शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

कुछ नई पहल.. अबकी बार...दीपावली के शुभ अवसर पर

(1)
सोच बदलने दो...

जब भी कभी हम लकीर से हटकर अपना अलग नज़रिया पेश करते हैं, तब बदलाव हमेशा याद रखे जाते हैं, वे नज़ीर बन जाते हैं। चाहे दीपावली पर अपने गली-कूचे में पटाखे ना छुड़ाने का संकल्‍प लिया जाए या सिर पर डलिया रखकर 10-11 साल की बच्‍ची से सारे दीए इसलिए खरीद लिए जाऐं कि वह बच्‍ची अतिशीघ्र ''अपनी'' दीवाली अपनी ही तरह से मना सके। ऐसा ही इस दीवाली पर एक बदलाव बीसीसीआई ने किया है- मैच का एक दिन खिलाड़ियों की मां के नाम करके।
जी हां, आज विशाखापत्‍तनम में भारत-न्‍यूजीलैंड के बीच 5वां वनडे मैच खेला जा रहा है। मैच की विजेता कौन सी टीम होगी, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता मगर बीसीसीआई ने आज उन मांओं का दिल तो जीत ही लिया जिन्‍होंने अपने क्रिकेट स्‍टार बेटों को ''स्‍टार'' बनाने के लिए नींव के पत्‍थर की तरह चुपचाप अपनी यात्रा पूरी की। मैच के प्रसारण अधिकार लेने वाले इलेक्‍ट्रानिक चैनल स्‍टार प्‍लस और आयोजक बीसीसीआई की एक अनूठी संयुक्‍त पहल है कि सभी भारतीय खिलाड़ी अपनी जर्सी पर अपनी मां का नाम पहन कर खेल रहे हैं।
इसका आइडिया प्रधानमंत्री के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से प्रेरित है, तभी तो जब अजिंक्‍य रहाणे और महेंद्र सिंह धोनी से पूछा जाता है कि '' मां का नाम पहनने की कुछ खास वजह'' तो दोनों कहते हैं ''आज तक हम पिता का नाम (सरनेम) पहनते रहे तब तो आपने नहीं पूछा ''खास वजह'' के बारे में।
बहरहाल पिता के बाद मां का नाम पहनने की ये पहल और आज का दिन, दोनों ही क्रिकेट के रिकॉर्ड में अपनी अद्भुत उपस्‍थिति के साथ दर्ज़ हो गया। तो क्रिकेट में आई इस सोच ने मनाई ये दीवाली नई पहल के साथ...।

(2)
''अप्‍प दीपो भव''
प्राकृत भाषा में बोले गए ये तीन शब्‍द, भगवान बुद्ध ने अपने शिष्‍य आनंद को कहे थे। बुद्ध के अंतिम समय में आनंद को दुखी देखकर कहा बुद्ध ने समझाकर कहा...अप्‍प दीपो भव। यही तीन उनके आखिरी शब्‍द थे। अर्थात् अपना प्रकाश स्‍वयं बनो, अपने दीपक के प्रकाश स्‍वयं बनो, अपना दीप जलाकर स्‍वयं सत्‍य की खोज करो, प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति का अपना सत्‍य होता है, यही उसका स्‍वयं का सत्‍य होता है। दूसरे के दिखाए सत्‍य और प्रकाश के पीछे उसकी सोच होगी, वह तुम्‍हारी नहीं होगी और जब तुम्‍हारी नहीं होगी तो निश्‍चय ही वह तुम पर थोपी गई होगी, और थोपी गई सोच कभी ''तुम्‍हारा वाला'' सत्‍य नहीं हो सकती और इसीलिए वह तुमसे, तुम्‍हारे सुख से कोसों दूर होगी।
शिष्‍य आनंद से भगवान बुद्ध ने तभी यह भी कहा- दूसरों पर आश्रित रहना व्‍यर्थ है, दीपक की तरह स्‍वयं जलकर ही प्राप्‍त किए गए प्रकाश की अहमियत हम जान सकते हैं।
दीपक की तरह स्‍वयं जलो, जलकर जानो कि प्रकाश कैसे मिला, कितना मिला और इसे आगे कैसे प्रयुक्‍त करना है। दीपक के द्वारा बुद्ध ने आत्‍मप्रकाश की बात की है।
संघर्ष में तपने के बाद ही व्‍यक्‍ति स्‍वयं से परिचित हो पाता है, अपनी शक्‍तियों को पहचान पाता है।
इसप्रकार दीपावली हमें हमारी आत्‍मा की शक्‍ति की पहचान कराकर, स्‍वयं के अनुभव से ज्ञान प्राप्‍त करने का त्‍यौहार बन जाता है, ठीक उसीतरह जैसे कि भगवान श्रीराम ने राजसुख छोड़कर संघर्ष के माध्‍यम से जीवन और जगत का स्‍वयं ही ज्ञान प्राप्‍त किया था।

ये आत्‍मज्ञान का पर्व है...तो सोच बदलो , देश व समाज बदलेगा ही बदलेगा... अप्‍प दीपो भव। ...शुभ दीपावली


- अलकनंदा सिंह

बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

समान नागरिक संहिता पर Law Commission का ये दांव अद्भुत है

समान नागरिक संहिता पर Law Commission का ये दांव अद्भुत है
राजनैतिक दलों को उन्‍हीं के लबादों में उन्‍हीं की असलियत दिखाने का इससे शानदार मौका क्‍या होगा कि समान नागरिक संहिता पर उनके विचार सार्वजनिक किए जायें, बजाय इसके कि वे केंद्र सरकार पर सांप्रदायिक फायदे का आरोप लगा लगाकर अपने वोटबैंक को कैश करते रहें।
दरअसल आज समान नागरिक संहिता के विवादास्पद मुद्दे पर विचार विमर्श के दायरे का विस्तार करते हुए Law Commission ने सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से अपनी राय साझा करने का आह्वान किया है और उसने इस विषय पर संवाद के लिए उनके प्रतिनिधियों को निमंत्रित करने की योजना बनायी है।
इसे केंद्र सरकार की राजनैतिक घेरेबंदी के रूप में देखा जाना चाहिए।

आयोग ने इस विषय पर राजनीतिक दलों को प्रश्नावली भेजी है और उनसे 21 नवंबर तक अपनी राय भेजने को कहा है. सात अक्तूबर को भेजी गयी विधि आयोग की इस प्रश्नावली में लोगों से, क्या तीन बार तलाक कहने की प्रथा खत्म की जानी चाहिए, क्या समान नागरिक संहिता ऐच्छिक होनी चाहिए जैसे संवदेनशील मुद्दे पर शायद पहली बार उनकी राय मांगी गयी है.

