गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

क्‍या याद है ईरान की रेहाना जब्बारी... जो #MeToo कहते-कहते अपनी लड़ाई हार गई, Death Anniversary आज

आज Death Anniversary पर याद करें रेहाना जब्बारी को जिसे 25 अक्टूबर, 2014 को तेहरान की एक जेल में फांसी दे दी गई
रेहाना जब्बारी…जी हां रेहाना जब्बारी ही नाम था उस लड़की का जो अपने बलात्‍कारी से खुद को बचाने में नाकाम भी हुई और अपने बलात्‍कारी की मौत के आरोप में गिरफ्तार भी कर ली गई और मौत के घाट उतार दिया गया।

2007 से 2014 तक चले इस मुक़दमे के बाद शनिवार, 25 अक्टूबर, 2014 को रेहाना को तेहरान की एक जेल में फांसी दे दी गई। माना जा रहा है कि रेहाना ने मौत के कुछ महीने पहले अपनी माँ के नाम एक ऑडियो संदेश भेजा था जिसे उन्होंने अपनी वसीयत भी बताया था। नेशनल काउंसिल ऑफ़ रेज़िसटेंस ऑफ ईरान ने उस संदेश का अंग्रेज़ी अनुवाद उपलब्ध कराया था, यह हिन्दी अनुवाद उसी के आधार पर किया गया है।
रेहाना जब्बारी के बारे में दुनिया को पहली बार 2007 में पता चला। तब उनकी उम्र महज 19 साल थी। उन्हें हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। रेहाना का कहना था कि ईरान के ख़ुफ़िया मामलों के मंत्रालय के पूर्व कर्मचारी 47 वर्षीय मुर्तज़ा अब्दुलाली सरबंदी ने उनका बलात्कार करने की कोशिश की थी और वो अपना बचाव भर कर रही थीं।
रेहाना को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपील की गई, प्रयास किए गए। सोशल मीडिया पर उन्हें मौत की सज़ा से बचाने के लिए अभियान चलाया गया लेकिन सब बेअसर रहा। ईरान सरकार पर इन सबका कोई असर नहीं पड़ा।
ईरान के क़िसास क़ानून के अनुसार जिस परिवार के व्यक्ति की हत्या हुई है वो चाहे तो हत्या के अभियुक्त की फांसी माफ़ कर सकता है। ऐसे में संबंधित व्यक्ति को कारावास की सज़ा होती है या अन्य प्रकार का हर्जाना देना होता है। मृतक के परिवार का मानना है कि रेहाना ने ये हत्या साजिशन की थी। ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयतुल्लाह ख़ुमैनी भी रेहाना का मृत्युदंड माफ कर सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
यहां पढ़ें – रेहाना जब्बारी का अनुवादित संदेश उनकी माँ के नाम
प्यारी शोले
मुझे आज पता चला कि अब मेरी क़िसास की बारी आ गई है. मुझे इस बात कि दुख है कि आपने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि मैं अपनी ज़िंदगी की किताब के आख़िरी पन्ने तक पहुँच चुकी हूँ. आपको नहीं लगता कि मुझे ये जानना चाहिए था? आप जानती हैं कि मैं इस बात से कितनी शर्मिन्दा हूँ कि आप दुखी हैं. आपने मुझे आपका और अब्बा का हाथ चूमने का मौक़ा क्यों नहीं दिया?
दुनिया ने मुझे 19 बरस जीने का मौक़ा दिया. उस अभागी रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी. उसके बाद मेरे जिस्म को शहर के किसी कोने में फेंक दिया जाता, और कुछ दिनों बाद पुलिस आपको मेरी लाश की पहचान करने के लिए मुर्दाघर ले जाती और वहाँ आपको पता चलता है कि मेरे साथ बलात्कार भी हुआ था. मेरा हत्यारा कभी पकड़ा नहीं जाता क्योंकि हमारे पास उसके जितनी दौलत और ताक़त नहीं है. उसके बाद आप अपनी बाक़ी ज़िंदगी ग़म और शर्मिंदगी में गुज़ारतीं और कुछ सालों बाद इस पीड़ा से घुट-घुट कर मर गई होतीं और ये भी एक हत्या ही होती.
