मंगलवार, 14 मई 2019

यूपी बोर्ड की शिक्षा कुव्‍यवस्‍था, बानगी बने 165 स्‍कूल

हमारे देश में शिक्षा का अधिकार कहता है कि शिक्षा सबके लिए हो, शिक्षा सर्वसुलभ हो, शिक्षा समाज के निचले पायदान पर बैठे व्‍यक्‍ति तक पहुंचे…मगर इस प्रक्रिया को पूरी करने वाली सबसे अहम कड़ी शिक्षक ही जब अपने कर्तव्‍य निर्वहन में भ्रष्‍ट और नाकारा उदाहरण पेश करते दिखाई दें तो इस अभियान का गर्त में जाना निश्‍चित है।
शिक्षा को व्‍यवसायिक और नौकरी का माध्‍यम मानकर चलने वाली सोच का ही नतीज़ा है कि यूपी बोर्ड के इंटरमीडिएट व हाईस्‍कूल रिजल्‍ट में प्रदेश के कुल 165 स्‍कूल का परिणाम शून्‍य रहा। प्रदेश के ये स्‍कूल कोशांबी, प्रयागराज, मिर्ज़ापुर, इटावा, बलिया, गाजीपुर, चित्रकूट और आजमगढ़ के हैं।
कोई सामान्‍य बुद्धि वाला व्‍यक्‍ति भी बता देगा कि रिजल्‍ट उन स्‍कूल का ही खराब रहा, जहां इस बार नकल के ठेके नहीं उठाये जा सके। इन ठेकों में शिक्षक व प्रधानाचार्यों से लेकर कॉपी चेकर्स और शिक्षा बोर्ड के आला अधिकारी भी हिस्‍सेदार हुआ करते थे। इस पूरी ठेकेदारी प्रथा के इतर शिक्षा किस हाल में हैं, ये तब पता लगा जब 165 स्‍कूल ने इस तरह ”नाम कमाया”।
सरकारी खानापूरी की तर्ज़ पर अब माध्‍यमिक शिक्षा परिषद इसका निरीक्षण-परीक्षण करेगा कि ऐसा क्‍यों हुआ, इन स्‍कूलों के प्रधानाचार्यों से जवाब तलब किया गया है, इसके बाद जांच कमेटी के विशेषज्ञ कारण तलाशेंगे, फिर निवारण सुझायेंगे, दोषी व्‍यक्‍ति व प्रतिकूल स्‍थितियों को लेकर ”फाइल ”बनेगी, कुछ नपेंगे कुछ को ”विशेष चेतावनी” देकर ”बख्‍श” दिया जाएगा।
इस पूरी कवायद में शिक्षा और बच्‍चों के भविष्‍य पर कोई कुछ नहीं बोलेगा। उक्‍त स्‍कूलों के शिक्षक तो खैर सोचेंगे भी क्‍यों। उन्‍हें बमुश्‍किल सड़कों पर आए दिन विरोध प्रदर्शन करके ये ”रोजगार” मिला है। लाठियां खाकर शिक्षक की ”नौकरी” हासिल हुई है। उन्‍हें शिक्षा के स्‍तर या बच्‍चों के भविष्‍य से कोई लेना देना नहीं होता जबकि पूरे साल इन स्‍कूलों में क्‍या पढ़ाया गया और किस तरह ये शर्मनाक स्‍थिति आई, इस पर सबसे पहले शिक्षकों को ही ध्‍यान देना चाहिए।
आए दिन ये दिवस…वो दिवस.. मनाने वाले हम लोग इंस्‍टेंट की अभिलाषा में गुरू से मास्‍टर और मास्‍टर से नकल माफिया तक आ चुके हैं। ऐसे में क्‍या हम अपने बच्‍चों से ये आशा कर सकते हैं कि वो सभ्‍य सुसंस्‍कृत बनेंगे, उन शिक्षकों को ”गुरू” मानते हुए परीक्षा में अव्‍वल आऐंगे जो स्‍वयं अच्‍छे शिक्षक भी नहीं बन पाए। जो ये शर्म महसूस नहीं कर पा रहे कि उनके स्‍कूल ”शून्‍य” कैसे रह गए। ये तो उन शिक्षकों व प्रधानाचार्यों को स्‍वयं सोचना चाहिए क्‍योंकि हर बच्‍चे का प्रदर्शन स्‍वयं उनकी काबिलियत का प्रदर्शन होता है। ऐसे में 165 स्‍कूल बानगी हैं कि शिक्षण कार्य में लगे कर्मचारी (सिर्फ गुरु ही नहीं) किस तरह हमारी प्रतिभाओं का नाश करने पर आमादा है।
शिक्षा कभी ज्ञान का पर्याय हुआ करती थी और गुरू को गोविंद (ईश्‍वर) से भी श्रेष्‍ठ पद प्राप्‍त था, लेकिन आज की शिक्षा व्‍यवसाय बन चुकी है और गुरू उस व्‍यवसाय का एक मोहरा। निजी स्‍कूलों में जहां इस व्‍यवसाय का रूप खालिस धंधेबाजी बन चुका है वहीं सरकारी स्‍कूलों में इसी के लिए नकल के ठेके लिए और दिए जाते हैं।
इन हालातों में सर्वशिक्षा का उद्देश्‍य पूरा भी कैसे किया जा सकता है। सरकारी मशीनरी और उसके टूल्स इतने निरर्थक हो चुके हैं कि उनकी उपयोगिता पर ही प्रश्‍नचिन्‍ह लग गया है।
शिक्षा को सबसे निचले पायदान तक पहुंचाना है तो इस क्षेत्र में लगी मशीनरी और उसके टूल्‍स का मुकम्‍मल इंतजाम करना होगा अन्‍यथा आज जो कहानी 165 schools की सामने आई है, वो कल 1650 की भी हो सकती है।
-अलकनंदा सिंंह

30 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-05-2019) को "आसन है अनमोल" (चर्चा अंक- 3335) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/05/2019 की बुलेटिन, " भई, ईमेल चेक लियो - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. सही बात उठाई है, आपने। राजकीय सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति यही रही है। मुझे याद है सरकारी विद्यालयों में पढने वाले मेरे मित्र कहा करते थे कि वो कभी कभार पृष्ठ बढाने के लिए गाने भी लिख दिया करते थे। उस वक्त उत्तराखंड यू पी बोर्ड के आधीन आता था। जितना लम्बा उत्तर उतने ही अच्छे मार्क्स। मुझे लगा था उसके बाद कुछ सुधार हुआ होगा लेकिन मामला ज्यों का त्यों नज़र आ रहा है।
    इस बुरे परिणाम के बाद भी कुछ बदले यह कहना मुश्किल है। क्योंकि तहकीकात करने वाले लोग भी खाने वाले हैं और जिनकी तहकीकात हो रही है वो भी खायेंगे ही। चोर चोर मौसरे भाई हैं और आपसदारी में मामला सुलट जाता है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बिल्‍कुल सही कहा विकास जी, परंतु अब समय आ गया है कि हम ''सरकारी'' बात से आगे जाकर कुछ बदलाव की ओर सोचें...यूं भी सरकारी नौकरी पाने की मानसिकता ने शिक्षा को बाजार बनने की ओर पहले ही धकेल दिया है...

      हटाएं
  4. Looking for AzQuotation, FreePicGalaxy, FreePngTransparent, Good Morning Images, Good Morning Wisher Images ETC.
    AzQuotation
    FreePicGalaxy
    Good Morning Images
    Good Morning Wisher
    jfif to jpg

    जवाब देंहटाएं