गौरतलब है कि चुनाव आयोग में सात दल राष्ट्रीय स्तर पर और 49 दल क्षेत्रीय स्तर पर पंजीकृत है. राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, राकांपा, भाकपा, माकपा और तृणमूल कांग्रेस हैं.
विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) डॉ बी एस चौहान ने सभी राजनीतिक दलों को लिखे पत्र में कहा है, ‘आयोग कई दौर की चर्चा के बाद यह समझने के लिए एक प्रश्नावली तैयार की है कि आम लोग समान नागरिक संहिता के बारे में क्या महसूस करते हैं?’
उन्होंने लिखा, ‘चूंकि राजनीतिक दल किसी भी सफल लोकतंत्र के मेरुदंड हैं अतएव इस प्रश्नावली के संदर्भ में सिर्फ उनकी राय ही नहीं बल्कि इससे संबंधित उनके विचार भी बहुत महत्वपूर्ण है. ”
इस मुद्दे पर अधिकाधिक विचार-विमर्श के प्रयास के तहत चौहान ने राजनीतिक दलों से इस विषय पर अपने विचार बताने को कहा है.
आयोग ने कहा है कि वह इस विवादास्पद विषय पर संवाद के लिए बाद में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित करेगा.
उसके अध्यक्ष ने कहा, ‘आपका सहयोग आयोग को समान नागरिक संहिता पर त्रुटिहीन रिपोर्ट लाने में सहयोग पहुंचाएगा.’ कुछ दिन पहले चौहान ने मुख्यमंत्रियों से अल्पसंख्यक संगठनों, राजनीतिक दलों एवं सरकारी विभागों को उसकी प्रश्नावली पर जवाब देने के वास्ते उत्साहित करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की अपील की थी.
सभी मुख्यमंत्रियों को भेजे पत्र में चौहान ने उनसे अपने राज्यों में संबंधित पक्षों जैसे अल्पसंख्यक संगठनों, राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटियों और यहां तक कि सरकारी संगठनों एवं एजेंसियों को आयोग के साथ अपना विचार साझा करने एवं संवाद करने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया था.
परामर्श पत्र के साथ जारी अपील में आयोग ने कहा था कि इस प्रयास का उद्देश्य संभावित समूहों के विरुद्ध भेदभाव का समाधान करना और विभिन्न सांस्कृतिक प्रथाओं में संगति बनाना है. उसने लोगों को आश्वासन दिया है कि किसी भी वर्ग, समूह या समुदाय की परपंराएं परिवार विधि सुधार के अंदाज पर वर्चस्वशील नहीं होंगी.

- अलकनंदा  सिंह

शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

8000 से ज्यादा लोगों को निगल चुके Bermuda Triangle की मिस्‍ट्री सुलझाने का दावा

साइंस चैनल ‘What on Earth?’ पर प्रसारित की गई एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अजीब तरह के  दैत्य बादलों की मौजूदगी के चलते ही हवाई जहाज और पानी के जहाजों के गायब होने की घटनाएं Bermuda Triangle के आस पास देखने को मिलती है।
बीते 100 साल में ही इस जगह करीब 20 ज्यादा छोटे-बड़े पानी के जहाज गायब हुए हैं जिन पर सवार 1000 से ज्यादा लोग भी कभी वापस नहीं आए। आंकड़ों के मुताबिक यहां अब तक 8000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

कैसे हैं ये दैत्य बादल ( Hexagonal clouds)
वैज्ञानिकों ने इन बादलों को Hexagonal clouds नाम दिया है। ये हवा में एक बम विस्फोट की मौजूदगी के जितनी शक्ति रखते हैं और इनके साथ 170 मील प्रति घंटा की रफ़्तार वाली हवाएं होती हैं। ये बादल और हवाएं ही मिलकर पानी और हवा में मौजूद जहाजों से टकराते हैं और फिर वो कभी नहीं मिलते। 500,000 स्क्वायर किलोमीटर में फैला ये इलाका पिछले कई सौ सालों से बदनाम रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बेहद तेज रफ़्तार से बहती हवाएं ही ऐसे बादलों को जन्म देती हैं। ये बादल देखने में भी बेहद अजीब रहते हैं और एक बादल का दायरा कम से कम 45 फ़ीट तक होता है। इनके भीतर एक बेहद शक्तिशाली बन से भी ज्यादा ऊर्जा होती है। मीट्रियोलोजिस्ट  Randy Cerveny के मुताबिक ये बादल ही बम विस्फोट जैसी स्थिति पैदा करते हैं जिससे इनके आसा-पास की सभी चीज़ें बर्बाद हो जाती हैं।

Randy Cerveny कहते हैं कि ये हवाएं इन बड़े बड़े बादलों का निर्माण करती हैं और सिर्फ ये एक विस्फोट की तरह समुद्र के पानी से टकराते हैं और सुनामी से भी ऊंची लहरे पैदा करते हैं जो आपस में टकराकर और ज्यादा ऊर्जा पैदा करती हैं। इस दौरान ये अपने आस-पास मौजूद सब कुछ बर्बाद कर देते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये बादल बरमूडा आइलैंड के दक्षिणी छोर पर पैदा होते हैं और फिर करीब 20 से 55 मील का सफ़र तय करते हैं। कोलराडो स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और मीट्रियोलोजिस्ट Dr Steve Miller ने भी इस दावे का समर्थन किया है। उन्होंने भी दावा किया है कि ये बादल अपने आप ही पैदा होते हैं और उन्हें ट्रैक कर पाना भी बेहद मुश्किल है।

