोबल कॉज़ को मिट्टी में मिला दिया है इसका जीता जागता उदाहरण हैं मेरी कॉलोनी के वे वरिष्ठ नागरिक जो उम्र के आखिरी पायदान पर खड़े हैं, रिटायर हो चुके हैं ।
कालोनी में इन्हीं वरिष्ठजनों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के लिए चंदा उगाही का काम सौंपा गया है।
सुबह सुबह ही चंदा मांगने आये इन वरिष्ठजनों को आज मना करके बड़ा सुकून मिला ।
जानते हैं क्यों?
ठहरिये बताती हूं...
हमें बचपन से अभी तक ये ही सिखाया गया था कि जो रिटायर हो जाये उसके साथ सहानुभूति और आदर के साथ पेश आना चाहिए, उसकी हर बात को सिर झुकाकर मान लेना चाहिए।
मगर चंदा मांगने आये उन वरिष्ठ महानुभावों की आपसी बातें अगर कोई भला आदमी सुन ले तो हैरान हुये बिना नहीं रह सकेगा। घृणित सोच और चंदे में भी भ्रष्टाचार किये जाने के तरीके व बचे हुये पैसे से किसतरह अय्याशी करके ठिकाने लगाना है, की ट्रिक्स बताने वाले संवाद निश्चित ही ये सोचने पर विवश कर देने वाले थे कि क्या ये वही बुज़ुर्ग हैं जिनके लिए हमें उपदेशित किया जाता रहा है या जिनका सम्मान करने के लिए बड़े बड़े अभियान चलाये जाते हैं।
मैं अच्छी तरह जानती हूं इन आदरणियों में 99 प्रतिशत ऐसे हैं जो सरकारी कागजों में भले ही रिटायर हो गये हों मगर ना तो उनकी तृष्णायें शांत हुई हैं और ना ही आकांक्षायें, जब ओहदों पर विराजमान थे तब सरकारी सहूलियतों को खूब धोया और अब कालोनी के वाशिंदों को धो रहे हैं, उनकी शक्लें देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये वही श्रद्धेय गुणीजन हैं जिनके पैर छूने को कहा जाता है,आज वही चंदे के धंधे के मास्टरमाइंड के रूप में हमारे सामने हैं।
क्या सिक्के के इस दूसरे पहलू को हम अपनी आने वाली पीढ़ी के सामने हकीकत रख पायेंगे या उन्हें बताने का साहस करेंगे कि उम्र देखकर नहीं सीरत देखकर पहचानें कि व्यक्ति श्रद्धा का पात्र है भी या नहीं....अंधानुकरण तो किसी का भी ठीक नहीं... ।
आप कैसे सुझायेंगे अपने बच्चों को बुजु़र्गों का सम्मान करना...मुझे भी बतायें ताकि उपरोक्त बातें मेरे भी ज़हन से निकल सकें।
कालोनी में इन्हीं वरिष्ठजनों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के लिए चंदा उगाही का काम सौंपा गया है।
सुबह सुबह ही चंदा मांगने आये इन वरिष्ठजनों को आज मना करके बड़ा सुकून मिला ।
जानते हैं क्यों?
ठहरिये बताती हूं...
हमें बचपन से अभी तक ये ही सिखाया गया था कि जो रिटायर हो जाये उसके साथ सहानुभूति और आदर के साथ पेश आना चाहिए, उसकी हर बात को सिर झुकाकर मान लेना चाहिए।
मगर चंदा मांगने आये उन वरिष्ठ महानुभावों की आपसी बातें अगर कोई भला आदमी सुन ले तो हैरान हुये बिना नहीं रह सकेगा। घृणित सोच और चंदे में भी भ्रष्टाचार किये जाने के तरीके व बचे हुये पैसे से किसतरह अय्याशी करके ठिकाने लगाना है, की ट्रिक्स बताने वाले संवाद निश्चित ही ये सोचने पर विवश कर देने वाले थे कि क्या ये वही बुज़ुर्ग हैं जिनके लिए हमें उपदेशित किया जाता रहा है या जिनका सम्मान करने के लिए बड़े बड़े अभियान चलाये जाते हैं।
मैं अच्छी तरह जानती हूं इन आदरणियों में 99 प्रतिशत ऐसे हैं जो सरकारी कागजों में भले ही रिटायर हो गये हों मगर ना तो उनकी तृष्णायें शांत हुई हैं और ना ही आकांक्षायें, जब ओहदों पर विराजमान थे तब सरकारी सहूलियतों को खूब धोया और अब कालोनी के वाशिंदों को धो रहे हैं, उनकी शक्लें देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये वही श्रद्धेय गुणीजन हैं जिनके पैर छूने को कहा जाता है,आज वही चंदे के धंधे के मास्टरमाइंड के रूप में हमारे सामने हैं।
क्या सिक्के के इस दूसरे पहलू को हम अपनी आने वाली पीढ़ी के सामने हकीकत रख पायेंगे या उन्हें बताने का साहस करेंगे कि उम्र देखकर नहीं सीरत देखकर पहचानें कि व्यक्ति श्रद्धा का पात्र है भी या नहीं....अंधानुकरण तो किसी का भी ठीक नहीं... ।
आप कैसे सुझायेंगे अपने बच्चों को बुजु़र्गों का सम्मान करना...मुझे भी बतायें ताकि उपरोक्त बातें मेरे भी ज़हन से निकल सकें।
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