लेकिन उस मनहूस हादसे के बाद कहानी बदल गयी. मेरे शरीर को शहर के किसी कोने में नहीं बल्कि कब्र जैसी एविन जेल, उसके सॉलिटरी वार्ड और अब शहर-ए-रे की जेल जैसी कब्र में फेंका जाएगा. लेकिन आप इस नियति को स्वीकार कर लें और कोई शिकायत न करें. आप मुझसे बेहतर जानती हैं कि मौत ज़िंदगी का अंत नहीं होती.
आपने मुझे सिखाया है कि हर इंसान इस दुनिया में तजुर्बा हासिल करने और सबक सीखने आता है. हर जन्म के साथ हमारे कंधे पर एक ज़िम्मेदारी आयद होती है. मैंने जाना है कि कई बार हमें लड़ना होता है. मुझे अच्छी तरह याद है कि आपने मुझे बताया था कि बघ्घी वाले ने उस आदमी का विरोध किया था जो मुझपर कोड़े बरसा रहा था लेकिन कोड़ेवाले ने उसके सिर और चेहरे पर ऐसी चोट की जिसकी वजह से अंततः उसकी मौत हो गयी. आपने मुझसे कहा था कि इंसान को अपने उसूलों को जान देकर भी बचाना चाहिेए.
जब हम स्कूल जाते थे तो आप हमें सिखाती थीं कि झगड़े और शिकायत के वक़्त भी हमें एक भद्र महिला की तरह पेश आना चाहिए. क्या आपको याद है कि आपने हमारे बरताव को कितना प्रभावित किया है? आपके अनुभव ग़लत थे. जब ये हादसा हुआ तो मेरी सीखी हुई बातें काम नहीं आयीं. अदालत में हा़ज़िर होते वक़्त ऐसा लगता है जैसे मैं कोई क्रूर हत्यारा और बेरहम अपराधी हूँ. मैं ज़रा भी आँसू नहीं बहाती. मैं गिड़गिड़ाती भी नहीं. मैं रोई-धोई नहीं क्योंकि मुझे क़ानून पर भरोसा था.
लेकिन मुझपर ये आरोप लगाया गया कि मैं जुर्म होते वक़्त तटस्थ बनी रही. आप जानती हैं कि मैंने कभी एक मच्छर तक नहीं मारा और मैं तिलचट्टों को भी उनके सिर की मूँछों से पकड़कर बाहर फेंकती थी. अब मैं एक साजिशन हत्या करने वाली कही जाती हूँ. जानवरों के संग मेरे बरताव की व्याख्या मेरे लड़का बनने की ख़्वाहिश के तौर पर की गयी. जज ने ये देखना भी गंवारा नहीं किया कि घटना के वक़्त मेरे नाख़ून लंबे थे और उनपर नेलपालिश लगी हुई थी.
जजों से न्याय की उम्मीद करने वाले लोग कितने आशावदी होते हैं! किसी जज ने कभी इस बात पर सवाल नहीं उठाया कि मेरे हाथ खेल से जुड़ी महिलाओं की तरह सख्त नहीं हैं, ख़ासतौर पर मुक्कबाज़ लड़कियों के हाथों की तरह. और ये देश जिसके लिए आपने मेरे दिल में मुहब्बत भरी थी, वो मुझे कभी नहीं चाहता था. जब अदालत में मेरे ऊपर सवाल-जवाब का वज्र टूट रहा था और मैं रो रही थी और अपनी ज़िंदगी के सबसे गंदे अल्फ़ाज़ सुन रही थी तब मेरी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया. जब मैंने अपनी ख़ूबसूरती की आख़िरी पहचान अपने बालों से छुटकारा पा लिया तो मुझे उसके बदले 11 दिन तक तन्हा-कालकोठरी में रहने का इनाम मिला.
प्यारी शोले, आप जो सुन रही हैं उसे सुनकर रोइएगा नहीं. पुलिस थाने में पहले ही दिन एक बूढ़े अविवाहित पुलिस एजेंट ने मेरे नाखूनों के लिए मुझे चोट पहुँचायी. मैं समझ गयी कि इस दौर में सुंदरता नहीं चाहिए. सूरत की ख़ूबसूरती, ख़्यालों और ख़्वाबों की ख़ूबसूरती, ख़ूबसूरत लिखावट, आँखों और नज़रिए की ख़ूबसूरती और यहाँ तक कि किसी प्यारी आवाज़ की ख़ूबसूरती भी किसी को नहीं चाहिए.