क्या है बरमूडा ट्राइएंगल की mystery
दुनिया की कुछ अनसुलझी पहेलियों में से एक है बरमुडा ट्राइएंगल। यहां जाना आत्महत्या की तरह माना जाता है। धरती में मौजूद सबसे खतरनाक स्थानों में से एक बरमूडा ट्राइएंगल को शैतानों का टापू भी कहा जाता है। यहां पर हुई आश्चर्यजनक घटनाएं जैसे समुद्री जहाजों का गायब होना पिछले समय से ही जिज्ञासा का विषय बनी हुर्ह है। पूर्वी-पश्चिम अटलांटिक महासागर में बरमूडा त्रिकोण है। यह भुतहा त्रिकोण बरमूडा, मयामी, फ्लोरिडा और सेन जुआनस से मिलकर बनता है। शायद यह बात काल्पनिक लगे लेकिन सच यही है कि जैसे ही कोई समुद्री जहाज, नाव या फिर हवाई जहाज ही, इस त्रिकोण की सीमा के समीप पहुंचता है वह अपना संतुलन खो बैठता है और अचानक उसका नामोनिशान ही इस दुनिया से मिट जाता है।
इस ट्राइएंगल की सबसे खतरनाक बात यह है कि अब तक यह ट्राइएंगल 8,000 से अधिक लोगों का काल बन चुका है और उनके जिंदा होने की कोई भी जानकारी अब तक नहीं मिल पाई है। बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को जानने वाले बहुत से लोग इस स्थान को भूतहा समझते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समुद्र में शैतानी ताकत हैं जो अपने शिकार को हाथ से नही जाने देती। कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर दूसरे ग्रह से आये एलियन का वास होता है जो इंसानों को यहां आने नही देते और उन्हें गायब कर देते हैं।
वहीं दूसरी ओर तर्कों के आधार पर बरमूडा ट्राइएंगल का हल खोजने वाले लोग इन सब घटनाओं के लिए अलग ही लॉजिक देते हैं। बरमुडा ट्राइएंगल के रहस्य को खोजने में जुटे वैज्ञानिकों का मानना है कि इस स्थान के भीतर मिथेन गैस का अकूत भंडार है जहां विस्फोट होता रहता है। इसकी वजह से पानी का घनत्व कम हो जाता है और समुद्री जहाज पानी के भीतर समा जाते हैं।
ये गैस आसमान में उडऩे वाले जहाज को भी अपनी चपेट में ले लेती है। बहुत से वैज्ञानिक यह बात भी मानते हैं कि बरमुडा ट्राइएंगल के भीतर शायद इलेक्ट्रिक कोहरा छा जाता है, जिसके आरपार दिखाई नहीं देता। परिणामस्वरूप जहाज वहीं फंसकर रह जाते हैं और अपनी दिशा भटक जाते हैं। शीत युद्ध के दौरान इस बात की अफवाह काफी फैली थी कि अमेरिका ने पूरी दुनिया को कब्जे में करने के लिए यहां गुप्त सैन्य अड्डा बना रखा है। हालांकि इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई है।

कैसे आया था Bermuda Triangle सुर्ख़ियों में
16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘See mystery एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स। सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था। इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पांच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का जिक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने का घटनाक्रम काफी गंभीरता से लिया गया था। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहाँ हैं। पानी हरा है और कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा है।
जलसेना के अधिकारियों के हवाले से लिखा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए। यह पहला लेख था, जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परालौकिक शक्ति का हाथ बताया गया था। इसी बात को विंसेंट गाडिस, जान वालेस स्पेंसर, चार्ल्स बर्लिट्ज़, रिचर्ड विनर, और अन्य ने अपने लेखों के माध्यम से आगे बढ़ाया।  इस मामले में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय के शोध लाइब्रेरियन और ‘The Bermuda Triangle mystery :  Solved’ के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफी शोध किया तथा उनका नतीजा बाकी लेखकों के अलग था। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को गलत करार दिया। कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए। इस बात को बाकी लेखकों ने नजरअंदाज कर दिया था।
ऑस्ट्रेलिया में किए गए शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मीथेन हाईड्राइड की बहुलता है। इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं।  इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग (यूएसजीएस) ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था। यह बात और है कि यूएसजीएस की वेबसाइट पर यह रहस्योद्‍घाटन किया गया है कि बीते 15000 सालों में समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले हैं। इसके अलावा अत्यधिक चुंबकीय क्षेत्र होने के कारण जहाजों में लगे उपकरण यहां काम करना बंद कर देते हैं। इससे जहाज रास्ता भटक जाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
- अलकनंद सिंह 

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

तीन तलाक: बात निकल चुकी है दूर तलक जाने के लिए...

आज कल मुस्लिम महिलाएं Center of debate हैं। जब से सात अक्तूबर को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिमों में जारी तीन तलाक, निकाह हलाला तथा बहुविवाह प्रथाओं का विरोध किया और लैंगिक समानता एवं धर्मनिरपेक्षता के आधार पर इन पर दोबारा गौर करने की वकालत की, तभी से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उसके पदाध‍िकारी जफरयाब जिलानी और इस्लाम के तमाम  ठेकेदार कमर कस कर मैदान में आ डटे हैं कि आख‍िर सुप्रीम कोर्ट, विध‍ि आयोग या केंद्र सरकार की हिम्मत कैसे हुई शरियत (7वीं सदी के कानून ) के कानून में दखल देने की।

