शनिवार, 29 जून 2024

NEET की जरूरत क्यों, कितने रुपए में तैयार होता है एक डॉक्टर


 भारत में अगर आपको किसी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना है, तो पहले NEET का एग्जाम क्लियर करना होगा. इसी एग्जाम में पेपर लीक होने को लेकर फिलहाल बवाल मचा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीट की तैयारी से लेकर डॉक्टर बनने तक का भारत में खर्च कितना होता है?


भारत में डॉक्टर बनने की अनिवार्य शर्तों में से एक है NEET का एग्जाम पास करना, क्योंकि इसी एग्जाम की रैंकिंग के आधार पर किसी छात्र को मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिलता है. फिलहाल इसी नीट एग्जाम पर बवाल मचा हुआ, पेपर लीक होने की बातें भी सामने आ रहीं है. इस बीच ये जान लेना बहुत जरूरी है कि किसी बच्चे के माता-पिता पर उसे डॉक्टर बनाने का आर्थिक बोझ कितना आता है.


नीट का एग्जाम क्लियर करने के लिए हर साल लाखों बच्चे अपीयर होते हैं. इनमें से ज्यादातर बच्चे कोचिंग सेंटर से एग्जाम की तैयारी भी करते हैं. इसका सीधा मतलब ये है कि किसी बच्चे के डॉक्टर बनने से पहले ही उसका खर्च शुरू हो जाता है. इसके बाद कॉलेज में दाखिला, ट्यूशन फीस और फिर मास्टर डिग्री की फीस…खर्चे की फेहरिस्त लंबी है.


हर साल बनते हैं देश में इतने डॉक्टर

भारत में डॉक्टर और जनसंख्या का अनुपात 0.9 : 1000 का है. ये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के औसत अनुपात 1 : 1000 से मामूली ही कम है. वहीं अगर बात करें कि देश में हर साल कितने डॉक्टर तैयार हो सकते हैं, तो आपको बता दें कि NEET Exam देश के अलग-अलग मेडिकल कॉलेज में मौजूद 83,000 सीटों पर एडमिशन के लिए आयोजित होता है. इसमें भी सिर्फ आधी सीट ही सरकारी कॉलेजों में हैं.


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या करीब 385 है. जबकि प्राइवेट के कॉलेज 320 हैं. सरकारी कॉलेज में करीब 55,000 और प्राइवेट कॉलेज में करीब 53,000 सीट हैं. हालांकि प्राइवेट कॉलेज की कई सीट मैनेजमेंट कोटा के तहत आती हैं.


इतना आता है डॉक्टर बनने का खर्च

अब अगर देश में डॉक्टर बनने के खर्च को समझना हो तो सबसे पहले आपको बता दें कि प्राइवेट कॉलेज में एमबीबीएस कोर्स की फीस 1 करोड़ रुपए तक जा सकती है. इसलिए मिडिल क्लास के लिए ये बहुत मुफीद ऑप्शन नहीं. इसलिए वह नीट एग्जाम की रैंकिंग से सरकारी कॉलेज में दाखिले पर ही सारा जोर देते हैं.


अगर बात नीट एग्जाम की तैयारी की करें, तो आकाश इंस्टीट्यूट, एलन और विद्या मंदिर क्लासेस जैसे कोचिंग सेंटर की फीस 1.25 लाख रुपए से 4 लाख रुपए के बीच है. ये कोचिंग सेंटर की लोकेशन, उसकी फैकल्टी इत्यादि पर डिपेंड करती है.


अब बात करें एमबीबीएस की फीस की, तो सरकारी कॉलेज में ये फीस 5,000 रुपए से 1.5 लाख रुपए प्रति वर्ष तक होती है. जबकि प्राइवेट कॉलेज में 12 लाख से 25 लाख रुपए तक. इस तरह किसी सरकारी कॉलेज से डॉक्टर बनने की न्यूनतम लागत 20,000 रुपए की ट्यूशन फीस है, तो प्राइवेट कॉलेज में यही खर्च न्यूनतम 50 लाख रुपए है.


भारत में फीस ज्यादा होने की वजह से ही यहां से हर साल हजारों की संख्या में लोग रूस, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, फिलीपींस, यूक्रेन और नेपाल जैसे देशों में डॉक्टरी की पढ़ाई करने जाते हैं.