मेरी प्यारी माँ, मेरे विचार बदल चुके हैं और इसके लिए आप ज़िम्मेदार नहीं है. मेरी बात कभी ख़त्म नहीं होने वाली और मैंने इसे किसी को पूरी तरह दे दिया है ताकि जब आपकी मौजूदगी और जानकारी के बिना मुझे मृत्युदंड दे दिया जाए तो उसके बाद इसे आपको दे दिया जाए. मैं आपके पास अपने हाथों से लिखी इबारत धरोहर के रूप में छोड़ी है.
हालाँकि, मेरी मौत से पहले मैं आपसे कुछ माँगना चाहती हूँ, जिसे आपको अपनी पूरी ताक़त और कोशिश से मुझे देना है. दरअसल बस यही एक चीज़ है जो अब मैं इस दुनिया से, इस देश से और आपसे माँगना चाहती हूँ. मुझे पता है आपको इसके लिए वक़्त की ज़रूरत होगी. इसलिए मैं आपको अपनी वसीयत का हिस्सा जल्द बताऊँगी. आप रोएँ नहीं और इसे सुनें. मैं चाहती हूँ कि आप अदालत जाएँ और उनसे मेरी दरख़्वास्त कहें. मैं जेल के अंदर से ऐसा ख़त नहीं लिख सकती जिसे जेल प्रमुख की इजाज़त मिल जाए, इसलिए एक बार फिर आपको मेरी वजह से दुख सहना पड़ेगा. मैंने आपको कई बार कहा है कि मुझे मौत की सज़ा से बचाने के लिए आप किसी से भीख मत माँगिएगा लेकिन यह एक ऐसी ख़्वाहिश है जिसके लिए अगर आपको भीख माँगनी पड़े तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा.
मेरी अच्छी माँ, प्यारी शोले, मेरी ज़िंदगी से भी प्यारी, मैं ज़मीन के अंदर सड़ना नहीं चाहती. मैं नहीं चाहती कि मेरी आँखे और मेरा नौजवान दिल मिट्टी में मिल जाए. इसलिए मैं भीख माँगती हूँ कि मुझे फांसी पर लटकाए जाने के तुरंत बाद मेरे दिल, किडनी, आँखें, हड्डियां और बाक़ी जिस भी अंग का प्रतिरोपण हो सके उन्हें मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और किसी ज़रूरतमंद इंसान को तोहफे के तौर पर दे दिया जाए. मैं नहीं चाहती कि जिसे मेरे अंग मिलें उसे मेरा नाम पता चले, वो मेरे लिए फूल ख़रीदे या मेरे लिए दुआ करे. मैं सच्चे दिल से आपसे कहना चाहती हूँ कि मैं अपने लिए कब्र भी नहीं चाहतीं, जहाँ आप आएँ, मातम मनाएँ और ग़म सहें. मैं नहीं चाहती कि आप मेरे लिए काला लिबास पहनें. मेरे मुश्किल दिनों को भूल जाने की आप पूरी कोशिश करें. मुझे हवाओं में मिल जाने दें.
दुनिया हमें प्यार नहीं करती. इसे मेरी ज़रूरत नहीं थी. और अब मैं इसे उसी के लिए छोड़ कर मौत को गले लगा रही हूँ. क्योंकि ख़ुदा की अदालत में मैं इंस्पेक्टरों पर मुक़दमा चलावाऊँगी, मैं इंस्पेक्टर शामलू पर मुक़दमा चलवाऊँगी, मैं जजों पर मुक़दमा चलवाऊँगी और देश के सुप्रीम कोर्ट की अदालत के जजों पर भी मुक़दमा चलवाऊँगी जिन्होंने ज़िंदा रहते हुए मुझे मारा और मेरा उत्पीड़न करने से परहेज नहीं किया. दुनिया बनाने वाली की अदालत में मैं डॉक्टर फरवंदी पर मुक़दमा चलवाऊँगी, मैं क़ासिम शाबानी पर मुक़दमा चलवाऊँगी और उनसब पर जिन्होंने अनजाने में या जानबूझकर मेरे संग ग़लत किया और मेरे हक़ को कुचला और इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कई बार जो चीज़ सच नज़र आती है वो सच होती नहीं.
प्यारी नर्म दिल शोले, दूसरी दुनिया में मैं और आप मुक़दमा चलाएंगे और दूसरे लोग अभियुक्त होंगे. देखिए, ख़ुदा क्या चाहते हैं. ..मैं तब तक आपको गले लगाए रखना चाहती हूँ जब तक मेरी जान न निकल जाए. मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ.