तीन तलाक के विरोधी बड़ा खम ठोंक रहे हैं कि 90 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं शरिया कानून का समर्थन करती हैं। उनका यही दावा सवाल उठा रहा है कि जब ऐसा है तो तीन तलाक के विरोध में किया गया सर्वे का रिजल्ट 92% क्यों आया। महिलाओं के प्रति होती रही ज्यादती के लिए क्यों पर्सनल बोर्ड ने अभी तक कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाए। क्यों कोर्ट को दखल देने की जरूरत पड़ी और क्यों केंद्र सरकार को बाध्य होना पड़ा वो सच बताने के लिए जिसे अभी तक पर्सनल बोर्ड ने हिजाब में रखा हुआ था।

बहस के बहाने ही सही, ये जरूरी था कि इस्लाम-शरियत तथा कुरान के जो टॉपिक्स टैबू बनाकर रखे गये, वो सबके सामने आएं। इसके लिए पहले शाहबानो प्रकरण से जो बहस तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के दब्बूपन के कारण below the carpet कर दी गई थी, वही आज केंद्र सरकार ने Center of debate बना दी है। इसके लिए सरकार या सुप्रीम कोर्ट को दोषी बताना पर्सनल लॉ बोर्ड की खुद की अहमियत कम कर देगा क्योंकि इस बार भी एक भुक्तभोगी महिला ने ही अपने लिए सुप्रीम कोर्ट में न्याय मांगा है।

ये एक अभ‍ियान है जिसकी शुरूआत तो एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के इन प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी मगर अब मुस्लिम महिला मंच ने इसके आगे की कमान संभाल ली है। बहस की सूत्रधार शायरा बानो उत्तराखंड की हैं, जिन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि उसके साथ क्रूर बर्ताव करने वाले पति ने उसे तीन बार तलाक बोल कर अपनी ज़िन्दगी से अलग कर दिया। शायरा बानो का कहना है कि पर्सनल लॉ के तहत मर्दों को हासिल तलाक-ए-बिदत यानी तीन बार तलाक कहने का हक़ महिलाओं को गैरबराबरी की स्थिति में रखने वाला है।

शायरा ने अपनी याचिका में निकाह हलाला के प्रावधान को भी चुनौती दी है। इस प्रावधान के चलते तलाक के बाद कोई महिला दोबारा अपने पति से शादी नहीं कर सकती। अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने के लिए उसे पहले किसी और मर्द से शादी कर तलाक लेना पड़ता है।

याचिका में मुस्लिम मर्दों को 4 महिलाओं से विवाह की इजाज़त को भी चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि ये सभी प्रावधान संविधान से हर नागरिक को मिले बराबरी और सम्मान के साथ जीने के अधिकार के खिलाफ हैं। ऐसे में मुस्लिम महिलाओं को बराबरी और सम्मान दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट के सेक्शन 2 को असंवैधानिक करार देना चाहिए। इस सेक्शन में इन प्रावधानों का ज़िक्र है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिल दवे और ए के गोयल की बेंच ने इस याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब माँगा जिस पर कानून एवं न्याय मंत्रालय ने अपने हलफनामे में लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता, अंतर्राष्ट्रीय नियमों, धार्मिक प्रथाओं और विभिन्न इस्लामी देशों में मार्शल लॉ का उल्लेख करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत को तीन तलाक और बहुविवाह के मुददे पर नए सिरे से निर्णय देना चाहिए।
जाहिर है कि सातवीं सदी के इस इस्लामी कानून को आज 21वीं सदी में भी जस का तस लागू किया जाना सिर्फ शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं के लिए ही नहीं पूरे मुस्लिम समाज के लिए भी खतरनाक है।

मुस्‍ल‍िमों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा पर बैन लगाने से जुड़े भारतीय मुस्‍ल‍िम महिला आंदोलन की मांग का यूपी की प्रथम महिला काजी ने भी समर्थन किया है। हिना जहीर नकवी ने इस प्रथा को ‘कुरान की आयतों का गलत मतलब निकाला जाना’ करार दिया है।
नकवी ने इस प्रथा पर तत्‍काल प्रभाव से बैन लगाने की मांग भी की। नकवी ने कहा कि मौखिक तौर पर तलाक देने की प्रथा का बेजां इस्‍तेमाल हुआ है। इसने मुस्‍ल‍िम महिलाओं की जिंदगी को खतरे में डाल दिया है। इससे सिर्फ तलाक को बढ़ावा मिल रहा है। यहां तक कि कुरान में इस तरह का कोई निर्देश नहीं दिया गया, जिससे मौखिक तलाक को बढ़ावा दिया जाए। यह कुरान की आयतों को गलत मतलब निकाला जाना है।’ 
गौरतलब है कि करीब 50 हजार मुस्‍ल‍िम महिलाओं व पुरुषों ने तीन तलाक की प्रथा पर बैन से जुड़ी याचिका पर दस्‍तखत किए हैं। अब इसमें राष्‍ट्रीय महिला आयोग से दखल देने की भी मांग मुस्लिम महिला मंच कर रहा है।
देखते हैं कि इस बहस और टकराव का परिणाम क्या निकलेगा, बहरहाल बात निकल चुकी है दूर तलक
जाने के लिए... 
मशहूर कव्वाल साबरी ब्रदर्स ने अमीर खुसरो के शब्दों को क्या खूब गाया है-
बहुत कठिन है डगर पनघट की...मुस्लिम महिलाओं की इस डगर की कठिनाई तो अभी शुरु हुई है, परंतु इतना भरोसा है कि न्याय अवश्यंभावी है।

