हाल ही में घटित हुए तीन उदाहरणों से मैं एक बात पर पहुंची हूं कि दंगाई हों, सफेदपोश नेता हों, कवि हों या शायर हों, इस सोशल मीडिया के समय में किसी की कारस्तानी छुपी नहीं रह सकती। कल तक हम जिन्हें सिर आंखों पर बैठाते थे और अचानक उनकी कोई ऐसी करतूत हमारे सामने आ जाए जो न केवल समाज विरोधी हों बल्कि देश विरोधी भी हो तो इसके लिए हम सोशल मीडिया को ही धन्यवाद देते हैं। फिर मुंह से निकल ही जाता है कि अच्छा हुआ पता चल गया वरना…
इस तरह बेपर्दा होने के तीन उदाहरण हमारे सामने हैं। कल बैंगलुरु में हुई हिंसा, फिर राहत इंदौरी का चले जाना और उससे एक दिन पहले मुनव्वर राणा साहब का ज़हर उगलना।
पहला उदाहरण- बैंगलुरू हिंसा मामले की शुरुआत भगवान कृष्ण को रेपिस्ट बताकर राधा जी और गोपियों के खिलाफ ”कुछ तत्वों” द्वारा अनर्गल लिखने से हुई परंतु प्रचारित ये किया जा रहा है कि ”मुहम्मद साहब” के खिलाफ अनर्गल ट्विटर पोस्ट पर बवाल हुआ और ”कुछ तत्वों” ने आगजनी कर लाखों की संपत्ति फूंककर पुलिस पर हमला करते हुए दर्जनों पुलिसकर्मी घायल कर दिए… । इसके बाद हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ठेकेदारों ने मंदिर के आगे मानव श्रृंखला बनाए खड़े कुछ मुस्लिम युवकों की तारीफ में कसीदे पढ़े ही थे कि सोशल मीडिया ने सारा सच उगल दिया… कि पूर्व नियोजित था यह कि हिंसा व आगजनी के बाद ऐसा वीडियो बनाकर ”खास तरह” से प्रचारित किया जाए। हिंसा में बड़ी बात निकलकर सामने आई है। पुलिस की मानें तो 5 दंगाइयों ने 300 लोगों का गैंग बनाया था। उनका प्लान सभी पुलिस वालों को जान से मारने का था। हमलावरों ने हिंसा के दौरान पुलिस को निशाना बनाने के लिए गुरिल्ला जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया।
दूसरा उदाहरण हैं – जाने माने शायर मुनव्वर राणा, जिन्होंने राम मंदिर पर सुप्रीमकोर्ट के निर्णय को गलत बताते हुए एकसाथ देश की सुप्रीम कोर्ट व सरकार पर सवाल खड़े कर अपनी ”अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का बेजां इस्तेमाल किया। ये वही मुनव्वर राणा हैं जो आजतक के पूर्व एंकर व शायर आलोक श्रीवास्तव की नज़्म चुराकर उन्हीं की मौजूदगी में मुशायरे में अपने नाम से सुना चुके हैं, मैं उस पत्र को भी यहां चस्पा कर रही हूं जो आलोक श्रीवास्तव ने मुनव्वर राणा को लिखा था। ये पत्र भी सरेआम हो गया और मुनव्वर राणा की हक़ीकत हमें बता गया।
हालांकि सोशल मीडिया दोधारी तलवार भी है तो बूमरैंग भी, दोधारी तलवार इसलिए कि इस पर आने वाली सूचनाएं कहर बरपा सकती हैं और जागरूकता भी पैदा कर सकती हैं। बूमरैंग इसलिए कि इस पर डाली गई सामग्री लगातार घूमकर कब हमारे सामने किसे नंगा कर दे, कहा नहीं जा सकता। सोशल मीडिया कि पूरी प्रोसेस में परदे के पीछे से घात करने वाले बहुत दिनों तक छुप नहीं पाते, उनके कुकृत्य सबके सामने आ ही जाते हैं। मुनव्वर राणा इसका ताजा उदाहरण हैं।
अब तीसरा उदाहरण राहत इंदौरी साहब का- हालांकि मरने के बाद हमारे संस्कारों में नहीं है किसी की मजामत करना, परंतु अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर अहमदाबाद के दंगों पर उनकी ज़ुबान का ज़हर तो हमने मुशायरों में बहुत सुना परंतु कभी वह गोधरा का सच ना बोल सके…आखिर क्यों.. ?? मुशायरों के मंच से युवाओं को अहमदाबाद दंगे याद रखने को कहते हैं और मुंबई दंगे भूल जाते हैं, उन्हें 370 तो याद रहता है…विस्थापित पंडितों को भूल जाते हैं। सिर्फ हिंदू ही क्यों, उन्हें तो तीन तलाक़ का खत्म होना भी अखरता है पर हलाला भूल जाते हैं.. इन सबके सुबूत सोशल मीडिया हमें देता रहता है परंतु हम ही अगर एक आंख से देखेंगे तो कैसे इनकी असलियत पहचानेंगे … अब यही मीडिया उनकी कलई खोल रहा है।
देखिए वीडियो-
सत्य कड़वा होता है, सुना नहीं जाता परंतु सोशल मीडिया ही है जो अब इन जैसों को नंगा कर रहा है। बैंगलुरू हिंसा के पीछे छुपे तत्व हों या मुनव्वर राणा व राहत इंदौरी जैसे बड़े शायर, सबकी ज़हनियत के सच से हमें सावधान रहना होगा।
- अलकनंदा सिंंह
सत्य कड़वा होता है, सुना नहीं जाता परंतु सोशल मीडिया ही है जो अब इन जैसों को नंगा कर रहा है। बैंगलुरू हिंसा के पीछे छुपे तत्व हों या मुनव्वर राणा व राहत इंदौरी जैसे बड़े शायर, सबकी ज़हनियत के सच से हमें सावधान रहना होगा।
- अलकनंदा सिंंह