रेहाना
01, अप्रैल, 2014
प्रस्‍तुति: अलकनंदा सिंह , Legend News

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

राम और रावण की आपबीती, रामलीला के बाद

अभी भी उनमें रोल वाला कुछ राम बाकी था तो कुछ रावण भी… परंतु डायलॉग थोड़े बदले बदले से थे… दोनों अभी तक कॉस्‍ट्यूम में थे… मंच की खुमारी और वास्‍तविकता के दरम्‍यां दोनों अब भी झूल रहे थे
एक महीने से रामलीला की जो तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं, उसमें निराहार रहकर राम और रावण की भूमिका निबाहने वाले पात्रों ने पूरे नाट्य-रंग में अपनी धार्मिक कला उड़ेल कर रख दी थी, परंतु हर साल की तरह आज भी वे उसी चौराहे पर हैं…खाली हाथ, भूखे पेट और आयोजकों से पारिश्रमिक पाने की आस में, दो दिन बाद आने का आश्‍वासन लेकर अपने अपने घर जाने को विवश।
‘लीला’ का खोल अभी पूरी तरह से उतरा नहीं था। मैदान वाला रावण तो हजारों रुपये लगाकर फूंक दिया जाएगा मगर मंच से उतरे इन राम और रावण का क्‍या…बिना पारिश्रमिक के न राम के घर चूल्‍हा जलेगा न रावण के बच्‍चे त्‍यौहार मना पाऐंगे। इन चिंताओं में तैरते उतराते रामलीला मंच के बगल वाली गली में चाय की दुकान पर दोनों अपनी थकान मिटाने पहुंचे।
मंच का परदा गिरने के बाद अब श्रद्धा और घृणा को एकसाथ निबाहकर दोनों कैरेक्‍टर से बाहर रीयल लाइफ से दो-चार हो रहे थे। अभी भी उनमें रोल वाला कुछ राम बाकी था तो कुछ रावण भी… परंतु डायलॉग थोड़े बदले बदले से थे… दोनों अभी तक कॉस्‍ट्यूम में थे… मंच की खुमारी और वास्‍तविकता के दरम्‍यां दोनों अब भी झूल रहे थे, 
आप भी सुनिए राम और रावण की आपबीती के ये अंश…
रावण का वध करने वाले राम बोले – भाई लीला तो ख़त्म। अब क्या?
रावण बोले- यही सोच रहा हूँ, कि अब क्‍या ?
राम- सच कहूँ, अब थक गया ये लीला खेलते खेलते।
रावण- ये विष्णु जी और शिवजी जो ना करा दें, ये किया कराया तो सब विष्णु जी और शिवजी का है…एक सारस्‍वत ब्राह्मण को गत्‍ते-फूंस-पटाखे में दबवाकर बड़े खुश हो रहे होंगे दोनों।
राम- क्‍या बताऊं भाई, स्क्रिप्ट ही हमें ऐसी दे दी वरना तू ही बता…बता क्या मैं तुझे मारता?
रावण- बात तो स्‍क्रिप्‍ट की ही है भाई, वरना देवी सीता को मैं क्या अपने यहाँ लाता। शिव शिव शिव…(हाथ से क्षमारूप में दोनों कानों को छूता हुआ)
राम- तू भी तो जानता है कि मैं ही कहां सीता जी से इतना दूर रहने वाला था। और वो लव कुश…आज भी टीस होती है।
रावण- पता है भाई, मंदोदरी उस दिन कितना लड़ी थी मुझसे। और देख ना मेरा भी तो अपना बेटा, अपना भाई…।
राम- भाई दिक्कत तो ये है कि हमारे जरिये प्रभु जिन लोगों को शिक्षा देना चाह रहे थे, उन्होंने क्या सीखा?
रावण- आज तो दोनों ही गाली खा रहे हैं। देख ना, तू तो हीरो था, फिर भी तुझे कोसने से बाज नहीं आते लोग ?