- अलकनंदा सिंह

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

सरस्वती नदी के Scientific प्रमाण मिले, भूगर्भ वैज्ञानिकों के दल ने सौंपी रिपोर्ट

प्राचीनकाल में काल में बहने वाली सरस्वती नदी के Scientific प्रमाण मिल गए हैं और वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय में आदि बद्री से गुजरात में कच्छ के रण से होकर धौलावीरा तक करीब पौने पांच हजार किलोमीटर तक जमीन के भीतर विशाल जल भंडार का भी पता चला है जिससे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तरी गुजरात तक के क्षेत्र की प्यास बुझाई जा सकती है।
जाने-माने भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर के एस वाल्दिया की अध्यक्षता वाले एक विशेषज्ञ दल ने केन्द्रीय जल संसाधन एवं नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती को उत्तर-पश्चिम भारत में पुरावाहिकाओं की प्राक्कलन रिपोर्ट शनिवार को यहां एक कार्यक्रम में सौंपी जिसमें सरस्वती नदी के अस्तित्व में रहने की बात प्रमाणित हुई है।
इस मौके पर सुश्री भारती ने कहा कि यह विश्व की सबसे प्रामाणिक रिपोर्ट है और इससे प्रमाणित हो गया है कि गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में कभी सरस्वती नदी बहती थी जो हिमालय के आदि बद्री से निकलती थी और पश्चिम में गुजरात में हड़प्पा कालीन नगर धौलावीरा तक बहती थी।
भारती ने कहा कि वह चाहती थीं कि सरस्वती नदी का कोई अस्तित्व रहा है या नहीं, यह बात धार्मिक एवं आस्था से जुड़े विश्वास के आधार पर नहीं बल्कि ठोस वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित होनी चाहिए और उन्हें खुशी है कि विशेषज्ञ समिति में शामिल वैश्विक स्तर पर बेहद प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने व्यापक अध्ययन करके इसकी पुष्टि की है।
उन्होंने कहा कि आगे इस बारे में अध्ययन किया जाएगा कि सरस्वती की सुप्त जलधारा की क्षमता कहां कितनी है और उससे गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में सूखे का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पानी की नयी धारा को लाने की तुलना में पुरानी धारा को पुनर्जीवित करना कम खर्चीला होता है।
उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश होगी कि प्रकृति एवं पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना और जैव विविधता की रक्षा करते हुए उसके उपयोग के उपाय किए जाएं। इस रिपोर्ट पर विस्तृत विचार मंथन के लिए जल्द ही एक सम्मेलन बुलाया जाएगा।
गौरतलब है कि पौराणिक सरस्वती नदी को जिंदा करने के लिए हरियाणा में पहले से ही खुदाई का काम चल रहा था। हरियाणा की खट्टर सरकार कई बार केंद्र से मदद के लिए गुहार लगा चुकी है। बाद में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने एक टास्क फोर्स का गठन कर इस पर शोध किए जाने का आदेश दिया था।
कुछ महीने पहले जब हरियाणा के यमुनानगर में सरस्वती नदी की खुदाई के दौरान जल निकला तो बड़े-बड़े नेता दर्शन के लिए पहुंचे। अब हरियाणा के तीन जिलों में सरस्वती नदी का प्रवाह क्षेत्र मानते हुए 260 किलोमीटर में खुदाई की तैयारी हो रही है। हिंदू ग्रंथों में सरस्वती नदी का कई जगह जिक्र मिलता है। ऋग्वेद का पहला हिस्सा इसी नदी के किनारे लिखा गया।
महाभारत में इस नदी के गायब होने की बात लिखी गई है। नासा और इसरो को अंतरिक्ष से मिले सिग्नल भी इस नदी के रूट की गवाही देते हैं।
हरियाणा में खुदाई में जो पानी मिल रहा है वो सरस्वती नदी का है या नहीं, इसकी जांच-पड़ताल अब केंद्र सरकार का टास्क फोर्स करेगी लेकिन कहा ये भी जाता है कि करीब 10 हजार साल पहले सरस्वती नदी के किनारे लोग रहते थे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 1500 किलोमीटर में बहने वाली सरस्वती नदी लुप्त कैसे हो गई?

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

खून का पानी हो जाना

''खून का पानी हो जाना'', ये एक कहावत है जिसे कभी निर्लज्जता कभी कायरता और कभी- कभी कमजोर मन से जोड़ा जाता है। चिकित्सा विज्ञान में यही खून जब पानी होने लगता है तो व्यक्ति शारीरिक व मनोवैज्ञानिक दोनों ही स्तर पर लाइलाज होने लगता है। जो भी हो, मगर इस एक वाक्य के निहितार्थ अनेक हैं। कई अर्थों में, कई संदर्भों में इसे अलग अलग मायनों के साथ प्रयोग किया जाता रहा है।

आजकल की परिस्थ‍ितियों में इसका काफी उपयोग किया जा रहा है।

सामरिक स्तर पर हमारी सेना ने बता दिया कि ''खून के पानी हो जाने'' से पहले ही यदि दुश्मन को उसी के घर में शांत बैठने के लिए बाध्य कर दिया जाए तो न केवल देश की सीमाऐं सुरक्ष‍ित रहेंगीं बल्कि देश के खून में एक रवानगी आएगी जो प्रगति के लिए, विश्व में सकारात्मक संदेश देने के लिए बेहद जरूरी है।

उरी हमले के बाद पाकिस्तान से आयातित आतंकवादियों पर भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर उनके तमाम लांच पैड्स को ध्वस्त किया और उन्हें धूल चटा दी। जाहिर है सेना का ''खून, खून था... पानी नहीं'' था। उसमें गर्मी थी... आतंक के खि‍लाफ एक लौ जल रही थी। सेना  चाहती थी कि यह गर्मी उन लोगों को भी महसूस हो जो हमार ज़मीं और हमारे लोगों पर बुरी नज़र रखे हैं।

''खून के पानी हो जाने'' का राजनैतिक उदाहरण भी आजकल सोशल मीडिया की शान बना हुआ है। जेडीयू के डा. अजय आलोक हों, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के संजय निरुपम हों या फिर कांग्रेस के ही युवराज राहुल गांधी क्यों न हों, सभी ने अपने अपने निर्लज्ज बयानों व भाषणों से बता दिया है कि ''खून के पानी हो जाने'' पर ही हम सीमा पर रोज-ब-रोज हो रही शहादतों का मखौल उड़ाने की बेशर्म हिम्मत कर पाते हैं। उनका अपमान कर सकते हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक के लिए हौसला बंधाने वाले प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री से लेकर डीजीएमओ तक से इसके सुबूत मांग सकते हैं, ना देने पर उन्हें सैनिकों के खून की दलाली करने वाला कह सकते हैं।

