शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

कौन हैं कवि ‘दीनानाथ नादिम’, जिनकी कविता लोकसभा में पढ़ी गई

बजट पेश करने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कश्मीरी भाषा में कवि‘दीनानाथ नादिम’ की कविता पढ़ी। वित्त मंत्री ने हिंदी में इसका अनुवाद करके बताया कि-


हमारा वतन खिलते हुए शालीमार बाग़ जैसा
हमारा वतन डल लेक में खिलते हुए कमल जैसा
हमारा वतन नौजवानों के गरम खून जैसा
मेरा वतन, तेरा वतन, हमारा वतन
दुनिया का सबसे प्यारा वतन


आगे वित्त मंत्री ने बताया कि इस कविता को साहित्य अकादमी से सम्मानित कश्मीरी कवि दीनानाथ नादिम ने लिखा है। जानते हैं कौन हैं दीनानाथ नादिम जिनकी कविता से लोकसभा गूंज उठी।
18 मार्च 1916 को श्रीनगर में पैदा हुए दीनानाथ नादिम ने कश्मीरी कविताओं को नई दिशा दी और उनकी गिनती जल्द ही 20वीं सदी के अग्रणी कवियों में हो गयी। उहोंने कश्मीर में प्रगतिशील लेखक संघ की अगुवाई भी की। न सिर्फ़ उनकी कविताएं कश्मीरी भाषा में कश्मीर की मिट्टी से जुड़ी हुई हैं बल्कि उन्होंने हिंदी और उर्दू में भी काव्य कहा है। एक बड़ी संख्या में युवा उनकी कविताओं से प्रभावित थे।
दीनानाथ नादिम अपने बारे में कहते हैं कि
“मैं श्रीनगर में पैदा हुआ। बहुत कम उम्र में ही मुझमें कविता के प्रति रुचि पैदा हो गई थी लेकिन शुरुआत में मैं अपनी कविताएं किसी को दिखाने या उन्हें प्रकाशित करवाने के मामले में बेहद संकोची था। मेरी अनेक कविताएं तो इस कारण भी नष्ट हो गईं, क्योंकि वे सिगरेट के पैकेट पर लिखी गई थीं लेकिन कम छपने का मुझे कोई मलाल नहीं है।
एक पीढ़ी पहले तक कश्मीरी के कवि प्रकृति और प्रेम पर ही लिखते थे। मैंने जब लेखन शुरू किया था, तब कश्मीर अशांत था। मैंने ठोस यथार्थ को अपनी कविताओं का विषय बनाया। इस मामले में महजूर और आज़ाद जैसे वरिष्ठ कवियों से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।
शेख अब्दुल्ला के स्वागत में एक जनसभा में पढ़ी गई एक कविता से अचानक मैं मशहूर हो गया। जब मुझे सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार देने का फैसला हुआ, तब तक मेरे पास एक भी किताब नहीं थी। तब आयोजकों को मजबूरन यह घोषित करना पड़ा कि मुझे यह पुरस्कार किसी किताब पर नहीं, बल्कि मेरी समग्र रचनाओं पर दिया जा रहा है। मैंने कश्मीर में प्रगतिशील लेखकों को एकजुट करने का काम किया क्योंकि मुझे यह बेहद ज़रूरी काम लगा।
हरिवंश राय बच्चन ने मेरी कुछ कविताओं का अनुवाद किया है जबकि कमलेश्वर मुझे कश्मीरी साहित्य के देवदार कह चुके हैं लेकिन मुझे सबसे ज्यादा खुशी मिलती है, जब मंच पर कविता पढ़ते समय दर्शक हाथ उठा-उठाकर मेरा स्वागत करते हैं। मेरे हिसाब से वही साहित्य महत्वपूर्ण है, जो समाज की बेहतरी के लिए काम करता है।”

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