(1)
सोच बदलने दो...
जब भी कभी हम लकीर से हटकर अपना अलग नज़रिया पेश करते हैं, तब बदलाव हमेशा याद रखे जाते हैं, वे नज़ीर बन जाते हैं। चाहे दीपावली पर अपने गली-कूचे में पटाखे ना छुड़ाने का संकल्प लिया जाए या सिर पर डलिया रखकर 10-11 साल की बच्ची से सारे दीए इसलिए खरीद लिए जाऐं कि वह बच्ची अतिशीघ्र ''अपनी'' दीवाली अपनी ही तरह से मना सके। ऐसा ही इस दीवाली पर एक बदलाव बीसीसीआई ने किया है- मैच का एक दिन खिलाड़ियों की मां के नाम करके।
जी हां, आज विशाखापत्तनम में भारत-न्यूजीलैंड के बीच 5वां वनडे मैच खेला जा रहा है। मैच की विजेता कौन सी टीम होगी, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता मगर बीसीसीआई ने आज उन मांओं का दिल तो जीत ही लिया जिन्होंने अपने क्रिकेट स्टार बेटों को ''स्टार'' बनाने के लिए नींव के पत्थर की तरह चुपचाप अपनी यात्रा पूरी की। मैच के प्रसारण अधिकार लेने वाले इलेक्ट्रानिक चैनल स्टार प्लस और आयोजक बीसीसीआई की एक अनूठी संयुक्त पहल है कि सभी भारतीय खिलाड़ी अपनी जर्सी पर अपनी मां का नाम पहन कर खेल रहे हैं।
इसका आइडिया प्रधानमंत्री के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से प्रेरित है, तभी तो जब अजिंक्य रहाणे और महेंद्र सिंह धोनी से पूछा जाता है कि '' मां का नाम पहनने की कुछ खास वजह'' तो दोनों कहते हैं ''आज तक हम पिता का नाम (सरनेम) पहनते रहे तब तो आपने नहीं पूछा ''खास वजह'' के बारे में।
बहरहाल पिता के बाद मां का नाम पहनने की ये पहल और आज का दिन, दोनों ही क्रिकेट के रिकॉर्ड में अपनी अद्भुत उपस्थिति के साथ दर्ज़ हो गया। तो क्रिकेट में आई इस सोच ने मनाई ये दीवाली नई पहल के साथ...।
(2)
''अप्प दीपो भव''
प्राकृत भाषा में बोले गए ये तीन शब्द, भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को कहे थे। बुद्ध के अंतिम समय में आनंद को दुखी देखकर कहा बुद्ध ने समझाकर कहा...अप्प दीपो भव। यही तीन उनके आखिरी शब्द थे। अर्थात् अपना प्रकाश स्वयं बनो, अपने दीपक के प्रकाश स्वयं बनो, अपना दीप जलाकर स्वयं सत्य की खोज करो, प्रत्येक व्यक्ति का अपना सत्य होता है, यही उसका स्वयं का सत्य होता है। दूसरे के दिखाए सत्य और प्रकाश के पीछे उसकी सोच होगी, वह तुम्हारी नहीं होगी और जब तुम्हारी नहीं होगी तो निश्चय ही वह तुम पर थोपी गई होगी, और थोपी गई सोच कभी ''तुम्हारा वाला'' सत्य नहीं हो सकती और इसीलिए वह तुमसे, तुम्हारे सुख से कोसों दूर होगी।
शिष्य आनंद से भगवान बुद्ध ने तभी यह भी कहा- दूसरों पर आश्रित रहना व्यर्थ है, दीपक की तरह स्वयं जलकर ही प्राप्त किए गए प्रकाश की अहमियत हम जान सकते हैं।
दीपक की तरह स्वयं जलो, जलकर जानो कि प्रकाश कैसे मिला, कितना मिला और इसे आगे कैसे प्रयुक्त करना है। दीपक के द्वारा बुद्ध ने आत्मप्रकाश की बात की है।
संघर्ष में तपने के बाद ही व्यक्ति स्वयं से परिचित हो पाता है, अपनी शक्तियों को पहचान पाता है।
इसप्रकार दीपावली हमें हमारी आत्मा की शक्ति की पहचान कराकर, स्वयं के अनुभव से ज्ञान प्राप्त करने का त्यौहार बन जाता है, ठीक उसीतरह जैसे कि भगवान श्रीराम ने राजसुख छोड़कर संघर्ष के माध्यम से जीवन और जगत का स्वयं ही ज्ञान प्राप्त किया था।
ये आत्मज्ञान का पर्व है...तो सोच बदलो , देश व समाज बदलेगा ही बदलेगा... अप्प दीपो भव। ...शुभ दीपावली
- अलकनंदा सिंह
सोच बदलने दो...