सोमवार, 17 जून 2024

NEET : रैंकिंग, कटऑफ-ग्रेस मार्क्स और NTA, जान‍िए क्या है पूरा क‍िस्सा, क्यों हो रहा बवाल


 NEET-UG 2024 की परीक्षा के नतीजे निकले और विवाद शुरू हो गया. इस परीक्षा से जुड़ी खबरों ने लाखों लोगों के अंदर यह जानने की जिज्ञासा जरूर पैदा कर दी है कि आखिर नीट की परीक्षा क्या है और किसलिए ली जाती है, कटऑफ का क्या महत्व है. 

ये है मामला 

NEET-UG परीक्षा क्या है और क्यों की जाती है?

NEET-UG का अर्थ है National Eligibility-cum-Entrance Test जो कि मेडिकल की अंडर ग्रेजुएट की पढ़ाई के लिए लिया जाने वाला एक कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट है. इसे पूरे देश में 13 अलग-अलग भाषाओं में कराया जाता है. इसके लिए आप न सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि दुनिया के कई अलग-अलग देशों से भी टेस्ट दे सकते हैं. इस टेस्ट को पास करने के बाद कैंडिडेट MBBS के साथ ही अंडर ग्रेजुएट BAMS, BUMS, BSMS और BHMS के लिए भी क्वालीफाई कर सकता है.

कब शुरू हुई NEET-UG परीक्षा?

मेडिकल की पढ़ाई के लिए NEET-UG परीक्षा की शुरुआत देशव्यापी स्तर पर 2016 में हुई. शुरुआती तीन साल इस पेपर को आयोजित कराने की जिम्मेदारी CBSE बोर्ड के पास थी लेकिन 2019 में ये जिम्मेदारी देश में अलग-अलग परीक्षा का आयोजन करने वाली संस्था नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी NTA के पास आ गई. 2016 से पहले इसे राज्य स्तर पर आयोजित किया जाता था और इस एलिजिबिलिटी टेस्ट को CPMT के नाम से जाना जाता था. लेकिन राज्यों की मनमानी और इस टेस्ट में बढ़ती गड़बड़ियों के चलते इसको देशव्यापी स्तर पर कराने की योजना बनाई गई और इसे NEET-UG परीक्षा का नाम दिया गया.

कौन दे सकता है NEET-UG परीक्षा?

इस परीक्षा को देने की निर्धारित शैक्षणिक योग्यता पीसीबी यानी कि फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ 12वीं पास होना है. यानी इन विषयों के साथ जो छात्र 12वीं की परीक्षा किसी भी मान्यता प्राप्त बोर्ड से पास करता है वो इस परीक्षा को देने के लिए योग्य माना जाता है. NEET-UG परीक्षा को जनरल (अनारक्षित), ओबीसी, एससी-एसटी और विकलांग कुल चार कैटेगरी में दिया जा सकता है. चारों कैटेगरी में मिनिमम क्वालिफाइंग मार्क्स अलग-अलग होते हैं. जैसे 2024 की निर्धारित नीट परीक्षा योग्यता के मुताबिक, जनरल कैटेगरी में 50 फीसदी से 12वीं पास करने वाला छात्र भी नीट की परीक्षा दे सकता है. वहीं एससी, एसटी, ओबीसी और सुरक्षित विकलांग कैटेगरी में 40 प्रतिशत और जनरल विकलांग कैटेगरी में 45 प्रतिशत अंक होने चाहिए.

कितनी बार दी जा सकती है NEET-UG परीक्षा?

इस एग्जाम को देने की न्यूनतम उम्र 17 साल है. जो कैंडिडेट 31 दिसंबर तक 17 वर्ष पूरे कर लेते हैं वो इस परीक्षा में भाग ले सकते हैं, हालांकि इस परीक्षा को देने की अधिकतम आयु नहीं है ना ही इस पेपर को देने की कोई लिमिट है. यानी कोई भी कैंडिडेट इस परीक्षा को कितनी भी बार दोहरा सकता है. पहले जनरल कैटेगरी के लिए 25 वर्ष आयु लिमिट थी यानी 25 वर्ष के बाद जनरल कैटेगरी से इस एग्जाम को दोबारा नहीं दिया जा सकता था लेकिन अब जनरल कैटेगरी से भी इस आयु सीमा को हटा लिया गया है. ऐसे ही पहले सीबीएसई द्वारा इस पेपर को सिर्फ 3 बार देने का ही विकल्प था लेकिन CBSE से हटने के बाद इस लिमिट को भी हटा लिया गया था. अब कोई कितनी भी बार इस परीक्षा को दे सकता है.

कट ऑफ क्या है और कैसे निर्धारित किया जाता है?