बेशक इतनी बेशर्मी के लिए हिम्मत चाहिए, और वो तभी आ सकती है जब व्यक्ति का खून पानी हो गया हो, जब वह देश हित और दुश्मन के हित में फर्क कर पाने की मानसिक हालत में ही ना हो।

इनकी रगों में बह रहा खून,  निश्चित ही पानी बन चुका है जो यह महसूस नहीं कर पा रहा कि आजादी के साढ़े छह दशक बाद देश को ऐसा नेतृत्व मिला है जो पूरे विश्व में भारत को सेंटर ऑफ नेसेसिटी और सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बनाने के प्रयास में जुटा हुआ है। अब देश के पास शांति के कबूतर उड़ाने का समय नहीं है और ना हम देखेंगे, या हम देख रहे हैं, जैसे तकिया कलाम इस्तेमाल करने वाला शासन है।

अब नेतृत्व कहता है क‍ि नई पीढ़ी को विश्व का सिरमौर बनाना है... कमर कसनी होगी... और ये वही कर सकता है जो अपनी रगों में खून की गर्मी को महसूस करता हो, मगर उसकी इस श‍िद्दत को वो लोग नहीं जान सकते जो अपने खून को पानी कर चुके हों।

ये अपनी रगों में पानी लेकर चलने वाले ''वही लोग'' हैं जो कुछ अखलाकों की ''इच्छा'' के लिए गायों की हत्या पर रोष तक जाहिर नहीं करते, पयूर्षण पर्व में गोमांस की बिक्री बंद कर दिए जाने पर इसे धर्म की आजादी से जोड़ते हैं, गौमांस पार्टियों का आयोजन करते हैं, स्वयं को हिन्दू कहने में शर्म महसूसकरते हैं, हैदराबाद यूनीवर्सिटी में रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या कर लिए जाने पर केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताते हैं, जेएनयू में भारत के टुकड़े करने वालों को हीरो बनाने पर तुले रहते हैं तथा कश्मीर के सेपरेटिस्ट को अपना भाई बताते हैं।

ये वही लोग हैं जो अलगाववादियों द्वारा मुंह पर दरवाजा बंद करने के बावजूद उनकी चिरौरी करते हैं। राजनीति में जयचंदों की इतनी बड़ी फौज आखि‍र देश के उत्थान में क्या सहयोग कर पाएगी, अब यह बताने की कतई जरूरत नहीं।

बॉलीवुड और साहित्य के क्षेत्र में भी ऐसे बंदों की कमी नहीं है जि‍नके शरीर में बहने वाला खून कब का पानी हो चुका है जो स्वयं को ''देशहित'' से अलहदा रखने में शान समझते हैं। कला और साहित्य के क्षेत्र से आशा की जाती है कि कम से कम इनकी ''आत्मा'' तो बाकी रहे, इन्हें दर्द समझ में आए, इनके अंदर देश के प्रति स्वाभ‍िमान जगाने की क्षमता हो मगर एक सर्जिकल स्ट्राइक और उरी हमले के शहीदों के उदाहरण ने इनकी कलई खोल दी कि बॉलीवुड का ही नहीं साहित्य का भी अपना अंडरवर्ल्ड होता है जो देश के दुश्मनों की लार पोंछता हुआ उनकी खि‍दमत में बिछ जाता है।

अवार्ड वापसी करने वाले साहित्यकारों का ''खून तो तभी पानी'' हो चुका था जब इन्होंने देश के टुकड़े करने वालों को अभ‍िव्यक्ति की आजादी के तहत अपना सपोर्ट दिया था। ऐसे में भला हम इन साहित्यकारों से उम्मीद भी कैसे करें कि इनका खून दुश्मन की हरकतों पर खौलेगा। रही बात बॉलीवुड की, तो उससे जुड़े अध‍िकांश लोगों का खून कब का पानी बन चुका है वरना चार दिन तक मीडिया इन्हें देशप्रेम याद दिलाता रहा और ये पाकिस्तान का ही राग अलापते रहे कि '' कला सरहदों में कैद नहीं की जा सकती''।

यह बॉलीवुड ही है जो कला से ज्यादा मनी लांड्रिंग और ब्लैकमनी के बारे में चिंतित रहता है और पाकिस्तानी कलाकार उनके इस काम में अच्छा ज़रिया बनते हैं तो उनके लिए देश क्या...और देश के दुश्मन क्या।
बहरहाल जिनका खून पानी हो चुका है , अब  जरूरत उनके सर्जिकल स्ट्राइक की भी है। इसे कौन करेगा और कब , बस इसी का इंतज़ार है।