जब भी कभी हम लकीर से हटकर अपना अलग नज़रिया पेश करते हैं, तब बदलाव हमेशा याद रखे जाते हैं, वे नज़ीर बन जाते हैं। चाहे दीपावली पर अपने गली-कूचे में पटाखे ना छुड़ाने का संकल्प लिया जाए या सिर पर डलिया रखकर 10-11 साल की बच्ची से सारे दीए इसलिए खरीद लिए जाऐं कि वह बच्ची अतिशीघ्र ''अपनी'' दीवाली अपनी ही तरह से मना सके। ऐसा ही इस दीवाली पर एक बदलाव बीसीसीआई ने किया है- मैच का एक दिन खिलाड़ियों की मां के नाम करके।
जी हां, आज विशाखापत्तनम में भारत-न्यूजीलैंड के बीच 5वां वनडे मैच खेला जा रहा है। मैच की विजेता कौन सी टीम होगी, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता मगर बीसीसीआई ने आज उन मांओं का दिल तो जीत ही लिया जिन्होंने अपने क्रिकेट स्टार बेटों को ''स्टार'' बनाने के लिए नींव के पत्थर की तरह चुपचाप अपनी यात्रा पूरी की। मैच के प्रसारण अधिकार लेने वाले इलेक्ट्रानिक चैनल स्टार प्लस और आयोजक बीसीसीआई की एक अनूठी संयुक्त पहल है कि सभी भारतीय खिलाड़ी अपनी जर्सी पर अपनी मां का नाम पहन कर खेल रहे हैं।
इसका आइडिया प्रधानमंत्री के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से प्रेरित है, तभी तो जब अजिंक्य रहाणे और महेंद्र सिंह धोनी से पूछा जाता है कि '' मां का नाम पहनने की कुछ खास वजह'' तो दोनों कहते हैं ''आज तक हम पिता का नाम (सरनेम) पहनते रहे तब तो आपने नहीं पूछा ''खास वजह'' के बारे में।
बहरहाल पिता के बाद मां का नाम पहनने की ये पहल और आज का दिन, दोनों ही क्रिकेट के रिकॉर्ड में अपनी अद्भुत उपस्थिति के साथ दर्ज़ हो गया। तो क्रिकेट में आई इस सोच ने मनाई ये दीवाली नई पहल के साथ...।
(2)
''अप्प दीपो भव''
प्राकृत भाषा में बोले गए ये तीन शब्द, भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को कहे थे। बुद्ध के अंतिम समय में आनंद को दुखी देखकर कहा बुद्ध ने समझाकर कहा...अप्प दीपो भव। यही तीन उनके आखिरी शब्द थे। अर्थात् अपना प्रकाश स्वयं बनो, अपने दीपक के प्रकाश स्वयं बनो, अपना दीप जलाकर स्वयं सत्य की खोज करो, प्रत्येक व्यक्ति का अपना सत्य होता है, यही उसका स्वयं का सत्य होता है। दूसरे के दिखाए सत्य और प्रकाश के पीछे उसकी सोच होगी, वह तुम्हारी नहीं होगी और जब तुम्हारी नहीं होगी तो निश्चय ही वह तुम पर थोपी गई होगी, और थोपी गई सोच कभी ''तुम्हारा वाला'' सत्य नहीं हो सकती और इसीलिए वह तुमसे, तुम्हारे सुख से कोसों दूर होगी।
शिष्य आनंद से भगवान बुद्ध ने तभी यह भी कहा- दूसरों पर आश्रित रहना व्यर्थ है, दीपक की तरह स्वयं जलकर ही प्राप्त किए गए प्रकाश की अहमियत हम जान सकते हैं।
दीपक की तरह स्वयं जलो, जलकर जानो कि प्रकाश कैसे मिला, कितना मिला और इसे आगे कैसे प्रयुक्त करना है। दीपक के द्वारा बुद्ध ने आत्मप्रकाश की बात की है।
संघर्ष में तपने के बाद ही व्यक्ति स्वयं से परिचित हो पाता है, अपनी शक्तियों को पहचान पाता है।
इसप्रकार दीपावली हमें हमारी आत्मा की शक्ति की पहचान कराकर, स्वयं के अनुभव से ज्ञान प्राप्त करने का त्यौहार बन जाता है, ठीक उसीतरह जैसे कि भगवान श्रीराम ने राजसुख छोड़कर संघर्ष के माध्यम से जीवन और जगत का स्वयं ही ज्ञान प्राप्त किया था।
ये आत्मज्ञान का पर्व है...तो सोच बदलो , देश व समाज बदलेगा ही बदलेगा... अप्प दीपो भव। ...शुभ दीपावली
- अलकनंदा सिंह
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