कट ऑफ वो अंतिम अंक हैं जिसके बाद छात्र को मेडिकल इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन नहीं मिल पाता चाहे वो सरकारी मेडिकल कॉलेज हो या प्राइवेट मेडिकल कॉलेज. देश में मेडिकल कॉलेजों और मेडिकल सीट्स के लिमिटेड होने के चलते एक कट ऑफ निर्धारित किया जाता है जिसके बाद छात्र/छात्रा को एडमिशन नहीं दिया जाता. इस साल ज्यादा बच्चों के पेपर देने से जनरल कैटेगरी का कट ऑफ भी बढ़ गया है. इसे जनरल कैटेगरी में मिनिमम स्कोर के तौर पर भी जाना जाता है और आप इसे इस परीक्षा को पास करने के पासिंग मार्क्स भी मान सकते हैं. लेकिन ओबीसी, एसटी-एससी और विकलांग कैटेगरी में इन नंबरों में अंतर होता है. उन कैटेगरी का कट ऑफ जनरल कैटेगरी के मुकाबले कम रहता है.

जहां पिछले साल 720 में से 137 नंबर लाने वाले को भी किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल सकता था. वहीं इस साल ये नंबर 164 तक पहुंच गया. लगातार गिरते कट ऑफ के बाद साल 2024 में काफी उछाल आया है.

इस साल कट ऑफ बढ़ने की क्या वजहें रही?

इस साल कट ऑफ बढ़ने की दो बड़ी वजहें रहीं. करियर काउंसलर गणेश पांडे बताते हैं इसकी पहली वजह इस साल 3 लाख ज्यादा बच्चों का परीक्षा देना रहा. जहां 2023 परीक्षा में कुल 20,38,596 छात्रों ने हिस्सा लिया था वहीं इस साल इनकी संख्या 23,33,297 पहुंच गई, जिनमें से करीबन 13 लाख छात्रों ने NEET-UG परीक्षा को क्वालीफाई किया है. 3 लाख अतिरिक्त छात्र और लिमिटेड सीट होने की वजह से कट ऑफ को बढ़ा दिया गया.

इसकी दूसरी बड़ी वजह कई छात्रों का बार-बार परीक्षा देना भी है. जैसा कि हमने बताया कि इस एग्जाम को देने की कोई आयु सीमा नहीं है, एक छात्र कितनी भी बार इस परीक्षा को दे सकता है. ऐसे में कई छात्र अच्छे सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए इस परीक्षा को साल दर साल देते हैं जिससे कट ऑफ बढ़ता जाता है.

वहीं इस साल एकदम से 67 बच्चों के 720 में से 720 नंबर आने से भी कट ऑफ काफी ज्यादा रहा. जहां हर साल 2 या 3 बच्चे ही पूरे अंक प्राप्त कर पाते थे वहीं इस साल कुल 67 बच्चों के पूरे नंबर आने से भी कट ऑफ बढ़ा है.

औसतन नंबर में भी हुई बढ़ोतरी

मिनिमम मार्क्स में जहां इस साल काफी बढ़ोतरी देखी गई वहीं औसतन नंबरों में भी काफी उछाल देखा गया. औसत अंक वो अंक होते हैं जो सभी उम्मीदवार के कुल नंबरों से कुल उम्मीदवार की संख्या को विभाजित करके आते हैं. औसत अंकों में बढ़ोतरी की वजह इस साल 23 लाख उम्मीदवारों का एग्जाम देना भी रहा. जहां पिछले साल 20 लाख बच्चों के अंकों का औसत 280 के करीब था वही इस साल ये औसत बढ़कर 323 के करीब पहुंच गया है.

कितने नंबर आने पर सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल सकता है?

देश में कुल 706 मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें से 386 सरकारी और 320 प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की संख्या है और इन सभी मेडिकल कॉलेजों में लगभग 1,10,000 सीटें हैं. सरकारी कॉलेजों में जहां कुल 56,405 सीटें हैं वहीं प्राइवेट में 52,765 सीटें हैं. इन सीट्स को छात्रों के मैरिट के हिसाब से दिया जाता है. जिन छात्रों के अच्छे नंबर होते हैं उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्राथमिकता दी जाती है. सरकारी कॉलेजों में सीटें भरने के बाद छात्र प्राइवेट कॉलेज में दाखिला ले सकते हैं. लेकिन कई छात्र सरकारी के साथ-साथ प्राइवेट कॉलेजों में भी सीट आरक्षित रखते हैं ताकि सरकारी मेडिकल कॉलेज न मिलने की स्थिति में वो मनचाहे प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन ले सकें. सभी प्राइवेट कॉलेजों की फीस अलग-अलग है. एक अनुमान के मुताबिक एक प्राइवेट कॉलेज 1 साल के लगभग 15-20 लाख रुपये वसूलता है. ये फीस अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकती है.