- अलकनंदा सिंह



सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

Thank U नाना…आपने अंधों के शहर में आइना तो दिखाया

नाना ने आज 'कलाकार देश के सामने खटमल हैं' बोलकर जिस तरह बेबाकी से बॉलीवुड के कथ‍ित ''कलाकारों '' का सच बयान किया है, वह अंधों के शहर को आइना दिखाने जैसी बात है। मैं नाना की फिल्मों की ही नहीं बल्कि उनकी निभाई सामाजिक भूमिकाओं की भी फैन हूं मगर उनकी ये बेबाकी बॉलीवुड के कई घ‍िनौने सच सामने ला देती है। जिन कलाकारों की भूमिकाओं को हम एंज्वाय करते हैं, उनकी बेवकूफाना बातें बतातीं हैं कि उनकी फिल्मों का ''सुपरहिट तत्व'' कितना खोखला होता है। 
भारत द्वारा PoK में घुसकर आतंकियों पर Surgical Strike करने के बाद आतंकी वारदातों और आतं‍की समूहों के ख‍िलाफ एक शब्द भी नहीं बोलने वाले पाकिस्तानी एक्टर्स के उस सच को सामने ला दिया है जो बरसों से भारतीय फिल्म जगत में घुसपैठ तो कर रहा था लेकिन उसके ख‍िलाफ कोई मुखर होकर बोलता नहीं था।   गायक अभ‍िजीत भट्टाचार्य ने आवाज बुलंद की तो किसी ने उनका साथ नहीं दिया और अब पाकिस्तानी एक्टर्स व सिंगर्स की मंशा सामने आ रही है क‍ि वह बॉलीवुड तथा भारत को अपने लिए सिर्फ और सिर्फ एक मंडी समझते रहे हैं।
जहां तक मुझे जानकारी है पाकिस्तानी गायकों व कलाकारों को सिर्फ फिल्मों में ही नहीं बल्कि रियेलिटी शो में भी भारतीय फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के ऐसे कॉकस का साथ मिला हुआ है जो भारतीय प्रतिभाओं के न सिर्फ पेट पर लात मार रहे थे बल्कि अवांछित गतिविध‍ियों में भी लिप्त हैं।
प्रसिद्ध गायक राहत फतेह अली खान इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिन्हें मनी लांड्रिंग केस में भारत आने से ही रोक दिया गया था।
फिल्म इंडस्ट्री के प्रोड्यूसर्स की सबसे पुरानी संस्था आईएमपीपीए ने पाकिस्तानी कलाकारों पर बॉलीवुड में काम करने की पाबंदी लगाने के बाद सलमान खान, करन जौहर, महेश भट्ट जैसों के बयान बता रहे हैं कि उनके पाकिस्तानी फेवर के पीछे सब कुछ इतना सीधा- साधा नहीं है, सच की परतें अभी और भी हैं जो पाकिस्तान से वाया दुबई यहां आ रही हैं।
ये बॉलीवुड इंवेस्टमेंट का वो अंडरवर्ल्ड है, जो अपनी लक्ष्मन रेखा में किसी कलाकार को घुसने नहीं देता, जो खेमों और कैंपों में बंटा हुआ है, उसे पाकिस्तानी कलाकार इसीलिए भाते हैं कि वो इन कैंप्स के लिए ''बेस्ट पपेट'' साबित होते हैं। जो टूरिस्ट वीजा पर आते हैं और यहां जो भी कमाते हैं, उसका खुलासा करने को बाध्य नहीं किए जाते ल‍िहाजा बॉलीवुड की ब्लैक कमाई का चक्रव्यूह बदस्तूर चलता रहता है। 
इसके ठीक विपरीत नाना पाटेकर का पत्रकारों से ये कहना कि देश पहले है, बाक़ी सब बाद में, यह बताता है कि जो देश के भीतर बैठकर देश की जड़ें कुतरने की कोश‍िश में हैं, वे चाहे हिंदुस्तानी कलाकार हों या पाकिस्तानी, अब मुखौटों में नहीं छुप पाऐंगे।
नाना पाटेकर ने कहा, "मुझे लगता है पाकिस्तान, कलाकार ये बातें बाद में, पहले मेरा देश. देश के अलावा मैं किसी को जानता नहीं और न मैं जानना चाहूंगा."
"हम कलाकार देश के सामने खटमल की तरह इतने से हैं, हमारी क़ीमत कोई नहीं है, पहले देश है."
पाकिस्तानी कलाकारों के मुद्दे पर बॉलीवुड में राय बंटी होने पर उन्होंने कहा, "बॉलीवुड क्या कहता है मैं नहीं जानता, मैंने ढाई साल सेना में गुज़ारे हैं तो मुझे मालूम है कि हमारे जो जवान हैं उनसे बड़ा हीरो कोई हो नहीं सकता दुनिया में."
उन्होंने कहा, "हमारे असली हीरो सेना के जवान हैं, हम तो बहुत मामूली और नकली लोग हैं. हम जो बोलते हैं .उस पर ध्यान मत दो."
पाटेकर ने पत्रकारों से कहा, "तुम्हें समझ में आया मैं किनके बारे में बोल रहा हूँ तो मैं उन्हीं के बारे में बोल रहा हूँ."
उन्होंने कहा, "हम जो पटर-पटर करते हैं उस पर ध्यान मत दो, इतनी अहमियत मत दो किसी को. उनकी औक़ात नहीं है उतनी अहमियत की."
निश्चित ही जो नाना ने कहा, कभी उसकी तस्दीक जावेद अख्तर कर चुके हैं।
इस मसले पर भारत के कुछ बुद्धिजीवी भी पाकिस्तानी कलाकारों के पक्ष में खड़े नजर आते हैं, वह भी इस तर्क के साथ कि कला और आतंकवाद को अलग करके देखा जाना चाहिए। इन बुद्धिजीवियों को कौन समझाए कि कोई कला कभी राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती। राष्ट्र की कीमत पर कला को बढ़ाने की वकालत करने वालों को यह बात समझनी होगी ।
अदनान सामी जैसे कलाकार, तारिक फतह जैसे बुद्धिजीवी जो सच पाकिस्तान का बयां करते हैं, वह हमारे इन ''कथ‍ित बॉलीवुड के अमनपसंदों और बातचीत के पैरोकरों'' को कब दिखाई देगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, अलबत्ता नाना पाटेकर जैसे राष्ट्रभक्त कलाकार इनकी आंखों को किरक‍िरा अवश्य करते रहेंगे।
अब मामला कमाई का ही नहीं, और ना ही दुबई कनेक्शंस व इंवेस्टमेंट कॉकस का रह गया है, यह चार कदम आगे बढ़कर राष्ट्र और इस पर आए आतंकवाद के खतरे से जुड़ गया है। हमारे सुपरस्टार्स के ''ऊंचे कदों'' के लिए ये ताकीद है कि अब बस, बहुत हो गया ढोंगों का बाजार ... ।
अब या तो इस बाजार की आड़ में अपनी काली कमाई के लिए राष्ट्र की अस्म‍िता के साथ ख‍िलवाड़ करने का घिनौना खेल बंद कर दो अन्यथा जिस जनता ने आज सिर-आंखों पर बैठाकर सितारों का दर्जा दिलवा रखा है, वही उस मुकाम तक ले जाएगी जहां बड़े-बडे सितारे इस कदर गर्दिश में समा जाते हैं क‍ि इतिहास भी उन्हें दोहराने की जहमत नहीं उठाता। 
- अलकनंदा सिंह

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

शारदीय नवरात्र: जीवित स्त्र‍ियों को जूते में पानी पिला कर किस शक्ति की आराधना करें हम ?

