आप भी पढ़ें यह संवाद जो कि किताब- 1971: charge of Gorkhas and other stories में दर्ज है। उस युद्ध के बारे में भारतीय सैनिकों के शौर्य की अद्भुत कहानियां हैं इस किताब में।
1971 के युद्ध में गोरखा राइफल्स के एक कर्नल ने अपने दो युवा साथियों से कहा-अटैक करना है, सुसाइडल है, फ्रंट पर तुम दोनों में से कोई एक ही रहेगा। तुम दोनों में से कौन तैयार है? एक ने कहा- जान की बाजी लगानी है तो मैं फ्रंट टीम में रहूंगा सर।
बहुत समझाने पर पहला वाला तैयार हुआ कि फ्रंट अटैक में वो नहीं रहेगा। पीछे वाली टीम में रहेगा। दूसरे वाले ने पाकिस्तानी चौकी पर हमले से पहले सिर मुंडा लिया। क्यों मुंडाया, ये किसी को आजतक नहीं पता चल पाया। क्योंकि उस हमले में उनकी शहादत हुई। मौत से पहले कई पाकिस्तानी सैनिकों की गर्दन काटी थी उस महावीर ने। उस हमले में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी दौड़ा-दौड़ा कर मारा था।
जब जंग खत्म हुई तो पहला वाला, दूसरे वाले के घर गया। बरेली में। मां ने कहा-मेरा बेटा हमेशा तुम्हारा नाम लेता था। कहता था कि वो मेरे लिए जान की बाजी लगा सकता है। अब मेरा बेटा नहीं है तो तुम ही मेरे बेटे हो।
पहले वाले का नाम था- कैप्टन हिमकार वल्लभ पांडेय (25 साल)
दूसरे वाले का नाम था- कैप्टन प्रवीण कुमार जौहरी (सेना मेडल, मरणोपरांत)-23 साल
कर्नल थे श्याम केलकर।
...हम खुशकिस्मत हैं कि ऐसी सेना है हमारे पास। जय हिंद की सेना।
प्रेरणादायक
जवाब देंहटाएंबिलकुल यार, ये सिर्फ कहानी नहीं, एक झटका है हमारे कम्फर्ट ज़ोन को। सोचो, प्रवीण जौहरी ने सिर क्यों मुंडवाया? कहीं न कहीं उनको शायद एहसास था कि अब वापस नहीं आएगा, लेकिन फिर भी गए। और सिर्फ गए नहीं, जाते-जाते दुश्मनों को ऐसी नींद सुलाया कि इतिहास में नाम दर्ज करवा गए। हिमकार पांडेय की हालत सोचो, जब उन्होंने दोस्त की शहादत की खबर सुनी होगी, कैसे आंखें नम हुई होंगी, और दिल फटा होगा। लेकिन फिर वो मां के पास गया, उन्हें सहारा दिया। और मां कहती है अब तू ही मेरा बेटा है। कैसे संभाल पाते होंगे खुद को? क्या आज हम वैसी जिम्मेदारी उठा सकते हैं? सच में, जय हिंद सिर्फ नारा नहीं है, एहसास है।
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