600 अंक लाने वाले छात्र आसानी से सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन पा लेते हैं लेकिन इस साल कट ऑफ और रैंकिंग में बढ़ोतरी की वजह से 620-625 नंबर लाने वाले छात्रों को ही सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल पाएगा. बाकी छात्रों के पास प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का विकल्प है. लेकिन MBBS, BDS और आयुष तीनों में सीट्स पाने के लिए अलग-अलग सीट्स सुरक्षित हैं. जैसे जनरल कैटेगरी का कट ऑफ ज्यादा रहता है वैसे ही MBBS की सीट्स लिमिटेड होती हैं जिसमें एडमिशन के लिए ज्यादा अंक चाहिए होते हैं वैसे ही BDS और आयुष में एडमिशन के लिए MBBS के मुकाबले कम नंबर्स की आवश्यकता होती है.

रैंकिंग कैसे निर्धारित की जाती है?

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) के अध्यक्ष डॉ. रोहन कृष्णन बताते हैं कि रैंकिंग को निर्धारित करने का समीकरण भी बेहद आसान है. इसमें एक समान नंबर लाने वाले छात्रों को उनके बायोलॉजी, केमिस्ट्री और फिजिक्स के नंबरों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है जैसे इस साल NEET-UG 2024 में 67 छात्रों ने 720 नंबर हासिल किए. इन छात्रों को उनके नंबर और आयु के आधार पर 67 रैंक तक दी जाएगी. इसके बाद 719 नंबर लाने वाले एक छात्र को 68 रैंक और 718 नंबर लाने वाले तीसरे छात्र को 69 रैंक दी जाएगी. चूंकि इस साल नंबरों का अंतराल काफी ज्यादा रहा है तो इस साल 600 नंबर लाने वाले छात्र की रैंकिंग भी 80,000 तक पहुंच गई है. आगे इसी रैंकिंग के आधार पर बच्चों को काउंसलिंग के समय कॉलेजों का आवंटन किया जाता है.

काउंसलिंग कैसे की जाती है?

छात्र अपनी रैंकिंग और नंबर के आधार पर घटते क्रम में अपने मनचाहे कॉलेज और सब्जेक्ट का चयन करते हैं. लेकिन उनकी रैंकिंग के आधार पर उनको कॉलेज का आवंटन होता है. इसके बाद छात्र को आवंटित कॉलेज के बारे में सूचित किया जाता है जहां वो एडमिशन का प्रोसेस पूरा कर सकता है. अगर छात्र को उम्मीद होती है कि उसका नंबर सरकारी मेडिकल कॉलेज में नहीं आएगा तो वो मनचाहे प्राइवेट कॉलेज में अप्लाई कर सकता है और एडमिशन ले सकता है.


सोमवार, 3 जून 2024

जान‍िए: कैसे होती है मतगणना, कितना बड़ा होता है मतगणना का एक राउंड


 इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से चुनाव के कारण अब मतगणना आसान भी हो गई है और मंगलवार को देर शाम तक सभी नतीजे भी आ जाएंगे. आइए जान लेते हैं कैसे होती है मतगणना, कौन तय करता है काउंटिंग की जगह, कितना बड़ा होता है मतगणना का एक राउंड और कैसे जारी होता है उम्मीदवार को जीत का सर्टिफिकेट?

भारत में आम चुनाव अब अपने अंतिम पड़ाव पर आ गया है. एग्जिट पोल के बाद अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या ये हकीकत में तब्दील होंगे. हालांकि, चार जून को मतगणना के साथ ही चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और इसका खुलासा भी हो जाएगा. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से चुनाव के कारण अब मतगणना आसान भी हो गई है और मंगलवार को देर शाम तक सभी नतीजे भी आ जाएंगे.

आइए जान लेते हैं कैसे होती है मतगणना और ईवीएम के स्ट्रॉन्ग रूम से निकलने से लेकर विजेता प्रत्याशी को सर्टिफिकेट जारी होने तक की क्या है प्रक्रिया.

संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के आरओ के अधीन होती है मतगणना
भारत में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 64 के अनुसार, मतों की गिनती संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) द्वारा या उसके पर्यवेक्षण/निर्देशन के अधीन होती है. किसी क्षेत्र में चुनाव कराने का जिम्मा भी आरओ का ही होता है. चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर आमतौर पर संबंधित जिले के जिलाधिकारी को बनाया जाता है. एक जिले में एक से अधिक चुनाव क्षेत्र होने पर किसी अन्य सरकारी अधिकारी को चुनाव पदाधिकारी बनाया जा सकता है. इन सरकारी अधिकारियों या स्थानीय निकाय के अधिकारियों को निर्वाचन आयोग राज्य सरकार की सलाह पर चुनता है.

तारीख और समय आयोग तय करता, RO निर्धारित करता है जगह
जहां तक बात मतगणना की है तो आमतौर पर आयोग चुनाव की घोषणा के साथ ही मतगणना की तारीख और समय तय कर देता है. किसी चुनाव क्षेत्र के लिए मतगणना का स्थान रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) निर्धारित करता है. सामान्यतौर पर किसी एक चुनाव क्षेत्र के लिए मतगणना एक ही जगह होती है और इसके लिए निर्वाचन अधिकारी के मुख्यालय, जो आमतौर पर जिला मुख्यालय होता है, उसको प्राथमिकता दी जाती है. मतगणना सीधे आरओ की निगरानी में होती है और वोटों की गिनती एक ही बड़े हॉल में की जाती है. इसके लिए अलग-अलग कई टेबल लगाई जाती हैं.

मतगणना के दिन स्ट्रॉन्ग रूम से निकाली जाती हैं ईवीएम
मतदान के बाद ईवीएम सभी जिला मुख्यालयों या आरओ मुख्यालयों पर बनाए गए स्ट्रॉन्ग रूम में कड़ी सुरक्षा के बीच सील कर रख दी जाती हैं. इनको मतगणना के दिन स्ट्रॉन्ग रूम से निकाला जाता है. फिर पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इन मशीनों को उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की मौजूदगी में खोला जाता है. इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर की ओर से नियुक्त गए काउंटिंग सुपरवाइजर्स (मतगणना कर्मचारी) वोटों की गिनती करते हैं.

मतगणना एजेंट और कर्मचारियों के बीच बनाया जाता है अवरोध
मतगणना कर्मचारियों की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए तीन स्तरीय रैंडमाइजेशन प्रॉसेस के जरिए इनको नियुक्त किया जाता है. इसी तरह से मतदान के लिए भी कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है. मतगणना के दौरान सभी पार्टियों के और निर्दलीय उम्मीदवार अपने-अपने मतगणना एजेंट और इलेक्शन एजेंट के साथ काउंटिंग हॉल में मौजूद रहते हैं. मतगणना के लिए लगाई गई टेबल और मतगणना एजेंटों के बीच दूरी बनाए रखने के लिए बीच में अवरोधक लगाए जाते हैं.

ये बांस-बल्ली के रूप में हो सकते हैं या किसी अन्य पारदर्शी पदार्थ से बने हो सकते हैं, जिससे मतगणना के दौरान एजेंट मशीनों को छू न सकें और पूरी प्रक्रिया उनकी निगरानी में भी रहे.

सबसे पहले पोस्टल बैलेट की होती है गिनती
मतगणना तय समय पर शुरू होती है तो सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट और पोस्टल बैलेट की गिनती सीधे आरओ की निगरानी में जाती है. इनके लिए अलग से टेबल की व्यवस्था की जाती है और सहायक निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति की जाती है.

व्यवस्था के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट व पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू होने के आधे घंटे बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में पड़े वोटों की गणना शुरू की जा सकती है. इसके लिए जरूरी नहीं है कि पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी हो चुकी हो. यही नहीं, मतगणना के लिए ईवीएम की केवल कंट्रोल यूनिट का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रक्रिया में बैलेट यूनिट की कोई भूमिका नहीं होती, इसलिए उनको टेबल पर नहीं रखा जाता है.

कितना बड़ा होता है मतगणना का एक राउंड?
मतगणना के दौरान जब 14 ईवीएम में डाले गए मतों की गिनती पूरी हो जाती है तो एक राउंड या एक चक्र की गिनती पूरी मानी जाती है और हर चक्र का नतीजा साथ ही साथ घोषित किया जाता है. जब गणना पूरी हो जाती है तो रिटर्निंग ऑफिसर या आरओ ही लोक प्रतिनिधित्वण अधिनियम-1951 की धारा 66 के उपबन्धों के अनुसार नतीजे की घोषणा करता है. इसके बाद आरओ की ओर से विजेता प्रत्याशी को जीत का सर्टिफिकेट दिया जाता है.
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