राम- मुझे लगता है भाई, पर तेरे अच्छे दिन जरूर आ रहे हैं। पिछले कुछ सालों से लोग तेरे ही गुण ज्यादा गाते हैं। एकाध संस्‍थाएं भी बन गई हैं, चंदा उगाही करने को। वैसे कहते हैं कि रावण बुराई की खान था और कहीं किसी ने तो नेतागिरी के लिए अपना नाम ही रावण रख लिया।
रावण- ना रे, ऐसा कुछ नहीं है। एक आध गलती से सारे गुण कोई छुप जावें का ! बेवकूफ हैं जो ऐसा करते हैं। हर बात बेबात में कोई वाद ढूंढ़ लेते हैं और फिर विवाद करते हैं। बखान तो यूं देवें, जैसे खुद घणे संत ठहरे।
राम- ये तेरी भाषा को क्या हो गया भाई? बनियों की पैसे वाली रामलीलाएं देखकर तू भी वैसे ही बोलन लग गया।
रावण- अच्‍छा, जि बात है, अपनी भाषा भी तो देख ले भाई। चल छोड़ इसे, क्या तू तू और क्‍या मैं मैं, इसमें कुछ ना रक्‍खा।
राम- सच कहूँ मैं उसी दिन मर गया था, जब तू मरा था। रावण नहीं तो राम का क्या काम! पर भाई, ये बता जब मैंने बुराई का अंत कर दिया था तो फिर ये इतनी बुराई कहाँ से आ गयी? और तो और हर साल ही आ जाती है।
रावण- अब कई रावण हैं भाई। लोग होते रावण हैं, बनकर राम दिखाते हैं। कम से कम हममें ये होड़ तो ना थी। भाई गत्ते के पुतले फूंकना आसान है। अपनी भीतर की लंका कोई नहीं जलाना चाहता।
राम- पर विष्णु जी और शिव जी को क्या हो गया? वो क्यों नहीं कुछ करते।
रावण- बेचारे खुद भी हैरान परेशान हैं अब नीचे वालों की लीला देखकर। कोई नई लीला रचेंगे अब। पता है उस दिन दुखी होकर कह रहे थे, क्या नहीं था इस मनुष्य के पास। मुक्ति तक पहुंचने की ताकत केवल इसी के पास थी। सब सुख थे। फिर भी बेड़ा गर्क किया हुआ है अपना। और हमें भी दुखी करता है।
राम- बड़ा गुस्सा आता है भाई, हमारे नाम को बिगाड़ दिया इन धरती वालों ने।
रावण- मुझे तो केवल राम मार सकता था। लेकिन अब देख ना, मंच पर कैसे कैसे लोग तीर चला रहे मुझ पर।
राम- हाँ भाई, हम तो ऊपर और नीचे वालों की अलग अलग लीला में फंसकर रह गए हैं। जब जी चाहे अपने मतलब साध लेते हैं हमसे लोग।
रावण- नई रामायण रचनी पड़ेगी भाई। आज तुझे मेरे जैसा शरीफ रावण ना मिलेगा।
राम- सच्ची बात, बहुत ज्ञानी है तू भाई। मन से तो तू राम है मेरे भाई।
रावण- चल हम तो लीला कर रहे थे, पर इन नीचे वाले रावणों की कौन सी गति होगी?
राम- कुछ ना पता भाई। देखे जा, अब क्‍या क्या होगा।
रावण- भाई चल, अब जल्दी चलते हैं, ऊपर पूरा कुनबा इंतज़ार कर रहा होगा हमारा।
राम- हाँ भाई चल, ये कपड़े और ताम झाम सहन नहीं होते अब।
रावण- (दस सिर वाला मुकुट उतारकर रखते हुए) पता है उस दिन एक बच्चे ने देख लिया था, मुझे बिना मुकुट के, खींचकर पापा को लाया देखो दो दो राम, दो दो राम।
राम- अच्छा किया तूने तुरंत ये बुराई का मुकुट पहन लिया वरना मंच पर भसड़ फैल जाती।
रावण- चल भाई, चल। इन कपड़ों की तह करके वापस भी रखने हैं। अगली बार भी तो इन्हें ही पहनना है। और सुन इनमें फिनायल की गोली जरूर डाल देना वरना बनिया हमसे इसके पैसे भी वसूल लेगा…अभी तक गनीमत है कि चाय के पैसे नहीं वसूलता…।
एक लंबी अंगड़ाई लेते हुए दोनों उठे, चलने से पहले एक दूसरे के गले में हाथ डाले और शहरयार की ग़ज़ल का मुखड़ा बड़ी तरन्‍नुम में उठाया…और चल पड़े…
ये क्या जगह है दोस्तो, ये कौन सा दयार है
हद-ए-निगाह तक जहां गुबार ही गुबार है
ये क्या जगह है दोस्तो…
- अलकनंदा सिंह