ज़रा सोच कर देख‍िए कि आप शारदीय नवरात्र आरम्भ होने पर पूजा संपन्न करने के बाद कोई ऐसी खबर दिखाई दे कि वह आपकी पूरी की पूरी आस्था को ही हिला दे और यह सोचने पर बाध्य कर दे कि क्या सचमुच ईश्वर अस्तित्व में है या क्या हमारा सबके लिए सद्बुद्धि मांगना सार्थक हुआ।
आज ऐसी ही एक खबर ने आस्था और मनुष्यता के बीच संबंधों की कलई खोल दी।
आज मुझे अंधविश्वास के ख‍िलाफ लड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर जैसे व्यक्तित्व की कमी बहुत अखर रही है। अश‍िक्षा और रुढि़यां आत्मसम्मान को कुचल देती हैं। विवशता उनका हथ‍ियार बन जाती है मजलूमों पर कहर ढाने के लिए।

मनुष्यता को हिला देने वाली ये खबर कुछ यूं है...कि

राजस्थान के भीलवाड़ा में अंधविश्वास को लेकर हालात आज भी नहीं बदले हैं। घटना के अनुसार यहां के ''बंकाया माता'' मंदिर में भूत का साया भगाने के नाम पर महिलाओं को जूतों में भरकर महिलाओं को पानी पिलाया जाता है। यहां भूत उतारने के नाम पर महिलाओं को जूते सिर पर रखकर चलने को कहा जाता है। यही नहीं, उन्हें गंदे जूतों में पानी भरकर पीने को मजबूर भी किया जाता है। ऐसा दशकों से चला आ रहा है, लेकिन किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की।
झाड़-फूंक के नाम पर मंदिर का पुजारी मनमानी हरकतें करवाता है। औरतों को जूते सिर पर रखकर कई किलोमीटर तक चलाया जाता है। वहीं एक हौद में पानी भरा रहता है। आस्था का हवाला देकर वहां का पानी जूतों में भरकर पीने को मजबूर किया जाता है। ऐसी महिलाओं को बाल पकड़कर 200 सीढ़ियों पर घसीटा जाता है और पुरुष देखते रहते हैं।
यकीन नहीं होता ना... कि महिलाओं के साथ किया जाने वाला यह अमानवीय बर्ताव 21वीं सदी की सोच से परे है।
भारत में भी महिला सशक्तिकरण की ना जाने कितनी बातें कितने कसीदे रोज बरोज गढ़े जाते हैं मगर ऐसी रूढि़यों के लिए आगे आने की हिम्मत नहीं की जाती।
ये सब ठीक उसी दिन पता चलना हृदय को कोंच गया जब कि आज से ही शारदीय नवरात्र का शुभारंभ हुआ है और ''बंकाया माता'' मंदिर में भूत भगाने का यह ''कुत्सित'' कार्यक्रम अगले नौ दिनों तक चलेगा भी।
एक आश्चर्य इस बात का भी है कि ये भूत भी जेंडर देखकर आते हैं यानि महिला पर ही आते हैं, पुरुषों पर नहीं। और ये जेंडरवाइज ही उतारे भी जाते हैं, हालांकि पुजारी के अनुसार ये भूत अपना असर कम कर देते हैं मगर पूरी तरह से नहीं जाते।
अर्थात् प्रताड़ना का ये सिलसिला बदस्तूर '' पीडि़त'' महिला के जीवित रहने तक जारी रहता है।

पूरी तरह मानसिक विक्षोभ को भूत कहकर जिस तरह औरतों के साथ दरिंदगी की जाती है, उसका एक और उदाहरण- पीडि़त महिला को मंदिर में बुलाए जाने से पहले तीन दिन तक पानी नहीं दिया जाता, ऐसा  उस ''भूत'' को दंडित करने के लिए किया जाता है ताकि वह मंदिर में आने से पहले कमजोर हो जाए और ''उतारे जाते'' समय वह किसी को नुकसान ना पहुंचाने पाए।

जाहिर है प्यासी महिला को जब कई किलोमीटर तक पैदल चलाकर पानी की हौद में उतारा जाता है तो वह पानी पीने के लिए किसी भी शर्त को मानने को तैयार रहती है, फिर चाहे वह जूते में ही पानी क्यों ना पीना पड़े,  प्यास के आगे वह अश‍िक्षित महिला विवश हो जाती है और पुजारी इसी विवशता फायदा उठाते हुए अपना सिक्का जमा लेता है उसके परिजनों पर।

बहरहाल...  शारदीय नवरात्र शुरू होने पर आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू हो गई जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होगी । आज प्रथम दिन की देवी मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है। शैलपुत्री के पूजन करने से 'मूलाधार चक्र' जाग्रत होता है जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं... आदि धार्मिक प्रवचन , आख्यानों पर राजस्थान की इस एक खबर ने
शैलपुत्री के प्रतीकात्मक स्वरूप में '' मौजूद'' होने और हमारे द्वारा स्त्री को देवी मानने की खोखली रवायत की असलियत खोल दी है।

आख‍िर हम इन जीवित स्त्र‍ियों को जूते में पानी पिला पिला कर किस शक्ति की आराधना कर रहे हैं , और यदि कर रहे हैं तो क्या ये सचमुच फलीभूत हो सकेगी.. .. मेरा संशय बढ़ रहा है। मंत्रों की शक्ति को पुजारी अपनी धूनी भरी मुठ्ठी में जोर से पकड़ कर उस पीडि़त महिला पर फेंक रहा ... है... और मैं जोर जोर से दोहरा रही हूं...

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

- अलकनंदा सिंह